Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

(((( गुरु राजी तो रब्ब राजी ))))
.
एक बार की बात है, कोई मालिक का प्यारा जो आंखों से अंधा था !
.
चला गर्म रेत के रास्ते नंगे पांव अपने सतगुरू से मिलने !
.
संत तो घट घट की जानते हैं उन्होने देखा की कोई मेरा प्यारा आंखो से लाचार गर्म रेत पर चल कर लंबा रास्ता तय करके मेरे पास मुझे मिलने को आ रहा है !
.
संत कहां अपने प्यारे का दुख देख सकते हैं ! अपने बाकी शिष्यों से बोले के मैं अपने किसी प्यारे से मिलने जा रहा हूं !
.
जब सतगुरू अपने उस आंखों से लाचार प्यारे से मिलने पहुंचे, मिल कर बोले तेरे प्यार के सदके !!!!
.
प्यारे मांग क्या चाहिये, दास बोला जी कुछ नहीं !
.
सतगुरू बोले, तेरा दिल बहुत बड़ा है अब दो चीजें मांग….
.
तब वो दास बोला सच्चे पातशाह मेरी आंखे लौटा दो तांकी मैं आप के दर्शन कर सकूं !
.
मालिक ने मेहर की, दास को दिखाई देने लगा ( क्योंकि कहते हैं ना के करता करे ना कर सके गुरू करे सो होये )
.
दास ने जी भर दर्शन किये तब सतगुरु ने कहा अब दूसरी मांग मांगो..
.
तो दास रो पड़ा बोला, सच्चेपातशाह मेरी ये आंखें वापिस ले लो !
.
सतगुरू बोले प्यारे ये तुम क्या मांग रहे हो..
.
तब दास बोला, सच्चे पातशाह मैं आप को देख कर कुछ और नहीं देखना चाहता।
.
सतगुरू जी ने दास को गले लगा लिया

संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बार एक व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने की छूट है।उसने सोचा,चलो अमेरिका वासियों के नर्क में जाकर देखें,

जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से

उसने पूछा – क्यों भाई अमेरिकी नर्क में

क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला – कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक

चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा,

फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे

लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर

आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे

बरसायेगा… ! यह सुनकरवह

व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क

की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से

भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग

वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क

में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक-

एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे

जाकर आया, सभी जगह उसे भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में

जब वह एक जगह पहुँचा,

देखा तो दरवाजे पर लिखा था “भारतीय नर्क” और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में

जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे,

उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी… तत्काल उसने पहरेदार से

पूछा कि सजा क्या

है ? पहरेदार ने

कहा – कुछ खास नहीं…सबसे पहले

आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक

घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक

कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर

आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे

बरसायेगा… ! चकराये हुए व्यक्ति ने

उससे पूछा – यही सब तो बाकी देशों के नर्क

में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड

क्यों है ? पहरेदार बोला – इलेक्ट्रिक चेयर

तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले

बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है,

और कोडे़ मारने वाला दैत्य

सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत

करता है और चाय-नाश्ता करने

चला जाता है…और कभी गलती से

जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़

मारता है और पचास लिख देता है…चलो आ
जाओ अन्दर !!!
East or West, India is The Best…..
😜😜

अमित कुमार

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

लघुकथा-
वृद्धाश्रम

एक बार एक बुजुर्ग की तबियत खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा।

पता लगा कि उन्हें कोई गम्भीर बीमारी है हालांकि ये छूत की बीमारी नही है, पर फिर भी इनका बहुत ध्यान रखना पड़ेगा।

कुछ समय बाद वो घर आए। पूरे समय के लिए नौकर और नर्स रख लिए गए।

धीरे-धीरे पोतों ने कमरे में आना बंद कर दिया। बेटा-बहू भी ज्यादातर अपने कमरे में रहते।

बुजुर्ग को अच्छा नहीं लगता था लेकिन कुछ कहते नही थे।

एक दिन वो कमरे के बाहर टहल रहे थे तभी उनके बेटे-बहू की आवाज़ आई। बहू कह रही थी कि पिताजी को किसी वृद्धाश्रम या किसी अस्पताल के प्राइवेट कमरे एडमिट करा दें कहीं बच्चे भी बीमार न हो जाए,

बेटे ने कहा कह तो तुम ठीक रही हो, आज ही पिताजी से बात करूंगा!

पिता चुपचाप अपने कमरे में लौटा, सुनकर दुख तो बहुत हुआ पर उन्होंने मन ही मन कुछ सोच लिया।

शाम जब बेटा कमरे में आया तो पिताजी बोले अरे मैं तुम्हें ही याद कर रहा था कुछ बात करनी है। बेटा बोला पिताजी मुझे भी आपसे कुछ बात करनी है। आप बताओ क्या बात हैं!

पिताजी बोले तुम्हें तो पता ही है कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती, इसलिए अब मै चाहता हूं कि मैं अपना बचा जीवन मेरे जैसे बीमार, असहाय, बेसहारा बुजुर्गों के साथ बिताऊं।

सुनते ही बेटा मन ही मन खुश हो गया कि उसे तो कहने की जरूरत नहीं पड़ी। पर दिखावे के लिए उसने कहा, ये क्या कह रहे हो पिताजी आपको यहां रहने में क्या दिक्कत है?

तब बुजुर्ग बोले नही बेटे, मुझे यहां रहने में कोई तकलीफ नहीं लेकिन यह कहने में मुझे तकलीफ हो रही है कि तुम अब अपने रहने की व्यवस्था कहीं और कर लो, मैने निश्चय कर लिया है कि मै इस बंगले को वृद्धाश्रम बनाऊंगा।
और असहाय और बेसहारों की देखरेख करते हुए अपना जीवन व्यतीत करूंगा। अरे हाँ तुम भी कुछ कहना चाहते थे बताओ क्या बात थी…!!!!

कमरे में चुप्पी छा गई थी…

कभी-कभी जीवन में सख्त कदम उठाने की जरूरत होती है…!!

संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में महर्षि वाल्मीकि और श्री राम मिलन (कथा),,,,,,,,

भगवान ने भारद्वाज मुनि और वनवासियों पर कृपा की। अब भगवान सुंदर वन, तालाब और पर्वत देखते हुए प्रभु श्री रामचन्द्रजी वाल्मीकिजी के आश्रम में आए। श्री रामचन्द्रजी ने देखा कि मुनि का निवास स्थान बहुत सुंदर है, जहाँ सुंदर पर्वत, वन और पवित्र जल है।

महर्षि वाल्मीकि जी को खबर मिली है की राम आये हैं। महर्षि वाल्मीकि जी जानते हैं की ये साक्षात भगवान हैं। क्योंकि उन्होंने पहले से रामायण लिख दी है। आज सोच रहे हैं जैसे ही प्रभु आएंगे मैं उनके चरणों में नतमस्तक होकर वंदन करूँगा।

लेकिन भगवान भी जानते हैं ये मुझे जरूर वंदन करेंगे। क्योंकि ये मुझे अच्छी तरह से जानते हैं। और अगर इन्होने मुझे प्रणाम कर दिया तो भेद खुल जायेगा। चारों और हल्ला हो जायेगा की ये राम साक्षात भगवान है। क्योंकि जिनको इतना बड़ा महात्मा प्रणाम करे वो तो बस भगवान ही हो सकते हैं।
जैसे ही प्रभु पधारे हैं इन्होने वाल्मीकि जी को दंडवत प्रणाम दिया है। मुनि कहुँ राम दंडवत कीन्हा। भगवान जी लेट गए हैं इनके चरणों में। वाल्मीकि जी सोचते हैं मैं तो इन्हें लेट कर प्रणाम करने वाला था लेकिन इन्होने ही मुझे कर दिया।

अब महर्षि ने उठाया है और प्रभु को ह्रदय से लगाया है। कंद-मूल, फल खाने को दिए हैं। लेकिन कहीं वर्णन नही आया की 14 वर्षो में सबने एक साथ बैठ कर फल खाए हों। यहीं पर तीनों ने(सीता-राम और लक्ष्मण जी ) एकसाथ बैठकर फल खाए हैं। तब मुनि ने उनको विश्राम करने के लिए सुंदर स्थान बतला दिए।

इसके बाद सुंदर वार्तालाप हुआ है- भगवान जी वाल्मीकि जी से पूछते हैं- क्या आप मुझे पहचानते हो की मैं कौन हूँ?

वाल्मीकि जी मुस्कुराने लगे- हे राम! जगत दृश्य है, आप उसके देखने वाले हैं। आप ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को भी नचाने वाले हैं। जब वे भी आपके मर्म को नहीं जानते, तब और कौन आपको जानने वाला है? लेकिन मैं सब जानता हूँ की आप कौन है, और लक्ष्मण जी कौन है और तो और मैं जानकी जी के स्वरूप को भी जानता हूँ। लेकिन प्रभु एक बात कहूँ।
रामजी कहते हैं- जी गुरुदेव कहिये।

वाल्मीकि जी बोले की मैं ये सब जानता हूँ पर अपनी साधना के बल पर नही जानता। आपकी कृपा के बल पर जानता हूँ।
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥ महर्षि बोले की आपको जाना सरल नही है। वही आपको जान सकता है जिसे आप जनाना चाहो। जिस पर तुम कृपा कर दो।

भगवान ने वाल्मीकि जी से पूछा की हे गुरुदेव कोई ऐसी जगह बताइये जहाँ हम रह सकें?

ये बात सुनकर महर्षि बहुत मुस्कुराये हैं- वाल्मीकि जी कहते है प्रभु आप मुझसे पूछ रहे हो की मैं कहाँ रहूँ? पहले ये बताओ की आप कहाँ नही रुके हुए हो। हर जगह तो आप ही रुके हुए हो।

भगवान भी ये बात सुनकर मुस्कुराये हैं। भगवान कहते हैं, नहीं-नहीं, फिर भी आप रहने के लिए कोई जगह बताइये।

भगवान कहाँ रहते हैं?

तब वाल्मीकि जी ने भगवान को रहने के 14 स्थान बताये हैं। इन स्थानों पर आपको रहना ही चाहिए प्रभु।

जिन्ह के श्रवन समुद्र समाना। कथा तुम्हारि सुभग सरि नाना॥ जिनके कान समुद्र की भाँति आपकी सुंदर कथा रूपी अनेक सुंदर नदियों से निरंतर भरते रहते हैं, परन्तु कभी तृप्त नहीं होते आप वहां रहिये।

जिनके नेत्र चातक की भांति आपके लिए तड़पते हैं आप उनके ह्रदय में रहो।

जिसकी जीभ हंसिनी बनी हुई आपके गुण समूह रूपी मोतियों को चुगती रहती है, हे रामजी! आप उसके हृदय में बसिए॥

जिसकी नासिका प्रभु (आप) के पवित्र और सुगंधित (पुष्पादि) सुंदर प्रसाद को नित्य आदर के साथ ग्रहण करती (सूँघती) है और जो आपको अर्पण करके भोजन करते हैं और आपके प्रसाद रूप ही वस्त्राभूषण धारण करते हैं आप उनके ह्रदय में रहो।

जिसका मस्तक आपके चरणों में झुका हुआ रहता है आप वहां रहिये।

जिनके चरण श्री रामचन्द्रजी (आप) के तीर्थों में चलकर जाते हैं, हे रामजी! आप उनके मन में निवास कीजिए।

जो अनेक प्रकार से तर्पण और हवन करते हैं, दान और सेवा करते हैं आप उनके ह्रदय में रहिये।

जिनके मन में न तो काम, क्रोध, मद, अभिमान और मोह हैं, न लोभ है, न क्षोभ है, न राग है, न द्वेष है और न कपट, दम्भ और माया ही है- हे रघुराज! आप उनके हृदय में निवास कीजिए।

जो सबके प्रिय और सबका हित करने वाले हैं, जिन्हें दुःख और सुख तथा प्रशंसा (बड़ाई) और गाली (निंदा) समान है, जो जागते सोते आपको ही याद करते हैं आप उनके ह्रदय में रहिये।

जो दूसरे की सम्पत्ति देखकर हर्षित होते हैं और दूसरे की विपत्ति देखकर विशेष रूप से दुःखी होते हैं और हे रामजी! आप उनके मन में रहना।

जिनके स्वामी, सखा, पिता, माता और गुरु सब कुछ आप ही हैं, उनके मन रूपी मंदिर में सीता सहित आप दोनों भाई निवास कीजिए॥

जो अवगुणों को छोड़कर सबके गुणों को ग्रहण करते हैं, ब्राह्मण और गो के लिए संकट सहते हैं, नीति-निपुणता में जिनकी जगत में मर्यादा है, उनका सुंदर मन आपका घर है॥ जो गुणों को आपका और दोषों को अपना समझता है, उनके ह्रदय में रहिये।

जाति, पाँति, धन, धर्म, बड़ाई, प्यारा परिवार और सुख देने वाला घर, सबको छोड़कर जो केवल आपको ही हृदय में धारण किए रहता है, हे रघुनाथजी! आप उसके हृदय में रहिए॥

स्वर्ग, नरक और मोक्ष जिसकी दृष्टि में समान हैं आप उनके ह्रदय में रहिये।

अंत में कहते हैं- जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु। बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु॥

जिसको कभी कुछ भी नहीं चाहिए और जिसका आपसे स्वाभाविक प्रेम है, आप उसके मन में निरंतर निवास कीजिए, वह आपका अपना घर है॥

फिर वाल्मीकि जी ने राम जी को कहा की आप चित्रकूट में जाकर निवास कीजिये। अब भगवान चित्रकूट गए हैं।

बोलिए श्री राम चन्द्र महाराज की जय!!

संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🌹 श्री राधे राधे जी 👏

संतोष का फल

एक बार एक देश में अकाल पड़ा। लोग भूखों मरने लगे। नगर में एक धनी दयालु पुरुष थे। उन्होंने सब छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक रोटी देने की घोषणा कर दी। दूसरे दिन सबेरे बगीचे में सब बच्चे इकट्ठे हुए। उन्हें रोटियाँ बँटने लगीं।
रोटियाँ छोटी- बड़ी थीं। सब बच्चे एक- दूसरे को धक्का देकर बड़ी रोटी पाने का प्रयत्न कर रहे थे। केवल एक छोटी लड़की एक ओर चुपचाप खड़ी थी। वह सबसे अन्त में आगे बढ़ी। टोकरे में सबसे छोटी अन्तिम रोटी बची थी। उसने उसे प्रसन्नता से ले लिया और वह घर चली गयी।
दूसरे दिन फिर रोटियाँ बाँटी गयीं। उस लड़की को आज भी सबसे छोटी रोटी मिली। लड़की ने जब घर लौट कर रोटी तोड़ी तो रोटी में से सोने की एक मुहर निकली। उसकी माता ने कहा कि- ‘मुहरउस धनी को दे आओ।’ लड़की दौड़ी दौड़ी धनी के घर गयी।’’
धनी ने उसे देखकर पूछा ‘तुम क्यों आयी हो?’
लड़की ने कहा- ‘मेरी रोटी में यह मुहर निकली है। आटे में गिर गयी होगी। देने आयी हूँ। आप अपनी मुहर ले लें।’
धनी बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसे अपनी धर्मपुत्री बना लिया और उसकी माता के लिये मासिक वेतन निश्चित कर दिया। बड़ी होने पर वही लड़की उस धनी की उत्तराधिकारिणी बनी।

🌹 श्री हरे कृष्णा जी 👏

ज्योति अग्रवाल

Posted in रामायण - Ramayan

अयोध्या की कहानी जिसे पढ़पकर आप रो पड़ेंगे।
कृपया इस लेख को पढ़ें, तथा प्रत्येक हिन्दूँ मिञों को अधिक से अधिक शेयर करें।
जब बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ उस समय जन्म भूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के
अधिकार क्षेत्र में थी। महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुन कर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान अयोध्या आये । महात्मा जी के शिष्य बनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने योग और सिद्धियाँ प्राप्त कर ली और उनका नाम भी महात्मा श्यामनन्द के ख्यातिप्राप्त शिष्यों में लिया जाने लगा।
ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के पास आया और उनका शिष्य बनकर सिद्धियाँ प्राप्त करने लगा। जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था, और उसको एक ही सनक थी,
हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना । अत:
जलालशाह ने अपने काफिर गुरू की पीठ में छुरा घोंप कर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार किया की यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद
बनवा दी जाये तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में स्थायी हो जायेगा। धीरे धीरे जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा इस साजिश को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए ।
सर्वप्रथम जलालशाह और ख्वाजा बाबर के विश्वासपात्र बने और दोनों ने अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए जन्मभूमि के आसपास की जमीनों में बलपूर्वक मृत मुसलमानों को दफन करना शुरू किया॥ और मीरबाँकी खां के माध्यम से बाबर को उकसाकर मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया। बाबा श्यामनन्द जी अपने मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ।
दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय की और
तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर रामलला की रक्षा के लिए खड़े हो गए। जलालशाह
की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट
लिए गए. जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने
की घोषणा हुई उस समय भीटी के राजा महताब सिंह
बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे,अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी और अपनी छोटी सेना में रामभक्तों को शामिल कर १ लाख चौहत्तर हजार लोगो के साथ बाबर की सेना के ४ लाख ५० हजार सैनिकों से लोहा लेने निकल पड़े।
रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने
देंगे। रामभक्त वीरता के साथ लड़े ७० दिनों तक घोर संग्राम होता रहा और अंत में राजा महताब सिंह समेत
सभी १ लाख ७४ हजार रामभक्त मारे गए। श्रीराम जन्म भूमि रामभक्तों के रक्त से लाल हो गयी। इस भीषण
कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवा दिया । मंदिर के मसाले से ही मस्जिद का निर्माण हुआ
पानी की जगह मरे हुए हिन्दुओं का रक्त इस्तेमाल किया गया नीव में लखौरी इंटों के साथ ।
इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीरबाँकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चारो और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया..
इसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की ” जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना के लखौरी ईटों की नीव मस्जिद बनवाने के लिए दी गयी थी।
उस समय अयोध्या से ६ मील की दूरी पर सनेथू नाम का एक गाँव के पंडित देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आस पास के गांवों सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया॥ देवीदीन पाण्डेय ने सूर्य वंशीय क्षत्रियों से कहा भाइयों आप लोग मुझे अपना राजपुरोहित मानते हैं ..अप के पूर्वज श्री राम थे
और हमारे पूर्वज महर्षि भरद्वाज जी। आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि को मुसलमान आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय जन्म भूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा॥
देवीदीन पाण्डेय की आज्ञा से दो दिन के भीतर ९० हजार क्षत्रिय इकठ्ठा हो गए दूर दूर के गांवों से लोग समूहों में इकठ्ठा हो कर देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में जन्मभूमि पर
जबरदस्त धावा बोल दिया । शाही सेना से लगातार ५ दिनों तक युद्ध हुआ । छठे दिन मीरबाँकी का सामना देवीदीन पाण्डेय से हुआ उसी समय धोखे से उसके अंगरक्षक ने एक लखौरी ईंट से पाण्डेय जी की खोपड़ी पर वार कर दिया। देवीदीन पाण्डेय का सर बुरी तरह फट गया मगर उस वीर ने अपने पगड़ी से खोपड़ी से बाँधा और तलवार से उस कायर अंगरक्षक का सर काट दिया।
इसी बीच मीरबाँकी ने छिपकर गोली चलायी जो पहले
ही से घायल देवीदीन पाण्डेय जी को लगी और वो जन्म भूमि की रक्षा में वीर गति को प्राप्त हुए.. जन्मभूमि फिर से 90 हजार हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। देवीदीन पाण्डेय के वंशज सनेथू ग्राम के ईश्वरी पांडे का पुरवा नामक जगह पर अब भी मौजूद हैं॥
पाण्डेय जी की मृत्यु के १५ दिन बाद हंसवर के महाराज
रणविजय सिंह ने सिर्फ २५ हजार सैनिकों के साथ
मीरबाँकी की विशाल और शस्त्रों से सुसज्जित सेना से
रामलला को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया । 10
दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ
वीरगति को प्राप्त हो गए। जन्मभूमि में 25 हजार हिन्दुओं का रक्त फिर बहा। रानी जयराज कुमारी हंसवर के स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह की पत्नी थी।
जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया और हुमायूं के समय तक उन्होंने छापामार युद्ध जारी रखा। रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्तों को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज कुमारी की सहायता की। साथ
ही स्वामी महेश्वरानंद जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने २४ हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के साथ , हुमायूँ के समय में कुल १० हमले जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये। १०वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और जन्मभूमि पर
रानी जयराज कुमारी का अधिकार हो गया।
लेकिन लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूरी ताकत से
शाही सेना फिर भेजी ,इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद
और रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया। श्रीराम जन्मभूमि एक बार फिर कुल 24 हजार सन्यासियों और 3 हजार वीर नारियों के रक्त से लाल हो गयी। रानी जयराज कुमारी और स्वामी महेश्वरानंद जी के बाद यद्ध का नेतृत्व स्वामी बलरामचारी जी ने अपने हाथ में ले लिया। स्वामी बलरामचारी जी ने गांव गांव में घूम कर रामभक्त हिन्दू युवकों और सन्यासियों की एक मजबूत सेना तैयार करने का प्रयास किया और जन्मभूमि के उद्धारार्थ २० बार आक्रमण किये. इन २० हमलों में काम से काम १५ बार स्वामी बलरामचारी ने जन्मभूमि पर अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्प समय के लिए रहता था थोड़े दिन बाद बड़ी शाही फ़ौज आती थी और जन्मभूमि पुनः मुगलों के अधीन हो जाती थी..जन्मभूमि में लाखों हिन्दू
बलिदान होते रहे। उस समय का मुग़ल शासक अकबर था।
शाही सेना हर दिन के इन युद्धों से कमजोर हो रही थी..
अतः अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस
की टाट से उस चबूतरे पर ३ फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया.
लगातार युद्ध करते रहने के कारण स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य गिरता चला गया था और प्रयाग कुम्भ के अवसर पर त्रिवेणी तट पर स्वामी बलरामचारी की मृत्यु
हो गयी ..
इस प्रकार बार-बार के आक्रमणों और हिन्दू जनमानस के
रोष एवं हिन्दुस्थान पर मुगलों की ढीली होती पकड़ से
बचने का एक राजनैतिक प्रयास की अकबर की इस कूट नीति से कुछ दिनों के लिए जन्मभूमि में रक्त नहीं बहा।
यही क्रम शाहजहाँ के समय भी चलता रहा। फिर औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो कट्टर मुसलमान था और
उसने समस्त भारत से काफिरों के सम्पूर्ण सफाये का संकल्प लिया था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ डाला।
औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो कट्टर मुसलमान था और
उसने समस्त भारत से काफिरों के सम्पूर्ण सफाये का संकल्प लिया था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे
मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड डाला।
औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्री रामदास जी महाराज जी के शिष्य श्री वैष्णवदास जी ने जन्मभूमि के
उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों मे
अयोध्या के आस पास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों ने
पूर्ण सहयोग दिया जिनमे सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपाल सिंह
तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। ये सारे
वीर ये जानते हुए भी की उनकी सेना और हथियार बादशाही सेना के सामने कुछ भी नहीं है अपने जीवन के
आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे। लम्बे समय तक चले इन युद्धों में रामलला को मुक्त कराने के लिए हजारों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया और
अयोध्या की धरती पर उनका रक्त बहता रहा।
ठाकुर गजराज सिंह और उनके साथी क्षत्रियों के
वंशज
आज भी सराय मे मौजूद हैं। आज भी फैजाबाद जिले के आस पास के सूर्यवंशीय क्षत्रिय सिर पर पगड़ी नहीं बांधते,जूता नहीं पहनते, छता नहीं लगाते, उन्होने अपने पूर्वजों के सामने ये प्रतिज्ञा ली थी की जब तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार नहीं कर लेंगे तब तक जूता नहीं पहनेंगे,छाता नहीं लगाएंगे, पगड़ी नहीं पहनेंगे। 1640
ईस्वी में औरंगजेब ने मन्दिर को ध्वस्त करने के लिए जबांज खाँ के नेतृत्व में एक जबरजस्त सेना भेज दी थी, बाबा वैष्णव दास के साथ साधुओं की एक सेना थी जो हर विद्या मे निपुण थी इसे चिमटाधारी साधुओं की सेना भी कहते थे । जब जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना की सेना मिल गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर
जाबाज़ खाँ की सेना से सात दिनों तक भीषण युद्ध
किया ।
चिमटाधारी साधुओं के चिमटे के मार से मुगलों की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित मंदिर की रक्षा हो गयी । जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटाकर एक अन्य सिपहसालार सैय्यद हसन अली को 50 हजार सैनिकों की सेना और तोपखाने के साथ
अयोध्या की ओर भेजा और साथ मे ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को बर्बाद करके वापस आना है ,यह समय सन् 1680 का था । बाबा वैष्णव दास ने सिक्खों के गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के माध्यम संदेश भेजा । पत्र पाकर गुरु गुरुगोविंद सिंह सेना समेत तत्काल अयोध्या आ गए और ब्रहमकुंड पर अपना डेरा डाला । ब्रहमकुंड वही जगह जहां आज कल गुरुगोविंद सिंह की स्मृति मे सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खों के गुरुगोविंद सिंह रामलला की रक्षा हेतु एकसाथ रणभूमि में कूद पड़े। इन वीरों कें सुनियोजित हमलों से मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद हसन अली भी युद्ध मे मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था और इस युद्ध के बाद 4 साल तक उसने अयोध्या पर हमला करने की हिम्मत नहीं की। औरंगजेब ने सन् 1664 मे एक बार फिर श्री राम जन्मभूमि पर आक्रमण किया । इस भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग 10 हजार से ज्यादा हिंदुओं की हत्या कर दी नागरिकों तक को नहीं छोड़ा। जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलों ने उसमे फेककर चारों ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर दिया।
आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के नाम से प्रसिद्ध है, और जन्मभूमि के पूर्वी द्वार पर स्थित है। शाही सेना ने जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत दिनो तक वह
चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था । औरंगजेब के क्रूर
अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब उस गड्ढे पर ही श्री रामनवमी के दिन भक्तिभाव से अक्षत,पुष्प और जल चढाती रहती थी. नबाब सहादत अली के समय 1763 ईस्वी में जन्मभूमि के रक्षार्थ अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह और पिपरपुर के राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बाबरी ढांचे पर पुनः पाँच आक्रमण किये गये जिसमें हर बार हिन्दुओं
की लाशें अयोध्या में गिरती रहीं। लखनऊ गजेटियर
मे कर्नल हंट लिखता है की “लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नबाब ने हिंदुओं और मुसलमानो को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने की इजाजत दे दी पर सच्चा मुसलमान होने के नाते उसने काफिरों को जमीन नहीं सौंपी।
“लखनऊ गजेटियर पृष्ठ 62” नासिरुद्दीन हैदर के समय मे मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने रूप मे लाने के लिए हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये जिसमें
बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये। परन्तु तीसरे आक्रमण में डटकर नबाबी सेना का सामना हुआ 8वें दिन हिंदुओं की शक्ति क्षीण होने लगी ,जन्मभूमि के मैदान मे हिन्दुओं और मुसलमानो की लाशों का ढेर लग गया । इस संग्राम मे भीती,हंसवर,,मकर ही,खजुरहट,दीयरा अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे। हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर चिमटाधारी साधुओं की सेना आ मिली और इस युद्ध मे शाही सेना के चिथड़े उड गये और उसे
रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया।
मगर हर बार की तरह कुछ दिनो के बाद विशाल शाही सेना ने पुनः जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों हिन्दुओं को मार डाला गया। जन्मभूमि में हिन्दुओं का रक्त प्रवाहित होने लगा। नावाब वाजिदअली शाह के समय के समय मे पुनः हिंदुओं ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ आक्रमण किया । फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा “इस संग्राम मे बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ ।दो दिन और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं नें राम जन्म भूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं की भीड़ ने कब्रें तोड़ फोड़ कर बर्बाद कर डाली मस्जिदों को मिसमार करने लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया।मगर हिन्दू भीड़ ने
मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई हानि नहीं पहुचाई।
अयोध्या मे प्रलय मचा हुआ था ।
इतिहासकार कनिंघम लिखता है की ये अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू मुस्लिम बलवा था। हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस बनाया । चबूतरे पर तीन फीट
ऊँची खस की टाट से एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया ॥जिसमे पुनः रामलला की स्थापना की गयी। कुछ जेहादी मुल्लाओं को ये बात स्वीकार नहीं हुई और कालांतर में जन्मभूमि फिर हिन्दुओं के हाथों से निकल गयी। सन 1857 की क्रांति मे बहादुर शाह जफर के समय में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर अली के साथ जन्म भूमि के उद्धार का प्रयास किया पर 18 मार्च सन 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के पेड़ मे दोनों को एक साथ अंग्रेज़ो ने फांसी पर लटका दिया ।
जब अंग्रेज़ो ने ये देखा कि ये पेड़ भी देशभक्तों एवं राम भक्तों के लिए एक स्मारक के रूप मे विकसित हो रहा है तब उन्होने इस पेड़ को कटवा कर इस आखिरी निशानी को भी मिटा दिया…
इस प्रकार अंग्रेज़ो की कुटिल नीति के कारण राम जन्म भूमि के उद्धार का यह एकमात्र प्रयास विफल हो गया … अन्तिम बलिदान …
३० अक्टूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने वोट-बैंक के
लालची मुलायम सिंह यादव के द्वारा खड़ी की गईं अनेक
बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। लेकिन
२ नवम्बर १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें
सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं।
सरकार ने मृतकों की असली संख्या छिपायी परन्तु
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था। ४ अप्रैल १९९१ को कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया।
लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वारा बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया। परन्तु हिन्दू समाज के अन्दर व्याप्त घोर संगठन हीनता एवं नपुंसकता के कारण आज भी हिन्दुओं के सबसे बड़े आराध्य भगवान श्रीराम एक फटे हुए तम्बू में विराजमान हैं।
जिस जन्मभूमि के उद्धार के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना रक्त पानी की तरह बहाया। आज वही हिन्दू बेशर्मी से इसे “एक विवादित स्थल” कहता है।
सदियों से हिन्दुओं के साथ रहने वाले मुसलमानों ने आज
भी जन्मभूमि पर अपना दावा नहीं छोड़ा है। वो यहाँ किसी भी हाल में मन्दिर नहीं बनने देना चाहते हैं ताकि हिन्दू हमेशा कुढ़ता रहे और उन्हें नीचा दिखाया जा सके।
जिस कौम ने अपने ही भाईयों की भावना को नहीं समझा वो सोचते हैं
हिन्दू उनकी भावनाओं को समझे। आज तक किसी भी मुस्लिम संगठन ने जन्मभूमि के उद्धार के लिए आवाज नहीं उठायी, प्रदर्शन नहीं किया और सरकार पर दबाव नहीं बनाया आज भी वे बाबरी-विध्वंस की तारीख 6 दिसम्बर को काला दिन मानते हैं। और मूर्ख हिन्दू समझता है कि राम जन्मभूमि राजनीतिज्ञों और मुकदमों के कारण उलझा हुआ है।
ये लेख पढ़कर जिन हिन्दुओं को शर्म नहीं आयी वो कृपया अपने घरों में राम का नाम ना लें…अपने रिश्तेदारों से कह दें कि उनके मरने के बाद कोई “राम नाम” का नारा भी नहीं लगाएं।
विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता एक दिन श्रीराम जन्म भूमि का उद्धार कर वहाँ मन्दिर अवश्य बनाएंगे। चाहे अभी और कितना ही बलिदान क्यों ना देना पड़े।
एक स्वमसेवक
कृपया आगे फॉरवर्ड करे
आपका बहुत आभारी रहूँगा
* जय श्री राम *

ज्योति अग्रवाल

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

“आदर्श श्रीवास्तव : A Real Hero”

क्या आपने कभी असली हीरो देखा है? आज ऐसे ही एक असली हीरो की कहानी बताने जा रहा हूं…

ये हैं आदर्श श्रीवास्तव जो 5 जुलाई को अवध एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे, उसी ट्रेन में 26 लड़कियां जो कि नाबालिक थी, वो भी यात्रा कर रही थी, ट्रेन में तो हजारों लोग यात्रा करते है, शायद उस दिन उनके कोच में भी हजारों लोग होंगे परन्तु एक सजग और जिम्मेदार नागरिक आदर्श श्रीवास्तव जी ने देखा कि वो सभी लड़कियां यात्रा करने में असहज महसूस कर रही है, कुछ रो रही है, उनको शक हुआ मामला गंभीर है, उन्होंने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और रेल मंत्री पियूष गोयल, नरेंद्र मोदी जी, को सूचना दी..

उस सूचना को रेल प्रशासन द्वारा गंभीरता से लिया गया और तत्काल कार्यवाही हुई, आरपीएफ ने सभी 26 लड़कियों को बचा लिया और 2 लोगों को गिरफ्तार भी किया…..

ऐसे एक व्यक्ति की सजगता के कारण उन 26 लड़कियों की ज़िंदगी खराब होने से बच गई… आदर्श श्रीवास्तव जी देश के असली हीरो है, और बधाई व सम्मान के पात्र भी है….. Narendra Modi जी Piyush Goyal जी से निवेदन है, आदर्श श्रीवास्तव और इन जैसे सभी असली हीरो को सम्मानित किया जाना चाहिए, इससे पूरे देश को भी प्रेरणा मिलेगी, और भविष्य में ऐसी ही सजगता के कारण अन्य कई जिंदगियां बचाई जा सकती है..
साथ ही साथ रेल प्रशासन भी बधाई का पात्र है जिसने ट्वीट की गंभीरता को समझते हुए तुरंत कार्यवाही की…. 🙏

निओ दीप

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🔥मन की शांति🔥
एक प्रौढ व्यक्ति किसी बुजुर्ग से बाते कर रहे थे- ‘मै जब युवा था तब जीवन मे मुझे क्या पाना है, उसके सपने देखता रहता था! एक दिन मैने उन चीजो की सूची बनाई, जिन्हे पाकर किसी को भी पूर्णता की अनुभुति हो और वह स्वयं को धन्य समझे! उस सूची मे स्वास्थय, सौंदर्य, समृद्धि, सुयश, शक्ति, सँबल…और भी बहुत- कुछ उसमे मैने लिख दिये! उस सूची को लेकर मै एक महात्मा के पास गया और उनसे मैने पूछा कि क्या इस सूची मे मनुष्य की गुणवान उपलब्धियाँ नही आ जाती? मेरे प्रश्न को सुनकर और मेरी सूची मे वरणीत उपलब्धियो को देखकर उन महात्मा के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी और वे बोले- बेटे, तुमने वाकई बहुत अच्छी सूची बनाई है! इसमे तुमने अपनी समझ के अनुसार हर सुंदर विचार को स्थान दिया है!
लेकिन तुम इसमे सबसे महत्वपूर्ण तत्व तो लिखना ही भूल गए, जिसकी अनुपस्थिति मे शेष सब कुछ व्यर्थ हो जाता है! उस परम तत्व का दर्शन मात्र विचार से नही, वरन अनुभुति से ही किया जा सकता है!
मै असमंजस मे आ गया! मेरी दृष्टि मे तो मैने सूची मे एसी कोई चीज नही छोडी थी! मैने उनसे पूछा कि वह तत्व क्या है? इस प्रश्न के उतर मे उन महात्मा ने मेरी पूरी सूची को बडी निर्ममता से काट दिया और उसके सबसे नीचे उन्होने छोटे से तीन शब्द लिख दिए-
‘मन की शांति!’
इसी विषय मे सहजोबाई कहती है-
त्रिषणावंत जग मे दु:खी आठो पहर कंगाल! जिन पाया संतोष धन ते जन माला माल!!
*

ज्योति अग्रवाल

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

भगवान को अपनी समस्या सौंपकर निर्भार हो जाओ……
बहुत ही ज्ञानवर्धक कथा जरूर पढें!


पानी के उत्तम गुणों के कारण ही वृक्ष हरा भरा रहता है क्योंकि उस पानी के कारण ही व उसके प्रभाव से ही वृक्ष पल्लवित हुआ है। किन्तु सूखी लकड़ी को कितनी भी पानी में डुबो दो वह हरा भरा नहीं हो सकता है, क्योंकि उसमे पानी ग्रहण करने की शक्ति नही रहती है। इसी प्रकार जिज्ञासु लोग ही सद्गुरु के ज्ञान को ग्रहण कर पाते है।


एक साधु भिक्षा लेने एक घर में गये । उस घर में माई भोजन बना रही थी और पास में बैठी उसकी लगभग 8 वर्ष की पुत्री बिलख-बिलखकर रो रही थी ।

साधु का हृदय करुणा से भर गया, वे बोले : ‘‘माता ! यह बच्ची क्यों रो रही है ?’’
माँ भी रोने लगी, बोली : ‘‘महाराजजी ! आज रक्षाबंधन है । मुझे कोई पुत्र नहीं है । मेरी बिटिया मुझसे पूछ रही है कि ‘मैं किसके हाथ पर राखी बाँधूँ ?’

समझ में नहीं आता कि मैं क्या उत्तर दूँ, इसके पिताजी भी नहीं हैं ।’’
साधु ऊँची स्थिति के धनी थे, बोले : ‘‘हे भगवान ! मैं साधु बन गया तो क्या मैं किसीका भाई नहीं बन सकता !

बालिका की तरफ हाथ बढ़ाया और बोले : ‘‘बहन ! मैं तुम्हारा भाई हूँ, मेरे हाथ पर राखी बाँधो ।’’

साधु ने राखी बँधवायी और लीला नामक उस बालिका के भाई बन गये । लीला बड़ी हुई, उसका विवाह हो गया ।

कुछ वर्षों बाद उसके पेट में कैंसर हो गया । अस्पताल में लीला अंतिम श्वास गिन रही थी । घरवालों ने उसकी अंतिम इच्छा पूछी ।
लीला ने कहा : ‘‘मेरे भाईसाहब को बुलवा दीजिये ।’’

साधु महाराज ने अस्पताल में ज्यों ही लीला के कमरे में प्रवेश किया, त्यों ही लीला जोर-जोर से बोलने लगी : ‘‘भाईसाहब !
कहाँ है भगवान ?
कह दो उसे कि या तो लीला की पीड़ा हर ले या प्राण हर ले, अब मुझसे कैंसर की पीड़ा सही नहीं जाती ।’’

लीला लगातार अपनी प्रार्थना दोहराये जा रही थी । साधु महाराज लीला के पास पहुँचे और उन्होंने शांत भाव से कुछ क्षणों के लिए आँखें बंद कीं,

फिर अपने कंधे पर रखा वस्त्र लीला की तरफ फेंका और बोले : ‘‘जाओ बहन ! या तो प्रभु तुम्हारी पीड़ा हर लेंगे या प्राण ले लेंगे ।’’

उनका बोलना, वस्त्र का गिरना और लीला का उठकर खड़े हो जाना – सब एक साथ हो गया लीला बोल उठी : ‘‘कहाँ है कैंसर ! मैं एकदम ठीक हूँ, घर चलो ।’’

लीला की जाँच की गयी, कैंसर का नामोनिशान नहीं मिला । घर आकर साधु ने हँसकर पूछा : ‘‘लीला ! अभी मर जाती तो ?’’

लीला बोली : ‘‘मुझे अपने दोनों छोटे बच्चों की याद आ रही थी, उनकी चिंता हो रही थी ।’’
‘‘इसलिए प्रभु ने तुम्हें प्राणशक्ति दी है, बच्चों की सेवा करो, बंधन तोड़ दो, मरने के लिए तैयार हो जाओ ।’’
ऐसा कहकर साधु चले गये ।

लीला सेवा करने लगी, बच्चे अब चाचा-चाची के पास अधिक रहने लगे । ठीक एक वर्ष बाद पुनः लीला के पेट में पहले से जबरदस्त कैंसर हुआ, वही अस्पताल, वही वार्ड, संयोग से वही पलंग !
लीला ने अंतिम इच्छा बतायी : ‘‘मेरे भाईसाहब को बुलाइये ।’’

साधु बहन के पास पहुँचे, पूछा : ‘‘क्या हाल है ?’’
लीला एकदम शांत थी, उसने अपने भाई का हाथ अपने सिर पर रखा, वंदना की और बोली : ‘‘भाईसाहब ! मैं शरीर नहीं हूँ, मैं अमर आत्मा हूँ, मैं प्रभु की हूँ, मैं मुक्त हूँ…’’ कहते-कहते ॐकार का उच्चारण करके लीला ने शरीर त्याग दिया ।

लीला के पति दुःखी होकर रोने लगे । साधु महाराज उन्हें समझाते हुए बोले : ‘‘भैया ! क्यों रोते हो ?
अब लीला का जन्म नहीं होगा, लीला मुक्त हो गयी ।’’ फिर वे हँसे और दुबारा बोले : ‘‘हम जिसका हाथ पकड़ लेते हैं, उसे मुक्त करके ही छोड़ते हैं ।’’

पति का दुःख कम हुआ । उन्होंने पूछा : ‘‘महाराज ! गत वर्ष लीला तत्काल ठीक कैसे हो गयी थी, आपने क्या किया था ?’’

‘‘गत वर्ष लीला ने बार-बार मुझसे पीड़ा या प्राण हर लेने के लिए प्रभु से प्रार्थना करने को कहा ।

मैंने प्रभु से कहा : ‘हे भगवान ! अब तक लीला मेरी बहन थी, इस क्षण के बाद वह आपकी बहन है, अब आप ही सँभालिये ।’

प्रभु पर छोड़ते ही प्रभु ने अपनी बहन को ठीक कर दिया । यह है प्रभु पर छोड़ने की महिमा !’’

इंसाँ की अज्म से जब दूर किनारा होता है ।
तूफाँ में टूटी किश्ती का
एक भगवान सहारा होता है ।।

ऐसे ही जब आपके जीवन में कोई ऐसी समस्या, दुःख, मुसीबत आये
जिसका आपके पास हल न हो तो आप भी घबराना नहीं बल्कि किसी एकांत कमरे में चले जाना और भगवान,
सद्गुरु के चरणों में प्रार्थना करके सब कुछ उनको सौंप देना और शांत-निर्भार हो जाना ।
फिर जिसमें आपका परम मंगल होगा, परम हितैषी परमात्मा वही करेंगे ।

ज्योति अग्रवाल

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

सुभाषित