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प्रेरक प्रसंग

निज प्रभुमय देखहिं जगत

 श्री व्यासराम स्वामी के अनेक शिष्य थे, जिनमें कनकदास भी एक थे ।  निम्न जाति के होकर भी उनके प्रति गुरु का अपार प्रेम देख अन्य शिष्य उससे जला करते ।  एक बार स्वामीजी ने एकादशी- व्रत के दिन सारे शिष्यों को एक-एक केला देते हुए कहा कि वे उसे ऐसी जगह खाएँ, जहाँ कोई देख न सके ।  सभी ने निर्जन स्थान में बैठकर केला खाया ।
  एक घन्टे बाद स्वामीजी ने शिष्यों को बुलाकर पूछा कि सबने केला खा लिया है या कोई भूखा भी है ।  प्रत्येक ने कहा कि उसने एकान्त स्थान को ढूँढ़कर खाया है और उसे किसी ने भी खाते नहीं देखा है ।  कनकदास के पूछने पर उसने डरते, शरमाते उत्तर दिया,  "गुरूजी, मुझे ऐसी कोई जगह नहीं दिखाई दी, जहाँ कोई न हो ।  हर जगह मुझे भगवान् का वास होने के कारण ऐसा लगता कि वे देख रहे हैं, इस कारण मैं खा नहीं पाया ।"
  स्वामीजी खुश हुए, क्योंकि उन्होंने ही कुछ दिनों पूर्व बताया था कि भगवान् सर्वत्र विद्यमान हैं एवं सबके अच्छे-बुरे कर्मों की ओर उनकी दृष्टि रहती है ।  उन्होंने शिष्यों से कहा,  "कनक तुम सब में इसी कारण अलग है कि वह दिये हुए उपदेशों को आचरण में लाता है ।  इसलिए अब कभी भी उसके प्रति द्वेष भाव न रखे ।"

अनूप सिन्हा

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