Posted in संस्कृत साहित्य

शायद
बहुत कम लोग
जानते होंगे की
प्रसाद का अर्थ
क्या होता है !!

            🏀🏀🏀
       🏀प्र - प्रभु  के🏀
      🏀सा - साक्षात्🏀
        🏀द - दर्शन🏀
              🏀🏀

हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है
और कोई भी अक्षर वैसा क्यूँ है
उसके पीछे कुछ कारण है ,
अंग्रेजी भाषा में ये
बात देखने में नहीं आती |


क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय
ध्वनि
कंठ से निकलती है।
एक बार बोल कर देखिये |

च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के
समय जीभ
तालू से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |

ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के
मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।
एक बार बोल कर देखिये |

त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के
समय
जीभ दांतों से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |

प, फ, ब, भ, म,- ओष्ठ्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के
मिलने
पर ही होता है। एक बार बोल
कर देखिये ।


हम अपनी भाषा पर गर्व
करते हैं ये सही है परन्तु लोगो को
इसका कारण भी बताईये |
इतनी वैज्ञानिकता
दुनिया की किसी भाषा मे
नही है
जय हिन्द
क,ख,ग क्या कहता है जरा गौर करें….
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क – क्लेश मत करो
ख- खराब मत करो
ग- गर्व ना करो
घ- घमण्ड मत करो
च- चिँता मत करो
छ- छल-कपट मत करो
ज- जवाबदारी निभाओ
झ- झूठ मत बोलो
ट- टिप्पणी मत करो
ठ- ठगो मत
ड- डरपोक मत बनो
ढ- ढोंग ना करो
त- तैश मे मत रहो
थ- थको मत
द- दिलदार बनो
ध- धोखा मत करो
न- नम्र बनो
प- पाप मत करो
फ- फालतू काम मत करो
ब- बिगाङ मत करो
भ- भावुक बनो
म- मधुर बनो
य- यशश्वी बनो
र- रोओ मत
ल- लोभ मत करो
व- वैर मत करो
श- शत्रुता मत करो
ष- षटकोण की तरह स्थिर रहो
स- सच बोलो

ह- हँसमुख रहो
क्ष- क्षमा करो
त्र- त्रास मत करो
ज्ञ- ज्ञानी बनो !!

कृपया इस ज्ञान की जानकारी सभी को अग्रेषित करें ।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक पेट्रोल पंप पर एक महिला अपनी कार में
पेट्रोल भरवा रही थी। उसी समय एक व्यक्ति
ने अपने को पेंटर बताते हुए परिचय दिया तथा
अपना विजिटिंग कार्ड उस महिला को
दिया और कहा की कभी आवश्यकता हो तो
बुला सकती है।
उस महिला ने बिना कुछ सोचे वो कार्ड पकड़
लिया तथा अपनी कार में बैठ गई।
तब वो आदमी भी एक दूसरी कार में बैठ गया
जो की कोई और व्यक्ति चला रहा था।
जैसे ही वो महिला पेट्रोल पंप से चली, उसने
देखा की वो आदमी भी उसी समय उसके पीछे
पेट्रोल पंप से निकला। फिर अचानक उस
महिला को अचानक चक्कर से आने लगे और
साँस लेने में तकलीफ होने लगी। उसे कुछ गंध सी
आने लगी तो उसने अपनी कार की खिड़की
खोलने की कोशिश की तब उसे ये अहसास हुआ
की वो गंध उसके हाथ से ही आ रही है जिस
हाथ से उसने वो कार्ड पकड़ा था।
तभी उसने नोटिस किया की वो आदमी
अपनी कार में ठीक उसके पीछे था। तो उसने
सोचा की उसको कुछ करना चाहिए तो उसने
सर्विस लेन में अपनी कार ले जाकर रोक कर
अपने हॉर्न को जोर जोर से बजाना शुरू कर
दिया। जिससे रस्ते से गुजरने वाले राहगीर
उसकी गाड़ी के पास आने लगे। ये देख कर जो
कार उस महिला के पीछे लगी थी वह से चली
गयी। उसके बाद उस महिला को अपने आप को
सुध में लाने का वक्त मिल गया।
इस घटना का जिक्र करने की वजह है आपको
एक ड्रग जोकि burundanga कहलाती है के
असर से परिचित करना। आप इसके बारे में नेट पर
इनफार्मेशन पा सकते है। ये ड्रग किसी को कुछ
समय के लिए बेसुध कर सकती है। इस प्रकार उस
दौरान उस व्यक्ति से कीमती सामान चुराया
जा सकता है या महिला की इज़्ज़त पर हमला
हो सकता है।
ये ड्रग प्रचलित डेट रेप ड्रग से चार गुना ज्यादा
खतरनाक है।ये ड्रग किसी कार्ड पर भी लगाई
जा सकती है।
अतः आप सब कभी भी अनजान व्यक्ति से कोई
कार्ड न ले। विशेषतः जब आप के पास नकदी
या बहुमूल्य वस्तु हो। साथ साथ कृपया सभी
महिला परिजनों को इस ड्रग के बारे में बताये
तथा उन्हें भी किसी अपरिचित व्यक्ति से
कार्ड विशेषतः जब वो अकेली हो न लेने को
सलाह दे।
उन महिलाओ को अवश्य सावधान करे जो
गृहणी है और घर पर अकेली होती है और दिन
भर में कई घर पर आने वाले सेल्समैन को मिलती
है। वो भी उनके दिए हुए किसी कार्ड को
सावधानी बरतते हुए न ले।
ऐसी घटना कही भी हो सकती है। सावधानी
में ही समझदारी है।

कृपया शेयर अवश्य करें। आपके एक शेयर से कोई और भी सावधान हो सकता है। धन्यवाद।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

(((( नियम का महत्व ))))
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एक संत थे। एक दिन वे एक जाट के घर गए। जाट ने उनकी बड़ी सेवा की। सन्त ने उसे कहा कि रोजाना नाम -जप करने का कुछ नियम ले लो।
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जाट ने कहा बाबा, हमारे को वक्त नहीं मिलता। सन्त ने कहा कि अच्छा, रोजाना ठाकुर जी की मूर्ति के दर्शन कर आया करो।
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जाट ने कहा मैं तो खेत में रहता हूं और ठाकुर जी की मूर्ति गांव के मंदिर में है, कैसे करूँ ?
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संत ने उसे कई साधन बताये, कि वह कुछ -न-कुछ नियम ले लें। पर वह यही कहता रहा कि मेरे से यह बनेगा नहीं, मैं खेत में काम करू या माला लेकर जप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ है ?
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बाल -बच्चों का पालन पोषण करना है। आपके जैसे बाबा जी थोड़े ही हूँ। कि बैठकर भजन करूँ।
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संत ने कहा कि अच्छा तू क्या कर सकता है ? जाट बोला कि पड़ोस में एक कुम्हार रहता है। उसके साथ मेरी मित्रता है। उसके और मेरे खेत भी पास -पास है।
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और घर भी पास -पास है। रोजाना एक बार उसको देख लिया करूगाँ। सन्त ने कहा कि ठीक है। उसको देखे बिना भोजन मत करना।
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जाट ने स्वीकार कर लिया। जब उसकी पत्नी कहती कि भोजन कर लो। तो वह चट बाड़ पर चढ़कर कुम्हार को देख लेता। और भोजन कर लेता।
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इस नियम में वह पक्का रहा। एक दिन जाट को खेत में जल्दी जाना था। इसलिए भोजन जल्दी तैयार कर लिया।
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उसने बाड़ पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं। पूछने पर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है। जाट बोला कि कहां मर गया, कम से कम देख तो लेता।
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अब जाट उसको देखने के लिए तेजी से भागा। उधर कुम्हार को मिट्टी खोदते -खोदते एक हाँडी मिल गई। जिसमें तरह -तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थी।
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उसके मन में आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायेगी। अतः वह देखने के लिए ऊपर चढा तो सामने वह जाट आ गया।
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कुम्हार को देखते ही जाट वापस भागा। तो कुम्हार ने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली। और अब वह आफत पैदा करेगा।
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कुम्हार ने उसे रूकने के लिए आवाज लगाई। जाट बोला कि बस देख लिया, देख लिया।
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कुम्हार बोला कि अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा आधा मेरा, पर किसी से कहना मत। जाट वापस आया तो उसको धन मिल गया।
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उसके मन में विचार आया कि संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात है। अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करू तो कितना लाभ है।
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ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् के भक्त बन गए।
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तात्पर्य यह है कि हम दृढता से अपना एक उद्देश्य बना ले, नियम ले ले l
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मेरे कान्हा…
मुझे मेरे करमो पर भरोसा नहीं
पर तेरी रहमतो पर भरोसा है
मेरे करमों में कमी रह सकती है
लेकिन तेरी रहमतों में नही..
संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

भगवान शिव द्वारा राम जन्मोत्सव के समय रामलला के दर्शन की कथा,,,,

जिस समय भगवान राम का जन्म हुआ तो चारों और उत्सव मनाया जा रहा है। भगवान शिव भी भगवान राम के बाल रूप का दर्शन करने गए थे। वही कथा पार्वती माँ को सुना रहे है।

भगवान शिव कहते हैं पार्वती जिस समय भगवान का अवतरण हुआ था उस समय मुझसे रहा नही गया। मैं अपने मन को रोक नही पाया और तुरंत अवधपुरी पहुंच गया। मेरी चोरी ये थी की मैंने तुमको नही बताया। भगवान ये कहना चाह रहे हैं की जब भगवान का बुलावा आये तो किसी का इंतजार मत करना। और एक मानव रूप धारण कर लिया।

पार्वती बोली की आप महादेव हो। और मानव बनकर क्यों गए?

भगवान शिव बोले हैं की जब महादेव के देव भी मानव बनकर आ सकते हैं तो मैं मानव ना बनूँ तो ये कैसे हो सकता हैं?

जैसे ही अयोध्या में पहुंचा हुईं बहुत भीड़ लगी हुई हैं। भोलेनाथ बहुत प्रयास कर रहे हैं राम जी के दर्शन करने का। लेकिन नही जा पा रहे हैं। शिव ने थोड़ी ताकत लगाई हैं। और थोड़ा धक्का दिया हैं। जैसे ही शिव ने धक्का दिया हैं तो अंदर से ऐसा धक्का आया हैं की भोले नाथ दूर जाकर मंदिर के एक शिवलिंग के पास टकराकर गिर गए हैं।

भोलेनाथ बोले की ये लो, हो गए दर्शन। राम के तो हुए नही पर मेरे खुद के हो गए।

भोलेनाथ ने सोचा की ऐसी भीड़ में दर्शन कैसे हो? तब भोलेनाथ को याद आई मेरा एक चेला हैं वो दिखाई नही दे रहा हैं। यहीं कहीं ही होगा। वो चेला हैं काकभुशुण्डि जी महाराज। सोच रहे हैं की भगवान का दर्शन करने जरूर आये होंगे। जैसे ही भोलेनाथ ने इन्हे याद किया हैं तो काकभुशुण्डि जी तुरंत आ गए हैं। क्योंकि कौवे के रूप में हैं।

भोलेनाथ को कहते हैं महादेव कैसे बुलाया हैं। जल्दी बताइये।

भोलेनाथ बोले की जल्दी बताऊ। पर क्यू? कहाँ जाना हैं?

काकभुशुण्डि जी बोले की तुम्हारे पीछे उत्सव छोड़ कर आया हूँ।

शिव जी बोले की तुम कहाँ थे?

उसने कहा की प्रभु मैं तो अंदर ही था। दशरथ जी खूब लूटा रहे हैं। बड़ा आनंद हो रहा हैं।

भगवान शिव बोले की बढ़िया हैं। मानव को तो भीड़ के कारण रोक सकते हैं पर कौवे को कौन रोकेगा। वाह! चेला आनंद ले रहा हैं और गुरु यहाँ बैठा हैं।

भोलेबाबा कहते हैं की चेला जी कोई युक्ति बताइये, हमे भी दर्शन करवाइये।

काकभुशुण्डि जी ने कहा की महाराज चलो कोई युक्ति बनाते हैं।

काकभुशुण्डि ने भी मानव रूप धारण कर लिया। बहुत बार प्रयास किया हैं लेकिन इन्हे अंदर नही जाने दिया। अब जब काफी समय हुआ तो भगवान राम ने भी रोना शुरू कर दिया। इनके मन में भी भोले बाबा के दर्शन करने की तड़प जाग गई हैं। अब राम जी दुःख में तड़प कर रो रहे हैं। और जब ये पीड़ा भरी पुकार मैया के कानों में गई हैं तो कौसल्या जी बिलख पड़ी हैं। की मेरे लाल को आज क्या हो गया हैं। इधर भोले बाबा ने भी पूरा नाटक किया है। भोले बाबा एक 80 साल के ज्योतिष बन गए हैं। गोस्वामी जी ने गीतावली में इस भाव को बताया हैं।

और स्वयं ज्योतिषी बन कर काकभुशुण्डि जी को अपना शिष्य बना लिया है और सरयू जी के किनारे बैठ गए है। जितने भी लोग रस्ते से आ-जा रहे है भगवान शिव सबके हाथ देख रहे है। और भविष्यवाणी कर रहे हैं। अब अवधपुरी में चर्चा शुरू हो गई हैं कोई बहुत बड़ा ज्योतिषी आ गया हैं। गोस्वामी जी कह रहे हैं। अवध आजु आगमी एकु आयो।

जब भगवान राम ने रोना शुरू किया हैं तो माँ बहुत परेशान हैं। गुरु वशिष्ठ जी को खबर की गई हैं। लेकिन वशिष्ठ जी व्यस्त हैं। इतने में एक नौकर आकर बोला की मैया,” मुझे खबर मिली हैं की एक बहुत बड़ा ज्योतिषी अवध पूरी में आया हैं। आपकी आज्ञा हो तो उसे बुला लाऊँ।”

माँ तो परेशान थी। मैया ने कहा- की जाओ और जल्दी बुला कर लाओ। बस मेरे लाल का रोना बंद हो जाये।

दौड़े दौड़े सेवक गए हैं । भोले बाबा सरयू नदी के किनारे बैठे हुए हैं। नौकरों ने कहा की आप ही वो ज्योतिषी हैं जिसकी चर्चा हर जगह फैली हुई हैं।

भोले बाबा बोले तुम लोग कहाँ से आये हो?

वो बोले की हम राजभवन से आये हैं।

ये सुनते ही भोले नाथ का रोम-रोम पुलकित हो गया हैं। समझ गए हैं की मेरे राम ने ही इन्हे भिजवाया हैं।

भगवान शिव बोले की क्या करना हैं बोलो?

वो सेवक बोले की महाराज जल्दी चलिए, सुबह से लाला आज बहुत रो रहे हैं। रानी ने आपको बुलाया हैं।

भोले नाथ जैसे ही चलने लगे तो काकभुशुण्डि जी कुरता पकड़ लिया हैं। की महाराज मैं भी तो आपके साथ में हूँ। मुझे भी साथ लेके चलो।

भोले नाथ बोले की तुमने दर्शन तो कर लिए हैं। तुम जाकर क्या करोगे?

काकभुशुण्डि जी कहते हैं की मैंने दर्शन तो किया हैं पर स्पर्श नही किया हैं प्रभु का। यदि तुम स्पर्श करवाओगे तो ठीक नही हैं नही तो अभी पोल खोलता हूँ तुम्हारी। जितनी भी कृपा होगी उस पर हमे भी तो मिलनी चाहिए।

भोले नाथ बोले की ठीक हैं आपको भी दर्शन करवा देते हैं पर आप पोल मत खोलना।

जब राजभवन पर पहुंचे हैं तो पहरेदारों ने रोक लिया हैं। हाँ भैया कौन हो और कहाँ जा रहे हो?

नौकर बोले की इन्हे रानी ने बुलाया हैं। ये ज्योतिषी हैं। इन्हे अंदर जाने दो।

अब भोले बाबा राजभवन में अंदर प्रवेश करने लगे हैं पर काकभुशुण्डि जी को रोक लिया हैं। पहरेदार बोले ठीक हैं ये ज्योतिषी हैं तो अंदर जा रहे हैं पर ये साथ में कौन हैं जो अंदर चला जा रहा हैं। इनके अंदर जाने का क्या काम? दशरथ जी का आदेश हैं की किसी अनजान को अंदर नही आने देना हैं।

भोले बाबा मुस्कुरा कर अंदर जाने लगे हैं तभी काकभुशुण्डि बोले की प्रभु साथ लेके जाओ नही तो पोल खोलता हूँ अभी।

भोले बाबा बोले की ठीक हैं मैं कुछ करता हूँ। भोले बाबा कहते हैं की भैया बात ऐसी हैं। मैंने 80 साल का बूढ़ा हो गया हूँ। ज्योतिषी तो पक्का हूँ पर आँखों से कम दिखाई देता हैं। ये मेरे चेला हैं। इनके बिना मेरा काम चलेगा।

बूढ़ो बड़ो प्रमानिक ब्राह्मन सङ्कर नाम सुहायो | सँग सिसुसिष्य, सुनत कौसल्या भीतर भवन बुलायो ||

पहरेदार बोले की जब आपको दिखाई ही नही देता हैं तो आप ऐसा करो तुम मत जाओ, चेले को ही भेज दो। तुम बाहर ही रहो।

अब काकभुशुण्डि जी तुरंत प्रसन्न हो गए हैं।और कहते हैं ठीक बात हैं गुरूजी बाहर ही बैठेंगे इन्हे अंदर ले जाने की जरुरत नही हैं।

भोले नाथ बोले की बेटा, गुरूजी बाहर और चेला अंदर। वाह बेटा!

भोले नाथ ने कहा की ये देखना तो अच्छा जानते हैं लेकिन फल बताना तो मैं ही जनता हूँ। हाथ ये देखते हैं और भविष्य में बताता हूँ। पहरेदारों ने कहा की इन दोनों को अंदर जाने दो।

सबसे पहले माँ आई हैं और इनको प्रणाम करती हैं। माँ कहती हैं की हमने सुना हैं की आप ज्योतिषी हैं। बोले- हाँ मैया हम ज्योतिषी हैं।

माँ कहती हैं हमे ज्योतिषी की जरुरत तो हैं नही। पर हमारा लाला सुबह से रो रहा हैं। कुछ झाड़-फूँक करना जानते हो, नजर उतारना जानते हो, भूत प्रेत उतारना जानते हो ,तो मैं कुछ करूँ।

भोले नाथ बोले की मैया मेरा असली काम तो वही हैं। झाड़-फूंक ही करता हूँ। ये ज्योतिषी वाला तो मेरा साइड बिज़नेस हैं। आप लाला को लेकर आ जाइये। अब माँ राम जी को लेकर आई हैं। गोदी में भगवान श्री राम लेते हुए हैं और माँ ने अपने पल्लू से राम जी को ढक रखा हैं।

मैया बोली की करो महाराज अब जो आपको अपना झाड़-फूँक करना हैं।

भोले नाथ बोले की मैया- इतनी दूर से कुछ नही होगा। ना तो तू मुँह दिखा रही। ना तू स्पर्श करवा रही। बिना मुँह देखा और बिना स्पर्श करे मैं कुछ नही कर सकता हूँ। मुझे एक एक अंग देखना पड़ेगा की नजर कहाँ लगी हैं। नाक को लगी हैं या आँख को लगी हैं।

मैया बोली की दूर से कुछ नही होगा?

भोले नाथ बोले-मैया दूर से कुछ भी नही होगा।

आज मैया ने अपनी साडी का पल्लू उठा लिया और जो राम जी अब तक रो रहे थे भगवान शिव को देख कर खिलखिलाकर मुस्कुराने लगे हैं।

मैया बोली-महाराज आप तो कमाल के ब्राह्मण हो। आपने सिर्फ लाला को देखा ही हैं और लाला का रोना बंद कर दिया हैं।

भगवान शिव बोले की मैया अभी तो नजर पड़ी हैं और रोना बंद हो गया हैं अगर तू गोदी में दे दे तो हमेशा के लिए आनंद आ जाये।

अब मैया ने तुरंत राम जी को लेकर भोले नाथ की गोदी में दे दिया हैं। जैसे ही भगवान, भगवान शिव की गोदी में आये हैं। मानो साक्षात शिव और राम का मिलान हो गया हैं। भगवान शिव की नेत्रों से आंसू बहने लगे हैं। अब तक जिस बाल छवि का मन में दर्शन करते थे आज साक्षात दर्शन हो गए हैं। भोले नाथ कभी हाथ पकड़ते हैं, कभी गाल छूते हैं और माथा सहलाते हैं।

भगवान राम भी टुकुर-टुकुर अपनी आँखों से शिव जी को देख रहे हैं। जब थोड़ी देर हो गई तो काकभुशुण्डि जी ने पीछे से कुरता पकड़ा हैं। और कहते हैं हमारा हिस्सा भी तो दीजिये। आपने आनंद ले लिया हैं तो मुझे पर भी कृपा करो।

अब भगवान शिव जब राम को काकभुशुण्डि की गोद में देने लगे तो मैया ने रोक दिया हैं। की इनकी गोद में लाला को क्यों दे रहे हो?

भगवान शिव बोले की मैया मैं बूढ़ा हो गया हूँ ये मेरे चेला हैं। ये हाथ देखेंगे और मैं भविष्य बताऊंगा।

काकभुशुण्डि जी की गोद में लाला को दे दिया हैं। अब काकभुशुण्डि जी भी भगवान का दर्शन पा रहे हैं। और भोले नाथ ने भगवान का सारा भविष्य बताया हैं। सब बता दिया हैं की आपके लाला कोई साधारण लाला नही होंगे आपका लाला का जग में बहुत नाम होगा। आपके लाला के नाम से ही लोग भव सागर तर जायेंगे।

मैया बोली की ये सब ठीक हैं पर ये बताओ की लाला की शादी कब होगी?

भोले नाथ बोले की इतना बता सकते हैं आगे चलकर आप थोड़ा ध्यान रखना। एक बूढ़े बाबा आपके लाला को आपसे मांगने के लिए आएंगे। और जब वो मांगने आये तो तुम तुरंत दिलवा देना। मना मत करवाना। क्योंकि आपके लाला उनके साथ चले जायेंगे तो वहां से बहू लेकर ही आएंगे।

कौसल्या जी बोली की आप चिंता मत करो महाराज ये बात मेरे दिमाग में नोट हो गई हैं। मैं इसे हमेशा याद रखूंगी। इस प्रकार भोले बाबा ने सब बताया हैं।

मैया ने बोला की आपने बड़ी कृपा की हैं मेरे लाला का रोना बंद करवा दिया हैं। मेरे लाला का भविष्य बता दिया हैं। अब मेरे लाला को आशीर्वाद भी दे दीजिये।

भगवान शिव ने खूब आशीर्वाद दिया हैं। हे राम! आप जुग-जुग जियो। सबको आनंदित करो। इस प्रकार से भोले नाथ बड़ी मस्ती में राम जी को आशीर्वाद देके अपने धाम पधारते है।

भोले नाथ जी ने ये भी कहा है की इस चरित्र को सब लोग नही जान सकते। बस जिस पर राम की कृपा होगी वो ही लोग इस चरित्र को जान सकते है।पार्वती जी कहती है महाराज हम पर राम जी की कृपा बनी हुई है तभी हम ये सब जान पाये है।

बोलिए शंकर पार्वती जी की जय !! बाल रूप श्री राम की जय !!

संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

गुलाब सखी का चबूतरा


“गुलाब सखी का चबूतरा”
“बरसाना”
बरसाने की पीली पोखर से प्रेम सरोवर जाने वाले रास्ते से कुछ हटकर वन प्रांत में एक पुराना चबूतरा है। लोग उसे गुलाब सखी का चबूतरा कहते हैं और आते-जाते उस पर माथा टेकते हैं।
आइये जानते है क्या है इस चबूतरे की कथा।
गुलाब एक एक निर्धन व्यक्ति का नाम था । बरसाने की पवित्र धरती पर उसका जन्म हुआ । ब्रह्मा आदि जिस रज की कामना करते हैं उसका उसे जन्म से ही स्पर्श हुआ था। पढ़ा लिखा कुछ नहीं था पर सांरगी अच्छी बजा लेता था। श्री राधा रानी के मंदिर के प्रांगण में जब भी पदगान हुआ करता था उसमें वह सांरगी बजाया करता था। यही उसकी अजीविका थी। मंदिर से जो प्रशाद और दान दक्षिणा प्राप्त होती उसी से वो अपना जीवन र्निवाह करता था ।
उसकी एक छोटी लड़की थी । जब गुलाब मंदिर में सारंगी बजाता तो लड़की नृत्य करती थी । उस लड़की के नृत्य में एक आकर्षण था, एक प्रकार का खिंचाव था।उसका नृत्य देखने के लिए लोग स्तंभ की भांति खड़े हो जाते। गुलाब अपनी बेटी से वह बहुत प्यार करता था, उसने बड़े प्रेम से उसका नाम रखा राधा।
वह दिन आते देर न लगी जब लोग उससे कहने लगे, “गुलाब लड़की बड़ी हो गई है। अब उसका विवाह कर दे।”
राधा केवल गुलाब की बेटी न थी वह पूरे बरसाने की बेटी थी। सभी उससे प्यार करते और उसके प्रति भरपूर स्नेह रखते। जब भी कोई गुलाब से उसकी शादी करवाने को कहता उसका एक ही उत्तर होता,” शादी करूं कैसे? शादी के लिए तो पैसे चाहिए न? ”
एक दिन श्री जी के मंदिर के कुछ गोस्वामियों ने कहा, ” गुलाब तू पैसों की क्यों चिन्ता करता है? उसकी व्यवस्था श्री जी करेंगी। तू लड़का तो देख? ”
जल्दी ही अच्छा लड़का मिल गया। श्री जी ने कृपा करी पूरे बरसाने ने गुलाब को उसकी बेटी के विवाह में सहायता करी, धन की कोई कमी न रही, गुलाब का भण्डार भर गया, राधा का विवाह बहुत धूम-धाम से हुआ। राधा प्रसन्नता पूर्वक अपनी ससुराल विदा हो गई।
क्योंकि गुलाब अपनी बेटी से बहुत प्रेम करता था और उसके जीवन का वह एक मात्र सहारा थी, अतः राधा की विदाई से उसका जीवन पूरी तरहा से सूना हो गया। राधा के विदा होते ही गुलाब गुमसुम सा हो गया। तीन दिन और तीन रात तक श्री जी के मंदिर में सिंहद्वार पर गुमसुम बैठा रहा। लोगो ने उसको समझने का बहुत प्रेस किया किन्तु वह सुध-बुध खोय ऐसे ही बैठा रहा, न कुछ खाता था, ना पीटा था बस हर पल राधा-राधा ही रटता रहता था। चौथे दिन जब वह श्री जी के मंदिर में सिंहद्वार पर गुमसुम बैठा था तो सहसा उसके कानों में एक आवाज आई, ” बाबा ! बाबा ! मैं आ गई। सारंगी नहीं बजाओगे मैं नाचूंगी।”
उस समय वह सो रहा था या जाग रहा था कहना कठिन था। मुंदी हुई आंखों से वह सांरगी बजाने लगा और राधा नाचने लगी मगर आज उसकी पायलों में मन प्राणों को हर लेने वाला आकर्षण था। इस झंकार ने उसकी अन्तरात्मा तक को झकझोर दिया था। उसके तन और मन की आंखे खुल गई। उसने देखा उसकी बेटी राधा नहीं बल्कि स्वयं राधारानी हैं, जो नृत्य कर रही हैं।
सजल और विस्फरित नेत्रों से बोला, बेटी! बेटी! और जैसे ही कुछ कहने की चेष्टा करते हुए स्नेह से कांपते और डगमगाते हुए वह उनकी अग्रसर ओर हुआ राधा रानी मंदिर की और भागीं। गुलाब उनके पीछे-पीछे भागा ।
इस घटना के पश्चात गुलाब को कभी किसी ने नहीं देखा। उसके अदृश्य होने की बात एक पहेली बन कर रह गई। कई दिनों तक जब गुलाब का कोई पता नहीं चला तो सभी ने उसको मृत मान लिया। सभी लोग बहुत दुखी थे, गोसाइयों ने उसकी स्मृति में एक चबूतरे का निर्माण करवाया।
कुछ दिनों के पश्चात मंदिर के गोस्वामी जी शयन आरती कर अपने घर लौट रहे थे। तभी झुरमुट से आवाज आई,” गोसाई जी! गोसाई जी! ”
गोसाई जी ने पूछा, ” कौन?”
गुलाब झुरमुट से निकलते हुए बोला, ” मैं आपका गुलाब। ”
गोसाई जी बोले, “तू तो मर गया था। ”
गुलाब बोला, ” मुझे श्री जी ने अपने परिकर में ले लिया है। अभी राधा रानी को सांरगी सुना कर आ रहा हूं। देखिए राधा रानी ने प्रशाद के रूप में मुझे पान की बीड़ी दी है। गोस्वामी जी उसके हाथ में पान की बीड़ी देखकर चकित रह गए क्योंकि यह बीड़ी वही थी जो वह राधा रानी के लिए अभी-अभी भोग में रखकर आ रहे थे। ”
गोसाई जी ने पूछा,”तो तू अब रहता कहां है?”
उसने उस चबूतरे की तरफ इशारा किया जो वहां के गोसाइयों ने उसकी स्मृति में बनवाया था।
तभी से वह चबूतरा “गुलाब सखी का चबूतरा” के नाम से प्रसिद्द हो गया और लोगो की श्रद्धा का केंद्र बन गया।
राधा राधा रटते ही भव बाधा मिट जाए।
कोटि जन्म की आपदा श्रीराधे नाम से जाए।।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा सब की उपर बरसता रहे ।
श्री राधाकृष्ण शरणम ममः

संजय गुप्ता

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!! सतसंग की महिमा!!


 सत्संग बड़ा है या तप?
    ****

एक बार महर्षि वशिष्ठजी और विश्वामित्रजी में बहस छिड़ गयी की सत्संग की महिमा बड़ी है या तप की महिमा। वशिष्ठजी का कहना था सत्संग की महिमा बड़ी है। तथा विश्वामित्रजी का कहना था कि तप
का महात्म्य बड़ा है।

जब फैसला न हो सका तो दोनों विष्णु भगवान के पास पहुंचे और अपनी अपनी बात कही। विष्णु भगवान ने सोचा की दोनों ही महर्षि है,और दोनों ही अपनी-अपनी बात पर अड़े है।

श्री हरि ने कहा कि इसका सही उत्तर तो एक लिंगनाथजी ही दे सकते है। अतः दोनों कैलाश पर शंकर भगवान के पास पहुंचे। शंकरजी के सामने भी यही समस्या आई। उन्होंने कहा कि मेरे मस्तक पर इस समय जटाजूट का भार है, अतः मैं सही निर्णय नहीं कर पाउँगा। आप भगवान शेषनाग के पास जाये वो ही सही फैसला कर सकेंगे।

दोनों महर्षि शेषनाग के पास पहुंचे और अपनी बात उनसे कही। शेषनागजी ने कहा कि ऋषिवर! मेरे सिर पर धरती का भार है। आप थोड़ी देर के लिए मेरे सिर से धरती को हटा दे तो में फैसला कर दूँ।

विश्वामित्रजी ने कहा कि धरती माता! तुम शेषनागजी के सर से थोड़ी देर के लिए अलग हो जाओ, मैं अपने तप का चौथाई फल आपको देता हूँ। पृथ्वी में कोई हलचल नहीं हुई तो फिर उन्होंने कहा कि तप का आधा फल समर्पित करता हूँ।

इतना कहने पर भी धरती हिली तक नहीं। अंत में उन्होंने कहा कि में अपने सम्पूर्ण जीवन के तप का फल तुम्हे देता हूँ। धरती थोड़ी हिली, हलचल हुई फिर स्थिर हो गयी।

अब वशिष्ठजी की बारी आई। उन्होंने कहा कि धरती माता! अपने सत्संग का निमिष मात्र फल देता हूँ, तुम शेषनाग के मस्तक से हट जाओ।

धरती हिली, गर्जन हुआ और वो सर से उतरकर अलग खड़ी हो गई, शेषनागजी ने ऋषियों से कहा कि आप लोग स्वयं ही फेसला करले
कि सत्संग बड़ा है या तप।
आगे-
इसलिये कहा गया है –
“जिसको जीवन मे मिला सत्संग है,
उसे हर घडी आनन्द ही आनन्द है।”
( प्रेम भूषण जी महाराज)
✍🍀💕

संजय गुप्ता

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कल्याण- 40
(भक्त चरितांक)
भक्त वेंकट
°°°°°°°°°°

        दक्षिण में पुलिवेंदला के समीप पापघ्नी नदी के किनारे पर एक छोटे से गाँव में वेंकट नामक एक ब्राह्मण निवास करता था। ब्राह्मण भगवान श्री रंगनाथ जी का बड़ा भक्त था। वह दिन-रात भगवान के पवित्र नाम का जप करता।ब्राह्मण की पत्नी का नाम था रमाया । वह भी पति की भाँति ही भगवान का भजन किया करती थी। माता-पिता मर गये थे, कोई संतान थी नहीं,  इसलिए घर में ब्राह्मण-ब्राह्मणी दो ही व्यक्ति थे। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था।
      पिता राजपुरोहित थे, इससे उन्हें अपने यजमानों से यथेष्ट धन संपत्ति मिली थी। उन्होंने मरते समय कहा था --'बेटा! मेरी पूजा के कमरे से दक्षिण वाली कोठरी में सात कलसे सोने की मोहरों के गड़े हैं। मैंने बड़े परिश्रम से धन कमाया । मुझे दुख है कि मैं अपने जीवन में इसका सदुपयोग न कर सका। बेटा! धन की तीन गतियाँ होती हैं। सबसे उत्तम गति यह है कि अपने हाथों ही उसे सत्कर्म के द्वारा भगवान की सेवा में  लगा दिया जाय। यदि भगवान की कृपा से पुत्र सत्त्वगुणी होता है तो मरने के बाद धन सत्कार्य में लग जाता है;  नहीं तो, वही धन कुपुत्र के द्वारा बुरे काम में लगकर पीढियों तक को नरक पहुँचाने में कारण बनता है। बेटा ! तू सुपूत है-- इससे मुझे विश्वास है कि तू धन का दुरुपयोग नहीं करेगा। मैं चाहता हूं कि इस सारे धन को तू भगवान की सेवा में लगाकर मुझे शान्ति दे। बेटा!  धन तभी अच्छा है जब कि उससे भगवत्स्वरूप दुखी प्राणियों की सेवा होती है। केवल इसीलिए धनवानों को 'भाग्यवान्' कहा जाता है । नहीं तो धन के समान बुरी चीज नहीं है । धन में एक नशा होता है जो मनुष्य के विवेक को हर लेता है और नाना प्रकार से अनर्थ उत्पन्न करके उसे अपराधों के गड़हे में गिरा देता है । भगवान श्री कृष्ण ने भक्त राज उद्धव जी से कहा है----

स्तेयं हिंसानृतं दम्भः कामः क्रोधः स्मयो मदः ।
भेदो वैरमविश्वासः संस्पर्धा व्यसनानि च।।
एते पंचदशानर्था ह्यर्थमूला मता नृणाम्।
तस्मादनर्थमर्थाख्यं श्रेयोऽर्थी दूरस्त्यजेत्।।

     'चोरी, हिंसा,  झूठ बोलना, पाखण्ड,  काम, क्रोध,  गर्व, मद, ऊँच-नीच की और अपने पराये की भेद बुद्धि,  वैर, अविश्वास,  होड़,  लम्पटता,  जुआ और शराब-- इन पंद्रह अनर्थों की जड़ मनुष्य में यह अर्थ (धन) ही माना गया है।इसलिए अपना कल्याण चाहने वाले पुरुष को चाहिए कि इस 'अर्थ ' नामधारी 'अनर्थ' को दूर से ही त्याग दे।'

      'बेटा! मैं इस बात को जानता था, इसी से मैंने तुझको आजतक इस धन की बात नहीं बतायी। मैं चाहता था कि इसे अपने हाथ से भगवान की सेवा में लगा दूं; परंतु संयोग ऐसे बनते गये कि मेरी इच्छा पूरी न हो सकी। मेरे प्यारे वेंकट!  संसार में सभी पिता अपने पुत्र के लिए धन कमाकर छोड़ जाना चाहते हैं, परंतु मैं ऐसा नहीं चाहता। बेटा! मुझे प्रत्यक्ष दीखता है कि धन से मनुष्य में दुर्बुद्धि उत्पन्न होती है । इससे मैं तुझे अर्थ का धनी न देखकर भजन का धनी देखना चाहता हूँ ।इसीलिए तुझसे यह कहता हूँ कि इस सारे धन को तू भगवान की सेवा में लगा देना। तेरे निर्वाह के लिए घर में जो पैतृक सम्पत्ति है- - जमीन है, खेत है और थोड़ी बहुत यजमानी है,  वही काफी है । जीवन को सादा, संयमी और त्याग से सम्पन्न रखना , सदा सत्य का सेवन करना और करना श्री रंगनाथ भगवान का भजन। इसी से तू कृतार्थ हो जायगा और इसी से तू पुरखों को तारने वाला बनेगा। बेटा ! मेरी इस अन्तिम सीख को याद रखना।'
     वेंकट अपने पिता से भी बढ़कर विवेकी था। उसने कहा-'पिता जी! आपकी इस सीख का एक एक अक्षर अनमोल है । सच्चे हितैषी पिता के विना ऐसी सीख कौन दे सकता है? मुझे यह धन  न देकर आपने मेरा बड़ा उपकार किया है ।मैं आपकी आज्ञा को सिर चढ़ाता हूँ और आपके संतोष के लिए धन की ओर ध्यान देकर इसे शीघ्र ही भगवान की सेवा में लगा दूंगा । अब आप इस धन का ध्यान छोड़कर भगवान श्री रंगनाथ जी का ध्यान कीजिए और शान्ति के साथ उनके परमधाम को पधारिये ।मेरी माता ने मुझे जैसा आशीर्वाद दिया था , वैसे ही आप भी यह आशीर्वाद अवश्य देते जाइये कि मैं कभी भगवान को भूलूं नहीं - मेरा जीवन भगवत्परायण रहे और आपकी यह पुत्रवधू भी  भगवान की सेवा में ही संलग्न रहकर अपने जीवन को सफल करे।'
      पिता ने 'तथास्तु' कहकर भगवान में ध्यान लगाया और भगवान के नाम की ध्वनि करते करते ही उनका मस्तक फट गया। वेंकट और रमाया ने देखा---एक उजली सी ज्योति मस्तक से निकलकर आकाश में लीन हो गयी।
      वेंकट ने पिता का संस्कार किया, फिर श्राद्ध में समुचित ब्राह्मण भोजनादि करवाकर पिता के आज्ञानुसार स्वर्ण मुहरों के घड़ों को निकाला और तमाम धनराशि गरीबों की सेवा के द्वारा भगवत्सेवा में लगा दी गई ।
       तब से वेंकट और रमाया की निष्ठा और भी दृढ़ हो गई । उन्होंने अपना सारा जीवन साधनामय बना डाला।दोनों एक ही भगवत्पथ पर चलते थे और दोनों से ही दोनों को बल मिलता था।
       एक दिन दोनों ही भगवान के प्रेम में तन्मय होकर उनको अपने सामने मानकर-अन्तर के नेत्रों से देखकर नाच रहे थे और मस्त होकर कीर्तन कर रहे थे। भगवान यों तो प्रतिक्षण भक्तों के समीप रहते हैं पर आज तो वे वहाँ प्रत्यक्ष प्रकट हो गए और उन्हीं के साथ थिरक थिरककर नाचने लगे। भक्त भगवान पर मुग्ध थे और भगवान भक्तों पर। पता नहीं - यह आनन्द का नाच कितने समय तक चलता रहा। भगवान की इच्छा से जब वेंकट-रमाया को बाह्य ज्ञान हुआ तब उन्होंने देखा, दोनों का एक एक हाथ एक एक हाथ से पकड़े अपने भगवान श्री रंगनाथ दोनों के बीच में खड़े मन्द मन्द मुस्करा रहे हैं । भगवान को प्रत्यक्ष देखकर दोनों निहाल हो गए । आनन्द का पार नहीं था। उनके शरीर प्रेमावेश से शिथिल हो गये । दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। भगवान ने उठाकर दोनों के मस्तक अपनी दोनों जांघों पर रख लिये और उन पर वे अपने कोमल करकमल फिराने लगे। इतने में दिव्य विमान लेकर पार्षदगण पहुँच गए । भगवान अपने उन दोनों भक्तों सहित विमान पर सवार होकर वैकुण्ठ पधार गये। कहना नहीं होगा कि भगवान के संस्पर्श से दोनों के शरीर पहले ही चिन्मय दिव्य हो गये थे।

संजय गुप्ता

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(((बाँके बिहारी जी का प्रेम)))

एक बार मैं ट्रेन से आ रहा था मेरी साथ वाली सीट पे एक वृद्ध औरत बैठी थी जो लगातार रो रही थी…

मैंने बार बार पूछा मईया क्या हुआ, मईया क्या हुआ …

बड़ी मिनतो के बाद मईया ने एक लिफाफा मेरे हाथ मे रख दिया…

मैंने लिफाफा खोल कर देखा उसमे चार पेड़े, 200 रूपये और इत्र से सनी एक कपड़े की कातर थी …

मैंने मईया से पूछा, मईया ये क्या है…

मईया बोली मैं वृंदावन बिहारी जी के मंदिर गई थी, मैंने गुलक में 200 रूपये डाले और दर्शन के लिऐ आगे बिहारी जी के पास चली गई …

वहाँ गोस्वामी जी ने मेरे हाथ मे एक पेड़ा रख दिया, मेने गोस्वामी जी को कहा मुझे दो पेड़े दे दो पर गोस्वामी जी ने मना कर दिया..

मैंने उससे गुस्से मे कहा मैंने 200 रूपये डाले है मुझे पेड़े भी दो चाहिए पर गोस्वामी जी नहीं माने …

मैंने गुस्से मे वो एक पेड़ा भी उन्हे वापिस दे दिया और बिहारी जी को कोसते हुए बाहर आ कर बैठ गई …

मैं जैसे ही बाहर आई तभी एक बालक मेरे पास आया और बोला मईया मेरा प्रसाद पकड़ लो मेने जूते पहनने है…

वो मुझे प्रसाद पकड़ा कर खुद जूते पहनने लगा और फिर हाथ धोने चला गया …

फिर वो नही आया .. मै पागलो की तरह उसका इंतजार करती रही …

काफी देर के बाद मैंने उस लिफाफे को खोल कर देखा …

उसमें 200 रूपये, चार पेड़े और एक कागज़ पर लिख रखा था (मईया अपने लाला से नाराज ना होया करो) ये ही वो लिफाफा है …


तरस गये बांके बिहारी जी आपके दीदार को,
दिल फिर भी आपका ही इंतज़ार करता है,
हमसे अच्छा तो आपकी चौखट का वो परदा है,
जो हर रोज़ आपका दीदार तो करता है।।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~

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((((( वृन्दावन और स्वर्ग )))))

हमारे वृन्दावन के सामने तो स्वर्ग भी हल्का रह गया. द्वापर में जब एक बार वरुण देव नन्द बाबा को उठा ले गए थे, तो प्रभु उन्हें वापिस लाने के लिए वरुण लोक में पधारे थे. जब प्रभु अपने ग्वाल बालों के पास आये तो उन्हें लगा कि कन्हैया ने अपने बाबा को कोई दिव्य लोक को दर्शन करायो है और वो जिद करने लगे कि कन्हैया तू हमें अपने गोलोक को दर्शन करा. ठाकुर जी ने उन्हें समझाया कि जो वृन्दावन के वासी हैं वो गोलोक नहियो जाते क्यूंकि वृन्दावन तो गोलोक से भी श्रेष्ठ है पर ग्वाल बल नहीं माने. तो प्रभु ने उन्हें आंख बंद करने को कहा और आंख बंद करते ही वो सब एक दिव्य धाम में पहुच गए जिसका एक बहुत बड़ा प्रवेश द्वार है और वहां बड़े बड़े भक्तो कि सवारी निकल रही है. वो सारे गोप उस दरवाज़े के अंदर घुसे और अपने कन्हैया के महल को ढूँढने लगे. जब वो चल रहे थे तो पीछे से गोलोक का एक मंत्री आया और जोर से चिल्लाया, “ग्वालों सावधान”. वो सारे बालक डर गए. पूछा “बाबा, का भयो, हमसे कोई भूल है गयी है”. तो वो मंत्री बोला कि “अरे ग्वालों तुम्हे चलना नहीं आता, यह बैकुंठ है, यहाँ केवल नाचते हुए चलने का नियम है”. ग्वाल बाल सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे कि ये अच्छा गोलोक है. तभी एक ग्वाल पीछे से बोला, “हम नाच के तो चल लेंगे पर आप नेक ये बता दो कि हमारो कन्हैया कहाँ हैं”. वो मंत्री फ़िर चिल्लाया कि अरे ग्वालों तुम्हे तो बोलना भी नहीं आता. यहाँ तो केवल गाते हुए बोलना होता है. अब सारे बालक घबरा गए कि भैया ये क्या मुसीबत है. अगर बोलने को मन होए, तो पहले तबला ढोलक को इंतजाम करो, तब मुह से आवाज़ निकल सकते हैं और इसी घबराहट ने सबने आँख खोल दी और देखा कि उनका कन्हैया उनके सामने खड़ा है और वो वापिस अपने ब्रज में पधार चुके हैं. तो सब ग्वाल बालों ने भागवत में कहा है कि स्वर्ग से भी अच्छा तो हमारा वृन्दावन है ।

श्री राधे राधे बोलना तो पडेगा 🙏🙏🙏

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मित्रोआज सोमवार है, भूतभावन भोलेनाथ का प्रियदिन,हमेशा की तरह आज भी इन्ही की महिमा का गुणगान करेगें!!!!!

महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी।
स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः।।
अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन्।
ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः।।

भावार्थ:- पुष्पदंत कहते हैं कि हे प्रभु ! बड़े बड़े विद्वान और योगीजन आपके महिमा को नहीं जान पाये तो मैं तो एक साधारण बालक हूँ, मेरी क्या गिनती? लेकिन क्या आपके महिमा को पूर्णतया जाने बिना आपकी स्तुति नहीं हो सकती? मैं ये नहीं मानता क्योंकि अगर ये सच है तो फिर ब्रह्मा की स्तुति भी व्यर्थ कहलाएगी। मैं तो ये मानता हूँ कि सबको अपनी मति अनुसार स्तुति करने का अधिकार है। इसलिए हे भोलेनाथ! आप कृपया मेरे हृदय के भाव को देखें और मेरी स्तुति का स्वीकार करें।

भगवान् शिवजी पंचदेवों में प्रधान, अनादि सिद्ध परमेश्वर, एवम् निगमागम सभी शास्त्रों में महिमामण्डित महादेव हैं, वेदों ने अव्यक्त, अजन्मा, सबका कारण, विश्वपंच का स्रष्टा, पालक एवम् संहारक कहकर उनका गुणगान किया है, श्रुतियों ने सदा शिवजी को स्वयम्भू, शान्त, प्रपंचातीत, परात्पर, परमतत्त्व, ईश्वरों के भी परम महेश्वर कहकर स्तुति की है, शिव का अर्थ ही है- “कल्याणस्वरूप” और “कल्याणप्रदाता” भगवान् शिवजी देवों के भी देव हैं।

भगवान् शिवजी वैसे तो परिवार के देवता कहे गयें है, लेकिन फिर भी श्मशान में निवास करते हैं, भगवान् शिवजी के सांसारिक होते हुए भी श्मशान में निवास करने के पीछे जीवन मंत्र का एक गूढ़ सूत्र छिपा है, संसार मोह-माया का प्रतीक है जबकि श्मशान वैराग्य का, भगवान् शिवजी कहते हैं कि संसार में रहते हुये अपने कर्तव्य पूरे करो, लेकिन मोह-माया से दूर रहो।

क्योंकि ये संसार तो नश्वर है, एक न एक दिन ये सबकुछ नष्ट होने वाला है, इसलिये संसार में रहते हुए भी किसी से मोह मत रखो और अपने कर्तव्य पूरे करते हुए वैरागी की तरह आचरण करो, शिवजी को संहार का देवता कहा गया है, अर्थात जब मनुष्य अपनी सभी मर्यादाओं को तोड़ने लगता है तब शिवजी उसका संहार कर देते हैं, जिन्हें अपने पाप कर्मों का फल भोगना बचा रहता है वे ही प्रेतयोनि को प्राप्त होते हैं।

चूंकि शिवजी संहार के देवता हैं, इसलिये इनको दंड भी वे ही देते हैं, इसलिये शिवजी को भूत-प्रेतों का देवता भी कहा जाता है, दरअसल यह जो भूत-प्रेत है वह कुछ और नहीं बल्कि सूक्ष्म शरीर का प्रतीक है, भगवान् शिवजी का यह संदेश है कि हर तरह के जीव जिससे सब घृणा करते हैं या भय करते हैं, वे भी शिवजी के समीप पहुंच सकते हैं, केवल शर्त है कि वे अपना सर्वस्व भगवान् शिवजी को समर्पित कर दें।

भगवान् शिवजी जितने रहस्यमयी हैं, उनके वस्त्र व आभूषण भी उतने ही विचित्र हैं, सांसारिक लोग जिनसे दूर भागते हैं, भगवान् शिवजी उसे ही अपने साथ रखते हैं, भगवान शिवजी एकमात्र ऐसे देवता हैं जो गले में नाग धारण करते हैं, देखा जाए तो नाग बहुत ही खतरनाक प्राणी है, लेकिन वह बिना कारण किसी को नहीं काटता, नाग पारिस्थितिक तंत्र का महत्वपूर्ण जीव है, जाने-अंजाने में ये मनुष्यों की सहायता ही करता है।

कुछ लोग डर कर या अपने निजी स्वार्थ के लिए नागों को मार देते हैं, जीवन मंत्र के दृष्टिकोण से देखा जाये तो भगवान् शिवजी नाग को गले में धारण कर ये संदेश देते हैं, कि जीवन चक्र में हर प्राणी का अपना विशेष योगदान है, इसलिये बिना वजह किसी प्राणी की हत्या न करें, त्रिशूल भगवान् शिवजी का प्रमुख अस्त्र है, यदि त्रिशूल का प्रतीक चित्र देखें तो उसमें तीन नुकीले सिरे दिखते हैं, यूं तो यह अस्त्र संहार का प्रतीक है पर वास्तव में यह बहुत ही गूढ़ बात बताता है।

संसार में तीन तरह की प्रवृत्तियां होती हैं- सत, रज और तम, सत मतलब सात्विक, रज मतलब सांसारिक और तम मतलब तामसी अर्थात निशाचरी प्रवृति, हर मनुष्य में ये तीनों प्रवृत्तियां पायीं जाती हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि इनकी मात्रा में अंतर होता है, त्रिशूल के तीन नुकीले सिरे इन तीनों प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, त्रिशूल के माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देते हैं कि इन गुणों पर हमारा पूर्ण नियंत्रण हो, यह त्रिशूल तभी उठाया जाये जब कोई मुश्किल आये, तभी इन तीन गुणों का आवश्यकता अनुसार उपयोग हो।

देवताओं और दानवों द्वारा किये गयें समुद्र मंथन से निकला विष भगवान् शंकरजी ने अपने कंठ में धारण किया था, विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुयें, समुद्र मंथन का अर्थ है? अपने मन को मथना, विचारों का मंथन करना, मन में असंख्य विचार और भावनाएं होती हैं, उन्हें मथ कर निकालना और अच्छे विचारों को अपनाना, हम जब अपने मन को मथेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार ही निकलेंगे।

यही विष हैं, विष बुराइयों का प्रतीक है, शिवजी ने उसे अपने कंठ में धारण किया, उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, शिव का विष पीना हमें यह संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिये, बुराइयों का हर कदम पर सामना करना चाहिये, शिवजी द्वारा विष पीना यह भी सीख देता है कि यदि कोई बुराई पैदा हो रही हो तो हम उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने दें।

भगवान् शंकरजी का वाहन नंदी यानी बैल है, बैल बहुत ही मेहनती जीव होता है, वह शक्तिशाली होने के बावजूद शान्त एवम भोला होता है, वैसे ही भगवान् शिवजी भी परमयोगी एवं शक्तिशाली होते हुये भी परम शान्त एवम् इतने भोले हैं कि उनका एक नाम भोलेनाथ भी जगत में प्रसिद्ध है, भगवान् शंकरजी ने जिस तरह कामदेव को भस्म कर उस पर विजय प्राप्त की थी, उसी तरह उनका वाहन भी कामी नही होता, उसका काम पर पूरा नियंत्रण होता है।

साथ ही नंदी को पुरुषार्थ का भी प्रतीक माना गया है, कड़ी मेहनत करने के बाद भी बैल कभी थकता नहीं, वह लगातार अपने कर्म करते रहता है, इसका अर्थ है कि हमें भी सदैव अपना कर्म करते रहना चाहिये, कर्म करते रहने के कारण जिस तरह नंदी शिवजी को प्रिय है, उसी प्रकार हम भी भगवान् शंकरजी की कृपा पा सकते हैं, भगवान् शिवजी का एक नाम भालचंद्र भी प्रसिद्ध है, भालचंद्र का अर्थ है मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाला।

चंद्रमा का स्वभाव शीतल होता है, चंद्रमा की किरणें भी शीतलता प्रदान करती हैं, जीवन मंत्र के दृष्टिकोण से देखा जाये तो भगवान् शिवजी कहते हैं कि जीवन में कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न आ जाये, दिमाग हमेशा शान्त ही रखना चाहिये, यदि दिमाग शान्त रहेगा तो बड़ी से बड़ी समस्या का हल भी निकल आयेगा, ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है, मन की प्रवृत्ति बहुत चंचल होती है।

भगवान् शिवजी का चंद्रमा को धारण करने का अर्थ है कि मन को सदैव अपने काबू में रखना चाहिये, मन भटकेगा तो लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पायेगी, जिसने मन पर नियंत्रण कर लिया, वह अपने जीवन में कठिन से कठिन लक्ष्य भी आसानी से पा लेता है, धर्म ग्रंथों के अनुसार, सभी देवताओं की दो आंखें हैं, लेकिन एकमात्र शिवजी ही ऐसे देवता हैं जिनकी तीन आंखें हैं, तीन आंखों के कारण भगवान् शिवजी को त्रिनेत्रधारी भी कहते हैं।

जीवन मंत्र की दृष्टि से देखा जाये तो शिवजी का तीसरा नेत्र प्रतीकात्मक है, आंखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में आने वाली मुसीबतों से सावधान करना, जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं, जिन्हें हम समझ नहीं पाते, ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराते हैं, यह विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है, यहीं हमारा तीसरा नेत्र है, बस जरूरत है उसे जगाने की।

हमारे धर्म शास्त्रों में जहां सभी देवी-देवताओं को वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित बताया गया है, वहीं भगवान् शंकरजी को सिर्फ मृग चर्म लपेटे और भस्म लगाये बताया गया है, भस्म शिवजी का प्रमुख वस्त्र भी है, क्योंकि शिवजी का पूरा शरीर ही भस्म से ढंका रहता है, शिवजी का भस्म रमाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक कारण भी हैं, भस्म की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है।

इसका मुख्य गुण है कि इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती, भस्म त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम करती है, भस्मी धारण करने वाले शिवजी यह संदेश भी देते हैं, कि परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना ही मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है, भगवान् शिवजी को भांग-धतूरा मुख्य रूप से चढ़ाया जाता है, ऐसा माना जाता है कि भगवान् को भांग-धतूरा चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं।

भांग व धतूरा नशीले पदार्थ हैं, आमजन इनका सेवन नशे के लिये करते हैं, जीवन मंत्र के अनुसार, भगवान शिव को भांग-धतूरा चढ़ाने का अर्थ है अपनी बुराइयों को भगवान को समर्पित करना, यानी अगर आप किसी प्रकार का नशा करते हैं तो इसे भगवान् को अर्पित करे दें, और भविष्य में कभी भी नशीले पदार्थों का सेवन न करने का संकल्प लें, ऐसा करने से भगवान् की कृपा आप पर बनी रहेगी और जीवन सुखमय होगा।

शिवपुराण और सभी ग्रंथों में भगवान् शिवजी को बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व बताया गया है, तीन पत्तों वाला बिल्व पत्र ही शिवजी के पूजन में उपयुक्त माना गया है, यह भी ध्यान रखना चाहिये कि बिल्वपत्र के तीनों पत्ते कहीं से कटे-फटे न हो, जीवन मंत्र के दृष्टिकोण से देखा जाये तो बिल्व पत्र के ये तीन पत्ते चार पुरुषार्थों में से तीन का प्रतीक हैं- धर्म, अर्थ व काम।

जब आप ये तीनों निस्वार्थ भाव से भगवान् शिवजी को समर्पित कर देते हैं तो चौथा पुरुषार्थ यानी मोक्ष अपने आप ही प्राप्त हो जाता है, शिवपुराण के अनुसार, भगवान् शिवजी कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं, पर्वतों पर आम लोग नहीं आते-जाते, सिद्ध पुरुष ही वहां तक पहुंच पाते हैं, भगवान् शिवजी भी कैलाश पर्वत पर योग में लीन रहते हैं।

जीवन मंत्र की दृष्टि से देखा जाए तो पर्वत प्रतीक है एकान्त व ऊँचाई का, यदि आप किसी प्रकार की सिद्धि पाना चाहते हैं, तो इसके लिये आपको एकांत स्थान पर ही साधना करनी चाहिये, ऐसे स्थान पर साधना करने से आपका मन भटकेगा नहीं और साधना की उच्च अवस्था तक पहुंच जाओगे, भगवान् शिवजी के नाम का स्मरण और पूजा से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, तथा इस जीवन में बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगों का उपभोग करके अन्त में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है।

जय महादेव!
ओऊम् नमः शिवाय्

संजय गुप्ता