Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

. “साक्षी गोपाल”
ईश्वर है या नहीं इस विषय पर आज भी तर्क-वितर्क होते रहते हैं। जो मानते हैं कि ईश्वर है उनके लिए उनका निराकार रूप भी उतना ही महत्व रखता है, जितना कि ईश्वर का साकार रूप। इसलिए ईश्वर को हर हाल में मानने वालों को आस्तिक और उन्हें न मानने वालों को नास्तिक कहते हैं। ऐसे कुछ आस्तिक भक्तों का मत है कि जब कभी हम विपदा में होते हैं ईश्वर हमारी सहायता जरूर करने आते हैं। पुराणों में भक्त और ईश्वर के अटूट प्रेम से संबंधित बहुत सी कहानियाँ आज भी लोकप्रिय है। ऐसी ही एक कहानी आज हम आपकों बता रहे हैं जिसके द्वारा आपको भक्त और भगवान का रिश्ता कितना अटूट है पता चल जाएगा।
हमारे देश में साक्षी गोपाल नामक एक मन्दिर है। एक बार दो ब्राह्मण वृंदावन की यात्रा पर निकले जिनमें से एक वृद्ध था और दूसरा जवान था। यात्रा काफी लम्बी और कठिन थी जिस कारण उन दोनों यात्रियों को यात्रा करने में कई कष्टों का सामना करना पड़ा उस समय रेलगाड़ियों की भी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। वृद्ध व्यक्ति ब्राह्मण युवक का अत्यन्त कृतज्ञ था क्योंकि उसने यात्रा के दौरान वृद्ध व्यक्ति की सहायता की थी। वृंदावन पहुँचकर उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा,” हे युवक ! तुमने मेरी अत्यधिक सेवा की है। मैं तुम्हारा अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी इस सेवा के बदले में मैं तुम्हे कुछ पुरस्कार दूँ।” उस ब्राह्मण युवक ने उससे कुछ भी लेने से इन्कार कर दिया पर वृद्ध व्यक्ति हठ करने लगा। फिर उस वृद्ध व्यक्ति ने अपनी जवान पुत्री का विवाह उस ब्राह्मण युवक से करने का वचन दिया।
ब्राह्मण युवक ने वृद्ध व्यक्ति को समझाया कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि आप बहुत अमीर हैं और मैं तो बहुत ही गरीब ब्राह्मण हूँ। यह वार्तालाप मन्दिर में भगवान गोपाल कृष्ण के श्रीविग्रह समक्ष हो रहा था लेकिन वृद्ध व्यक्ति अपनी हठ पर अड़ा रहा और फिर कुछ दिन तक वृंदावन रहने के बाद दोनों घर लौट आये। वृद्ध व्यक्ति ने सारी बातें घर पर आकर बताई कि उसने अपनी बेटी का विवाह एक ब्राह्मण से तय कर दिया है पर पत्नी को यह सब मंजूर नहीं था। उस वृद्ध पुरुष की पत्नी ने कहा, “यदि आप मेरी पुत्री का विवाह उस युवक से करेंगे तो मैं आत्महत्या कर लूँगी।” कुछ समय व्यतीत होने के बाद ब्राह्मण युवक को यह चिंता थी कि वृद्ध अपने वचन को पूरा करेगा या नहीं। फिर ब्राह्मण युवक से रहा न गया और उसने वृद्ध पुरुष को उसका वचन याद करवाया। वह वृद्ध पुरुष मौन रहा और उसे डर था कि अगर वह अपनी बेटी का विवाह इससे करवाता है तो उसकी पत्नी अपनी जान दे देगी और वृद्ध पुरुष ने कोई उत्तर न दिया। तब ब्राह्मण युवक उसे उसका दिया हुआ वचन याद करवाने लगा और तभी वृद्ध पुरुष के बेटे ने उस ब्राह्मण युवक को ये कहकर घर से निकाल दिया कि तुम झूठ बोल रहे हो और तुम मेरे पिता को लूटने के लिए आए हो।
ब्राह्मण युवक ने उसके पिता द्वारा दिया गया वचन याद करवाया। ब्राह्मण युवक ने कहा कि यह सारे वचन तुम्हारे पिता जी ने श्रीविग्रह के सामने दिए थे तब वृद्ध व्यक्ति का ज्येष्ठ पुत्र जो भगवान को नहीं मानता था युवक को कहने लगा अगर तुम कहते हो भगवान इस बात के साक्षी है तो यही सही। यदि भगवान प्रकट होकर यह साक्षी दें कि मेरे पिता ने वचन दिया है तो तुम मेरी बहन के साथ विवाह कर सकते हो। तब युवक ने कहा, “हाँ, मैं भगवान श्रीकृष्ण से कहूँगा कि वे साक्षी के रूप में आयें। उसे भगवान श्रीकृष्ण पर पूरा विश्वास था कि भगवान श्रीकृष्ण उसके लिए वृंदावन से जरूर आयेंगे। फिर अचानक वृंदावन के मन्दिर की मूर्ति से आवाज सुनाई दी कि मैं तुम्हारे साथ कैसे चल सकता हूँ मैं तो मात्र एक मूर्ति हूँ, तब उस युवक ने कहा, “कि अगर मूर्ति बात कर सकती है तो साथ भी चल सकती है।” तब भ”गवान श्रीकृष्ण ने युवक के समक्ष एक शर्त रख दी कि “तुम मुझे किसी भी दिशा में ले जाना मगर तुम पीछे पलटकर नहीं देखोगे तुम सिर्फ मेरे नूपुरों की ध्वनि से यह जान सकोगे कि मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ।” युवक ने उनकी बात मान ली और वह वृंदावन से चल पड़े और जिस नगर में जाना था वहाँ पहुँचने के बाद युवक को नूपुरों की ध्वनि आना बन्द हो गयी और युवक ने धैर्य न धारण कर सकने के कारण पीछे मुड़ कर देख लिया और मूर्ति वहीं पर स्थिर खड़ी थी अब मूर्ति आगे नहीं चल सकती थी क्योंकि युवक ने पीछे मुड़ कर देख लिया था।
वह युवक दौड़कर नगर पहुँचा और सब लोगों को इक्ट्ठा करके कहने लगा कि देखो भगवान श्रीकृष्ण साक्षी रूप में आये हैं। लोग स्तंभित थे कि इतनी बड़ी मूर्ति इतनी दूरी से चल कर आई है। उन्होंने श्रीविग्रह के सम्मान में उस स्थल पर एक मन्दिर बनवा दिया और आज भी लोग इस मन्दिर में साश्री गोपाल की पूजा करते हैं।
साक्षी गोपाल ओड़ीशा राज्य के पुरी जिले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। कालान्तर में यह विग्रह श्री जगन्नाथ पुरी में पधारे तथा वहाँ से 12 मील दूर सत्यवादीपुर में अब विराजमान हैं। अब सत्यवादीपुर को साक्षी गोपाल के नाम से ही जाना जाता है।
“जय जय श्री राधे”

सुरेंदर जैन

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एक रहस्य
एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये, दुकान मे अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे, एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए सन्यासी ने दुकानदार से पूछा, इसमे क्या है ? दुकानदारने कहा – इसमे नमक है ! सन्यासी ने फिर पूछा, इसके पास वाले मे क्या है ? दुकानदार ने कहा, इसमे हल्दी है ! इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा, अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा उस अंतिम डिब्बे मे क्या है? दुकानदार बोला, उसमे राम-राम है ! सन्यासी ने पूछा, यह राम-राम किस वस्तु का नाम है ! दुकानदार ने कहा – महात्मन ! और डिब्बों मे तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं, पर यह डिब्बा खाली है, हम खाली को खाली नही कहकर राम-राम कहते हैं ! संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई ! ओह, तो खाली मे राम रहता है ! भरे हुए में राम को स्थान कहाँ ? लोभ, लालच, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ? राम यानी ईश्वर तो खाली याने साफ-सुथरे मन मे ही निवास करता है ! एक छोटी सी दुकान वाले ने सन्यासी को बहुत बड़ी बात समझा दी!

संजय गुप्ता

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जब भगवान ने स्त्री बनाई ….
AK 🤔🤔🤔🤔

जब भगवान स्त्री की रचना कर रहे थे तब उन्हें काफी समय लग गया। छठा दिन था और स्त्री की रचना अभी अधूरी थी।

इसलिए देवदूत ने पूछा- भगवान, आप इसमें इतना समय क्यों ले रहे हो?

भगवान ने जवाब दिया- क्या तुमने इसके सारे गुणधर्म देखे हैं, जो इसकी रचना के लिए जरूरी हैं।

यह हर प्रकार की परिस्थितियों को संभाल सकती है। यह एकसाथ अपने सभी बच्चों को संभाल सकती है एवं खुश रख सकती है। यह अपने प्यार से घुटनों की खरोंच से लेकर टूटे दिल के घाव भी भर सकती है। यह सब सिर्फ अपने दो हाथों से कर सकती है। इसमें सबसे बड़ा गुणधर्म यह है कि बीमार होने पर अपना ख्याल खुद रख सकती है एवं 18 घंटे काम भी कर सकती है।

देवदूत चकित रह गया और आश्चर्य से पूछा कि भगवान क्या यह सब दो हाथों से कर पाना संभव है?

भगवान ने कहा- यह मेरी अद्भुत रचना है।

देवदूत ने नजदीक जाकर स्त्री को हाथ लगाया और कहा- भगवान यह तो बहुत नाजुक है।

भगवान ने कहा- हां, यह बाहर से बहुत ही नाजुक है, मगर इसे अंदर से बहुत मजबूत बनाया है। इसमें हर परिस्थितियों का संभालने की ताकत है। यह कोमल है पर कमजोर नहीं है।

देवदूत ने पूछा- क्या यह सोच भी सकती है?

भगवान ने कहा- यह सोच भी सकती है और मजबूत होकर मुकाबला भी कर सकती है।

देवदूत ने नजदीक जाकर स्त्री के गालों को हाथ लगाया और बोला- भगवान ये तो गीले हैं। लगता है इसमें से कुछ बह रहा है।

भगवान बोले- यह इसके आंसू हैं।

देवदूत- आंसू किसलिए?

भगवान बोले- यह भी इसकी ताकत है। आंसू इसको फरियाद करने, प्यार जताने एवं अपना अकेलापन दूर करने का तरीका है।

देवदूत- भगवान आपकी रचना अद्भुत है। आपने सब कुछ सोचकर बनाया है। आप महान हैं।

भगवान बोले- यह स्त्रीरूपी रचना अद्भुत है। यही हर पुरुष की ताकत है, जो उसे प्रोत्साहित करती है। वे सभी को खुश देखकर खुश रहती हैं, हर परिस्थिति में हंसती रहती हैं। उसे जो चाहिए, वह लड़कर भी ले सकती है। उसके प्यार में कोई शर्त नहीं है। उसका दिल टूट जाता है, जब अपने ही उसे धोखा दे देते हैं, मगर हर परिस्थितियों से समझौता करना भी जानती है।

संजय गुप्ता

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बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा ।

सेठ ने सोचा कि इतना पाप हो रहा है , तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए।

एक दिन उसने बासमती चावल की खीर बनवायी और किसी साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजनप्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की।

साधु बाबा ने बासमती चावल की खीर खायी।

दोपहर का समय था । सेठ ने कहाः “महाराज ! अभी आराम कीजिए । थोड़ी धूप कम हो जाय फिर पधारियेगा।

साधु बाबा ने बात स्वीकार कर ली।

सेठ ने 100-100 रूपये वाली 10 लाख जितनी रकम की गड्डियाँ उसी कमरे में चादर से ढँककर रख दी।

साधु बाबा आराम करने लगे।

खीर थोड़ी हजम हुई । साधु बाबा के मन में हुआ कि इतनी सारी गड्डियाँ पड़ी हैं, एक-दो उठाकर झोले में रख लूँ तो किसको पता चलेगा ?

साधु बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली।

शाम हुई तो सेठ को आशीर्वाद देकर चल पड़े।

सेठ दूसरे दिन रूपये गिनने बैठा तो 1 गड्डी (दस हजार रुपये) कम निकली।

सेठ ने सोचा कि महात्मा तो भगवतपुरुष थे, वे क्यों लेंगे.?

नौकरों की धुलाई-पिटाई चालू हो गयी। ऐसा करते-करते दोपहर हो गयी।

इतने में साधु बाबा आ पहुँचे तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोलेः “नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं ले गया था।”

सेठ ने कहाः “महाराज ! आप क्यों लेंगे ? जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई तब कोई भय के मारे आपको दे गया होगा । और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आये हैं क्योंकि साधु तो दयालु होते है।”

साधुः “यह दयालुता नहीं है । मैं सचमुच में तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था।

साधु ने कहा सेठ ….तुम सच बताओ कि तुम कल खीर किसकी और किसलिए बनायी थी ?”

सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल की खीर थी।

साधु बाबाः “चोरी के चावल की खीर थी इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया। सुबह जब पेट खाली हुआ, तेरी खीर का सफाया हो गया तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि
‘हे राम…. यह क्या हो गया ?

मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी । इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया ।

“इसीलिए कहते हैं कि….

जैसा खाओ अन्न … वैसा होवे मन।
जैसा पीओ पानी …. वैसी होवे वाणी ।
जैसी शुद्धी…. वैसी बुद्धी…. ।
जैसे विचार … वैसा संसार।
🙏👌🙏👌🙏👌

धीरज

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हमारे ऋषियों ने वेदों को कैसे सुरक्षित रखा ?
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जाने वेदों में रत्ती भर भी मिलावट क्यों नही हो सकी ? जब कोई सनातनी ये बताने की कोशिश करता हैं की हमारे ज्यादातर ग्रंथों में मिलावट की गई है तो वो वेदों पर भी ऊँगली उठाते हैं की अगर सभी में मिलावट की गई है तो वेदों में भी किसी ने मिलावट की होगी….परन्तु ऐसा नही हैं क्यों नही हैं जानते हैं..वेदों को सुरक्षित रखने के लिए उनकी अनुपुर्वी, एक-एक शब्द और एक एक अक्षर को अपने मूल रूप में बनाये रखने के लिए जो उपाय किये गए उन्हें आज कल की गणित की भाषा में ‘Permutation and combination’ (क्रमपरिवर्तन और संयोजन)
कहा जा सकता हैं.. वेद मन्त्र को स्मरण रखने और उनमे एक मात्रा का भी लोप या विपर्यास ना होने पाए इसके लिए उसे 13 प्रकार से याद किया जाता था…. याद करने के इस उपाय को दो भागों में बांटा जा सकता हैं…. प्रकृति-पाठ और विकृति-पाठ…. प्रकृति पाठ का अर्थ हैं मन्त्र को जैसा वह है वैसा ही याद करना…. विकृति- पाठ का अर्थ हैं उसे तोड़ तोड़ कर पदों को आगे पीछे दोहरा-दोहरा कर भिन्न-भिन्न प्रकार से याद करना…. याद करने के इन उपायों के 13 प्रकार निश्चित किये गए थे— संहिता-पाठ, पद-पाठ, कर्म-पाठ, जटा-पाठ, पुष्पमाला-पाठ, कर्ममाला-पाठ, शिखा-पाठ, रेखा-पाठ, दण्ड-पाठ, रथ-पाठ, ध्वज-पाठ, धन-पाठ और त्रिपद धन-पाठ…. पाठों के इन नियमों को विकृति वल्ली नमक ग्रन्थ में विस्तार से दिया गया हैं…. परिमाणत: श्रोतिय ब्राह्मणों (जिन्हें मैक्समूलर ने जीवित पुस्तकालय नाम से अभिहित किया हैं) के मुख से वेद आज भी उसी रूप में सुरक्षित हैं जिस रूप में कभी आदि ऋषिओं ने उनका उच्चारण किया होगा… विश्व के इस अदभुत आश्चर्य को देख कर एक पाश्चात्य विद्वान् ने आत्मविभोर होकर कहा था की यदि वेद की सभी मुद्रित प्रतियाँ नष्ट हो जाएँ तो भी इन ब्राह्मणों के मुख से वेद को पुनः प्राप्त किया जा सकता हैं…. मैक्समूलर ने ‘India-What can it teach us’ (प्रष्ठ 195) में लिखा हैं —- आज भी यदि वेद की रचना को कम से कम पाच हजार वर्ष (मैक्समूलर के अनुसार) हो गए हैं… भारत में ऐसे श्रोतिय मिल सकते हैं जिन्हें समूचा वैदिक साहित्य कंठस्थ हैं …. स्वयं अपने ही निवास पर मुझे ऐसे छात्रों से मिलने का सोभाग्य मिला हैं जो न केवल समूचे वेद को मौखिक पाठ कर सकते हैं वरन उनका पाठ सन्निहित सभी आरोहावरोह से पूर्ण होता हैं…. उन लोगो ने जब भी मेरे द्वारा सम्पादित संस्करणों को देखा और जहाँ कही भी उन्हें अशुद्धि मिली उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के उन अशुद्धियों की और मेरा ध्यान आकर्षित किया….
मुझे आश्चर्य होता है उनके इस आत्मविश्वास पर जिसके बल पर वे सहज ही उन असुधियों को ध्यान में ला देते थे जो हमारे संस्करणों में जहाँ-तहाँ रह जाती थी…. वेदों की रक्षा के लिए किये गए इन प्रयत्नों की सराहना करते हुए मैक्समूलर ने अपने ग्रन्थ ‘Origin of Religion’ (धर्म की स्थापना) के प्रष्ठ 131 पर लिखा हैं।

“वेदों का पाठ हमें इस तरह की सटीकता के साथ सौंप दिया गया है कि काम की उचित समझ में शायद ही कभी पढ़ा जा रहा है या पूरे ऋग्वेद में अनिश्चित पहलू भी है।”

Regeda Vol. I भाग XXV में मैक्समूलर ने पुनः लिखा (जहां तक हम निर्णय लेने में सक्षम हैं, हम शब्द की सामान्य अर्थ में वैदिक भजनों में विभिन्न रीडिंगों की शायद ही कभी बात कर सकते हैं। संग्रह पांडुलिपियों से इकट्ठा होने के लिए विभिन्न रीडिंग, अब हमारे लिए सुलभ हैं। “)

वेदों को शुद्धरूप में सुरक्षा का इतना प्रबंध आरम्भ से ही कर लिया गया था की उनमे प्रक्षेप करना संभव नही था….
इन उपायों के उद्देश्य के सम्बंध में सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता डॉ.भंडारकर ने अपने ‘India Antiquary’ के सन् 1874 के अंक में लिखा था।

“The object of there different arrangements is simply he most accurate preservation of the sacred text of the Vedas.

( “उनकी विभिन्न व्यवस्थाओं का उद्देश्य वेदों के पवित्र पाठ का सबसे सटीक संरक्षण है।)

वेदों के पाठ को ज्यों का त्यों सुरक्षित रखने के लिए जो दूसरा उपाय किया गया था वह यह था की वेदों की छंद- संख्या, पद-संख्या, तथा मंत्रानुक्र्म से छंद, ऋषि, देवता को बताने के लिए उनके अनुक्रमणियां तैयार की गई जो अब भी शौनकानुक्रमणी, अनुवाकानुक्रमणी, सुक्तानुक्रमणी, आर्षानुक्रमणी, छंदोंनुक्रमणी, देवतानुक्रमणी, कात्यायनीयानुक्रमणी, सर्वानुक्रमणी, ऋग्विधान, ब्रहद्देवता, मंत्रार्षार्ध्याय, कात्यायनीय, सर्वानुक्रमणी, प्रातिशाख्यसूत्रादि, के नामों से पाई जाती हैं,साथ ही समस्त शिक्षा ग्रन्थ
….इन अनुक्रमणीयों पर विचार करते हुए मैक्समूलर ने `Ancient Sanskrit Literature’ के प्रष्ठ 117 पर लिखा है की ऋग्वेद की अनुक्रमणी से हम उनके सूक्तों और पदों की पड़ताल करके निर्भीकता से कह सकते हैं की अब भी ऋग्वेद के मन्त्रों शब्दों और पदों की वही संख्या हैं जो कभी कात्यायन के समय में थी।
इस विषय में प्रो. मैकडानल ने भी स्पष्ट लिखा हैं की आर्यों ने अति प्राचीन कल से वैदिक पाठ की शुद्धता रखने और उसे परिवर्तन अथवा नाश से बचाने के लिए असाधारण सावधानता का उपयोग किया हैं…. इसका परिणाम यह हुआ की इसे ऐसी शुद्धता के साथ रखा गया है जो साहित्य के इतिहास में भी अनुपम हैं।
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देव शर्मा

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दिल छु लेगी ये Story ऐक बार जरूर पडें

आज बहुत दिनो बाद पुरानी इंग्लिश की वो Notebook खोली तो वो गुज़रा हुआ लम्हा आंखो मे फिर से उतर आया .और पूरा शरीर काँप सी गया और आंखो से अश्क टपकने लगे ….

बात 11वीं के बाद 12वीं की है ….school की पहली क्लास थी मै काफ़ी दूर से cycle से school जाता था । ..

Class मे enter करते ही मेरे friends चिल्लाये अबे तेरी चैन खुली है ! मै क्या करता झटके से ध्यान किया …

फिर उन्होने दुबारा से बोला अबे यार bag की chain……
फिर पुरी class हँसने लगी ………..और कोई मुस्करा रहा था तो वो थी आयशा…. मैने जैसे ही उसकी तरफ़ देखा वो भी मुस्कराना बंद कर दी……
कुछ दिन ऐसे ही class चलती रही ………….कुछ अलग था तो ये की वो जब मेरे तरफ देखती… तो मै नज़रे झुका लेता
और कभी मै उसे देखता तो वो हल्का सा मुस्करा देती थी .lllll और उसकी वो smile जिन्दगी के हर खुशी से किमती थी II
Class के छुट्टी के बाद घर जाते time मै उसे बिना देखे जाता ही नही था…. वो तिराहे से अपने घर की तरफ़ मुड़ जाती थी…
मेरी आदत थी हिंदी लिखने के बाद ऊपर से लाइन नही खिचता था III उस दिन हिंदी के टीचर से Notebook चेक कराने गया तो Sir बोले की लाइन क्यूँ नी मारे…
मै बोला Sir Line मारना जरुरी होता है क्या ??????????? Sir बोले हाँ …… class हँसने लगी और कोई सबसे ज्यादा हँस रही थी तो वो थी आयशा ……
उसको हँसता देख मुझको अलग ही खुशी मिलती थी …मै उसको देखता ही रहता था और किसी न किसी बहाने उसे हँसाता रहता था….
पर उससे कभी कुछ कहने की हिम्मत नही हुई l l
पुरी class को लगता था की हम दोनो एक दूसरे को प्यार करते है……,अब शायद उसे भी लगने लगा था की मै उसे बहुत चाहता हूँ ….
एक दिन वो school नही आयी थी….
तो अगले दिन वो मेरे से First time मुझसे… कुछ माँगी और बोली की मुझे…. अपनी English ki notebook देदो!
मैने कहा ठीक है interval के बाद ले लेना
फिर मैने interval के time english के notebook के index page पे लिखा …
आयशा तुम मेरी जिन्दगी हो …
I LOVE YOU ….
जन्नत सी होगी मेरी जिन्दगी आयशा !!!अगर तुम्हारा साथ होगा……..
और मैने उसे interval के बाद दे दिया ……मैने उस दिन की last क्लास मे उसे देखा पर वो मेरे तरफ़ ध्यान नही दी ….
फिर उस दिन school की छुट्टी के बाद हर रोज की तरह उसे देखने के लिये मैं तिराहे पे wait कर रहा था, मेरे friends भी साथ मे थे ….वो cycle से आयी और मुझे देखके मुस्करायी और बोली कि तुम्हारी Notebook मेरे Desk के Drawer में है…. और जाने लगी …मेरे friends बोले की वो तेरे को प्यार करती होगी तो तेरे बुलाने पे पीछे मुड़कर देखेगी
मैने भी आयशा आवाज़ लगा दी ….उसने मुझे पीछे मुड़के देखना चाहा और उसके cycle की handle मुड़ गयी….
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सामने से आ रहा ट्रक उसकी cycle से
टकरा गया, उसको और उसकी cycle को रौंदता हुआ चला गया ………..और मैं कुछ न कर सका इतना भी वक्त नहीं मिला कि उसे Hospital लेके जाऊँ ….. उसकी साँसे हमेशा के लिए थम गईं……. और मैं रोता ही रह गया….
उसके बाद कई दिनो तक मैं school नही गया ..सब दोस्तो के कहने पे बहुत हिम्मत करके school गया…
तो हर बार उसकी bench पे ही नज़र जा रही थी …
Interval हुआ सभी बाहर चले गये तो मै उसकी bench पे गया और बैठा उसकी bench की drawer मे देखा तो मेरी English की notebook पड़ी थी और उसपे लिखा था ….
हाँ मैं तुम्हारी जिन्दगी हूँ….
LOVE YOU Toooo…….
इतना पढ़ते ही मेरी आंखो आँसू आ गए….. काश मैं उस दिन उसको आवाज नहीं लगायी होती तो
आज वो सच में मेरी जिदंगी नहीं…
मेरी जिंदगी में होती…..

आंसू सुख गये हो जैसे सिसकियॉं नही आती
तु नही है तो हमे हिचकियॉं नही आती
लिखने को लिख रखी है तेरे नाम कि कई चिट्ठियॉं
पर तु जहा है वहा चिट्ठियॉं नही आती….
❥❥═❄ ,,………

संजय गुप्ता

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(((( हरि का भोग ))))
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श्रीयशोदाजी के मायके से एक ब्राह्मण गोकुल आये।

नंदरायजी के घर बालक का जन्म हुआ है, यह सुनकर आशीर्वाद देने आये थे।

मायके से आये ब्राह्मण को देखकर यशोदाजी को बड़ा अानंद हुआ। पंडितजी के चरण धोकर, आदर सहित उनको घर में बिठाया और उनके भोजन के लिये योग्य स्थान गोबर से लिपवा दिया।

पंडितजी से बोली, देव आपकी जो इच्छा हो भोजन बना लें। यह सुनकर विप्र का मन अत्यन्त हर्षित हुआ।

विप्र ने कहा बहुत अवस्था बीत जाने पर विधाता अनुकूल हुए, यशोदाजी ! तुम धन्य हो जो ऐसा सुन्दर बालक का जन्म तुम्हारे घर हुआ।

यशोदाजी गाय दुहवाकर दूध ले आईं, ब्राह्मण ने बड़ी प्रसन्नता से घी मिश्री मिलाकर खीर बनायी। खीर परोसकर वो भगवान हरी को भोग लगाने के लिये ध्यान करने लगे।

जैसे ही आँखे खोली तो विप्र देव ने देखा कन्हाई खीर का भोग लगा रहे हैं।

वे बोले यशोदाजी ! आकर अपने पुत्र की करतूत तो देखो, इसने सारा भोजन जूठा कर दिया।

ब्रजरानी दोनो हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी, विप्रदेव बालक को क्षमा करें और कृपया फिर से भोजन बना लें।

व्रजरानी दुबारा दूध घी मिश्री तथा चावल ले आयीं और कन्हाई को घर के भीतर ले गयीं ताकि वो कोई गलती न करें।

विप्र अब पुन: खीर बनाकर अपने अराध्य को अर्पित कर ध्यान करने लगे, कन्हाई फिर वहाँ आकर खीर का भोग लगाने लगे।

विप्रदेव परेशान हो गये। मैया मोहन को गुस्से से कहती हैं – कान्हा लड़कपन क्यों करते हो ? तुमने ब्राह्मण को बार-बार खिजाया ( तंग किया ) है।

इस तरह बिप्रदेव जब-जब भोग लगाते हैं, कन्हाई आकर तभी जूठा कर देते हैं।

अब माता परेशान होकर कहने लगी ‘कन्हाई मैंने बड़ी उमंग से ब्राह्मणदेव को न्योता दिया था और तू उन्हें चिढ़ाता है ?

जब वो अपने ठाकुरजी को भोग लगाते हैं, तब तू यों ही भागकर चला जाता है और भोग जूठा कर देता है’।

यह सुनकर कन्हाई बोले- मैया तू मुझे क्यों दोष देती है, विप्रदेव स्वयं ही विधि विधान से मेरा ध्यान कर हाथ जोड़कर मुझे भोग लगाने के लिये बुलाते हैं, हरी आओ, भोग स्वीकार करो। मैं कैसे न जाऊँ।

ब्राह्मण की समझ में बात आ गयी। अब वे व्याकुल होकर कहने लगे, प्रभो ! अज्ञानवश मैंने जो अपराध किया है, मुझे क्षमा करें।

यह गोकुल धन्य है, श्रीनन्दजी और यशोदाजी धन्य हैं, जिनके यहाँ साक्षात् श्रीहरि ने अवतार लिया है। मेरे समस्त पुन्यों एवं उत्तम कर्मों का फल आज मुझे मिल गया, जो दीनबन्धु प्रभु ने मुझे साक्षात दर्शन दिया।

सूरदासजी कहते हैं कि विप्रदेव बार बार हे अन्तर्यामी ! हे दयासागर ! मुझ पर कृपा कीजिये, भव से पार कीजिये, और यशोदाजी के आँगन मे लोटने लगे।

((((((( जय जय श्री राधे ))))
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देव शर्मा

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(((( अंतिम लक्ष्य ))))
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एक बार कलकत्ता का एक भक्त अपने गुरु की सुनाई हुई भागवत कथा से इतना मोहित हुआ कि वह हर समय वृन्दावन आने की सोचने लगा.
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उसके गुरु उसे निधिवन के बारे में बताया करते थे और कहते थे कि आज भी भगवान यहाँ रात्रि को रास रचाने आते है.
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उस भक्त को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था और एक बार उसने निश्चय किया कि वृन्दावन जाऊंगा.
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और ऐसा ही हुआ श्री राधा रानी की कृपा हुई और आ गया वृन्दावन उसने जी भर कर बिहारी जी का राधा रानी का दर्शन किया लेकिन अब भी उसे इस बात का यकीन नहीं था कि निधिवन में रात्रि को भगवान रास रचाते है.
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उसने सोचा कि एक दिन निधिवन रुक कर देखता हू इसलिए वो वही पर रूक गया और देर तक बैठा रहा और जब शाम होने को आई तब एक पेड़ की लता की आड़ में छिप गया.
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जब शाम के वक़्त वहा के पुजारी निधिवन को खाली करवाने लगे तो उनकी नज़र उस भक्त पर पड़ गयी और उसे वहा से जाने को कहा तब तो वो भक्त वहा से चला गया लेकिन अगले दिन फिर से वहा जाकर छिप गया और फिर से शाम होते ही पुजारियों द्वारा निकाला गया.
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और आखिर में उसने निधिवन में एक ऐसा कोना खोज निकाला जहा उसे कोई न ढूंढ़ सकता था और वो आँखे मूंदे सारी रात वही निधिवन में बैठा रहा
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और अगले दिन जब सेविकाए निधिवन में साफ़ सफाई करने आई तो पाया कि एक व्यक्ति बेसुध पड़ा हुआ है और उसके मुह से झाग निकल रहा है. तब उन सेविकाओ ने सभी को बताया तो लोगो कि भीड़ वहा पर जमा हो गयी.
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सभी ने उस व्यक्ति से बोलने की कोशिश की लेकिन वो कुछ भी नहीं बोल रहा था.
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लोगो ने उसे खाने के लिए मिठाई आदि दी लेकिन उसने नहीं ली और ऐसे ही वो ३ दिन तक बिना कुछ खाए पीये ऐसे ही बेसुध पड़ा रहा.
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और ५ दिन बाद उसके गुरु जो कि गोवर्धन में रहते थे उनको बताया गया तब उसके गुरूजी वहा पहुचे और उसे गोवर्धन अपने आश्रम में ले आये. आश्रम में भी वो ऐसे ही रहा.
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एक दिन सुबह सुबह उस व्यक्ति ने अपने गुरूजी से लिखने के लिए कलम और कागज़ माँगा.
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गुरूजी ने ऐसा ही किया और उसे वो कलम और कागज़ देकर मानसी गंगा में स्नान करने चले गए.
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जब गुरूजी स्नान करके आश्रम में आये तो पाया कि उस भक्त ने दीवार के सहारे लग कर अपना शरीर त्याग दिया था और उस कागज़ पर कुछ लिखा हुआ था.
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उस पर लिखा था- गुरूजी मैंने यह बात किसी को भी नहीं बताई है, पहले सिर्फ आपको ही बताना चाहता हू ,
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आप कहते थे न कि निधिवन में आज भी भगवान् रास रचाने आते है और मैं आपकी कही बात पर यकीन नहीं करता था,
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लेकिन जब मैं निधिवन में रूका तब मैंने साक्षात बांके बिहारी का राधा रानी के साथ गोपियों के साथ रास रचाते हुए दर्शन किया और अब मेरी जीने की कोई भी इच्छा नहीं है ,
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इस जीवन का जो लक्ष्य था वो लक्ष्य मैंने प्राप्त कर लिया है और अब मैं जी कर करूँगा भी क्या ?
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श्याम सुन्दर की सुन्दरता के आगे ये दुनिया वालो की सुन्दरता कुछ भी नहीं है, इसलिए आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिये.
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बंधुओ वो पत्र जो उस भक्त ने अपने गुरु के लिए लिखा था आज भी मथुरा के सरकारी संघ्रालय में रखा हुआ है और बंगाली भाषा में लिखा हुआ है…

संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

इस हँसी का क्या रहस्य है?

एक बार राजा भोज की पत्नी भोज को स्नान करा रही थी दोनों आनन्द का अनुभव कर रहे थे . भोज बार बार अपनी पत्नी से आग्रह करते कि पानी और डालो इस पर उनकी पत्नी जोर जोर से हंसने लगी . राजा ने पूछा कि तुम क्यों हंस रही हो इस पर उसने कहा कि ये बताने की बात नहीं है . लेकिन राजा अङ गया कि तुम्हें बताना होगा।

तब उसने कहा कि ये बात तुम्हें मैं नहीं मेरी बहन बतायेगी उल्लेखनीय है कि भोज की पत्नी उस ग्यान को जानती थी जिसमें पूर्वजन्म का ग्यान होता है।उसकी बहन भी इस ग्यान को जानती थी पर क्योंकि इस ग्यान का संसार के नातों से कोई सम्बन्ध नहीं होता इसलिये कितना भी सगा हो उसे ये ग्यान नहीं बताते . बताने पर ये ग्यान नियम विरुद्ध हो जाने से चला जाता है।

राजा भोज अपनी भारी जिग्यासा के चलते अपनी साली के घर पहुँचा वहाँ उस वक्त कोई कार्यक्रम चल रहा था ।

अतः राजा बात न पूछ सका फ़िर फ़ुरसत मिलते ही राजा ने वह प्रश्न अपनी साली से कर दिया तब उसने कहा कि तुम्हारी बहन ने कहा है कि बार बार पानी डालने की बात पर हंसने का रहस्य मेरी बहन बतायेगी..तब राजा की साली ने कहा कि आज आधी रात को बच्चे को जन्म देते ही मेरी मृत्यु हो जायेगी इसके अठारह साल बाद मेरे पुत्र जिसका आज जन्म होगा उसकी पत्नी तुम्हें ये राज बतायेगी।

राजा ने बहुत हठ किया पर इससे ज्यादा बताने से उसने इंकार कर दिया .ठीक वैसा ही हुआ पुत्र को जन्म देकर भोज की साली मर गयी..राजा ने अठारह साल तक बेसब्री से इंतजार किया और फ़िर वो दिन आ ही गया जब उस पुत्र का विवाह हुआ राजा उसी बात का इंतजार कर रहा था सो जैसे ही उसे वधू से मिलने का मौका मिला . उसने कहा मैं अठारह साल से इस समय का इंतजार कर रहा हूँ….और भोज ने पूरीबात बता दी।

वधू ने कहा कि पहले तो आप ये बात न ही पूछो तो बेहतर है और अगर पूछते ही हो तो मेरे पति से कभी इसका जिक्र न करना..अन्यथा वो पति धर्म से विमुख हो जायेगा और इससे विधान में खलल पङेगा..राजा मान गया।

तब उस वधू ने कहा कि आज जो मेरा पति है अठारह साल पहले इसे मैंने ही जन्म दिया था …तुम्हारी पत्नी इस लिये हंस रही थी कि इससे पहले के जन्म में जब तुम उसके पुत्र थे वह तुम्हें बाल अवस्था में नहलाने के लिये पकङती थी तब तुम नहाने से बचने के लिये बार बार भागते थे।

और आज स्वयं तुम पानी डालने को कह रहे थे..इसलिये उस जन्म की बात याद कर वो हस रही थी ..उसने या मैंने उसी समय तुम्हें ये बात इसलिये नहीं बतायी कि वैसी अवस्था में तुम उसे पत्नी मानने के धर्म से विमुख हो सकते थे…यह बात सुनते ही राजा में गहरा वैराग्य जाग्रत हो गया।

यही प्रभु की अजीव लीला है।

संजय गुप्ता

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

दोस्तो बारिश के इस मौसम सर्दी, और खाँसी से सभी परेशान रहते है खासकर बच्चे।
इसलिये मै आपको गुड़ अदरक का हलवा बता रही हूँ।जिसके उपयोग से आप सबको आराम मिलेगा।
इसे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को दिया जा सकता है।

आप नींबू के आकार का अदरक ले छील कर किसे अब इससे दोगुना गुड़ ले उसे भी किसे।5काली मिर्च कूट ले।

अब एक तड़का पैन या जो आपको उचित लगे वो बर्तन लकर गर्म करे।इसमे आधा चम्मच घी डाले और पिघलते ही अदरक डाल दे।अदरक को सिर्फ पानी सुखाने तक भूने गैस बंद करे अब इसमे एक चुटकी हल्दी, एक चुटकी नमक,काली मिर्च, और गुड़ डाले अच्छे से मिलाये।गैस चालू कर एकदम धीमी आंच पर गुड़ पिघलने तक रखे।

अब इसे हल्का गुनगुना ही खाये।

रात मे सोने से पहले ले।आप दिन मे भी खा सकते है।
खाने के बाद आधा से एक घंटे पानी ना पीये।

बडे़ एक चम्मच और बच्चों को आधा चम्मच दे।

संजय गुप्ता