Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

महाकाल

एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की. हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,” ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठना शुरू हो गए.फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर उससे पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” और उसने नोट को अपनी मुट्ठी में चिमोड़ना शुरू कर दिया. और फिर उसने पूछा,” कौन है जो अब भी यह नोट लेना चाहता है?” अभी भी लोगों के हाथ उठने शुरू हो गए.“अच्छा” उसने कहा,” अगर मैं ये कर दूं ? ” और उसने नोट को नीचे गिराकर पैरों से कुचलना शुरू कर दिया. उसने नोट उठाई , वह बिल्कुल चिमुड़ी और गन्दी हो गयी थी.” क्या अभी भी कोई है जो इसे लेना चाहता है?”. और एक बार फिर हाथ उठने शुरू हो गए.” दोस्तों , आप लोगों ने आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण पाठ सीखा है. मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया पर फिर भी आप इसे लेना चाहते थे क्योंकि ये सब होने के बावजूद नोट की कीमत घटी नहीं,उसका मूल्य अभी भी 500 था.जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं. हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है. लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य में जो हो जाए , आपका मूल्य कम नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.कभी भी बीते हुए कल की निराशा को आने वाले कल के सपनो को बर्बाद मत करने दीजिये. याद रखिये आपके पास जो सबसे कीमती चीज है, वो है आपका जीवन.”
🚩🚩🚩🚩🚩जय श्री महाकाल

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महाकाल

शहर के नज़दीक बने एक farm house में दो घोड़े रहते थे. दूर से देखने पर वो दोनों बिलकुल एक जैसे दीखते थे , पर पास जाने पर पता चलता था कि उनमे से एक घोड़ा अँधा है. पर अंधे होने के बावजूद farm के मालिक ने उसे वहां से निकाला नहीं था बल्कि उसे और भी अधिक सुरक्षा और आराम के साथ रखा था. अगर कोई थोडा और ध्यान देता तो उसे ये भी पता चलता कि मालिक ने दूसरे घोड़े के गले में एक घंटी बाँध रखी थी, जिसकी आवाज़ सुनकर अँधा घोड़ा उसके पास पहुंच जाता और उसके पीछे-पीछे बाड़े में घूमता. घंटी वाला घोड़ा भी अपने अंधे मित्र की परेशानी समझता, वह बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता और इस बात को सुनिश्चित करता कि कहीं वो रास्ते से भटक ना जाए. वह ये भी सुनिश्चित करता कि उसका मित्र सुरक्षित; वापस अपने स्थान पर पहुच जाए, और उसके बाद ही वो अपनी जगह की ओर बढ़ता.

दोस्तों, बाड़े के मालिक की तरह ही भगवान हमें बस इसलिए नहीं छोड़ देते कि हमारे अन्दर कोई दोष या कमियां हैं. वो हमारा ख्याल रखते हैं और हमें जब भी ज़रुरत होती है तो किसी ना किसी को हमारी मदद के लिए भेज देते हैं. कभी-कभी हम वो अंधे घोड़े होते हैं, जो भगवान द्वारा बांधी गयी घंटी की मदद से अपनी परेशानियों से पार पाते हैं तो कभी हम अपने गले में बंधी घंटी द्वारा दूसरों को रास्ता दिखाने के काम आते हैं.
🚩🚩🚩🚩🚩

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अजय वर्मा

तेलगु फिल्मों के महानायक हुआ करते थे स्व नन्दमूरी तारक रामाराव जिन्हें उनके प्रशंसक एन टी आर भी कहा करते थे। साठ के दशक में उनकी कृष्ण अर्जुन की कहानी पर फिल्म आई थी। आलम यह था कि टिकट पाने के लिए लोग घण्टों तक लाईन में लगा करते थे। वे दक्षिण भारत में भगवान की तरह पूजे जाते हैं। बहुचर्चित फिल्म बाहुबली के निर्देशक राजामौली इसी फिल्म का रिमेक बना रहे हैं। फिल्म के रिमेक में उनके पोते जूनियर एनटीआर भी काम कर रहे हैं। जूनियर एनटीआर को टीवी पर फिल्म देखने वाले कृष और जनता गैराज के हीरो के रूप में पहचानते हैं। जूनियर एनटीआर की शक्ल अपने दादा से मिलती है। प्रशंसको की मांग पर वह मात्र 16 साल की उम्र में ही फिल्में करने लगे। उनकी लगातार सात फिल्में सुपरहिट हुई थी। एनटीआर जूनियर लगभग हर फिल्म में अपने जंघे को थाप देते हैं। यह उनके दादा के स्टाइल की कापी है। फिल्म कृष के आखरी सीन में एनटीआर सीनियर भी दिखते हैं, जो कि उनकी पुरानी फिल्म की क्लिपिंग है।
अस्सी के दशक में किसी बात को लेकर वे देश की प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी से मिलने के लिए दिल्ली पहुंचे थे। तीन दिनों तक समय मिलने का इंतजार करते रहे। किन्तु श्रीमती गांधी ने उन्हें मिलने का समय ही नहीं दिया। इससे वे खूब खफा हुए। इसे उन्होंने तेलगु विडा मतलब तेलगु जनता का अपमान निरूपित किया। वापस आंध्र लौटे और तेलगु अस्मिता के नाम पर उन्होंने तेलगु देशम पार्टी बनाई। कुछ समय बाद हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी प्रचंड बहुमत से जीती और वे राज्य के मुख्यमंत्री बने। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व वीपी सिंह जब जनमोर्चा पार्टी बनाकर कांग्रेस की खिलाफत कर रहे थे, तब स्व एनटीआर ने कांग्रेस विरोधी सभी पार्टियों को एकजुट कर राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया। राष्ट्रीय मोर्चा के वे संयोजक बनाए गए थे।
उनकी उम्र ढल रही थी और वे बीमार भी रहने लगे थे। इसी दौरान उनके दामाद चन्द्र बाबू नायडू ने उनकी पार्टी का हाईजैक कर लिया था। चंद्रबाबू नायडू आंध्र के मुख्यमंत्री भी बने। अटल सरकार के समय उन्होंने बाहर से समर्थन किया। तब उन्ही की पार्टी के स्व जीएमसी बालयोगी लोकसभा के अध्यक्ष बनाए गए थे। नरेंद्र मोदी की जब साल 2014 में सरकार आई तब भी शुरुआती दौर में सरकार का वे बाहर से समर्थन कर रहे थे। बाद में सरकार का विरोध करने लगे। अभी हुए लोकसभा चुनाव के समय भाजपा विरोधी हर पार्टी प्रमुख से मिलकर उन्होंने ना जाने क्या चर्चा की। आंध्र में लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव भी हुए। जिसमें उनकी पार्टी बुरी तरह से हार गई। इस तरह से वे ना तो घर के रहे ना तो घाट के। तेलगु अस्मिता के नाम पर उनके ससुर एनटीआर की पार्टी तेलगु देशम की साख भी वे ले डूबे।

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विजय अल्बानी

🙏 फिजूल की चिंताएँ..!! 🙏
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🙏एक फकीर को उसके सेवक जो भी सेवा में देते थे, सब कुछ शाम को बाँट देते , और रात को फिर से मालिक के भिखारी हो कर सो जाते थे।🙏

🙏यह उनकी ज़िन्दगी का शानदार और सुनहरा नियम था, एक रोज़ वो फकीर सख़्त बीमार हो गये, लेकिन फिर भी ख़ुदा की इबादत, रोज़ का भजन सिमरन नहीं छोड़ा।🙏

🙏 उनकी ये हालत देखकर उनकी बीवी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी, फकीर ये देखकर ज़ोर से हँसने लगा , और ख़ुदा का शुक्र करने लगा ,कि ऐ मेरे शहनशाह, तुम मुझे, मेरी उम्मीद से बहुत ज़्यादा प्यार करते हो।🙏

🙏उनकी हालत देखकर हकीम ने कहा, कि अब तो मुझे इनके बचने की कोई सूरत नज़र नहीं आती है, सेवा करो और खुदा को याद करो।🙏

🙏उनकी बीवी ने सोचा कि अगर ऐसे मुश्किल वक्त में दवादारू की जरूरत पड़ी या रात को वैद्य जी को बुलाना पड़ा तो मैं क्या करूँगी , उसने ये सोच कर सेवा में आये हुए रूपयों में से पाँच दीनार बचा कर रख लिए !🙏

🙏आधी रात को फकीर तेज़ दर्द से तड़पने और छटपटाने लगे उन्होंने दर्द से कराहते हुए अपनी बीवी को बुलाया और पूछा की देखो मुझे लगता है कि मेरे जीवन भर का जो नियम था, मुझे दान का एक पैसा भी अपने पास नहीं रखना, मेरी वो प्रतिज्ञा शायद आज टूट जायेगी, वो भी मेरे आखिरी वक्त में, ऐ खुदा मुझे माफ कर देना !🙏

🙏मैंने आने वाले कल के लिए रात को कभी भी कोई इन्तज़ाम नहीं किया, बल्कि अपने ख़ुदा पे पक्का भरोसा रखा और मेरे मौला ने हमेशा मेरी लाज रखी..🙏

🙏लेकिन आज मुझे बहुत डर लग रहा है कि जैसे आज हमारे घर में दान में आये हुए, सेवा से बचे हुए कुछ रुपये रखे हैं भलीमानस अगर तूने रखे हों, तो जल्दी से तूँ उन्हें ज़रूरतमन्दों को बाँट दो।🙏

🙏नहीं तो मुझे ख़ुदा के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा, जब मेरा मालिक मुझसे ये पूछेगा कि, आखिरी दिन, तूने अपना भरोसा क्यूँ तोड़ दिया और कल के लिये कुछ दीनार या रूपये क्यूँ बचा लिए?🙏

🙏फकीर की बीवी घबरा कर रोने लगी और हैरान हो गई कि इन्हें कैसे पता चला!?🙏

🙏उसने जल्दी से वो पाँच दीनार जो बचाए थे, निकाल कर फकीर के आगे रख दिए और रोते हुए कहा कि मुझसे भूल हो गई!, मुझे माफ कर दीजिए, फकीर भी रोने लगा और रोते हुए बोला, खुदा के घर मे सच्चे दिल से पछतावा करते हुए माफी माँगने वालों को माफ कर दिया जाता है, जाओ मेरे खुदा ने तुझे माफ किया।🙏

🙏बीवी दोनों हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली, जी मैने तो ये सोचकर पाँच दीनार रखे थे कि रात को अगर चार पैसों की ज़रूरत पड़ी, तो मैं ग़रीब कहाँ से लाऊँगी जी ?🙏

🙏फकीर ने दर्द में भी हँसते हुए उसे समझाया।, अरी पगली जिस खुदा ने हमें हर बार दिया है, हर रोज़ दिया है, आज तक भरपूर दिया है।🙏

🙏क्या कभी हम भूखे रहे ,क्या आज तक हमारी हर जरूरत पूरी नहीं हुई ? ज़रा सोचो, हमारा एक भी दिन उसकी रहमत के बिना या उसके प्यार के बिना गुज़रा है ?🙏

🙏जो सारी दुनिया को उनकी ज़रूरत की हर शै अगर सुबह देता है, तो साँझ को भी देता है, तो क्या वो खुदा आधी रात को नहीं दे सकेगा?🙏

🙏तू ज़रा बाहर दरवाजे पर तो जा के देख, शायद कोई ज़रूरतमन्द खड़ा हो। बीवी बोली, जी आधी रात को भला कौन मिलेगा ?🙏

🙏फकीर बोला, तुम फौरन बाहर जा कर देखो, मेरा खुदा बहुत दयालु है, वही कोई ज़रिया बनायेगा, बीवी आधे अधूरे मन से वो पाँच दीनार ले कर दरवाज़े पर गई।🙏

🙏जैसे ही उसने किवाड़ खोले, तो देखा एक याचक खड़ा था। वो बोला, बहन मुझे पाँच दीनार की सख्त जरूरत है, फकीर की बीवी ने बहुत हैरानी से अपनी आँखों को मला, कि कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रही हूँ।🙏

🙏जब उसने वही पाँच चाँदी के रूपये उसे दिये तो उसने कहा, कि खुदा बहुत दयालु है, वो तुम्हारे पूरे परिवार पर अपनी दया मेहर बरसायेगा बहन। हैरान और परेशान, जब वो अपने पति को बतलाने गई, कि उसने पाँच दीनार एक ज़रूरतमन्द को दे दिये, और वो दुआऐं देता हुआ गया है।🙏

🙏फकीर ने कहा. देखो भाग्यवान देने वाला भी वही है, और लेने वाला बन कर भी वो ख़ुद ही आता है, हम तो फिज़ूल की चिन्तायें खड़ी कर लेते हैं, फिर चिंता में बुरी तरह से बँध जाते हैं।🙏

🙏फिर मोह ममता के झूठे बँधनों के टूटने से बहुत दुखी होते हैं रोते हैं,चिल्लाते हैं।🙏

🙏 अब मैं खुदा के सामने सिर उठा कर शान से कहूँगा कि मेरे प्रीतम जी, मुझे केवल एक तेरा ही सहारा था, मैंनें आखिरी साँस तक अपना प्रण निभाया है, मैने अपने सतगुरू से ये वायदा किया था, कि सारी उम्र, किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊँगा दाता।🙏

🙏 जिसका परमात्मा में और अपने मुर्शिद में पक्का भरोसा है उसका फिर कोई बंधन नहीं कोई दुख नहीं रहता।🙏

🙏लेकिन दुनिया वालों को परमात्मा में या अपने गुरू पर पूरा और पक्का भरोसा नहीं है , हम ज़रा विचार करें कि हमारा भरोसा किन चीजों में है। बीमा कंपनी में है, बैंकों में जमा, अपने रूपयों पर है, अपनी पत्नी में है, पति में है, परिवार में है, माता पिता में है, बेटे बेटी पर है हमारे तो कितने भरोसे हैं।🙏

🙏फकीर ने अपने मुँह पर चादर डाल ली और कहने लगे कि ऐ मेरे मौला, मुझे अपने कदमों में जगह बख्शो और इतना कह कर शाँति से सो गये। उस फकीर ने खुदा के नाम का सिमरन करते हुए चोला छोड़ दिया और मुकामे हक चला गया।🙏

🙏जैसे केवल पाँच दीनार उसके दुखों का कारण थे। उनके कारण ही वो बेचैन थे, मन पर बोझ था, बंधन था! बाँट दिये बँधन मुक्त हो गये।🙏

🙏हम जुबान से तो सारे ही कहते हैं कि हम सारे दुखों से आज़ाद होना चाहते हैं लेकिन आज़ाद होने के लिए हम जो भी कर्म करते हैं वही हमें बांध लेते हैं।🙏

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🙏 रब राखा……….🙏
🙏 सतनाम वाहेगुरु जी………..🙏

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प्रकेशचंद्र पांडे

((((काँच की दीवार)))))

एक बार एक विज्ञान की प्रयोगशाला में एक प्रयोग किया गया। एक बड़े शीशे के टैंक में बहुत सारी छोटी छोटी मछलियाँ छोड़ी गयीं और फिर ढक्कन बंद कर दिया, अब थोड़ी देर बाद एक बड़ी शार्क मछली को भी टैंक में छोड़ा गया लेकिन शार्क और छोटी मछलियों के बीच में एक काँच की दीवार बनायीं गयी ताकि वो एक दूसरे से दूर रहें।
शार्क मछली की एक खासियत होती है कि वो छोटी छोटी मछलियों को खा जाती है। अब जैसे ही शार्क को छोटी मछलियाँ दिखाई दीं वो झपट कर उनकी ओर बढ़ी, जैसे ही शार्क मछलियों की ओर गयी वो कांच की दीवार से टकरा गयी और मछलियों तक नहीं पहुँच पायी, शार्क को कुछ समझ नहीं आया वो फिर से छोटी मछलियों की ओर दौड़ी लेकिन इस बार भी वो विफल रही, शार्क को बहुत गुस्सा आया अबकी बार वो पूरी ताकत से छोटी मछलियों पे झपटी लेकिन फिर से कांच की दीवार बाधा बन गयी।
कुछ घंटों तक यही क्रम चलता रहा, शार्क बार बार मछलियों पर हमला करती और हर बार विफल हो जाती। कुछ देर बाद शार्क को लगा कि वह मछलियों को नहीं खा सकती, यही सोचकर शार्क ने हमला करना बंद कर दिया वो थक कर आराम से पानी में तैरने लगी।
अब कुछ देर बाद वैज्ञानिक ने उस कांच की दीवार को शार्क और मछलियों के बीच से हटा दिया उन्हें उम्मीद थी कि शार्क अब सारी मछलियों को खा जाएगी, लेकिन ये क्या, शार्क ने हमला नहीं किया ऐसा लगा जैसे उसने मान लिया हो कि अब वो छोटी मछलियों को नहीं खा पायेगी, काफी देर गुजरने के बाद भी शार्क खुले टैंक में भी मछलियों पर हमला नहीं कर रही थी।
इसे कहते हैं सोच। कहीं आप भी शार्क तो नहीं? हाँ! हममें से काफी लोग उस शार्क की तरह ही हैं जो किसी कांच जैसी दीवार की वजह से ये मान बैठे हैं कि हम कुछ नहीं कर सकते, और हममें से काफी लोग तो ऐसे जरूर होंगे जो शार्क की तरह कोशिश करना भी छोड़ चुके होंगे, लेकिन सोचिये जब टैंक से दिवार हटा दी गयी फिर भी शार्क ने हमला नहीं किया क्यूंकि वो हार मान चुकी थी, कहीं आपने भी तो हार नहीं मान ली? कोई परेशानी या अवरोध हमेशा नहीं रहता , क्या पता आपकी काँच की दीवार भी हट चुकी हो लेकिन आप अपनी सोच की वजह से प्रयास ही नहीं कर रहे।
आप भी कहीं ना कहीं ये मान बैठे हैं कि मैं नहीं कर सकता। पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि एक दिन आपकी दीवार भी जरूर हटेगी या हट चुकी होगी। जरुरत है तो सिर्फ आपके पुनः प्रयास की। तो सोचिये मत, प्रयास करते रहिये आप जरूर कामयाब होंगे…..

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S.Kumar

एक आदमी ❄बर्फ बनाने वाली कम्पनी में काम करता था___

एक दिन कारखाना बन्द होने से पहले अकेला फ्रिज करने वाले कमरे का चक्कर लगाने गया तो गलती से दरवाजा बंद हो गया
और वह अंदर बर्फ वाले हिस्से में फंस गया..

छुट्टी का वक़्त था और सब काम करने वाले लोग घर जा रहे थे
किसी ने भी अधिक ध्यान नहीं दिया की कोई अंदर फंस गया है।

वह समझ गया की दो-तीन घंटे बाद उसका शरीर बर्फ बन जाएगा अब जब मौत सामने नजर आने लगी तो
भगवान को सच्चे मन से याद करने लगा।

अपने कर्मों की क्षमा मांगने लगा और भगवान से कहा कि प्रह्लाद को तुमने अग्नि से बचाया, अहिल्या को पत्थर से नारि बनाया, शबरी के जुठे बेर खाकर उसे स्वर्ग में स्थान दिया।
प्रभु अगर मैंने जिंदगी में कोई एक काम भी मानवता व धर्म का किया है तो तूम मुझे यहाँ से बाहर निकालो।
मेरे बीवी बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। उनका पेट पालने वाला इस दुनिया में सिर्फ मैं ही हूँ।

मैं पुरे जीवन आपके इस उपकार को याद रखूंगा और इतना कहते कहते उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे।

एक घंटे ही गुजरे थे कि अचानक फ़्रीजर रूम में खट खट की आवाज हुई।

दरवाजा खुला चौकीदार भागता हुआ आया।

उस आदमी को उठाकर बाहर निकाला और 🔥 गर्म हीटर के पास ले गया।

उसकी हालत कुछ देर बाद ठीक हुई तो उसने चौकीदार से पूछा, आप अंदर कैसे आए ?

चौकीदार बोला कि साहब मैं 20 साल से यहां काम कर रहा हूं। इस कारखाने में काम करते हुए हर रोज सैकड़ों मजदूर और ऑफिसर कारखाने में आते जाते हैं।

मैं देखता हूं लेकिन आप उन कुछ लोगों में से हो, जो जब भी कारखाने में आते हो तो मुझसे हंस कर
राम राम करते हो
और हालचाल पूछते हो और निकलते हुए आपका
राम राम काका
कहना मेरी सारे दिन की थकावट दूर कर देता है।

जबकि अक्सर लोग मेरे पास से यूं गुजर जाते हैं कि जैसे मैं हूं ही नहीं।

आज हर दिनों की तरह मैंने आपका आते हुए अभिवादन तो सुना लेकिन
राम राम काका
सुनने के लिए इंतज़ार
करता रहा।

जब ज्यादा देर हो गई तो मैं आपको तलाश करने चल पड़ा कि कहीं आप किसी मुश्किल में ना फंसे हो।

वह आदमी हैरान हो गया कि किसी को हंसकर
राम राम कहने जैसे छोटे काम की वजह से आज उसकी जान बच गई।

राम कहने से तर जाओगे
मीठे बोल बोलो,
संवर जाओगे,

सब की अपनी जिंदगी है
यहाँ कोई किसी का नही खाता है।

जो दोगे औरों को,
वही वापस लौट कर आता है। 👏👏👏

🌹🌹🌹 RAM RAM 🌹🌹🌹

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हेमंत बंसल

दिल छू लेने वाली बहुत ही अच्छी कहानी 💐💐

लड़का – आप बेहद खूबसूरत हो
लड़की – जी..शुक्रिया ।
लड़का – आपको अपनी तारीफ सुननी अच्छी लगती है क्या?
लड़की – अरे किसको अच्छी नहीं लगती अपनी तारीफ सुनना।
लड़का – तो मैं आपसे एक बात कहूँ दिल से
लड़की – हां कहीऐ?
लड़का – I LOVE YOU
लड़की – LOVE YOU 2

लड़का हैरान होके कहता है
आपने इतनी आसानी से मुझे I L U कह दिया ? मुझे और मेरे कानो को अब भी भरोसा नहीं होता? और एक बार कहेंगी? ताकी मुझे भरोसा हो जाये?
लड़की – LOVE YOU 2
लड़की इतना कहके निकल जाती है वंहा से। लड़की सचमुच की बेहद खूबसूरत थी..जो एक बार देखे वह बार बार देखे बिना पलके झूकाये।

लड़का सचमुच बेहद खुश हुआ और बाईक लेके खुशी के साथ निकल गया, इस तरह कयी दिन बित गये उन दोनों की मुलाकात नहीं हुई। एक दिन लड़का अपने परिवार के साथ आनाथ आश्रम आता है और लड़की को वंहा बच्चों को पढाते देखकर हैरान रह जाता है। और अपने मम्मी पापा को दिखाके कहता है कि येही है वह लड़की जो मुझे पसंद करती है और मैं भी इसे पसंद करता हूँ । लड़के की मा बेटे से कहती है ..मेरे बेटे की पसंद पर मुझे गर्व है।
फिर लड़की को देखते ही लड़का Hi बोलता है..लड़की मुस्कुराके जवाब देती है।

फिर लड़के की मा और पापा कहते है लड़की से की…बेटी आपके इस आश्रम के इंचार्ज को बुला दिजीए। हम कुछ गरम कपड़े लाये है बच्चों के लिए क्योंकि हमारे बेटे के दादाजी के देहांत हुए तिन साल बित गये और हम हर साल पूरा परिवार मंदिर मे जाके पूजा करने के बाद गरीब दुखी मे कपड़े पैसे बाटते है। इस बार हम यंहा आ गये।

लड़की – जी कहीये मैं ही अब इस आश्रम की इंचार्ज हूँ ।
लड़के की माँ – तुम?
लड़की – हां माँ जी। मैं ही हूँ ।
लड़के की मा- ओह… वैसे मेरा बेटा तुम्हारी बहुत तारीफ करता है।

लड़की – क्यों? कैसे जानते है मुझे आपके बेटा?
लड़का – अरे याद नहीं? हम बाजार मे मिले थे न? मैंने आपको I love you बोला तो आपने I love you 2 बोला था?
लड़की – बोला होगा मगर इसमें जान पहचान कि बात कंहा से आ गयी?

लड़के की माँ – I love you जीतनी बड़ी बात बोलके कहती हो इसमें बड़ी बात क्या है? लडको को बेवकूफ बनाने का धंधा करती हो क्या?

लड़की – अरे मा जी। I love you का जवाब I love you मे देना क्या खराबी है। आखिर आपके बेटे ने प्यार से कहा तो मैंने प्यार से जवाब दिया। इसका ये कतई मतलब नहीं है कि हम आपके बेटे को जानते है या प्यार करते हैं। हमें प्रेम का जवाब प्रेम से देना चाहिए। आपके बेटे ने मुझे बुरा नहीं कहा और न बुरा व्यवहार किया हमसे तो फिर मैं आपके बेटे के साथ बुरा व्यवहार कैसे कर सकती हूँ।

तभी एक बच्चे की रोने की आवाज आती है। लगभग दो साल के बच्चे की, लड़की एक मिनट कहके दौडके जाके बच्चे को बड़े प्यार से गोदी मे लेके बच्चे के मुँह मे दूध की शिशी फसाकर आती है। फिर आगे कहती है..ये मेरा बेटा प्रिंस है मेरी जान मेरी जिंदगी।

लोग अक्सर शादी से पहले I love you. कहते है जैसे boyfriend girlfriend बन जाने के बाद। मगर सौ मे शायद एक I love you की बात शादी तक पहुँचती है। फिर
I love you का महत्व कहा रह जाता हैं ।
हाँ अगर शादी के बाद पति पत्नी एक दूसरे को I love you बोले तो बेहद अनमोल और खुबसुरत हो जाता है ये शब्द। इसमें गहरे अटूट रिश्ते की खूश्बू आती है। आप अपने पति को बोल के देखीये और आपके पति आपको बोल के देखे I love you. .फिर महसूस होगी इस शब्द की गहराई को।

दोनों पति पत्नी एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते है क्योंकि लड़की ने सच कहा था। मगर मै बड़ी बदकिस्मत थी कि मैंने अपने हमसफर को I love you बोला भी तो बहुत देर हो चुकी थी। हाँ मैंने कल भी उसे miss you कहा था और आज भी कहता हूँ और हमेशा करता रहूँगा, बोलते बोलते लड़की की पलकों मे आशू छलक पड़े।

लड़के की माँ ने लड़की के कंधे पर प्यार से हाथ रखकर कहा…बेटी क्या तुम हम सभी को अपनी कहानी सुना सकती हो?

लड़की बेहद गम्भीर होके अपना सर हाँ मे हिलाती है।
लड़की खो जाती है अपने उन बिते दिनों में..
अंशू चौहान कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की, हर कोई एक झलक पाने को बेताब..बला की खूबसूरत मगर बड़ी जिद्दी और घमंडी..अमीर बाप की बेटी।

इंटर कॉलेज भलीबल टुर्नामेन्ट नजदीक आ रहा था और अंशू के कॉलेज के लड़के कॉलेज के बाहर ही हल्की फुल्की प्रैक्टीस कर रहे थे और उसी वक्त अंशू अपनी कुछ सहेलियों के साथ आईसक्रिम खाती हुई गुजर रही थी की किसी नौसिखीये ने boll ऐसी मारी की अंशू के आईसक्रिम पकड़े हाथों पे लगी और पूरा आईसक्रिम उसके कपडो से लेके मुँह तक छिटक गई।

प्रैक्टीस वाले तो डरके मारे वहाँ से 9,2,11 हो गये मगर एक लड़का अपनी हंसी रोक न सका और खिलखिलाकर हंसने लगा, अंशू को इतना बुरा लगा कि लड़के के पास आके एक चाटा जड़ दिया लड़के के गालो पे,
अंशू – ले हंस और हंस..तुम जैसे कमीने ही दूसरों के दर्द पर हंसते है
लड़के को भी बेहद गुस्सा आया अचानक लड़की के व्यवहार से…अपनी गालो को सहलाते हुए बोला..तो क्या दहाडे मार मार के रोऊ?

अंशू – छी तुमपे तो दया नाम की कोई चिज ही नहीं।
लड़का – नहीं है…तो?
लड़की – तुम्हारे घरवालो ने ऐसे संस्कार दिए है क्या तुम्हें जो दुसरो के तकलीफ पे हंसो? शर्म नाम की चिज है भी की नहीं तुम मे हां?
लड़का – नहीं है। और मेरे संस्कार ऐसे ही है।
अंशू गुस्से से पैर पटकती हुयी धमकी देके जाती है कि तुम्हें तो देख लूंगी।

लड़का – बोल तो सुबह शाम आ जाउ क्या तेरे घर?
कॉलेज मे अंशू और वह लड़का(Rama) की दुशमनी बहुत गहरी हो चुकी थी। एक दूसरे की शक्ल देखना भी पसंद नहीं था उन्हें। एक दिन की बात है अंशू कॉलेज के वासरूम मे फिसलकर गीर जाती है और बुरी तरह पिछे के हिस्से मे चोट आती है।

खून ज्यादा बह जाने के कारण अंशू बेहोश हो जाती है। सहेलियों की रोने की आवाज सुनके अंशू को तुरंत उठाके अस्पताल लाया जाता है। अंशू के घर फोन करने पर पता चलता है की पापा और भैया बिजनेस के सिलसिले मे शहर से बाहर गये हैं और मम्मी भाग के अस्पताल आती।

खून ज्यादा बह जाने के वजह से खून की जरूरत होती है मगर अंशू के खून का ग्रुप किसी से मेच नहीं करता Ramaके अलावा। क्योंकि o negative मुश्किल से मिलता है..मगर Rama अपना खून देने से इंकार करके चला जाता है। और अस्पताल मे भी कोई स्टोक नहीं। आधे घन्टे बाद दो तिन छोटे छोटे बच्चे ये कोई 10 से 12 साल के बच्चे आके एक एक बोतल खून देके अंशू की जान बचाते हैं। अंशू की चोट की वजह से किसी का ध्यान नहीं जाता कि बच्चे कब खून देके चले गये।अंशू ठीक हो जाती है।

जब उसे पता चलता है कि Rama ने अपना खून देने से मना कर दिया था तो नफरत नहीं घृणा सी हो गयी थी Rama से उसे।फिर वह रूटीन चेक के लिए अस्पताल आती है तो वह उन खून देने वाले फरिशतो के बारे मे जानना चाहती है मगर डाक्टर बताने से इंकार करता है मगर अंशू के दबाव मे बच्चों का पता बता देता है। अंशू उस पते पर पहुँचती है..वह एक आनाथ आश्रम था। बोर्डे पे लिखा था दिल से मोहब्बत ।

अंशू अंदर जाती है सहेलियों के साथ और इंचार्ज से मिलना चाहती है मगर वंहा काम करने वाले लोग कहते हैं कि हमारा बेटा अभी कॉलेज गया है।

अंशू थोड़ा घूमती है अंदर तो नजर एक फोटो पे पड़ती है जंहा सभी बच्चों के बिच Rama मुस्कुराके बैठा था। हैरान होके दौडके वहाँ काम करने वालों से तशबीर के बारे मे पूछती है। वे कहते है येही है हम सबका हिरो प्यारा Rama जो इस आश्रम को दिल से सम्भालता है। यंहा का इंचार्ज।
अंशू जंहा खड़ी थी वहीं बैठ जाती है। न मूस्कुरा सकती है न रो सकती है। सब अवाक और हैरान थे। अंशू को किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं थी।

फिर वह आचानक एक कमरे तक पहुँचती है शायद Rama का कमरा था,
सब कुछ बिखराके रखा था जैसे जिंदगी बिखर सी गई हो, सहेलियों सहित अंशू मिलकर बिखरे सभी चिजो को मिलाती है। वंही एक डायरी होती है। उपर लिखा था..
वह शख्स कैसे खुलकर मुस्कुराये…जिसका सूरज शाम होने से पहले ही डूब गया हो
अंशू हैरान होके जल्दी से डायरी खोलती है..लिखा था, उसके एक झापड ने मुझे उसका बना दिया जो मेरी कभी बनेगी नहीं। किसी को पता न चला कब हमने उन्हें वासरूम से उठाके अस्पताल तक पहुँचाया।

मगर क्या पता था किसी को कि भक्त ही मुकर जायेगा अपने खुदा को खून देने के लिए
बस गर उमर लम्बी होती गर मैं भी जी सकता कुछ और दिन, कशम से न मैं मरता न मैं मोहब्बत को कभी मरने देता, मेरे मुकर जाने से नफरत का सैलाब और ज्यादा उमड़ पड़ा होगा उनके दिल मे जिनके लिए हमने सिर्फ मोहब्बत ही मोहब्बत सजा रखी है।

काश खुदा किसी को भेज दे मेरे जाने से पहले जो दिल सेमोहब्बत से बने आश्रम को मेरे बाद भी मोहब्बत से सम्भाल सके
अंशू अब पागल सी होने लगी थी। पलके तो अपने आप भीग चुकी थी।मगर एक पहेली बनी थी कि वाशरूम से उठाके भी खून देने से मरना करने की वजह क्या थी।
फिर भागकर अस्पताल आती है अंशू की हालत और उसका दर्द देखकर डाक्टर कहता की उसका ये आखरी महीना है। शायद कभी भी कही भी उसकी सांसे रूक सकती है।

उसकी बिमारी एक लाईलाज बिमारी है और आखरी स्टेज पर है। मगर मेरे आलावा किसी को पता नहीं। एक दुर्घटना मे परिवार जनो को खोने के बाद अपनी जमीन जायदाद बेचकरदिल सेमोहब्बत आनाथ आश्रम खोला है उसने। खुद सड़कों पे जाके बेसहारा बच्चों को उठाके सहारा देता है। उस दिन तुम्हें खून न दे पाने के कारण बहुत रोया था मेरे पास आके।

वह चाहता तो पूरी शरीर का खून देकर तुम्हें बचाये मगर डर गया था कि…उसका एक बूँद खून तुम्हारी जान ले सकता था। वह तुमसे बेहद प्यार करने लगा था अंदर ही अंदर । उसने तुम्हें बचाने के लिए अपने आश्रम गया
मेरी गाड़ी लेके तुम्हारे ग्रुप के खून के लिए बच्चों को वही लेके आया था,वरना मुश्किल था उस दिन तुम्हारा बचना, बस वह दिखावा नहीं करता,
अंशू – डाक्टर साहब आप बोलिए उस बिमारी पर कितना खर्च आयेगा ठीक होने मे। मैं पैसा पानी की तरह बहा दूंगी
डाक्टर – पैसा तो बहुत है उसके पास मगर वक्त नहीं है पागल के पास जीने के
हाँ वह तुमसे बेहद प्यार करता है एक तरफा। पर हो सके तो अपनी नफरत ऐसे ही बनाये रखना। वरना तुम्हारे दो मिठे बोल फिर से जीने की ख्वाहिशे जगा देगी जो कभी मुमकीन नहीं है। अंशू रो रही थी साथ मे सहेलिया भी, डाक्टर जैसा इंसान भी जब रोने लगा तो सोचीये अंशू की हालत कैसी थी Rama की मोहब्बत के लिए।

दूसरे दिन अंशू सुबह सुबह मम्मी पापा के साथ आश्रम की तरफ गाड़ी लेके भागी। आश्रम के रास्ते पे ही Rama की लाश पड़ी थी, अंशू लिपटकर रोते रोते बेहोश हो गई। Rama का अंतिम संस्कार हुआ और देखीये बड़े हक से अपना पति मानकर अंशू ने खुद अपनी हाथ से Rama की चीता को आग दी, फिर माँ बाप भाई सभी को मानकर दिल से मोहब्बत आश्रम आ गयी।

और उस दिन मैं बाजार मे फुटपाथ पे बेसहारा बच्चों को ढूँढने गयी थी मेरे पति Rama कहते तरह।
सभी सुनने वालों की पलके भीगी थी। फिर अंशू रोते रोते कहती है। मरते वक्त उसने मेरा नाम अपनी हथेली पे लिखा था…अंशू I MISS YOU FOREVER..मेरी आभागी किस्मत तो देखीये…अंतिम बार भी मुझे प्यार से पेस आने का मौका नहीं दिया उसने।

ए हमारा बेटा है Rama अब इसको भी इसके पापा जैसा ही बनाना है लोगों की भलाई करना, अब ये दिल सेमोहब्बत आश्रम कभी बंद नहीं होगा,अपने इन्हीं हाथों से मैंने मेरी मोहब्बत को अग्नी दी है…आप ही बताओ न कि…फिर मुझे किसी और से मोहब्बत कैसे होगी, उस दिन बहुत जोर से पूरा दिन और रात बारिश हुई थी, जैसे आसमान के लोग भी बहुत रोये थे हम दोनों को जुदा करके अपनी साँसो की डोरी से Rama की मोहब्बत को बाँध रखी है मैने।

मैंने उसे उधर भुलाया, इधर मेरी साँसो की आखरी हिचकी तय है बहुत ज्यादा MISS करती हूँ मैं मेरे Rama मेरी मोहब्बत को
इस जन्म मे आसमान मे रहने वाले खुदाओ को भी पता है की…अंशू को इस जन्म मेRama के आलावा किसी और से मोहब्बत….? नामुमकिन है
😢😢😢😢😢😢😢 अच्छी लगे तो कमेंट में बताएं

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हेमंत बंसल

एक सुनार था, उसकी दुकान से मिली हुई एक लोहार की दुकान थी।
सुनार जब काम करता तो उसकी दुकान से बहुत धीमी आवाज़ आती, किन्तु जब लोहार काम करता तो उसकी दुकान से कानों को फाड़ देने वाली आवाज़ सुनाई देती।
एक दिन एक सोने का कण छिटक कर लोहार की दुकान में आ गिरा। वहाँ उसकी भेंट लोहार के एक कण के साथ हुई।
सोने के कण ने लोहे के कण से पूछा- भाई हम दोनों का दुख एक समान है, हम दोनों को ही एक समान आग में तपाया जाता है और समान रूप ये हथौड़े की चोट सहनी पड़ती है।
मैं ये सब यातना चुपचाप सहता हूँ, पर तुम बहुत चिल्लाते हो, क्यों?
लोहे के कण ने मन भारी करते हुऐ कहा-
तुम्हारा कहना सही है, किन्तु तुम पर चोट करने वाला हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई नहीं है।
मुझ पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा मेरा सगा भाई है।
परायों की अपेक्षा अपनों द्वारा दी गई चोट अधिक पीड़ा पहुचाँती है l

जान बूझकर किसी को तकलीफ देना मानसिक हिंसा का ही स्वरूप होता है
हम अपनी बातो से अपने कामो से दूसरो को आहत करने से बचे

क्षमा करने से पिछला समय तो नहीं बदलता
लेकिन भविष्य सुनहरा हो उठता है !
❥ Զเधे-Զเधे ❥

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लाओत्से नाम का एक बहुत अदभुत फकीर चीन में हुआ। वह इतना विनम्र और सरल व्यक्ति था, इतना अदभुत व्यक्ति था! उसकी एक—एक अंतर्दृष्टि बहुमूल्य है। उसके एक—एक शब्द में इतना अमृत है, उसके एक—एक शब्द में इतना सत्य है, जिसका कोई हिसाब नहीं है। लेकिन आदमी वह बहुत सीधा और सरल था। खुद सम्राट के कानों तक उसकी खबर पहुंची और सम्राट ने कहा, मैंने सुना है कि लाओत्से नाम का जो व्यक्ति है बहुत अति असाधारण है, बहुत एक्सट्रा— आर्डिनरी है। असामान्य ही नहीं, बहुत असामान्य है, बहुत असाधारण है। उसके वजीरों ने कहा, ‘यह बात तो सच है। उससे ज्यादा असाधारण व्यक्ति इस समय पृथ्वी पर दूसरा नहीं है।
‘सम्राट उसे देखने गया! सम्राट देखने गया, तो उसने सोचा था कि वह बहुत महिमाशाली, कोई बहुत प्रकाश को युक्त, कोई बहुत अदभुत व्यक्तित्‍व का कोई प्रभावशाली व्यक्ति होगा। लेकिन जब वह द्वार पर पहुंचा, तो उस झोपड़े के बाहर ही एक छोटी—सी बगिया थी, और लाओत्से उस बगिया में अपनी कुदाली लेकर मिट्टी खोद रहा था।
सम्राट ने उससे पूछा, ‘बागवान’ लाओत्से कहां है?’ क्योंकि यह तो कोई खयाल ही नहीं कर सकता कि यही लाओत्से होगा! फटे से कपड़े पहने हुए, बाहर मिट्टी खोद रहा हो, इसकी तो कल्पना नहीं हो सकती थी। सीधा—सादा किसान जैसा मालूम होता था। लाओत्से ने कहा, ‘ भीतर चलें, बैठें। मैं अभी लाओत्से को बुलाकर आ जाता हूं। ‘ सम्राट भीतर जाकर बैठा और प्रतीक्षा करने लगा। वह जो लाओत्से था, जो बगीचे में मिट्टी खोद रहा था, वह पीछे के रास्ते से गया, झोपड़े में से अंदर आया। आकर नमस्कार किया और कहा, ‘मैं ही लाओत्से हूं। ‘ राजा बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, ‘तुम तो वही बागवान मालूम होते हो, जो बाहर था?’ उसने कहा, ‘मैं ही लाओत्से हूं। कसूर माफ करें! क्षमा करें कि मैं छोटा—सा काम कर रहा था। लेकिन आप कैसे आये?’ उस राजा ने कहा, ‘मैंने तो सुना कि तुम बहुत असाधारण व्यक्ति हो, लेकिन तुम तो साधारण मालूम होते हो!’ लाओत्से बोला, ‘मैं बिलकुल ही साधारण हूं। आपको किसी ने गलत खबर दे दी है। ‘
राजा वापस लौट गया। अपने मंत्रियों से जाकर उसने कहा कि ‘तुम कैसे नासमझ हो! एक साधारण जन के पास मुझे भेज दिया!’ उन सारे लागों ने कहा, ‘उस आदमी की यही असाधारणता है कि वह एकदम साधारण है। ‘ मंत्रियों ने कहा, ‘उस आदमी की यही खूबी है कि वह एकदम साधारण है। ‘
साधारण से साधारण आदमी भी यह स्वीकार करने को राजी नहीं होता कि वह साधारण है। उस आदमी की यही खूबी है, यही विशिष्टता है कि उसने कुछ भी असाधारण होने की इच्छा नहीं की है, वह एकदम साधारण हो गया है।
राजा दुबारा गया। और उसने लाओत्से से पूछा कि ‘ तुम्हें यह साधारण होने का खयाल कैसे पैदा हुआ? तुम साधारण कैसे बने?’ उसने कहा, ‘ अगर मैं कोशिश करके साधारण बनता, तो फिर साधारण बन ही नहीं सकता था, क्योंकि कोशिश करने में तो आदमी असाधारण बन जाता है। नहीं, मुझे तो दिखायी पड़ा, और मैं एकदम साधारण था। मैंने अनुभव कर लिया—बना नहीं। मैंने जाना कि मैं साधारण हूं; मैं बना नहीं हूं साधारण। क्योंकि बनने की कोशिश में तो आदमी असाधारण बन जाता है। मैं बना नहीं, मैंने तो जाना जीवन को—पहचाना।
मैंने पाया; मुझे न मृत्यु का पता है, न जन्म का पता है। मैंने पाया; यह श्वास क्यों चलती है, यह मुझे पता नहीं है, खून क्यों बहता है, मुझे पता नहीं है। मुझे भूख क्यों लगती है, मुझे प्यास क्यों लगती है—यह मुझे पता नहीं है। मैंने पाया, मैं तो बिलकुल अज्ञानी हूं। फिर मैंने पाया कि मैं तो बिलकुल अशक्त हूं—मेरी कोई शक्ति नहीं। फिर मैंने पाया; मैं तो कुछ विशिष्ट नहीं हूं। जैसी दो आंखें दूसरों को हैं, वैसी दो आंखें मेरे पास हैं। दो हाथ दूसरों के पास हैं, वैसे दो हाथ मेरे पास हैं। मैं तो एक अति सामान्य व्यक्ति हूं यह मैंने देखा, पहचाना। मैं साधारण हूं मैं बड़ा नहीं हूं। यह तो देखा और समझा और मैंने पाया कि मैं साधारण हूं।
लेकिन यह घटना ऐसे घटी कि मैं एक जंगल गया था—लाओत्से ने कहा—और वहा मैंने लोगों को लकड़ियां काटते देखा। बड़े—बड़े दरख्त काटे जा रहे थे। ऊंचे—ऊंचे दरख्त काटे जा रहे थे। सारा जंगल कट रहा था। बड़े दरख्त लगे हुए थे और जंगल कट रहा था, लेकिन बीच जंगल में एक बहुत बड़ा दरख्त था। इतना बड़ा दरख्त था कि उसकी छाया इतने दूर तक फैल गई थी, वह इतना पुराना था और प्राचीन मालूम होता था कि उसके नीचे एक हजार बैलगाड़ियां विश्राम कर सकती थीं, इतनी उसकी छाया थी। तो मैंने अपने मित्रों से कहा कि जाओ और पूछो कि इस दरख्त को कोई क्यों नहीं काटता है? यह दरख्त इतना बड़ा कैसे हो गया? जहा सारा जंगल कट रहा है, वहा इतना बड़ा दरख्त कैसे? जहा सब दरख्त ठूंठ रह गए हैं, जहा नये दरख्त काटे जा रहे हैं रोज, वहा यह इतना बड़ा दरख्त कैसे बच रहा है? वह क्यों लोगों ने छोड़ दिया? तो मेरे मित्र, और मैं, वहा गये। और मैंने वृद्ध बढ़इयों से पूछा, जो लकड़ियां काटते थे कि ‘यह दरख्त इतना बड़ा कैसे हो गया?’ उन्होंने कहा, ‘यह दरख्त बड़ा अजीब है। यह दरख्त बिलकुल साधारण है। इसके पत्ते कोई जानवर नहीं खाते। इसकी लकड़ियों को जलाया नहीं जा सकता, वे धुआ करती हैं। इसकी लकड़ियां बिलकुल फ्री—टेढ़ी हैं, इनको काटकर फर्नीचर नहीं बनाया जा सकता। द्वार—दरवाजे नहीं बनाये जा सकते। दरख्त बिलकुल बेकार है, बिलकुल साधारण है। इसलिए इसको कोई काटता नहीं। लेकिन जो दरख्त सीधा है, और ऊंचा गया है, उसे जाता है, उसके खंभे बनाये जाते हैं। ‘
लाओत्से हंसा और वापस लौट आया। और उसने कहा, उस दिन से मैं समझ गया कि अगर सच में तुम्हें जीवन में बड़ा होना है, तो उस दरख्त की भांति हो जाओ, जो बिलकुल साधारण है। जिसके पत्ते भी अर्थ के नहीं, जिसकी लकड़ी भी अर्थ की नहीं। तो उस दिन से मैं वैसा दरख्त हो गया। बेकार। मैंने फिर सारी महत्वाकांक्षा छोड़ दी। बड़ा होने की, ऊंचा होने की, असाधारण होने की सारी दौड़ छोड़ दी, क्योंकि मैंने पाया कि जो ऊंचा होना चाहेगा, वह काटा जायेगा। मैंने पाया कि जो बड़ा होना चाहेगा, वह काट कर छोटा कर दिया जायेगा। मैंने पाया है कि प्रतियोगिता में, प्रतिस्पर्धा में महत्वाकांक्षा में सिवाय मृत्यु के और कुछ भी नहीं है। और तब मैं अति साधारण—जैसा मैं था, न कुछ… चुपचाप वैसे ही बैठा रहा। और जिस दिन मैंने सारी दौड छोड़ दी, उसी दिन मैंने पाया कि मेरे भीतर कोई अदभुत चीज का जन्म हो गया है। उसी दिन मैंने पाया कि मेरे भीतर परमात्मा के अनुभव की शुरुआत हो गयी है।

ओशो💓💓

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Kg Srivastava

कई लोगों की दिनचर्या हनुमान चालीसा पढ़ने से शुरू होती है। पर क्या आप जानते हैं कि श्री हनुमान चालीसा में 40 चौपाइयां हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है।

माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना बचपन में की थी।

हनुमान को गुरु बनाकर उन्होंने राम को पाने की शुरुआत की।

अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी के सूत्र समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिला सकते हैं।

हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई पहली चालीसा है शेष सभी चालीसाएं इसके बाद ही लिखी गई।

हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं। आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या-क्या बदलाव ला सकते हैं….

शुरुआत गुरु से…

हनुमान चालीसा की शुरुआत गुरु से हुई है…

श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मनु मुकुरु सुधारि।

अर्थ – अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं।

गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है। जीवन में गुरु नहीं है तो आपको कोई आगे नहीं बढ़ा सकता। गुरु ही आपको सही रास्ता दिखा सकते हैं।

इसलिए तुलसीदास ने लिखा है कि गुरु के चरणों की धूल से मन के दर्पण को साफ करता हूं। आज के दौर में गुरु हमारा मेंटोर भी हो सकता है, बॉस भी। माता-पिता को पहला गुरु ही कहा गया है।

समझने वाली बात ये है कि गुरु यानी अपने से बड़ों का सम्मान करना जरूरी है। अगर तरक्की की राह पर आगे बढ़ना है तो विनम्रता के साथ बड़ों का सम्मान करें।

ड्रेसअप का रखें ख्याल…

चालीसा की चौपाई है

कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुंडल कुंचित केसा।

अर्थ – आपके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला है, सुवेष यानी अच्छे वस्त्र पहने हैं, कानों में कुंडल हैं और बाल संवरे हुए हैं।

आज के दौर में आपकी तरक्की इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप रहते और दिखते कैसे हैं। फर्स्ट इंप्रेशन अच्छा होना चाहिए।

अगर आप बहुत गुणवान भी हैं लेकिन अच्छे से नहीं रहते हैं तो ये बात आपके करियर को प्रभावित कर सकती है। इसलिए, रहन-सहन और ड्रेसअप हमेशा अच्छा रखें।

आगे पढ़ें – हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र…

सिर्फ डिग्री काम नहीं आती

बिद्यावान गुनी अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर।

अर्थ – आप विद्यावान हैं, गुणों की खान हैं, चतुर भी हैं। राम के काम करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं।

आज के दौर में एक अच्छी डिग्री होना बहुत जरूरी है। लेकिन चालीसा कहती है सिर्फ डिग्री होने से आप सफल नहीं होंगे। विद्या हासिल करने के साथ आपको अपने गुणों को भी बढ़ाना पड़ेगा, बुद्धि में चतुराई भी लानी होगी। हनुमान में तीनों गुण हैं, वे सूर्य के शिष्य हैं, गुणी भी हैं और चतुर भी।

अच्छा लिसनर बनें

प्रभु चरित सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया।

अर्थ -आप राम चरित यानी राम की कथा सुनने में रसिक है, राम, लक्ष्मण और सीता तीनों ही आपके मन में वास करते हैं।
जो आपकी प्रायोरिटी है, जो आपका काम है, उसे लेकर सिर्फ बोलने में नहीं, सुनने में भी आपको रस आना चाहिए।

अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है। अगर आपके पास सुनने की कला नहीं है तो आप कभी अच्छे लीडर नहीं बन सकते।

कहां, कैसे व्यवहार करना है ये ज्ञान जरूरी है

सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा।

अर्थ – आपने अशोक वाटिका में सीता को अपने छोटे रुप में दर्शन दिए। और लंका जलाते समय आपने बड़ा स्वरुप धारण किया।

कब, कहां, किस परिस्थिति में खुद का व्यवहार कैसा रखना है, ये कला हनुमानजी से सीखी जा सकती है।

सीता से जब अशोक वाटिका में मिले तो उनके सामने छोटे वानर के आकार में मिले, वहीं जब लंका जलाई तो पर्वताकार रुप धर लिया।

अक्सर लोग ये ही तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें कब किसके सामने कैसा दिखना है।

अच्छे सलाहकार बनें

तुम्हरो मंत्र बिभीसन माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना।

अर्थ – विभीषण ने आपकी सलाह मानी, वे लंका के राजा बने ये सारी दुनिया जानती है।

हनुमान सीता की खोज में लंका गए तो वहां विभीषण से मिले। विभीषण को राम भक्त के रुप में देख कर उन्हें राम से मिलने की सलाह दे दी।

विभीषण ने भी उस सलाह को माना और रावण के मरने के बाद वे राम द्वारा लंका के राजा बनाए गए। किसको, कहां, क्या सलाह देनी चाहिए, इसकी समझ बहुत आवश्यक है। सही समय पर सही इंसान को दी गई सलाह सिर्फ उसका ही फायदा नहीं करती, आपको भी कहीं ना कहीं फायदा पहुंचाती है।

आत्मविश्वास की कमी ना हो

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।

अर्थ – राम नाम की अंगुठी अपने मुख में रखकर आपने समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई अचरज नहीं है।

अगर आपमें खुद पर और अपने परमात्मा पर पूरा भरोसा है तो आप कोई भी मुश्किल से मुश्किल टॉस्क को आसानी से पूरा कर सकते हैं।

आज के युवाओं में एक कमी ये भी है कि उनका भरोसा बहुत टूट जाता है। आत्मविश्वास की कमी भी बहुत है। प्रतिस्पर्धा के दौर में आत्मविश्वास की कमी होना खतरनाक है। अपनेआप पर पूरा भरोसा रखें।

🙏🏼🕉🚩