हिन्दू वैदिक सनातन धर्म -27 अ
पुनः मूल तथ्यों पर लौटते है । मैरे एक प्रश्न से कई लोगो को हैरानी हुई कि क्या सब अवतार सही है या मनुष्यों ने स्वार्थ के लिए कुछ नरों को नारायण बनाया ? इसका उत्तर संक्षेप मे केवल इतना ही देना चाहूँगा कि जब हम सब ईश्वर की संतान है तो क्या ईश्वर अपनी संतानों को क्यो मारेगा ? लेकिन अगर एक शक्तिशाली और क्रूर संतान बाकी सब को नष्ट करने पर ही तूल जाए तो बाकी संतानों की रक्षा का दायित्व भी पिता का होता है और उनका पालनहार व रक्षक होने के कारण नारायण को नर का अवतार लेना ही पड़ता है । यही सृष्टि का नियम है । इसी नियम का लाभ उठाकर कुछ लोगो ने फर्जी अवतार भी बनाये । इसके जानकारी आपको आगे मिलेगी । जो भी अवतार हुये है उन्होने उन असुरो को शक्तिशाली होने के घमंड के कारण क्रूरता की जब सीमाओं को पर करने के कारण मनुष्य और देवताओं से भी परास्त न होने के पर स्वम नर या अन्य रूप मे अवतार लिए ।
ताड़कासुर के आतंक से त्रस्त लोगो ने आदि शक्ति की उपासना आरंभ की जिससे प्रसन्न होकर आदि शक्ति ने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां जन्म लिया। मैनावती और हिमवान को कोई कन्या नहीं थी तो उन्होंने आदिशक्ति की प्रार्थना की। आदिशक्ति माता सती ने उन्हें उनके यहां कन्या के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। दोनों ने उस कन्या का नाम रखा पार्वती। पार्वती अर्थात पर्वतों की रानी। इसी को गिरिजा, शैलपुत्री और पहाड़ों वाली रानी कहा जाता है ।शंकर को शक्तिहीन और पत्नीहीन देखकर तारक आदि दैत्य प्रसन्न थे। भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने देवर्षि के कहने मां पार्वती वन में तपस्या करने चली गईं। भगवान शंकर ने पार्वती के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। सप्तऋषियों ने पार्वती के पास जाकर उन्हें हर तरह से यह समझाने का प्रयास किया कि शंकर औघड़, अमंगल वेषभूषाधारी और जटाधारी है। तुम तो महान राजा की पुत्री हो तुम्हारे लिए वह योग्य वर नहीं है। उनके साथ विवाह करके तुम्हें कभी सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। अनेक यत्न करने के बाद भी पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रही।
उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने पार्वती को सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद दिया और वे पुन: भगवान शंकर के पास वापस आ गए। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुनकर भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न हुए और समझ गए कि पार्वती को अभी में अपने सती रूप का स्मरण है।
सप्तऋषियों ने शंकर और पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया।
हिमवान का पुरोहित व नाई पार्वती की इच्छा जानकर शंकर के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुँचा। शंकर ने अपनी निर्धनता इत्यादि की ओर संकेत कर विवाह के औचित्य पर पुन: विचारने को कहा। पुरोहित के पुन: आग्रह पर वे मान गये। शंकर ने पुरोहित और नाई को विभूति प्रदान की। नाई ने वह मार्ग में फेंक दी और पुरोहित पर बहुत रुष्ट हुआ कि वह बैल वाले अवधूत से राजकुमारी का विवाह पक्का कर आया है। नाई ने ऐसा ही कुछ जाकर राजा से कह सुनाया। पुरोहित का घर विभूति के कारण धन-धान्य रत्न आदि से युक्त हो गया। नाई उसमें से आधा अंश मांगने लगा तो पुरोहित ने उसे भगवान शंकर के पास जाने की राय दी।
शंकर ने उसे विभूति नहीं दी। नाई से शंकर की दारिद्रय के विषय में सुनकर राजा ने संदेश भेजा कि वह बारात में समस्त देवी-देवताओं सहित पहुँचें। शंकर हँस दिये और राजा के मिथ्याभिमान को नष्ट करने के लिए एक बूढ़े का वेश धारण करके, नंदी का भी बूढ़े जैसा रूप बनाकर हिमवान की ओर बढ़े। मार्ग में लोगों को यह बताने पर कि वे शंकर हैं और पार्वती से विवाह करने आये हैं, स्त्रियों ने घेरकर उन्हें पीटा। स्त्रियाँ नोच, काट, खसोटकर चल दीं और शंकर ने मुस्कराकर अपनी झोली में से निकालकर ततैये उनके पीछे छोड़ दिये। उनका शरीर ततैयों के काटने से सूज गया। शुक्र और शनीचर दुखी हुए पर शंकर हँसते रहे। मां-बाप को उदास देखकर पार्वती ने विजया नामक सखी को बुलाकर शंकर तक पहुँचाने के लिए एक पत्र दिया जिसमें प्रार्थना की कि वे अपनी माया समेटकर पार्वती के अपमान का हरण करें। भगवान शंकर ने अपनी माया समेत ली । पार्वती की प्रेरणा से हिमवान शंकर की अगवानी के लिए गये। उन्हें देख शुक्र और शनीचर भूख से रोने लगे। हिमवान उन्हें साथ ले गये। एक ग्रास में ही उन्होंने बारात का सारा भोजन समाप्त कर दिया। जब हिमवान के पास कुछ भी शेष नहीं रहा तब शंकर ने उन्हें झोली से निकालकर एक-एक बूटी दी ( शनि को बिच्छू घास और शुक्र को सरफोखा ) और उससे वे दोनों तृप्त हो गये। हिमवान पुन: अगवानी के लिए गये तो उनका अन्न इत्यादि का भंडार पूर्ववत् हो गया। समस्त देवताओं से युक्त बारात सहित पधारकर शंकर ने पार्वती से विवाह किया।
…………..✍विकास खुराना ( ज्योतिष विशेषज्ञ )👳♂🔱🚩