Posted in संस्कृत साहित्य

શું તમે ક્યારેય આ પશ્વિમદેશોનાં ફિલોસોફર વિચારકોને વાંચ્યા છે…??
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૧, લિયો ટોલ્સટૉય.(૧૮૨૮ – ૧૯૧૦)

👉હિન્દુ અને હિન્દુત્વ જ એક દિવસ દુનિયાપર રાજ કરશે,,કારણકે એમાં ગ્યાન અને બુધ્ધિનું સંયોજન છે.

૨, હાબર્ટ વૅલ્સ (૧૮૪૬ – ૧૯૪૬)

👉હિન્દુત્વનું પ્રભાવીકરણ લાગું થાય ત્યાં સુધીમાં કેટલીય પેઢીઓ અત્યાચાર સહન કરશે..ત્યારે સમગ્ર માનવજાત એમના તરફ આકર્ષિત થઇ જશે, એ જ દિવસે સંસાર આબાદ થશે. સલામ એ દિવસને.

૩, આલ્બર્ટ આઇન્સટાઇન (૧૮૭૯ – ૧૯૫૫)

👉હું સમજું છું કે હિન્દુઓ એ પોતાની બુદ્ધિ અને જાગૃતતા ના માધ્યમથી તે કર્યુ જેને યહૂદીઓ નથી કરી શક્યા, હિન્દુત્વમાં જ તે શક્તિ છે જેનાથી શાંતિ સ્થાપિત થઇ શકશે.

૪, હ્યુંસ્ટન સ્મિથ (૧૯૧૯ – ૧૯૮૫)

👉જે વિશ્વાસ સ્વયં પર છે અને આ સ્વયંથી સારું જો કાંઇ દુનિયામાં છે તો તે હિન્દુત્વ છે, પણ એના માટે આપણે આપણા દિલ અને દિમાગ જો સ્વયં માટે ખોલીશુ તો ભલાઇ તેમાં જ છે.

૫,માઇકલ નાસ્ત્રૈ દમાસ (૧૫૦૩ – ૧૫૬૬)

👉હિન્દુત્વ જ યૂરોપમાં શાસક ધર્મ બનશે,યૂરોપનું પ્રસિધ્ધ શહેર હિન્દુ રાજધાની બની જશે.

૬, બર્ટેન્ડ રસૅલ (૧૮૭૨ – ૧૯૭૦)

👉મેં હિન્દુત્વ ને વાંચ્યો સમજ્યો અને જાણ્યું કે આ સારી દૂનિયા સારી માનવતાનો ધર્મ બનવા લાયક મોંખરે છે, હિન્દુત્વ આખા યૂરોપ ખંડમાં ફેલાશે અને હિન્દુત્વના મોટા વિચારકો સામે આવશે, એક દિવસ એવો આવશે કે હિન્દુ જ દુનિયાની વાસ્તવિક ઉત્તેજના હશે.

૭, ગોસ્ટા લોબોન (૧૮૪૧ – ૧૯૩૧)

👉હિન્દુ જ સૂલેહ અને સુધારાની વાત કરે છે, સુધારાનાં જ વિચારોની સરાહના ઈસાઈઓ ને આમંત્રિત કરે છે.

૮, જ્યોર્જ બર્નાડ શૉ (૧૮૫૬ – ૧૯૫૦)

👉આખું જગત એક દિવસ હિન્દુ ધર્મ સ્વીકાર કરી લેશે, અગર વાસ્તવિક નામથી સ્વીકાર ન કરી શકે તો રૂપક નામથી સ્વીકાર કરી લેશે, પશ્વિમ એક દિવસ હિન્દુ સ્વીકાર કરશે,અને હિન્દુ જ દુનિયામાં ભણેલા ગણેલા લોકોનો ધર્મ હશે.

૯, જોહાન ગીથ (૧૭૪૯ – ૧૮૩૨)

👉આપણે બધાએ હમણાં કે પછી હિન્દુ ધર્મ સ્વીકાર કરવો જ પડશે, આ અસલી ધર્મ છે, મને કોઇ હિન્દુ કહેશે તો ખરાબ નહીં લાગે, હું આ સત્ય વાતનો સ્વીકાર કરું છું.

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Posted in गौ माता - Gau maata

जानिये क्यों पास नहीं हुआ आज तक गौहत्या रोकने का कोई बिल ?


जानिये क्यों पास नहीं हुआ आज तक गौहत्या रोकने का कोई बिल ?

भारत मे गाय काटने का इतिहास !
अंग्रेज़ बहुत चालक थे ! किसी भी गलत काम को करने से पहले उसको कानून बना देते थे फिर करते थे और कहते थे हम तो कानून का पालन कर रहे हैं !!

भारत मे पहला गौ का कत्लखाना 1707 ईस्वी ने रॉबर्ट क्लाएव ने खोला था और उसमे रोज की 32 से 35 हजार गाय काटी जाती थी ! तो कत्लखाने के size का अंदाजा लगा सकते हैं ! और तब हाथ से गाय काटी जाती थी ! तो सोच सकते हैं कितने कसाई उन्होने रखे होंगे !
आजादी के 5 साल बाद 1952 मे पहली बार संसद मे ये बात उठी कि गौ रक्षा होनी चाहिए ! गाय के सभी कत्लखाने जो भारत मे अंग्रेज़ो ने शुरू किए थे बंद होने चाहिए ! और यही गांधी जी कि आत्मा को यही श्र्द्धांजलि होगी ! क्यूकि ये उनके आजाद भारत के सपनों मे से पहले नंबर पर था !

तो गांधी के परम शिष्य नेहरू खड़ा हुआ और बोला चलो ठीक है अगर गौ रक्षा का कानून बनना चाहिए तो इस पर संसद मे प्रस्ताव आना चाहिए ! तो संसद मे एक सांसद हुआ करते थे महावीर त्यागी वो आर्य समाजी थे और सोनीपत से अकेले चुनाव लड़ा करते थे !सबसे पहला चुनाव 1952 मे हुआ और वो बहुत भयंकर वोटो से जीत कर आए थे !

तो महावीर त्यागी ने कहा ठीक मैं अपने नाम से प्रस्ताव लाता हूँ ! तो प्रस्ताव आया उस पर बहस हुई ! बहस के बाद तय किया कि वोट किया जाय इस पर ! तो वोट करने का दिन आया !
तब पंडित नेहरू ने एक ब्यान दिया !जो लोकसभा के रेकॉर्ड मे है आप चाहे तो पढ़ सकते हैं ! नेहरू ने कहा अगर ये प्रस्ताव पारित हुआ तो मैं शाम को इस्तीफा दे दूंगा !

मतलब ?

गौ रक्षा अगर हो गई इस देश मे! तो मैं प्रधानमंत्री नहीं रहूँगा ! परिणाम क्या हुआ जो कांग्रेसी नेता संसद मे गौ रक्षा के लिए वोट डालने को तैयार हुए थे नेहरू का ये वाक्य सुनते ही सब पलट गए ! तो उस जमाने मे क्या होता था कि नेहरू जी अगर पद छोड़ दे तो क्या होगा ? क्यूंकि वल्ब भाई पटेल का स्वर्गवास हो चुका था !
तो कांग्रेसी नेताओ मे चिंता रहती थी कि अगर नेहरू जी भी चलेगे फिर पार्टी का क्या होगा और पता नही अगली बार जीतेंगे या नहीं जीतेंगे ! और उस समय ऐसी बात चलती थी nehru is india india is नेहरू !
(और ये कोंग्रेसीओ कि आदत है indra is india india is indra )
तो बाकी कोंग्रेसी पलट गए और संसद मे हगामा कर दिया और गौ रक्षा के कानून पर वोट नहीं हुआ !

और अगले दिन महावीर त्यागी को सब ने मजबूर कर दिया और उनको प्रस्ताव वापिस लेना पड़ा !
महावीर त्यागी ने प्रस्ताव वापिस लेते समय भाषण किया और बहुत ही जबर्दस्त भाषण किया ! उन्होने कहा पंडित नेहरू मैं तुमको याद दिलाता हूँ !कि आप गांधी जी के परम शिष्य है और गांधी जी ने कहा था भारत आजाद होने के बाद जब पहली सरकार बनेगी तो पहला कानून गौ रक्षा का बनेगा ! अब आप ही इस से हट रहे है तो हम कैसे माने कि आप गांधी जी के परम शिष्य है ?
और उन्होने कहा मैं आपको आपके पुराने भाषणो कि याद दिलाता हूँ ! जो आपने कई बार अलग अलग जगह पर दिये है ! और सबमे एक ही बात काही है कि मुझे कत्लखानों से घिन्न आते इन सबको तो एक मिनट मे बंद करना चाहिए! मेरी आत्मा घबराती है ये आपने कितनी बार कहा लेकिन जब कानून बनाने का समय आया तब आप ही अपनी बात से पलट रहे है?

नेहरू ने इन सब बातों को कोई जवाब नहीं दिया ! और चुप बैठा रहा !और बात आई गई हो गई ! फिर एक दिन 1956 मे नेहरू ने सभी मुख्य मंत्रियो को एक चिठी लिखी वो भी संसद के रेकॉर्ड मे है ! अब नेहरू का कौन सा स्वरूप सही था और कौन सा गलत ! ये तय करने का समय आ गया हैं !
जब वे गांधी जी के साथ मंचपर होते थे तब भाषण करते थे कि क्त्ल्खनों के आगे से गुजरता हूँ तो घिन्न आती है आत्मा चीखती है ! ये सभी क्त्ल्खने जल्द बंद होने चाहिए !और जब वे प्र्धानमतरी बनते है तो मुख्य मंत्रियो को चिठी लिखते हैं ! कि गाय का कत्ल बंद मत करो क्यूंकी इससे विदेशी मुद्रा मिलती है !

उस पत्र का अंतिम वाक्य बहुत खतरनाक था उसमे नेहरू लिख रहा है मान लो हमने गाय ह्त्याबंद करवा दी ! और गौ रक्षा होने लगी तो सारी दुनिया हम पर हसे गई कि हम भारत को 18 व शताब्दी मे ले जा रहे हैं ! !
अर्थात नेहरू को ये लगता था कि गाय का कत्ल होने से देश 21 वी शताब्दी मे जा रहा है ! और गौ रक्षा होने से 18 वी शताब्दी कि और जाएगा ! राजीव भाई का हरद्य इस पत्र को पढ़ कर बहुत दुखी हुआ !राजीव भाई के एक बहुत अच्छे मित्र थे उनका नाम था रवि राय लोकसभा के अधक्षय रह चुके थे ! उनकी मदद से ये पत्र मिला ! संसद कि लाएब्रेरी मे से ! और उसकी फोटो कॉपी रख ली !!

अब आगे कि बात करे नेहरू के बाद से आजतक गाय ह्त्या रोकने का बिल पास क्यूँ नहीं हुआ !?

दस्तावेज़ बताते हैं इसके बाद के दो ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिनहोने पूरी ईमानदारी से गौ ह्त्या रोकने का कानून लाने की कोशिश की ! उनमे से एक का नाम था श्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे श्री मुरार जी देसाई !!
श्री मुरार जी भाई ये कानून पास करवा पाते कि उनकी सरकार गिर गई ! या दूसरे शब्दो मे कहे सरकार गिरा दी गई !
क्योंकि वही एक मात्र ऐसे प्रधान मंत्री थे ! जिनहोने बहुत हिम्मत वाला काम किया था अमेरिका कि कंपनी coca cola को 3 दिन का नोटिस दिया और भारत से भागा दिया ! और ऐसा नोटिस केवल coco cola को नहीं बल्कि एक और बड़ी विदेशी कंपनी hul(hindustaan uniliver ) को भी दिया और ऐसे करते करते काफी विदेशी कंपनियो को नोटिस जारी किया कि जल्दी से जल्दी तुम भारत छोड़ दो !

इसके इलवा उन्होने एक और बढ़िया काम किया था गुजरात मे शराब पर प्रतिबंध लगा दिया ! और वो आजतक है वो बात अलग है कि black मे कहीं शराब मिल जाती है पर कानूनी रूप से प्रतिबंध है ! और उनहोने कहा था ऐसा मैं पूरा भारत मे करूंगा और जल्दी से गौ रक्षा का कानून भी लाऊँगा और गौ ह्त्या करने वाले को कम से कम फांसी कि सजा होगी !
तो देश मे शराब बेचने वाले,गौ ह्त्या करने वाले और विदेशी कंपनिया वाले! ये तीनों l lobby सरकार के खिलाफ थी इन तीनों ने मिल कर कोई शयद्त्र रचा होगा जिससे मुरार जी भाई की सरकार गिर गई !!

लालबहादुर शास्त्री जी ने भी एक बार गौ ह्त्या का कानून बनाना चाहा पर वो ताशबंद गए ! और फिर कभी जीवित वापिस नहीं लोटे !!
और अंत 2003 मे श्री अटल बिहारी वाजपायी की NDA सरकार ने गौ ह्त्या पर सुबह संसद मे बिल पेश किया और शाम को वापिस ले लिया !!
क्यू ?
अटल जी की सरकार को उस समय दो पार्टिया समर्थन कर रही थी एक थी तेलगु देशम और दूसरी त्रिमूल कॉंग्रेस ! दोनों ने लोकसभा मे कहा अगर गौ ह्त्या पर कानून पास हुआ तो समर्थन वापिस !!

बाहर मीडिया वालों ने ममता बेनर्जी से पूछा की आप गौ ह्त्या क्यूँ नहीं बंद होने देना चाहती ?
ममता बेनर्जी ने कहा गाय का मांस खाना मे मौलिक अधिकार है
कोई कैसे रोक सकता है ?

तो किसी ने कहा आप तो ब्राह्मण है तो ममता ने कहा बेशक हूँ !!
तो अंत वाजपाई जी को अपनी सरकार बचाना गौ ह्त्या रोकने से ज्यादा बड़ा लगा ! और उन्होने बिल वापिस ले लिया !
फिर 2003 के बाद कॉंग्रेस आ गई ! इससे तो वैसे कोई अपेक्षा नहीं कि जा सकती! गाय ह्त्या रोकना तो दूर मनमोहन जी ने भारत को दुनिया मे गाय का मांस निर्यात करने वाले देशो कि सूची मे तीसरे नंबर पर ला दिया है!

वर्तमान भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक गायों की हत्या होती है तथा एक लाख टन गौमांस विदेशों में निर्यात किया जा रहा है।

संविधान में किये गए वादे और अनेकों सरकारों द्वारा बार-बासर किये गये कोरे आश्वासन

गौ रक्षा एवं विकास के लिए तुरन्त उठाये जाने योग्य क़दम।
गौरक्षा एवं विकास विषय को समवर्ती सूची में लाकर केन्द्रीय कानून बनाकर गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाये तथा किसी भी आयु की गाय, साँड, बछिया अथवा बैल की हत्या मनुष्य की हत्या के बराबर दंडनीय अपराध घोषित किया जाये तथा गौमांस का निर्यात अविलम्ब बन्द किया जाये।
गौरक्षा एवं हित के लिए बाकायदा केन्द्रीय मंत्रालय एवं मंत्री नियुक्त किया जाना चाहिए।
प्रत्येक ग्राम व नगर के पाय पर्याप्त गोचर भूमि हो।
सरकारी पशु चिकित्सालयों तथा गर्भादान केन्द्रों में विदेशी नस्ल के सांडों के वीर्य से कृत्रिम गर्भादान अविलम्ब बन्द किया जाये।
गौवंश के व्यापार को सरकार अपने हाथों में लेकर स्वायशासी निगम बनाकर उनके हाथों में दिया जाये।

गौवंश से प्राप्त तमाम औषद्यीयों के व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ साथ उसके करमुक्त भी किया जाये जिससे लोग गायों की सेवा कर उनसे अधिकाधिक औषद्यीयां बनाकर जनसेवा कर सकें क्योंकि गौमूत्रा समेत गाय के दूध एवं अन्य उत्पादों से कई असाध्य बीमारियों के शत प्रतिशत सही होने के कई प्रमाण सामने आ चुके हैं
गौ को राष्ट्रमाता अथवा राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए।
गौरक्षा, संरक्षण पालन-पोषण की व्यवस्था को शैक्षणिक पाठयक्रम में शामिल किये जाने की भी सुविधा प्राप्त कराई जाये।
गायों की व्यापक देखरेख करने के लिए चिकित्सालयों के अलावा भारत के प्रत्येक नगर में एक विभाग खोला जाये जिसमें अधिकारी टोल, सड़क अथवा अन्य स्थानों पर मिलने वाली लावारिस गौ को गौशालाओं में ले जाने की व्यवस्था कर सकें। जिनसे वह किसी गौहत्यारें के चंगुल में न पड़ें।

यदि हम वेद पुराणों की बात को मानें तब भी कई बातें आज सच साबित हो रही हैं। अनेक पुराणों में स्पष्ट रूप से लिखा है कि गौहत्या से वातावरण में तनाव पैदा होता है। सभी देवी-देवता, पृथ्वी, जल, आकाश, वायु, अग्नि और परमात्मा का कोप मानव और पर्यावरण व वातावरण पर पड़ता है जिससे सूखा, बाढ़, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदायें आती हैं।

अत: माननीय प्रधानमंत्री आदरणीय मोदी जी से निवेदन है कि अब वे अपनी गौमाता की रक्षा और सेवा के लिए शीघ्रातिशीघ्र उपरोक्त बातों को संज्ञान में लेते हुए निश्चय ही ठोस कदम उठायेंगे। अब आपको तय करना है की गौ ह्त्या रोकने का बिल संसद मे कैसे पास करवाएँगे ?

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नेहरू गौ मांस खाते थे
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गांधी टोपी रहस्य
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કાફિર હૈ જો બંદે નહીં ઇસ્લામ કે


પંડિત વ્રજનારાયણ ‘ચક્બસ્ત’ ઉર્દુના વિખ્યાત કવિ છે. એમને એક પંક્તિની પૂર્તિ કરવા આપી.

‘કાફિર હૈ જો બંદે નહીં ઇસ્લામ કે’

આમ તો એનો અર્થ થાય કે જે ઇસ્લામમાં નથી માનતા એ નાસ્તિક છે. પંડિત વ્રજનારાયણે ‘લામ’ શબ્દને અલગ તારવ્યો. ‘લામ’ એટલે ઘુઘરી. એમણે લખ્યું –

‘લામ જૈસે ગેસુ હૈ ઘનશ્યામ કે
કાફિર હૈ જો બંદે નહિ ઇસ લામ કે’

આ ઘુઘરિયાળા કેશનો જે ભક્ત નથી એ નાસ્તિક છે.

~ હરીન્દ્ર દવે

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न प्राणेन नापानेन मर्त्यो जीवति कश्चन। इतरेण तु जीवन्ति यस्मिन्नेतावुपाश्रितौ।। ५।। हन्तं त इदं प्रवक्ष्यामि गुह्यं ब्रह्म सनातनम्। यथा च मरणं प्राप्य आत्मा भवति गौतम।। ६।।


यमाचार्य कहते हैं कि देह में रहनेवाले जिस चैतन्य तत्त्व के निकल जाने पर देह मृत हो जाता है अर्थात् जड एवं निश्चेष्ट हो जाता है, वही तो चैतन्य स्वरूप ब्रह्म है।

 

न प्राणेन नापानेन मर्त्यो जीवति कश्चन।

 

इतरेण तु जीवन्ति यस्मिन्नेतावुपाश्रितौ।। ५।।

 

हन्तं त इदं प्रवक्ष्यामि गुह्यं ब्रह्म सनातनम्।

 

यथा च मरणं प्राप्य आत्मा भवति गौतम।। ६।।

 

शब्दार्थ : कश्चन = कोई भी; मर्त्य: न प्राणेन न अपानेन जीवति = मरणशील प्राणी न प्राण से, न अपान से जीवित रहता है; तु = किन्तु; यस्मिन् एतौ उपाश्रितौ = जिसमें ये दोनों (वास्तव में पाँचों प्राणवायु) उपाश्रित हैं; इतरेण जीवन्ति = अन्य से ही जीवित रहते हैं;

 

गौतम = हे गौतमवंशीय नचिकेता; गुह्यम् सनातनम् = (वह) रहस्यमय सनातन; ब्रह्म = ब्रह्म; च आत्मा मरणम् प्राप्य = और जीवात्मा मरण को प्राप्त करक्; यथा भवति = जैसे होता है; इदम् ते हन्त प्रवक्ष्यामि = यह तुम्हें निश्चय ही बताऊँगा।

 

वचनामृत : कोई भी प्राणी न प्राण से, न अपान से जीवित रहता है, किन्तु जिसमें ये दोनों (अर्थात् पाँचों प्राणवायु) आश्रित हैं, उस अन्य से ही (प्राणी) जीवित रहते हैं। हे गौतमवंशीय नचिकेता, (मैं) उस गुह्य सनातन ब्रह्म का और मरने का जीवात्मा की जो अवस्था होती है, उसका अवश्य कथन करूँगा।

 

सन्दर्भ : यमाचार्य नचिकेता को देह में स्थित जीवात्मा की महिमा बताकर ब्रह्मतत्त्व के कथन का आश्वासन देते हैं।

 

दिव्यामृत : मुख्य प्राण ही विभिन्न कार्यों के अनुसार पाँच वायुओं के रूप मे विभक्त है जिनमे प्राण और अपान प्रमुख है। मनुष्य के जीवन का आधार प्राण और अपान से लक्षित केवल पांच वायु (प्राण अपान् व्यान उदान्) ही नही है। श्वास प्रश्वास का जीवन धारण के लिए असाधारण महत्व है कितु प्राणी के जीवन का आधार उनसे भिन्न उसका जीवात्मा होता है जिस पर प्राण अपान आदि पञ्चवायु रहते है। समस्त इन्द्रियां भी जीवात्मा पर ही आश्रित होती है। जीवात्मा के होने से ही जीवन होता है। जीवात्मा के रहने से ही मन बुद्धि और इन्द्रियां अपने कार्य करते है।
देह की मृत्यु का विशुद्ध चेतना अथवा आत्मा पर कोई प्रभाव नही होता ब्रह्म आत्मा अथवा परमात्मा शाश्वत नित्य शुद्ध और मुक्त है। यमाचार्य ब्रह्मतत्व के कथन का आश्वासन देते है। उतम गुरू अनावश्यक आश्वासन देकर जिज्ञासु शिष्य के धैर्य को टूटने नही देते।
Posted in यत्र ना्यरस्तुपूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

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એક દિવસ માતા પુત્રી ફોન પર વાત કરી રહ્યા હતા. માં કહે “દીકરી તું આવે છે ત્યારે ઘર ની રોનક વધી જાય છે, તારા પપ્પા પણ બહુ જ આનંદમાં હોય છે, દીકરી કહે: “હા મા, બસ થોડો સમય..પછી તો ભાઈનો અભ્યાસ પૂરો થઈ જશે, પછી એના લગ્ન કરી એક દીકરી લાવજો જે ત્યાંજ રહેશે એટલે ઘર ફરી રોનક વાળું જ રહેશે.” માતા હરખાતા બોલી, હા, બેટા, પછી તો તને કુંવરી ની જેમ રાખીશ, અત્યારે તું આવે ત્યારે હું જરા વ્યસ્ત રહુ છુ, દીકરી સાસરે હતી એટલે માતા ને અટકાવતા બોલી, “માં, ભાભી આપણા ઘરમા આવશે પછી તને મારી ખોટ નહીં સાલે, મા કહે, તે જે હોય તે પણ મને એટલી ખબર પડે કે દીકરી એ દીકરી હોય, જેટલું એને માવતર નું પેટમાં બળે એટલું દીકરા ને પણ ના બળે.. મા ને અટકાવતા દીકરી બોલી, બસ આજ વાંધો છે આપણા સમાજનો, દીકરી નો મોહ જ નથી મુકતા, તમે પુત્રવધૂ ને પુત્રવધૂ તરીકે રાખો તો એ પુત્રથી પણ વઘુ ધ્યાન રાખે, પણ એ પારકી છે એ ગણીને એના વાંક કાઢ્યા કરો તો એ પણ સાસુ છે એમ જ મનમાં ગાંઠ વાળશે.. પણ બેટા..માં ને આગળ બોલતા અટકાવી પુત્રી બોલી, જુઓ માં, અમને તમારી ફિકર હોય જ એમાં શંકા ને સ્થાન નથી, અમે ક્યારેક આવીને તમારું થોડું ધ્યાન રાખીએ તો એમાં કોઈ મોટી વાત નથી, પણ એ ત્યાં રહી આખો દિવસ કામ કરે અને તમે અમારા ગુણ ગાઓ એતો વ્યાજબી ના કહેવાય ને? દિકરી જમાઈ એની જગ્યાએ ભલે મીઠા ખરા પણ ક્યારેક જ શોભે, જ્યારે વહુ તો લુણ હોય છે જેના વિના જેમ પકવાન ફિક્કા લાગે તેમ વહુ વિના ઘર સુનું લાગે, એજ સાચી રોનક છે, આજ થી જ મન માં ગાંઠ વાળી લો તો સ્વર્ગ મેળવવા માટે દેહ નહીં છોડવો પડે, ચાલ માં હવે મારે થોડું કામ છે, તમારું ધ્યાન રાખજો.. કહી દીકરીએ ફોન રાખી દીધો.!!*

માતા મનમાં જ ગર્વ કરતી રહી કે મારી દીકરી કેટલી મોટી થઈ ગઈ અને પરણ્યા પછી કેવી મૂલ્યવાન વાતો સમજાવે છે, મિત્રો.. નસીબદાર હોય છે એ ઘર જ્યાં માતાને દીકરી આવી સમજણ આપે છે, પરણ્યા પછી દિકરી ને આ બધું માત્ર એના જીવન નો અનુભવ શીખવે છે..

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गुरु नानक देव


एक बार गुरु नानक देव जी जगत का उद्धार करते हुए एक गाँव के बाहर पहुँचे ;

 

देखा वहाँ एक झोपड़ी बनी हुई थी !
उस झोपड़ी में एक आदमी रहता था जिसे कुष्‍ठ-रोग था !गाँव के सारे लोग उससे नफरत करते ;कोई उसके पास नहीं आता था !कभी किसी को दया आ जाती तो उसे खाने के लिये कुछ दे देते अन्यथा भूखा ही पड़ा रहता !
नानक देव जी उस कोढ़ी के पास गये और कहा -भाई हम आज रात तेरी झोपड़ी में रहना चाहते है अगर तुम्हे कोई परेशानी ना हो तो ?कोढ़ी हैरान हो गया क्योंकि उसके तो पास भी कोई आना नहीं चाहता था फिर उसके घर में रहने के लिये कोई राजी कैसे हो गया ?
कोढ़ी अपने रोग से इतना दुखी था कि चाह कर भी कुछ ना बोल सका ;सिर्फ नानक देव जी को देखता ही रहा !लगातार देखते-देखते ही उसके शरीर में कुछ बदलाव आने लगे पर कुछ कह नहीं पा रहा था !
नानक देव जी ने मरदाना को कहा -रबाब बजाओ !नानक देव जी ने उस झोपड़ी में बैठ कर कीर्तन करना आरम्भ कर दिया !कोढ़ी ध्यान से कीर्तन सुनता रहा !कीर्तन समाप्त होने पर कोढ़ी के हाथ जुड़ गये जो ठीक से हिलते भी नहीं थे !उसने नानक देव जी के चरणों में अपना माथा टेका !
नानक देव जी ने कहा -और भाई ठीक हो ;यहाँ गाँव के बाहर झोपड़ी क्यों बनाई है ?कोढ़ी ने कहा -मैं बहुत बदकिस्मत हूँ मुझे कुष्ठ रोग हो गया है !मुझसे कोई बात तक नहीं करता यहाँ तक कि मेरे घर वालो ने भी मुझे घर से निकाल दिया है !मैं नीच हूँ इसलिये कोई मेरे पास नहीं आता !
उसकी बात सुन कर नानक देव जी ने कहा -नीच तो वो लोग है जिन्होंने तुम जैसे रोगी पर दया नहीं की और अकेला छोड़ दिया !आ मेरे पास मैं भी तो देखूँ कहा है तुझे कोढ़ ?जैसे ही कोढ़ी नानक देव जी के नजदीक आया तो प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि कोढ़ी बिल्कुल ठीक हो गया !यह देख वह नानक देव जी के चरणों में गिर गया !
गुरु नानक देव जी ने उसे उठाया और गले से लगा कर कहा -प्रभु का स्मरण करो और लोगों की सेवा करो ;यही मनुष्य के जीवन का मुख्य कार्य है !

 

Sanjay Gupta

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चीन में तीन फकीर हुए।


चीन में तीन फकीर हुए।

Jyoti Agrawaal

 

उन्हें तो लोग कहते ही थे—लॉफिंग सेंट्स। वे हंसते हुए फकीर थे। वे बड़े अदभुत थे। क्योंकि हंसते हुए फकीर! ऐसा होता ही नहीं है, रोते हुए ही फकीर होते हैं। वे गांव—गांव जाते। अजीब था उनका संदेश। वे चौराहों पर खड़े हो जाते और हंसना शुरू करते। एक हंसता, दूसरा हंसता, तीसरा हंसता और उनकी हंसी एक दूसरे की हंसी को बढ़ाती चली जाती। भीड़ इकट्ठी हो जाती और भीड़ भी हंसती और सारे गांव में हंसी की लहरें गूंज जातीं। तो लोग उनसे पूछते, तुम्हारा संदेश, तो वे कहते कि तुम हंसो। इस भांति जीओ कि तुम हंस सको। इस भांति जीओ कि दूसरे हंस सकें। इस भांति जीओ कि तुम्हारा पूरा जीवन एक हंसी का फव्वारा हो जाए। इतना ही हमारा संदेश है, और वह हंस कर हमने कह दिया। अब हम दूसरे गांव जाते हैं। हंसी कि तुम्हारा पूरा जीवन एक हंसी बन जाए। इस भांति जीओ कि पूरा जीवन एक मुस्कुराहट बन जाए। इस भांति जीओ कि आस—पास के लोगों की जिंदगी में भी मुस्कुराहट फैल जाए। इस भांति जीओ कि सारी जिंदगी एक हंसी के खिलते हुए फूलों की कतार हो जाए। हंसते हुए आदमी ने कभी पाप किया है? बहुत मुश्किल है कि हंसते हुए आदमी ने किसी की हत्या की हो, कि हंसते हुए आदमी ने किसी को भद्दी गाली दी हो, कि हंसते हुए आदमी ने कोई अनाचार, कोई व्यभिचार किया हो। हंसते हुए आदमी और हंसते हुए क्षण में पाप असंभव है। सारे पाप के लिए पीछे उदासी, दुख, अंधेरा, बोझ, भारीपन, क्रोध, घृणा— यह सब चाहिए। अगर एक बार हम हंसती हुई मनुष्यता को पैदा कर सकें, तो दुनिया के नब्बे प्रतिशत पाप तत्सण गिर जाएंगे। जिन लोगों ने पृथ्वी को उदास किया है, उन लोगों ने पृथ्वी को पापों से भर दिया है। वे तीनों फकीर गांव—गांव घूमते रहे, उनके पहुंचते से सारे गांव की हवा बदल जाती। वे जहां बैठ जाते वहां की हवा बदल जाती। फिर वे तीनों बूढ़े हो गए। फिर उनमें से एक मर गया फकीर। जिस गांव में उसकी मृत्यु हुई, गांव के लोगों ने सोचा कि आज तो वे जरूर दुखी हो गए होंगे, आज तो वे जरूर परेशान हो गए होंगे। सुबह से ही लोग उनके झोपड़े पर इकट्ठे हो गए। लेकिन वे देख कर हैरान हुए कि वह फकीर जो मर गया था, उसके मरे हुए ओंठ भी मुस्कुरा रहे थे। और वे दोनों उसके पास बैठ कर इतना हंस रहे थे, तो लोगों ने पूछा, यह तुम क्या कर रहे हो? वह मर गया और तुम हंस रहे हो? वे कहने लगे, उसकी मृत्यु ने तो सारी जिंदगी को हंसी बना दिया, जस्ट ए जोक। आदमी मर जाता है, जिंदगी एक जोक हो गई है, एक मजाक हो गई है। हम समझते थे कि जीना है सदा, आज पता चला कि बात गड़बड़ है। यह एक तो हममें से खत्म हुआ, कल हम खत्म हो जाने वाले हैं। तो जिन्होंने सोचा है कि जीना है सदा, वे ही गंभीर हो सकते हैं। अब गंभीर रहने का कोई कारण न रहा। बात हो गई सपने की। एक सपना टूट गया। इस मित्र ने जाकर एक सपना तोड़ दिया। अब हम हंस रहे हैं, पूरी जिंदगी पर हंस रहे हैं अपनी कि क्या—क्या सोचते थे जिंदगी के लिए और मामला आखिर में यह हो जाता है कि आदमी खत्म हो जाता है। एक बबूला टूट गया, एक फूल गिरा और बिखर गया। और फिर अगर हम आज न हंसेंगे, तो कब हंसेंगे? जब कि सारी जिंदगी मौत बन गई और अगर हम न हंसेंगे तो वह जो मर गया साथी, वह क्या सोचेगा? कि अरे! जब जरूरत आई हंसने की तब धोखा दे गए।
जिंदगी में हंसना तो आसान है, जो मौत में भी हंस सके—वे लोग कहने लगे—वही साधु है। जय श्रीकृष्णा हरे हरे-
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शिक्षा_का_निचोड़


शिक्षाकानिचोड़🌞💥

🔴🔺🌟🌸🔥🌸🌟🔺🔴
काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा… “गुरुवर! शिक्षा का निचोड़ क्या है? संत ने मुस्करा कर कहा…”एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।” कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा… “वत्स! इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।” शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा… “क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?” शिष्य ने कहा… “गुरुवर! कमरे में सांप है।” संत ने कहा… “यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना। सांप होगा तो भाग जाएगा।” शिष्य दोबारा कमरे में गया। उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गया और संत से बोला… “सांप वहां से जा नहीं रहा है।” संत ने कहा… “इस बार दीपक लेकर जाओ। सांप होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।” शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहां सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था। बाहर आकर शिष्य ने कहा… “गुरुवर! वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरे में मैंने उसे सांप समझ लिया था।” संत ने कहा… “वत्स, इसी को भ्रम कहते हैं। संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है। ज्ञान के प्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है। यही शिक्षा का निचोड़ है।” वास्तव में अज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रमजाल पाल लेते हैं और आंतरिक दीपक के अभाव में उसे दूर नहीं कर पाते। यह आंतरिक दीपक का प्रकाश निरंतर स्वाध्याय और ज्ञानार्जन से मिलता है। जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा, लोग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।
🔻🍂#जयरामजी_की🍂🔻

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सच्ची_भक्ति


सच्ची_भक्ति

Jyoti Agrawaal

एक अत्यंत गरीब दीन_हीन अपहिज था, वो एक छोटे से गाँव में रहता था, वहाँ के लोग उसकी कान्हा भक्ति देख उसे पागल कहतें थें, वहाँ नित्य प्रतिदिन रोज सुबह 10 किलोमीटर कान्हा के मंदिर के लिए निकलता था,
और कुछ जादा नही चल पाता था, उसके पैर छिल जातें थें, बाजूओं में बैशाखी से छालें पड़ जातें थे, उसे लोग चिढ़ाते थें, ये लगड़ा क्या 10 किलोमीटर भगवान के मंदिर जा पाएगा, सब उस पर हंसते थे, मजाक उड़ाते थे……..

पर वो अपहिज रूकता नही था, कभी हाथों के बल तो कभी, पूरे जिस्म से रगड़कर आगे बढ़ता था, वो कान्हा का परम भक्त था, जब वो टूट जाता बिल्कुल भी हिल नही पाता तो, कान्हा को पुकारता और कहता, मेरे प्रभु मैं आपके मंदिर नही आ पाऊंगा ना कभी, और रोने लगता, फिर रास्तें में पड़ा कोई भी पत्थर उठाता और जहाँ होता, वही कान्हा को पूज कान्हा की भक्ति में लग जाता………

आश्चर्य तो तब होता जिस जगह वो कान्हा को पूजता उसी जगह कान्हा का मंदिर बन जाता, और खुद कान्हा जी उसके पास आतें और उसकी भक्ति से प्रसन्न हो उससे कहते माँगों वत्स तुम्हें क्या वर चाहिए, पर वो अपहिज कुछ नही कहता, बस उनकी पूजा में लग जाता…………

रोज यही क्रम चलता वो सुबह उठता मंदिर के लिए निकलता और मंदिर पहुंच नही पाता, और लोग उसका मजाक उड़ाते, और वो वही रास्तें से पत्थर उठाता, और वही मंदिर बन जाता, रोज कान्हा आते, उसे वर मांगने को कहते और वो रोज कुछ नही माँगता…………

एक रोज वो अपहिज मंदिर जाने के लिए निकला, रास्तें में गाँव के लोग ने उसे घेर लिया और उसे मरने लगें ये कहकर की तु अफवाह फैलाता हैं, की कान्हा का मंदिर तेरे सामने बन जाता हैं, कान्हा तेरे सामने प्रकट होते हैं, तु अपहिज आज तक एक किलोमीटर भी नही चल पाया, तो तु कहा से कान्हा जी के मंदिर पहुंच गया, गाँव वालों ने उसे बहुत मारा और उसकी बैशाखी तोड़ दी, वो अपहिज हंसते_हंसते सब सह गया, और जहाँ गिरा वही कान्हा की भक्ति करने लगा, मंदिर फिर बन गया, कान्हा जी प्रकट हुये, और उसकी हालत देख कहने लगें, हे भक्त तुम क्यूं इतना कष्ट सहते हो वर माँग क्यू नही लेते, मैं अभी तुम्हारे पैर और दुनिया की तमाम सुविधाए एक क्षण दे दूंगा,
अपहिज कहता हें नाथ मुजे कुछ नही चाहिए, और वहाँ कान्हा जी एक ध्यन में मग्न हो जाता………..

अब बाँकेबिहारी लाल सोच में पड़ गयें आखिर ये भक्त कुछ माँगता क्यूं नही, आज इसको मुजे कुछ बिन माँगे ही देना पड़ेगा,
दूसरे दिन की सुबह हुई, वो अपहिज मंदिर जाने के लिए निकला, जैसें ही रास्ते पर पहुंचा एक बड़ी सी गाड़ी उसके पास आकर रूकी और उसमें से सुंदर सा शख्स निकला और वो कान्हा जी का मंदिर उस अपहिज से पूछने लगा, अपहिज ने उसे रास्ता बताया और कहा मैं भी वही जा रहा आप पहुंचे मैं भी आता हूं, तुम मेरे साथ चलो तुम इतनी दूर पैदल कैंसे जाओगे मैं अपनी गाड़ी में ले चलता हूं, अपहिज ने कहा नही महशय आप जाइयें मैं आता हूं, उस शख्श ने बहुत जोर दिया पर अपहिज नही माना, और आगे बढ़ने लगा………..

जैंसे ही वो थोड़ी दूर पहुंचा, उसे रास्तें में स्वर्ण से भरा एक मटका दिखाई दिया, अपहिज ने उसे देखा और, उसे खींचते हुयें किनारे लाकर छोड़ आगे बढ़ गया,

बढ़तेबढ़ते उसे रास्ते पर एक सुंदर भवन दिखाई दीया मानों जैसे विश्वकर्मा जी ने देवताओं के लिए आज ही बनाई हो, और उस भवन से आवाज आयी अंदर आ जाओ तो ये भवन नौकरचाकर स्वर्ण हीरे, रत्न, मणिक धन वैभव सब तुम्हारा होगा, अपहिज ने उसे अनसुना कर आगे बढ़ने लगा…………

कुछ कदम चले ही थे, की उसे सामने से आती सुंदरसुंदर स्त्रीयाँ दिखाई देने लगी, उन स्त्रीयों ने अपहिज के पास आकर कहा, तुम चाहों तो हमारे साथ भोगविलास कर सकतें हो कुछ क्षण आराम करो और हमारे महल चलों, अपहिज ने उनसे हाथ जोड़े और आगे बढ़ गया,

जैंसे ही वो आगे बढ़ा भयंकार गर्मी पढ़ने लगी अपहिज का सारा बदन तपने लगा वो थककर चूर हो गया, पसीने से लथपथ हो गया, फिर भी उसने हार नही मानी और जिस्म के बल रगड़ने लगा, और आगे बढ़ने लगा,

रगड़तेरगड़ते वो इतना थक गया की वही बैठ गया और पत्थर उठाकर उसे अपने कान्हा को देख पूजने लगा, मंदिर बन गया और कान्हा दौड़े चले आयें और आते ही उस अपहिज से पूछा हे भक्त, आज मैंने तुम्हारे दुनिया का हर ऐसवर्य देना चाहा पर तुमने उनको ठोकर मार दिया, स्वर्ण, भवन, नारी, यहाँ तक की मंदिर जाने के लिए रोज गाड़ी तुमने उसे भी ठुकरा दिया,
ये वत्स तुमने ऐसा क्यूं किया, कान्हा जी ने उस अपहिज से पूछा?
अपहिज ने कहा हे
नाथ,
आपने गाड़ी भेजी, पर आप ये क्यू भूल गयें, मेरे चिंतन मात्र से आप दौड़े चले आते हैं, मुजे चल पाता ना देख, तो बताओं मैं उस गाड़ी में बैठकर आपकी मूर्ति देखने आता, जबकी मेरे प्रभु साक्षात मेरे सामने प्रकट हो जातें हैं,
आपने स्वर्ण की मुद्राए दी वो मेरे किस काम की जिसमें आपका नाम ना हो,
वो भवन मेरे किस काम का जिसे पाने के बाद आप मुजे दिखाई ना दें, उससे अच्छा तो मेरा यही जीवन हैं, जिसमें आप मेरे लिए आ जाते हैं,
वो नारीयाँ उनका मैं क्या करूँ, मेरे रोम_रोम में तो बस आप बसें हैं, किसी और के लिए तानिक मात्र भी जगह नही,
और वो भयंकार गर्मी, जिसे पाने बाद मुजे आपके दर्शन हुयें, मेरे कान्हा करें, ऐसी गर्मी मुजे रोज पड़े……………

कान्हाजी भावविभोर हो गयें, और कहने लगें, धन्य हैं मेरे भक्त तु, तुमने मेरी भक्ति सच्चें दिल से की हैं
मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हार पैर, बस कान्हा जी बोलने ही वाले थे की तुम्हार पैर ठीक हो जाए, उससे पहले अपहिज ने कान्हा जी के पैर पकड़ लिए और कहा, प्रभु मुज पर इतना बड़ा अत्चार मत कीजिए, मुजे ऐसा ही रहने दीजिए, समस्त रिशी
मुनियों को बड़े_बड़े पंडितो को देवता नर दानव मानव को जो सौभाग्य प्राप्त नही है वो मुजे है मेरे कष्ट देख पर अपना मंदिर, आप स्वयं दौडे आते हैं बस मुजे इससे जादा और कुछ नही चाहिए मेरे लिए ये एक नही असंख्या वरदान है इसे मुजसे मत छीनियें…………..

कान्हा जी ने उस भक्त की लाज रखी और रोज उस अपहिज को जहाँ वो बैठ जाए, जिस पत्थर को चुने वही मंदिर और स्वयं प्रकट हो जाते थें,
अपहिज भी नित्य_प्रतिदिन सबके ताने सुनता पर हर दिन हारिभजन में मस्त रहता और कान्हा जी की महिमा गाता………….☘

🙏”राधें_राधें”🙏

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मैंने सुना है,

 

Jyoti Agravaal

एक नाव पड़ी थी एक नदी के किनारे और चार कछुए छलांग लगाकर उसमें बैठ गए। हवा तेज थी, उनके धक्के से नाव चल पड़ी, वे बड़े प्रसन्न हुए। लेकिन एक बड़ा दार्शनिक सवाल उठ आया कि नाव कौन चला रहा है? हम तो नहीं चला रहे।

एक कछुए ने कहा, नदी चला रही है। देखते नहीं? नदी की धार बही जा रही है, वही नाव को लिए जा रही है।
दूसरे ने कहा, पागल हुए हो? यह हवा है, नदी नहीं, जो नाव को चला रही है।
बड़ा विवाद छिड़ गया।
तीसरे ने कहा, यह सब भ्रम है वह और भी बड़ा दार्शनिक रहा होगा, यह सब भ्रम है; न हवा चला रही है, न नदी चला रही है; न कोई चल रहा, न कहीं कोई जा रहा, यह सब सपना है; हम नींद में देख रहे हैं।

चौथा लेकिन चुप रहा। उन तीनों ने चौथे की तरफ देखा और कहा, तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? लेकिन चौथा फिर भी चुप रहा; उसने कहा, मुझे कुछ भी पता नहीं।

उसकी यह बात सुनकर वे जो तीनों आपस में लड़ रहे थे, सब साथी हो गए, और उस चौथे को उन्होंने धक्का देकर नदी में गिरा दिया कि बड़ा समझदार बना बैठा है। उसने बेचारे ने इतना ही कहा था कि मुझे कुछ पता नहीं, कौन चला रहा है। उसने बड़े गहरे अनुभव की बात कही थी। किसको पता है, कौन चला रहा है? पता हो भी कैसे सकता है।

वेद के ऋषियों ने कहा है, किसने बनाया इस जगत को, कौन कहे? कैसे कहे? किसको पता है? जिसने बनाया हो, शायद उसे पता हो, शायद उसे भी पता न हो। बड़ी अनूठी बात कही है : शायद उसे पता हो, शायद उसे भी पता न हो। क्योंकि बना लेने से ही कुछ पता चल जाता है, ऐसा तो नहीं।

एक मूर्तिकार मूर्ति बना लेता है; इससे क्या पता चल जाता है? उससे पूछो, वह कहेगा, एक भाव उठा, पता नहीं कहां से आया ई क्यों आया? न आता तो भी कोई उपाय नहीं था। आ गया तो पकड़े गए उस भाव में, उस भाव ने पकड़ ली गर्दन और मूर्ति को बनाना पड़ा। कैसे बनी? किसने बनाई? उपकरण हो गया था। एक कवि से पूछो जिसने गीत रचा हो पूछो, कैसे बनाया? कहेगा, पता नहीं।
जिन्हें पता है, वे शायद कहें, पता नहीं; और जिन्हें पता नहीं है, वे निश्चित उत्तर देंगे कि पता है, क्योंकि इसी भांति वे अपने अज्ञान को ढांक सकेंगे।

वे तीन कछुए आपस में लड़ते थे, लेकिन उनका विवाद खतम हो गया, जब इस चौथे कछुए ने शांत रहकर कहा कि मुझे पता नहीं। किसको पता है? उनके क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने कहा कि बड़ा रहस्यवादी बनता है, बड़ा समझदार बनता है। इतनी समझदारी की बात कर रहा है, हमें पता नहीं, किसी को पता नहीं! धक्का मारकर नीचे गिरा दिया।

सत्य जब भी बोला गया है तो बाकी कछुओं ने उसे धक्का मारकर गिरा दिया है। सत्य को कभी स्वीकार नहीं किया गया। क्योंकि तुम कुछ पहले से ही स्वीकार किए बैठे हो, इसलिए सत्य से भी वंचित रह जाते हो और सत्य की अभिव्यक्ति के पास जो उपशांत होने की संभावना थी, उससे भी वंचित रह जाते हो। तुम पहले से ही माने बैठे हो कि तुम्हें पता है।

मेरे पास तुम हो, अपनी सब जानकारी अलग रख दो; गठरी में बांधकर नदी में डुबा आओ; तो तुम मुझे सुनते सुनते उपशांत होने लगोगे। तुम्हें शायद कुछ करना भी न पड़े, शायद सुनते सुनते ही तुम एक नए अर्थ से भर जाओ, आपूरित हो जाओ , हो ही जाओगे, हो ही जाना चाहिए; कोई कारण नहीं है, बाधा नहीं है कोई।

लेकिन अगर तुम अपनी जानकारी लेकर सुन रहे हो, तुम अपने शास्त्र को बचा बचाकर सुन रहे हो, तुम अपने सिद्धांतों को पकड़े पकड़े सुन रहे हो, तो तुमने सुना ही नहीं; तब तुम विवाद में रहे, संवाद न हो सका। संवाद हो जाए और एक सार्थक पद पड़ जाए तुम्हारे भीतर, बस, काफी है।

बुद्ध कहते हैं, ‘एक सार्थक पद श्रेष्ठ है हजारों पदों से भी। ‘

पर क्या है सार्थकता की उनकी परिभाषा? जो भीतर के अनुभव से आया हो, अनुभवसिक्त हो, जानकर आया हो; उधार न हो, नगद हो, तो ही सार्थक है।
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एस धम्मो सनंतनो~
ओशो…..♡✍