Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग अलग क्यों
एक प्रेरक कथा …

एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया-

मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ..?
इसका क्या कारण है ?
राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये ..
अचानक एक वृद्ध खड़े हुये बोले – महाराज आपको यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है..

राजा ने घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार ( गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं..
राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा “तेरे प्रश्न का उत्तर आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं ,वे दे सकते हैं ।”

राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा..
राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था, वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे..

राजा को महात्मा ने भी डांटते हुए कहा ” मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास समय नहीं है…
आगे आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा..
वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है..

राजा बड़ा बेचैन हुआ, बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न..

उत्सुकता प्रबल थी..
राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर उस गाँव में पहुंचा..
गाँव में उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही..

जैसे ही बच्चा पैदा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया..

राजा को देखते ही बालक हँसते हुए बोलने लगा ..
राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुन लो –
तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई राजकुमार थे..
एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।
अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली ।हमने उसकी चार बाटी सेंकी..

अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा वहां आ गये..
अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा –
“बेटा ,मैं दस दिन से भूखा हूँ ,अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो , मुझ पर दया करो , जिससे मेरा भी जीवन बच जाय …
इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले..
तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा आग …? चलो भागो यहां से ….।
वे महात्मा फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही..

किन्तु उन भईया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि..
बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो क्या मैं अपना मांस नोचकर खाऊंगा ?
भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये..
मुझसे भी बाटी मांगी…
किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि
चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ …?

अंतिम आशा लिये वो महात्मा , हे राजन !..
आपके पास भी आये,दया की याचना की..
दया करते हुये ख़ुशी से आपने अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी ।
बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और बोले..
तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा ।
बालक ने कहा “इस प्रकार उस घटना के आधार पर हम अपना अपना भोग, भोग रहे हैं…
और वो बालक मर गया

**धरती पर एक समय में अनेकों फल-फूल खिलते हैं,किन्तु सबके रूप, गुण,आकार-प्रकार,स्वाद भिन्न होते हैं ..

राजा ने माना कि शास्त्र भी तीन प्रकार के हॆ–
ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र

जातक सब अपना
किया, दिया, लिया

ही पाते हैं..
यही है जीवन…
और
जीवन का पासवर्ड
“गलत पासवर्ड से एक छोटा सा मोबाइल नही खुलता..

तो सोचिये ..

गलत कर्मो से जन्नत के दरवाजे कैसे खुलेंगे

Dd

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लुटेरा पंडित

पंडित जी गांव मे एक यजमान के यहॉ सत्यनारायण कथा करके घर आए , और पत्नी सावित्री से बोले जरा एक गिलास पानी पिलाना । तभी पंडित जी की छोटी बेटी व बेटा दौडते हुए आए और बोले पापा हमारे लिए क्या लेकर आए तो पंडित जी ने थैली मे रखी आटे की प्रसाद और कुछ फल बच्चो को देते हुए कहा बेटा ये लो प्रसाद तुम्हारे लिए , बेटी बोली पापा मिठाई नही लाए पंडित जी बोले बेटा मिठाई यजमान लाए तो थे पर इतनी की सिर्फ वो व उनके घरवाले खा सके हमारे लिए तो सिर्फ आटे की प्रसाद बची ये खाऔ अगली बार मिठाई ले आऊंगा ।
तभी बेटा बोला पापा हमारे मास्टर जी कह रहे थे जल्दी स्कूल की फीस ( शुल्क ) भरदो नही तो परीक्षा मे नही बैठने देंगे । दुखी मन से पंडित जी ने कहा बेटा मास्टरजी से कहना जल्दी ही भर देगे ।
इतना सुनकर पंडिताईन ( पत्नी ) बोली सुनते हो दूर के रिश्तेदार के यहॉ शादी है हमे उनको कुछ तो देना चाहिए न ? यदि नही देगे तो कल को हमारे बच्चों की शादी मे नही आएगे वो ।
पंडित जी की ऑखो मे आंसू आ गए और बोले पंडिताईन तुम जानती हो पुरोहित कर्म करके मैं तुम सबकी इच्छाएँ पूरी नही कर पा रहा हूँ। आज सत्यनारायण कथा करवाई बदले मे 101 रुपये दक्षिणा मिली है और पचास रुपये चढावे मे आए अब तुम ही बताऔ इन 150 रुपये में बेटे की स्कूल फीस भरूँ या बेटी को कपडे दिलवाऊ या रिश्तेदार की शादी के लिए सामान खरीदूँ ??
आज अगर पैसा होता तो बच्चों को सरकारी स्कूल मे नही पढा रहा होता बल्कि किसी अच्छे प्रायवेट स्कुल मे पढाता ।
ब्राह्मण कुल मे पैदा हुआ हूँ यदि अपना पुरोहित कर्म छोड़ूँ तो पूर्वजो की कीर्ति को ठेस पहुचे और ये सब ही करता रहूँ तो बच्चो के भविष्य को बिगाडूं। पंडिताईन आज हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम गरीब है फिर भी लोग मुझसे कहते है जब मै पूजा करवाकर घर आता हूँ तो कि यजमान को कितने का चूना लगाया । ये तो प्रभु जानते हे मैने चूना लगाया या नही लगाया । हम ब्राह्मण हैं तो हमे राशन नही मिलता , ब्राह्मण हैं तो मेरे बच्चों को छात्रवृत्ति ( स्कालरशिप ) नही मिलती , ब्राह्मण हैं तो मेरे बच्चो को निशुल्क किताबे नही मिलती , ब्राह्मण हैं इसलिए मेरे बच्चे की स्कूल फीस ज्यादा है ।
पंडिताईन हम ब्राह्मण कुल मे पैदा हुए क्या ये हमारा दोष है ??? ब्राह्मण गरीब नही हो सकता ??? पता नही हम ब्राह्मणो को सब लुटेरा क्यो समझते है ?? हमने किसका पैसा लूटा है ?? हे प्रभु हम कब तक ऐसे दयनिय स्थिति मे रहेगे ।
पंडिताईन बोली आप चिंता मत करिए ब्राह्मणो के हितैषी भगवान जानते है हमने कभी गलत नही किया एक न एक दिन हमारा भी भला होगा आप रोइए मत मेरे पायल और बिछिया गिरवी रखकर बेटे की फीस भर दीजिए और शादी का सामान ले आइए , इतना कहकर पंडिताईन रसोई मे भोजन बनाने चली गई व पंडित जी बच्चौ से बात करने लग गए…….।

ये अधिकांश ब्राह्मणो के घर की सच्ची कहानी है । हर ब्राह्मण अमीर नही होता ये बात समाज को समझ लेना चाहिए और इंसानों का हित करना चाहिए ना कि किसी जाति विशेष का।.

Saa