Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

Nilesh kumar shukla

#ओरछाकेराजा’ #श्रीराम के धाम को मिली नई पहचान, UNESCO विश्व धरोहर में होगा शामिल

मध्यप्रदेश में भगवान राम के धाम ओरछा को दुनिया में नई पहचान मिलने जा रही है। मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित ओरछा की ऐतिहासिक धरोहर को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ASI) के प्रस्ताव पर यूनेस्को ने विश्व धरोहरों की ‘अस्थायी’ सूची में शामिल कर लिया है। एएसआई ने यह प्रस्ताव एक माह पहले यानी 15 अप्रैल को भेजा था। 16वीं सदी में बुंदेला राजवंश द्वारा बनवाए गए स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने देखने के लिए देश-दुनिया से पर्यटक और श्रद्धालु यहाँ आते हैं और अब यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल होने के बाद सभी आवश्यक प्रकिया पूरी करके यूनेस्को के पास भेजा जाएगा। दरअसल, किसी भी ऐतिहासिक स्थल, भवन या धरोहर को विश्व धरोहर की सूची में शामिल होने के लिए पहले विश्व धरोहरों की अस्थायी सूची में शामिल होना पड़ता है।

ओरछा स्थित रामराजा मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ भगवान राम को भगवान के रूप में पूजने के साथ ही राजा के रूप में भी पूजा जाता है। इनको दिन में पांचों पहर सशस्त्र गार्डों द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर (सलामी) दी जाती है। गार्ड ऑफ ऑनर देने के लिए मंदिर के प्रवेश द्वार पर मध्य प्रदेश की स्पेशल आर्म्ड फ़ोर्स (SAF) के 11 जवान तैनात रहते हैं, जो तीन-तीन घंटे के अंतराल से ड्यूटी देते हैं। यह परंपरा तकरीबन 400 साल से चली आ रही है। मान्यताओं के अनुसार, यह मूर्ति मधुकर शाह के राज्यकाल के दौरान उनकी महारानी गणेश कुंवर अयोध्या से लाई थीं।

मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए इसे महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। जिसके बाद इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम राम राजा मंदिर रख दिया गया। यहाँ के लोगों का मानना है कि भगवान राम हर दिन अदृश्य रूप में इस मंदिर में आते हैं। ओरछा अपने रामराजा मंदिर, शीश महल, जहाँगीर महल, बाग-बगीचे, खुले गलियारे, पत्थरों वाली जाली का काम, वास्तुशिल्प आदि की वजह से आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और आने वाले दिनों में इसके विश्व धरोहरों की सूची में शामिल होने की संभावना है।

#ओरछा #ऐतिहासिक #यूनेस्को

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M P Avasthi

युधिष्ठर को था आभास कलुयुग में क्या होगा ?

पाण्डवों का अज्ञातवाश समाप्त होने में कुछ समय शेष रह गया था।

पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान ढूंढ रहे थे,

उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन में विचार आया कि इन सब में बुद्धिमान कौन है परिक्षा ली जाय।

शनिदेव ने एक माया का महल बनाया कई योजन दूरी में उस महल के चार कोने थे, पूरब, पश्चिम, उतर, दक्षिण।

अचानक भीम की नजर महल पर पड़ी
और वो आकर्षित हो गया ,

भीम, यधिष्ठिर से बोला- भैया मुझे महल देखना है भाई ने कहा जाओ ।

भीम महल के द्वार पर पहुंचा वहाँ शनिदेव दरबान के रूप में खड़े थे,

भीम बोला- मुझे महल देखना है!

शनिदेव ने कहा- महल की कुछ शर्त है ।

1- शर्त महल में चार कोने हैं आप एक ही कोना देख सकते हैं।
2-शर्त महल में जो देखोगे उसकी सार सहित व्याख्या करोगे।
3-शर्त अगर व्याख्या नहीं कर सके तो कैद कर लिए जाओगे।

भीम ने कहा- मैं स्वीकार करता हूँ ऐसा ही होगा ।

और वह महल के पूर्व छोर की ओर गया ।

वहां जाकर उसने अद्भूत पशु पक्षी और फूलों एवं फलों से लदे वृक्षों का नजारा देखा,

आगे जाकर देखता है कि तीन कुंए है अगल-बगल में छोटे कुंए और बीच में एक बडा कुआ।

बीच वाला बड़े कुंए में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे खाली कुओं को पानी से भर देता है। फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तो खाली पड़े बड़े कुंए का पानी आधा रह जाता है इस क्रिया को भीम कई बार देखता है पर समझ नहीं पाता और लौटकर दरबान के पास आता है।

दरबान – क्या देखा आपने ?

भीम- महाशय मैंने पेड़ पौधे पशु पक्षी देखा वो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जो अजीब थे। एक बात समझ में नहीं आई छोटे कुंए पानी से भर जाते हैं बड़ा क्यों नहीं भर पाता ये समझ में नहीं आया।

दरबान बोला आप शर्त के अनुसार बंदी हो गये हैं और बंदी घर में बैठा दिया।

अर्जुन आया बोला- मुझे महल देखना है, दरबान ने शर्त बता दी और अर्जुन पश्चिम वाले छोर की तरफ चला गया।

आगे जाकर अर्जुन क्या देखता है। एक खेत में दो फसल उग रही थी एक तरफ बाजरे की फसल दूसरी तरफ मक्का की फसल ।

बाजरे के पौधे से मक्का निकल रही तथा
मक्का के पौधे से बाजरी निकल रही । अजीब लगा कुछ समझ नहीं आया वापिस द्वार पर आ गया।

दरबान ने पुछा क्या देखा,

अर्जुन बोला महाशय सब कुछ देखा पर बाजरा और मक्का की बात समझ में नहीं आई।

शनिदेव ने कहा शर्त के अनुसार आप बंदी हैं ।

नकुल आया बोला मुझे महल देखना है ।

फिर वह उत्तर दिशा की और गया वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी सफेद गायें जब उनको भूख लगती है तो अपनी छोटी बछियों का दूध पीती है उसे कुछ समझ नहीं आया द्वार पर आया ।

शनिदेव ने पुछा क्या देखा ?

नकुल बोला महाशय गाय बछियों का दूध पीती है यह समझ नहीं आया तब उसे भी बंदी बना लिया।

सहदेव आया बोला मुझे महल देखना है और वह दक्षिण दिशा की और गया अंतिम कोना देखने के लिए क्या देखता है वहां पर एक सोने की बड़ी शिला एक चांदी के सिक्के पर टिकी हुई डगमग डोले पर गिरे नहीं छूने पर भी वैसे ही रहती है समझ नहीं आया वह वापिस द्वार पर आ गया और बोला सोने की शिला की बात समझ में नहीं आई तब वह भी बंदी हो गया।

चारों भाई बहुत देर से नहीं आये तब युधिष्ठिर को चिंता हुई वह भी द्रोपदी सहित महल में गये।

भाइयों के लिए पूछा तब दरबान ने बताया वो शर्त अनुसार बंदी है।

युधिष्ठिर बोला भीम तुमने क्या देखा ?

भीम ने कुंऐ के बारे में बताया

तब युधिष्ठिर ने कहा- यह कलियुग में होने वाला है एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा परन्तु दो बेटे मिलकर एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे।

भीम को छोड़ दिया।

अर्जुन से पुछा तुमने क्या देखा ??

उसने फसल के बारे में बताया

युधिष्ठिर ने कहा- यह भी कलियुग में होने वाला है वंश परिवर्तन अर्थात ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर बनिए की लड़की ब्याही जायेंगी।

अर्जुन भी छूट गया।

नकुल से पूछा तुमने क्या देखा तब उसने गाय का वृतान्त बताया ।

तब युधिष्ठिर ने कहा- कलियुग में माताऐं अपनी बेटियों के घर में पलेंगी बेटी का दाना खायेंगी और बेटे सेवा नहीं करेंगे ।

तब नकुल भी छूट गया।

सहदेव से पूछा तुमने क्या देखा, उसने सोने की शिला का वृतांत बताया,

तब युधिष्ठिर बोले- कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा परन्तु धर्म फिर भी जिंदा रहेगा खत्म नहीं होगा।। आज के कलयुग में यह सारी बातें सच साबित हो रही है ।।

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बीवियों के मायके रहने जाने का चलन साल में कम से कम 4 बार होना चाहिए…

फायदे :— ( नुकसान की जिम्मेदारी अपनी नहीं है भाई )

  1. इससे पति-पत्नी का प्रेम अत्यधिक बढ़ेगा………… ( विरह रस का विलोम प्रेम है )
  2. तलाक के मामले घटेंगे……… ( टाइम ही नहीं मिलेगा ज्यादा वाद-विवाद का )

3.मायके में भी बीवियों को अपना भाव पता चलेगा………. ( महंगाई कम होगी )

4.पति की कद्र बढ़ेगी………… ( बेचारे , अकेले कैसे पड़े होंगे )

5.बार-बार मायके की धमकी कम होगी…………. ( मायके वाले खुद परेशान हो जायेंगे ? )

6.मायके वालो को अपनी बेटियों को नसीहत देने का मौका मिलेगा ! ……

( ससुराल ही “अपना” घर होता है की शिक्षा रोज ही मिलेगी )

  1. पति रात को बिस्तर पर आराम से खर्राटे ले सकता है… ( वैसे भी लेते हैं ??)
  • जितनी देर चाहे रात को फेसबुक और व्हाट्सएप पर टचे रहो…कोई टोका टाकी नहीं !

  • ( वैसे भी बहाने बना कर बना कर परेशान रहते हैं …… हा हा हा )

    1. एक ही गंदी जींस को जितने दिन चाहे रगड़ लीजिये …

    ( धुलाई के भी पैसे बचे और धुलाई करते समय जो पत्नी को मिलते हैं वो भी बचे )

    1. घर वालों की बुराई और ससुराल वालों की बढ़ाई के किस्सों से निजात मिल सकती है… आप लोगो को और फायदे दिखें तो बताएं… पतिहित में जारी 🤪😟😛🤔🤭😱
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    तुलसी कौन थी?

    तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
    वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.
    एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा –
    स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प
    नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।

    सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।
    फिर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।

    भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे
    ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

    उन्होंने पूँछा – आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।

    सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे
    सती हो गयी।

    उनकी राख से एक पौधा निकला तब
    भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से
    इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में
    बिना तुलसी जी के भोग
    स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में
    किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !

    इस कथा को कम से कम दो लोगों को अवश्य सुनाए आप को पुण्य अवश्य मिलेगा। या चार ग्रुप मे प्रेषित करें। 🙏🏼🙏🏼

    लाईक करि पेज : – #Madhesh_News
    Janakpur dham (Madhesh)

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    विनोद कुमार

    (((( साधु और दीया ))))
    .
    मिथिला में एक बड़े ही धर्मात्मा एवं ज्ञानी राजा थे।
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    राजमहल में भारी ठाट-बाट होते हुए भी वे उसमें लिप्त नहीं थे।
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    उनके पास एक बार एक साधु उनसे मिलने आया। राजा ने साधु का हृदय से सम्मान किया और दरबार में आने का कारण पूछा।
    .
    साधु ने कहा, राजन् ! सुना है कि इतने बड़े महल में इतने ठाट-बाट के बीच रहते हुए भी आप इनसे अलग रहते हैं।
    .
    मैंने वर्षों हिमालय में तपस्या की, अनेक तीर्थों की यात्राएं कीं, फिर भी ऐसा न बन सका।
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    आपने राजमहल में रह कर ही यह बात कैसे साध ली ?
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    राजा ने उत्तर दिया, महात्माजी ! आप असमय में आये हैं। यह मेरा काम का समय है।
    .
    आपके सवाल का जवाब मैं थोड़ी देर बाद दूंगा। तब तक आप इस दीये को लेकर मेरे महल को पूरा देख आइये।
    .
    एक बात का ध्यान रखिये, दीया बुझने न पाये, नहीं तो आप रास्ता भूल जायंगे।
    .
    साधु दीया लेकर राजमहल को देखने चल दिया। कई घन्टे बाद वह लौटा तो राजा ने मुस्करा कर पूछा, कहिये, स्वामी जी ! मेरा महल कैसा लगा ?
    .
    साधु बोला, राजन् ! मैं आपके महल के हर भाग में गया। सब कुछ देखा, फिर भी वह अनदेखा रह गया।
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    राजा ने पूछा, क्यों ?
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    साधु ने कहा, राजन् ! मेरा सारा ध्यान इस दीये पर लगा रहा कि कहीं यह बुझ न जाय !
    .
    राजा ने उत्तर दिया, महात्माजी ! इतना बड़ा राज चलाते हुए मेरे साथ भी यही बात है।
    .
    मेरा सारा ध्यान परमात्मा पर लगा रहता है। चलते-फिरते, उठते-बैठते एक ही बात सामने रहती है कि…
    .
    सब कुछ उसी का है और मैं जो कुछ कर रहा हूं, उसी के लिए कर रहा हूं।
    .
    साधु राजा के चरणों में सिर झुका कर चला गया।
    Bhakti Kathayen भक्ति कथायें..

    ((((((( जय जय श्री राधे )))))))
    
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    कुमार राम

    SUNDAY_SPECIAL

    ‘भाग्य‘

    एक सेठ जी थे – 🍀🌺
    जिनके पास काफी दौलत थी. 🍀🌺🍀🌺
    सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी.
    परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया. 🍀🌺🍀🌺
    जिससे सब धन समाप्त हो गया.

    🍀🌺🍀🌺🍀🌺
    बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो, 🌺🍀🍀🌺
    मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?

    🍀🌺🍀🌺
    सेठ जी कहते कि 🍀🌺
    “जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे…


    🍀🌺🍀🌺🍀🌺
    एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी उनका दामाद घर आ गया. 🌺🍀🌺🍀
    सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये…

    🍀🌺 🍀🌺
    यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये…
    🍀🍀🍀
    दामाद लड्डू लेकर घर से चला,

    🍀🌺🍀🌺🍀🌺
    दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया.

    🌺🍀🌺🍀🌺
    उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे…मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया.

    🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺
    सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया. 🌺🌺🍀🌺🍀
    सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली…
    🌺🍀🌺🍀🌺🍀
    सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा…
    देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में… 🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺

    इसलिये कहते हैं कि भाग्य से
    ज्यादा 🍀
    और…
    समय 🍀
    से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै संतोष करो…🍀🌺🍀🌺🍀🌺
    झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है।एकदम बराबर।🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀
    सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।
    🌺🌺🌺🌺🌺
    जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा।
    🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
    बहुत ही खूबसूरत लाईनें.

    .किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
    कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..!
    🌺🌺🌺🌺🌺🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
    डरिये वक़्त की मार से,बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता..!
    🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
    अकल कितनी भी तेज ह़ो,नसीब के बिना नही जीत सकती..!
    बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,कभी बादशाह नही बन सका…!!
    🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
    “”ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो, ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है!
    🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
    इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से!
    🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
    रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है !!! “☝☝☝🌺

    ❤❤जयश्रीसूर्यदेवजी_की ❤❤

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    संकर सिंह

    जय श्रीराम ,जय हनुमान नमन, वन्दन,अभिनंदन

    हनुमानजी के अजर अमर होने की सुन्दर कहानी

    भगवान हनुमान को हजारों साल तक अमर रहने का वरदान क्यों मिला था ! दिल को छू लेनेवाली कहानी !

    हनुमान के जीवित होने का राज
    धर्म की रक्षा के लिए भगवान शिव ने अनेक अवतार लिए हैं.

    त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने ही हनुमान के रूप में अवतार लिया था. हनुमानजी भगवान शिव के सबसे श्रेष्ठ अवतार कहे जाते हैं.

    रामायण हो या फिर महाभारत दोनों में कई जगह पर हनुमान अवतार का जिक्र किया गया है. अब रामायण तो हनुमान के बिना अधूरी ही है किन्तु महाभारत में भी अर्जुन के रथ से लेकर भीम की परीक्षा तक, कई जगह हनुमान के दर्शन हुए हैं.

    तो अब सवाल यह उठता है कि अगर रामायण के सभी पात्र बाद में अपना जीवन चक्र पूरा करके चले जाते हैं तो मात्र हनुमान ही क्यों हजारों लाखों साल बाद भी जीवित बताया जा रहा है. क्या है हनुमान के जीवित होने का राज?

    तो आज आपको हम पहले हनुमान के जीवित होने का राज बता देते हैं और उसके बाद आपको बतायेंगे कि कैसे हनुमान भी माता सीता के पास अपनी जीवन लीला समाप्त करवाने गये थे –

    हनुमान के जीवित होने का राज –

    वाल्मीकि रामायण के अनुसार

    लंका में बहुत ढूढ़ेने के बाद भी जब माता सीता का पता नहीं चला तो हनुमानजी उन्हें मृत समझ बैठे, लेकिन फिर उन्हें भगवान श्रीराम का स्मरण हुआ और उन्होंने पुन: पूरी शक्ति से सीताजी की खोज प्रारंभ की और अशोक वाटिका में सीताजी को खोज निकाला. सीताजी ने हनुमानजी को उस समय अमरता का वरदान दिया था. इसलिए हनुमान हर युग में भगवान श्रीराम के भक्तों की रक्षा करते हैं.

    हनुमान चालीसा की एक चौपाई में भी लिखा है- ‘अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता’.

    अर्थात – ‘आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते हैं.

    जब श्रीराम ने अपनी मृत्यु की घोषणा की –

    आपको शायद इस बात का ज्ञान ना हो कि भगवान श्री राम ने अपने जीवित समय में ही यह बता दिया था कि वह कब धरती के सफर को पूरा कर अब स्वर्गलोक में विराजमान होंगे. यह सुनकर सबसे ज्यादा दुःख जिसको हुआ था वह राम भक्त हनुमान जी ही थे. राम जी से यह खबर सुनते ही हनुमान जी माता सीता के पास जाते हैं और कहते हैं : –

    ‘हे माता मुझे आपने अजर-अमर होने का वरदान तो दिया किन्तु एक बात बतायें कि जब मेरे प्रभु राम ही धरती पर नहीं होंगे तो मैं यहाँ क्या करूँगा. मुझे अपना दिया हुआ अमरता का वरदान वापस ले लो.’

    हनुमान माता-सीता के सामने जिद पर अड़ जाते हैं और तब माता सीता ध्यानकर, राम को यहाँ आने के लिए बोलती हैं. कुछ ही देर में भगवान राम वहां प्रकट होते हैं और हनुमान को गले लगाते हुए बोलते हैं-

    ‘हनुमान मुझे पता था कि तुम सीता के पास आकर यही बोलोगे. देखो हनुमान धरती पर आने वाला हर प्राणी, चाहे वह संत है या देवता कोई भी अमर नहीं है. तुमको तो वरदान है हनुमान, क्योकि जब इस धरती पर और कोई नहीं होगा तो राम नाम लेने वालों का बेड़ा तुमको ही तो पार करना है. एक समय ऐसा आएगा जब धरती पर कोई देव अवतार नहीं होगा, पापी लोगों की संख्या अधिक होगी तब राम के भक्तों का उद्धार मेरा हनुमान ही तो करेगा. इसलिए तुमको अमरता का वरदान दिलवाया गया है हनुमान.’

    तब हनुमान अपने अमरता के वरदान को समझते हैं और राम की आज्ञा समझकर आज भी धरती पर विराजमान हैं. हनुमान को हर राम भक्त का बेड़ा पार करना है और जहाँ भी रामनाम लिया जाता है वहां हनुमान जरूर प्रकट होते हैं.

    ये था हनुमान के जीवित होने का राज –

    इसलिए आज कलयुग में राम नाम जपने वाला ही सुखी बताया गया

    जय श्री राम🌺🌺🙏🙏
    जय श्री हनुमान🌺🌺🙏🙏

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    माधव गोयल

    Her her mahadev her Ji
    Jai guru shiv baba ki jai
    🙏🏻😊गुरु की आज्ञा😊🙏🏻——-

    एक शिष्य था समर्थ गुरु रामदास जी का जो भिक्षा लेने के लिए गांव में गया और घर-घर भिक्षा की मांग करने लगा।
    समर्थ गुरु की जय ! भिक्षा देहिं….
    समर्थ गुरु की जय ! भिक्षा देहिं….
    भीतर से जोर से दरवाजा खुला ओर एक बड़ी-बड़ी दाढ़ी वाला तान्त्रिक बाहर निकला और चिल्लाते हुए बोला— मेरे दरवाजे पर आकर किसी ओर का गुणगान करता है। कौन है ये समर्थ??
    शिष्य ने गर्व से कहा– मेरे गुरु समर्थ रामदास जी… जो सर्व समर्थ है।
    तांत्रिक ने सुना तो क्रोध में आकर बोला कि इतना दुःसाहस की मेरे दरवाजे पर आकर किसी ओर का गुणगान करता है तो देखता हूँ कितना सामर्थ है तेरे गुरु में??
    मेरा श्राप है कि तू कल का उगता सूरज नही देख पाएगा अर्थात् तेरी मृत्यु हो जाएगी।
    शिष्य ने सुना तो देखता ही रह गया और आस-पास के भी गांव वाले कहने लगे कि इस तांत्रिक का दिया हुआ श्राप कभी भी व्यर्थ नही जाता.. बेचार युवा में ही अपनी जान गवा बैठा….
    शिष्य उदास चेहरा लिए वापस आश्रम की ओर चल दिया और सोचते-सोचते जा रहा था कि आज मेरा अंतिम दिन है लगता है मेरा समय खत्म हो गया है।
    आश्रम में जैसे ही पहुँचा। गुरु सामर्थ्य रामदास जी हँसते हुए बोले — ले आया भिक्षा?
    बेचार शिष्य क्या बोले—-?????

    गुरुदेव हँसते हुए बोले कि भिक्षा ले आया।
    शिष्य– जी गुरुदेव! भिक्षा में अपनी मौत ले आया! और सारी घटना सुना दी ओर एक कोने में चुप-चाप बैठ गया।
    गुरुदेव बोले अच्छा चल भोजन कर ले।
    शिष्य– गुरुदेव! आप भोजन करने की बात कर रहे है और यहाँ मेरा प्राण सुख रहा है। भोजन तो दूर एक दाना भी मुँह में न जा पाएगा।
    गुरुदेव बोले— अभी तो पूरी रात बाकी है अभी से चिंता क्यों कर रहा है चल ठीक है जैसी तुम्हारी इक्षा। ओर यह कहकर गुरुदेव भोजन करने चले गए।
    फिर सोने की बारी आई तब गुरुदेव शिष्य को बुलाकर बोले– हमारे चरण दबा दे!
    शिष्य– मायूस होकर बोला! जी गुरुदेव जो कुछ क्षण बचा है जीवन के उस क्षण में आपकी सेवा कर ही प्राण त्याग करूँ यहिं अच्छा होगा। ओर फिर गुरुदेव के चरण दबाने की सेवा शुरू की।
    गुरुदेव बोले– चाहे जो भी चरण छोड़ कर मत जाना कही।
    शिष्य– जी गुरुदेव कही नही जाऊँगा।
    गुरुदेव– अपने शब्दों को तीन बार दोहराए की चरण मत छोड़ना, चाहे जो हो जाए।
    यह कह कर गुरुदेव सो गए।
    शिष्य पूरी भावना से चरण दबाने लगा।
    रात्रि का पहला पहर बीतने को था अब तांत्रिक अपनी श्राप को पूरा करने के लिए एक देवी को भेजा जो धन से भरी थी सोने-चांदी, हीरे-मोती से भरी।
    शिष्य चरण दबा रहा था। तभी दरवाजे पर वो देवी प्रकट हुई और कहने लगी– कि इधर आओ ओर ये सोने-चांदी से भरा ये ले लो। शिष्य भी बोला– जी मुझे लेने में कोई परेशानी नही है लेकिन क्षमा करें! मैं वहाँ पर आकर नही ले सकता हूं। अगर आपको देना ही है तो यहाँ पर आकर दे दीजिए।
    वो देवी सुनी तो कहने लगी कि– नही !! नही!! तुम्हे यहाँ आना होगा। देखो कितना सारा है। शिष्य बोला– नही। अगर देना है तो यही आ जाइए।
    तांत्रिक अपना पहला पासा असफल देख दूसरा पासा फेंका रात्रि का दूसरा पहर बीतने को था तब तांत्रिक ने भेजा….

    शिष्य समर्थ गुरु रामदास जी के चरण दबाने की सेवा कर रहा था तब रात्रि का दूसरा पहर बिता ओर तांत्रिक ने इस बार उस शिष्य की माँ की रूप बनाकर भेजा।
    शिष्य गुरु के चरण दबा रहा था तभी दरवाजे पर आवाज आई — बेटा! तुम कैसे हो??
    शिष्य ने अपनी माँ को देखा तो सोचने लगा अच्छा हुआ जो माँ के दर्शन हो गए मरते वक्त माँ से भी मिल ले।
    उस औरत जो माँ के रूप धारण की थी बोली– आओ बेटा गले से लगा लो! बहुत दिन हो गए तुमसे मिले।
    शिष्य बोला– क्षमा करना मां! लेकिन मैं वहाँ नही आ सकता क्योंकि अभी गुरुचरण की सेवा कर रहा हूँ। मुझे भी आपसे गले लगना है इसलिए आप यही आ जाओ।
    फिर वो औरत देखी की चाल काम नही आ रहा है तो चली गई।
    रात्रि का तीसरा पहर बिता ओर इस बार तांत्रिक ने यमदूत रूप वाला राक्षस भेजा।
    राक्षस पहुँच कर शिष्य से बोला कि चल तुझे लेने आया हूँ तेरी मृत्यु आ गई है। उठ ओर चल…
    शिष्य भी झल्लाकर बोला– काल हो या महाकाल मैं नही आने वाला ! अगर मेरी मृत्यु आई है तो यही आकर ले जाओ मुझे। लेकिन गुरु के चरण नही छोडूंगा! बस।
    फिर राक्षस भी चला गया।
    सुबह हुई चिड़ियां अपनी घोसले से निकलकर चिचिहाने लगी। सूरज भी उदय हो गया।
    गुरुदेव रामदास जी नींद से उठे और बोले कि– सुबह हो गई?
    शिष्य बोला– जी! गुरुदेव सुबह हो गई
    गुरुदेव— अरे! तुम्हारी तो मृत्यु होने वाली थी न तुमने ही तो कहा था कि तांत्रिक का श्राप कभी व्यर्थ नही जाता। लेकिन तुम तो जीवित हो… गुरुदेव हँसते हुए बोले….
    शिष्य भी सोचते हुए बोला– जी गुरुदेव लग तो रहा हूँ कि जीवित ही हूँ। फिर सारी घटना याद की रात्रि वाला फिर समझ में आई कि गुरुदेव ने क्यों कहा था कि — चाहे जो भी हो जाए चरण मत छोड़ना। शिष्य गुरुदेव के चरण पकड़कर खूब रोने लगा बार बार यही कह रहा था— जिसके सर पर आप जैसे गुरु का हाथ हो उसे काल भी कुछ नही कर सकता है।
    गुरु की आज्ञा पर जो शिष्य चलता है उससे तो स्वयं मौत भी आने से एक बार नही अनेक बार सोचती है। तभी तो कहा गया है—-
    करता करें न कर सके, गुरु कर सो जान
    तीन-लोक नौ, खण्ड में गुरु से बड़ा न कोई
    स्वयं भगवान श्रीकृष्ण गुरु की आज्ञा सिर पर ले चले स्वयं प्रभु राम गुरु की आज्ञा पर चले।
    ओर पूर्णसद्गुरु में ही सामर्थ्य है कि वो प्रकृति के नियम को बदल सकते है जो ईश्वर भी नही बदल सकते है क्योंकि ईश्वर भी प्रकृति के नियम से बंधे होते है लेकिन पूर्णसद्गुरु नही। Her her mahadev her Ji

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    ज्ञानवती ठाकुरजी

    राम को समझिए…

    “राम” अत्यन्त विलक्षण शब्द है । साधकों के द्वारा “बीज मन्त्र” के रूप में “राम” का प्रयोग अनादि काल से हो रहा है और न जाने कितने साधक इस मन्त्र के सहारे परमपद च्राप्त कर चुके हैं । आज “राम” कहते ही दशरथ – पुत्र धनुर्धारी राम का चित्र उभरता है परन्तु “राम” शब्द तो पहले से ही था । तभी तो गुरु वशिष्ठ ने दशरथ के प्रथम पुत्र को यह सर्वश्रेष्ठ नाम प्रदान किया । धार्मिक परम्परा में “राम” और “ओऽम्” प्रतीकात्मक है और “राम” सार्थक । राम शब्द में आखिर ऐसा क्या है ? इस प्रश्न का यही उत्तर हो सकता है कि “राम” में क्या नहीं है ?

    थोड़ा सा विचार करिए । “राम” तीन अक्षरों से मिलकर बना है । “र” + “अ” + “म” “राम” के इन तीन घटक अक्षरों को { 6 } छः प्रकार से व्यवस्थित किया जा सकता है ।

    “र” + “अ” + “म” = राम
    “र” + “म” + “अ” = रमा
    “म” + “अ” + “र” = मार { कामदेव }
    “म” + “र” + “अ” = मरा
    “अ” + “म” + “र” = अमर
    “अ” + “र” + “म” = अरम

    उपरोक्त प्रकार देखने से स्पष्ट हो जाता है कि इन तीन अक्षरों में सृष्टि की उत्पत्ति सृजन प्रसार और विलय सब समाया हुआ है . और इतना ही नहीं यह भी प्रकट हो जाता है कि प्रत्यक्षतः विरोधाभासी दिखनेवाले सब एक ही हैं । मायावश ही उनके विरोध का आभास होता है ।

    विस्तार से देखें – जो “राम” पुरुष हैं वही “रमा” अर्थात् स्त्री प्रकृति है । “राम” पुरुष रूप में सारी विश्व – ब्रह्माण्ड सृष्टि का कारण है , आक्रमक बल है। वही “रमा” स्त्री प्रकृति के रूप में संग्राहक है सृजन की निर्माणकर्ता है । राम पुरु बल प्रधान है , “रमा” संवेदना प्रधान । “राम” बुद्धि प्रधान है , विश्लेषणात्मक है। रमा भावना प्रधान है , संश्लेषणात्मक है ।

    बुद्धि मार्ग निर्देश करती है , भावना { “चित्त” } स्थायित्व प्रदान करती है । सृजन के ये दो आधार हैं । लेकिन जब तक “राम” और “रमा” अलग – अलग रहें सृजन असम्भव है । दोनों नदी के दो पाट हैं । इनको संयुक्त करता है “म” + “अ” + “र” = मार या काम । भगवान् बुद्ध द्वारा “मार विजय” की बड़ी प्रशस्ति है , ऋषियों द्वारा काम विजय हमेशा एक आदर्श रहा , “नारद मोह” का पूरा आख्यान अत्यन्त सारगर्भित है किन्तु “मार” है , तभी उसके परे जाकर परमपद या “एकत्व” प्राप्त किया जा सकता है अन्यथा राम और रमा , मार द्वारा संयुक्त होकर सृष्टि को फैलाते ही जाएँगे ।

    पुरुष और प्रकृति अलग – अलग नहीं हैं और न उनके परस्पर सम्बन्ध की ही कोई स्वतन्त्र सत्ता है । जो “राम” है वही “रमा” है और वही “मार” है ।

    नारायण ! अब दूसरा युग्म लें । जो “अमर” है वही “मरा” है । अर्थात् तात्विक दृष्टि से देखें तो अमरत्व और मरणधर्मिता , शाश्वता और क्षणभंगुरता अलग – अलग नहीं हैं । जो क्षणभंगुर दिखाई देता है , जो सतत परिवर्तनशील दिखाई देता है , वही अमर है , शाश्वत है । मृत्यु और परिवर्तन तो आभास मात्र है , बुद्धि के द्वारा उत्पन्न भ्रम है । मृत्यु होती ही नहीं ।

    मृत्यु से बड़ा कोई झूठ नहीं । फिर भी अज्ञान की अवस्था में मृत्यु से बड़ा कोई “सत्य” नहीं । अज्ञान की दशा में जो मृत्यु है वही ज्ञान की स्थिति में अमरत्व है । जब तक मृत्यु वास्तविकता लग रही है तब तो “मरा” ही है वह जीवित ही कहाँ ? जीवन के प्रवाह के ये दो पक्षों के मूल सत्य , मृत्यु और अमरत्व , “अमर” और “मरा” “राम” में ही निहित हैं ।

    और साथ ही यह यथार्थ भी कि दोनों एक साथ सदैव उपस्थित हैं । प्रत्येक वस्तु का चरम यथार्थ शाश्वत , नित्य , अपरिवर्तनशील , अमर , अनादि और अनन्त है जब कि उसका आभासी स्वरूप या विवर्त क्षणभंगुर , अनित्य , सतत परिवर्तनशील , मरणधर्मा और समित है ।

    नारायण ! अब छठा शब्द बनता है “अ” + “र” + “म” = अरम अर्थात् जिसमें रमा न जा सके । वड़ी विचित्र बात लगती है कि जिसे विद्वान् , गुणी जन कहते है कि सब में “रमा” है व “अरम” कैसे हो गया ? विद्वान् और “सिद्ध” में यही भेद है । विद्वान् “उसे” देखता है और समझने की चेष्टा करता है । सिद्ध उसे अनुभव करता है और , उसके साथ एकाकार हो जाता है । बाबा तुलसीदासजी ने गाया है -“जानत तुमहिं , तुमहिं होय जाई” ।

    अह ह ह ! बूँद सागर में गिरी तो स्वयं सागर हो गई । जब बून्द बची ही नहीं तो रमेगा कौन ? वह परासत्ता , वह चरम वास्तविकता , वह परब्रह्म तो “अरम” ही हो सकता है ।

    इस प्रकार हम देखते है कि जो कुछ भी जानने योग्य है , जो कुछ भी मनन योग्य है , वह सब “राम” शब्द में अन्तर्निहित है । योगियों और सिद्ध गुरुजनों ने संकेत दिया है कि “ज्ञान” बाहर से नहीं लिया या दिया जा सकता । यह तो अन्दर से प्रस्फुटित होता है । आत्मा “सर्वज्ञ” है साधना के प्रभाव से किसी भी शब्द में निहित सारे अर्थ स्वयं प्रकट हो जाते हैं ।

    रामचरितमानसकार कहते है – “सोइ जाने जेहि देहु जनाई” ।

    इस विराट् अर्थवत्ता के कारण ही “राम : नाम ” महामन्त्र है और उसके अनवरत जप से कालान्तर में उसमें निहित सार , अर्थ और सृष्टि के सारे रहस्य स्वतः प्रकट होकर साधक को जीवन्मुक्त का परमपद प्रदान करते हैं।

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    कौशल्यदेवी

    🐿एक गिलहरी रोज अपने काम पर समय से आती थी और अपना काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से करती थी❗

    गिलहरी जरुरत से ज्यादा काम कर के भी खूब खुश थी❗

    क्यों कि उसके मालिक, जंगल के राजा शेर ने उसे दस बोरी अखरोट देने का वादा कर रखा था❗

    गिलहरी काम करते करते थक जाती थी तो सोचती थी , कि थोडी आराम कर लूँ , वैसे ही उसे याद आता कि शेर उसे दस बोरी अखरोट देगा❗
    गिलहरी फिर काम पर लग जाती❗
    गिलहरी जब दूसरे गिलहरीयों को खेलते देखती थी, तो उसकी
    भी इच्छा होती थी कि मैं भी खेलूं , पर उसे अखरोट याद आ जाता, और वो फिर काम पर लग जाती❗

    ऐसा नहीं कि शेर उसे अखरोट नहीं देना चाहता था, शेर बहुत ईमानदार था❗

    ऐसे ही समय बीतता रहा ….
    एक दिन ऐसा भी आया जब जंगल के राजा शेर ने गिलहरी को दस बोरी अखरोट दे कर आज़ाद कर दिया❗

    गिलहरी अखरोट के पास बैठ कर सोचने लगी कि अब अखरोट मेरे किस काम के❓

    पूरी जिन्दगी काम करते – करते दाँत तो घिस गये, इन्हें खाऊँगी कैसे❗

    यह कहानी आज जीवन की हकीकत बन चुकी है❗

    इन्सान अपनी इच्छाओं का त्याग करता है,
    पूरी ज़िन्दगी नौकरी, व्योपार, और धन कमाने में बिता देता है❗

    60 वर्ष की उम्र में जब वो सेवा निवृत्त होता है, तो उसे उसका जो फन्ड मिलता है, या बैंक बैलेंस होता है, तो उसे भोगने की क्षमता खो चुका होता है❗

    तब तक जनरेशन बदल चुकी होती है,
    परिवार को चलाने वाले बच्चे आ जाते है❗

    क्या इन बच्चों को इस बात का अन्दाजा लग पायेगा की इस फन्ड, इस बैंक बैलेंस के लिये : –

    कितनी इच्छायें मरी होंगी❓
    कितनी तकलीफें मिली होंगी❓
    कितनें सपनें अधूरे रहे होंगे❓

    क्या फायदा ऐसे फन्ड का, बैंक बैलेंस का, जिसे पाने के लिये पूरी ज़िन्दगी लग जाये और मानव उसका
    इस्तेमाल भी न कर सके❗

    इस धरती पर कोई ऐसा अमीर अभी तक पैदा नहीं हुआ जो बीते हुए समय को खरीद सके❗

    इस लिए हर पल को खुश होकर जियो व्यस्त रहो,
    पर साथ में मस्त रहो सदा स्वस्थ रहो❗

    मौज लो, रोज लो❗
    नहीं मिले तो खोज लो‼

    🌹🙏🌹राधे राधे जी, 🌹🙏🌹