औरँगजेब का दरबार लगा था। मुगल सेना की बार बार हो रही हार से परेशान बादशाह अपने सब नवाबों और सिपाहसालारों के साथ मन्त्रणा में व्यस्त था। सरहिंद का सूबेदार वज़ीर खान, धन्न गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज से बहुत खार खाता था। वो किसी भी तरह गुरु गोबिंद सिंह जी को हराना या खत्म करना चाहता था लेकिन महाबली सतगुरु जी और खालसा फ़ौज के आगे उसे सदा मुँह की खानी पड़ती।
बादशाह ने एक पान का बीड़ा और तलवार अपने सिपाहसालारों के आगे रख दी और बोला –
है कोई मर्द, जो मेरे दिल में भड़कती इस नफरत की आग को ठंडा करे?
है कोई दलेर, जो उस काफिरों के हमदर्द गुरु को पकड़कर मेरे सामने पेश करे?
है कोई बली, जो मेरे उस सबसे बड़े दुश्मन का खात्मा करके मेरे दिल को ठंडक दे?
गुरु गोबिंद साहब जी महाराज के सामने लड़ने गए पिछले सिपाहसालारों के हश्र को याद करके किसी भी सेनानायक की हिम्मत नहीं हुई कि वो बादशाह के सामने पड़े बीड़े और शमशीर को उठाकर गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज की हत्या का संकल्प ले।
जब कोई नहीं उठा, तो बादशाह ने फिर तक़रीर की –
तो क्या मैं ये समझूँ कि मैं यहाँ खुसरों*(नामर्दों) की महफ़िल में बैठा हूँ?
ऐसी अपमानजनक बात सुनकर एक पठान की भुजाएँ फड़क उठीं। उसका जवान खून उबाल मार गया। सामने पड़ी शमशीर उठा और पान का बीड़ा उठा उसे अपने मुँह में रख चबाते हुए बोला –
मालिक-ए-हिन्द, मैं सैद खान खान कौल (प्रतिज्ञा) करता हूँ उस काफ़िरों के गुरु को ऐसे चबा जाऊँगा जैसे ये पान चबा रहा हूँ। इंशाल्लाह आनन्दपुर पर इस्लामी पताका फहरेगी। अगर उसे बन्दी न बना पाया तो कभी वापिस नही आऊँगा।
सैदखान ऊँचा लम्बा नौजवान और अव्वल दर्जे का तीरंदाज था। वो अपने हुनर से किसी भी अन्य तीरंदाज की अपेक्षा अधिक दूरी से अत्यंत सटीक निशाना लगा सकता था।
बादशाह बहुत खुश हुआ और कई सिपाहसालारों के साथ बेशुमार सेना असलहा देकर सैद खान को जंग के लिए विदा किया।
रास्ते में पहाड़ी राजा भीमचंद और अन्य राजाओं की सेना भी सैद खान के साथ मिल गयीं और एक बहुत बड़ा लश्कर आनंदपुर साहब पर धावा बोलने चल पड़ा।
रास्ते में पीर बुधुशाह का गाँव सढोरा आया। पीर बुधुशाह गुरु गोबिंद साहब जी महाराज के अनन्य प्रेमी थे। सैदखान की बहन नसीरा जिसे वो बहुत प्रेम करता था, पीर बुधुशाह की सेविका और उन्हीं के गाँव में ब्याही थी।
जंग पर जाने से पहले अपनी प्रिय बहन नसीरा से मिलने की हसरत में सैदखान, सेना को शिविर में सोता हुआ छोड़ अपनी बहन नसीरा के घर आ पहुँचा। अपने भाई से मिल नसीरा बहुत खुश हुई।
“आज आपको मेरी याद कैसे आ गई, भाईजान?”
“मैं सेना लेकर एक बागी को मारने जंग पर जा रहा हूँ, नसीरा। जंग में मौत कब किससे अपनी भूख मिटाए, कोई नहीं जानता। तेरे गाँव के पास आकर मन हुआ तुझसे मिलता चलूँ। क्या मालूम अल्लाह ने फिर मिलना लिखा है या नहीं।”
“ऐसा न कहो, भाई जान। मालिक आपको लंबी उम्र दे। ऐसा कौन बागी है जिसने मुगलिया हुकूमत की नाक में दम कर रखा है?”
“वो काफिरों का गुरु, गुरु गोबिंद सिंह, अपनी अलग सेना बनाए बैठा है, अपना किला बनवा रखा है, औरँगजेब को बादशाह नहीं मानता, अपनी पताका फहराता है, नगाड़े बजवाता है, युद्धाभ्यास करता है, मुगल सेना को कई दफ़े शिक़स्त दे चुका है। यक़ीनन वो बादशाह की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। उस बागी गुरु का सर कुचलने ही मैं आनन्दपुर जा रहा हूँ। यक़ीन करो ऐसी मार मारूँगा कि सदियों तक पंजाब की धरती पर फिर कोई बागी पैदा नहीं होगा।”
“बागी???गुरु गोबिंद सिंह?? भाईजान, आपके बादशाह और आपका दिमाग खराब हो गया है। वो अल्लाह के नूर हैं, वो हुकूमत के बागी नहीं इस क़ायनात के मालिक हैं। उनकी हसरत से आप और मैं साँस ले रहे हैं। आपके बादशाह का तख़्त क़ायम है, वो काफ़िर नहीं, वो बागी नहीं जो उनसे जंग करने आप जा रहे हैं। आप काफ़िर हैं जो अल्ल्लाह के बागी बनने जा रहे हैं।”
“नसीरा बहन, मुझे लगता है पीर बुधुशाह की तरह तेरे ऊपर भी गुरु गोबिंद की शख़्सियत असर कर गई है। आया तो था मैं तुझसे दुआ लेने लेकिन लगता है कि मैं नाहक ही गुरु गोबिंद सिंह के किसी हिमायती से मिलने आ गया।”
“रब की हिमायत कौन कर सकता है भाईजान? वो जिस पर रहमत करे, उसे अपनी सेवा बख्शता है, मैं आपकी हिमायती हूँ, अल्लाह से जंग में आपकी हार यक़ीनी है, बन्दगी करते हुए अपने मुर्शिद बुधुशाह जी, की तरह मुझे भी सदा अल्लाही नूर में गुरु गोबिंद सिंह जी के ही दर्शन होते हैं। उनसे जंग में आपकी हार पक्की है। मुर्शिद बुधुशाह जी कहते हैं – जो अल्लाह के आगे अपना मन हार जाते हैं संसार में किसी से नहीं हारते। मैं दुआ करती हूँ आपके मन को अल्लाह अपनी बख़्शीश से नवाज़े, आपको लंबी उम्र मिले, आपको सच का इल्म हो, आपको मालिक पापों से महफ़ूज़ रखे।”
बहन से गुरु साहब की तारीफे सुन, खिन्न मन से सैदखान वापिस अपने शिविर को चल पड़ा। अपनी बहन के गुरु प्रेम से हताश सैदखान अगले ही दिन सेना सहित आनन्दपुर के लिए कूच कर गया।
आनन्दपुर साहब पहुँचकर उसने आनँदगढ़ किले की घेराबन्दी कर दी और दूरबीन लगाकर किले की सेना व्यवस्था का मुआयना करने लगा। तभी उसको किले के बुर्ज़ पर एक आलौकिक पुरुष अपने केश सुखाते हुए नजर आया। उनके सिर पर एक छोटा-सा खुला साफ़ा था और केश खुले हुए थे। और उनकी आलौकिकता किसी अन्य मनुष्य से कहीं अधिक थी।
साथ खड़े अन्य सिपहसलार को दूरबीन से वो पुरुष दिखाने पर उसने बताया – ये धन्न गुरु गोबिंद साहब जी महाराज हैं!
“गुरु गोबिंद सिंह, बुर्ज पर अकेले!! वो भी निहत्थे… इससे अच्छा मौक़ा नहीं मिलेगा। एक ही तीर उनका काम तमाम कर देगा। जंग तो मैं शुरू होने से पहले ही जीत जाऊँगा।”
फौरन सैदखान ने अपना धनुष उठाया और भागकर उस जगह पहुँचा जहाँ से गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज उसकी तीर की ज़द में आ जाएं। एक चुनिंदा मारक तीर उसने अपने तरकश से निकाला और गुरुजी के गले की तरफ निशाना लगाया।
लेकिन ये क्या, गुरु गोबिंद सिंह जी की जगह उसे अपनी बहन नसीरा का चेहरा नज़र आने लगा।
उसने तीर नीचे किया फिर अपने बिखरते मनोयोग को एकत्र किया, फिर निशाना लगाया, इस बार भी उसे अपनी बहन नसीरा का चेहरा नज़र आया। गुरु करामाती है, ऐसा सोच सैदखान ने अपना तीर तरकश में वापिस रख लिया और उस मोर्चे से बहुत दूर हटकर एक पहाड़ी के टीले पर मंजे पर बैठकर दूसरे सिपाहसालारों के साथ चौसर खेलने लगा।
“ख़ान साहब, आपने तीर साधा तो चलाया क्यों नहीं?”, साथी सिपाहसलार ने सवाल किया।
“मैंने सुना है गुरु गोबिंद सिंह भी बड़ा तीरंदाज है। मैंने सोचा बिना उसको अपना जौहर दिखाए मार दूँ, ये कहाँ की बहादुरी है?”, सैदख़ाँ ने बात बनाई।
“अपनी बात कहकर चुप हुआ ही था कि एक तीर सर्र से करता हुआ उसके मंजे के दाएं पावे में आ लगा।”
“ये गुरु गोबिंद सिंह का तीर है!”, एक चिल्लाया।
“तुम्हें कैसे पता?”, सैदखान ने पूछा।
“देखो, इस पर सोना लगा है, ऐसे तीर बस वही चलाता है और देखो, उस पर एक चिट्ठी भी लगी है!”
सैदखान ने वो तीर निकाला उस चिट्ठी को पढ़ा –
सैदख़ान, अगर निशाना बनाया था तो तीर चला देना था!
‘क्या गुरु ने मुझे देख लिया था, जितनी दूरी पर उस बुर्ज़ से मैं बैठा हूँ, वहाँ से मुझ तक तीर मारना!! गुरु नि:संन्देह करामाती है’, सैदखान ने सोचा।
अभी सोच ही रहा था कि एक और तीर सर्र से करता हुआ उसकी छाती के आगे से निकलता हुआ मंजे के बाएं पावे में आ लगा।
“गुरु ने हमला कर दिया”, ऐसा कहकर सब सिपाहसलार जान बचाने को अपने अपने शिविर में भाग गए।
‘ये तीर निश्चय ही मेरी जान ले जाता’, सैदख़ान पसीने से तरबतर हो गया। इस तीर पर भी एक चिट्ठी थी –
सैदख़ान, मेरे निशानों को करामात न समझ। तीर ने हमारे बाहुबल से दूरी तय की है और तेरे मंजे के पावों पर निशाना हमारी कला है।
‘गुरु मेरे मन की बात सुन रहा है! जो मैंने सोचा गुरु उसका जवाब चिट्ठी में लिख रहा है! क्या नसीरा सच कहती है? गुरु क्या सच में अल्लाह का नूर है?’, सैदखान को सारी रात नींद न आई। गुरु जी के बारे में सोचते सोचते ही दिन चढ़ गया।
जंग के मोर्चे लग गए। खालसा और मुगल फ़ौज में भीषण जंग शुरू हो गया। काल की देवी वीरों के लहू से अपनी प्यास बुझाने लगीं।
‘अगर गुरु सच में अल्लाह का नूर है तो एक ही पल में मेरे सामने आकर मुझे दर्शन दें!’, सैदखान ने मन में सोचा।
अगले ही पल दल को चीरते दुष्ट दमन सतगुरु अपने घोड़े पर सवार सैदख़ान के सामने खड़े थे।
“ले सैदखान, हम आ गए। अब कर अपने मन की मुराद पूरी।”, गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा।
सैदख़ान की आँखों से आँसू बहने लगे, वो घोड़े से नीचे उतर कर सतगुरु जी के श्रीचरणों से लिपट गया और कहने लगा –
“नसीरा ठीक कहती है, आप सच में अल्लाह के नूर हो।”
“सैदख़ान, शैदाई न बन,तू क़ौल कर के आया है कि हमें एक ही तीर से मार देगा। तीर चला… वचन से टूटा तो काफ़िर कहलाएगा!”
“नसीरा ठीक कहती है, सतगुरु! जो अल्लाह की नेकियों के ख़िलाफ़ हैं, जो अल्लाह की मेहरबानियों से मुनकर हैं वो काफिर हैं। आपके खिलाफ शस्त्र उठाकर मुझे काफ़िर नहीं बनना!”
“फिर तेरा निशाना हम कैसे देखेंगे?”
“मेरे रहबर, ये आपकी बख़्शीश है कि आपने मेरे हृदय को अपना निशाना बनाया। आपके पहले तीर ने मेरा बेहतरीन निशानेबाज होने का घमंड तोड़ दिया और आपके दूसरे तीर ने मेरे हृदय से आपके प्रति वैर निकाल दिया। नसीरा ने मुझे चलते हुए सुमति मिलने की दुआ की थी इसलिए जब मैंने आपका निशाना लगाया तो मुझे आपके अक़्स में बहन नसीरा का चेहरा दिखा। मुझे समझ आ गया मेरे मन की हर बात की तरह मेरी बहन और इस सारे संसार की बन्दगी आपके चरणों में ही पहुँचती है!”
सतगुरु जी ने सैदखान को सीने से लगा लिया और कहा –
“तू सच में बेहतरीन निशानेबाज़ है सैदख़ान, विरले ही संसार में गुरु की तरफ अपने जीवन का निशाना लगाते हैं!”
“और जो लगाते हैं, मेरे मालिक़, वो आपकी बख़्शीश से ही लगाते हैं।”, सैदखान ने उत्तर दिया।.
सैदखान ने गुरु जी से बन्दगी की दात प्राप्त की और अपना रहता जीवन अल्लाह की बन्दगी में व्यतीत किया।
सतनाम श्री वाहेगुरु
—–✍विकास खुराना 👳♂🔱🚩
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