Posted in सुभाषित - Subhasit

पापान्निवारयति योजयते हिताय
गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति ।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले
सन्मित्र -लक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्त: ॥
(भर्तृहरिकृतनीतिशतकम् )

अर्थात्:- अच्छा मित्र अपने मित्र को पाप करने से रोकता है ,उसको कल्याण कार्यो मे लगाता है., उसकी गोपनीय बातो को दूसरों से छिपाता है., उसके गुणों को दूसरों के सम्मुख प्रकट करता है,! आपत्ति आने पर साथ नही छोड़ता तथा आवश्यकता पड़ने पर धनादि के द्वारा मदद करता है संतो ने अच्छे मित्र का लक्षण बताया है.

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