——————— #वसुधैव_कुटुम्बकम ——————–
“वसुधैव कुटुम्बकम्” – अर्थात सारा विश्व एक परिवार है।
आजकल जो बात को लोग “globalisation” के नाम पर समझने कि कोशिश कर रहे हैं, वह बात हजारों साल पहले सनातन संस्कृति ने प्रतिपादित किया था। ये वाक्य ऐसे ही नही कहा गया आइये इसके पीछे के कारण को समझते है –
संपूर्ण जम्बूद्वीप पर स्वायंभुव मनु के पुत्रों के कुल का राज था। ऋषभदेव स्वायंभुव मनु से पांचवीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वायंभुव मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ।
जम्बूदीप के राजा अग्नीघ्र के नौ पुत्र हुए-नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्य, हिरण्यमय, कुरु, भद्राश्व और केतुमाल। राजा अग्नीघ्र ने उन सब पुत्रों को उनके नाम से प्रसिद्ध भूखण्ड दिया।
हरिवर्ष को मिला आज के चीन का भाग, जो प्राचीन भूगोल के अनुसार जंबूद्वीप का एक भाग या वर्ष था। हरिवर्ष का उल्लेख जैन सूत्रग्रंथ ‘जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति’ और हिन्दुओं के ‘विष्णु पुराण’ में मिलता है।
हरिवर्ष में निषध पर्वत स्थित था। हरिवर्ष को मेरू पर्वत के दक्षिण की ओर माना गया है। हरिवर्ष उत्तरी तिब्बत तथा दक्षिणी चीन का समीपवर्ती भूखंड जान पड़ता है। महाभारत ग्रंथ में हरिवर्ष के उत्तर में इलावृत का उल्लेख है जिसे जम्बूद्वीप का मध्य भाग बताया गया है। दूसरी ओर हरिवर्ष को मानसरोवर, गंधर्वों के देश और हेमकूट पर्वत (कैलाश) के उत्तर में स्थित माना गया है।
हरिवर्ण और हिमवर्ष (भारत) के बीच में किंपुरुषवर्ष स्थित था- ‘भारतं प्रथम वर्ष ततः किंपुरुषंस्मृतम्, हरिवर्ष तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो द्विज’।- विष्णु पुराण
राजा अग्नीघ्र के दूसरे पुत्र किम्पुरुष को कैलाश पर्वत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और तिब्बत के इलाके मिले। राजा अग्नीघ्र के तीसरे पुत्र इलावृत को जम्बूद्वीप का मध्य स्थान अर्थात आज का रशिया मिला। पुराणों के अनुसार इलावृत चतुरस्र है। इलावृत मुख्यरूप से हिन्दू धर्म काप्रमुखकेंद्र था, जहां देवता और असुर रहते थे। मूलत: यह क्षेत्र दानवों का था।
‘जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्,
हरिवर्षं तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।- #विष्णु_पुराण
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।। प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत।
(#वायु_पुराण 31-37, 38)
राजा अग्नीघ्र के चौथे पुत्र केतुमाल को कैस्पिरियन सागर के आसपास के इलाके मिले जिसमें आज के तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किंगिस्तान, कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के अलावा अजरबैजान और रूस के कुछ इलाके शामिल हैं।
विष्णुपुराण के अनुसार इस क्षेत्र में चक्षु नदी (वंक्षु या आक्सस या आमू दरया) केतुमाल में प्रवाहित होती है। आमू या चक्षु नदी रूस के दक्षिणी भाग कैस्पियन सागर के पूर्व की ओर के प्रदेश में बहती है। विष्णुपुराण में चक्षु का पश्चिम को ओर और सीता या तरिम नदी को पूर्व की ओर माना है।
राजा अग्नीघ्र के पहले और सबसे बड़े पुत्र नाभि को भारत के क्षेत्र मिले। भारतवर्ष को सबसे पहले हिमवर्ष कहते थे। बाद में इसका नाम अजनाभ खंड हुआ और फिर नाभिखंड हुआ। बाद में नाभि के पुत्र हुए ऋषभ। राजा और ऋषि ऋषभनाथ के दो पुत्र थे- भरत और बाहुबली। ऋषभदेव अपने पुत्र भरत को सत्ता सौंपकर वन चले गए। बाहुबली पहले ही वन चले गए थे। ऐसे में भरत ने सत्ता संभाली और तब से इस क्षेत्र का नाम भारत हो गया।
मात्र 500 से 700 ईसापूर्व ही चीन को महाचीन एवं प्राग्यज्योतिष कहा जाता था, लेकिन इसके पहले आर्य काल में यह संपूर्ण क्षेत्र हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष नाम से प्रसिद्ध था।
महाभारत के सभापर्व में भारतवर्ष के प्राग्यज्योतिष (पुर) प्रांत का उल्लेख मिलता है। हालांकि कुछ विद्वानों के अनुसार प्राग्यज्योतिष आजकल के असम (पूर्वात्तर के सभी 8 प्रांत) को कहा जाता था। इन प्रांतों के क्षेत्र में चीन का भी बहुत कुछ हिस्सा शामिल था।
रामायण बालकांड (30/6) में प्राग्यज्योतिष की स्थापना का उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण में इस प्रांत का दूसरा नाम कामरूप (किंपुरुष) मिलता है। स्पष्ट है कि रामायण काल से महाभारत कालपर्यंत असम से चीन के सिचुआन प्रांत तक के क्षेत्र प्राग्यज्योतिष ही रहा था। जिसे कामरूप कहा गया। कालांतर में इसका नाम बदल गया।
चीनी यात्री ह्वेनसांग और अलबरूनी के समय तक कभी कामरूप को चीन और वर्तमान चीन को महाचीन कहा जाता था। अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य ने भी ‘चीन’ शब्द का प्रयोग कामरूप के लिए ही किया है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कामरूप या प्राग्यज्योतिष प्रांत प्राचीनकाल में असम से बर्मा, सिंगापुर, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा तक फैला हुआ था। अर्थात यह एक अलग ही क्षेत्र था जिसमें वर्तमान चीन का लगभग आधा क्षेत्र आता है।
इस विशाल प्रांत के प्रवास पर एक बार श्रीकृष्ण भी गए थे। यह उस समय की घटना है, जब उनकी अनुपस्थिति में शिशुपाल ने द्वारिका को जला डाला था। महाभारत के सभापर्व (68/15) में वे स्वयं कहते हैं- कि ‘हमारे प्राग्यज्योतिष पुर के प्रवास के काल में हमारी बुआ के पुत्र शिशुपाल ने द्वारिका को जलाया था।’
चीनी यात्री ह्वेनसांग (629 ई.) के अनुसार इस कामरूप प्रांत में उसके काल से पूर्व कामरूप पर एक ही कुल-वंश के 1,000 राजाओं का लंबे काल तक शासन रहा है। यदि एक राजा को औसतन 25 वर्ष भी शासन के लिए दिया जाए तो 25,000 वर्ष तक एक ही कुल के शासकों ने कामरूप पर शासन किया। अंग्रेज इतिहासकारों ने कभी कामरूप क्षेत्र के 25,000 वर्षीय इतिहास को खोजने का कष्ट नहीं किया। करते भी नहीं, क्योंकि इससे आर्य धर्म या हिन्दुत्व की गरिमा स्थापित हो जानी थी।
कालांतर में महाचीन ही चीन हो गया और प्राग्यज्योतिषपुर कामरूप होकर रह गया। यह कामरूप भी अब कई देशों में विभक्त हो गया। कामरूप से लगा ‘चीन’ शब्द लुप्त हो गया और महाचीन में लगा ‘महा’ शब्द हट गया।
पुराणों के अनुसार शल्य इसी चीन से आया था जिसे कभी महाचीन कहा जाता था। माना जाता है कि मंगोल, तातार और चीनी लोग चंद्रवंशी हैं। इनमें से तातार के लोग अपने को अय का वंशज कहते हैं, यह अय पुरुरवा का पुत्र आयु था। (पुरुरवा प्राचीनकाल में चंद्रवंशियों का पूर्वज है जिसके कुल में ही कुरु और कुरु से कौरव हुए)। इस आयु के वंश में ही सम्राट यदु हुए थे और उनका पौत्र हय था। चीनी लोग इसी हय को हयु कहते हैं और अपना पूर्वज मानते हैं।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार चीन वालों के पास ‘यू’ की उत्पत्ति इस प्रकार लिखी है कि एक तारे (तातार) का समागम यू की माता के साथ हो गया। इसी से यू हुआ। यह बुद्घ और इला के समागम जैसा ही किस्सा है। इस प्रकार तातारों का अय, चीनियों का यू और पौराणिकों का आयु एक ही व्यक्ति है। इन तीनों का आदिपुरुष चंद्रमा था और ये चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं ।
#इंडोनेशियामेंहिन्दू –
इंडोनेशिया कभी हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था, लेकिन इस्लामिक उत्थान के बाद यह राष्ट्र आज मुस्लिम राष्ट्र है। इंडोनेशिया का एक द्वीप है बाली जहां के लोग अभी भी हिन्दू धर्म का पालन करते हैं। इंडोनेशिया के द्वीप बाली द्वीप पर हिन्दुओं के कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां एक गुफा मंदिर भी है। इस गुफा मंदिर को गोवा गजह गुफा और एलीफेंटा की गुफा कहा जाता है। 19 अक्टूबर 1995 को इसे विश्व धरोहरों में शामिल किया गया। यह गुफा भगवान शंकर को समर्पित है। यहां 3 शिवलिंग बने हैं। देश-विदेश से पर्यटक इसे देखने आते हैं।
#कंबोडियामेंहिन्दू –
पौराणिक काल का कंबोजदेश कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया। पहले हिंदू रहा और फिर बौद्ध हो गया। विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर परिसर तथा विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक कंबोडिया में स्थित है। यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम ‘यशोधरपुर’ था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53ई.) के शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मन्दिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्रायः शिवमंदिरों का निर्माण किया था। कंबोडिया में बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि कभी यहां भी हिन्दू धर्म अपने चरम पर था। माना जाता है कि प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्द-चीन में हिन्दू राज्य की स्थापना की थी। इन्हीं के नाम पर कम्बोडिया देश हुआ। हालांकि कम्बोडिया की प्राचीन दंतकथाओं के अनुसार इस उपनिवेश की नींव ‘आर्यदेश’ के शिवभक्त राजा कम्बु स्वायंभुव ने डाली थी। वे इस भयानक जंगल में आए और यहां बसी हुई नाग जाति के राजा की सहायता से उन्होंने यहां एक नया राज्य बसाया, जो नागराज की अद्भुत जादूगरी से हरे-भरे, सुंदर प्रदेश में परिणत हो गया। कम्बु ने नागराज की कन्या मेरा से विवाह कर लिया और कम्बुज राजवंश की नींव डाली। कम्बोडिया में हजारों प्राचीन हिन्दू और बौद्ध मंदिर है।
#वियतनाममेंहिन्दू –
वियतनाम का इतिहास 2,700 वर्षों से भी अधिक प्राचीन है। वियतनाम का पुराना नाम चम्पा था। चम्पा के लोग और चाम कहलाते थे। वर्तमान समय में चाम लोग वियतनाम और कम्बोडिया के सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं। आरम्भ में चम्पा के लोग और राजा शैव थे लेकिन कुछ सौ साल पहले इस्लाम यहां फैलना शुरु हुआ। अब अधिक चाम लोग मुसलमान हैं पर हिन्दू और बौद्ध चाम भी हैं। भारतीयों के आगमन से पूर्व यहां के निवासी दो उपशाखाओं में विभक्त थे। हालांकि संपूर्ण वियतनाम पर चीन का राजवंशों का शासन ही अधिक रहा। दूसरी शताब्दी में स्थापित चंपा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के चम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा, सभ्यता ग्रहण की थी। 1825 में चंपा के महान हिन्दू राज्य का अंत हुआ। श्री भद्रवर्मन् जिसका नाम चीनी इतिहास में फन-हु-ता (380-413 ई.) मिलता है, चंपा के प्रसिद्ध सम्राटों में से एक थे जिन्होंने अपनी विजयों ओर सांस्कृतिक कार्यों से चंपा का गौरव बढ़ाया। किंतु उसके पुत्र गंगाराज ने सिंहासन का त्याग कर अपने जीवन के अंतिम दिन भारत में आकर गंगा के तट पर व्यतीत किए। चम्पा संस्कृति के अवशेष वियतनाम में अभी भी मिलते हैं। इनमें से कई शैव मन्दिर हैं।
#मलेशियामेंहिन्दू –
मलेशिया वर्तमान में एक मुस्लिम राष्ट्र है लेकिन पहले ये एक हिन्दू राष्ट्र था। मलय प्रायद्वीप का दक्षिणी भाग मलेशिया देश के नाम से जाना जाता है। इसके उत्तर में थाइलैण्ड, पूर्व में चीन का सागर तथा दक्षिण और पश्चिम में मलाक्का का जलडमरूमध्य है।
उत्तर मलेशिया में बुजांग घाटी तथा मरबाक के समुद्री किनारे के पास पुराने समय के अनेक हिन्दू तथा बौद्ध मंदिर आज भी हैं। मलेशिया अंग्रेजों की गुलामी से 1957 में मुक्त हुआ। वहां पहाड़ी पर बटुकेश्वर का मंदिर है जिसे बातू गुफा मन्दिर कहते हैं। वहां पहुंचने के लिए लगभग 276 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। पहाड़ी पर कुछ प्राचीन गुफाएं भी हैं। पहाड़ी के पास स्थित एक बड़े मंदिर देखने में हनुमानजी की भी एक भीमकाय मूर्ति लगी है। सिंगापुर में हिन्दू सिंगापुर एक छोटा सा राष्ट्र है। यह ब्राईंदेश दक्षिण में मलय महाद्वीप के दक्षिण सिरे के पास छोटा-सा द्वीप है। इसके उत्तर में मलेशिया का किनारा, पूर्व की ओर चीन का समुद्र और दक्षिण-पश्चिम की ओर मलक्का का जलडमरू- मध्य है। 14वीं सदी तक सिंगापुर टेमासेक नाम से जाना जाता था। सुमात्रा के पॉलेमबग का राजपुत्र संगनीला ने इसे बासाया था तब इसका नाम सिंहपुर था। यहां इस बात के चिन्ह मिलते हैं कि उनका कभी हिन्दू धर्म से भी निकट का संबंध था। 1930 तक उनकी भाषा में संस्कृत भाषा के शब्दों का समावेश है। उनके नाम हिन्दुओं जैसे होते थे और कुछ नाम आज भी अपभ्रंश रूप में हिन्दू नाम ही हैं। थाइलैंड में हिन्दू थाइलैंड एक बौद्ध राष्ट्र है। यहां पर प्राचीनकाल में हिन्दू और बौद्ध दोनों ही धर्म और संस्कृति का एक साथ प्रचलन था लेकिन अब हिन्दू नगण्य है। खैरात के दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया की सीमा के पास उत्तर में लगभग 40 कि.मी. की दूरी पर युरिराम प्रांत में प्रसात फ्नाम रंग नामक सुंदर मंदिर है। यह मंदिर आसपास के क्षेत्र से लगभग 340 मी. ऊंचाई पर एक सुप्त ज्वालामुखी के मुख के पास स्थित है। इस मंदिर में शंकर तथा विष्णु की अति सुंदर मूर्ति हैं।
#फिलीपींसकेहिन्दू –
फिलीपींस में किसी समय भारतीय संस्कृति का पूर्ण प्रभाव था, पर 15वीं शताब्दी में मुसलमानों ने आक्रमण कर वहां आधिपत्य जमा लिया। आज भी फिलीपींस में कुछ हिन्दू रीति-रिवाज प्रचलित हैं। जर्मन में हिन्दू जर्मनी तो खुद को आर्य मानते ही हैं। लेकिन आश्चर्य की जर्मन में 40 हजार साल पुरानी भगवान नरसिंह की मूर्ति मिली। ये मूर्ति सन 1939 में पाई गई थी। ये मूर्ति इंसानों की तरह दिखने वाले शेर की है। जिसकी लंबाई 29.6 सेंटीमीटर (11.7 सेमी) है। कॉर्बन डेटिंग पद्धति से बताया गया है कि यह लगभग 40 हजार साल पुरानी है। ये मूर्ति होहलंस्टैंन स्टैडल, जर्मन घाटी क्षेत्र में मिली थी। द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने के बाद गायब हो गई थी। बाद में उसे खोजा गया। ये मूर्ति खंडित अवस्था में मिली थी और 1997-1998 के दौरान कुछ लोगों ने उसे जोड़ा। सन् 2015 में उसे म्यूजियम में रखा गया।
#विशेष –
वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है ।जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
(महोपनिषद्, अध्याय 4, श्लोक 71)
उदारचरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम्। ।
अर्थ – यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।
#संदर्भ – कर्नल टॉड की पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ और पं. रघुनंदन शर्मा की पुस्तक ‘वैदिक संपत्ति’ और ‘हिन्दी-विश्वकोश’ आदि से। इंटरनेट की कुछ सत्यापित साइट्स से ।।
निओ दीप
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