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जब युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण ने की अर्जुन के घोड़ों की सेवा
महाभारत की लड़ाई में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को कौरवों और उसके पक्ष के वीरों ने चारों ओर से घेरकर मार डाला। और तो और जयद्रथ ने तो अभिमन्यु की लाश पर लात भी मारी। जब अर्जुन को यह पता चला तो उनका रक्त खौल उठा उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे जयद्रथ का अगले दिन सूर्यास्त होने से पहले ही वध कर देंगे।
अगले दिन अर्जुन कौरव सेना को अपने तीरों से मारते-काटते आगे बढ़ चले। अभी जयद्रथ लगभग 6 कोस की दूरी पर था और उन्हें उसके पास सूर्यास्त से पहले ही पहुँचना था। भगवान् श्रीकृष्ण रथ को शीघ्रता से ले जा रहे थे। किंतु, रथ के घोड़े बहुत सारे तीरों से घायल थे, जिस कारणउनके शरीर से खून के फौव्वारे छूट रहे थे। उन्हें भूख-प्यास लगी हुई थी और वे थके हुए भी थे। इसलिए वे बड़ी मुश्किल से रथ खींच पा रहे थे। अर्जुन श्रीकृष्ण से बोले, “भगवन! ऐसा लगता है कि घोड़े बहुत थके हुए हैं। इसलिए इन्हें कुछ समय के लिए खुला छोड़ देना चाहिए।”
श्रीकृष्ण बोले, “अर्जुन! मैं भी ऐसा ही सोच रहा था।” रथ को रोककर उन्होंने सारे घोड़े खोल दिए। घोड़ों की प्यास बुझाने के लिए अर्जुन ने भूमि पर तीर छोड़ा, और वहाँ पर भूमि के अंदर से जलधारा फूट निकली। इसके बाद, अर्जुन ने अनेक तीरों से घोड़ों की सुरक्षा के लिए तीरों की दीवार खड़ी कर दी। वे खुद धनुष-बाण लेकर घोड़ों की रक्षा करने के लिए खड़े हो गए। जब घोड़ों ने पानी पी लिया, तो श्रीकृष्णजी ने उनके शरीर में बिंधे हुए तीर निकाले, घावों पर मरहम लगाया, उनके शरीर की मालिश की, उन्हें टहलाया, पृथ्वी पर लिटाया और फिर अपने पीतांबर का दोना बनाकर उसमें घास भर-भरकर उन्हें खिलाने लगे।
श्रीकृष्ण की इस सेवा को देखकर घोड़े प्रेम के आँसू बहाने लगेगे। उनके शरीर की सारी पीड़ा और थकान दूर हो गई और वे तरोताजा हो गए। कृष्ण ने उन्हें फिर से रथ में जोत दिया और घोड़े फिर से हवा से बातें करने लगे। शीघ्र ही कृष्ण अर्जुन जयद्रथ के पास जा पहुँचे और अर्जुन ने श्रीकृष्ण की कूटनीति से जयद्रथ का सूर्यास्त से पहले ही वध कर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।
======जय श्री कृष्णा,=======
संजय गुप्ता