प्रेरक प्रसंग
जाऊँ कहाँ तजि चरण तुम्हारे
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के बाईस शिष्य थे । उनमें से हर एक की इच्छा थी कि उनकी गद्दी का वारिस वही बने । एक दिन हज़रत उन सब को सैर कराने ले गये । घूमते-घूमते वे एक गन्दी बस्ती में गये । शिष्य सोचने लगे कि उन्हें इस गन्दी बस्ती में क्यों लाया गया है ? इतने में हजरत ने कहा, "यहीं रूको, मुझे जरा उपर कुछ काम है ।" और वे उपर चले गये ।
एक वेश्या ने उन्हें उपर आया देख हाथ जोड़कर उनसे कहा, "मेरे तो धन्य भाग हैं, जो एक पीर आज मेरे द्वार पर आये हैं ।" तब हजरत ने उससे कहा, "मैं एकान्त चाहता हूँ । मेरे लिए एक अलग कमरे में दाल-रोटी और एक बोतल शरबत का प्रबन्ध करो ।"
थोड़ी ही देर में जब नौकर ये सारी चीजें ढककर ऊपर ले जाने लगा, तो शिष्य आपस में बात करने लगे ___ "आज तो पीर की पीरी निकल गयी । अब ऊपर शराब-कबाब खूब उड़ेगा ।" और वे सब एक-एक कर वहाँ से निकल गये । केवल अमीर खुसरो बच गये और वे गुरु का इन्तजार करने लगे ।
नौकर ने जब खाना रखा, तो निज़ामुद्दीन बोले, "मुझे नहीं खाना है, तुम्हीं खा लो ।" और वे नीचे आये । देखा तो केवल खुसरो को खड़ा पाया । उन्होंने पूछा, "तुम नहीं गये ?" खुसरो ने जवाब दिया, "हज़रत, मैं कहाँ जाता ?" आपकी नामौजूदगी में कोई जगह ही नहीं दिखाई दी, सो यहीं खड़ा रहा ।"
हज़रत ने उन्हें गले लगाया और उन्हें ही गद्दी सौंप दी ।
अनूप सिन्हा