(
विनोद कुमार
((( कृष्ण का ऐश्वर्य ))))
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एक बार भगवान् के मन में आया कि आज गोपियों को अपना ऐश्वर्य दिखाना चाहिये
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ये सोचकर जब भगवान् निकुंज में बैठे थे. और गोपियाँ उनसे मिलने आ रही थी तब भगवान् कृष्ण विष्णु के रूप चार भुजाएँ प्रकट करके बैठ गए,
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जिनके चारो हांथो में शंख, चक्र, गदा, पद्म, था.
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गोपियाँ भगवान् को ढूँढती हुई एक निकुंज से दूसरे निकुंज में जा रही थी तभी उस निकुंज में आयी जहाँ भगवान् बैठे हुए थे,
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दूर से गोपियों ने भगवान् को देखा और बोली हम कब से ढूँढ रही है और कृष्ण यहाँ बैठे हुए है,
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जब धीरे धीरे पास आई तो और ध्यान से देखा तो कहने लगी अरे ! ये हमारे कृष्ण नहीं है
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इनकी सूरत तो कृष्ण की ही तरह है परन्तु इनकी तो चार भुजाएँ है ये तो वैकुंठ वासी विष्णु है.
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सभी गोपियों ने दूर से ही प्रणाम किया और आगे बढ़ गई, और बोली चलो सखियों कृष्ण तो इस कुंज में भी नहीं है कही दूसरी जगह देखते है .
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ये प्रेम है जहाँ साक्षात् भगवान् विष्णु भी बैठे है तो ये जानकर के ये तो विष्णु है कृष्ण नहीं गोपियाँ पास भी नहीं गई,
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भगवान् कृष्ण ने सोचा गोपियों ने तो कुछ कहा ही नहीं, अब राधा रानी जी के पास जाना चाहिये,
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ये सोचकर भगवान् कृष्णा वैसे ही विष्णु के रूप में उस निकुंज में जाने लगे जहाँ राधा रानी बैठी हुई थी,
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दूर से ही भगवान् ने देखा राधा रानी जी अकेले बैठी हुई है, तो सोचने लगे राधा को अपना ये ऐश्वर्य देखाता हूँ,
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और धीरे धीरे उस ओर जाने लगे,
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परन्तु ये क्या जैसे जैसे कृष्ण राधा रानी जी के पास जा रहे है वैसे वैसे उनकी एक के करके चारो भुजाये गायब होने लगी और विष्णु के स्वरुप से कृष्ण रूप में आ गए,
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जबकी भगवान् ने ऐश्वर्य को जाने के लिए कहा ही नहीं वह तो स्वतः ही चला गया,
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और जब राधा रानी जी के पास पहुँचे तो पूरी तरह कृष्ण रूप में आ गए.
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अर्थात वृंदावन में यदि कृष्ण चाहे भी तो अपना ऐश्वर्य नहीं दिखा सकते, क्योकि उनके ऐश्वर्य रूप को वहाँ कोई नहीं पूँछता,
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यहाँ तक की राधा रानी के सामने तो ठहरता ही नहीं,
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राधा रानी जी के सामने तो ऐश्वर्य बिना कृष्ण की अनुमति के ही चला जाता है.
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))