Posted in सुभाषित - Subhasit

“ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता शौर्यस्य वाक्संयमो ,
ज्ञानस्योपशम: श्रुतस्य विनयो वित्तस्य पात्रो व्यय: ।
अक्रोधस्तपस: क्षमा प्रभवितुर्धर्मस्य निर्व्याजता ,
सर्वेषामपि सर्वकारणमिदं शीलं परं भूषणम् ।।

भावार्थ :―
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धन-सम्पत्ति की शोभा ‘सज्जनता’ , शूरवीरता की शोभा ‘वाक् संयम'(बढ़-चढ़कर बातें न करना) , ज्ञान की शोभा ‘शान्ति, नम्रता’ , धन की शोभा ‘सुपात्र में’ , दान, तप की शोभा ‘क्रोध न करना’ , प्रभुता की शोभा ‘क्षमा’ और धर्म का भूषण ‘निश्छल व्यवहार’ है । परन्तु इन सबका कारणरूप “शील=सदाचार” ‘सर्वश्रेष्ठ भूषण’ है ।।

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