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🙏🏾🙏🏾🌺प्रार्थना का प्रभाव🌺🙏🏾🙏🏾

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यह घटना बरोडा के एक वरिष्ठ डॉक्टर की आपबीती है जिसने उनका जीवन बदल दिया। वह heart specialist हैं।उनके अनुसार:

  एक दिन मेरे पास एक दंपति अपनी छः साल की बच्ची को लेकर आए।निरिक्षण के बाद पता चला कि उसके heart में पूर्ण रूप से    clogging हो चुकी है।मैंने अपनी पूरीteam से discuss करने के बाद उस दंपति से कहा कि 30% chance है survival  का open heart surgeryके बाद नहीं तो बच्ची के पास तीन महीने का समय है।माता पिता भावुक हो कर बोले कि वह surgeryका chance  लेगें।

  सर्जरी के पांच दिन पहले बच्ची को  admit कर लिया गया।उसकी माँ को प्रार्थना में अटूट विश्वास था।वह सुबह शाम बच्ची को यही कहती कि God lives in ur heart..वह तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे।

सर्जरी के दिन मैंने उस बच्ची से कहा; don't worry u will be alright after surgery..उसने कहा डाक्टर I am not worried coz God is in my heart पर surgery में आप जब मेरा heart open करोगे तो देखकर बताना God कैसे दिखते हैं।

ऑपरेशन के दौरान पता चल गया कि कुछ नहीं हो सकता।

बच्ची को बचाना असंभव है।heart में blood का एक drop भी नहीं आ रहा था।निराश होकर मैंने अपनी team  से वापिस stich करने का आदेश दिया।तभी मुझे बच्ची के आखिरी बात याद आई और मैं अपने रक्त भरे हाथों को जोड कर प्रार्थना करने लगा कि हे इश्वर!  मेरा सारा  अनुभव तो इस बच्ची को बचाने में असमर्थ है पर यदि आप इसके हृदय में विराजमान हो तो आप ही कुछ कीजिए।

  यह मेरी पहली अश्रु पूर्ण प्रार्थना थी।इसी बीच मेरे junior doctor ने मुझे कोहनी मारी। मैं miracles में विश्वास नहीं करता था पर मैं स्तब्ध हो गया  यह देखकर कि heart में blood supply शुरू हो गई।मेरे 60yrs के career में ऐसा पहली बार हुआ था।

आपरेशन सफल तो हो गया पर मेरा जीवन बदल गया।मैंने बच्ची से कहा don’t make effort to see God..He can’t be seen, He can be experienced…

इस घटना के बाद मैंने अपने आपरेशन थियेटर में प्रार्थना का नियम निभाना शुरू दिया।मैं यह अनुरोध करता हूं कि सभी को अपने बच्चों में प्रार्थना का संस्कार डालना ही चाहिए।
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Forward this true…. to all your contacts & groups etc. More & more.. Please do not edit.

संजय गुप्ता

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#एक_अनोखा__तलाक_अवश्य_पढ़े

हुआ यू कि पति ने पत्नी को किसी बात पर तीन थप्पड़ जड़ दिए, पत्नी ने इसके जवाब में अपना सैंडिल पति की तरफ़ फेंका, सैंडिल का एक सिरा पति के सिर को छूता हुआ निकल गया।

मामला रफा-दफा हो भी जाता, लेकिन पति ने इसे अपनी तौहिनी समझी, रिश्तेदारों ने मामला और पेचीदा बना दिया, न सिर्फ़ पेचीदा बल्कि संगीन, सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा, यह भी कहा कि पति को सैडिल मारने वाली औरत न वफादार होती है न पतिव्रता।

इसे घर में रखना, अपने शरीर में मियादी बुखार पालते रहने जैसा है। कुछ रिश्तेदारों ने यह भी पश्चाताप जाहिर किया कि ऐसी औरतों का भ्रूण ही समाप्त कर देना चाहिए।

बुरी बातें चक्रवृत्ति ब्याज की तरह बढ़ती है, सो दोनों तरफ खूब आरोप उछाले गए। ऐसा लगता था जैसे दोनों पक्षों के लोग आरोपों का वॉलीबॉल खेल रहे हैं। लड़के ने लड़की के बारे में और लड़की ने लड़के के बारे में कई असुविधाजनक बातें कही।
मुकदमा दर्ज कराया गया। पति ने पत्नी की चरित्रहीनता का तो पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया। छह साल तक शादीशुदा जीवन बीताने और एक बच्ची के माता-पिता होने के बाद आज दोनों में तलाक हो गया।

पति-पत्नी के हाथ में तलाक के काग़ज़ों की प्रति थी।
दोनों चुप थे, दोनों शांत, दोनों निर्विकार।
मुकदमा दो साल तक चला था। दो साल से पत्नी अलग रह रही थी और पति अलग, मुकदमे की सुनवाई पर दोनों को आना होता। दोनों एक दूसरे को देखते जैसे चकमक पत्थर आपस में रगड़ खा गए हों।

दोनों गुस्से में होते। दोनों में बदले की भावना का आवेश होता। दोनों के साथ रिश्तेदार होते जिनकी हमदर्दियों में ज़रा-ज़रा विस्फोटक पदार्थ भी छुपा होता।

लेकिन कुछ महीने पहले जब पति-पत्नी कोर्ट में दाखिल होते तो एक-दूसरे को देख कर मुँह फेर लेते। जैसे जानबूझ कर एक-दूसरे की उपेक्षा कर रहे हों, वकील औऱ रिश्तेदार दोनों के साथ होते।

दोनों को अच्छा-खासा सबक सिखाया जाता कि उन्हें क्या कहना है। दोनों वही कहते। कई बार दोनों के वक्तव्य बदलने लगते। वो फिर सँभल जाते।
अंत में वही हुआ जो सब चाहते थे यानी तलाक …………….

पहले रिश्तेदारों की फौज साथ होती थी, आज थोड़े से रिश्तेदार साथ थे। दोनों तरफ के रिश्तेदार खुश थे, वकील खुश थे, माता-पिता भी खुश थे।

तलाकशुदा पत्नी चुप थी और पति खामोश था।
यह महज़ इत्तेफाक ही था कि दोनों पक्षों के रिश्तेदार एक ही टी-स्टॉल पर बैठे , कोल्ड ड्रिंक्स लिया।
यह भी महज़ इत्तेफाक ही था कि तलाकशुदा पति-पत्नी एक ही मेज़ के आमने-सामने जा बैठे।

लकड़ी की बेंच और वो दोनों …….
”कांग्रेच्यूलेशन …. आप जो चाहते थे वही हुआ ….” स्त्री ने कहा।
”तुम्हें भी बधाई ….. तुमने भी तो तलाक दे कर जीत हासिल की ….” पुरुष बोला।

”तलाक क्या जीत का प्रतीक होता है????” स्त्री ने पूछा।
”तुम बताओ?”
पुरुष के पूछने पर स्त्री ने जवाब नहीं दिया, वो चुपचाप बैठी रही, फिर बोली, ”तुमने मुझे चरित्रहीन कहा था….
अच्छा हुआ…. अब तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पीछा छूटा।”
”वो मेरी गलती थी, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था” पुरुष बोला।
”मैंने बहुत मानसिक तनाव झेली है”, स्त्री की आवाज़ सपाट थी न दुःख, न गुस्सा।

”जानता हूँ पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो स्त्री के मन और आत्मा को लहू-लुहान कर देता है… तुम बहुत उज्ज्वल हो। मुझे तुम्हारे बारे में ऐसी गंदी बात नहीं करनी चाहिए थी। मुझे बेहद अफ़सोस है, ” पुरुष ने कहा।

स्त्री चुप रही, उसने एक बार पुरुष को देखा।
कुछ पल चुप रहने के बाद पुरुष ने गहरी साँस ली और कहा, ”तुमने भी तो मुझे दहेज का लोभी कहा था।”
”गलत कहा था”….
पुरुष की ओऱ देखती हुई स्त्री बोली।
कुछ देर चुप रही फिर बोली, ”मैं कोई और आरोप लगाती लेकिन मैं नहीं…”

प्लास्टिक के कप में चाय आ गई।
स्त्री ने चाय उठाई, चाय ज़रा-सी छलकी। गर्म चाय स्त्री के हाथ पर गिरी।
स्सी… की आवाज़ निकली।
पुरुष के गले में उसी क्षण ‘ओह’ की आवाज़ निकली। स्त्री ने पुरुष को देखा। पुरुष स्त्री को देखे जा रहा था।
”तुम्हारा कमर दर्द कैसा है?”
”ऐसा ही है कभी वोवरॉन तो कभी काम्बीफ्लेम,” स्त्री ने बात खत्म करनी चाही।

”तुम एक्सरसाइज भी तो नहीं करती।” पुरुष ने कहा तो स्त्री फीकी हँसी हँस दी।
”तुम्हारे अस्थमा की क्या कंडीशन है… फिर अटैक तो नहीं पड़े????” स्त्री ने पूछा।
”अस्थमा।डॉक्टर सूरी ने स्ट्रेन… मेंटल स्ट्रेस कम करने को कहा है, ” पुरुष ने जानकारी दी।

स्त्री ने पुरुष को देखा, देखती रही एकटक। जैसे पुरुष के चेहरे पर छपे तनाव को पढ़ रही हो।
”इनहेलर तो लेते रहते हो न?” स्त्री ने पुरुष के चेहरे से नज़रें हटाईं और पूछा।
”हाँ, लेता रहता हूँ। आज लाना याद नहीं रहा, ” पुरुष ने कहा।

”तभी आज तुम्हारी साँस उखड़ी-उखड़ी-सी है, ” स्त्री ने हमदर्द लहजे में कहा।
”हाँ, कुछ इस वजह से और कुछ…” पुरुष कहते-कहते रुक गया।
”कुछ… कुछ तनाव के कारण,” स्त्री ने बात पूरी की।

पुरुष कुछ सोचता रहा, फिर बोला, ”तुम्हें चार लाख रुपए देने हैं और छह हज़ार रुपए महीना भी।”
”हाँ… फिर?” स्त्री ने पूछा।
”वसुंधरा में फ्लैट है… तुम्हें तो पता है। मैं उसे तुम्हारे नाम कर देता हूँ। चार लाख रुपए फिलहाल मेरे पास नहीं है।” पुरुष ने अपने मन की बात कही।

”वसुंधरा वाले फ्लैट की कीमत तो बीस लाख रुपए होगी??? मुझे सिर्फ चार लाख रुपए चाहिए….” स्त्री ने स्पष्ट किया।
”बिटिया बड़ी होगी… सौ खर्च होते हैं….” पुरुष ने कहा।
”वो तो तुम छह हज़ार रुपए महीना मुझे देते रहोगे,” स्त्री बोली।
”हाँ, ज़रूर दूँगा।”
”चार लाख अगर तुम्हारे पास नहीं है तो मुझे मत देना,” स्त्री ने कहा।
उसके स्वर में पुराने संबंधों की गर्द थी।

पुरुष उसका चेहरा देखता रहा….
कितनी सह्रदय और कितनी सुंदर लग रही थी सामने बैठी स्त्री जो कभी उसकी पत्नी हुआ करती थी।
स्त्री पुरुष को देख रही थी और सोच रही थी, ”कितना सरल स्वभाव का है यह पुरुष, जो कभी उसका पति हुआ करता था। कितना प्यार करता था उससे…

एक बार हरिद्वार में जब वह गंगा में स्नान कर रही थी तो उसके हाथ से जंजीर छूट गई। फिर पागलों की तरह वह बचाने चला आया था उसे। खुद तैरना नहीं आता था लाट साहब को और मुझे बचाने की कोशिशें करता रहा था… कितना अच्छा है… मैं ही खोट निकालती रही…”

पुरुष एकटक स्त्री को देख रहा था और सोच रहा था, ”कितना ध्यान रखती थी, स्टीम के लिए पानी उबाल कर जग में डाल देती। उसके लिए हमेशा इनहेलर खरीद कर लाती, सेरेटाइड आक्यूहेलर बहुत महँगा था। हर महीने कंजूसी करती, पैसे बचाती, और आक्यूहेलर खरीद लाती। दूसरों की बीमारी की कौन परवाह करता है? ये करती थी परवाह! कभी जाहिर भी नहीं होने देती थी। कितनी संवेदना थी इसमें। मैं अपनी मर्दानगी के नशे में रहा। काश, जो मैं इसके जज़्बे को समझ पाता।”

दोनों चुप थे, बेहद चुप।
दुनिया भर की आवाज़ों से मुक्त हो कर, खामोश।
दोनों भीगी आँखों से एक दूसरे को देखते रहे….

”मुझे एक बात कहनी है, ” उसकी आवाज़ में झिझक थी।
”कहो, ” स्त्री ने सजल आँखों से उसे देखा।
”डरता हूँ,” पुरुष ने कहा।
”डरो मत। हो सकता है तुम्हारी बात मेरे मन की बात हो,” स्त्री ने कहा।
”तुम बहुत याद आती रही,” पुरुष बोला।
”तुम भी,” स्त्री ने कहा।
”मैं तुम्हें अब भी प्रेम करता हूँ।”
”मैं भी.” स्त्री ने कहा।

दोनों की आँखें कुछ ज़्यादा ही सजल हो गई थीं।
दोनों की आवाज़ जज़्बाती और चेहरे मासूम।
”क्या हम दोनों जीवन को नया मोड़ नहीं दे सकते?” पुरुष ने पूछा।
”कौन-सा मोड़?”
”हम फिर से साथ-साथ रहने लगें… एक साथ… पति-पत्नी बन कर… बहुत अच्छे दोस्त बन कर।”

”ये पेपर?” स्त्री ने पूछा।
”फाड़ देते हैं।” पुरुष ने कहा औऱ अपने हाथ से तलाक के काग़ज़ात फाड़ दिए। फिर स्त्री ने भी वही किया। दोनों उठ खड़े हुए। एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर मुस्कराए। दोनों पक्षों के रिश्तेदार हैरान-परेशान थे। दोनों पति-पत्नी हाथ में हाथ डाले घर की तरफ चले गए। घर जो सिर्फ और सिर्फ पति-पत्नी का था ।।

पति पत्नी में प्यार और तकरार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जरा सी बात पर कोई ऐसा फैसला न लें कि आपको जिंदगी भर अफसोस हो ।।

संजय गुप्ता

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इस कहानी को समय देकर अवश्य पढें-जब मृत्यु का भय सताये तब इस कथा को पढ़ें एवं भविष्य में सदैव स्मरण रखें÷ (“मृत्यु से भय कैसा ??”)…. ।।सुन्दर दृष्टान्त ।।

राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ। अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था।तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।राजन !

बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया। संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी।

जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा।रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया।

वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी । वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था।अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था।बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।

बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं।

इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं।ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।

इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता।
मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।

राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा।

उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।

बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी l बहेलिये ने सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया । राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा।

सोने पर झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा।अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वह वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।वह बहेलिये से अपने और ठहरने की प्रार्थना करने लगा।

इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा।राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर विवाद खड़ा हो गया । कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा,”परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा रहने के लिए झंझट करना उचित था ?”
परीक्षित ने उत्तर दिया,” भगवन् ! वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये ?

वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है।

“श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा,” हे राजा परीक्षित !
वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं।

इस मल-मूल की गठरी देह (शरीर) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं।

फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते।
क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है ?

राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।

भाई – बहनों, वास्तव में यही सत्य है। जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन् !

मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा।

और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो (उस राजा की तरह हैरान होकर ) सोचने लगता है कि मैं ये कहाँ आ गया ( और पैदा होते ही रोने लगता है ) फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता ।

अतः संसार में आने के अपने वास्तविक उद्देश्य को पहचाने और उसको प्राप्त करें ऐसा कर लेने पर आपको मृत्यु का भय नहीं सताएगा।।

संजय गुप्ता

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सोने से पहले एक सच्ची कहानी पेश कर जा रहा हूँ। एक बार अवश्य पढ़े।
#दिलकारिश्ता

“एक आइसक्रीम वाला रोज एक मोहल्ले में आइसक्रीम बेचने जाया करता था उस कालोनी में सारे पैसे वाले लोग रहा करते थे लेकिन वह एक परिवार ऐसा भी था जो आर्थिक तंगी से गुजर रहा था उनका एक चार साल का बेटा था जो हर दिन खिड़की से उस आइसक्रीम वाले को ललचाई नजरो से देखा करता था लेकिन वो लड़का कभी आइसक्रीम खानेघर से बाहर नहीं आया एक दिन उस आइसक्रीम वाले का मन नहीं माना तो वो खिड़की के पास जाकर उस बच्चे से बोला -बेटा क्या आपको आइसक्रीम अच्छी नहीं लगती आप कभी मेरी आइसक्रीम नहीं खरीदते ..उस चार साल के बच्चे ने बड़ी मासूमियत के साथ कहा -मुझे आइसक्रीम बहुत पसंद हे पर मां के पास पैसे नहीं हे उस आइसक्रीम वाले को यह सुनकर उस बच्चे पर बड़ा प्यार आया उसने कहा -बेटा तुम मुझसे रोज आइसक्रीम ले लिया करो मुझसे तुमसे पैसे नहीं चाहिए ,वो बच्चा बहुत समझदार निकला बहुत सहज भाव से बोला -नहीं ले सकता मां ने कहा हे किसी से मुफ्त में कुछ लेना गंदी बात होती हे ,वो आइसक्रीम वाला बच्चे के मुह से इतनी गहरी बात सुनकर हैरान रह गया फिर उसने कहा -तुम मुझे आइसक्रीम के बदले में रोज एक पप्पी दे दिया करो इस तरह मुझे आइसक्रीम की कीमत मिल जाया करेगी ..बच्चा ये सुनकर बहुत खुश हुआ वो दौड़कर घर से बाहर आया आइसक्रीम वाले ने उसे एक आइसक्रीम दी और बदले में उस बच्चे ने उस आइसक्रीम वाले के गालो पर एक पप्पी दी और खुश होकर घर के अन्दर भाग गया अब तो रोज का यही सिलसिला हो गया वो आइसक्रीम वाला रोज आता और एक पप्पी के बदले उस बच्चे को आइसक्रीम दे जाता .
करीब एक महीने तक यही चलता रहा लेकिन उसके बाद उस बच्चे ने अचानक से आना बंद कर दिया अब वो खिड़की पर भी नजर नहीं आता था जब 3 दिन हो गए तो आइसक्रीम वाले का मन नहीं मन और वो उस घर पर पहुंच गया दरवाजा उस बच्चेकी मां ने खोला आइसक्रीम वाले ने उत्सुकता से उस बच्चे के बारे में पूछा तो उसकी मां ने कहा देखिये हम गरीब लोग हे हमारे पास इतना पैसा नहीं के अपने बच्चे को रोज आइसक्रीम खिला सके आप उसे रोज मुफ्त में आइसक्रीम खिलाते रहे जिस दिन मुझे ये बात पता चली तो मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई आप एक अच्छे इंसान हे लेकिन ऐसे बेटे को मुफ्त में आइसक्रीम खाते देख लोग बातें करते है मे एक विधवा हूं लोग ऐसे गलत समझ..कहकर रोने को हुई, तब आइसक्रीम वाला बोला-रिश्ते ..कया एक आदमी औरत मे एक ही रिश्ता हो सकता है कया वोबहन भाई नही हो सकते वो मेरा भांजा ओर मे उसका मामा नही हो सकते जाइए बेटे से कहिए उसका मामा आइसक्रीम लेकर आया है ,मां आँसू भरी आँखें लिए अंदर गई और तभी बच्चा दौडता बाहर आया ओर बोला-मामाजी ..मामाजी मेरी आइसक्रीम, पहले मेरा इनाम कहकर गाल आगे कह आइसक्रीम वाला बोला, बच्चे ने गालों पर पप्पी दी ओर आइसक्रीम खाने लगा बाहर आइसक्रीम वाला ओर बच्चा खुश थे तो अंदर मां खुशी भरी आँखें लिए…
संजय गुप्ता

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(((( नियम का महत्व ))))
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एक संत थे। एक दिन वे एक जाट के घर गए। जाट ने उनकी बड़ी सेवा की। सन्त ने उसे कहा कि रोजाना नाम -जप करने का कुछ नियम ले लो।
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जाट ने कहा बाबा, हमारे को वक्त नहीं मिलता। सन्त ने कहा कि अच्छा, रोजाना ठाकुर जी की मूर्ति के दर्शन कर आया करो।
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जाट ने कहा मैं तो खेत में रहता हूं और ठाकुर जी की मूर्ति गांव के मंदिर में है, कैसे करूँ ?
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संत ने उसे कई साधन बताये, कि वह कुछ -न-कुछ नियम ले लें। पर वह यही कहता रहा कि मेरे से यह बनेगा नहीं, मैं खेत में काम करू या माला लेकर जप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ है ?
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बाल -बच्चों का पालन पोषण करना है। आपके जैसे बाबा जी थोड़े ही हूँ। कि बैठकर भजन करूँ।
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संत ने कहा कि अच्छा तू क्या कर सकता है ? जाट बोला कि पड़ोस में एक कुम्हार रहता है। उसके साथ मेरी मित्रता है। उसके और मेरे खेत भी पास -पास है।
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और घर भी पास -पास है। रोजाना एक बार उसको देख लिया करूगाँ। सन्त ने कहा कि ठीक है। उसको देखे बिना भोजन मत करना।
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जाट ने स्वीकार कर लिया। जब उसकी पत्नी कहती कि भोजन कर लो। तो वह चट बाड़ पर चढ़कर कुम्हार को देख लेता। और भोजन कर लेता।
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इस नियम में वह पक्का रहा। एक दिन जाट को खेत में जल्दी जाना था। इसलिए भोजन जल्दी तैयार कर लिया।
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उसने बाड़ पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं। पूछने पर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है। जाट बोला कि कहां मर गया, कम से कम देख तो लेता।
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अब जाट उसको देखने के लिए तेजी से भागा। उधर कुम्हार को मिट्टी खोदते -खोदते एक हाँडी मिल गई। जिसमें तरह -तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थी।
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उसके मन में आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायेगी। अतः वह देखने के लिए ऊपर चढा तो सामने वह जाट आ गया।
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कुम्हार को देखते ही जाट वापस भागा। तो कुम्हार ने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली। और अब वह आफत पैदा करेगा।
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कुम्हार ने उसे रूकने के लिए आवाज लगाई। जाट बोला कि बस देख लिया, देख लिया।
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कुम्हार बोला कि अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा आधा मेरा, पर किसी से कहना मत। जाट वापस आया तो उसको धन मिल गया।
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उसके मन में विचार आया कि संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात है। अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करू तो कितना लाभ है।
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ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् के भक्त बन गए।
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तात्पर्य यह है कि हम दृढता से अपना एक उद्देश्य बना ले, नियम ले ले l
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मेरे कान्हा…
मुझे मेरे करमो पर भरोसा नहीं
पर तेरी रहमतो पर भरोसा है
मेरे करमों में कमी रह सकती है
लेकिन तेरी रहमतों में नही..

(

संजय गुप्ता

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😎 अवश्य पढ़िए

एक लघु कथा :नर्क से स्वर्ग की ओर :

जब माता-पिता अपने दिल के टुकड़े को ससुराल के लिए विदा करते हैं ,
तब उनका मन एक तरफ खुशी से भरा रहता है, तो दूसरी तरफ लाडली बिटिया की जुदाई का दर्द भी समाया रहता है ।
एक साल पहले राजेश भैया और मंज भाभी ने भी अपनी प्यारी बिटिया मुस्कान को ससुराल के लिए भारी मन से विदा किया था।
उनका दर्द इसलिए भी ज्यादा था क्योंकि मुस्कान की सगाई के पश्चात पता चला था कि उसके ससुराल में आए दिन कलह होता रहता है।
उनको डर था कि इस कलह में उनकी मुस्कान का चेहरा मुरझा ना जाए ।
इसलिए उन्होंने मुस्कान को पहले से ही सचेत कर दिया था ।
लेकिन मुस्कान तो मुस्कान थी उसने अपने माता-पिता से एक ही वादा करवाया कि आप दोनों हमेशा खुश रहना , मेरी फिक्र मत करना और परमात्मा से हमेशा अच्छे के लिए प्रार्थना करना और विश्वास करना कि सब कुछ अच्छा ही होगा ।
राजेश और मंजू के पास कोई दूसरा चारा भी नहीं था इसलिए उन्होंने अपनी बिटिया से एक सच्चा वादा किया कि हम खुश रहेंगे और हमेशा तुम्हारे और तुम्हारे परिवार की खुशी के लिए ऊपर वाले से प्रार्थना करेंगे और हमेशा खुशी ही महसूस करेंगे ।
आज मुस्कान की शादी को एक वर्ष हो गया है। और मुस्कान के ससुराल वालों ने एक बड़ा समारोह रखा जिसमें मुस्कान के भी सभी रिश्तेदारों को और फ्रेंड्स को विशेष रूप से इनवाइट किया गया ।
हैप्पी एनिवर्सरी का कार्यक्रम एक विशेष प्रयोजन को ध्यान में रखकर रखा गया था ।
कार्यक्रम के प्रारंभ में मुस्कान के ससुर जी आदरणीय श्री संतोष कुमार जी मैं अपने विचार कुछ इस प्रकार रखें
“मेरे प्रिय रिश्तेदार भाइयों और बहनों एवं प्रिय मित्रों आज का दिन मेरे लिए परम सौभाग्य का दिन है क्योंकि आज के दिन मेरे घर में एक ऐसी देवी का प्रवेश हुआ था जिसने हमारी घर को नर्क से स्वर्ग में बदल दिया हे।
मैं अपनी बहु रानी की आज खुले दिल से आप सब के सामने भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए गर्व महसूस करता हूं ,कि यह मेरी बहू नहीं बल्कि मेरी सबसे प्यारी बेटी भी है ।
आप सबको विदित ही होगा कि हमारे घर में कितना कलह था लेकिन इस प्यारी बिटिया के आने के बाद हमारे घर में मुस्कान लौट आई, खुशियां लौट आई और यह सब जादू मुस्कान ने कैसे किया मैं भी नहीं जानता हूं ।
इसलिए मैं मुस्कान को स्टेज पर आमंत्रित करता हूं कि वह यहां पर आए और यह राज हम सब को भी बताएं कि नर्क को स्वर्ग में कैसे बदला जा सकता है।
मेरी आप सभी महानुभावों से भी विनती है कि आप मेरी प्यारी बिटिया मुस्कान के विचार अवश्य जाने ताकि आप भी इस धरती को स्वर्ग बनाने में मदद कर सकें।”

मुस्कान ने अपनी बात कुछ इस प्रकार प्रारंभ की-

“सबसे पहले , मेरे प्यारे गुरु जी के चरणो में शत-शत वंदन जिन्होंने मुझे यह अनुपम ज्ञान दिया है। और जिस ज्ञान के कारण यह चमत्कारिक परिवर्तन आया है ।

इसलिए इस चमत्कार का सारा श्रेय उस ज्ञान को जाता है , मुझको नहीं ।

मेरे पूज्य वरिष्ठजन एवं प्रिय साथी गण एवं प्यारे बच्चों अब मैं आपको अपने गुरु जी का बस संदेश बताने जा रही हूं जो संदेश उन्होंने मुझको अपने घर को छोड़ने के वक्त दिया था। ”

“उस संदेश को मैं कुछ बिंदुओं में प्रस्तुत कर रही हूं ।
आपका अधिक समय ना लेते हुए ही केवल बिंदु ही दे रही हूं आशा है आप इन बिंदुओं को भलीभांति समझ जाएंगे।
1,अपने मन को हमेशा सकारात्मक विचारों से भरा रखें और सकारात्मक परिवर्तन को अपनी कल्पना में परिवर्तित होते हुए या साकार होते हुए अवश्य देखें।
2, आपके पुराने नकारात्मक विचार बहुत जल्दी आपका पीछा नहीं छोड़ेंगे
ऐसे में इस बात को विशेष रूप से ध्यान में रखिए कि
यह नकारात्मक विचार जैसे ही हमारे मन-मस्तिष्क में आते हैं हमें व्यथित और दुखी कर देते हैं ।
यदि हम इन विचारों से भरे रहेंगे तो हमारी क्या हालत होगी जरा सोच कर तो देखिए।
3, कभी भी किसी भी व्यक्ति को हीना दृष्टि से ना देखें
सब को उचित सम्मान दें ।
मन में सबके प्रति सद्भावना रखें और उनके उज्जवल भविष्य की हमेशा मंगल कामना करें।
4, यदि किसी ने आपके साथ अप्रिय व्यवहार भी किया है तब आप उसके साथ और अधिक प्यार से और प्रेम से पेश आए क्योंकि ऐसे लोगों को प्यार और प्रेम की बहुत आवश्यकता होती है।
5, सबके साथ में नेकी करें नेकी का कमाया हुआ ही खाएं ।
अनीति का पैसा कभी भी उपयोग में ना लाएं।
6, मन को इतना प्यार और प्रेम से भर कर रखें कि कभी किसी पर क्रोध ना आए।”
आदरणीय मेरे वरिष्ठजनों यह सब विचार मेरे गुरुजी ने मुझको दिए थे और उनको मैंने भली-भांति जीवन में अपनाने की कोशिश करें और इन विचारों के अपनाने के चमत्कारिक परिणाम आप सबके सामने हैं।
जैसे ही बहु रानी मंच से नीचे उतरी मुस्कान की सासू मां शांति देवी स्टेज पर आई और उसने अपनी बहु रानी को गले से लगा लिया और भाव विभोर होकर रो पड़ी।
फिर उसने अपने आप को संभाला और अपनी बात कुछ इस प्रकार रखी–

“मेरी प्यारी बिटिया मुस्कान ने जो बातें आप को बताई है वह सौ प्रतिशत सच है मेरा बेटा गैर- लाइन था ।
हमने उसको सुधारने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं सुधरा और आए दिन घर में कलह होता था ।
मेरा नाम शांति है लेकिन मुझ में शांति का नामोनिशान नहीं था मेरे स्वामी का नाम आपको पता ही है संतोष जी है लेकिन संतोष नहीं था हमारी बहू रानी के आने के बाद हमारी विचारधारा जादुई रूप से बदलने लगी । उसकी वजह है मुस्कान ने हमें खूब सम्मान दिया हालांकि आरंभ में हमने उसका अपमान भी किया उसके साथ बुरा व्यवहार भी किया लेकिन उसने अपना जादुई स्वभाव कभी नहीं बदला। आज हमें उसके स्वभाव पर गर्व है और हमें अपने व्यवहार पर पछतावा है।
हमारा क्रोधी स्वभाव धीरे धीरे छूमंतर होता चला गया हमें तो पता भी ना चला ।
इसलिए मैं आप सब से हाथ जोड़कर निवेदन करती हूं कि मेरी बहु रानी ने जो बातें बताई आप उन सब बातों पर अमल अवश्य करें और अपना घर स्वर्ग से सुंदर बनाएं।
इधर यह सब बातें चल रही थी और उधर मुस्कान अपने माता-पिता से लिपटकर प्यार के आंसू बहा रही थी ।
आज के दिन मुस्कान के माता-पिता भी खुशी के आंसू आंखों में लिए हुए थे। उन्हें भी अपनी बिटिया पर नाज था।
कहानी का सार यह है कि हम जिसमें हमारे मन और मस्तिष्क में नकारात्मक विचारों को जगह देते हैं और वे वहां पनपते हैं और कुछ समय पश्चात उसके दुष्परिणाम हम भुगतते हैं।

इसलिए हमेशा सकारात्मक सोच रखें उसी में कल्याण है ।

भगवान बुद्ध ने ठीक ही कहा था

“हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बन जाते हैं।”

संजय गुप्ता

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जरूर पढ़े. ====पुराण की कथा.

देवों ने क्यों ली थी हनुमानजी की परीक्षा.

माता सीता की खोज में विभिन्न दिशाओं में वानर वीरों की टोली निकली. दक्षिण दिशा का प्रदेश वानरों के लिए सर्वाधिक अपिरिचित था. इसलिए उस दिशा में राजकुमार अंगद के नेतृत्व में हनुमानजी,जाम्वन्तजी, नल-नील आदि वीरों की टोली निकली.इस टोली को एक स्थान पर जटायु के भाई गिद्धराज संपाति दिख गए. संपाति और वानरसेना के बीच वार्तालाप का प्रसंग अद्भुत है. इसे पहले भी सुना चुका हूं पर हनुमानभक्तों को इसमें इतना रस आता है कि वे बार-बार अनुरोध करते हैं.संपाति के प्रसंग को आगे सुनाउंगा अभी देवताओं द्वारा हनुमानजी की परीक्षा के प्रसंग को ही बढ़ाते हैं.संपाति ने बताया कि रावण देवी सीता को सुमद्र पार स्थित लंका ले गया है. रावण की माया और उसकी शक्तियों के बारे में संपाति को जितना पता था सब उन्होंने बता दिया.संपाति ने लंका की दिशा और रावण के महल की जानकारी भी दी. पर लंकापुरी तो वहां से 100 योजन दूर थी सुमद्र के पार थी.वानर वीर इस बात को लेकर चिंता करने लगे कि ऐसे विशाल समुद्र को आखिर लांघा कैसे जाए! बिना इसे पार किए लंका पहुंचना संभवनहीं.जब तक स्वयं माता सीता के लंका में देखकरआश्वस्त न हो लें तब तक कैसे प्रभु श्रीराम को इस पर चढ़ाई के लिए कह सकते हैं.अंगद सभी वीरों से उनकी छलांग लगाने की क्षमता की पूछताछ करने लग

नल ने कहा कि वह 30 योजन तक की छलांग लगा सकते हैं. नील 50 योजन तक की छलांग लगानेमें समर्थ थे. रीक्षराज जामवंतजी ने बताया कि वह 90 योजन तक की छलांग लगा सकते हैं.अंगद ने कहा- मैं 100 योजन तक छलांग लगाकर समुद्र पार तो कर लूंगा, लेकिन लौटपाऊंगा कि नहीं, इसमें संशय है. बिना लौटे तो बात बनने वाली नहीं थी.सब अपनी छलांग के सामर्थ्य पर बात कर रहेथे पर पवनपुत्र चुप रह गए. वह कुछ बोले हीनहीं. सबने उनकी ओर देखा.जामवंतजी को याद आ गया कि हनुमानजी तो शापित हैं. उन्हें उनकी क्षमता तो तभी याद आएगी जब इसका स्मरण कराया जाए.जामवंतजी बोले- का चुपि साध रहा बलवाना. हनुमानजी आप पवनसुत हैं. पवनदेव की गति से उड़़ सकते हैं. आपके लिए संसार में कुछ भी असंभ ही नहीं.जामवंत हनुमानजी को उनके पराक्रम का स्मरण कराने लगे. जामवंत बोले- हनुमानजीआपने बचपन में छलांग लगाकर आकाश में स्थित सूर्य को पकड़ लिया था, फिर 100 योजन का समुद्र क्या है?यह समुद्र तो आपके लिए बिलकुल वैसा ही जैसे कोई बालक अपनी कंदुक यानि गेंद को हवा में उछालने के बाद तपककर पकड़ ले. ऐसे अनेर समुद्र लांघ जाना आपके लिए बालसुलभ क्रीडा है.

जामवंतजी द्वारा अपनी शक्तियों का स्मरण कराए जाने के बाद हनुमानजी सभी वीरों के साथ अभिवादन का आदान-प्रदान करके प्रभु श्रीराम का नाम लेकर रामकाज के लिए समुद्र लांघने के उड़ चले.उन्हें पवन वेग से लंका की ओर बढ़ता देख देवताओं ने सोचा कि यह रावण जैसे बलशाली की नगरी में जा रहे हैं. रावण शक्तिशाली होने के साथ-साथ बड़ा मायावी भी है.वहां शक्ति के साथ बुद्धि कौशल की भी आवश्यकता होगी इसलिए हनुमानजी बल-बुद्धि की विशेष परीक्षा करनी आवश्यक है.देवगण समुद्र में निवास करने वाली नागोंकी माता सुरसा के पास गए. सुरसा उनकी भी माता जैसी ही थीं कि नाग और देवगण कश्यप की ही संतान हैं.उन्होंने माता सुरसा से विनती कि आप बजरंग बली के बल-बुद्धि की परीक्षा लें. सुरसा ने रामकाज में अपना योगदान देने के लिए इसे सहर्ष स्वीकार लिया.वह हनुमानजी की परीक्षा लेने के लिए चल पड़ी. उन्होंने राक्षसी का रूप धारण किया और हनुमानजी के सामने जा खड़ी हुई.सुरसा ने हनुमानजी से कहा- सागर के इस भाग से जो भी जीव गुजरे मैं उसे खा सकती हूं. देवताओं ने मेरे आहार की ऐसी ही व्यवस्था की है.

आज देवताओं ने मेरे आहार के रूप में तुम्हें भेजा है. तुम्हारे जैसे बलिष्ठ और विशाल जीव को भेजा है. आज तो भरपेट आहार मिला है. मैं तुम्हें खा जाउंगी.ऐसा कहकर सुरसा ने हनुमानजी को दबोचना चाहा.हनुमानजी ने कहा-माता! इस समय मैं श्रीराम के कार्य से जा रहा हूँ. कार्य पूरा करके मुझे लौट आने दो. उसके बाद मैं स्वयं ही आकर तुम्हारे मुँह में समा जाऊंगा.हनुमानजी ने सुरसा से बहुत विनती की लेकिन वह मानने को तैयार न थी. हनुमान ने अपना आकार कई सौ गुना बढ़ाकर सुरसा से कहा- लो मुझे अपना आहार बनाओ.सुरसा ने भी अपना मुंह खोला तो वह हनुमानजी के आकार से बड़ा हो गया. हनुमानजी जितना आकार बढ़ाते, सुरसा उससेबड़ा मुंह कर लेती.हनुमानजी समझ गए कि ऐसे तो बात नहीं बननेवाली. उन्होंने अचानक अपना आकार बहुत छोटा किया और सुरसा के मुँह में प्रवेश करके तुरंत बाहर आ गए.सुरसा बजरंगबली की इस चतुराई से प्रसन्नहो गई. वह अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुईं और हनुमानजी को आशीर्वाद देकर उनकीसफलता की कामना की.

समुद्र ने रामभक्त को बिना विश्राम लगातार उड़ते देखा तो उसने अपने भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से कहा कि थोड़ी देर के लिए ऊपर उठ जाए ताकि उसकी चोटी पर बैठकर हनुमानजी थकान दूर कर लें.समुद्र के आदेश से प्रसन्न मैनाक रामभक्त की सेवा का पुण्य कमाने के लिए हनुमानजी के पास गया अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम का निवेदन किया.हनुमानजी मैनाक से बोले-श्रीराम का कार्य पूरा किए बिना विश्राम करने का कोई प्रश्र ही नहीं उठता. उन्होंने मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम किया और आगेचल दिए.लंका पहुंचते ही हनुमानजी का सामना लंकाकी रक्षक लंकिनी से हुआ. सुंदरकांड के येसब प्रसंग भक्ति रस से सराबोर हैं.सुंदरकांड में हनुमानजी की अपरिमित शक्तियों का वर्णण है और वे प्रभु के संकटमोचक बनते हैं.कहते हैं जिस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में सुंदरकांड का एक बार भी पाठ न किया हो उसे तब तक मुक्ति नहीं मिलती जब तक वह इसे सुन न ले.

जय श्री राम
जय श्री हनुमानज

संजय गुप्ता

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चित्रकूट, मध्य प्रदेश

यदि आप प्रभु राम के कर कमलों द्वारा पावन किये गए स्थलों के विषय में चर्चा करते हैं, तो बिना चित्रकूट का उल्लेख किये, आपकी चर्चा पूर्ण नहीं हो सकती।

श्री राम जी के वनवास का एक मुख्य भाग मध्य प्रदेश के चित्रकूट के जंगलों में था। चित्रकूट के पावन अरण्यों में ही रामायण के अनेकों व्यंग हुए हैं। भरत मिलाप, श्री राम एवं पवन पुत्र हनुमान का प्रथम मिलन, माता अनुसुइया का शिला से पुनः स्त्री का रूप धारण करना जैसी अनेको कथाएँ चित्रकूट के ही जंगलों से ही जुड़ी हुई हैं।

रामघाट : –
यह घाट मंदाकिनी नदी के किनारे है। माना जाता है कि वनवास के समय में श्री राम, श्री लक्ष्मण और माता सीता इसी घाट पर मन्दाकिनी नदी में नहाया करते थे। इसी घाट पर श्री राम ने संत तुलसीदास को अपने दर्शन दिए थे।

कामदगिरि:-
कामदगिरि ही चित्रकूट का असली जंगल है, जहाँ कई मंदिर बने हैं। यह एक पर्वतीय गिरी है जहां पर आज भी श्री राम की अनुभूति होती है। प्रभु श्री राम जी यहाँ पर कामदनाथजी के नाम से भी जाने जाते हैं। इस पर्वत की परिक्रमा करने का विधान है, जिसका पथ 5 km लंबा है।

भरत मिलाप:-
भरत मिलाप मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसी जगह पर श्री राम और भरत जी का मिलाप हुआ था। यहां पर प्रभु राम के पद चिन्ह आज भी चट्टान पर मुद्रित दिखाई देते हैं।

सति अनुसुइया आश्रम:-
घने जंगलों के बीच में एक आश्रम है जहाँ ऋषि अत्रि एवं माता अनुसुइया रहते थे। ऋषि वाल्मीकि के अनुसार एक समय में चित्रकूट में कई वर्षों तक वर्षा नहीं हुई और वहाँ पर प्राणियों का हाहाकार मैच हुआ था। तब माता अनुसुइया ने कठोर तपस्या कर के मन्दाकिनी नदी को धरती पर उतार दिया था।

कहा जाता है कि यहीं पर श्री राम और माता सीता ऋषि अत्रि एवं माँ अनुसुइया से मिलने आये थे, और माता अनुसुइया ने माँ सीता को सतीत्व का महत्त्व समझाया था।

दंडक अरण्य के जंगल यही से शुरू होते थे।

स्फटिक शिला:-
कहा जाता है कि जब हनुमान जी माँ सीता की खोज करने लंका गए थे, प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी यहीं पर प्रतीक्षा कर रहे थे ।

गुप्त गोदावरी:-
इस स्थान पर दो गुफाएं हैं, जिनमे से एक में जल धरा बहती है। कहा जाता है की ये धरा गोदावरी की है। कथाओं के अनुसार यहाँ पर श्री राम और लक्ष्मण जी रुके थे, यहाँ पर सिंघासन रुपी दो चट्टान भी हैं।

भरत कूप:-
भरत कूप वह स्थान है जहां भरत जी ने सारे तीर्थ स्थलों से पवित्र जल ला कर रखा था। यहां पर एक कुआ है जिसका पानी सदा स्वच्छ रहता है। कथाओं के अनुसार. जब भरत जी श्री राम को अयोध्या ले जाने के लिए आये थे, तो श्री राम का राज्याभिषेक करने के लिए अपने साथ पांच नदियों का पानी लाये थे । जब प्रभु ने वापस लौटने से मना कर दिया तो भरत जी ने ऋषि वशिष्ठ के कहने पर, एक कूप का निर्माण कर के जल को वहीं रख दिया।

राम शैय्या:-
यह जगह चित्रकूट और भरत कूप के बीच स्थित है। कहा जाता है की इसी जगह पर श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी दिन भर की थकान के बाद शयन किया करते थे। यहां पर पत्थरों पर श्री राम, माँ सीता और लक्ष्मण जी के निशानों को भी देखा जा सकता है।

संजय गुप्ता

Posted in संस्कृत साहित्य

मित्रोआज बुधवार है, आज हम आपको मुम्बई स्थिति सिद्धविनायक (गणेशजी) मंदिर के बारे बतायेगें!!!!!!!

सिद्घिविनायक गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है। गणेश जी जिन प्रतिमाओं की सूड़ दाईं तरह मुड़ी होती है, वे सिद्घपीठ से जुड़ी होती हैं और उनके मंदिर सिद्घिविनायक मंदिर कहलाते हैं। कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं। मान्यता है कि ऐसे गणपति बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं और उतनी ही जल्दी कुपित भी होते हैं।

सिद्धि विनायक की दूसरी विशेषता यह है कि वह चतुर्भुजी विग्रह है। उनके ऊपरी दाएं हाथ में कमल और बाएं हाथ में अंकुश है और नीचे के दाहिने हाथ में मोतियों की माला और बाएं हाथ में मोदक (लड्डुओं) भरा कटोरा है। गणपति के दोनों ओर उनकी दोनो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि मौजूद हैं जो धन, ऐश्वर्य, सफलता और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रतीक है। मस्तक पर अपने पिता शिव के समान एक तीसरा नेत्र और गले में एक सर्प हार के स्थान पर लिपटा है। सिद्धि विनायक का विग्रह ढाई फीट ऊंचा होता है और यह दो फीट चौड़े एक ही काले शिलाखंड से बना होता है।

यूं तो सिद्घिविनायक के भक्त दुनिया के हर कोने में हैं लेकिन महाराष्ट्र में इनके भक्त सबसे ज्यादा हैं। समृद्धि की नगरी मुंबई के प्रभा देवी इलाके का सिद्धिविनायक मंदिर उन गणेश मंदिरों में से एक है, जहां सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि हर धर्म के लोग दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। हालांकि इस मंदिर की न तो महाराष्ट्र के ‘अष्टविनायकों ’ में गिनती होती है और न ही ‘सिद्ध टेक ’ से इसका कोई संबंध है, फिर भी यहां गणपति पूजा का खास महत्व है।

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के सिद्ध टेक के गणपति भी सिद्धिविनायक के नाम से जाने जाते हैं और उनकी गिनती अष्टविनायकों में की जाती है। महाराष्ट्र में गणेश दर्शन के आठ सिद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल हैं, जो अष्टविनायक के नाम से प्रसिद्ध हैं। लेकिन अष्टविनायकों से अलग होते हुए भी इसकी महत्ता किसी सिद्ध-पीठ से कम नहीं।

आमतौर पर भक्तगण बाईं तरफ मुड़ी सूड़ वाली गणेश प्रतिमा की ही प्रतिष्ठापना और पूजा-अर्चना किया करते हैं। कहने का तात्पर्य है कि दाहिनी ओर मुड़ी गणेश प्रतिमाएं सिद्ध पीठ की होती हैं और मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में गणेश जी की जो प्रतिमा है, वह दाईं ओर मुड़े सूड़ वाली है। यानी यह मंदिर भी सिद्ध पीठ है।

किंवदंती है कि इस मंदिर का निर्माण संवत् १६९२ में हुआ था। मगर सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक इस मंदिर का १९ नवंबर १८०१ में पहली बार निर्माण हुआ था। सिद्धि विनायक का यह पहला मंदिर बहुत छोटा था। पिछले दो दशकों में इस मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण हो चुका है। हाल ही में एक दशक पहले १९९१ में महाराष्ट्र सरकार ने इस मंदिर के भव्य निर्माण के लिए २० हजार वर्गफीट की जमीन प्रदान की।

वर्तमान में सिद्धि विनायक मंदिर की इमारत पांच मंजिला है और यहां प्रवचन ग्रह, गणेश संग्रहालय व गणेश विद्यापीठ के अलावा दूसरी मंजिल पर अस्पताल भी है, जहां रोगियों की मुफ्त चिकित्सा की जाती है। इसी मंजिल पर रसोईघर है, जहां से एक लिफ्ट सीधे गर्भग्रह में आती है। पुजारी गणपति के लिए निर्मित प्रसाद व लड्डू इसी रास्ते से लाते हैं।

नवनिर्मित मंदिर के ‘गभारा ’ यानी गर्भग्रह को इस तरह बनाया गया है ताकि अधिक से अधिक भक्त गणपति का सभामंडप से सीधे दर्शन कर सकें। पहले मंजिल की गैलरियां भी इस तरह बनाई गई हैं कि भक्त वहां से भी सीधे दर्शन कर सकते हैं। अष्टभुजी गर्भग्रह तकरीबन १० फीट चौड़ा और १३ फीट ऊंचा है। गर्भग्रह के चबूतरे पर स्वर्ण शिखर वाला चांदी का सुंदर मंडप है, जिसमें सिद्धि विनायक विराजते हैं। गर्भग्रह में भक्तों के जाने के लिए तीन दरवाजे हैं, जिन पर अष्टविनायक, अष्टलक्ष्मी और दशावतार की आकृतियां चित्रित हैं।

वैसे भी सिद्धिविनायक मंदिर में हर बुधवार को भारी संख्या में भक्तगण गणपति बप्पा के दर्शन कर अपनी अभिलाषा पूरी करते हैं। बुधवार को यहां इतनी भीड़ होती है कि लाइन में चार-पांच घंटे खड़े होने के बाद दर्शन हो पाते हैं। हर साल गणपति पूजा महोत्सव यहां भाद्रपद की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक विशेष समारोह पूर्वक मनाया जाता है।

संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

बहुत सुन्दर मेसेज……….

महाभारत का युद्ध चल रहा था।
अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण थे।

जैसे ही अर्जुन का बाण छूटता,
कर्ण का रथ दूर तक पीछे चला जाता।

जब कर्ण का बाण छूटता,
तो अर्जुन का रथ सात कदम पीछे चला जाता।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन की प्रशंसा के स्थान पर
कर्ण के लिए हर बार कहा…
कितना वीर है यह कर्ण?

जो उनके रथ को सात कदम पीछे धकेल देता है।

अर्जुन बड़े परेशान हुए।
असमंजस की स्थिति में पूछ बैठे…

हे वासुदेव! यह पक्षपात क्यों?
मेरे पराक्रम की आप प्रशंसा नहीं करते…
एवं मात्र सात कदम पीछे धकेल देने वाले कर्ण को बारम्बार वाहवाही देते है।

श्रीकृष्ण बोले-अर्जुन तुम जानते नहीं…

तुम्हारे रथ में महावीर हनुमान…
एवं स्वयं मैं वासुदेव कृष्ण विराजमान् हैं।

यदि हम दोनों न होते…
तो तुम्हारे रथ का अभी अस्तित्व भी नहीं होता।

इस रथ को सात कदम भी पीछे हटा देना कर्ण के महाबली होने का परिचायक हैं।

अर्जुन को यह सुनकर अपनी क्षुद्रता पर ग्लानि हुई।

इस तथ्य को अर्जुन और भी अच्छी तरह तब समझ पाए जब युद्ध समाप्त हुआ।

प्रत्येक दिन अर्जुन जब युद्ध से लौटते…
श्रीकृष्ण पहले उतरते,
फिर सारथी धर्म के नाते अर्जुन को उतारते।

अंतिम दिन वे बोले-अर्जुन…
तुम पहले उतरो रथ से व थोड़ी दूर जाओ।

भगवान के उतरते ही रथ भस्म हो गया।

अर्जुन आश्चर्यचकित थे।
भगवान बोले-पार्थ…
तुम्हारा रथ तो कब का भस्म हो चुका था।

भीष्म,

कृपाचार्य,

द्रोणाचार्य

कर्ण के

दिव्यास्त्रों से यह नष्ट हो चुका था।
मेरे संकल्प ने इसे युद्ध समापन तक जीवित रखा था।

अपनी श्रेष्ठता के मद में चूर अर्जुन का अभिमान चूर-चूर हो गया था।

अपना सर्वस्व त्यागकर वे प्रभू के चरणों पर नतमस्तक हो गए।
अभिमान का व्यर्थ बोझ उतारकर हल्का महसूस कर रहे थे…

गीता श्रवण के बाद इससे बढ़कर और क्या उपदेश हो सकता था कि सब भगवान का किया हुआ है।
हम तो निमित्त मात्र है।
काश हमारे अंदर का अर्जुन इसे समझ पायें।
💐👏

घमंड जीवनमें कष्ट ही देता है। 🎈……..
अभिमान छोडो लेकिन स्वाभिमान के लिए लडते रहो…..
जय हो🙏