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गलती का एहसास


गलती का एहसास
एक दंपति का इकलौता पुत्र था। वह बड़ा हो गया, परंतु उसकी फिजूलखर्ची की आदत नहीं बदली। उसके पिता ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, परंतु पुत्र ने फिजूल खर्च करना बंद नहीं किया। एक दिन पिता ने अपने पुत्र को बड़े प्यार से समझाया, बेटे! तुम इतने सालों से मेरी मेहनत की कमाई को व्यर्थ ही गंवा रहे हो। मेरे बाद सारा धन और संपत्ति तुम्हारी ही होगी। परंतु उससे पहले तुम्हें यह साबित करना होगा कि तुम स्वयं भी धन कमा सकते हो।”
पुत्र ने पिता की यह चुनौती स्वीकार कर ली।
काफी कोशिशों के बाद पुत्र को एक जगह काम मिल गया। कंधे पर बोरी रखकर गोदाम में ले जाना बहुत मेहनत का काम था। उसे मजदूरी के बीस रुपये मिले। उसने घर जाकर वह रुपये अपने पिता को दे दिए। पिता ने बिना कुछ कहे वे रुपये घर के पीछे बने कुएं में डाल दिए। यह देखकर पुत्र को बड़ा दुख हुआ। अगले दिन पुत्र ने फिर बीस रुपये लाकर पिता को दिए। पिता ने उन्हें भी कुएं में डाल दिया। ऐसा लगभग एक सप्ताह तक चलता रहा। एक दिन पुत्र को गुस्सा आ गया। वह अपने पिता से बोला, “पिता जी! मैं पूरे दिन कड़ी मेहनत करके रुपये कमाता हूं और आप उन्हें कुएं में डाल देते हैं। शायद आपको नहीं पता कि ये रुपये मेरे लिए कितने कीमती हैं।” पिता मुस्कराते हुए पुत्र से बोले, “अब तुम्हें पता चला है कि मैं कैसा महसूस करता था, जब तुम मेरे गाढ़े खून- पसीने की कमाई को फिजूलखर्ची में उड़ा देते थे। लगता है, अब तुम्हें धन के महत्व का पता चल गया है।” यह सुनकर पुत्र को अपनी गलती का एहसास हुआ। फिर उसने भविष्य में कभी भी कमाए हुए धन को व्यर्थ नहीं गंवाया।

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