सच्ची_भक्ति
Jyoti Agrawaal
एक अत्यंत गरीब दीन_हीन अपहिज था, वो एक छोटे से गाँव में रहता था, वहाँ के लोग उसकी कान्हा भक्ति देख उसे पागल कहतें थें, वहाँ नित्य प्रतिदिन रोज सुबह 10 किलोमीटर कान्हा के मंदिर के लिए निकलता था,
और कुछ जादा नही चल पाता था, उसके पैर छिल जातें थें, बाजूओं में बैशाखी से छालें पड़ जातें थे, उसे लोग चिढ़ाते थें, ये लगड़ा क्या 10 किलोमीटर भगवान के मंदिर जा पाएगा, सब उस पर हंसते थे, मजाक उड़ाते थे……..
पर वो अपहिज रूकता नही था, कभी हाथों के बल तो कभी, पूरे जिस्म से रगड़कर आगे बढ़ता था, वो कान्हा का परम भक्त था, जब वो टूट जाता बिल्कुल भी हिल नही पाता तो, कान्हा को पुकारता और कहता, मेरे प्रभु मैं आपके मंदिर नही आ पाऊंगा ना कभी, और रोने लगता, फिर रास्तें में पड़ा कोई भी पत्थर उठाता और जहाँ होता, वही कान्हा को पूज कान्हा की भक्ति में लग जाता………
आश्चर्य तो तब होता जिस जगह वो कान्हा को पूजता उसी जगह कान्हा का मंदिर बन जाता, और खुद कान्हा जी उसके पास आतें और उसकी भक्ति से प्रसन्न हो उससे कहते माँगों वत्स तुम्हें क्या वर चाहिए, पर वो अपहिज कुछ नही कहता, बस उनकी पूजा में लग जाता…………
रोज यही क्रम चलता वो सुबह उठता मंदिर के लिए निकलता और मंदिर पहुंच नही पाता, और लोग उसका मजाक उड़ाते, और वो वही रास्तें से पत्थर उठाता, और वही मंदिर बन जाता, रोज कान्हा आते, उसे वर मांगने को कहते और वो रोज कुछ नही माँगता…………
एक रोज वो अपहिज मंदिर जाने के लिए निकला, रास्तें में गाँव के लोग ने उसे घेर लिया और उसे मरने लगें ये कहकर की तु अफवाह फैलाता हैं, की कान्हा का मंदिर तेरे सामने बन जाता हैं, कान्हा तेरे सामने प्रकट होते हैं, तु अपहिज आज तक एक किलोमीटर भी नही चल पाया, तो तु कहा से कान्हा जी के मंदिर पहुंच गया, गाँव वालों ने उसे बहुत मारा और उसकी बैशाखी तोड़ दी, वो अपहिज हंसते_हंसते सब सह गया, और जहाँ गिरा वही कान्हा की भक्ति करने लगा, मंदिर फिर बन गया, कान्हा जी प्रकट हुये, और उसकी हालत देख कहने लगें, हे भक्त तुम क्यूं इतना कष्ट सहते हो वर माँग क्यू नही लेते, मैं अभी तुम्हारे पैर और दुनिया की तमाम सुविधाए एक क्षण दे दूंगा,
अपहिज कहता हें नाथ मुजे कुछ नही चाहिए, और वहाँ कान्हा जी एक ध्यन में मग्न हो जाता………..
अब बाँकेबिहारी लाल सोच में पड़ गयें आखिर ये भक्त कुछ माँगता क्यूं नही, आज इसको मुजे कुछ बिन माँगे ही देना पड़ेगा,
दूसरे दिन की सुबह हुई, वो अपहिज मंदिर जाने के लिए निकला, जैसें ही रास्ते पर पहुंचा एक बड़ी सी गाड़ी उसके पास आकर रूकी और उसमें से सुंदर सा शख्स निकला और वो कान्हा जी का मंदिर उस अपहिज से पूछने लगा, अपहिज ने उसे रास्ता बताया और कहा मैं भी वही जा रहा आप पहुंचे मैं भी आता हूं, तुम मेरे साथ चलो तुम इतनी दूर पैदल कैंसे जाओगे मैं अपनी गाड़ी में ले चलता हूं, अपहिज ने कहा नही महशय आप जाइयें मैं आता हूं, उस शख्श ने बहुत जोर दिया पर अपहिज नही माना, और आगे बढ़ने लगा………..
जैंसे ही वो थोड़ी दूर पहुंचा, उसे रास्तें में स्वर्ण से भरा एक मटका दिखाई दिया, अपहिज ने उसे देखा और, उसे खींचते हुयें किनारे लाकर छोड़ आगे बढ़ गया,
बढ़तेबढ़ते उसे रास्ते पर एक सुंदर भवन दिखाई दीया मानों जैसे विश्वकर्मा जी ने देवताओं के लिए आज ही बनाई हो, और उस भवन से आवाज आयी अंदर आ जाओ तो ये भवन नौकरचाकर स्वर्ण हीरे, रत्न, मणिक धन वैभव सब तुम्हारा होगा, अपहिज ने उसे अनसुना कर आगे बढ़ने लगा…………
कुछ कदम चले ही थे, की उसे सामने से आती सुंदरसुंदर स्त्रीयाँ दिखाई देने लगी, उन स्त्रीयों ने अपहिज के पास आकर कहा, तुम चाहों तो हमारे साथ भोगविलास कर सकतें हो कुछ क्षण आराम करो और हमारे महल चलों, अपहिज ने उनसे हाथ जोड़े और आगे बढ़ गया,
जैंसे ही वो आगे बढ़ा भयंकार गर्मी पढ़ने लगी अपहिज का सारा बदन तपने लगा वो थककर चूर हो गया, पसीने से लथपथ हो गया, फिर भी उसने हार नही मानी और जिस्म के बल रगड़ने लगा, और आगे बढ़ने लगा,
रगड़तेरगड़ते वो इतना थक गया की वही बैठ गया और पत्थर उठाकर उसे अपने कान्हा को देख पूजने लगा, मंदिर बन गया और कान्हा दौड़े चले आयें और आते ही उस अपहिज से पूछा हे भक्त, आज मैंने तुम्हारे दुनिया का हर ऐसवर्य देना चाहा पर तुमने उनको ठोकर मार दिया, स्वर्ण, भवन, नारी, यहाँ तक की मंदिर जाने के लिए रोज गाड़ी तुमने उसे भी ठुकरा दिया,
ये वत्स तुमने ऐसा क्यूं किया, कान्हा जी ने उस अपहिज से पूछा?
अपहिज ने कहा हेनाथ,
आपने गाड़ी भेजी, पर आप ये क्यू भूल गयें, मेरे चिंतन मात्र से आप दौड़े चले आते हैं, मुजे चल पाता ना देख, तो बताओं मैं उस गाड़ी में बैठकर आपकी मूर्ति देखने आता, जबकी मेरे प्रभु साक्षात मेरे सामने प्रकट हो जातें हैं,
आपने स्वर्ण की मुद्राए दी वो मेरे किस काम की जिसमें आपका नाम ना हो,
वो भवन मेरे किस काम का जिसे पाने के बाद आप मुजे दिखाई ना दें, उससे अच्छा तो मेरा यही जीवन हैं, जिसमें आप मेरे लिए आ जाते हैं,
वो नारीयाँ उनका मैं क्या करूँ, मेरे रोम_रोम में तो बस आप बसें हैं, किसी और के लिए तानिक मात्र भी जगह नही,
और वो भयंकार गर्मी, जिसे पाने बाद मुजे आपके दर्शन हुयें, मेरे कान्हा करें, ऐसी गर्मी मुजे रोज पड़े……………
कान्हाजी भावविभोर हो गयें, और कहने लगें, धन्य हैं मेरे भक्त तु, तुमने मेरी भक्ति सच्चें दिल से की हैं
मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हार पैर, बस कान्हा जी बोलने ही वाले थे की तुम्हार पैर ठीक हो जाए, उससे पहले अपहिज ने कान्हा जी के पैर पकड़ लिए और कहा, प्रभु मुज पर इतना बड़ा अत्चार मत कीजिए, मुजे ऐसा ही रहने दीजिए, समस्त रिशीमुनियों को बड़े_बड़े पंडितो को देवता नर दानव मानव को जो सौभाग्य प्राप्त नही है वो मुजे है मेरे कष्ट देख पर अपना मंदिर, आप स्वयं दौडे आते हैं बस मुजे इससे जादा और कुछ नही चाहिए मेरे लिए ये एक नही असंख्या वरदान है इसे मुजसे मत छीनियें…………..
कान्हा जी ने उस भक्त की लाज रखी और रोज उस अपहिज को जहाँ वो बैठ जाए, जिस पत्थर को चुने वही मंदिर और स्वयं प्रकट हो जाते थें,
अपहिज भी नित्य_प्रतिदिन सबके ताने सुनता पर हर दिन हारिभजन में मस्त रहता और कान्हा जी की महिमा गाता………….☘
🙏”राधें_राधें”🙏
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