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गधे की कब्र – धर्म या अंधविश्वास

ज्योति अग्रवाल

एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्‍न हो गया। और उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया। बंजारा बड़ा प्रसन्‍न था। गधे के साथ, अब उसे पेदल यात्रा न करनी पड़ती थी। सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था। और गधा बड़ा स्‍वामीभक्‍त था।लेकिन एक यात्रा पर गधा अचानक बीमार पडा और मर गया। दुःख में उसने उसकी कब्र बनायी, और कब्र के पास बैठकर रो रहा था कि एक राहगीर गुजरा।उस राहगीर ने सोचा कि जरूर किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी है। तो वह भी झुका कब्र के पास। इसके पहले कि बंजारा कुछ कहे, उसने कुछ रूपये कब्र पर चढ़ाये। बंजारे को हंसी भी आई आयी। लेकिन तब तक भले आदमी की श्रद्धा को तोड़ना भी ठीक मालुमन पडा। और उसे यह भी समझ में आ गया कि यह बड़ा उपयोगी व्‍यवसाय है।फिर उसी कब्र के पास बैठकर रोता, यही उसका धंधा हो गया। लोग आते, गांव-गांव खबर फैल गयी कि किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी। और गधे की कब्र किसी पहूंचे हुए फकीर की समाधि बन गयी। ऐसे वर्ष बीते, वह बंजारा बहुत धनी हो गया।फिर एक दिन जिस सूफी साधु ने उसे यह गधा भेंट किया था। वह भी यात्रा पर था और उस गांव के करीब से गुजरा। उसे भी लोगों ने कहा, ऐ महान आत्‍मा की कब्र है यहां, दर्शन किये बिना मत चले जाना। वह गया देखा उसने इस बंजारे को बैठा, तो उसने कहा, किसकी कब्र है यहा, और तू यहां बैठा क्‍यों रो रहा है। उस बंजारे ने कहां, अब आप से क्‍या छिपाना, जो गधा आप ने दिया था। उसी की कब्र है। जीते जी भी उसने बड़ा साथ दिया और मर कर और ज्‍यादा साथ दे रहा है। सुनते ही फकीर खिल खिलाकर हंसाने लगा। उस बंजारे ने पूछा आप हंसे क्‍यों? फकीर ने कहां तुम्‍हें पता है। जिस गांव में मैं रहता हूं वहां भीएक पहूंचे हएं महात्‍मा की कब्र है। उसी से तो मेरा काम चलता है। बंजारे ने पूछा वह किस महात्‍मा की कब्र है। तुम्‍हें मालूम है। उसने कहां मुझे कैसे नहीं, पर क्‍या आप को मालूम है। नहीं मालूम हो सकता वह इसी गधे की मां की कब्र है।*धर्म के नाम पर अंधविश्‍वासों का बड़ा विस्‍तार है। धर्म के नाम पर थोथे, व्‍यर्थ के क्रियाकांड़ो, यज्ञों, हवनों का बड़ा विस्‍तार है। फिर जो चल पड़ी बात, उसे हटाना मुश्‍किल हो जाता है। जो बात लोगों के मन में बैठ गयी। उसे मिटाना मुश्‍किल हो जाता है। और इसे बिना मिटाये वास्‍तविक धर्म का जन्‍म नहीं हो सकता। अंधविश्‍वास उसे जलने ही न देगा।सभी बुद्धिमान व्‍यक्‍तियों के सामने यही सवाल थे। और दो ही विकल्‍प है। एक विकल्‍प है नास्‍तिकता का, जो अंधविश्‍वास को इन कार कर देता है। और अंधविश्‍वास के साथ-साथ धर्म को भी इंकार कर देता है। क्‍योंकि नास्‍तिकता देखती है इस धर्म के ही कारण तो अंधविश्‍वास खड़े होते है। तो वह कूड़े-कर्कट को तो फेंक ही देती है। साथ में उस सोने को भी फेंक देती है। क्‍योंकि इसी सोने की बजह से तो कूड़ा कर्कट इक्‍कठ होता हे। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी

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॥ સર્વજન સુખાય સર્વજન હિતાય ચ ॥

વર્ષાની વિદાય અને શરદનુ આગમન એટલે ભાદરવો.

દિવસે ધોમ ધખે અને મોડી રાત્રે આછુ ઓઢીને સુવુ પડે એવો ઠાર પડે. આયુર્વેદાચાર્યો કહી ગયા છે કે વર્ષામા પિત્તનો સંગ્રહ થાય અને શરદમા તે પિત્ત પ્રકોપે.
આ પ્રકોપવુ એટલે તાવ.

ભાદરવાના તાપ અને તાવથી બચવા ત્રણ-ચાર ઘરગથ્થુ પ્રયોગો (સ્વાનુભુત છે.)

૧) ભાદરવાના ત્રીસે દિવસ રોજ રાત્રે જમ્યા પછી સુદર્શન/મહાસુદર્શન ઘનવટી – ૨-૩ ટીક્ડી ચાવીને પાણી સાથે (ત્રણ કલાકથી વહેલી નહી, પછી જ).

૨) જો ભાવે તો ભાદરવાના ત્રીસે દિવસ દુધ-ચોખા-સાકરની ખીર અથવા દુધ-પૌવા ખાવુ. ગળ્યુ દુધ એ વકરેલા પિત્તનુ જાની દુશ્મન છે.

આ હેતુથી જ શ્રાદ્ધપક્ષમાં ખીર બનાવવાનુ આયોજન થયુ હતુ.

૩) જેની છાલ પર કથ્થાઇ/કાળા ડાઘ હોય એવા પાકલ કેળાને છુંદીને એમા સાકર ઉમેરી બપોરે જમવા સાથે ખાવા. જો ઇચ્છા હોય તો ઘી પણ ઉમેરવુ. પણ કેળા સાથે ઘી પાચનમા ભારે થાય. એટલે જો ઘી ઉમેરો, તો પછી બે-ત્રણ એલચી વાટીને ઉમેરી દેવી. પાચન સહેલુ થાશે. એવુ કોઇક જ હોય જેને સાકર-કેળા-ઘીનુ મિશ્રણ રોટલી સાથે ન ફાવે.

(જો ખીર અને કેળા – બન્નેનો પ્રયોગ કરવો હોય તો કેળા બપોરે અને ખીર સાંજે એમ ગોઠવવુ).

૪) ભુલેચુકે ખાટી છાશ ન જ પીવી. ખુબ વલોવેલી, સાવ મોળી છાશ લેવી હોય તો ક્યારેક લેવાય.

૫) ઠંડા પહોરે (વહેલી સવારે કે સાંજે) પરસેવો વળે એટલુ ચાલવુ. (ઠંડી અને ચાંદની રાતમાં રાસગરબા ના આયોજન પાછળનુ રહસ્ય આ જ હતુ – પરસેવો પડે)

આચાર્યોએ શરદને રોગોની માતા કહી છે – रोगाणाम् शारदी माता. એને ‘યમની દાઢ’ પણ કહી. આપણામા એક આશિર્વાદ પ્રચલીત હતો – शतम् जीव शरदः એટલે કે આવી સો શરદ સુખરુપ જીવી જાઓ એવી શુભેચ્છા આપવામા આવતી.
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राधा रानी के एक बार नाम लेने की कीमत..

एक बार एक व्यक्ति था। वह एक संत जी के पास गया। और कहता है की संत जी, मेरा एक बेटा है। वो न तो पूजा पाठ करता है और न ही भगवान का नाम लेता है। आप कुछ ऐसा कीजिये की उसका मन भगवान में लग जाये।

संत कहते है ठीक है बेटा एक दिन तू उसे मेरे पास लेकर आ जा।
अगले दिन वो व्यक्ति अपने बेटे को लेकर संत के पास गया। अब संत जी उसके बेटे से कहते है की- बेटा, बोल राधे राधे।

वो कहता है की मैं क्यू कहूँ?
संत कहते है बेटा बोल- राधे राधे।

वो इसी तरह से मना करता रहा और अंत में उसने कहा की मैं क्यू कहूँ राधे राधे।

संत जी ने कहा- जब तुम मर जाओगे और यमराज के पास जाओगे तब यमराज तुमसे पूछगे की कभी भगवान का नाम लिया कोई अच्छा काम किया। तब तुम कह देना की मैंने जीवन में एक बार श्री राधा रानी के नाम को बोला है। बस एक बार। इतना बताकर वह चले गए।

समय व्यतीत हुआ और एक दिन वो मर गया। यमराज के पास पहुंचा। यमराज ने पूछा-कभी कोई अच्छा काम किया है।
उसने कहा- हाँ महाराज, मैंने जीवन में एक बार श्री जी के , राधा जी के नाम को बोला है। आप उसकी महिमा बताइये।

यमराज सोचने लगा की एक बार नाम की महिमा क्या होगी? इसका तो मुझे भी नही पता है। यम बोले की चलो इंद्र के पास वो ही बतायेगे।
तो वो व्यक्ति बोला मैं ऐसे नही जाऊंगा पहले पालकी लेकर आओ उसमे बैठ कर जाऊंगा।

यमराज ने सोचा ये बड़ी मुसीबत है। फिर भी पालकी मंगवाई गई और उसे बिठाया। 4 कहार (पालकी उठाने वाले) लग गए। वो बोला यमराज जी सबसे आगे वाले कहार को हटा कर उसकी जगह आप लग जाइये।
यमराज जी ने ऐसा ही किया।

फिर सब मिलकर इंद के पास पहुंचे और बोले की एक बार श्री राधा रानी के नाम लेने की महिमा क्या है?
इंद्र बोले की महिमा तो बहुत है। पर क्या है ये मुझे भी नही मालूम। बोले की चलो ब्रह्मा जी को पता होगा वो ही बतायेगे।
वो व्यक्ति बोला इंद्र जी ऐसा है दूसरे कहार को हटा कर आप यमराज जी के साथ मेरी पालकी उठाइये।

अब एक ओर यमराज पालकी उठा रहे है। दूसरी तरफ इंद्र लगे हुए है। पहुंचे ब्रह्मा जी के पास। ब्रह्मा ने सोचा की ऐसा कौन सा प्राणी ब्रह्मलोक में आ रहा है की स्वयं इंद्र और यमराज पालकी उठा कर ला रहे है।

ब्रह्मा के पास पहुंचे। सभी ने पूछा की एक बार राधा रानी के नाम लेने की महिमा क्या है?

ब्रह्मा जी बोले की महिमा तो बहुत है पर वास्तविकता में क्या है ये मुझे भी नही पता। लेकिन हाँ भगवान शिव जी को जरूर पता होगा।
वो व्यक्ति बोला की तीसरे कहार को हटाइये और उसकी जगह ब्रह्मा जी आप लग जाइये।

अब क्या करते महिमा तो जाननी थी। पालकी की और और यमराज है, एक और इंद्र और पीछे ब्रह्मा जी है।

सब मिलकर भगवान शिव जी के पास गए। और भगवान शिव से पूछा की राधा जी के नाम की महिमा क्या है? केवल एक बार नाम लेने की महिमा आप कृपा करके बताइये।

भगवान शिव बोले की मुझे भी नही पता। लेकिन भगवान विष्णु जी को जरूर पता होगी।
वो व्यक्ति शिव जी से बोला की अब आप भी पालकी उठाने में लग जाइये। इस प्रकार ब्रह्मा, शिव , यमराज और इंद्र चारों उस व्यक्ति की पालकी उठाने में लग गए।

और विष्णु जी के लोक पहुंचे। और विष्णु से जी पूछा की एक बार राधा रानी के नाम लेने की महिमा क्या है।

विष्णु जी बोले अरे! जिसकी पालनी को स्वयं मृत्य का राजा यमराज, स्वर्ग का राजा इंद्र , ब्रह्म लोक के राजा ब्रह्मा और साक्षात भगवान शिव पालकी उठा रहे हो इससे बड़ी महिमा क्या होगी। जब आपने इसको पालकी में उठा ही लिया है। सिर्फ एक बार *राधा रानी” के नाम लेने के कारण तो अब ये मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गया है।

प्रेम से कहिये- श्री राधे!! श्री राधे!!

भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है की जो केवल ‘रा’ बोलते है तो मैं सब काम छोड़ कर खड़ा हो जाता हु। और जैसे ही कोई ‘धा’ शब्द का उच्चारण करता है मैं उसकी और दौड़ लगा कर उसे अपनी गोद में भर लेता हूँ ।

🌹 जय जय श्री राधे।। 🌹
🌹 जय जय श्री राधे।। 🌹
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