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Sandesh Newspaper

31 મે 2018

મારી કલ્પના-વૃક્ષ પ્રેમિ વાંદરા

સિદ્ધાંતપુર નામનું એક ગામ હતું. ગામની બાજુમાં જ એક જંગલ હતું. આ જંગલમાં ચિમ્પુ નામનો એક વાંદરો રહેતો હતો. તે સ્વભાવે મસ્તીખોર હતો, પણ તે કોઈ પણ દિવસ ઝાડ પર કૂદાકૂદ કે મસ્તી કરતો નહોતો. જેને કારણે ઝાડ પર રહેતાં બધાં જ પક્ષીઓ તેનાથી ક્યારેય નારાજ થતાં નહીં.

ચિમ્પુના બીજા બધા મિત્રો તેને ઝાડ પર રમવા બોલાવે તોપણ તે ના કહી દેતો, કેમ કે તેને સિદ્ધાંતપુર જંગલની વન્યસૃષ્ટિ પ્રત્યે અપાર લગાવ હતો. તે નાનો હતો ત્યારે તેને કોઈ મદારી આ જંગલમાં મૂકી ગયો હતો. તેના માટે આ જંગલ નવું ઘર હતું.

તેમ છતાં જંગલનાં બીજાં બધાં પ્રાણી અને પક્ષીઓએ તેને પોતાના કુંટુબનો સભ્ય સમજીને ઉછેર્યો હતો. તેના સાથીમિત્રો બીજા વાનરોને પણ તે કૂદાકૂદ કરવાની ના કહેતો. તેમને સમજાવતો જે બીજા પક્ષી અને પ્રાણીઓને નુકસાન થાય તેવું કાર્ય કરવું નહીં.

એક દિવસ બાજુના જંગલમાંથી એક વાંદરો ત્યાં આવ્યો. તે આવ્યો તો માત્ર ફરવા માટે પણ તેને જંગલ ગમી ગયું. તેણે જંગલનાં પ્રાણીઓ પાસે ત્યાં રહેવાની અનુમતિ માગી. બધાં જ પ્રાણીઓએ તેને સિદ્ધાંતપુરના જંગલમાં રહેવાની ના કહી દીધી.

આ જોઈ ચિમ્પુએ બધાં જ પ્રાણીઓને સમજાવ્યાં, તેથી તેને એક ઝાડ પર વ્યવસ્થા કરી આપી. બીજા દિવસે ચિમ્પુ જ્યારે સવારે ઊઠયો ત્યારે તેણે જોયું કે બધાં પક્ષીઓના માળા જમીન પર હતા. બધાં પંખીઓ રડતાં હતાં. મેનાનાં તો ઈંડાં જ ફૂટી ગયાં હતાં.

ઝાડનાં બધાં ફળો નીચે પડયાં હતાં. કેટલીક ડાળીઓ તૂટી ગઈ હતી. ઝાડનાં બધાં ફળ ગંદાં થઈ ગયાં હતાં. આ બધું જોઈ ચિમ્પુ બહુ જ ગુસ્સે થયો અને પંખીઓને પૂછયું ત્યારે તેને ખબર પડી કે પેલા નવા આવેલા વાંદરાએ સવાર સવારમાં ઊઠીને આખા ઝાડ પર કૂદાકૂદ કરીને પંખીઓના માળા અને ઝાડનાં ફળ નીચે પાડી દીધાં.

એટલામાં જ મેના બોલી, “ચિમ્પુભાઈ, આ બધું તમારા કારણે જ થયું છે. તમે પેલા વાંદરાને અહીં રહેવા ન દીધો હોત તો આજે આ બધું બન્યું જ ન હોત” આ સાંભળીને ચિમ્પુને ખૂબ જ ગુસ્સો આવ્યો અને તેણે બધાં પંખીઓ સાથે મળીને નવા વાંદરાને પાઠ ભણાવવાનો નિર્ણય કર્યો.

નવો વાંદરો જંગલમાં મસ્તી કરીને પાછો આવ્યો ત્યારે કોઈએ તેને ઝાડ પર ચઢવા ન દીધો. રાતનો સમય હતો. તેને ચિમ્પુ સિવાય કોઈ સાચવે તેમ નહોતું. ચિમ્પુએ પણ તેને ઝાડ પર આવવાની ના કહી દીધી. આખા જંગલમાં કોઈએ પણ તેને ઝાડ પર ચઢવા ન દીધો.

આખી રાત તેને જમીન પર બીક સાથે જાગીને બેસી રહેવું પડયું હતું. રાત્રે જેવો તે આંખ બંધ કરીને ઝોકું ખાવા જતો કે આસપાસના વિસ્તારમાંથી રાની પશુઓનો અવાજ આવતો. આખી રાત તેણે આમ જ બીકમાં પસાર કરી.

સવાર થતાં તેણે બધાં જ પક્ષીઓ અને પ્રાણીઓની માફી માગી અને પોતાના ગામમાં પાછા ફરવાની વાત કરી. તેનામાં આવેલા પરિવર્તનને કારણે જંગલના બધા જ સભ્યોએ તેને માફી આપી અને જંગલમાં જ રોકી લીધો.

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🙏जय जय श्री राधे कृष्णा🙏

ज्योति अग्रवाल

एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गाँवों में घूम रहा था। घूमते-घूमते उसके कुर्ते का बटन टूट गया, उसने अपने मंत्री को कहा कि इस गांव में कौन सा दर्जी है,

जो मेरे बटन को सिल सके।
उस गांव में सिर्फ एक ही दर्जी था, जो कपडे सिलने का काम करता था। उसको राजा के सामने ले जाया गया । राजा ने कहा कि तुम मेरे कुर्ते का बटन सी सकते हो ?

दर्जी ने कहा यह कोई मुश्किल काम थोड़े ही है ! उसने मन्त्री से बटन ले लिया, धागे से उसने राजा के कुर्ते का बटन फौरन टांक दिया। क्योंकि बटन भी राजा का था, सिर्फ उसको अपना धागा प्रयोग किया था, राजा ने दर्जी से पूछा कि कितने पैसे दूं ?

उसने कहा :-” महाराज रहने दो, छोटा सा काम था।” उसने मन में सोचा कि बटन राजा के पास था, उसने तो सिर्फ धागा ही लगाया है ।
राजा ने फिर से दर्जी को कहा कि नहीं नहीं,
बोलो कितने दूं ?

दर्जी ने सोचा की दो रूपये मांग लेता हूँ। फिर मन में यही सोच आ गयी कि कहीं राजा यह न सोचे की बटन टांकने के मेरे से दो रुपये ले रहा है तो गाँव बालों से कितना लेता होगा, क्योंकि उस जमाने में दो रुपये की कीमत बहुत होती थी।

दर्जी ने राजा से कहा कि :– ” ” “महाराज जो भी आपकी इच्छा हो, दे दो।”

अब राजा तो राजा था। उसको अपने हिसाब से देना था। कहीं देने में उसकी इज्जत ख़राब न हो जाये। उसने अपने मंत्री को कहा कि इस दर्जी को दो गांव दे दो, यह हमारा हुक्म है।

यहाँ दर्जी सिर्फ दो रुपये की मांग कर रहा था पर राजा ने उसको दो गांव दे दिए ।

इसी तरह जब हम प्रभु पर सब कुछ छोड़ते हैं तो वह अपने हिसाब से देता है। और मांगते हैं तो सिर्फ हम मांगने में कमी कर जाते हैं । देने वाला तो पता नहीं क्या देना चाहता है, अपनी हैसियत से, और हम बड़ी तुच्छ वस्तु मांग लेते हैं ।

इसलिए संत-महात्मा कहते है, श्री कृष्ण के चरणों पर अपना सर्मपण कर दो, उनसे कभी कुछ न मांगों, जो वो अपने आप दें, बस उसी से संतुष्ट रहो। फिर देखो इसकी लीला। वारे के न्यारे हो जाएंगे।

जीवन मे धन के साथ सन्तुष्टि का होना जरूरी है वही हमे श्री कृष्ण चुपचाप दे देंगे।

          जय श्री राधे कृष्णा जी 🌹🙏
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संघर्ष और सफलता

ज्योति अग्रवाल

✍ पिकासो (Picasso) स्पेन में जन्मे एक अति प्रसिद्ध चित्रकार थे। उनकी पेंटिंग्स दुनिया भर में करोड़ों और अरबों रुपयों में बिका करती थीं…!!

एक दिन रास्ते से गुजरते समय एक महिला की नजर पिकासो पर पड़ी और संयोग से उस महिला ने उन्हें पहचान लिया। वह दौड़ी हुई उनके पास आयी और बोली, ‘सर, मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ। आपकी पेंटिंग्स मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं। क्या आप मेरे लिए भी एक पेंटिंग बनायेंगे…!!?’

पिकासो हँसते हुए बोले, ‘मैं यहाँ खाली हाथ हूँ। मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं फिर कभी आपके लिए एक पेंटिंग बना दूंगा..!!’

लेकिन उस महिला ने भी जिद पकड़ ली, ‘मुझे अभी एक पेंटिंग बना दीजिये, बाद में पता नहीं मैं आपसे मिल पाऊँगी या नहीं।’

पिकासो ने जेब से एक छोटा सा कागज निकाला और अपने पेन से उसपर कुछ बनाने लगे। करीब 10 सेकेण्ड के अंदर पिकासो ने पेंटिंग बनायीं और कहा, ‘यह लो, यह मिलियन डॉलर की पेंटिंग है।’

महिला को बड़ा अजीब लगा कि पिकासो ने बस 10 सेकेण्ड में जल्दी से एक काम चलाऊ पेंटिंग बना दी है और बोल रहे हैं कि मिलियन डॉलर की पेंटिग है। उसने वह पेंटिंग ली और बिना कुछ बोले अपने घर आ गयी..!!

उसे लगा पिकासो उसको पागल बना रहा है। वह बाजार गयी और उस पेंटिंग की कीमत पता की। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह पेंटिंग वास्तव में मिलियन डॉलर की थी…!!

वह भागी-भागी एक बार फिर पिकासो के पास आयी और बोली, ‘सर आपने बिलकुल सही कहा था। यह तो मिलियन डॉलर की ही पेंटिंग है।’

पिकासो ने हँसते हुए कहा,’मैंने तो आपसे पहले ही कहा था।’

वह महिला बोली, ‘सर, आप मुझे अपनी स्टूडेंट बना लीजिये और मुझे भी पेंटिंग बनानी सिखा दीजिये। जैसे आपने 10 सेकेण्ड में मिलियन डॉलर की पेंटिंग बना दी, वैसे ही मैं भी 10 सेकेण्ड में न सही, 10 मिनट में ही अच्छी पेंटिंग बना सकूँ, मुझे ऐसा बना दीजिये।’

पिकासो ने हँसते हुए कहा, ‘यह पेंटिंग, जो मैंने 10 सेकेण्ड में बनायी है…
इसे सीखने में मुझे 30 साल का समय लगा है। मैंने अपने जीवन के 30 साल सीखने में दिए हैं..!! तुम भी दो, सीख जाओगी..!!

वह महिला अवाक् और निःशब्द होकर पिकासो को देखती रह गयी…!!

दोस्तो, जब हम दूसरों को सफल होता देखते हैं, तो हमें यह सब बड़ा आसान लगता है…!!

हम कहते हैं, यार, यह इंसान तो बड़ी जल्दी और बड़ी आसानी से सफल हो गया….!!!

लेकिन मेरे दोस्त,
उस एक सफलता के पीछे कितने वर्षों की मेहनत छिपी है, यह कोई नहीं देख पाता….!!!

सफलता तो बड़ी आसानी से मिल जाती है, शर्त यह है कि सफलता की तैयारी में अपना जीवन कुर्बान करना होता है…!!

जो खुद को तपा कर, संघर्ष कर अनुभव हासिल करता है, वह कामयाब हो जाता है लेकिन दूसरों को लगता है कि वह कितनी आसानी से सफल हो गया…!!

मेरे दोस्त, परीक्षा तो केवल 3 घंटे की होती है,

लेकिन उन 3 घण्टों के लिए पूरे साल तैयारी करनी पड़ती है तो फिर आप रातों-रात सफल होने का सपना कैसे देख सकते हो…!!?

👉 सफलता अनुभव और संघर्ष मांगती है और, अगर आप देने को तैयार हैं, तो आपको आगे जाने से कोई नहीं रोक सकता….!

चलता रह पथ पर,
चलने में माहिर बन जा…!!
या तो मंजिल मिल जाएगी,
या
अच्छा मुसाफ़िर बन जाएगा..!

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थोड़ा सा समय
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हनीमून से लौटते समय टैक्सी में बैठी जूही के मन में कई तरह के विचार आ जा रहे थे. अजय ने उसे खयालों में डूबा देख उस की आंखों के आगे हाथ लहरा कर पूछा, ‘‘कहां खोई हो? घर जाने का मन नहीं कर रहा है?’’
जूही मुसकरा दी, लेकिन ससुराल में आने वाले समय को ले कर उस के मन में कुछ घबराहट सी थी. दोनों शादी के 1 हफ्ते बाद ही सिक्किम घूमने चले गए थे. उन का प्रेमविवाह था. दोनों सीए थे और नरीमन में एक ही कंपनी में जौब करते थे.
अजय ब्राह्मण परिवार का बड़ा बेटा था. पिता शिवमोहन एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर थे. मम्मी शैलजा हाउसवाइफ थीं और छोटी बहन नेहा अभी कालेज में थी. अजय का घर मुलुंड में था.
पंजाबी परिवार की इकलौती बेटी जूही कांजुरमार्ग में रहती थी. जूही के पिता विकास डाक्टर थे और मां अंजना हाउसवाइफ थीं. दोनों परिवारों को इस विवाह पर कोई एतराज नहीं था. विवाह हंसीखुशी हो गया. जूही को जो बात परेशान कर रही थी वह यह थी कि उस के औफिस जानेआने का कोई टाइम नहीं था. अब तक तो घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं थी, नरीमन से आतेआते कभी 10 बजते, तो कभी 11. जिस क्लाइंट बेसिस पर काम करती, पूरी टीम के हिसाब से उठना पड़ता. मायके में तो घर पहुंचते ही कपड़े बदल हाथमुंह धो कर डिनर करती और फिर सीधे बैड पर.
शनिवार और रविवार पूरा आराम करती थी. मन होता तो दोस्तों के साथ मूवी देखती, डिनर करती. वैसे भी मुंबई में औफिस जाने वाली ज्यादातर कुंआरी अविवाहित लड़कियों का यही रूटीन रहता है, हफ्ते के 5 दिन काम में खूब बिजी और छुट्टी के दिन आराम. जूही के 2-3 घंटे तो रोज सफर में कट जाते थे. वह हमेशा वीकैंड के लिए उत्साहित रहती.
जैसे ही अंजना दरवाजा खोलतीं, जूही एक लंबी सांस लेते हुए कहती थी, ‘‘ओह मम्मी, आखिर वीकैंड आ ही गया.’’
अंजना को उस पर बहुत स्नेह आता कि बेचारी बच्ची, कितनी थकान होती है पूरा हफ्ता.
जूही को याद आ रहा था कि जब बिदाई के समय उस की मम्मी रोए जा रही थीं तब उस की सासूमां ने उस की मम्मी के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘आप परेशान न हों. बेटी की तरह रहेगी हमारे घर. मैं बेटीबहू में कोई फर्क नहीं रखूंगी.’’
तब वहीं खड़ी जूही की चाची ने व्यंग्यपूर्वक धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘सब कहने की बातें हैं. आसान नहीं होता बहू को बेटी समझना. शुरूशुरू में हर लड़के वाले ऐसी ही बड़ीबड़ी बातें करते हैं.’’
बहते आंसुओं के बीच में जूही को चाची की यह बात साफसाफ सुनाई दी थी. पहला हफ्ता तो बहुत मसरूफियत भर निकला. अब वे घूम कर लौट रहे थे, देखते हैं क्या होता है. परसों से औफिस भी जाना है. टैक्सी घर के पास रुकी तो जूही अजय के साथ घर की तरफ चल दी.
शिवमोहन, शैलजा और नेहा उन का इंतजार ही कर रहे थे. जूही ने सासससुर के पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया. नेहा को उस ने गले लगा लिया, सब एकदूसरे के हालचाल पूछते रहे.
शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग फै्रश हो जाओ, मैं चाय लाती हूं.’’
जूही को थकान तो बहुत महसूस हो रही थी, फिर भी उस ने कहा, ‘‘नहीं मम्मीजी मैं बना लूंगी.’’
‘‘अरे थकी होगी बेटा, आराम करो और हां, यह मम्मीजी नहीं, अजय और नेहा मुझे मां ही कहते हैं, तुम भी बस मां ही कहो.’’
जूही ने झिझकते हुए सिर हिला दिया. अजय और जूही ने फ्रैश हो कर सब के साथ चाय पी.
थोड़ी देर बाद शैलजा ने पूछा, ‘‘जूही, डिनर में क्या खाओगी?’’
‘‘मां, जो बनाना है, बता दें, मैं हैल्प करती हूं.’’
‘‘मैं बना लूंगी.’’
‘‘लेकिन मां, मेरे होते हुए…’’
हंस पड़ीं शैलजा, ‘‘तुम्हारे होते हुए क्या? अभी तक मैं ही बना रही हूं और मुझे कोई परेशानी भी नहीं है,’’ कह कर शैलजा किचन में आ गईं तो जूही भी मना करने के बावजूद उन का हाथ बंटाती रही.
अगले दिन की छुट्टी बाकी थी. शिवमोहन औफिस और नेहा कालेज चली गई. जूही अलमारी में अपना सामान लगाती रही. सब अपनेअपने काम में व्यस्त रहे. अगले दिन साथ औफिस जाने के लिए अजय और जूही उत्साहित थे. दोनों लोकल ट्रेन से ही जाते थे. हलकेफुलके माहौल में सब ने डिनर साथ किया.
रात को सोने के समय शिवमोहन ने कहा ‘‘कल से जूही भी लंच ले जाएगी न?’’
‘‘हां, क्यों नहीं?’’
‘‘इस का मतलब कल से उस की किचन की ड्यूटी शुरू?’’
‘‘ड्यूटी कैसी? जहां मैं अब तक 3 टिफिन पैक करती थी, अब 4 कर दूंगी, क्या फर्क पड़ता है?’’
शिवमोहन ने प्यार भरी नजरों से शैलजा को देखते हुए कहा, ‘‘ममतामयी सास बनोगी इस का कुछ अंदाजा तो था मुझे.’’
‘‘आप से कहा था न कि जूही बहू नहीं बेटी बन कर रहेगी इस घर में.’’
शिवमोहन ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘लेकिन तुम्हें तो बहुत कड़क सास मिली थीं.’’
शैलजा ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘इसीलिए तो जूही को उन तकलीफों से बचाना है जो मैं ने खुद झेली हैं. छोड़ो, वह अम्मां का पुराना जमाना था, उन की सोच अलग थी, अब तो वे नहीं रहीं. अब उन बातों का क्या फायदा? अजय ने बताया था जूही को पनीर बहुत पसंद है. कल उस का पहला टिफिन तैयार करूंगी, पनीर ही बनाऊंगी, खुश हो जाएगी बच्ची.’’
शिवमोहन की आंखों में शैलजा के लिए तारीफ के भाव उभर आए. सुबह अलार्म बजा. जूही जब तक तैयार हो कर किचन में आई तो वहां 4 टिफिन पैक किए रखे थे. शैलजा डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रख रही थीं.
जूही शर्मिंदा सी बोली. ‘‘मां, आप ने तो सब कर लिया.’’
‘‘हां बेटा, नेहा जल्दी निकलती है. सब काम साथ ही हो जाता है. आओ, नाश्ता कर लो.’’
‘‘कल से मैं और जल्दी उठ जाऊंगी.’’
‘‘सब हो जाएगा बेटा, इतना मत सोचो. अभी तो मैं कर ही लेती हूं. तबीयत कभी बिगड़ेगी तो करना ही होगा और आगेआगे तो जिम्मेदारी संभालनी ही है, अभी ये दिन आराम से बिताओ, खुश रहो.’’
अजय भी तैयार हो कर आ गया था. बोला, ‘‘मां, लंच में क्या है?’’
‘‘पनीर.’’
जूही तुरंत बोली, ‘‘मां यह मेरी पसंदीदा डिश है.’’
अजय ने कहा, ‘‘मैं ने ही बताया है मां को. मां, अब क्या अपनी बहू की पसंद का ही खाना बनाओगी?’’
जूही तुनकी, ‘‘मां ने कहा है न उन के लिए बहू नहीं, बेटी हूं.’’
नेहा ने घर से निकलतेनिकलते हंसते हुए कहा, ‘‘मां, भाभी के सामने मुझे भूल मत जाना.’’
शिवमोहन ने भी बातों में हिस्सा लिया, ‘‘अरे भई, थोड़ा तो सास वाला रूप दिखाओ, थोड़ा टोको, थोड़ा गुस्सा हो, पता तो चले घर में सासबहू हैं.’’ सब जोर से हंस पड़े.
शैलजा ने कहा, ‘‘सौरी, यह तो किसी को पता नहीं चलेगा कि घर में सासबहू हैं.’’ सब हंसतेबोलते घर से निकल गए.
थोड़ी देर बाद ही मेड श्यामाबाई आ गई. शैलजा घर की सफाई करवाने लगी. अजय के कमरे में जा कर श्यामा ने आवाज दी, ‘‘मैडम, देखो आप की बहू कैसे सामान फैला कर गई हैं.’’
शैलजा ने जा कर देखा, हर तरफ सामान बिखरा था, उन्हें हंसी आ गई.
श्यामा ने पूछा, ‘‘मैडम, आप हंस रही हैं?’’
शैलजा ने कहा, ‘‘आओ, मेरे साथ,’’ शैलजा उसे नेहा के कमरे में ले गई. वहां और भी बुरा हाल था.
शैलजा ने कहा, ‘‘यहां भी वही हाल है न? तो चलो अब हर जगह सफाई कर लो जल्दी.’’
श्यामा 8 सालों से यहां काम कर रही थी. अच्छी तरह समझती थी अपनी शांतिपसंद मैडम को, अत: मुसकराते हुए अपने काम में लग गई.
जूही फोन पर अपने मम्मीपापा से संपर्क में रहती ही थी. शादी के बाद आज औफिस का पहला दिन था. रास्ते में ही अंजना का फोन आ गया. हालचाल के बाद पूछा, ‘‘आज तो सुबह कुछ काम भी किए होंगे?’’
शैलजा की तारीफ के पुल बांध दिए जूही ने. तभी अचानक जूही को कुछ याद आया. बोली, ‘‘मम्मी, मैं बाद में फोन करती हूं,’’ फिर तुरंत सासूमां को फोन मिलाया.
शैलजा के हैलो कहते ही तुरंत बोली, ‘‘सौरी मां, मैं अपना रूम बहुत बुरी हालत में छोड़ आई हूं… याद ही नहीं रहा.’’
‘‘श्यामा ने ठीक कर दिया है.’’
‘‘सौरी मां, कल से…’’
‘‘सब आ जाता है धीरेधीरे. परेशान मत हो.’’
शैलजा के स्नेह भरे स्वर पर जूही का दिल भर आया. अजय और जूही दिन भर व्यस्त रहे. सहकर्मी बीचबीच में दोनों को छेड़ कर मजा लेते रहे. दोनों रात 8 बजे औफिस से निकले तो थकान हो चुकी थी. जूही का तो मन कर रहा था, सीधा जा कर बैड पर लेटे. लेकिन वह मायका था अब ससुराल है.
10 बजे तक दोनों घर पहुंचे. शिवमोहन, शैलजा और नेहा डिनर कर चुके थे. उन दोनों का टेबल पर रखा था. हाथ धो कर जूही खाने पर टूट पड़ी. खाने के बाद उस ने सारे बरतन समेट दिए.
शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग अब आराम करो. हम भी सोने जा रहे हैं.’’
शैलजा लेटीं तो शिवमोहन ने कहा, ‘‘तुम भी थक गई होगी न?’’
‘‘हां, बस अब सोना ही है.’’
‘‘काम भी तो बढ़ गया होगा?’’
‘‘कौन सा काम?’’
‘‘अरे, एक और टिफिन…’’
‘‘6 की जगह 8 रोटियां बन गईं तो क्या फर्क पड़ा? सब की तो बनती ही हैं और आज तो मैं ने इन दोनों का टिफिन अलगअलग बना दिया. कल से एकसाथ ही पैक कर दूंगी. खाना बच्चे साथ ही तो खाएंगे, जूही का खाना बनाने से मुझ पर कोई अतिरिक्त काम आने वाली बात है ही नहीं.’’
‘‘तुम हर बात को इतनी आसानी से कैसे ले लेती हो, शैल?’’
‘‘शांति से जीना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है, बस हम औरतें ही अपने अहं, अपनी जिद में आ कर अकसर घर में अशांति का कारण बन जाती हैं. जैसे नेहा को भी अभी कोई काम करने की ज्यादा आदत नहीं है वैसे ही वह बच्ची भी तो अभी आई है. आजकल की लड़कियां पहले पढ़ाई, फिर कैरियर में व्यस्त रहती हैं. इतना तो मैं समझती हूं आसान नहीं है कामकाजी लड़कियों का जीवन. अरे मैं तो घर में रहती हूं, थक भी गई तो दिन में थोड़ा आराम कर लूंगी. कभी नहीं कर पाऊंगी तो श्यामा है ही, किचन में हैल्प कर दिया करेगी, जूही पर घर के भी कामों का क्या दबाव डालना. नेहा को ही देख लो, कालेज और कोचिंग के बाद कहां हिम्मत होती है कुछ करने की, ये लड़कियां घर के काम तो समय के साथसाथ खुद ही सीखती चली जाती हैं. बस, थोड़ा सा समय लगता है.’’
शैलजा अपने दिल की बातें शेयर कर रही थीं, ‘‘अभी नईनई आई है, आते ही किसी बात पर मन दुखी हो गया तो वह बात दिल में एक कांटा बन कर रह जाएगी जो हमेशा चुभती रहेगी. मैं नहीं चाहती उसे किसी बात की चुभन हो,’’ कह कर वे सोने की तैयारी करने लगीं, बोलीं, ‘‘चलो, अब सो जाते हैं.’’
उधर अजय की बांहों का तकिया बना कर लेटी जूही मन ही मन सोच रही थी, आज शादी के बाद औफिस का पहला दिन था. मां के व्यवहार और स्वभाव में कितना स्नेह है. अगर उन्होंने मुझे बेटी माना है तो मैं भी उन्हें मां की तरह ही प्यार और सम्मान दूंगी. पिछले 15 दिनों से चाची की बात दिल पर बोझ की तरह रखी थी, लेकिन इस समय उसे अपना दिल फूल सा हलका लगा, बेफिक्री से आंखें मूंद कर उस ने अपना सिर अजय के सीने पर रख दिया.
Poonam Ahmad

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—– निवाला —–

” ले कमला! तू भी पहले खाना खा ले, काम बाद में निपटा लेना।” मिसिज़ चड्ढा ने सुबह से काम में लगी कमला को खाने की प्लेट थमाते हुए कहा तो कमला को घर पर बैठे अपने भूखे बच्चों की याद सताने लगी।
” अरे!! खाना? मेम साब! आज घर जाने में बहुत देर हो गयी है,वहां घर पर मेरे बच्चे भूखे बैठे होंगे तो मेरे मुंह में यहां निवाला कैसे उतरेगा मेमसाब..!! बोलते हुए कमला उदास होगयी।
” बहुत दिनों से उनको कुछ अच्छा खाने को नहीं मिला, सोच रही हूँ आज ये खाना उन्हीं के लिये… “सकुचाते हुए कमला ने कहा।
” ठीक है… उनके लिये भी ले जाना, इसे तू ही खा ले।”
फिर चलते वक्त मिसिज़ चड्ढा ने बच्चों के लिये भी बहुत सारा खाना कमला को दे दिया।
कमला घर जाकर बड़े प्यार से अपने बच्चों को खाना खिलाने लगी और बच्चे भी चटकारे ले कर पार्टी का सा आनन्द लेने लगे।
वहीं दरवाजे पर पड़ी हुई हड्डियों का ढांचा बनी कुतिया जो अक्सर सुस्ताने के लिये उन्हीं के दरवाजे पर लेटी रहती थी, खाने की खुशबू से उठ बैठी और बच्चों के हाथों से मुंह तक जाते एक एक निवाले को गिनने लगी। उसकी आंखों में कमला को याचना सी नजर आ रही थी जिसे देख कर कमला ने दो पूड़ियां उस की ओर भी उछाल दीं ” ले तू भी खा ले , क्या याद करेगी ,आज मेम साब के बेटे का जन्मदिन था।”
कुतिया कुछ देर उन पूड़ियों को उलट-पलट कर सूंघती रही फिर मुंह में दबा कर वहां से निकल गयी।” कितने प्यार सेे अपने बच्चों के मुंह से निवाला निकाल कर दिया था इसे, पर जाने कहां ले कर चल दी है चुड़ैल,यहीं बैठ कर ना खा लेती! देखूं तो कहां जाती है लेकर.. !! कमला बड़बडा़ती हुई दरवाजे के बाहर झांकने लगी।”
देखा गली के छोर पर तीन चार छोटे पिल्ले पैरों में मुंह छिपाये धूप में लेटे हुए थे,कुतिया ने उनके सामने जाकर अपना मुंह खोल दिया, पिल्ले पूड़ियों पर झपट पड़े। ये देख कर कमला की आंखें नम हो गयीं।” अरी! मैं ये कैसे भूल गयी कि तू भी तो मेरी तरह एक मां ही है। और मां अपने बच्चों के मुंह में निवाला डालने से पहले खुद कैसे खा सकती है।
— सुनीता त्यागी

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ટૂંકી વાર્તા : “કંપની ”

નદી કિનારે ૫૦૦૦ ચોરસ વાર ના મોટા પ્લોટ માં અજય નો આલીશાન બંગલો હતો ; શહેર ના અતિ ધનિક લોકો માં એની ગણતરી થતી . અજય એની પત્ની રીટા અને પુત્ર સુકેન તથા પિતા હસમુખરાય સાથે ભવ્ય વીલા માં રહેતો હતો . એક દિવસ ડાઇનિંગ ટેબલ પર સહુ જમવા બેઠા હતા ત્યારે હસમુખરાયે કહ્યું ” બેટા મને ઘરડા ઘર માં મૂકી આવને ; અજય અને રીટા ચોંકી ઉઠ્યા અને વિચાર્યું કે અમારી માવજત માં કોઈ ખામી રહી ગઈ કે શું ? અજયે કહ્યું ” કેમ પપ્પા , અમારા થી કોઈ ભૂલ થઇ ગઈ કે કોઈએ તમને કઈ કહ્યું ? હસમુખરાયે હંસતા હંસતા કહ્યું ; ના બેટા ના ; તું વહુ અને સુકેન જેટલી સાર સંભાળ મારી કોણ રાખી શકે ? પણ હું અહિંયા એકલો આખો દિવસ કંટાળી જાઉં છું અને ઘરડા ઘર માં મારા ત્રણ જુના મિત્રો છે તો મારો ટાઈમ પાસ થઇ જશે . અજયે કહ્યું ” પપ્પા , સમાજ અમારા માટે શું વિચારશે ; ૬ મહિના જવા દો હું કઈ વ્યવસ્થા કરી આપીશ . હસમુખરાય પણ માની ગયા . વાત વિસરાઈ ગઈ . અજયે વિલા ની બાજુમાં એક નાનું આઉટ હાઉસ બનાવવાનું શરુ કર્યું અને જોત જોતા માં એક સુંદર મજાનું આઉટ હાઉસ તૈય્યાર થઇ ગયું . હસમુખરાયે પૂછ્યું ; બેટા આ શું કામ બનાવ્યું ? આપણું આટલું મોટું ઘર છે ને ; અજયે કહ્યું કે મેહમાનો માટે છે ને આવતા રવિવારે તમારા હાથે ઉદ્દઘાટન કરવાનું છે . રવિવાર આવી ગયો , ફેમિલી મેમ્બર્સ અને થોડા મિત્રો ને બોલાવવામાં આવ્યા હતા , આઉટ હાઉસ પર રીબીન બાંધવામાં આવી હતી ; હસમુખરાયે તાળીઓ ના ગડ્ગડાટ સાથે રીબીન કાપી ; અજયે કહ્યું ” પપ્પા બારણું પણ ખોલો , હસમુખરાયે બારણું ખોલ્યું , સામે ખુરશી પર તેમના ત્રણ મિત્રો બેઠા હતા , હસમુખરાય ખુશી થી ઝૂમી ઉઠ્યા અને ત્રણે મિત્રોને ગળે લગાડી દીધા . અજય રૂમમાં દાખલ થયો તો ચારે વડીલો એને ભેંટી પડ્યા . અજયે કહ્યું કે પપ્પા ની ઈચ્છા હતી કે તમારી સાથે જિંદગી વિતાવે એટલે હું ત્રણે વડીલોને ઘરડા ઘર થી અહીં લઇ આવ્યો , આજ થી તમારા લોકો નું આજ ઘર છે , મેં એક કેર ટેકર શંભુ કાકા ને પણ રાખ્યા છે જે તમારી તહેનાતમાં આખો દિવસ હાજર રહેશે . ચારે વડીલોની આંખમાં થી અશ્રુઓ વહી ગયા . અજય બારણું બંધ કરીને બહાર નીકળ્યો અને રૂમ માં થી ખડખડાટ હાસ્ય ના અવાજો આવવા લાગ્યા . અજયે મનોમન બોલી ઉઠ્યો “જુના મિત્રો ની “કંપની ” સ્ટીરોઈડ જેવી હોય છે ” !!!

Good Morning ji !!!💞🏠✒💕🦋

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

औरँगजेब का दरबार लगा था। मुगल सेना की बार बार हो रही हार से परेशान बादशाह अपने सब नवाबों और सिपाहसालारों के साथ मन्त्रणा में व्यस्त था। सरहिंद का सूबेदार वज़ीर खान, धन्न गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज से बहुत खार खाता था। वो किसी भी तरह गुरु गोबिंद सिंह जी को हराना या खत्म करना चाहता था लेकिन महाबली सतगुरु जी और खालसा फ़ौज के आगे उसे सदा मुँह की खानी पड़ती।

बादशाह ने एक पान का बीड़ा और तलवार अपने सिपाहसालारों के आगे रख दी और बोला –

है कोई मर्द, जो मेरे दिल में भड़कती इस नफरत की आग को ठंडा करे?

है कोई दलेर, जो उस काफिरों के हमदर्द गुरु को पकड़कर मेरे सामने पेश करे?

है कोई बली, जो मेरे उस सबसे बड़े दुश्मन का खात्मा करके मेरे दिल को ठंडक दे?

गुरु गोबिंद साहब जी महाराज के सामने लड़ने गए पिछले सिपाहसालारों के हश्र को याद करके किसी भी सेनानायक की हिम्मत नहीं हुई कि वो बादशाह के सामने पड़े बीड़े और शमशीर को उठाकर गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज की हत्या का संकल्प ले।

जब कोई नहीं उठा, तो बादशाह ने फिर तक़रीर की –

तो क्या मैं ये समझूँ कि मैं यहाँ खुसरों*(नामर्दों) की महफ़िल में बैठा हूँ?

ऐसी अपमानजनक बात सुनकर एक पठान की भुजाएँ फड़क उठीं। उसका जवान खून उबाल मार गया। सामने पड़ी शमशीर उठा और पान का बीड़ा उठा उसे अपने मुँह में रख चबाते हुए बोला –

मालिक-ए-हिन्द, मैं सैद खान खान कौल (प्रतिज्ञा) करता हूँ उस काफ़िरों के गुरु को ऐसे चबा जाऊँगा जैसे ये पान चबा रहा हूँ। इंशाल्लाह आनन्दपुर पर इस्लामी पताका फहरेगी। अगर उसे बन्दी न बना पाया तो कभी वापिस नही आऊँगा।

सैदखान ऊँचा लम्बा नौजवान और अव्वल दर्जे का तीरंदाज था। वो अपने हुनर से किसी भी अन्य तीरंदाज की अपेक्षा अधिक दूरी से अत्यंत सटीक निशाना लगा सकता था।

बादशाह बहुत खुश हुआ और कई सिपाहसालारों के साथ बेशुमार सेना असलहा देकर सैद खान को जंग के लिए विदा किया।

रास्ते में पहाड़ी राजा भीमचंद और अन्य राजाओं की सेना भी सैद खान के साथ मिल गयीं और एक बहुत बड़ा लश्कर आनंदपुर साहब पर धावा बोलने चल पड़ा।

रास्ते में पीर बुधुशाह का गाँव सढोरा आया। पीर बुधुशाह गुरु गोबिंद साहब जी महाराज के अनन्य प्रेमी थे। सैदखान की बहन नसीरा जिसे वो बहुत प्रेम करता था, पीर बुधुशाह की सेविका और उन्हीं के गाँव में ब्याही थी।

जंग पर जाने से पहले अपनी प्रिय बहन नसीरा से मिलने की हसरत में सैदखान, सेना को शिविर में सोता हुआ छोड़ अपनी बहन नसीरा के घर आ पहुँचा। अपने भाई से मिल नसीरा बहुत खुश हुई।

“आज आपको मेरी याद कैसे आ गई, भाईजान?”

“मैं सेना लेकर एक बागी को मारने जंग पर जा रहा हूँ, नसीरा। जंग में मौत कब किससे अपनी भूख मिटाए, कोई नहीं जानता। तेरे गाँव के पास आकर मन हुआ तुझसे मिलता चलूँ। क्या मालूम अल्लाह ने फिर मिलना लिखा है या नहीं।”

“ऐसा न कहो, भाई जान। मालिक आपको लंबी उम्र दे। ऐसा कौन बागी है जिसने मुगलिया हुकूमत की नाक में दम कर रखा है?”

“वो काफिरों का गुरु, गुरु गोबिंद सिंह, अपनी अलग सेना बनाए बैठा है, अपना किला बनवा रखा है, औरँगजेब को बादशाह नहीं मानता, अपनी पताका फहराता है, नगाड़े बजवाता है, युद्धाभ्यास करता है, मुगल सेना को कई दफ़े शिक़स्त दे चुका है। यक़ीनन वो बादशाह की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। उस बागी गुरु का सर कुचलने ही मैं आनन्दपुर जा रहा हूँ। यक़ीन करो ऐसी मार मारूँगा कि सदियों तक पंजाब की धरती पर फिर कोई बागी पैदा नहीं होगा।”

“बागी???गुरु गोबिंद सिंह?? भाईजान, आपके बादशाह और आपका दिमाग खराब हो गया है। वो अल्लाह के नूर हैं, वो हुकूमत के बागी नहीं इस क़ायनात के मालिक हैं। उनकी हसरत से आप और मैं साँस ले रहे हैं। आपके बादशाह का तख़्त क़ायम है, वो काफ़िर नहीं, वो बागी नहीं जो उनसे जंग करने आप जा रहे हैं। आप काफ़िर हैं जो अल्ल्लाह के बागी बनने जा रहे हैं।”

“नसीरा बहन, मुझे लगता है पीर बुधुशाह की तरह तेरे ऊपर भी गुरु गोबिंद की शख़्सियत असर कर गई है। आया तो था मैं तुझसे दुआ लेने लेकिन लगता है कि मैं नाहक ही गुरु गोबिंद सिंह के किसी हिमायती से मिलने आ गया।”

“रब की हिमायत कौन कर सकता है भाईजान? वो जिस पर रहमत करे, उसे अपनी सेवा बख्शता है, मैं आपकी हिमायती हूँ, अल्लाह से जंग में आपकी हार यक़ीनी है, बन्दगी करते हुए अपने मुर्शिद बुधुशाह जी, की तरह मुझे भी सदा अल्लाही नूर में गुरु गोबिंद सिंह जी के ही दर्शन होते हैं। उनसे जंग में आपकी हार पक्की है। मुर्शिद बुधुशाह जी कहते हैं – जो अल्लाह के आगे अपना मन हार जाते हैं संसार में किसी से नहीं हारते। मैं दुआ करती हूँ आपके मन को अल्लाह अपनी बख़्शीश से नवाज़े, आपको लंबी उम्र मिले, आपको सच का इल्म हो, आपको मालिक पापों से महफ़ूज़ रखे।”

बहन से गुरु साहब की तारीफे सुन, खिन्न मन से सैदखान वापिस अपने शिविर को चल पड़ा। अपनी बहन के गुरु प्रेम से हताश सैदखान अगले ही दिन सेना सहित आनन्दपुर के लिए कूच कर गया।

आनन्दपुर साहब पहुँचकर उसने आनँदगढ़ किले की घेराबन्दी कर दी और दूरबीन लगाकर किले की सेना व्यवस्था का मुआयना करने लगा। तभी उसको किले के बुर्ज़ पर एक आलौकिक पुरुष अपने केश सुखाते हुए नजर आया। उनके सिर पर एक छोटा-सा खुला साफ़ा था और केश खुले हुए थे। और उनकी आलौकिकता किसी अन्य मनुष्य से कहीं अधिक थी।

साथ खड़े अन्य सिपहसलार को दूरबीन से वो पुरुष दिखाने पर उसने बताया – ये धन्न गुरु गोबिंद साहब जी महाराज हैं!

“गुरु गोबिंद सिंह, बुर्ज पर अकेले!! वो भी निहत्थे… इससे अच्छा मौक़ा नहीं मिलेगा। एक ही तीर उनका काम तमाम कर देगा। जंग तो मैं शुरू होने से पहले ही जीत जाऊँगा।”

फौरन सैदखान ने अपना धनुष उठाया और भागकर उस जगह पहुँचा जहाँ से गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज उसकी तीर की ज़द में आ जाएं। एक चुनिंदा मारक तीर उसने अपने तरकश से निकाला और गुरुजी के गले की तरफ निशाना लगाया।

लेकिन ये क्या, गुरु गोबिंद सिंह जी की जगह उसे अपनी बहन नसीरा का चेहरा नज़र आने लगा।

उसने तीर नीचे किया फिर अपने बिखरते मनोयोग को एकत्र किया, फिर निशाना लगाया, इस बार भी उसे अपनी बहन नसीरा का चेहरा नज़र आया। गुरु करामाती है, ऐसा सोच सैदखान ने अपना तीर तरकश में वापिस रख लिया और उस मोर्चे से बहुत दूर हटकर एक पहाड़ी के टीले पर मंजे पर बैठकर दूसरे सिपाहसालारों के साथ चौसर खेलने लगा।

“ख़ान साहब, आपने तीर साधा तो चलाया क्यों नहीं?”, साथी सिपाहसलार ने सवाल किया।

“मैंने सुना है गुरु गोबिंद सिंह भी बड़ा तीरंदाज है। मैंने सोचा बिना उसको अपना जौहर दिखाए मार दूँ, ये कहाँ की बहादुरी है?”, सैदख़ाँ ने बात बनाई।

“अपनी बात कहकर चुप हुआ ही था कि एक तीर सर्र से करता हुआ उसके मंजे के दाएं पावे में आ लगा।”

“ये गुरु गोबिंद सिंह का तीर है!”, एक चिल्लाया।

“तुम्हें कैसे पता?”, सैदखान ने पूछा।

“देखो, इस पर सोना लगा है, ऐसे तीर बस वही चलाता है और देखो, उस पर एक चिट्ठी भी लगी है!”

सैदखान ने वो तीर निकाला उस चिट्ठी को पढ़ा –

सैदख़ान, अगर निशाना बनाया था तो तीर चला देना था!

‘क्या गुरु ने मुझे देख लिया था, जितनी दूरी पर उस बुर्ज़ से मैं बैठा हूँ, वहाँ से मुझ तक तीर मारना!! गुरु नि:संन्देह करामाती है’, सैदखान ने सोचा।

अभी सोच ही रहा था कि एक और तीर सर्र से करता हुआ उसकी छाती के आगे से निकलता हुआ मंजे के बाएं पावे में आ लगा।

“गुरु ने हमला कर दिया”, ऐसा कहकर सब सिपाहसलार जान बचाने को अपने अपने शिविर में भाग गए।

‘ये तीर निश्चय ही मेरी जान ले जाता’, सैदख़ान पसीने से तरबतर हो गया। इस तीर पर भी एक चिट्ठी थी –

सैदख़ान, मेरे निशानों को करामात न समझ। तीर ने हमारे बाहुबल से दूरी तय की है और तेरे मंजे के पावों पर निशाना हमारी कला है।

‘गुरु मेरे मन की बात सुन रहा है! जो मैंने सोचा गुरु उसका जवाब चिट्ठी में लिख रहा है! क्या नसीरा सच कहती है? गुरु क्या सच में अल्लाह का नूर है?’, सैदखान को सारी रात नींद न आई। गुरु जी के बारे में सोचते सोचते ही दिन चढ़ गया।

जंग के मोर्चे लग गए। खालसा और मुगल फ़ौज में भीषण जंग शुरू हो गया। काल की देवी वीरों के लहू से अपनी प्यास बुझाने लगीं।

‘अगर गुरु सच में अल्लाह का नूर है तो एक ही पल में मेरे सामने आकर मुझे दर्शन दें!’, सैदखान ने मन में सोचा।

अगले ही पल दल को चीरते दुष्ट दमन सतगुरु अपने घोड़े पर सवार सैदख़ान के सामने खड़े थे।

“ले सैदखान, हम आ गए। अब कर अपने मन की मुराद पूरी।”, गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा।

सैदख़ान की आँखों से आँसू बहने लगे, वो घोड़े से नीचे उतर कर सतगुरु जी के श्रीचरणों से लिपट गया और कहने लगा –

“नसीरा ठीक कहती है, आप सच में अल्लाह के नूर हो।”

“सैदख़ान, शैदाई न बन,तू क़ौल कर के आया है कि हमें एक ही तीर से मार देगा। तीर चला… वचन से टूटा तो काफ़िर कहलाएगा!”

“नसीरा ठीक कहती है, सतगुरु! जो अल्लाह की नेकियों के ख़िलाफ़ हैं, जो अल्लाह की मेहरबानियों से मुनकर हैं वो काफिर हैं। आपके खिलाफ शस्त्र उठाकर मुझे काफ़िर नहीं बनना!”

“फिर तेरा निशाना हम कैसे देखेंगे?”

“मेरे रहबर, ये आपकी बख़्शीश है कि आपने मेरे हृदय को अपना निशाना बनाया। आपके पहले तीर ने मेरा बेहतरीन निशानेबाज होने का घमंड तोड़ दिया और आपके दूसरे तीर ने मेरे हृदय से आपके प्रति वैर निकाल दिया। नसीरा ने मुझे चलते हुए सुमति मिलने की दुआ की थी इसलिए जब मैंने आपका निशाना लगाया तो मुझे आपके अक़्स में बहन नसीरा का चेहरा दिखा। मुझे समझ आ गया मेरे मन की हर बात की तरह मेरी बहन और इस सारे संसार की बन्दगी आपके चरणों में ही पहुँचती है!”

सतगुरु जी ने सैदखान को सीने से लगा लिया और कहा –

“तू सच में बेहतरीन निशानेबाज़ है सैदख़ान, विरले ही संसार में गुरु की तरफ अपने जीवन का निशाना लगाते हैं!”

“और जो लगाते हैं, मेरे मालिक़, वो आपकी बख़्शीश से ही लगाते हैं।”, सैदखान ने उत्तर दिया।.

सैदखान ने गुरु जी से बन्दगी की दात प्राप्त की और अपना रहता जीवन अल्लाह की बन्दगी में व्यतीत किया।

सतनाम श्री वाहेगुरु

—–✍विकास खुराना 👳‍♂🔱🚩

Posted in सुभाषित - Subhasit

पापान्निवारयति योजयते हिताय
गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति ।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले
सन्मित्र -लक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्त: ॥
(भर्तृहरिकृतनीतिशतकम् )

अर्थात्:- अच्छा मित्र अपने मित्र को पाप करने से रोकता है ,उसको कल्याण कार्यो मे लगाता है., उसकी गोपनीय बातो को दूसरों से छिपाता है., उसके गुणों को दूसरों के सम्मुख प्रकट करता है,! आपत्ति आने पर साथ नही छोड़ता तथा आवश्यकता पड़ने पर धनादि के द्वारा मदद करता है संतो ने अच्छे मित्र का लक्षण बताया है.