शिक्षक का पेशा कितना महान है, इसका उदाहरण मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी 👉बोध में पढ़ने को मिलेगा, इस कहानी के पात्र एक शिक्षक पंडित चंद्रधर अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं है तथा मन ही मन कुढते रहते हैं। उनके पड़ोसी ठाकुर अतिबल सिंह थानेदार है तथा उनके रौब के कारण उनके घर में हर तरह का ठाठ रहता है, साथ ही दूसरे पड़ोसी बैजनाथ तहसील में नायब तहसीलदार है उनका भी पूरे गांव में रौब है।यद्यपि चंद्रधर जी का वेतन इन दोनों के बराबर है परंतु पड़ोसियों की ऊपरी आय ज्यादा होने के कारण उनका शाही रहन सहन व पूरे गांव में इज्जत के कारण शिक्षक महोदय हमेशा मन मसोसकर रह जाते हैं। एक बार थानेदार साहब व नायब साहब दोनों अयोध्या की यात्रा का कार्यक्रम बनाते हैं तथा शिक्षक महोदय को अपने खर्चे पर तीर्थ यात्रा करने का प्रलोभन देकर सहयोग के लिए साथ में ले लेते हैं। जब ट्रेन में चढ़ते हैं तो थानेदार साहब का परिवार व नायब साहब का परिवार अलग अलग हो जाता है। थानेदार साहब के साथ शिक्षक महोदय रेल में चढ़ते हैं। वहां पर बहुत ज्यादा भीड़ तथा दो आदमी सीट पर सोए हुए थे जब थानेदार साहब ने एक आदमी को उठने को कहा तो उसने कहा कि मैं बिल्कुल नहीं उठूंगा तेरी थानेदारी झाड़नी है तो थाने में जा। तूने एक बार मेरे को झूठे मामले में फंसाया था तथा रिश्वत की राशि ले कर छोड़ा था ।अब तो खड़ा रह। दूसरे यात्री को सीट देने के लिए कहते हैं तो दूसरा यात्री भी थानेदार साहब को उलाहना देता है कि एक बार बिना फालतू आपने मुझे डंडे मारे थे आप तो खड़े रहिए। जैसे तैसे दूसरे स्टेशन तक यात्रा पूरी करते हैं जब स्टेशन आता है थानेदार सपरिवार नीचे उतरते हैं तो ट्रेन के दूसरे यात्री उनका सामान नीचे फेंक देते हैं।जैसे तैसे दूसरे डिब्बे में सवार होते है। दूसरी तरफ नायब तहसीलदार साहब रेल के दूसरे डिब्बे में शराब पीना शुरु कर देते हैं।दम घुटता है तथा उल्टी होना शुरू होती है तो लखनऊ से आगे उतर जाते हैं। अपने मित्र को उतरा हुआ देखकर थानेदार साहब भी उतर जाते हैं तथा शिक्षक महोदय भी साथ में उतर जाते हैं। वहां पर एक डॉक्टर के पास जाते हैं तो डॉक्टर पुराना परिचित निकलता है और नायब तहसीलदार साहब को कहता है कि एक बार आपने कचहरी में मेरे से रिश्वत की राशि ली थी अब आप को इलाज के लिए पहले फीस देनी होगी फिर आप का इलाज शुरू होगा। ऊंची फीस पर इलाज शुरू होता है चार-पांच दिन में सही होने पर जब अयोध्या पहुंचते हैं तो जगह नहीं मिलती है और खुले आसमान में परिवार सहित डेरा जमाते हैं। रात में बरसात शुरू हो जाती है उसी समय एक नौजवान लालटेन लिए हुए उधर से गुजरता है शिक्षक महोदय की आवाज सुन कर पास पहुंचता है तथा उनसे पूछता है कि आप शिक्षक चंद्रधर जी है क्या?जब शिक्षक महोदय पूछते हैं आप कौन हैं तब वह कहता है कि मैं पहली व दूसरी कक्षा में आपके पास पढ़ा हुआ हूं।मेरे पिताजी आपके गांव में नौकरी करते थे अब मैं अयोध्या में नगर पालिका में नौकरी कर रहा हूं। आप मेरे घर पधारिए जब शिक्षक चंद्रधर उनसे कहते हैं कि हम 10 से ज्यादा है तो वह कहता कोई बात नहीं मेरे पास एक अलग से मकान है। वहां आप सभी आराम से रहिएगा। वह उनको सादर घर ले जाता है। लजीज व्यंजन बनाकर भोजन करवाता है, तथा साथ में रहकर अयोध्या में प्रत्येक धाम का दर्शन करवाता है। कई दिनों बाद जब वह वापस रवाना होते हैं तब वह स्टेशन पहुंचाने आता है तथा सजल नेत्रों से पंडित जी के चरण छू कर प्रणाम करता है। शिक्षक चंद्रधर जी जब घर पहुंचते हैं तब उनके स्वभाव में बड़ा परिवर्तन हो जाता है। अब उनको अपने शिक्षक होने पर गर्व होता है तथा फिर कभी दूसरे विभाग में जाने की चेष्टा नहीं करते हैं…….
सबसे महान कार्य शिक्षा प्रदान करना है।
👉अपने शिक्षक होने पर गर्व कीजिए।मुझे भी एक शिक्षक होने पर गर्व होता है ईश्वर की कृपा से सब प्राप्त है।⚡