Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

#विकलांग लड़की______

एक Postman ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा,”चिट्ठी ले लीजिये।”अंदर से एक Ladki की आवाज आई,”आ रही हूँ।” लेकिन तीन-चार मिनट तक कोई न आया तो Postman ने फिर कहा,”अरे भाई!मकान में कोई है क्या,अपनी चिट्ठी ले लो।”लड़की की फिर आवाज आई,”Postman साहब,दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ।”Postman ने कहा,”नहीं, मैं खड़ा हूँ, रजिस्टर्ड चिट्ठी है, पावती पर तुम्हारे साइन चाहिये।” करीबन छह-सात मिनट बाद दरवाजा खुला।

Postman इस देरी के लिए झल्लाया हुआ तो था ही और उस पर चिल्लाने वाला था ही, लेकिन दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया, सामने एक अपाहिज कन्या जिसके पांव नहीं थे, सामने खड़ी थी।

Postman चुपचाप पत्र देकर और उसके साइन लेकर चला गया। हफ़्ते, दो हफ़्ते में जब कभी उस लड़की के लिए डाक आती, एक आवाज देता और जब तक वह कन्या न आती तब तक खड़ा रहता। एक दिन उसने Postman को नंगे पाँव देखा। दीपावली नजदीक आ रही थी। उसने सोचा Postman को क्या ईनाम दूँ। एक दिन जब Postmanडाक देकर चला गया,तब उस लड़की ने,जहां मिट्टी में पोस्टमैन के पाँव के निशान बने थे, उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया।

अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवा लिये। दीपावली आई और उसके अगले दिन Postman ने गली के सब लोगों से तो ईनाम माँगा और सोचा कि अब इस बिटिया से क्या इनाम लेना? पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ। उसने दरवाजा खटखटाया। अंदर से आवाज आई,”कौन?”पोस्टमैन, उत्तर मिला। लड़की हाथ में एक गिफ्ट पैक लेकर आई और कहा,”अंकल, मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है।”

Postman ने कहा,”तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो, तुमसे मैं गिफ्ट कैसे लूँ?” कन्या ने आग्रह किया कि मेरी इस गिफ्ट के लिए मना नहीं करें।”ठीक है कहते हुए Postman ने पैकेट ले लिया। बालिका ने कहा,”अंकल इस पैकेट को घर ले जाकर खोलना। घर जाकर जब उसने पैकेट खोला तो विस्मित रह गया, क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे।उसकी आँखें भर आई।

अगले दिन वह ऑफिस पहुंचा और पोस्टमास्टर से फरियाद की कि उसका तबादला फ़ौरन कर दिया जाए। पोस्टमास्टर ने कारण पूछा,तो Postman ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और रुंधे कंठ से कहा,”आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस अपाहिज बच्ची ने तो मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा?”

” संवेदनशीलता यानि,दूसरों के दुःख-दर्द को समझना, अनुभव करना और उसके दुःख-दर्द में भागीदारी करना,उसमें शरीक होना। यह ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है।

ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमें संवेदनशीलता रूपी आभूषण प्रदान करें ताकि हम दूसरों के दुःख-दर्द को कम करने में योगदान कर सकें।संकट की घड़ी में कोई यह नहीं समझे कि वह अकेला है, अपितु उसे महसूस हो कि सारी मानवता उसके साथ है।”
दोस्तो स्टोरी कैसी लगी… ?}

( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे
या फिर मूजे मेसेज(Msg) कर के बता बताइएे
Story by Ranjit Der)

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

कक्षा में मास्टर जी ने पूछा,
बच्चों, बताओ तो भारत के राष्ट्रीक्य ध्वज में कितने रंग है ?
“तीन”। सारे बच्चों के स्वर कक्षा में एक साथ गुंजा।
शोर थमने के बाद एक सहमा सा बच्चा धीरे धीरे खड़ा होकर बिनम्र स्वर में बोला, “मास्टर जी पांच”।
सारे बच्चे यह सुन कर हंसने लगे
मास्टर जी अपने गुस्से को दबाने की कोशिश करते हुए बोले, “चलिए, आप भी सबको बता ही दिजिए कौन कौन से पांच रंग है हमारे तिरंगे में”?
तिरंगे के नाम सुनने के बाद भी बच्चा धीरे धीरे बोलने लगा
सबसे उपर केसरिया, उसके नीचे सफेद, सबसे नीचे हरा और बीच में एक चक्र जिसका रंग नीला है।
मास्टर जी ने अपने हाथ दांए बांए हिलाते हुए हल्के से ऊंची आवाज में पूछा।
फिर भी तो चार ही हुआ। ये पांचवां रंग कौन सा है?
मासूम बच्चा आंख झुकाए सरलता से उत्तर दिया
वो है पुरे ध्वज में फैला हुआ लाल लाल धब्बा।
मुझे याद है मास्टर जी, जब मैं पापा को अंतिम बार देखा था।
घर के आंगन में एक ताबुत के अंदर पापा एक वैसे ही ध्वज को ओढ़ कर सोये हुए थे।

कक्षा के शोर अचानक थम सा गया। मास्टर जी का गुस्सा गायब हो चुका था। गला भर आया था। कुछ बोल नहीं पाये। सिर्फ हाथ के इशारे से सबको शांत बैठने को कह कर सर झुकाए कक्षा के बाहर निकल आए। और भींगि आंखों से आसमान के तरफ़ देखते हुए सोचने लगे।

“तिरंगे में लगी खुन की उन लाल धब्बों को हम कैसे भुल गए।
कैसे भुल गए कि हमें कितनी महंगी पड़ी थी ये आज़ादी।
हंसते हंसते अपने खुन से धरती को रंगने वाले, उन वतनपरस्तों ने तो ये वतन हमारे हवाले कर गए थे। पर हम उनके मकसद और दीशा से भटक कर किस ओर का रुख अपना लिया”।

क्या आज ये पंक्तियां हमारे लिए कोई मायने भी रखता है?

पुष्प की अभिलाषा__
“मुझे तोड़ लेना बनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएं वीर अनेक”

वन्दे मातरम ।।
जय हिन्द ।।
जय भारत ।।

स्वतंत्रता दिवस पर सारे भारत वासियों को मेरा सश्रद्ध नमस्कार

Posted in संस्कृत साहित्य

जानिये स्वतिक का रहस्य:


स्वास्तिक क्या है, कैसे प्रयोग करे स्वस्तिक सफलता के लिए.
हिन्दू संस्कृति के प्राचीन ऋषियों ने अपने धर्म के आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कुछ विशेष चिन्हों की रचना की, ये चिन्ह मंगल भावों को प्रकट करती है , ऐसा ही एक चिन्ह है “स्वास्तिक“.
स्वस्तिक मंगल चिन्हों में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है और पुरे विश्व में इसे सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है. इसी कारण किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है.
स्वस्तिक 2 प्रकार का होता है – एक दाया और दुसरा बांया . दाहिना स्वस्तिक नर का प्रतिक है और बांया नारी का प्रतिक है. वेदों में ज्योतिर्लिंग को विश्व के उत्पत्ति का मूल स्त्रोत माना गया है.
स्वस्तिक की खड़ी रेखा सृष्टि के उत्पत्ति का प्रतिक है और आड़ी रेखा सृष्टि के विस्तार का प्रतिक है तथा स्वस्तिक का मध्य बिंदु विष्णु जी का नाभि कमल माना जाता है जहाँ से विश्व की उत्पत्ति हुई है. स्वस्तिक में प्रयोग होने वाले 4 बिन्दुओ को 4 दिशाओं का प्रतिक माना जाता है.
कुछ विद्वान् इसे गणेश जी का प्रतिक मानकर प्रथम पूज्य मानते हैं. कुछ लोग इनकी 4 वर्णों की एकता का प्रतिक मानते है, कुछ इसे ब्रह्माण्ड का प्रतिक मानते है , कुछ इसे इश्वर का प्रतिक मानते है.
अमरकोश में स्वस्तिक का अर्थ आशीर्वाद, पुण्य, मंगल कार्य करने वाला है. इसमे सभी के कल्याण व कुशल क्षेम की भावना निहित है.
इसका आरंभिक आकार गणित के धन के सामान है अतः इसे जोड़ का /मिलन का प्रतिक भी माना जाता है. धन के चिन्ह पर 1-1 रेखा जोड़ने पर स्वस्तिक का निर्माण हो जाता है.
हिन्दुओ के समान जैन, बौद्ध और इसाई भी स्वस्तिक को मंगलकारी और समृद्धि प्रदान करने वाला चिन्ह मानते है. बौद्ध मान्यता के अनुसार वनस्पति सम्पदा की उत्पत्ति का कारण स्वस्तिक है. बुद्ध के मूर्तियों में और उनके चिन्हों पर स्वस्तिक का चिन्ह मिलता है. इससे पूर्व सिन्धु घाटी से प्राप्त मुद्रा में और बर्तनों में भी स्वास्तिक के चिन्ह खुदे मिलते है. उदयगिरी और खंडगिरी के गुफा में भी स्वास्तिक चिन्ह मिले है.
स्वस्तिक को 7 अंगुल, 9 अंगुल या 9 इंच के प्रमाण में बनाया जाने का विधान है. मंगल कार्यो के अवसर पर पूजा स्थान तथा दरवाजे की चौखट पर स्वस्तिक बनाने की परम्परा है.
स्वस्तिक का आरंभिक आकार पूर्व से पश्चिम एक खड़ी रेखा और उसके ऊपर दूसरी दक्षिण से उत्तर आडी रेखा के रूप में तथा इसकी चारो भुजाओं के सिरों पर पूर्व से एक एक रेखा जोड़ी जाती है.
तथा चारो रेखाओं के मध्य में एक एक बिंदु लगाया जाता है और स्वस्तिक के मध्य में भी एक बिंदु लगाया जाता है. इसके लिए विभिन्न प्रकार की स्याही का उपयोग होता है.
स्वस्तिक की उपयोगिता :
स्वास्तिक क्या है, कैसे प्रयोग करे स्वस्तिक सफलता के लिए.
1.पारद या पञ्च धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करके चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं.
2. चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष व लक्ष्मी प्राप्त होती है.
3. वास्तु दोष दूर करने के लिये ९ अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिन्दूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देता है.
4. धार्मिक कार्यो में रोली, हल्दी,या सिन्दूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्टि देता है.
5. गुरु पुष्य या रवि पुष्य मे बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है.
6. त्योहारों में द्वार पर कुमकुम सिन्दूर अथवा रंगोली से स्वस्तिक बनाना मंगलकारी होता है. ऐसी मान्यता है की देवी – देवता घर में प्रवेश करते हैं इसीलिए उनके स्वागत के लिए द्वार पर इसे बनाया जाता है.
7. अगर कोई 7 गुरुवार को ईशान कोण में गंगाजल से धोकर सुखी हल्दी से स्वस्तिक बनाए और उसकी पंचोपचार पूजा करे साथ ही आधा तोला गुड का भोग भी लगाए तो बिक्री बढती है.
8. स्वस्तिक बनवाकर उसके ऊपर जिस भी देवता को बिठा के पूजा करे तो वो शीघ्र प्रसन्न होते है.
9. देव स्थान में स्वस्तिक बनाकर उस पर पञ्च धान्य का दीपक जलाकर रखने से कुछ समय में इच्छित कार्य पूर्ण होते हैं .
10. भजन करने से पहले आसन के नीचे पानी , कंकू, हल्दी अथवा चन्दन से स्वास्तिक बनाकर उस स्वस्क्तिक पर आसन बिछाकर बैठकर भजन करने से सिद्धी शीघ्र प्राप्त होती है.
11. सोने से पूर्व स्वस्तिक को अगर तर्जनी से बनाया जाए तो सुख पूर्वक नींद आती है, बुरे सपने नहीं आते है.
12. स्वस्तिक में अगर पंद्रह या बीसा का यन्त्र बनाकर लोकेट या अंगूठी में पहना जाए तो विघ्नों का नाश होकर सफलता मिलती है.
13. मनोकामना सिद्धी हेतु मंदिरों में गोबर और कंकू से उलटा स्वस्तिक बनाया जाता है.
14. होली के कोयले से भोजपत्र पर स्वास्तिक बनाकर धारण करने से बुरी नजर से बचाव होता है और शुभता आती है.
15. पितृ पक्ष में बालिकाए संजा बनाते समय गोबर से स्वस्तिक भी बनाती है शुभता के लिए और पितरो का आशीर्वाद लेने के लिए.
16. वास्तु दोष दूर करने के लिए पिरामिड में भी स्वस्तिक बनाकर रखने की सलाह दी जाती है.
अतः स्वस्तिक हर प्रकार से से फायदेमंद है , मंगलकारी है, शुभता लाने वाला है, ऊर्जा देने वाला है, सफलता देने वाला है इसे प्रयोग करना चाहिए
भीमसेन त्रिपाठी
राष्ट्रीय संयोजक
तिरपाल से मंदिर निर्माण मुहिम अयोध्या
Bhimsen Tripathi Panditji
राष्ट्रीय प्रवक्ता
उज्ज्वल भारत अभियान

Posted in जीवन चरित्र

1957, दूसरी लोक सभा में अटल जी 33 साल की उम्र में पहली बार साँसद बने. उस समय लोक सभा में बैठने के लिए आज जैसी कुर्सियाँ नहीं होती थी और न ही संबोधन के लिए public adress system थे.
सदन में विदेश नीति पर चर्चा शुरू हुयी, अटल जी को भी बोलने का मौका मिला 472 सांसदों के सदन में आखिरी लाइन पर थे अटल जी .. और ज्योही उनका भाषण चालू हुआ, सदन में सन्नाटा, सिर्फ और सिर्फ अटल जी की आवाज !

भाषण ख़तम हुआ और प्रधानमंत्री नेहरू प्रथम पंक्ति से चल कर उनके पास आये, अटल जी के कंधे पर हाथ रख कर शाबाशी दी, क्यों की विदेश नीति पर बेहतरीन भाषण था उनका…
प्रधानमंत्री नेहरू ने पूछा “आप कौन सी रियासत के राज कुमार हो ?”

अटल जी ने सादगी से जवाब दिया, “मै राजकुमार नहीं हूँ, मै एक गरीब स्कूल मास्टर का बेटा हूँ!”

नेहरू ने पूछा “विदेश में पढ़े हो?”

अटल जी ने कहा “विदेश तो क्या, मै तो कभी झुमरितलैय्या भी नहीं गया !”

नेहरू ने आश्चर्यचकित होकर कहा “तुम कैसे जानते हो इतना सब कुछ विदेश नीति के बारे में?”

अटल जी ने कहा “किताबो के अध्यन से”…

नेहरू ने कहा “तुम जरुर एक दिन भारत के “प्रधानमंत्री” बनोगे. !”
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि हे महामानव आप अमर रहे
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Posted in सुभाषित - Subhasit

एक नवविवाहिता को उसके पति ने एक नथनी प्रेम-स्वरूप भेंट की है !
जिसे वह अपनी सहेलियों सगे सम्बन्धियों एवं आस-पड़ोस की महिलाओं में दिखाती फिर रही है !बड़ी इतराती हुई कहती है -ये नथनी उन्होंने दी है कितनी सुंदर है ये कितने अच्छे है इत्यादि-२ !
इस पर कबीर साहब जी बड़ा ही सुंदर फरमाते है :
नथनी दी यार ने सिमरती बारंबार ;
नाक दी करतार ने उसको दिया बिसार !
नथनी देने वाले को तो बहुत याद किया जा रहा है पर जिसने नाक दी है उसे ही भुला दिया गया है !जरा सोचियेंगा साधकजनों गर नाक ही न होती तो नथनी कहा डाली जाती !
परमात्मा का विस्मरण हमारे जीवन की सबसे बड़ी असफलता है और स्मरण सबसे बड़ी उपलब्धि !
राम राम सा

Posted in जीवन चरित्र

स्वर्गीय अटल जी के 2 किस्से,जिसे पढ़कर आप जानेंगे क्यों विरोधी भी मुरीद थे उनके…..

1•
वर्ष 1957 का चुनाव था। अटल बिहारी वाजपेयी जी लखनऊ से चुनाव लड़ रहे थे। उनके सामने थे कांग्रेस से पुलिन बिहारी बनर्जी ‘दादा’। बनर्जी चुनाव जीते और अटलजी हार गए। जनसंघ के कार्यालय पर मौजूद लोग हार-जीत का विश्लेषण कर रहे थे, अटल जी उठे और कुछ लोगों के साथ पहुंच गए बनर्जी के घर।

अटल जी को घर के सामने देख दादा के घर मौजूद लोग हड़बड़ा गए। अटल जी बोले, ‘दादा जीत की बधाई। चुनाव में तो बहुत कंजूसी की लेकिन अब न करो; कुछ लड्डू-वड्डू तो खिलाओ।’


2•

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान की बात है। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा था। अटल बिहारी वाजपेयी जी मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस में भोजन कर रहे थे। रात में उन्हें दिल्ली लौटना था।

इतने में लखनऊ के जिलाधिकारी और तत्कालीन राज्यपाल के सलाहकार अचानक कमरे में आ गए। लालजी टंडन बोले अटलजी अभी भोजन कर रहे हैं।तत्कालीन जिलाधिकारी ने हाथ जोड़ते हुए कहा कि अमौसी हवाई अड्डे पर एक लड़का दिल्ली जाने वाले हवाई जहाज में चढ़ गया है। उसके हाथ में हथगोला जैसी कोई वस्तु है।

कह रहा है कि अटल बिहारी वाजपेयी को बुलाओ नहीं तो इस जहाज को उड़ा दूंगा। लालजी टंडन बोले – इस तरह अटलजी कैसे वहां जांएगे। इन्हें भी तो खतरा हो सकता है। पर, इसी बीच अटलजी खाना बीच में छोड़कर खड़े हो गए और बोले कि चलो चलते हैं। आखिर कइयों के जीवन का सवाल है।

अटल जी एयरपोर्ट पहुंचे और लगभग हट करते हुए खुद को हवाई जहाज के पास ले चलने को कहा। सबकी हालत खराब। जैसे-तैसे डीएम के साथ सब लोग जहाज के पास पहुंचे। लड़के ने अटलजी को अंदर बुलाया। वह अटलजी के पैर छूने झुका कि सुरक्षा बलों ने उसे दबोच लिया।

लड़के ने हाथ में ली वस्तु को फेंकते हुए कहा कि यह कुछ नहीं, सिर्फ सुतली का गोला है। अटलजी ने भाजपा के लोगों से कहा कि इसने नादानी में इस तरह की घटना को अंजाम दे दिया। इसकी जमानत जरूर करा देना जिससे इसका भविष्य न खराब हो।

हवाई जहाज में अंदर कांग्रेस के बड़े नेता और लंबे समय तक कोषाध्यक्ष रहे सीताराम केसरी भी बैठे हुए थे। अटलजी को देखकर बोले, ‘जब हमें मालूम हुआ कि आप लखनऊ में हैं तो मेरी जान में जान आ गई थी कि आप जरूर आ जाएंगे। हम लोग बच जाएंगे।’

साभार – रूद्र दुबे भाई

Posted in भारत गौरव - Mera Bharat Mahan

Can you hear a pin drop?

What is the meaning of pin drop silence?

Following are some instances when silence could speak louder than voice.

Take 1:

Field Marshal Sam Bahadur Maneckshaw once started addressing a public meeting at Ahmedabad in English.

The crowd started chanting, “Speak in Gujarati.

We will hear you only if you speak in Gujarati.”
Field Marshal Sam Bahadur Maneckshaw stopped.
Swept the audience with a hard stare and replied,

“Friends, I have fought many a battle in my long career.
I have learned Punjabi from men of the Sikh Regiment;
Marathi from the Maratha Regiment;
Tamil from the men of the Madras Sappers;
Bengali from the men of the Bengal Sappers,
Hindi from the Bihar Regiment; and
Even Nepali from the Gurkha Regiment.

Unfortunately there was no soldier from Gujarat from whom I could have learned Gujarati.”…

You could have heard a pin drop

Take 2:

Robert Whiting,
an elderly US gentleman of 83, arrived in Paris by plane.

At French Customs, he took a few minutes to locate his passport in his carry on.

“You have been to France before, Monsieur ?”, the Customs officer asked sarcastically.

Mr. Whiting admitted that he had been to France previously.

“Then you should know enough to have your passport ready.”

The American said,
“The last time I was here,
I didn’t have to show it.”

“Impossible.
Americans always have to show their passports on arrival in France !”, the Customs officer sneered.

The American senior gave the Frenchman a long, hard look.

Then he quietly explained

“Well, when I came ashore at Omaha Beach,
at 4:40am, on D-Day in 1944, to help liberate your country, I couldn’t find a single Frenchman to show a passport to…. ”

You could have heard a pin drop

Take 3:

Soon after getting freedom from British rule in 1947, the de-facto prime minister of India, Jawahar Lal Nehru called a meeting of senior Army Officers to select the first General of the Indian army.

Nehru proposed, “I think we should appoint a British officer as a General of The Indian Army, as we don’t have enough experience to lead the same.”
Having learned under the British, only to serve and rarely to lead, all the civilians and men in uniform present nodded their heads in agreement.

However one senior officer, Nathu Singh Rathore, asked for permission to speak.

Nehru was a bit taken aback by the independent streak of the officer, though, he asked him to speak freely.

Rathore said, “You see, sir, we don’t have enough experience to lead a nation too, so shouldn’t we appoint a British person as the first Prime Minister of India?”

You could hear a pin drop.

After a pregnant pause, Nehru asked Rathore,
“Are you ready to be the first General of The Indian Army?”..

Rathore declined the offer saying “Sir, we have a very talented army officer, my senior, Gen. Cariappa, who is the most deserving among us.”

This is how the brilliant Gen. Cariappa became the first General and Rathore the first ever Lt. General of the Indian Army.

(Many thanks to Lt. Gen Niranjan Malik PVSM (Retd) for this article.)

👌👌👌🙏🙏
Worth reading?!

Posted in महाभारत - Mahabharat

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद की 14 रोमांचक घटनाएं!!!!!!!!

महाभारत युद्ध के बाद का इतिहास सभी जानना चाहते हैं। कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांडव, कृष्ण और बचे हुए योद्धाओं का क्या हुआ? धृतराष्ट्र, गांधारी, विदुर, संजय, युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, भीम और भगवान कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई? भारत का इतिहास और समाज उस काल में किस हाल में था। क्या यदुवंश का नाश हो गया था? तो आओ इसी संबंध में जानते हैं 14 प्रमुख रोमांचक घटनाएं।

1) युद्ध के 18वें अर्थात अंतिम दिन दुर्योधन ने रात्रि में उल्लू और कौवे की सलाह पर अश्वत्थामा को सेनापति बनाया था। उस एक रात्रि में ही अश्वत्थामा ने पांडवों की बची लाखों सेनाओं, पुत्रों और गर्भ में पल रहे पांडवों के पुत्रों तक को मौत के घाट उतार दिया था। द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्‍थामा के द्वारा किए गए नरसंहार के बाद युद्ध समाप्त हो गया था।

2) युद्ध के बाद दुर्योधन कहीं जाकर छुप गया था। पांडवों ने उसे खोज लिया तब भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध हुआ। इस युद्ध को देखने के लिए बलराम भी उपस्थित थे। भीम कई प्रकार के यत्न करने पर भी दुर्योधन का वध नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि दुर्योधन का शरीर वज्र के समान कठोर था। ऐसे समय श्रीकृष्ण ने अपनी जंघा ठोककर भीम को संकेत दिया जिसे भीम ने समझ लिया। तब भीम ने दुर्योधन की जंघा पर प्रहार किया और अंत में उसकी जंघा उखाड़कर फेंक दी। बाद में दुर्योधन की मृत्यु हो गई।

3) अश्‍वत्थामा ने जब द्रौपदी के पुत्रों का उनकी निद्रावस्था में वध कर दिया तो द्रौपदी खूब विलाप करने लगी। यह देख भीम से रहा नहीं गया और वे अश्‍वत्‍थामा को पकड़ने के लिए रथ पर सवार होकर चल देते हैं। भीम के पीछे श्रीकृष्ण भी अर्जुन के साथ अपने रथ पर सवार होकर चल पड़े। सभी ने गंगा के तट पर अश्वत्‍थामा को ढूंढ लिया। द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा यह देखकर डर गया और उसने तुरंत ही अपने दिव्य अस्त्र ब्रह्मास्त्र का संकल्प किया और उस प्रचंड अस्त्र को पांडवों की वध की इच्‍छा से छोड़ दिया। यह देख अर्जुन ने भी संकल्प लिया कि इस ब्रह्मास्त्र से शत्रु का ब्रह्मास्त्र शांत हो जाए, ऐसा कहकर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। दोनों के अस्त्रों से प्रचंड अग्नि का जन्म हुआ। यह देख वहां वेद व्यास और देवर्षि नारद प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि इन दोनों अस्त्रों से धरती का विनाश हो जाएगा। आप इन्हें वापस ले लें। ऐसे में अर्जुन ने तो अपना अस्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्‍वत्थामा इसे वापस लेने में सक्षम नहीं था। ऐसे में वह उस अस्त्र को उत्तरा के गर्भ पर उतार देता है।

4) अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भ पर अस्त्र छोड़ देने के बाद श्रीकृष्ण उत्तरा के बच्चे को बाद में पुन: जीवित कर देते हैं। इस बीच अश्‍वत्थामा के इस अपराध के लिए श्रीकृष्ण उसे 3,000 वर्षों तक कोढ़ी के रूप में रहकर भटकने का शाप दे देते हैं। उनके इस शाप का वेद व्यासजी ने अनुमोदन किया था। शिव महापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां है, यह नहीं बताया गया है। तब अश्वत्‍थामा पांडवों को अपनी मणि देकर वन में चला जाता है। वह मणि भीमसेना युधिष्ठिर की आज्ञा से द्रौपदी को दे देते हैं। द्रौपदी वह मणि युधिष्ठिर को देकर अश्‍वत्‍थामा को क्षमा कर देती है।
75
5) युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने युद्धभूमि पर ही सभी मृत योद्धाओं का विधिवत रूप से दाह-संस्कार किया। महाभारत के स्त्री पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर के कहने पर पांडवों ने ही दोनों पक्षों के मरे हुए योद्धाओं का अंतिम संस्कार किया था।

6) भीष्म यद्यपि शरशैया पर पड़े हुए थे फिर भी उन्होंने श्रीकृष्ण के कहने से युद्ध के बाद युधिष्ठिर का शोक दूर करने के लिए राजधर्म, मोक्षधर्म और आपद्धर्म आदि का मूल्यवान उपदेश बड़े विस्तार के साथ दिया। प्रतिदिन दिए गए इस उपदेश को सुनने से युधिष्ठिर के मन से ग्लानि और पश्‍चाताप दूर हो जाता है।

7) बाद में सूर्य के उत्तरायण होने पर युधिष्ठिर आदि सगे-संबंधी, पुरोहित और अन्यान्य लोग भीष्म के पास पहुंचते हैं। उन सबसे भीष्म पितामह ने कहा कि इस शरशैया पर मुझे 58 दिन हो गए हैं। मेरे भाग्य से माघ महीने का शुक्ल पक्ष आ गया। अब मैं शरीर त्यागना चाहता हूं। इसके पश्चात उन्होंने सब लोगों से प्रेमपूर्वक विदा मांगकर शरीर त्याग दिया। सभी लोग भीष्म को याद कर रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरबिद्ध शव को चंदन की चिता पर रखा तथा दाह-संस्कार किया।

8) भीष्म पितामह के अंतिम संस्कार के बाद युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की तैयारी होती है। महाभारत शांति पर्व के ‘राजधर्मानुशासन पर्व’ में इस राज्याभिषेक का वर्णन मिलता है। इस राज्याभिषेक में पांडु पुत्र भीम, अर्जुन, नकुल सहदेव के अलावा श्री‍कृष्ण, विदुर, धृतराष्ट्र, गांधारी, द्रौपदी, कुंती आदि सभी सम्मिलित होते हैं। इस राज्याभिषेक में देश और विदेश के कई राजाओं को आमंत्रित किया जाता है और भव्य आयोजन के बीच युधिष्ठिर का राज्याभिषेक होता है।

9) युद्ध के 15 वर्ष बाद धृतराष्ट्र, गांधारी, संजय और कुंती वन में चले जाते हैं। एक दिन धृतराष्ट्र गंगा में स्नान करने के लिए जाते हैं और उनके जाते ही जंगल में आग लग जाती है। वे सभी धृतराष्ट्र के पास आते हैं। संजय उन सभी को जंगल से चलने के लिए कहते हैं, लेकिन धृतराष्ट्र वहां से नहीं जाते हैं, गांधारी और कुंती भी नहीं जाती है। जब संजय अकेले ही उन्हें जंगल में छोड़ चले जाते हैं, तब तीनों लोग आग में झुलसकर मर जाते हैं। संजय उन्हें छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं, जहां वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं। एक साल बार नारद मुनि युधिष्ठिर को यह दुखद समाचार देते हैं। युधिष्ठिर वहां जाकर उनकी आत्मशांति के लिए धार्मिक कार्य करते हैं।उ

10) एक दिन पांचों पांडव विदुर से मिलने आए। विदुर ने युधिष्ठिर को देखते ही अपने प्राण छोड़ दिए और वे युधिष्ठिर में समा गए। यह देखकर युधिष्ठिर को समझ में नहीं आया कि यह क्या हुआ? ऐसे में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। श्रीकृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि विदुर भी धर्मराज के अंश थे अत: वे तुम में समा गए, लेकिन अब मैं विदुर की इच्‍छानुसार दिया गया अपना वचन पूरा करूंगा। यह कहकर श्रीकृष्ण ने विदुर की इच्छानुसार उनके शरीर को सुदर्शन चक्र में बदलकर उस सुदर्शन चक्र को वहीं स्थापित कर दिया।

11) महाभारत युद्ध के बाद जब 36वां वर्ष प्रारंभ हुआ तो श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब के कारण मोसुल का युद्ध हुआ जिसमें सभी यदुवंशी आपस में ही लड़कर मारे गए। साम्‍ब, चारुदेष्‍ण, प्रद्युम्‍न और अनिरुद्ध की मृत्‍यु हो गई। बस श्रीकृष्ण का एक पौत्र बचा था जिसका नाम वज्र था। बलराम ने द्वारिका के समुद्र के किनारे जाकर समाधि ले ली थी।

12) मोसुल के युद्ध के बाद प्रभाष क्षेत्र में एक वृक्ष के नीचे श्रीकृष्ण लेटे हुए थे तभी एक भील ने उन्हें हिरण समझकर बाण मार दिया। यह बाण उनके पैरों में आकर लगा। इस बाण से उनकी मृत्यु हो गई। अर्जुन को जब यह समाचार मिला तो वे द्वारिका पहुंचे और शोक व्यक्त किया।

13) श्रीकृष्ण के स्वर्गवास के बाद द्वारिका नगरी समुद्र में डूबने लगी। यह देख अर्जुन ने सभी यदुवंशी नारियों और कृष्ण के पौत्र को लेकर हस्तिनापुर के लिए कूच कर दिया। हजारों महिलाओं और द्वारिकावासियों के साथ उन्होंने पंचनद देश में पड़ाव डाला, जहां लुटेरों ने खूब लूटपाट की और सुंदर महिलाओं का अपहरण कर लिया। बहुत मुश्किल से अर्जुन, व्रज और कुछ नगरवासी इन्द्रप्रस्थ पहुंचे। अर्जुन ने व्रज को इन्द्रप्रस्थ का राजा बना दिया।

14) अर्जुन हस्तिनापुर जाकर महाराज युधिष्ठिर को सारा वृत्तांत सुनाते हैं। बाद में पांचों पांडव सशरीर स्वर्ग जाने की इच्छा से परीक्षित को राजपाट सौंपकर द्रौपदी के साथ स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़ते हैं। यात्रा के कठिन मार्ग में सबसे पहले द्रौपदी की, फिर नकुल और सहदेव की मृत्यु हो जाती है। बाद में अर्जुन भी गिर पड़ते हैं। अर्जुन के बाद भीम भी साथ छोड़ देते हैं। मार्ग में एक जगह इन्द्र खुद युधिष्ठिर को स्वर्ग ले जाने के लिए उपस्थित होते हैं। इन्द्र युधिष्ठिर को लेकर स्वर्ग चले जाते हैं।

 

Sanjay Gupta

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

विनाश काले विपरीत बुद्धि
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
किसी गांव में चार दोस्त रहते थे। चारों में बहुत गहरी दोस्ती थी। वे हमेशा साथ-साथ खाते और साथ-साथ रहते। जाति से चारों दोस्त ब्राम्हण थे। उनमें से तीन तो बहुत पढे-लिखे थे मगर चौथा घर की समस्याओं के वजह से पढ नही पाया था।

वैसे वह बुद्धिमान बहुत था। अनपढ होने के कारण उसके तीनों दोस्त उसका मजाक उढाते थे, लेकिन वह दोस्ती के कारण उनकी बात का बुरा नही मानता था। और बात आई गयी हो जाती थी।

एक दिन चारों मित्र बातें कर रहे थे। बात में बात निकली कि चारों में सबसे ज्यादा बुद्धिमान कौन है। इस बात को लेकर बात बढती चली गयी. आखिर में चारों ने यह फैंसला किया कि वे दुसरे राज्य में जाकर वहां के राजा को खुश करेंगे और इस काम में जो सबसे ज्यादा धन लाएगा वही सबसे बड़ा बुद्धिमान होगा।

ऐसा निश्चय करके वे चारों दूसरे शहर की ओर चल पडे। रास्ते में वे तीन दोस्त चौथे दोस्त पर कोई न कोई व्यंग करते हुए चल रहे थे। और वह चौथा बेचारा मुस्कुराकर उनकी बात टाल रहा था। दो दिन चलने के बाद वे एक जंगल में पहूंचे उस समय थोडा दिन छिपने लगा था, इसी कारण उन्होंने वही जंगल में रूकने का फैसला किया मगर चैाथा दोस्त इस बात से सहमत न था।

वह बोला- मित्रों! कुछ ही देर में अंधेरा हो जायेगा और हमें जल्द ही यहां से निकल जाना चाहिए। मगर उसके तीनो मित्रों ने उसका मजाक उडाकर उसे चूप करा दिया। तभी उनकी नजर किसी मरे हुए जानवर पर पडी जिसका चमडा गल गया था, शक्ल पहचान में नही आती थी।

तीनो मित्रों ने उस तरफ देखा जाह जानवर की हड्डिया पडी थी। हड्डियों पर एक नजर डालने के बाद एक ने सुझाव दिया- क्यों न हम राजा के पास जाने से पहले यह जांच कर ले कि हममें से कौन बुद्धिमान और विद्वान है।

दूसरे ने कहा- ठीक है, मैं इन हड्डियों को जोडकर ढांचा तैयार कर देता हूं। यह कहकर झट से उसने अपनी विद्या से हड्डियों को जोड दिया। तब पहले ने उस ढांचे पर मांस, चमडी, नसें, और खुन पैदा करा और पीछे हट गया क्योंकि ढांचा शेर में बदल हो गया था।

उसी बीच चौथा जो अनपढ था, ख़ामोशी से उनकी हरकते और बातचीत सुनता रहा। उसने उसमे कोई हस्तक्षेप नही किया। इधर पहले वाले के पीछे हटते ही तीसरा आगे आया और बोला- तुम दोनों ने तो अपनी कला और विद्या का प्रदर्षन कर दिया अब मेरी बारी है। इसी में जान फुंकना सबसे बडी विद्या है। जो मेरे पास है, अब देखों मैं कैंसे इस शेर में जान डालता हूूं।

यह कहकर वह शेर में जान डालने के लिए आगे बडा तभी चौथा व्यक्ति बोल उठा- अरे ठहरों भईया ठहरों! क्यों क्या हुआ ? तीसरे ने झल्लाकर पूछा। लगता हैं इस डरपोक को डर लग रहा है। दूसरे ने उपहास किया। पहला बोला- ओ मूर्ख! तू चुप रह, दोबारा मत बोलना। तु अनपढ है। चुपचाप खडा रह और हमारी विद्या का कमाल देख।

मगर भईया यह शेर जीवित हो गया तो। हम सबको खा जायेगा। चौथे ने अपनी आशंका प्रकट की। चुपकर मूर्ख ! तू तो ज्ञान को ही बेकार कर देगा। मैं तो इसे जीवित करके ही दम लूगा। तीसरा घंमड से बोला- तब चौथा ने सोचा कि यह लोग शेर को जीवित करके ही दम लेंगे मानेंगे नही। शेर जीवित होते ही हम सबको मार डालेगा। इसलिए वह अपना बचाव तो कर ले। यह सोचकर वह उन तीनों से बोला- ठीक हैं भईया, जैसी तुम लोगों की इच्छा, मगर जरा एक मिनीट रूक जाओ।

इतना कहकर वह चौथा मित्र पेड पर चढ गया। उसे पेढ पर चढता देखकर उसे डरपोक कहते हुए हंस पडे। चौथे ने मन ही मन सोचा – इसी को कहते हैं “विनाश काले विपरित बुद्धि”। बुद्धिमान होकर भी इन मूर्खो का मालूम नही कि शेर जिन्दा होकर इन सबको खा जायेगा।

तीसरे विद्ववान ने अपनी विद्या से शेर को जीवित करने के लिए मंत्र पढने शुरू किये कुछ ही देर में शेर दहाडता हुआ उठ बैठा। शेर ने अपने सामने तीन-तीन मनुष्यों को देखा तो उसकी जिव्हा में पानी भर गया। इधर जीवित शेर देखकर उन तीनों की हालत खराब हो गयी। वे वहां से भागने की कोशिश करने लगे। मगर शेर ने उन्हें भागने का मौका नही दिया।

उसने एक को पंजे से दबोचा दूसरे को धक्का देकर गिरा दिया और तीसरे को सीधे दांतो से जकडा। कुछ ही देर में वह तीनों को खाकर घने जंगल की ओर चला गया। पेड पर बैठा चोैथा मित्र यह द्रश्य देख रहा था। शेर के जाने के बाद वह अपने बचपन के मित्रों की मृत्यु पर विलाप करने लगा और सोचने लगा कि काश उन्होंने उसकी बात मानी होती। तो यह लोग शेर का आहार बनने से बच जाते।

सीख- कभी भी विद्या, अपने ज्ञान का प्रयोग करने से पहले उसका अंजाम सोच लेना चाहिए। और यह जरुरी नही कि पढे लिखे व्यक्ति ही बुद्धिमान होते है। कभी -कभी अनपढ व्यक्ति भी बुद्धिमानों की विद्या तथा बुद्धि से आगे निकल जाते है। इसलिए विवेक से ऊपर बुद्धि को मानना मूर्खता होती है।

जैसा कि तीनों मित्रों के साथ हुआ उन्होंने बुद्धि के सामने विवेक का इस्तेमाल नही किया इसलिए मारे गये। चौथा मित्र बुद्धिमान न था लेकिन विवेकी था, उसमें इस बात का विवेक था कि शेर का काम शिकार करना है, जीवित होते ही वह शिकार करेगा। अतः उसके जीवित होने से पहले सुरक्षा का उपाय कर लेना समझदारी है।

हमेशा अपने जीवन कुछ भी काम करने से पहले यह जरूर सोच लें की इसका परिणाम क्या होगा।।

Dev Sharma

〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

जो परोपकारी है वह ही सच्चा शासक है”

कंचन वन में शेर सिंह का राज समाप्त हो चुका था पर वहां बिना राजा के स्थिति ऐसी हो गई थी जैसे जंगल राज हो जिसकी जो मर्जी वह कर रहा था। वन में अशांति, मारकाट, गंदगी, इतनी फैल गई थी कि वहां जानवरों का रहना मुश्किल हो गया। कुछ जानवर शेरसिंह को याद कर रहे थे कि “जब तक शेरसिंह ने राजपाट संभाला हुआ था सारे वन में कितनी शांति और एकता थी। ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन यह वन ही समाप्त हो जाएगा और हम सब जानवर बेघर होकर मारे जाएंगे।”

गोलू भालू बोला- “कोई न कोई उपाय तो करना ही होगा- क्यों न सभी की सहमति से हम अपना कोई राजा चुन लें जो शेरसिंह की तरह हमें पुन: एक जंजीर में बांधे और वन में एक बार फिर से अमन शांति के स्वर गूंज उठे।” सभी गोलू भालू की बात से संतुष्ट हो गए। पर समस्या यह थी कि राजा किसे बनाया जाए? सभी जानवर स्वयं को दूसरे से बड़ा बता रहे थे।

सोनू मोर बोली- “क्यों न एक पखवाड़े तक सभी को कुछ न कुछ काम दे दिया जाए, जो अपने काम को सबसे अच्छे ढंग से करेगा उसे ही यहां का राजा बना दिया जाएगा।” सोनू की बात से सब सहमत हो गए और फिर सभी जानवरों को उनकी योग्यता के आधार पर काम दे दिया गया।

बिम्पी लोमड़ी को मिट्टी हटाने का काम दिया गया, तो भोलू बंदर को पेड़ों पर लगे जाले हटाने का, सोनी हाथी को पत्थर उठाकर एक गङ्ढे में डालने का काम सौंपा गया था और मोनू खरगोश को घास की सफाई का। जब एक पखवाड़ा बीत गया तो सभी जानवर अपने-अपने कार्यों का ब्यौरा लेकर एक मैदान में एकत्रित हो गए। सभी जानवरों ने अपना काम बड़ी सफाई और मेहनत से पूरा किया था। सिर्फ सोनू हाथी था जिसने एक भी पत्थर गङ्ढे में नहीं डाला था।

अब एक समस्या फिर खड़ी हो गई कि आखिर किसके काम को सबसे अच्छा माना जाए। बुद्धिमान मोनू खरगोश ने युक्ति सुझाई “क्यों न मतदान करा लीया जाए, जिसे सबसे ज्यादा मत मिलेंगे उसे ही हम राजा चुन लेंगे।”

अगले दिन सुबह-सुबह चुनाव रख लिया गया और एक बड़े मैदान में सभी पशु-पक्षी मत देने के लिए उपस्थित हो गए। मतदान समाप्त होने के एक घंटे पश्चात मतों को गिनने का काम शुरु हुआ। यह क्या! सोनू हाथी गिनती में सबसे आगे चल रहा था और जब मतों की गिनती समाप्त हुई तो सोनू हाथी सबसे ज्यादा मतों से विजयी हो गया। सभी जानवर एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। तभी पक्षीराज गरूण वहां उपस्थित हुए और उपस्थित सभी जानवरों को सम्बोधित करते हुए बोले- ‘सोनू हाथी प्रतिदिन पत्थर लेकर गङ्ढे तक जाता था किंतु जब उसने देखा कि उस गङ्ढे में मेरे अंडे रखे हुए हैं तो वह पत्थरों को उसमें न डालकर पास ही जमीन पर एकत्रित करता रहा।

सोनू ने अपने राजा बनने के लालच को छोड़ एक जीव को बचाना ज्यादा उपयोगी समझा। उसकी इस परोपकार की भावना को देखकर हम पक्षियों की भावना को देखकर हम पक्षियों ने तय किया कि जो अपने लालच को छोड़कर दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखें वही सच्चे तौर पर शासक बनने का अधिकारी है और चूंकि वन में पक्षियों की संख्या पशुओं से अधिक थी इसलिए सोनू हाथी चुनाव जीत गया।

सीख- सच्चा शासक वही होता हैं जो परोपकार की भावना को सर्वोच्च स्थान दें।

 

Santosh Chaturvedi