Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🌖हुवतो चिलकारो🌖

_*✍ 👉मनन करे 👇

आधुनिक सच

मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं
तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैं

सुबह आठ बजे नौकरियों
पर जाते हैं
रात ग्यारह तक ही वापिस आते हैं

अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
अकेले रह कर वह कैरियर बनाते हैं

कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं
भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं

मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते हैं
अपने नन्हे मुन्ने को पाल नहीं पाते हैं

फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते हैं
उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते हैं

परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है
केवल आया’आंटी’ को ही पहचानता है

दादा-दादी, नाना-नानी कौन होते है ?
अनजान है सबसे किसी को न मानता है

आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
टिफिन भी रोज़ रोज़ आया ही बनाती है

यूनिफार्म पहना के स्कूल कैब में बिठाती है
छुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है

नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है

उसे सुलाने में अक्सर वो भी सो जाती है
कभी जब मचलता है तो टीवी दिखाती है

जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है
देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता है

वीक एन्ड पर मॉल में पिकनिक मनाता है
संडे की छुट्टी मौम-डैड के संग बिताता है

वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है
वह स्कूल से निकल के कालेज में आता है

कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है
आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है

वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है

धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है
मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है

कुछ दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है
जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है

माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूट जाता है
बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है

बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं
जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं

क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं

हाथ पैर ढीले हो जाते, चलने में दुख पाते हैं
दाढ़-दाँत गिर जाते, मोटे चश्मे लग जाते हैं

कमर भी झुक जाती, कान नहीं सुन पाते हैं
वृद्धाश्रम में दाखिल हो, जिंदा ही मर जाते हैं :

सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।

बेटा एडिलेड में, बेटी है न्यूयार्क।
ब्राईट बच्चों के लिए, हुआ बुढ़ापा डार्क।

बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
चिता जलाने बाप की, गए पड़ोसी चार।

ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
दुनियां छोटी हो गई, रिश्ते हैं बीमार।

बूढ़ा-बूढ़ी आँख में, भरते खारा नीर।
हरिद्वार के घाट की, सिडनी में तकदीर।

तेरे डालर से भला, मेरा इक कलदार।
रूखी-सूखी में सुखी,
अपना घर संसार
🌹🌹शुभ संध्या 🌹🌹

Posted in श्री कृष्णा

[02/09, 3:43 p.m.] संस्कृति ईबुक्स: 1भगवान् श्री कृष्ण जी के 51 नाम और उन के अर्थ:…..

1 कृष्ण : सब को अपनी ओर आकर्षित करने वाला.।


2 गिरिधर: गिरी: पर्वत ,धर: धारण करने वाला। अर्थात गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले।


3 मुरलीधर: मुरली को धारण करने वाले।


4 पीताम्बर धारी: पीत :पिला, अम्बर:वस्त्र। जिस ने पिले वस्त्रों को धारण किया हुआ है।


5 मधुसूदन: मधु नामक दैत्य को मारने वाले।


6 यशोदा या देवकी नंदन: यशोदा और देवकी को खुश करने वाला पुत्र।


7 गोपाल: गौओं का या पृथ्वी का पालन करने वाला।


8 गोविन्द: गौओं का रक्षक।


9 आनंद कंद: आनंद की राशि देंने वाला।


10 कुञ्ज बिहारी: कुंज नामक गली में विहार करने वाला।


11 चक्रधारी: जिस ने सुदर्शन चक्र या ज्ञान चक्र या शक्ति चक्र को धारण किया हुआ है।


12 श्याम: सांवले रंग वाला।


13 माधव: माया के पति।


14 मुरारी: मुर नामक दैत्य के शत्रु।


15 असुरारी: असुरों के शत्रु।


16 बनवारी: वनो में विहार करने वाले।


17 मुकुंद: जिन के पास निधियाँ है।


18 योगीश्वर: योगियों के ईश्वर या मालिक।


19 गोपेश :गोपियों के मालिक।


20 हरि: दुःखों का हरण करने वाले।


21 मदन: सूंदर।


22 मनोहर: मन का हरण करने वाले।


23 मोहन: सम्मोहित करने वाले।


24 जगदीश: जगत के मालिक।


25 पालनहार: सब का पालन पोषण करने वाले।


26 कंसारी: कंस के शत्रु।


27 रुख्मीनि वलभ: रुक्मणी के पति ।


28 केशव: केशी नाम दैत्य को मारने वाले. या पानी के उपर निवास करने वाले या जिन के बाल सुंदर है।


29 वासुदेव:वसुदेव के पुत्र होने के कारन।


30 रणछोर:युद्ध भूमि स भागने वाले।


31 गुड़ाकेश: निद्रा को जितने वाले।


32 हृषिकेश: इन्द्रियों को जितने वाले।


33 सारथी: अर्जुन का रथ चलने के कारण।



35 पूर्ण परब्रह्म: :देवताओ के भी मालिक।


36 देवेश: देवों के भी ईश।


37 नाग नथिया: कलियाँ नाग को मारने के कारण।


38 वृष्णिपति: इस कुल में उतपन्न होने के कारण


39 यदुपति:यादवों के मालिक।


40 यदुवंशी: यदु वंश में अवतार धारण करने के कारण।


41 द्वारकाधीश:द्वारका नगरी के मालिक।


42 नागर:सुंदर।


43 छलिया: छल करने वाले।


44 मथुरा गोकुल वासी: इन स्थानों पर निवास करने के कारण।


45 रमण: सदा अपने आनंद में लीन रहने वाले।


46 दामोदर: पेट पर जिन के रस्सी बांध दी गयी थी।


47 अघहारी: पापों का हरण करने वाले।


48 सखा: अर्जुन और सुदामा के साथ मित्रता निभाने के कारण।


49 रास रचिया: रास रचाने के कारण।


50 अच्युत: जिस के धाम से कोई वापिस नही आता है।


51 नन्द लाला: नन्द के पुत्र होने के कारण।
🌺 ।। जय श्री कृष्णा ।।

” कृष्ण का मोबाइल “
📱
लगाया कभी…???

🌍(1) ” कृष्ण ” का नम्बर कभी ” एंगेज ” नही आता चाहे एक साथ लाखो करोड़ो लोग बात करे…🌍

🎧(2) ” कृष्ण ” का नम्बर कभी ” स्विच ओफ ” नही होता चाहे कितनी ही देर बात करे…🎤

🍒(3) ” कृष्ण ” का नम्बर कभी ” कवरेज छेत्र “के बाहर नही आता चाहे आप कही भी चले जाए । सब जगह इसका ‘ फुल नेटवर्क ‘ आता है…🍒

🙏(4) ” कृष्ण ” से कितनी भी बात कर ले आपकी बैटरी डिस्चार्ज नही होगी बल्कि जितनी बात करेंगे उतनी ही फुल चार्ज होगी…🙏

📱(5) ” कृष्ण ” से बात करने के लिए सब जगह रोमिग फ्री है ☎

” कृष्ण ” का नम्बर है…
“श्री कृष्ण: शरणं मम “

🌹🙏जय श्री कृष्ण🙏🌹
[02/09, 3:56 p.m.] संस्कृति ईबुक्स: कृष्ण जी के 108 नाम

1 अचला : भगवान।
2 अच्युत : अचूक प्रभु, या जिसने कभी भूल ना की हो।
3 अद्भुतह : अद्भुत प्रभु।
4 आदिदेव : देवताओं के स्वामी।
5 अदित्या : देवी अदिति के पुत्र।
6 अजंमा : जिनकी शक्ति असीम और अनंत हो।
7 अजया : जीवन और मृत्यु के विजेता।
8 अक्षरा : अविनाशी प्रभु।
9 अम्रुत : अमृत जैसा स्वरूप वाले।
10 अनादिह : सर्वप्रथम हैं जो।
11 आनंद सागर : कृपा करने वाले
12 अनंता : अंतहीन देव
13 अनंतजित : हमेशा विजयी होने वाले।
14 अनया : जिनका कोई स्वामी न हो।
15 अनिरुध्दा : जिनका अवरोध न किया जा सके।
16 अपराजीत : जिन्हें हराया न जा सके।
17 अव्युक्ता : माणभ की तरह स्पष्ट।
18 बालगोपाल : भगवान कृष्ण का बाल रूप।
19 बलि : सर्व शक्तिमान।
20 चतुर्भुज : चार भुजाओं वाले प्रभु।
21 दानवेंद्रो : वरदान देने वाले।
22 दयालु : करुणा के भंडार।
23 दयानिधि : सब पर दया करने वाले।
24 देवाधिदेव : देवों के देव
25 देवकीनंदन : देवकी के लाल (पुत्र)।
26 देवेश : ईश्वरों के भी ईश्वर
27 धर्माध्यक्ष : धर्म के स्वामी
28 द्वारकाधीश : द्वारका के अधिपति।
29 गोपाल : ग्वालों के साथ खेलने वाले।
30 गोपालप्रिया : ग्वालों के प्रिय
31 गोविंदा : गाय, प्रकृति, भूमि को चाहने वाले।
32 ज्ञानेश्वर : ज्ञान के भगवान
33 हरि : प्रकृति के देवता।
34 हिरंयगर्भा : सबसे शक्तिशाली प्रजापति।
35 ऋषिकेश : सभी इंद्रियों के दाता।
36 जगद्गुरु : ब्रह्मांड के गुरु
37 जगदिशा : सभी के रक्षक
38 जगन्नाथ : ब्रह्मांड के ईश्वर।
39 जनार्धना : सभी को वरदान देने वाले।
40 जयंतह : सभी दुश्मनों को पराजित करने वाले।
41 ज्योतिरादित्या : जिनमें सूर्य की चमक है।
42 कमलनाथ : देवी लक्ष्मी की प्रभु
43 कमलनयन : जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
44 कामसांतक : कंस का वध करने वाले।
45 कंजलोचन : जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
46 केशव :
47 कृष्ण : सांवले रंग वाले।
48 लक्ष्मीकांत : देवी लक्ष्मी की प्रभु।
49 लोकाध्यक्ष : तीनों लोक के स्वामी।
50 मदन : प्रेम के प्रतीक।
51 माधव : ज्ञान के भंडार।
52 मधुसूदन : मधु- दानवों का वध करने वाले।
53 महेंद्र : इन्द्र के स्वामी।
54 मनमोहन : सबका मन मोह लेने वाले।
55 मनोहर : बहुत ही सुंदर रूप रंग वाले प्रभु।
56 मयूर : मुकुट पर मोर- पंख धारण करने वाले भगवान।
57 मोहन : सभी को आकर्षित करने वाले।
58 मुरली : बांसुरी बजाने वाले प्रभु।
59 मुरलीधर : मुरली धारण करने वाले।
60 मुरलीमनोहर : मुरली बजाकर मोहने वाले।
61 नंद्गोपाल : नंद बाबा के पुत्र।
62 नारायन : सबको शरण में लेने वाले।
63 निरंजन : सर्वोत्तम।
64 निर्गुण : जिनमें कोई अवगुण नहीं।
65 पद्महस्ता : जिनके कमल की तरह हाथ हैं।
66 पद्मनाभ : जिनकी कमल के आकार की नाभि हो।
67 परब्रह्मन : परम सत्य।
68 परमात्मा : सभी प्राणियों के प्रभु।
69 परमपुरुष : श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले।
70 पार्थसार्थी : अर्जुन के सारथी।
71 प्रजापती : सभी प्राणियों के नाथ।
72 पुंण्य : निर्मल व्यक्तित्व।
73 पुर्शोत्तम : उत्तम पुरुष।
74 रविलोचन : सूर्य जिनका नेत्र है।
75 सहस्राकाश : हजार आंख वाले प्रभु।
76 सहस्रजित : हजारों को जीतने वाले।
77 सहस्रपात : जिनके हजारों पैर हों।
78 साक्षी : समस्त देवों के गवाह।
79 सनातन : जिनका कभी अंत न हो।
80 सर्वजन : सब- कुछ जानने वाले।
81 सर्वपालक : सभी का पालन करने वाले।
82 सर्वेश्वर : समस्त देवों से ऊंचे।
83 सत्यवचन : सत्य कहने वाले।
84 सत्यव्त : श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले देव।
85 शंतह : शांत भाव वाले।
86 श्रेष्ट : महान।
87 श्रीकांत : अद्भुत सौंदर्य के स्वामी।
88 श्याम : जिनका रंग सांवला हो।
89 श्यामसुंदर : सांवले रंग में भी सुंदर दिखने वाले।
90 सुदर्शन : रूपवान।
91 सुमेध : सर्वज्ञानी।
92 सुरेशम : सभी जीव- जंतुओं के देव।
93 स्वर्गपति : स्वर्ग के राजा।
94 त्रिविक्रमा : तीनों लोकों के विजेता
95 उपेंद्र : इन्द्र के भाई।
96 वैकुंठनाथ : स्वर्ग के रहने वाले।
97 वर्धमानह : जिनका कोई आकार न हो।
98 वासुदेव : सभी जगह विद्यमान रहने वाले।
99 विष्णु : भगवान विष्णु के स्वरूप।
100 विश्वदक्शिनह : निपुण और कुशल।
101 विश्वकर्मा : ब्रह्मांड के निर्माता
102 विश्वमूर्ति : पूरे ब्रह्मांड का रूप।
103 विश्वरुपा : ब्रह्मांड- हित के लिए रूप धारण करने वाले।
104 विश्वात्मा : ब्रह्मांड की आत्मा।
105 वृषपर्व : धर्म के भगवान।
106 यदवेंद्रा : यादव वंश के मुखिया।
107 योगि : प्रमुख गुरु।
108 योगिनाम्पति : योगियों के स्वामी।

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लाल बहादुर शास्त्री


ईमानदारी की मिसाल थे- लाल बहादुर शास्त्री

उन्होंने माँ को नहीं बताया था कि वो रेलमंत्री हैं।

कहा था, ”मैं रेलवे में नौकरी करता हूँ।”

वो एक बार मुगलसराय मे आए थे जब उनकी माँ भी वहाँ पूछते पूछते पहुँची कि मेरा बेटा भी आया हैं वो भी रेलवे में हैं।

लोगों ने पूँछा क्या नाम है तो उन्होंने जब नाम बताया तो सब चौक गए बोले, ”ये झूठ बोल रही है।”

पर वो बोली, ”नहीं वो आए है।”

लोगो ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री के सामने ले जाकर पूँछा, ”क्या वहीं हैं ?”

तो माँ बोली, ”हाँ, वो मेरा बेटा है।”

लोग, मंत्री जी से दिखा कर बोले, ”वो आपकी माँ है।”

तो उन्होंने अपनी माँ को बुला कर पास बैठाया और कुछ देर बाद घर भेज दिया।

तो पत्रकारों ने पूँछा, ”आप ने, उनके सामने भाषण क्यों नहीं दिया।”

”मेरी माँ को नहीं पता कि मैं मंत्री हूँ। अगर उन्हें पता चल जाय तो लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाऊँगा। …… ……. और उन्हें अहंकार भी हो जाएगा।”

जवाब सुन कर, सब सन्न रह गए।

सैल्युट है माँ भारती के ऐसे महान नेता को!!
अच्छा लगा हो तो #share करें!! जय हिन्द !!

Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

भगवान कृष्ण की बाल लीला,,,,,,


भगवान कृष्ण की बाल लीला,,,,,,

Sanjay Gupta

ऐसा कोन होगा जिसने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला को नहीं सुना होगा और बाल लीला में विशेषकर माखन चोरी लीला। माखन चोरी लीला भगवान ने इसलिए की क्योकि गोपियाँ भगवान से प्रेम करती थी। और भगवान अपनी लीला के माध्यम से उन्हें प्रेम देना चाहते थे।

और वास्तव में भगवान माखन चोर नहीं है वो तो चित-चोर है। एक बार जो उनकी लीला को सुन लेगा- देख लेगा फिर उसे संसार से क्या मतलब? भगवान ब्रज में नित्य ऐसी लीला करते रहते थे। एक बड़ी सुन्दर लीला आप पढ़िए और सिर्फ पढ़िए नहीं मन की आँखों से थोड़ा दर्शन कीजिये, मेरे गुरुदेव कहते है की चिंतन कीजिये-

एक बार की बात है भगवान अपनी टोली के साथ तैयार हुए। भगवान के मित्र बने है सुबल, मंगल, सुमंगल, श्रीदामा, तोसन, आदि। भगवान सोच रहे है की आज किसके घर माखन चोरी की जाये। याद आया की “चिकसोले वाली” गोपी के घर चलते है। भगवान पहुंच गए सुबह सुबह और जोर से दरवाजा खटखटाने लगे। गोपी ने दरवाजा खोला। तो श्रीकृष्ण को खड़े देखा। बाल बिखेर रखे थे, मुह पर उबासी थी। गोपी बोली – ‘अरे लाला! आज सुबह-सुबह यहाँ कैसे?

कन्हैया बोले – ‘गोपी क्या बताऊँ! आज सुबह उठते ही, मैया ने कहा लाला तू चिकसोले वाली गोपी के घर चले जाओ और उससे कहना आज हमारे घर में संत आ गए है मैंने तो ताजा माखन निकला नहीं, चिकसोले वाली गोपी तो भोर में उठ जावे है।ताजो माखन निकल लेवे है। तू उनसे जाकर माखन ले आ। और कहना कि एक मटकी माखन दे दो, बदले में दो मटकी माखन लौटा दूँगी।

गोपी बोली – लाला! मै अभी माखन की मटकी लाती हूँ और मैया से कह देना कि लौटने की जरुरत नहीं है संतो की सेवा मेरी तरफ से हो जायेगी ।झट गोपी अंदर गयी और माखन की मटकी लाई और बोली – लाला ये माखन लो और ये मिश्री भी ले जाओ। कन्हैया माखन लेकर बाहर आ गए और गोपी ने दरवाजा बंद कर लिया।

अब भगवान ने अपने सभी दोस्तों को बुलाया है और कहते है आओ आओ श्रीदामा, मंगल, सुबल, जल्दी आओ, सब-के-सब झट से बाहर आ गए भगवान बोले,” जिसके यहाँ चोरी की हो उसके दरवाजे पर बैठकर खाने में ही आनंद आता है, और वो चोरी भी नहीं कहलाती है।” झट सभी गोपी के दरवाजे के बाहर बैठ गए, भगवान ने सबकी पत्तल पर माखन और मिश्री रख दी। और बीच में स्वयं बैठ गए। सभी सखा माखन और मिश्री खाने लगे।

माखन के खाने से होंठो की पट पट और मिश्री के खाने से दाँतो के कट-कट की आवाज जब गोपी ने सुनी तो सोचा ये आवाज कहाँ से आ रही है , कोई बंदर तो घर में नही आ गयो है।

जैसे ही उसने दरवाजा खोला तो सारे मित्रों के साथ श्रीकृष्ण बैठे माखन खा रहे थे। गोपी बोली – ‘क्यों रे कन्हैया! माखन संतो को चाहिए था या इन संड-भुसंडान को।

भगवान बोले देख गोपी गाली मत दीजो। ये भी संत है, साधु है। और तो और नागा साधु है किसी के तन पर कोई वस्त्र तक नहीं है।
तुझे तो इनको प्रणाम करना चाहिए और वो भी दंडवत(लेट कर)। गोपी बोली अच्छा अभी दण्डोत करती हूँ। एक डंडा ले आउ फिर अच्छे से डंडे से दण्डोत करुँगी।

भगवान बोले सबको बेटा माखन बहुत खा लिए है अब पीटने का नंबर है। भागो सभी अपने-अपने घर को। इस प्रकार भगवान ब्रज में सुन्दर लीला कर रहे है और सबको अपने रूप मधुर से सराबोर कर रहे है।

भगवान पूरी मण्डली के साथ माखन चुराने जाते थे। एक बार गोपियों ने आपस में कहा की कुछ ऐसा इंतजाम करते है की इसे माखन चुराते हुए पकड़ ले। सबने मीटिंग की है।

एक गोपी ने एक तरकीब लगायी गोपी ने माखन निकला और छीके पर टांग दिया और साथ में एक घंटी बांध दी कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन चुराने आयेगे तो घंटी बज पड़ेगी और मैं रंगे हाथों कान्हा को पकड़ लूँगी।

कुछ देर बाद बाल कृष्ण अपने सखाओ के साथ गोपी के घर माखन चुराने आये, तभी श्रीदामा जी ने कहा – कान्हा देखो, गोपी ने तो मटकी में घंटी बांध दी है अगर माखन कि मटकी को हाथ लगायेगे तो घंटी बज जायगी और गोपी हमे पकड़ लेगी।

बाल कृष्ण ने कहा – गोपी हमें नहीं पकडेगी। फिर बाल कृष्ण ने घंटी से कहा – देखो घंटी! हम सब माखन चुरायेगे पर तुम बजना मत।

घंटी बोली – ठीक है प्रभु! नहीं बजुगी।

अब भगवान ने झट से श्री दामा जी के कंधे पर चढ गए और माखन कि मटकी में से माखन निकाला, और एक-एक करके सभी सखाओं को खिलाने लगे अंत में बाल कृष्ण ने जैसे ही स्वयं माखन खाया, त्यों ही घंटी बजने लगी।

घंटी कि आवाज सुनते ही गोपी आ गई। सारे सखा तो भाग गए पर झट गोपी ने कान्हा को पकड़ लिया और बोली – आज तो रंगे हाथ पकडे गए।

कान्हा ने कहा – रुको गोपी! पहले मुझे इस घंटी से बात करने दो तुमसे बात में बात करूँगा फिर तुमसे बात करूँगा।

भगवान ने कहा – क्यों री घंटी ! तूने मेरी बात क्यों नहीं मानी? मैंने कहा था कि बजना मत।

घंटी बोली – प्रभु ! इसमें मेरा दोष नहीं है देखो जब तक आपके सखाओं ने माखन खाया तब तक में नहीं बजी लेकिन जैसे ही आपने माखन खाया तो में बज उठी। क्योकि मंदिर में जब पुजारी जी आपको भोग लगाते है तो घंटी बजाते है। इसलिए इसलिए मुझे बजना पड़ा ।

गोपी ने कहा – कान्हा आज बड़े दिनों के बाद हाथ लगे हो, झट गोपी ने एक रस्सी उठाई और बाल कृष्ण को बाँधने लगी। जैसे ही कलाई में रस्सी लपेटती तुरंत फिसल जाती क्योकि बड़े कोमल बाल कृष्ण है और हाथो में माखन भी लगा हुआ है। गोपी फिर लपेटती फिर रस्सी फिसल जाती।

बाल कृष्ण बोले – अरे गोपी तुझे तो बांधना भी नही आता। मै बताता हूँ। झट बाल कृष्ण ने रस्सी गोपी के हाथ से ली और गोपी के ही हाथ में लपेटने लगे देख गोपी ऐसे एक लपेटा फिर कस के गाँठ लगा।

गोपी – हाँ ठीक है लाला! मै समझ गई।
कान्हा – अरे! अभी कैसे समझ गई, एक गाँठ से क्या होगा एक गाँठ तो मै खोलकर भाग जाऊँगा , देखो गोपी फिर दूसरी गाँठ इस तरह से कस के लगाना।

गोपी – हाँ हाँ लाला ! में समझ गई अब खोल दो।

कान्हा – क्या कहा गोपी खोल दो ! मै काय खोलू, खोलेगो तेरो खसम! और ठेंगा दिखाकर भाग जाते है।

बहुत प्यारी बाल लीला कर रहे है भगवान। और गोपियों को, ब्रजवासियों को आनंद ही आनंद प्रदान कर रहे है।

बोलिए माखन चोर भगवान की जय।

Posted in मंत्र और स्तोत्र

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं
अनङ्गरङ्गसागरं नमामि कृष्णनागरम् II १ II
व्रज-भूमिके एकमात्र आभूषण, समस्त पापोंको नष्ट करनेवाले तथा अपने भक्तोंके चित्तोंको आनन्दित करनेवाले नन्दनन्दनको सर्वदा भजता हूँ, जिनके मस्तकपर मनोहर मोर-पङ्खका मुकुट है, हाथोंमें सुरीली बाँसुरी है तथा जो काम-कलाके सागर हैं, उन नटनागर श्रीकृष्णचन्द्रको नमस्कार करता हूँ ।

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् II २ II
कामदेवका मान मर्दन करनेवाले, बड़े-बड़े सुन्दर नेत्रोंवाले तथा व्रजगोपोंका शोक हरनेवाले कमलनयन भगवान् को नमस्कार करता हूँ, जिन्होंने अपने करकमलोंपर गिरिराजको धारण किया था तथा जिनकी मुसकान और चितवन अति मनोहर है, देवराज इन्द्रका मान मर्दन करनेवाले उन श्रीकृष्णरूपी गजराजको नमस्कार करता हूँ ।

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारूगण्डमण्डलं
व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम् ।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् II ३ II
जिनके कानोंमें कदम्बपुष्पोंके कुण्डल हैं, परम सुन्दर कपोल हैं तथा व्रजवालाओंके जो एकमात्र प्राणाधार हैं, उन दुर्लभ कृष्णचन्द्रको नमस्कार करता हूँ, जो गोपगण और नन्दजीके सहित अतिप्रसन्ना यशोदाजीसे युक्त हैं और एकमात्र आनन्ददायक हैं, उन गोपनायक गोपालको नमस्कार करता हूँ ।

सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं
दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम् ।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् II ४ II
जिन्होंने अपने चरणकमलोंको मेरे मनरूपी सरोवरमें स्थापित कर रखा है, उन अति सुन्दर अलकोंवाले, नन्दकुमारको नमस्कार करता हूँ तथा समस्त दोषोंको दूर करनेवाले, समस्त लोकोंको पालन करनेवाले और समस्त व्रजगोपोंके हृदय तथा नन्दजीकी लालसारूप श्रीकृष्णचन्द्रको नमस्कार करता हूँ ।

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ।
दृगन्तकान्तभङ्गिनं सदासदालसङ्गिनं
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम् II ५ II
भूमिका भार उतरनेवाले संसारसागरके कर्णधार मनोहर यशोदाकुमारको नमस्कार करता हूँ, अति कमनीय कटाक्षवाले, सदैव सुन्दर भूषण धारण करनेवाले नित्य नूतन नन्दकुमारको नमस्कार करता हूँ ।

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ।
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलम्पटं
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम् II ६ II
गुणोंके भण्डार, सुखसागर, कृपानिधान और कृपालु गोपालको, जो देव-शत्रुओंको ध्वंस करनेवाले हैं, नमस्कार करता हूँ, नित्य नूतन लीलाविहारी, मेघश्याम नटनागर गोपालको, जो बिजलीकी-सी आभावाला अति सुन्दर पीताम्बर धारण किये हुए हैं, नमस्कार करता हूँ ।

समस्तगोपनन्दनं हृदम्बुजैकमोदनं
नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् ।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं
रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकम् II ७ II
जो समस्त गोपोंको आनन्दित करनेवाले और हृदयकमलको विकसित करनेवाले, देदीप्यमान सूर्यके समान शोभायमान हैं, उन कुञ्जमध्यवर्ति श्यामसुन्दरको नमस्कार करता हूँ । जो कामनाओंको भलीभाँति पूर्ण करनेवाले हैं, जिनकी चारु चितवन बाणोंके समान है, सुमधुर वेणु बजाकर गान करनेवाले उन कुञ्जनायकको नमस्कार करता हूँ ।

विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं
नमामि कुञ्जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम् ।
किशोरकान्ति रञ्जितं दृगञ्जनं सुशोभितं
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम् II 8 II
चतुर गोपिकाओंके मनरूपी सुकोमल शय्यापर शयन करनेवाले तथा कुञ्जवनमें बढती हुई दावाग्निको पान कर जानेवाले, किशोरावस्थाकी कान्तिसे सुशोभित अञ्जनयुक्त सुन्दर नेत्रोंवाले, गजेन्द्रको ग्राह्से मुक्त करनेवाले, श्रीजीके साथ विहार करनेवाले श्रीकृष्णचन्द्रको नमस्कार करता हूँ ।

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् ।
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान् II ९ II
प्रभो ! मेरे ऊपर ऐसी कृपा हो कि जब-तब जैसी भी परोस्थितिमें रहूँ, सदा आपकी सत्कथाओंका गान करूँ । जो पुरुष इन दोनों प्रामाणिक अष्टकोंका पाठ या जप करेगा वह जन्म-जन्ममें नन्दनन्दन श्यामसुन्दरकी भक्तिसे युक्त होगा ।
श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं श्रीकृष्णाष्टकं सम्पूर्णम् ।
(“स्तोत्ररत्नावली” पुस्तकसे : गीताप्रेस, गोरखपुर)

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प्रेम से भरी ओढ़नी


प्रेम से भरी ओढ़नी

Sanjay Gupta ))))
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वृंदावन के पास एक गाँव में भोली-भाली माई ‘पंजीरी’ रहती थी।
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दूध बेच कर वह अपनी जीवन नैया चलाती थी। वह मदनमोहन जी की अनन्य भक्त थी।
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ठाकुर मदनमोहन लाल भी उससे बहुत प्रसन्न रहते थे। वे उसे स्वप्न में दर्शन देते और उससे कभी कुछ खाने को माँगते, कभी कुछ। पंजीरी उसी दिन ही उन्हें वह चीज बनाकर भेंट करती,
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वह उनकी दूध की सेवा नित्य करती थी, सबसे पहले उनके लिए प्रसाद निकालती, रोज उनके दर्शन करने जाती और दूध दे आती।
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लेकिन गरीब पंजीरी को चढ़ावे के बाद बचे दूध से इतने पैसे भी नहीं मिलते थे कि दो वक्त का खाना भी खा पाये, अतः कभी कभी मंदिर जाते समय यमुना जी से थोड़ा सा जल दूध में मिला लेती।
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फिर लौटकर अपने प्रभु की अराधना में मस्त होकर बाकी समय अपनी कुटिया में बाल गोपाल के भजन कीर्तन करके बिताती।
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कृष्ण कन्हैया तो अपने भक्तों की टोह में रहते ही हैं, नित नई लीला करते हैं।
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एक दिन पंजीरी के सुंदर जीवन क्रम में भी रोड़ा आ गया। जल के साथ-साथ एक छोटी सी मछली भी दूध में आ गई और मदनमोहन जी के चढ़ावे में चली गई।
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दूध डालते समय मंदिर के गोसाईं की दृष्टि पड़ गई। गोसाईं जी को बहुत गुस्सा आया, उन्होंने दूध वापस कर दिया,
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पंजीरी को खूब डाँटा फटकारा और मंदिर में उस का प्रवेश निषेध कर दिया।
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पंजीरी पर तो आसमान टूट पड़ा। रोती-बिलखती घर पहुँची-ठाकुर; मुझसे बड़ा अपराध हो गया, क्षमा करो, पानी तो रोज मिलाती हूँ, तुमसे कहाँ छिपा है,
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ना मिलाओ तो गुजारा कैसे हो ? और उस बेचारी मछली का भी क्या दोष ? उस पर तो तुम्हारी कृपा हुई तो तुम्हारे पास तक पहुँची।
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लेकिन प्रभु, तुमने तो आज तक कोई आपत्ति नहीं की, प्रेम से दूध पीते रहे, फिर ये गोसाईं कौन होता है मुझे रोकने वाला।
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और मुझे ज़्यादा दुख इसलिए है कि तुम्हारे मंदिर के गोसाईं ने मुझे इतनी खरी खोटी सुनाई और तुम कुछ नहीं बोले।
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ठाकुर, यही मेरा अपराध है तो मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि तुम अगर रूठे रहोगे, मेरा चढ़ावा स्वीकार नहीं करोगे तो मैं भी अन्न-जल ग्रहण नहीं करुंगी,
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यहीं प्राण त्याग दूंगी। भूखी प्यासी, रोते रोते शाम हो गई।
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तभी पंजीरी के कानों में एक मधुर कंठ सुनाई दिया- माई ओ माई, उठी तो दरवाजे पर देखा कि एक सुदर्शन किंतु थका-हारा सा एक किशोर कुटिया में झाँक रहा है।
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कौन हो बेटा…???
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मैया, बृजवासी ही हूँ, मदन मोहन के दर्शन करने आया हूँ। बड़ी भूख लगी है कुछ खाने का मिल जाए तो तुम्हारा बड़ा आभारी रहूँगा।
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पंजीरी के शरीर में ममता की लहर दौड़ गई। कोई पूछने की बात है बेटा, घर तुम्हारा है।
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ना जाने तुम कौन हो जिसने आते ही मुझ पर ऐसा जादू बिखेर दिया है।
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बड़ी दूर से आए हो क्या ? क्या खाओगे ? अभी जल्दी से बना दूँगी।
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अरे मैया, इस समय क्या रसोई बनाओगी, थोड़ा सा दूध दे दो वही पी कर सो जाउँगा।
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दूध की बात सुनते ही पंजीरी की आँखें डबडबा आयीं, फिर अपने आप को सँभालते हुए बोली-
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बेटा, दूध तो है पर सवेरे का है, जरा ठहरो अभी गैया को सहला कर थोड़ा ताजा दूध दुह लेती हूँ।
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अरे नहीं मैया, उसमें समय लगेगा। सवेरे का भूखा प्यासा हूँ, दूध का नाम लेकर तूने मुझे अधीर बना दिया है,
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अरे वही सुबह का दे दो, तुम बाद में दुहती रहना।
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डबडबायी आँखों से बोली… थोड़ा पानी मिला हुआ दूध है।
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अरे मैया तुम मुझे भूखा मारोगी क्या ? जल्दी से दूध छान कर दे दो वरना मैं यहीं प्राण छोड़ दूंगा।
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पंजीरी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये बालक कैसी बात कर रहा है, दौड़ी-दौड़ी गई और झटपट दूध दे दिया।
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दूध पीकर बालक का चेहरा खिल उठा।
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मैया, कितना स्वादिष्ट दूध है। तू तो यूँ ही ना जाने क्या-क्या बहाने बना रही थी,
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अब तो मेरी आँखों में नींद भर आई है, अब मैं सो रहा हूँ, इतना कहकर वो वहीं सो गया।
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पंजीरी को फ़ुरसत हो गई तो दिन भर की थकान, दुख और अवसाद ने उसे फिर घेर लिया।
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जाड़े के दिन थे ,भूखे पेट उसकी आँखों में नींद कहाँ से आती। जाडा़ बढ़ने लगा तो अपनी ओढ़नी बालक को ओढ़ा दी।
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दूसरे प्रहर जो आँख लगी कि ठाकुर श्री मदन मोहन लाल जी को सम्मुख खड़ा पाया।
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ठाकुर जी बोले, मैया, मुझे भूखा मारेगी क्या ? गोसाईं की बात का बुरा मान कर रूठ गयी।
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खुद पेट में अन्न का एक दाना तक न डाला और मुझे दूध पीने को कह रही है।
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मैंने तो आज तेरे घर आकर दूध पी लिया अब तू भी अपना व्रत तोड़ कर कुछ खा पी ले और देख,
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मैं रोज़ तेरे दूध की प्रतीक्षा में व्याकुल रहता हूँ, मुझे उसी से तृप्ति मिलती है। अपना नियम कभी मत तोड़ना।
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गोसाईं भी अब तेरे को कुछ ना कहेंगे। दूध में पानी मिलाती हो, तो क्या हुआ ? उससे तो दूध जल्दी हज़म हो जाता है। अब उठो और भोजन करो।
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पंजीरी हड़बड़ाकर उठी, देखा कि बालक तो कुटिया में कहीं नहीं था।
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सचमुच लाला ही कुटिया में पधारे थे। पंजीरी का रोम-रोम हर्षोल्लास का सागर बन गया।
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झटपट दो टिक्कड़ बनाए और मदन मोहन को भोग लगाकर आनंदपूर्वक खाने लगी। उसकी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी।
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थोड़ी देर में सवेरा हो गया पंजीरी ने देखा कि ठाकुर जी उसकी ओढ़नी ले गये हैं और अपना पीतांबर कुटिया में ही छोड़ गए हैं।
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इधर मंदिर के पट खुलते ही गोसाईं ने ठाकुर जी को देखा तो पाया की प्रभु एक फटी पुरानी सी ओढ़नी ओढ़े आनंद के सागर में डूबे हैं।
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उसने सोचा कि प्रभु ने अवश्य फिर कोई लीला की है, लेकिन इसका रहस्य उसकी समझ से परे था।
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लीला-उद्घाटन के लिए पंजीरी दूध और ठाकुर जी का पीताम्बर लेकर मंदिर के द्वार पर पहुँची और बोली,
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गुसाईं जी, देखो तो लाला को, पीतांबर मेरे घर छोड़ आये और मेरी फटी ओढ़नी ले आये।
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कल सवेरे आपने मुझे भगा दिया था, लेकिन भूखा प्यासा मेरा लाला दूध के लिये मेरी कुटिया पर आ गया।
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गोसाईं जी पंजीरी के सामने बैठ गए।
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भक्त और भगवान के बीच मैंने क्या कर डाला, भक्ति बंधन को ठेस पहुंचा कर मैंने कितना बड़ा अपराध कर डाला, माई, मुझे क्षमा कर दो।
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पंजीरी बोली.. गुसाई जी, देखी तुमने लाला की चतुराई, अपना पीतांबर मेरी कुटिया मे जानबूझकर छोड़ दिया और मेरी फटी-चिथड़ी ओढ़नी उठा लाये।
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भक्तों के सम्मान की रक्षा करना तो इनकी पुरानी आदत है।”
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ठाकुर धीरे-धीरे मुस्कुरा रहे थे, अरे मैया तू क्या जाने कि तेरे प्रेम से भरी ओढ़नी ओड़ने में जो सुख है वो पीतांबर में कहाँ..!!

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56 (छप्पन) भोग क्यों लगाते है…


56 (छप्पन) भोग क्यों लगाते है…

Dev Sharma
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भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है |
इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे
छप्पन भोग कहा जाता है |

यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी,पापड़ आदि से होते हुए
इलायची पर जाकर खत्म होता है |
अष्ट पहर भोजन करने
वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले
छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं |
ऐसा भी कहा जाता है कि यशोदाजी बालकृष्ण
को एक दिन में अष्ट पहर भोजन कराती थी |
अर्थात्…बालकृष्ण आठ बार भोजन करते थे |
जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए
भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत
को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक
भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया |
आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र
की वर्षा बंद हो गई है, सभी व्रजवासियो को
गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा,
तब दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के
नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और मया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ. भगवान के प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा
भक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56
व्यंजनो का भोग बालकृष्ण को लगाया |
गोपिकाओं ने भेंट किए छप्पन भोग…
श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह
तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया,
अपितु कुलदेवी जगदम्बा कात्यायनी मां की अर्चना भी इस
मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप
में प्राप्त हों | श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी | व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के
उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन
भोग का आयोजन किया |छप्पन भोग हैं छप्पन सखियां…ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान
श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर
विराजते हैं |उस कमल की तीन परतें होती हैं…
प्रथम परत में “आठ”,दूसरी में “सोलह”और
तीसरी में “बत्तीस पंखुड़िया” होती हैं |
प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में
भगवान विराजते हैं |इस तरह कुल पंखुड़ियों
संख्या छप्पन होती है | 56 संख्या का यही अर्थ है |

छप्पन भोग इस प्रकार है
1. भक्त (भात),
2. सूप्पिका (दाल),
3. प्रलेह (चटनी),
4. सदिका (कढ़ी),
5. दधिशाकजा (दही
शाक की कढ़ी),
6. सिखरिणी (श्रीखंड),
7. अवलेह (चटनिया ),
8. बालका (बाटी),
9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),
10. त्रिकोण (शरक्करपारा),
11. बटक (बड़ा),
12. मधु शीर्षक (मख्खन बडा),
13. फेणिका (फेनी),
14. परिष्टïश्च (पूरी),
15. शतपत्र (खाजा),
16. सधिद्रक (घेवर),
17. चक्राम (मालपुआ),
18. चिल्डिका (चिलडे ),
19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),
20. धृतपूर (मेसूर पाक ),
21. वायुपूर (रसगुल्ला),
22. चन्द्रकला (चांदी की बरक वाली मिठाई ),
23. दधि (महारायता),
24. स्थूली (थूली),
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी),
26. खंड मंडल (खुरमा),
27. गोधूम (दलिया),
28. परिखा, ( रोट )
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त),
30. दधिरूप (फलो से बना रायता ),
31. मोदक (लड्डू),
32. शाक (साग),
33. सौधान (अधानौ अचार),
34. मंडका (मोठ),
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही),
37. गोघृत,
38. हैयंगपीनम (मक्खन),
39. मंडूरी (मलाई),
40. कूपिका (रबड़ी)
41. पर्पट (पापड़),
42. शक्तिका (बादाम का सीरा),

  1. लसिका (लस्सी),
  2. सुवत,( शरबत)
  3. संघाय (मोहन),
  4. सुफला (सुपारी),
  5. सिता (इलायची),
  6. फल,
  7. तांबूल, (पान)
  8. मोहन भोग, (मूंग दाल की चक्कि)
  9. लवण, (नमकीन व्यंजन)

🌼मुखवास🌼
52. कषाय, (आंवला )
53. मधुर, ( गुलुकंद)
54. तिक्त, (अदरक )
55. कटु, (मैथी दाना )
56. अम्ल ( निम्बू )

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“वृंदावन रज का चमत्कार”

Jyoti Agrawaal
श्री वृंदावन में एक विरक्त संत रहते थे जिनका नाम था पूज्य श्री सेवादास जी महाराज। श्री सेवादास जी महाराज ने अपने जीवन मे किसी भी वस्तु का संग्रह नही किया। एक लंगोटी, कमंडल, माला और श्री शालिग्राम जी इतना ही साथ रखते थे। एक छोटी सी कुटिया बना रखी थी जिसमे एक बड़ा ही सुंदर संदूक रखा हुआ था। संत जी बहुत कम ही कुटिया के भीतर बैठकर भजन करते थे, अपना अधिकतम समय वृक्ष के नीचे भजन मे व्यतीत करते थे। यदि कोई संत आ जाये तो कुटिया के भीतर उनका आसान लगा देते थे। एक समय वहाँ एक बदमाश व्यक्ति आया और उसकी दृष्टि कुटिया के भीतर रखी उस सुंदर संदूक पर पडी। उसने सोचा कि अवश्य ही महात्मा को कोई खजाना प्राप्त हुआ होगा जिसे यहाँ छुपा रखा है। महात्मा को धन का क्या काम ? मौका पाते ही इसे चुरा लूँगा ।
एक दिन बाबाजी कुटिया के पीछे भजन कर रहे थे। अवसर पाकर उस चोर ने कुटिया के भीतर प्रवेश किया और संदूक को तोड़ मरोड़ कर खोला। उस संदूक के भीतर एक और छोटी संदूक रखी थी। चोर ने उस संदूक को भी खोला तब देखा कि उसके भीतर भी एक और छोटी संदूक रखी है। ऐसा करते-करते उसे कई संदूक प्राप्त हुए और अंत मे एक छोटी संदूक उसे प्राप्त हुई। उसने वह संदूक खोली और देखकर बड़ा दु:खी हो गया। उसमे केवल मिट्टी रखी थी। अत्यंत दु:ख में भरकर वह कुटिया के बाहर निकल ही रहा था की उस समय श्री सेवादास जी वहाँ पर आ गए। श्री सेवादास जी ने चोर से कहा- तुम इतने दुखी क्यों हो ? चोर ने कहा- इनती सुंदर संदूक मे कोई क्या मिट्टी भरकर रखता है ? बड़े अजीब महात्मा हो।
श्री सेवादास जी बोले- अत्यंतर श्रेष्ठ मूल्यवान वस्तु को संदूक मे ही रखना तो उचित है। चोर बोला- ये मिट्टी कौन सी मूल्यवान वस्तु है ? बाबा बोले- ये कोई साधारण मिट्टी नही है, यह तो पवित्र श्री वृंदावन रज है। यहाँ की रज के प्रताप से अनेक संतो ने भगवान् श्री कृष्ण को प्राप्त किया है। यह रज प्राप्त करने के लिए देवता भी ललचाते हैं। यहाँ की रज को श्रीकृष्ण के चरणकमलों का स्पर्श प्राप्त है। श्रीकृष्ण ने तो इस रज को अपनी श्रीमुख में रखा है। चोर को बाबा की बात कुछ अधिक समझ नही आयी और वह कुटिया से बाहर जाने लगा। बाबा ने कहा- सुनो ! इतना कष्ट करके खाली हाथ जा रहे हो, मेहनत का फल भी तो तुम्हें मिलना चाहिए। चोर ने कहा- क्यों हँसी मजाक करते हैं, आप के पास देने के लिए है भी क्या ?
श्री सेवादास जी कहने लगे- मेरे पास तो देने के लिए कुछ है नही परंतु इस ब्रज रज में सब कुछ प्रदान करने की सामर्थ्य है। चोर बोला- मिट्टी किसी को भला क्या दे सकती है ? विश्वास हो तो यह रज स्वयं प्रभु से मिला सकती है। चोरी करना तो तुम्हारा काम धन्धा है और महात्मा के यहाँ से खाली हाथ जाएगा तो यह भी ठीक नहीं। जाते-जाते यह प्रसाद लेकर जा। इतना कहकर श्री सेवादास जी ने थोड़ी से ब्रज रज लेकर उसे चोर के माथे पर लगा दिया। माथे पर रज का स्पर्श होते ही वह चोर भाव में भरकर भगवान् के पवित्र नामों का उच्चारण करने लगा- श्रीराधा कृष्ण, केशव, गोविंद-गोविंद। उसका हृदय निर्मल हो गया और वह महात्मा के चरणों मे गिर गया। महात्मा ने उसे हरिनाम जप और संत सेवा का उपदेश दिया देकर उसका जीवन कृष्णमय बना दिया।
“जय जय श्री राधे”

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एक भंवरे की मित्रता …


एक भंवरे की मित्रता …
एक गोबरी कीड़े के साथ हो गई.

कीड़े ने भंवरे से कहा ~
भाई ! तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो,
इसलिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ.

अगले दिन सुबह भंवरा तैयार होकर
अपने बच्चों के साथ गोबरी कीड़े के यहाँ
भोजन के लिये पहुँचा.

कीड़ा उन को देखकर बहुत खुश हुआ,
और सब का आदर करके भोजन परोसा.
भोजन में गोबर की गोलियाँ परोसी, और
कीड़े ने कहा ~ खाओ भाई !

भंवरा सोच में पड़ गया कि ~
मैंने बुरे का संग किया, इसलिये …
मुझे गोबर तो खाना ही पड़ेगा.

ये सब मुझे इसका संग करने से मिला,
और फल भी पाया. अब इसे भी
मेरे संग का फल मिलना चाहिये.

भंवरा बोला ~ भाई !
आज मैं आपके यहाँ
भोजन के लिये आया,
अब तुम भी कल
मेरे यहाँ आओगे.

अगले दिन कीड़ा तैयार होकर …
भंवरे के यहाँ पहुँचा.
भंवरे ने कीड़े को उठा कर,
गुलाब के फूल में बिठा दिया.

कीड़े ने फूलों का रस पिया.
फिर अपने मित्र का धन्यवाद किया, और
कहा ~ मित्र ! तुम तो बहुत अच्छी जगह
रहते हो, और अच्छा खाते हो.

इस के बाद कीड़े ने सोचा ~
क्यों न अब मैं यहीं रह जाऊँ, और
ये सोच कर कीड़ा फूल में ही बैठा रहा,
तभी वहाँ पास के मंदिर का पुजारी आया
फूल तोड़ कर ले गया, और चढ़ा दिया …
बिहारी जी और राधा जी के चरणों में.

कीड़े को भगवान के दर्शन भी हुये, और
उनके चरणों में बैठने का सौभाग्य भी.
इस के बाद संध्या में पुजारी ने
सारे फूल इक्कठा किये, और
गंगा जी में छोड़ दिए.

कीड़ा गंगा की लहरों पर लहर रहा था,
और अपनी किस्मत पर हैरान था कि …
कितना पुण्य हो गया.
इतने में ही भंवरा उड़ता हुआ
कीड़े के पास आया और बोला ~
मित्र ! अब बताओ … क्या हाल है ?

कीड़े ने कहा ~
भाई ! अब जन्म-जन्म के
पापों से मुक्ति हो चुकी है.

जहाँ गंगा जी में मरने के बाद
अस्थियों को छोड़ा जाता है,
वहाँ मैं जिन्दा ही आ गया हूँ.

ये सब मुझे तेरी मित्रता और
अच्छी संगत का ही फल मिला है.
जिसको मैं अपनी जन्नत समझता था,
वो तो गन्दगी थी, और …
जो तेरी वजह से मिला ~ यही स्वर्ग है.

संगत से गुण ऊपजे,
संगत से गुण जाए.

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एक बादशाह ने ख्वाब देखा के उसके सारे दांत टूट कर गिर पड़े हैं।


एक बादशाह ने ख्वाब देखा के उसके सारे दांत टूट कर गिर पड़े हैं। बादशाह ने एक मुफ़स्सिर ( ख्वाब का फल बताने वाला ) को बुलवा कर उसे ख्वाब सुनाया।

मुफ़स्सिर ने बादशाह से कहा ;
इसका फल ये बनता है कि आपके सारे घर वाले आपके सामने मरेंगे बादशाह को बहुत गुस्सा आया। उसने मुफ़स्सिर को क़त्ल करवा दिया।

एक और मुफ़स्सिर को बुलवाया गया, बादशाह ने उसको अपना ख्वाब सुनाया,

मुफ़स्सिर ने कहा ; “बादशाह सलामत आपको मुबारक हो, ख्वाब का फल ये बनता है कि आप अपने घर वालों में सब से लंबी उम्र पाएंगे।”

बादशाह ने खुश होकर मुफ़स्सिर को इनाम दिया।

क्या इस बात का यही मतलब नही बनता के अगर बादशाह अपने घर वालों में सब से लंबी उम्र पाएगा तो उसके सारे घर वाले उसके सामने ही मर जायेंगे ??

जी ! मतलब तो यही बनता है मगर बात बात में और शब्दों में फ़र्क़ है।

आपका बोला गया एक एक शब्द किसी दूसरे के लिए मरहम भी बन सकता है और ज़ख्म भी दे सकता है। शब्दों का चयन आपके हाथ मे है। “

_लिहाज़ा सोच समझ कर बोलें_।

 

झ्योति आग्रवल