अरुण सुक्ला
आप लोगों ने लगान फिल्म अवश्य देखी होगी। एक अँगरेज़ अधिकारी उन गंवारों से क्रिकेट मैच जीतने की शर्त लगाता है जिन्हे क्रिकेट की ए, बी, सी, डी तक नहीं आती थी। दुष्ट अँगरेज़ मैच जीतने पर लगान माफ़ करने का प्रलोभन देता है और मैच हारने पर तिगुना लगान वसूलने की बात कहता है। उस अँगरेज़ की बहन दयालु प्रकृति की है और वो ग्रामीणों को चोरी छिपे क्रिकेट के नियम बताने से लेकर उन्हें क्रिकेट के उपकरण भी उपलब्ध कराती है और अंत में यही गंवार विजयी होते हैं जिसका पूरा श्रेय उस अँगरेज़ लड़की को जाता है।
ऐसा ही एक दयालु था पीटर विली जो एक अँगरेज़ था। छोटे, मोटे अख़बार का पत्रकार होने के साथ साथ वो एक चित्रकार भी था। उसे भारतीयों से बड़ी सहानुभूति थी। सन 1962 में वो भारत ये देखने के लिए आया कि आजादी के बाद का भारत कैसा है? पर उसे भारतीयों की दशा देखकर कोई विशेष ख़ुशी नहीं हुई। दुर्भाग्य से उसी समय चीन से युद्ध भी छिड़ गया। सेना के जवानों को देखकर वो हैरत में आ गया। हिमालय की भीषण ठंड में कुछ लोग चप्पल में तो कुछ नँगे पैर। कुछ लोग स्वेटर में तो कुछ केवल शर्ट में और शर्ट के अंदर रुई के टुकड़े। गोलियां भी गिनकर दी जा रही थी। उसने एक बेहद गरीब जवान को अपनी जैकेट देनी चाही, पर उसने ये कहकर लेने से मनाकर दिया कि उसके अन्य साथी भी उसके जैसी स्थिति में लड़ रहे हैं। पीटर विली ने फौरन एक तैल चित्र बनाया जिसमे एक जवान एक हाथ में बन्दूक और एक हाथ में गिनती की गोलियां लिए हुए दीन दरिद्र अवस्था में हिम्मत और स्वाभिमान से लबरेज पर्वतीय क्षेत्र में खड़ा हुआ था।
उस चित्रकार महाशय ने वो तैल चित्र नेहरू जी को भेंट करने की सोचा। पर नेहरू जी से उसकी मुलाकात न हो सकी। पता लगता नेहरू जी अपने स्टडी रूम में कभी कोई नॉवेल लिख रहे हैं तो कभी इधर उधर मीटिंग में व्यस्त रहते। चीन युद्ध को भी वो अपने रक्षा मंत्री मेनन के जिम्मे डालकर पूर्ण निश्चिन्त थे और वैसे भी उनका मानना था कि चीन एक पुराना दोस्त है जो फिलहाल कुछ समय के लिए नाराज़ चल रहा है, शीघ्र ही वो रूठे हुए दोस्त को मना लेंगे।
उस पत्रकार को लगा कि वो अपना दुर्लभ चित्र एक अयोग्य व्यक्ति को भेंट कर रहा है। भारतीय जवान इस हिमालय की हाड़ कँपाती ठंड में नँगे पैर युद्ध लड़ने जा रहे हैं और ये साहब नॉवेल पूरा कर रहे हैं। वो अँगरेज़ महाशय उस चित्र को अपने साथ इंग्लैण्ड ले गये, जहां कई लोगों ने उस चित्र को मुंहमांगे दामों पर लेने की पेशकश की पर उन्होंने वो चित्र किसी को नहीं बेचा। उनके मरने के बाद वो चित्र भी चोरी हो गया। उनकी डॉयरी के एक पन्ने पर लिखा था भारतीय सेना दुनिया की सबसे महान सेना है पर उनकी महानता को समझने वाले लोग भारत में नहीं हैं।