Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

એક માણસે નારદ મુની ને પુછયુ મારા ભાગ્યમા કેટલુ ધન છે.?
:
નારાદમુની એ કહ્યું- ભગવાન વિષ્ણુને પૂછીને આવતી કાલે કહીશ…,

:
બીજા દીવસે નારાદમુની એ કહ્યુ.
૧ રૂપિયો રોજ તારા ભાગ્યમાં છે..

:
માણસ બહુ ખુશ રહેવા લાગ્યો…. એની જે પણ જરૂરતો તે એક રૂપિયામાં પુરી થઈ જાતી હતી…

:
એક દીવસ એના એક મિત્રએ કહ્યુ…., હુ તારા સાદગી ભર્યું જીવન જીવવાનુ અને તેમાં પણ તને ખુશ જોઈને હુ ઘણો પ્રભાવીત થયો છુ….માટે હુ મારી બહેન ના લગ્ન તારી સાથે કરવા માંગુ છુ…,

:
તે માણસે કહ્યુ મારી કમાઈ રોજનો ૧ રૂપિયો છે…એ તને ખબર છે..તો પણ….
આ એક જ રૂપિયામાં તારી બહેનને ગુજરાન કરવુ પડશે…

:
મિત્રએ કહ્યુ કોઈ વાંધો નહી… મને આ સંબંધ મંજુર છે…

:અને તેણે સગાઈ કરી નાખી….,
આગલા દિવસથી એ માણસની કમાઈ ૧૧ રૂપિયા થઈ ગઈ…

:
એ માણસે નારાદમુની ને બોલાવ્યા અને પુછયુ …,હે મુનિવર મારા ભાગ્યમા તો ૧ રૂપિયો લખ્યો હતો તો પછી ૧૧ રૂપિયા મને કેમ મળી રહ્યા છે.???

:
નારાદમુની એ કહ્યુ:- તારો કોઈની સાથે સબંધ કે સગાઇ થઈ છે…????

:
હા સગાઈ થઈ છે..???
:
તો આ વધારાના ૧૦ રૂપિયા તારી હોનાર પત્ની ના ભાગ્યના તને મળી રહ્યા છે…

હવે આને જોડવા-(બચાવવા) લાગ આગળ તને તારા લગ્નમાં કામ લાગશે..

:
એક દીવસ એની પત્ની ગર્ભવતી થઈ અને એની કમાઈ એ દીવસે થી ૩૧ રૂપિયા થવા લાગી…

:
ફરી થી એણે નારાદમુની ને બોલાવ્યા અને કહ્યુ હે મુનિવર મારા અને મારી પત્નીના ભાગ્યમાં ૧૧ રૂપિયા મળી રહયા હતા તો હવે ૩૧ રૂપિયા કેમ મળવા લાગ્યા..???

કેમ હુ કાઈ કોઈ અપરાધ કરી રહ્યો છુ…????

:
મુનિવરે કહ્યુ :- આ ૨૦ રૂપિયા તને તારા બાળક ના ભાગ્ય ના મળી રહ્યાં છે..

:
દરેક મનુષ્યને એના પ્રારબ્ધ ( ભાગ્ય)લખેલું હોય છે..કે…..,
કોના ભાગ્યથી ઘરમાં ધન-દૌલત આવે છે…. એ અમને કે કોઈને ખબર નથી હોતી..

:
પણ આ દુનિયામાં
મનુષ્ય અહંકાર કરતો હોય છે….કે મે આ બનાવ્યું, મે આ કર્યું,
મે કમાવ્યું, આ મારૂ છે, હુ કમાઈ રહયો છૂ,
મારા લીધેજ આ બધુ થઈ રહ્યુ છે…વગેરે…વગેરે..
:
પરંતુ હે પ્રાણી (મનુષ્ય)
તને નથી ખબર કે તુ કોના ભાગ્યનુ ખાય રહ્યો અને કમાઈ રહ્યો છે .

રવિ ભોગ્યતા

Posted in હાસ્ય કવિતા

સ્વીટ હાર્ટ ! ઈંગ્લીશમાં તું બડબડ ન કર,
હાય ને હાય હાય મહીં ગરબડ ન કર.

બિલ્લીની માફક મને નડનડ ન કર,
શ્વાન સમજીને મને હડહડ ન કર.

હાસ્ય તારું ભયજનક લાગે મને,
મેઘલી રાતે કદી ખડખડ ન કર.

પ્રેમની ટપલીને ટપલી રાખ તું,
વ્યાપ વિસ્તારીને તું થપ્પડ ન કર.

કાલે મારો પગ છૂંદ્યો તેં હીલ વડે,
એ જગા પર તું હવે અડઅડ ન કર.

ધૂળ જેવી જિંદગી છે આપણી,
એમાં રેડી આંસુડાં કીચડ ન કર.

-રઈશ મનીઆર

Posted in रामायण - Ramayan

क्यों मिला माता सीता को वनवास
😢😢
एक बार सीता अपनी सखियों के साथ मनोरंजन के लिए महल के बाग में गईं,उन्हें पेड़ पर बैठे तोते का एक जोड़ा दिखा,दोनों तोते आपस में सीता के बारे में बात कर रहे थे,एक ने कहा-अयोध्या में एक सुंदर और प्रतापी कुमार हैं,जिनका नाम श्रीराम है,उनसे जानकी का विवाह होगा,श्रीराम ग्यारह हजार वर्षों तक इस धरती पर शासन करेंगे,सीता-राम एक दूसरे के जीवन साथी की तरह इस धरती पर सुख से जीवन बिताएंगे,सीता ने अपना नाम सुना तो दोनों पक्षी की बात गौर से सुनने लगीं,उन्हें अपने जीवन के बारे में और बातें सुनने की इच्छा हुई,सखियों से कहकर उन्होंने दोनों पक्षी पकड़वा लिए सीता ने उन्हें प्यार से पुचकारा और कहा- डरो मत तुम बड़ी अच्छी बातें करते हो यह बताओ ये ज्ञान तुम्हें कहां से मिला,मुझसे भयभीत होने की जरूरत नहीं,दोनों का डर समाप्त हुआ,वे समझ गए कि यह स्वयं सीता हैं. दोनों ने बताया कि वाल्मिकी नाम के एक महर्षि हैं वे उनके आश्रम में ही रहते हैं वाल्मिकी रोज राम-सीता जीवन की चर्चा करते हैं वे यह सब सुना करते हैं और सब कंठस्थ हो गया है
सीता ने और पूछा तो शुक ने कहा-दशरथ पुत्र राम शिव का धनुष भंग करेंगे और सीता उन्हें पति के रूप में स्वीकार करेंगी,तीनों लोकों में यह अद्भुत जोड़ी बनेगी,सीता पूछती जातीं और शुक उसका उत्तर देते जाते,दोनों थक गए,उन्होंने सीता से कहा यह कथा बहुत विस्तृत है,कई माह लगेंगे सुनाने में यह कह कर दोनों उड़ने को तैयार हुए,सीता ने कहा-तुमने मेरे भावी पति के बारे में बताया है. उनके बारे में बड़ी जिज्ञासा हुई है जब तक श्रीराम आकर मेरा वरण नहीं करते मेरे महल में तुम आराम से रहकर सुख भोगो,शुकी ने कहा- देवी हम वन के प्राणी है. पेडों पर रहते सर्वत्र विचरते हैं,मैं गर्भवती हूं,मुझे घोसले में जाकर अपने बच्चों को जन्म देना है,सीताजी नहीं मानी,शुक ने कहा-आप जिद न करें,जब मेरी पत्नी बच्चों को जन्म दे देगी तो मैं स्वयं आकर शेष कथा सुनाउंगा,अभी तो हमें जाने दें
सीता ने कहा-ऐसा है तो तुम चले जाओ लेकिन तुम्हारी पत्नी यहीं रहेगी,मैं इसे कष्ट न होने दूंगी शुक को पत्नी से बड़ा प्रेम था वह अकेला जाने को तैयार न था शुकी भी अपने पति से वियोग सहन नहीं कर सकती थी उसने सीता को कहा-आप मुझे पति से अलग न करें मैं आपको शाप दे दूंगी,सीता हंसने लगीं. उन्होंने कहा- शाप देना है तो दे दो. राजकुमारी को पक्षी के शाप से क्या बिगड़ेगा शुकी ने शाप दिया-एक गर्भवती को जिस तरह तुम उसके पति से दूर कर रही हो उसी तरह तुम जब गर्भवती रहोगी तो तुम्हें पति का बिछोह सहना पड़ेगा. शाप देकर शुकी ने प्राण त्याग दिए,पत्नी को मरता देख शुक क्रोध में बोला- अपनी पत्नी के वचन सत्य करने के लिए मैं ईश्वर को प्रसन्न कर श्रीराम के नगर में जन्म लूंगा और अपनी पत्नी का शाप सत्य कराने का माध्यम बनूंगा
वही शुक(तोता) अयोध्या का धोबी बना जिसने झूठा लांछन लगाकर श्रीराम को इस बात के लिए विवश किया कि वह सीता को अपने महल से निष्काषित कर दें.
गोविन्द🙏🏻🙏🏻

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Jai shree ram
***Jai shree hanumantaye namah🌼 ***
चतुर पत्नी

एक गांव में एक दरजी रहता था जो बड़े छोटे सब के कपडे सिलता था और उस कमाई से दो टंक का खाना अपनी पत्नी को खिलाता था। कपडे वो एसे लबाबदार सिलता की सालों तक चलते। उसी गाँव का राजा बड़ा दयालु था । एक बार राजा ने खुश होकर उसको महल बुलाया। राजकुमारी का कुछ दिन में विवाह था । राजा ने दरजी को राजकुमारी के लिए अच्छे से अच्छे कपडे बनाने का आदेश दिया । राजकुमारी का विवाह उसकी मर्जी के खिलाफ हो रहा था । राजकुमारी किसी और को चाहती थी । उसका कपडे सिलवाने का जरा भी मन न था । दरजी दुसरे दिन सुबह राजकुमारी के कपडों की सिलाई के लिए माप लेने आ गया । राजकुमारी ने विवाह से बचने के लिए एक योजना बना ली ।

उसने दरजी को अपने शयनकक्ष में बुलाया । दासियों को कमरे से बाहर चले जाने का आदेश दे दिया । जैसे ही दरजी ने माप लेना शुरू किया कुछ ही क्षणों में राजकुमारी जोर जोर से रोने लगी । पूरे महल को सुनाई दे वैसे वह चिल्लाना शुरू कर दी । दरजी डर के मारे स्तब्ध हो गया । उसको कुछ समझ में आये उससे पहले ही राजकुमारी के शयन में सब दौड़े चले आए। सिपाही , दासियाँ एवं राजा खुद भागते हुए इकठ्ठे हो गए ।

राजकुमारी ने दरजी पर उसकी छेड़ती का आरोप लगा दिया । दरजी खड़ा खड़ा कांप रहा था । उसने रोते रोते राजा को बताया की उसने एसा कुछ भी नहीं किया है । लेकिन राजा ने एक न सुनी । दरजी को कैद कर लिया और मौत की सजा सुना दी । राजा ने एलान कर दिया की जब तक राजकुमारी पूर्णतया स्वस्थ नहीं हो जाती उसका विवाह नहीं होगा ।

इस बात का पता दरजी की पत्नी को चला । वो भागते हुए राजमहल पहुंची । उसने अपने पति के अच्छे चरित्र के कई पुरावे दिए लेकिन राजा को अपनी बेटी के अपमान के सामने और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । दरजी की पत्नी पर दया खा कर राजा ने उसको दरजी के जाने के बाद का आजीवन भरण पोषण भी दे दिया । दरजी की पत्नी ने राजा का वह प्रस्ताव ठुकरा दिया और एक वचन माग लिया । राजा ने दरजी की जिंदगी को छोड़कर जो मांगे देने का वचन दिया । तब दरजी की पत्नी ने बताया की वह जो भी मांगेगी राजा से अकेले में मांगेगी, उसको दरबार के लोगों पर भरोसा नहीं है । राजा ने उसकी बात मान ली और उसको अपने कक्ष में बात करने बुलाया । तभी कुछ क्षणों में राजा के कक्ष से जोर जोर से रोने की आवाजे आने लगी । सब इकठ्ठे हो गए । राजा क्रोध्ध से तिलमिला उठा । तभी दरजी की पत्नी ने सबको बताया की राजा ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया है । बुजुर्ग राज दरबारी सब राजा को गुनाह की नजरों से देखने लगे । अब राजा को पूरी बात समझ में आयी । उसने तुरंत दरजी को रिहा करने का आदेश दे दिया । उसने दरजी और उसकी पत्नी से अनजाने में हुए अपराध की माफ़ी मांगी । दरजी की पत्नी ने भी राजा पर लगाये गलत गुनाहों की माफ़ी मांगी ।

दोनों सन्मान के साथ घर पहुंचे और अपनी जिंदगी साथ में हसी ख़ुशी बीता दी ।

बोध : अक्सर दो व्यक्तिओ के बीच अकेले में घटी घटनाओ में कुछ बाते अनकही रह जाती है । दोनों में से जिसके शुभचिंतक अधिक होते है उसकी बात का भरोसा किया जाता है और दुसरे व्यक्ति को बोलने का मौका तक नहीं दिया जाता है । एसे में निर्दोष व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक सजाओ का भोगी बनता है ।
****Jai Shree Ram🌼***”

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एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है, नारदमुनि ने कहा भगवान विष्णु से पुछ कर कल बताऊंगा।

नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है l

आदमी बहुत खुश रहने लगा उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी। एक दिन उसके मित्र ने कहा मैं तुम्हारे सादगी भरे जीवन में तुम्हें खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ l

आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है, इसको ध्यान में रखना, इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को, मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है।

अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई, उसने नारदमुनि को बुलाया की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्योँ मिल रहे है?

नारदमुनि ने कहा तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या?
हाँ हुई है ।

तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे हे, इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएंगे । एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी।

फिर उसने नारदमुनि को बुलाया और कहा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे हे, क्या मैं कोई अपराध कर रहा हूँ?

मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है। हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है !

किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता, लेकिन मनुष्य अहंकार करता है l मैंने बनाया, मैंने कमाया, मेरा है,मैं कमा रहा हूँ, मेरी वजह से हो रहा है।प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है

विजय शर्मा

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टाल्सटाय का नाम सुना होगा आपने। गांधी जी अपने गुरुओं में एक टाल्सटाय की गिनती भी करते थे। वह बहुत अनूठा आदमी था। कवि हृदय, कल्पनाशील। एक रात उसे मास्को के एक ब्रिज के ऊपर, पुल के ऊपर पकड़ा गया। आधी रात, अंधेरे में खड़ा था पुल के ऊपर। पुलिसवाला जो वहां पहरे पर था, उसने पूछा कि महाशय ऐसे कैसे खड़े हैं यहां?
वह ब्रिज ऐसा था कि वहां अक्सर लोग आत्महत्या करते थे। तो एक सिपाही तैनात था इसीलिए कि वहां कोई आत्महत्या न कर सके। तो रात दो बजे टाल्सटाय को वहां देख कर उस सिपाही ने पकड़ा और कहा, आप यहां कैसे आए?
टाल्सटाय की आंखों से आंसू बह रहे हैं। टाल्सटाय ने कहा कि अब तुम देर करके आए, जिसे आत्महत्या करनी थी उसने कर ली है। मैं तो सिर्फ उसके लिए खड़ा होकर रो रहा हूं। वह सिपाही तो घबड़ा गया, वह था डयूटी पर तैनात। कौन गिर गया? कब गिर गया? उसने टाल्सटाय से पूछा। लेकिन टाल्सटाय रोए चला जा रहा है। वह टाल्सटाय को पकड़ कर थाने ले गया कि पूरी रिपोर्ट आप लिखवा दें–कौन था? क्या था? रास्ते में टाल्सटाय से उसने पूछा, कौन था? तो टाल्सटाय ने कहा, एक स्त्री थी। नाम बताया, उसकी मां का नाम, उसके पिता का नाम, सब जरूरी सब बताया।
थाने में पहुंचा। थाने में जो इंसपेक्टर था वह पहचानता था। उसने कहा, टाल्सटाय को ले आए! और टाल्सटाय शाही घराने के लोगों में से एक था। उसने टाल्सटाय को पूछा कि क्या कहते हैं आप, कौन मर गया?
थाने में पहुंच कर होश आकर टाल्सटाय ने कहा, क्षमा करना, भूल हो गई। मैं एक उपन्यास लिख रहा हूं। उस उपन्यास में एक पात्रा है। वह पात्रा, आज की रात कहानी वहां पहुंचती है कि वह जाकर वोल्गा में कूद कर आत्महत्या कर लेती है। मैं भूल गया, किताब बंद करके मैं वहां पहुंच गया जहां कहानी में वह आत्महत्या करती है। मैं वहीं खड़ा उसके लिए रोता था कि इस आदमी ने पकड़ लिया।
पर वह सिपाही कहने लगा, तुमने कहा उसके पिता का नाम, मां का नाम।
उसने कहा, वह सब ठीक है, कहानी में वही उसके पिता का नाम है, वही उसकी मां का नाम है।
लेकिन वे सब कहने लगे कि आप आदमी कैसे हैं, आप इतना धोखा खा गए?
टाल्सटाय ने कहा, बहुत बार ऐसा हो चुका है। कल्पना के चित्र इतने सजीव मालूम पड़ते हैं मुझे कि मैं कई बार भूल जाता हूं। बल्कि सच तो यह है कि असली आदमी इतने सजीव नहीं मालूम पड़ते, जितनी मेरी कल्पना के।
टाल्सटाय ने अपना पैर बताया, जिसमें बड़ी चोट थी, निशान था। और उसने कहा कि एक बार मैं लाइब्रेरी की सीढ़ियां चढ़ रहा था। और मेरे साथ एक स्त्री चढ़ रही थी। वह भी मेरी पात्र थी किसी कहानी की, थी नहीं। लेकिन वह उससे बातचीत करता हुआ ऊपर चढ़ रहा था। संकरी जगह थी, और ऊपर से एक सज्जन उतर रहे थे। मैंने सोचा कहीं स्त्री को धक्का न लग जाए, तो मैं बचा। बचने की कोशिश में उन सीढ़ियों से नीचे गिर गया। जब सीढ़ियों से नीचे गिर गया, उन सज्जन ने मुझसे आकर कहा, पागल हो गए हो? क्यों बचे तुम? दो के लायक काफी जगह थी!
टाल्सटाय ने कहा, वह तो अब मुझे भी समझ में आ गया कि दो थे, पैर टूटने से बुद्धि आई। लेकिन जब तक मैं चढ़ रहा था, मुझे खयाल था हम तीन हैं, एक औरत मेरे साथ है। और उसको धक्का न लग जाए, इसलिए मैंने बचने की कोशिश की।
अब ऐसे व्यक्तियों को भगवान का साक्षात्कार करना कितना सरल हो सकता है। कवि हृदय चाहिए, कल्पनाशील मन चाहिए। और फिर ऐसी तरकीबें हैं कि कल्पनाशील मन को और कल्पनाशील बनाया जा सकता है।

ओशो, तृषा गई एक बूंद से(प्रव.-6)

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मैं एक गांव में था। वहां कानजी स्वामी आए हुए थे। उस गांव के जितने पापी थे, सब मुझे वहां उनके सामने बैठे हुए दिखाई पड़े। और वे बड़े प्रसन्न हो रहे थे।
वे किस बात से प्रसन्न हो रहे थे ???
मैंने पता लगवाया कि बात क्या है ???
गांव भर के पापी एक तरफ क्यों भागे चले जाते हैं ???
बात क्या है ???

और वे सब बैठ कर कानजी को इतने आनंद से क्यों सुनते हैं ???
कानजी उन्हें समझा रहे हैं कि आत्मा पाप करती ही नहीं। वे पापी बड़े प्रसन्न हो रहे हैं।
स्वामी जी ठीक कह रहे हैं आप, वे सिर हिला रहे हैं।
कानजी उनसे पूछ रहे हैं, समझ में आया ???
वे सब पापी कह रहे हैं, बिलकुल समझ में आया, गुरुजी।
वे उठ कर फिर पाप करेंगे। वे अभी जहां से आए हैं, पाप करके आ रहे हैं। लेकिन अब उन्हें एक आदर्श बड़ी राहत दे रहा है कि आत्मा तो पाप करती ही नहीं। इस सिद्धांत को वे मान लेंगे। यह आदर्श बड़ा प्रीतिकर है। पापी के लिए इससे सुंदर आदर्श कुछ भी नहीं हो सकता। क्योंकि पापी का जो बोझ था, उसके प्राणों पर जो भार था, वह अलग हो गया। उसे पापी होने में सुविधा मिल गई। अब वह ठीक से पापी हो सकता है। क्योंकि आत्मा पाप करती ही नहीं है। जब आत्मा पाप ही नहीं करती है तो फिर पाप करने में हर्ज क्या है ???

दस हजार वर्षों में हमने आदमी को आदर्श दिए, आदमियत नहीं।
और आदर्श धोखा सिद्ध हुए। कोई भी आदर्श आदमी को उसकी असलियत बताने में सहयोगी नहीं हुआ, उसकी असलियत छुपाने में सहयोगी हुआ।
जब कि जरूरत है यह कि आदमी अपनी असलियत को पूरी तरह देख पाए,
अगर वह नंगा है तो नंगा,
अगर गंदा है तो गंदा,
और अगर पापी है तो पापी।

मैं जैसा हूं, मुझे अपने को पूरी तरह जान लेना जरूरी है। क्योंकि मजे की बात यह है कि अगर मैं पूरी तरह यह जान लूं कि मैं कैसा हूं, तो मैं एक दिन भी फिर वैसा नहीं रह सकता, मुझे बदलना ही पड़ेगा।
अगर मुझे दिखाई पड़ जाए कि मेरे घर में आग लगी है, तो मैं आपसे पूछने आऊंगा कि मैं बाहर निकलूं या न निकलूं ???
मुझे अगर दिखाई पड़ जाए कि मेरे घर में चारों तरफ आग लगी है, तो मैं किसी शास्त्र में खोजने जाऊंगा कि जब मकान में आग लग जाए तो निकलने की विधि क्या है ???
नहीं; जब मुझे दिखाई पड़ जाएगा कि मेरे घर में चारों तरफ आग लगी है, तो दिखाई पड़ने के बाद मुझे पता भी नहीं चलेगा कि मैं बाहर कब हो गया हूं। मैं बाहर हो जाऊंगा।

लेकिन मेरे घर में आग लगी है और मैं कह रहा हूं कि चारों तरफ फूल खिले हैं, आदर्शों के फूल।
और साधु-संत समझा रहे हैं कि अमृत की वर्षा हो रही है।
ये लपटें नहीं हैं, यह भगवान का प्रसाद बरस रहा है। तो फिर मैं अपने घर में बिलकुल आराम से बैठा हूं।

हम सब नहीं बदल पाते हैं, क्योंकि हम अपनी असलियत को ही नहीं पहचान पाते हैं, हम कभी अपने भीतर ही नहीं झांक पाते हैं कि मैं हूं कौन! लेकिन जब भी हम सवाल पूछते हैं कि मैं हूं कौन? तो हमें पुराने उत्तर याद आ जाते हैं कि
अहं ब्रह्मास्मि!
मैं ब्रह्म हूं,
मैं आत्मा हूं,
मैं शुद्ध-बुद्ध परमात्मा हूं।
ये सब आदर्श हमें सुनाई पड़ते हैं, हमारे कानों में गूंजने लगते हैं।

ओशो
नये समाज की खोज

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કાના તારી મોરલીએ મારું મન મોહ્યું ( એક સત્ય ઘટના) …

ઇટાલીના સરમુખત્યાર મુસોલિનીની આત્મકથામાં પડેલો આ પ્રસંગ વાંચીને દરેક ભારતવાસી પોતાની પ્રાચીન સંસ્કૃતિ માટે ગૌરવનો અનુભવ કરી શકે તેમ છે.

*ભારતના મહાન સંગીતકાર ઓમકારનાથ ઠાકુર એ દિવસોમાં ઇટાલીના પ્રવાસે ગયેલા. *

*ભારતના એ મહાન સંગીતજ્ઞના માનમાં મુસોલિનીએ એક ભોજન સમારંભનું આયોજન કરેલ. *

આ રાજકીય ભોજન સમારંભમાં ઓમકારનાથ ઠાકુરની સાથે ઇટાલીમાં વસેલા ઘણા અગ્રગણ્ય ભારતીયો તથા ભારતના દૂતાવાસના સભ્યોને પણ ઉપસ્થિત હતા..

સમારંભમાં મુસોલિનીએ ભારતની પાંચ હજાર જૂની સંસ્કૃતિની મજાક કરતા બધા મહેમાનોની વચ્ચે ઓમકારનાથ ઠાકુરને કહ્યું કે, ‘મી. ઠાકુર મેં સાંભળ્યું છે કે તમારા દેશમાં કૃષ્ણ જ્યારે વાંસળી વગાડતા ત્યારે આજુબાજુના વિસ્તારની બધી ગાયો નાચવા લાગતી, મોર કળા કરવા લાગતા, ગોપીઓ સૂધબૂધ ખોઈને કૃષ્ણ જ્યાં વાંસળી વગાડતા હોય ત્યાં દોડી આવતી,શું તમે આ વાતને માનો છો?’

*ઇટાલીના સરમુખત્યારને ભારતના એ સપૂતે ભોજન સમારંભમાં બધાની વચ્ચે જે કરી બતાવ્યું તે જાણીને પ્રત્યેક ભારતીયનું મસ્તક ગૌરવથી ઊંચું થઈ જશે… *

*ઠાકુરે કહ્યું, ‘કૃષ્ણ જેટલું તો મારું સાર્મથ્ય નથી કે નથી સંગીતની બાબતમાં મારી તેમના જેટલી સમજણ. *

*સાચું તો એ છે કે સંગીત સંબંધે આ પૃથ્વી ઉપર આજ સુધીમાં કૃષ્ણ જેટલી સમજણવાળો કોઈ બીજો પેદા થયો હોવાનું પણ જાણવા મળતું નથી. *

પરંતુ, સંગીતનું જે થોડું ઘણુ જ્ઞાન મને છે, તે તમે કહો તો તમને કહું અથવા કરી બતાવું…’

મુસોલિનીએ મજાકમાં જ કહ્યું કે, ‘જો કે સંગીતના કોઈ સાધનો અહીં ઉપલબ્ધ નથી છતાં પણ જો શક્ય હોય તો કંઈક કરી બતાવો તો અહીં ઉપસ્થિત મહાનુભાવોને પણ ભારતીય સંસ્કૃતિનો પરિચય મળે.’

*ઓમકારનાથ ઠાકુરે ડાઈનીંગ ટેબલ ઉપર પડેલા કાચના જુદા જુદા પ્યાલામાં ઓછું વધારે પાણી ભરીને તેના ઉપર છરી કાંટાથી જલતરંગની જેમ વગાડવું શરૂ કર્યું. બે મિનિટમાં તો ભોજન સમારંભની હવા ફરી ગઈ. *

*વાતાવરણમાં એક પ્રકારની ઠંડક વર્તાવા લાગી. પાંચ મિનિટ, સાત મિનિટ અને મુસોલિનીની આંખો ઘેરાવા લાગી. વાતાવરણમાં એક પ્રકારનો નશો છવાવા લાગ્યો. *

મદારી બીન વગાડે અને અવસ થઈને જેમ સાપ ડોલવા લાગે તેમ મુસોલીની ડોલવા લાગ્યો અને તેનું માથું જોરથી ટેબલ સાથે અથડાયું.

*બંધ કરો… બંધ કરો… મુસોલિની બૂમ પાડી ઉઠ્યો. સમારંભમાં સન્નાટો છવાઈ ગયો. *

બધા લોકોએ જોયું તો મુસોલિનીના કપાળમાં ફૂટ પડી હતી અને તેમાંથી લોહી વહેતું હતું.

*મુસોલિનીએ આત્મકથામાં લખાવ્યું છે કે ભારતની સંસ્કૃતિ માટે મેં કરેલ મજાક માટે હું ભારતની જનતાની માફી માંગું છું. *

ફક્ત છરીકાંટા વડે પાણી ભરેલા કાચના વાસણોમાંથી ઉદભવેલા એ અદભૂત સંગીતથી જો આ સભ્ય સમાજનો મારા જેવો મજબૂત મનનો માનવી પણ ડોલવા લાગે તો હું જરૂર માનું છું કે એ જમાનામાં કૃષ્ણની વાંસળી સાંભળીને જંગલના જાનવરો પણ શાંત થઈ જતાં હશે અને માનવીઓ પણ સૂધબૂધ ખોઈને ભેળા થઈ જતાં હશે.

*ભારતના ઋષિઓએ હજારો વર્ષ પૂર્વે ધ્વનિશાસ્ત્ર – નાદબ્રહ્મની સાધના કરી અને મંત્રયોગ દ્વારા માનવીના ચિત્તના તરંગોને અનેક પ્રકારે રૂપાંતરિત કરવાની પ્રક્રિયાઓ શોધેલ. *

*ધ્વનિ અને મંત્રોમાં એવી અદભૂત શક્તિઓ ભરી પડી છે કે તે જડ તત્વોને ચૈતન્યમય બનાવી શકે છે. *

ઓમકારનાથ ઠાકુરે તેનો એક નાનકડો પ્રયોગ ઇટાલીમાં કરીને ત્યાં ઉપસ્થિત બધાને આશ્ચર્ય ચકિત કરી દીધા હતા