Posted in ज्योतिष - Astrology

नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र (Nav Durga Prashnavali yantra) – जानिए इस चक्र से अपने सवालों के जवाब
इस चक्र की उपयोग विधि इस प्रकार है-
जिसे भी अपने सवालों का जवाब या परेशानियों का हल जानना है वो पहले पांच बार ऊँ ऐं ह्लीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का जाप करने के बाद 1 बार इस मंत्र का जाप करें-
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इसके बाद आंखें बंद करके अपना सवाल पूछें और माता दुर्गा का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक (खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक के फलादेश को ही अपने प्रश्न का उत्तर समझें।
1- धन लाभ होगा एवं मान-सम्मान भी मिलेगा।
2- धन हानि अथवा अन्य प्रकार का अनिष्ट होने की आशंका है।
3- अभिन्न मित्र अथवा प्रिय से मिलन होगा, जिससे मन प्रफुल्लित होगा।
4- कोई व्याधि अथवा रोग होने की आशंका है, अत: कार्य अभी टाल देना ही ठीक रहेगा।
5- जो भी कार्य आपने सोचा है, उसमें आपको सफलता मिलेगी, निश्चिंत रहें।
6- कुछ दिन कार्य टाल दें। इसमें किसी से कलह अथवा कहासुनी हो सकती है, जिसके दूरगामी प्रभाव हो सकते है
7- आपका अच्छा समय शुरू हो गया है। शीघ्र ही सुंदर एवं स्वस्थ पुत्र होने के योग हैं। इसके अतिरिक्त आपकी अन्य मनोकामनाएं भी पूर्ण होंगी।
8- विचार पूरी तरह त्याग दें। इस कार्य में मृत्यु तुल्य कष्ट की आशंका है। यहां तक कि मृत्यु भय भी है।
9- समाज अथवा सरकार की दृष्टि में सम्मान बढ़ेगा। आपका सोचा हुआ कार्य अच्छा है।
10- आपको अपेक्षित लाभ प्राप्त होगा, अत: कार्यारंभ कर सकते हैं।
11- आप जिस कार्य के बारे में सोच रहे हैं, उसमें हानि की आशंका है।
12- आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। पुत्र से भी आपको विशेष लाभ मिलेगा।
13- शनिदेव की उपासना करें, कार्य में आ रही बाधाएं दूर होंगी।
14- आपका अच्छा समय शुरू हो गया है। चिंताएं मिटेंगी, सुख-संपत्ति प्राप्त होगी।
15- आर्थिक तंगी के कारण ही आपके घर में सुख-शांति नहीं है। एक माह बाद स्थितियां बदलने लगेंगी, धैर्य एवं संयम रखें।

संजय गुप्ता

Posted in रामायण - Ramayan

मित्रों,,,आज आपको एक ऐसे कथा के बारे में बताने जा रहा हूँ,,जिसका विवरण संसार के किसी भी पुस्तक में आपको नही मिलेगा,, और ये कथा सत प्रतिशत सत्य कथा है,,

कथा का आरंभ तब का है ,, जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ,,की जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा,,उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी,, और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा,,

सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस ( वरदान द्वारा प्राप्त ) पुत्र हैं,,और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है,,

बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था,,उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया,,जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी,,

रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा,,अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था,,और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई,,

अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था,,हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था,, अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था,,

एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था,,और बार बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था- है कोई जो बाली सेयुद्ध करने की हिम्मत रखता हो,,है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो,,जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे,,

इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था,, संयोग वश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी,, राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे,,बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा,,

और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर,, हे ब्रम्ह अंश,, हे राजकुमार बाली,,
( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो,,

हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो,फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो,,अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो,,इससे तुम्हे क्या मिलेगा,,

तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुहे युद्ध मे नही हरा सकता,, क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा,, उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी,,

इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर,,और राम नाम का जाप कर,,इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा,, और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे,,

इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- ए तुच्छ वानर,, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को,,जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है,, और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड खंड हो जाता है,, जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम वाम के,,

और जिस राम की तू बात कर रहा है,वो है कौन, और केवल तू ही जानता है राम के बारे में, मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नही सुना, और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है,,

हनुमान जी ने कहा- प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी है,,उनकी महिमा अपरंपार है, ये वो सागर है जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए,,

बाली- इतना ही महान है राम तो बुला ज़रा,,मैं भी तो देखूं कितना बल है उसकी भुजाओं में,,

बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे,,हनुमान- ए बल के मद में चूर बाली,, तू क्या प्रभु राम को युद्ध मे हराएगा,,
पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा,,

बाली- तब ठीक है कल के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा,, हनुमान जी ने बाली की बात मान ली,,

बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दिया कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा,, अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे,, तभी उनके सामने ब्रम्हा जी प्रकट हुए,,

हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले- हे जगत पिता आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा,,

ब्रम्हा जी बोले- हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान,, मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो,, और युद्ध के लिए न जाओ,

हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु,,बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता,, परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है जिसे मैं सहन नही कर सकता,,और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दिया है,,जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा,,अन्यथा सारी विश्व मे ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नही जाता है क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है,,

तब कुछ सोंच कर ब्रम्हा जी ने कहा- ठीक है हनुमान जी,,
पर आप अपने साथ अपनी समस्त सक्तियों को साथ न लेकर जाएं,,केवल दसवां भाग का बल लेकर जाएं,,
बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दे,,युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें,,

हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले,, उधर बाली नगर के बीच मे एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था,,और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार बार हनुमान जी को ललकार रहा था,,

पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था,,हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे,, बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा,, ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पावँ अखाड़े में रखा,,

उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई,,बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई,,बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे,उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया,बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा,,
उसके शरीर फट कर खून निकलने लगा,,

बाली को कुछ समझ नही आ रहा था,,तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा- पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ,

बाली को इस समय कुछ समझ नही आ रहा रहा,,वो सिर्फ ब्रम्हा जी की बात को सुना और सरपट दौड़ लगा दिया,,सौ मील से ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया,, कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रम्हा जी को देख कर बोला- ये सब क्या है।

हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना,,फिर आपका वहां अचानक आना और ये कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ,मुझे कुछ समझ नही आया,,

ब्रम्हा जी बोले-, पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तममे समा गया, तब तुम्हे कैसा लगा,,बाली- मुझे ऐसा लग जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही है,, ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार मे मेरे तेज़ का सामना कोई नही कर सकता,, पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा,,,

ब्रम्हा जो बोले- हे बाली,मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा,,
पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके,, सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वो तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते,,

इतना सुन कर बाली पसीना पसीना हो गया,,और कुछ देर सोच कर बोला- प्रभु, यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियां है तो वो इसका उपयोग कहाँ करेंगे,,

ब्रम्हा- हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नही कर पाएंगे,,क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नही सह सकती,,

ये सुन कर बाली ने वही हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला,, जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शांत और रामभजन गाते रहते है और एक मैं हूँ जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूँ और उनको ललकार रहा था,,मुझे क्षमा करें,,

और आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और अपने मोक्ष का मार्ग उन्ही से प्राप्त किया,,

तो बोलो,
पवनपुत्र हनुमान की जय,
जय श्री राम जय श्री राम,,

संजय गुप्ता

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श्री रामचरित मानस के सिद्ध ‘मन्त्र’!!!!!

नियम- मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।

अष्टांग हवन सामग्री :- १॰ चन्दन का बुरादा, २॰ तिल, ३॰ शुद्ध घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपूर, ८॰ शुद्ध केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰ पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल।

जानने की बातें-: -जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) १०८ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में ‘स्वाहा’ बोल देना चाहिये।

प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से १०८ आहुति के लिये एक सेर (८० तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध ४ आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।

हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता १०८ की संख्या गिनने के लिये है। बैठने के लिये आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।

मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।

सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार १०८ आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा।

एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम १०८ बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।

कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।

१॰ विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”

२॰ संकट-नाश के लिये
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”

३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”

४॰ विघ्न शांति के लिये
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”

५॰ खेद नाश के लिये
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”

६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”

७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”

८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये.
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”

९॰ विष नाश के लिये.
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”

१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”

११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये

“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”

१२॰ नजर झाड़ने के लिये
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”

१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”

१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”

१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”

१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”

१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’

१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”

१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”

२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।

२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”

२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”

२३॰ मुकदमा जीतने के लिये
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”

२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”

२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”

२६॰ शत्रुतानाश के लिये
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”

२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”

२८॰ विवाह के लिये
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”

२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”

३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”

३१॰ आकर्षण के लिये
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”

३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”

३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।

३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥

३५॰ उत्सव होने के लिये
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”

३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”

३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

३८॰ कातर की रक्षा के लिये
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”

३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥

४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”

४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”

४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
” अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”

४३॰ विरक्ति के लिये
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”

४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”

४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”

४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”

४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”

४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”

४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”

५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”

५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”

(कल्याण से साभार उद्धृत)

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NAR SINH BHAGAT, JAI SHRI KRISHNA

एक बार संत नरसी जी मेहता का बड़ा भाई वंशीधर नरसी जी के घर आया !
पिता जी का वार्षिक श्राद्ध करना था अतः वंशीधर ने नरसी जी से कहा कल पिता जी का वार्षिक श्राद्ध करना है कहीं अड्डेबाजी मत करना बहु को लेकर मेरे यहाँ आ जाना काम-काज में हाथ बटाओगे तो तुम्हारी भाभी को आराम मिलेगा !नरसी जी ने कहा -पूजा पाठ करके ही आ सकूँगा !
इतना सुनना था कि वंशीधर उखड गये और बोले -जिन्दगी भर यही सब करते रहना जिसकी गृहस्थी भिक्षा से चलती है उसकी सहायता की मुझे जरूरत नहीं है तुम पिता जी का श्राद्ध अपने घर पर अपने हिसाब से कर लेना !
नरसी जी ने कहा -नाराज क्यों होते हो भैया ?मेरे पास जो कुछ भी है मैं उसी से श्राद्ध कर लूँगा !दोनों भाईयों के बीच श्राद्ध को लेकर झगडा हो गया है नागर-मंडली को मालूम हो गया !
नरसी अलग से श्राद्ध करेगा यह सुनकर नागर-मंडली ने नरसी जी से बदला लेने की सोची !पुरोहित प्रसन्न राय ने सात सौ ब्राह्मणों को नरसी के यहाँ आयोजित श्राद्ध में आने के लिये आमंत्रित कर दिया !प्रसन्न राय ये जानते थे कि नरसी का परिवार मांगकर भोजन करता है वह क्या सात सौ ब्राह्मणों को भोजन करायेगा ?आमंत्रित ब्राह्मण नाराज होकर जायेंगे और तब उसे जातिच्युत कर दिया जायेगा !कहीं से इस षड्यंत्र का पता नरसी मेहता जी की पत्नी मानिकबाई जी को लग गया वह चिंतित हो उठी !
अगले दिन नरसी जी स्नान के बाद श्राद्ध के लिये उधार में घी लेने बाज़ार गये पर किसी ने उनको घी नहीं दिया !अंत में एक दुकानदार राजी हो गया पर ये शर्त रख दी कि नरसी को भजन सुनाना पड़ेगा बस फिर क्या था मनपसंद काम और उसके बदले घी मिलेगा ये तो आनंद हो गया !नरसी जी भगवान का भजन सुनाने में इतने तल्लीन हो गये कि ध्यान ही नहीं रहा कि घर में श्राद्ध है !
इधर नरसी मेहता जी भजन गाते गये उधर नरसी के रूप में भगवान कृष्ण श्राद्ध कराते रहे अर्थात दुकानदार के यहाँ नरसी जी भजन गा रहे हैं और वहां श्राद्ध कृष्ण भगवान नरसी जी के भेस में करवा रहे है !
वाह प्रभु क्या अद्भुत माया है भक्त के सम्मान की रक्षा को स्वयं भेस धर लिया !
कहते हैं ना कि –
प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर प्रभु को नियम बदलते देखा ;
अपना मान भले टल जाये भक्त मान नहीं टलते देखा !
सात सौ ब्राह्मणों ने छककर भोजन किया दक्षिणा में एक-२ अशर्फी भी प्राप्त की !सात सौ ब्राह्मण आये तो थे नरसी जी का अपमान करने और कहाँ बदले में सुस्वादु भोजन और अशर्फी दक्षिणा के रूप में !दुश्त्मति ब्राह्मण सोचते रहे कि ये नरसी जरूर जादू-टोना जानता है !
इधर दिन ढले घी लेकर नरसी जी जब घर आये तो देखा कि मानिकबाई जी भोजन कर रही है !नरसी जी को इस बात का क्षोभ हुआ कि श्राद्ध क्रिया आरम्भ नहीं हुई और पत्नी भोजन करने बैठ गयी !नरसी जी बोले -वो आने में ज़रा देर हो गयी क्या करता कोई उधार का घी भी नहीं दे रहा था मगर तुम श्राद्ध के पहले ही भोजन क्यों कर रही हो ?
मानिक बाई जी ने कहा -तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ?स्वयं खड़े होकर तुमने श्राद्ध का सारा कार्य किया ब्राह्मणों को भोजन करवाया दक्षिणा दी सब विदा हो गये तुम भी खाना खा लो !
यह बात सुनते ही नरसी जी समझ गये कि उनके इष्ट स्वयं उनका मान रख गये !गरीब के मान को भक्त की लाज को परम प्रेमी करूणामय भगवान् ने बचा ली !
मन भर कर गाते रहे :
कृष्ण जी कृष्ण जी कृष्ण जी कहें तो उठो रे प्राणी ;
कृष्ण जी ना नाम बिना जे बोलो तो मिथ्या रे वाणी !
साधकजनों भक्त के मन में अगर सचमुच समर्पण का भाव हो तो भगवान स्वयं ही उपस्थित हो जाते हैं !
बहुत-2 धन्यवाद
राम राम

संजय गुप्ता

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स्त्री तब तक ‘चरित्रहीन’ नहीं हो सकती….

जब तक पुरुष चरित्रहीन न हो “…… गौतम बुद्ध

संन्यास लेने के बाद गौतम बुद्ध ने अनेक क्षेत्रों की यात्रा की…
एक बार वह एक गांव में गए। वहां एक स्त्री उनके पास आई और
बोली- आप तो कोई “राजकुमार” लगते हैं। …क्या मैं जान सकती हूं
कि इस युवावस्था में गेरुआ वस्त्र पहनने का क्या कारण है ?
बुद्ध ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि…
“तीन प्रश्नों” के हल ढूंढने के लिए उन्होंने संन्यास लिया..
.
बुद्ध ने कहा.. हमारा यह शरीर जो युवा व आकर्षक है, पर जल्दी ही यह “वृद्ध” होगा, फिर “बीमार” और ….अंत में “मृत्यु” के मुंह में चला जाएगा। मुझे ‘वृद्धावस्था’, ‘बीमारी’ व ‘मृत्यु’ के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है …..
बुद्ध के विचारो से प्रभावित होकर उस स्त्री ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया….
शीघ्र ही यह बात पूरे गांव में फैल गई। गांव वासी बुद्ध के पास आए व आग्रह किया कि वे इस स्त्री के घर भोजन करने न जाएं….!!!
क्योंकि वह “चरित्रहीन” है…..
बुद्ध ने गांव के मुखिया से पूछा ?
…..क्या आप भी मानते हैं कि वह स्त्री चरित्रहीन है…?
मुखिया ने कहा कि मैं शपथ लेकर कहता हूं कि वह बुरे चरित्र वाली स्त्री है….। आप उसके घर न जाएं।
बुद्ध ने मुखिया का दायां हाथ पकड़ा… और उसे ताली बजाने को कहा… मुखिया ने कहा…मैं एक हाथ से ताली नहीं बजा सकता…
“क्योंकि मेरा दूसरा हाथ
आपने पकड़ा हुआ है”…
बुद्ध बोले…इसी प्रकार यह
स्वयं चरित्रहीन कैसे हो सकती है…????
… जब तक इस गांव के “पुरुष चरित्रहीन” न हों…!!!!अगर गांव के
सभी पुरुष अच्छे होते तो यह औरत
ऐसी न होती इसलिए इसके चरित्र के लिए यहां के पुरुष जिम्मेदार हैं….
यह सुनकर सभी “लज्जित” हो गए…..
….लेकिन आजकल हमारे समाज के पुरूष “लज्जित” नही “गौर्वान्वित” महसूस करते है…..
… क्योकि यही हमारे “पुरूष प्रधान” समाज की रीति एवं नीति है..॥
सकारात्मक सोचो
सकारात्मक सोच से ही अपना और अपने घर समाज देश का विकास होगा।
🌸🌸🌸🌸🌸जय श्री राधेकृष्णा 🚩 🌸🌸🌸🌸🌸

संजय गुप्ता

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🍅 टमाटर या गुलाब🌷
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🌷🍅एक बार गुरु जी ने अपने छात्रों को कुछ टमाटर🍅 लाने को कहा।

🌷🍅लेकिन हर टमाटर🍅 को एक सफेद लिफ़ाफ़े में पैक करना था और उस लिफ़ाफ़े पर उस व्यक्ति का नाम लिखना था जिससे छात्र को घृणा या नाराज़गी😡😠 हो।यदि किसी छात्र को किसी एक से घृणा या नाराज़गी है तो वह एक टमाटर🍅 और जिसको अधिक से है तो वह अधिक टमाटर🍅🍅🍅 लाएगा।

इस तरह जितने व्यक्तियों से घृणा या नाराज़गी😠😡 हो उतने ही टमाटर🍅🍅 छात्र को लाने हैं। ऐसे निर्देश भी गुरु जी ने छात्रों को दिये।

🌷🍅अब अगले दिन सभी छात्र बढ़िया सफेद लिफाफों💌 में टमाटर🍅 डाल कर लाये।सभी लिफाफों पर छात्रों द्वारा गुरु जी के निर्देशानुसार उस व्यक्ति का नाम अंकित किया गया था जिससे छात्र को घृणा या नाराज़गी😡😠 थी।

🌷🍅अब कोई छात्र 1 तो कोई 2 तो कोई 4 तो कोई 8 और कुछ छात्र तो 15 20 टमाटर🍅🍅 युक्त लिफ़ाफ़े💌💌 लेकर शाला पँहुच गए।जो छात्र जितने व्यक्तियों से घृणा करता था या किसी बात पर नाराज़ था वह उतने टमाटर युक्त लिफ़ाफ़े🍅💌 ले आया।

🌷🍅गुरु जी ने कक्षा में आते ही पूछा, “हाँ बच्चों ले आये टमाटर🍅🍅?”

सभी छात्र एक साथ बोल उठे, “जी गुरु जी ले आये।”

कुछ छात्र ऐसे भी थे जो कोई लिफाफा कोई टमाटर🍅❌ नहीं लाये थे।
पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें किसी से कोई नाराज़गी या घृणा😡😠❌ नहीं है।

🌷🍅गुरु जी सभी छात्रों को एक एक कपड़े का थैला🛍 देते हुए अपने लिफ़ाफ़े उसमें रखने के निर्देश दिए।

जो छात्र टमाटर नहीं लाये थे उन्हें गुरु जी ने थैले में गुलाब के फूल🌷🌷 दिए।

🌷🍅गुरु जी ने आदेश दिया ये थैले🛍 जिसमें टमाटर🍅 या गुलाब🌷 हैं इन्हें अच्छी तरह से बन्द कर 10 दिन तक लगातार अपने पास रखना है जँहा भी जाएँ यह थैला🛍 अपने साथ रखें।

🌷🍅एक सप्ताह बाद ही गुरु जी ने पूछा, “क्यों बच्चों थैला🛍 साथ रख रहे हो न?कैसा लग रहा है?”

🌷🍅छात्र दुःखी स्वर से बोल उठे,”गुरु जी टमाटरों🍅 की दुर्गन्ध और वज़न से परेशानी😫😫 हो रही है।”

गुरु जी गुलाब के फूलों🌷🌷 वाले छात्रों से कहा, “तुम अपना अनुभव बताओ।”

वे छात्र जो कम ही थे बोले “गुरु जी, हमें कोई परेशानी😫❌ नहीं, थैला🛍 हल्का है,और भीनी भीनी खुशबू😊 भी आ रही है।”

🌷🍅अब गुरु जी ने छात्रों को समझाया,जिनके पास घृणा नफरत या नाराज़गी😫😠 रूपी टमाटर🍅 थे वे सभी परेशान😫 हुए।जबकि जिनके पास घृणा नफरत या नाराज़गी😠😡❌ नहीं थी वे सब् खुश😁😁 हैं।

यह बिल्कुल वैसा ही है कि तुम अपने हृदय💙 में किसी भी व्यक्ति के लिए क्या रखते हो

यदि घृणा नफरत या नाराज़गी😡😠 रखोगे तो वज़न और दुर्गन्ध रूपी परेशानी😫 उठानी पड़ेगी वंही यदि किसी से प्रेम प्यार अपनापन💘💞 रखोगे तो हल्कापन और सुगन्ध रूपी प्रसन्नता😃😃 मिलेगी।

🌷🍅 घृणा नफरत नाराज़गी😠😡 तुम्हारे हृदय💙 को अस्वस्थ कर देंगें जबकि प्रेम प्यार💘 और अपनापन💞 उसी हृदय💙 को निरोग रखने में सहायक होंगें।

🌷🍅जब तुम एक सप्ताह में ही टमाटरों🍅 की दुर्गन्ध और वज़न से परेशान😫 हो गए तो सोचो प्रतिदिन तुम जो अपने साथ घृणा नफरत और नाराज़गी रूपी दुर्गन्ध और वज़न रखते हो तो तुम अपना कितना नुकसान😫 करते हो।

🌷🍅तुम्हारा हृदय💙 तो एक सुन्दर बगिया है जिसमें सुगन्धित और हल्के गुलाब🌷🌷 होने चाहिए न कि सड़े हुए दुर्गन्धित और भारी टमाटर🍅🍅।

🌷🍅 जिनसे भी तुम्हें घृणा नफरत या नाराज़गी😠😡 है उन्हें क्षमा दान देकर गले लगाओ फिर देखो तुम्हारे जीवन में गुलाब🌷🌷 रूपी सुगन्ध प्रसन्नता भर देगी।

🌷🍅सामने टेबल्स पर गुलाब🌷 और टमाटर🍅 दोनों पड़े हैं जाओ और जो तुम्हें अच्छा लगे उठा लो।

🌷🍅सभी छात्र गुलाब🌷 की टेबल की ओर दौड़ पड़े..।
आईये आज की सुहानी सुबह का शुभारम्भ करें प्रेम प्यार और अपनापन रूपी गुलाब🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 के साथ और घृणा नफरत और नाराज़गी😠😡 को सदा के लिए त्यागने❌ के संकल्प के साथ,

क्यों जी सही है न तो फिर कँहा है जी आपश्री की मुस्कान😊😊😊😊जी हाँ यही👌👌👌👌
आपश्री सदा यूँ ही मुस्कुराते रहें इसी कामना के साथ
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संजय गुप्ता

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निस्वार्थ भक्ति के भूखे भगवान
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घने जंगल में एक भील को शिवमंदिर दिखा. शिवलिंग पर फूल, बेलपत्र का शृंगार किया गया था इससे भील यह तो समझ गया कि कोई न कोई यहां रहता है.
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भील मंदिर में थोड़ी देर के लिए ठहर गया. रात हो गई लेकिन मंदिर का कोई पहरेदार आया ही नहीं. भील को शिवजी की सुरक्षा की चिंता होने लगी.
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उसे लगा कि सुनसान जंगल में यदि शिवजी को रात को अकेला छोड़ दिया तो कहीं जंगली जानवर इन पर हमला न बोल दें. उसने धनुष पर बाण चढ़ाया और प्रभु की पहरेदारी पर जम गया.
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सुबह हुई तो भील ने सोचा कि जैसे उसे भूख लगी है वैसे भगवान को भी भूख लगी होगी. उसने एक पक्षी मारा, उसका मांस भूनकर शिवजी को खाने के लिए रखा और फिर शिकार के लिए चला गया.
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शाम को वह उधर से लौटने लगा तो देखा कि फिर शिवजी अकेले ही हैं. आज भी कोई पहरेदार नहीं है.
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उसने फिर रातभर पहरेदारी की, सुबह प्रभु के लिए भुना माँस खाने को रखकर चला गया.
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मंदिर में पूजा-अर्चना करने पास के गांव से एक ब्राह्मण आते थे. रोज मांस देख कर वह दुखी थे. उन्होंने सोचा उस दुष्ट का पता लगाया जाए जो रोज मंदिर को अपवित्र कर रहा है.
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अगली सुबह वह पंडितजी पौ फटने से पहले ही पहुंच गए. देखा कि भील धनुष पर तीर चढ़ाए सुरक्षा में तैनात है.
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भयभीत होकर पास में पेड़ों की ओट में छुप गए. थोड़ी देर बाद भील मांस लेकर आया और शिवलिंग के पास रखकर जाने लगा.
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ब्राह्मण के क्रोध की सीमा न रही. उन्होंने भील को रोका- अरे मूर्ख महादेव को अपवित्र क्यों करते हो.
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भील ने भोलेपन के साथ सारी बात कह सुनाई. ब्राह्मण छाती-पीटते उसे कोसने लगे. भील ने ब्राह्मण को धमकाया कि अगर फिर से रात में शिवजी को अकेला छोड़ा तो वह उनकी जान ले लेगा.
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ब्राह्मण ने कहा- मूर्ख जो संसार की रक्षा करते हैं उन्हें तेरे-मेरे जैसा मानव क्या सुरक्षा देगा ? लेकिन भील की मोटी बुद्धि में यह बात कहां आती.
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वह सुनने को राजी न था और ब्राह्मण को शिवजी की सेवा से जी चुराने का दोष लगाते हुए दंडित करने को तैयार हो गया.
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महादेव इस चर्चा का पूरा रस ले रहे थे. परंतु महादेव ने स्थिति बिगड़ती देखी तो तत्काल प्रकट हो गए.
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महादेव ने भील को प्रेम से हृदय से लगाकर आदेश दिया कि तुम ब्राह्मण को छोड़ दो. मैं अपनी सुरक्षा का दूसरा प्रबंध कर लूंगा.
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ब्राह्मण ने शिवजी की वंदना की. महादेव से अनुमति लेकर उसने अपनी शिकायत शुरू की- प्रभु में वर्षों से आपकी सेवा कर रहा हूँ.
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इस जंगल में प्राण संकट में डालकर पूजा-अर्चना करने आता हूं. उत्तम फल-फूल से भोग लगाता हू किंतु आपने कभी दर्शन नहीं दिए.
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इस भील ने मांस चढ़ाकर तीन दिन तक आपको अपवित्र किया, फिर भी उस पर प्रसन्न हैं. भोलेनाथ यह क्या माया है ?
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शिवजी ने समझाया, तुम मेरी पूजा के बाद फल की अपेक्षा रखते थे लेकिन इस भील ने निःस्वार्थ सेवा की. इसने मुझे अपवित्र नहीं किया. इसे अपने प्रियजन की सेवा का यही तरीका आता है.
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मैं तो भाव का भूखा हूं इसके भाव ने जो तृप्ति दी है वह किसी फल-मेवे में नहीं है!
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संजय गुप्ता

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आज की कथा है निधिवन
💖🌟💖 निधिवन वृन्दावन 💖🌟💖
कहा जाता है की निधिवन की सारी लताये गोपियाँ है। जो एक दूसरे कि बाहों में बाहें डाले खड़ी है जब आधी रात में निधिवन में राधा रानी जी, बिहारी जी के साथ रास लीला करती है। तो वहाँ की लता पताये गोपियाँ बन जाती है। और फिर रास लीला आरंभ होती है। इस रास लीला को कोई भी नहीं देख सकता। दिन भर में हजारों बंदर, पक्षी, जीव जंतु निधिवन में रहते है पर जैसे ही शाम होती है। सब जीव जंतु वहा से अपने आप चले जाते है एक परिंदा भी वहाँ नहीं रुकता। यहाँ तक कि जमीन के अंदर के सभी जीव चीटी आदि भी जमीन के अंदर चले जाते है। राधा कृष्ण की रास लीला को कोई नहीं देख सकता क्योकि रास लीला इस लौकिक जगत की लीला नहीं है रास तो अलौकिक जगत की परम दिव्यातिदिव्य लीला है। कोई साधारण मनुष्य या जीव अपनी आँखों से देख ही नहीं सकता। जो बड़े बड़े संत है उन्होंने निधिवन से राधारानी जी और गोपियों के नुपुर की ध्वनि सुनी है।

💖🌟 जब रास करते करते राधा रानी जी बहुत थक जाती है तो बिहारी जी उनके चरण कमल दबाते है। और रात्रि में निधिवन में शयन करते है आज भी निधिवन में शयन कक्ष है जहाँ आज भी पुजारी जी जल का पात्र, पान, फुल और प्रसाद रखते है। और जब सुबह पट खोलते है तो जल पीला, पान चबाया हुआ और फूल बिखरे हुए मिलते है।

💖🌟💖 निधिवन कथा 💖🌟💖
एक बार कलकत्ता का एक भक्त अपने गुरु जी की सुनाई हुई। भागवत कथा से इतना मोहित हुआ कि वह हर घडी वृन्दावन आने की सोचने लगा। उसके गुरु जी उसे निधिवन के बारे में बताते थे और कहते थे कि आज भी भगवान यहाँ निधिवन में रात्रि को रास रचाने आते है पर उस भक्त को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था और एक बार उसने निश्चय किया कि वृन्दावन जरुर जाऊंगा और ऐसा ही हुआ। श्री राधा रानी जी की कृपा हुई और आ वह आ गया श्री वृन्दावन धाम उसने जी भर कर बिहारी जी का राधा रानी का दर्शन किया। लेकिन अब भी उसे इस बात का यकीन नहीं था कि निधिवन में रात्रि को भगवान रास रचाते है उसने सोचा कि एक दिन निधिवन रुक कर देखता हूँ। इसलिए वो वही पर रूक गया और देर तक बैठा रहा और जब शाम होने को आई तब एक पेड़ की लता की आड़ में छिप गया।

💖🌟जब शाम के वक़्त वहा के पुजारी निधिवन को खाली करवाने लगे तो उनकी नज़र उस भक्त पर पड गयी जो लता के पीछे छिपा हुआ था और उसे वहा से जाने को कहा तब तो वो भक्त वहा से चला गया। लेकिन अगले दिन फिर से वहा जाकर छिप गया और फिर से शाम होते ही पुजारियों द्वारा निकाला गया और आखिर में उसने निधिवन में एक ऐसा कोना खोज निकाला जहा उसे कोई न ढूंढ़ सकता था और वो आँखे मूंदे सारी रात वही निधिवन में बैठा रहा और अगले दिन जब सेविकाए निधिवन में साफ़ सफाई करने आई तो पाया कि एक व्यक्ति बेसुध पड़ा हुआ है और उसके मुह से झाग निकल रहा है।

💖🌟उन सेविकाओ ने सभी को बताया तो लोगो कि भीड़ वहा पर जमा हो गयी। सभी ने उस व्यक्ति से बोलने की कोशिश की लेकिन वो कुछ भी नहीं बोल रहा था। लोगो ने उसे खाने के लिए मिठाई आदि दी लेकिन उसने नहीं ली और वो ऐसे ही ३ दिनों तक बिना कुछ खाए पिये। ऐसे ही बेसुध पड़ा रहा और 5 दिन बाद उसके गुरु जो कि श्री गोवर्धन में रहते थे। उनको बताया गया तब उसके गुरूजी वहा पहुचे और उसे गोवर्धन अपने आश्रम में ले आये। आश्रम में भी वो ऐसे ही रहा और एक दिन सुबह सुबह उस व्यक्ति ने अपने गुरूजी से लिखने के लिए कलम और कागज़ माँगा गुरूजी ने ऐसा ही किया और उसे वो कलम और कागज़ देकर मानसी गंगा में स्नान करने चले गए। जब गुरूजी स्नान करके आश्रम में आये तो पाया कि उस भक्त ने दीवार के सहारे लग कर अपना शरीर त्याग दिया था। और उस कागज़ पर कुछ लिखा हुआ था।

💖🌟💖 उस कागज पर जो लिखा था वो इस प्रकार है।💖🌟💖
गुरूजी मैंने यह बात किसी को भी नहीं बताई है। पहले सिर्फ आपको ही बताना चाहता हूँ। आप कहते थे न कि निधिवन में आज भी भगवान रास रचाने आते है और मैं आपकी कही बात पर विश्वास नहीं करता था। लेकिन जब मैं निधिवन में रूका तब मैंने साक्षात श्री बांके बिहारी जी को राधा रानी जी और अन्य गोपियों के साथ रास रचाते हुए दर्शन किया और अब मेरी जीने की कोई इच्छा नहीं है। इस जीवन का जो लक्ष्य था वो लक्ष्य मैंने प्राप्त कर लिया है और अब मैं जीकर करूँगा भी क्या?

💖🌟💖 श्री श्याम सुन्दर की सुन्दरता के आगे ये दुनिया वालो की सुन्दरता कुछ भी नहीं है। इसलिए आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिये वो पत्र जो उस भक्त ने अपने गुरु के लिए लिखा था। वो आज भी मथुरा के सरकारी संघ्रालय में रखा हुआ है। जो की बंगाली भाषा में लिखा हुआ है। 💖🌟

संजय गुप्ता

Posted in लक्ष्मी प्राप्ति - Laxmi prapti

😎 तिजोरी में रखना चाहिए एक सुपारी क्योंकि ये बढ़ाती है पैसा
तिजोरी जहां पैसा, ज्वेलरी और अन्य बेशकीमती वस्तुएं रखी जाती है। अत: यह जगह बहुत ही पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होनी चाहिए। जिससे कि घर में बरकत बनी रह सके और पैसों की कभी कमी न आए। यदि तिजोरी के आसपास कोई नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हैं तो उस घर में कभी भी पैसों कमी कभी पूरी नहीं हो सकेगी। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार कुछ उपाय बताए गए हैं।

तिजोरी में हमेशा पैसा ही पैसा भरा रहे, धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा सदैव आप पर बनी रहे, इसके लिए एक छोटा सा उपाय अपनाएं। शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश रिद्धि और सिद्ध के दाता है। कोई भी भक्त नित्य श्रीगणेश का ध्यान करता है तो उसे कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं सताती। श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय हैं। प्रतिदिन गणेशजी की विधिवत पूजा करें और किसी भी शुभ मुहूर्त में विशेष पूजा करें। पूजन में गणेशजी के प्रतीक स्वरूप सुपारी रखी जाती है। बस यही सुपारी पूजा पूर्ण होने के बाद अपनी तिजोरी में रख दें।
पूजा में उपयोग की गई सुपारी में श्रीगणेश का वास होता है। अत: यह तिजोरी में रखने से तिजोरी के आसपास के क्षेत्र में सकारात्मक और पवित्र ऊर्जा सक्रिय रहेगी जो नकारात्मक शक्तियों को दूर रखेगी। पूजा में उपयोग की जाने वाली सुपारी बाजार में मात्र 1 रुपए में ही प्राप्त हो जाती है लेकिन विधिविधान से इसकी पूजा कर दी जाए तो यह चमत्कारी हो जाती है। जिस व्यक्ति के पास सिद्ध सुपारी होती है वह कभी भी पैसों की तंगी नहीं देखता, उसके पास हमेशा पर्याप्त पैसा रहता है।
जय श्री गणेश देवा

संजय गुप्ता

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

ये हैं भारत के 7 आश्चर्यजनक जैन मंदिर


जैन धर्म का मूल अहिंसा है और इस धर्म को मानने वाले अनुयायी प्रेम और अहिंसा के मार्ग पर चलते हैं। जैन धर्म के अनुसार जीवन का उद्देश्य मानसिक और शारीरिक शुद्धि के माध्यम से कर्म करते रहना है और हमारे नकारात्मक प्रभावों नष्ट करना माना गया है। भारत में वैसे तो कई जैन मंदिर हैं पर उनमें से ये सात मंदिर अपना एक अलग स्थान रखते हैं।
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लाल मंदिरः श्री दिगम्बर जैन मंदिर दिल्ली के लाल किले के पीछे स्थित है। यह मंदिर लाल बलुआ पत्थरों से बना है, इसलिए इसे लाल मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर मुगल काल के समय 1526 ई. में बनाया गया।
खजुराहो जैन मंदिरः यह मंदिर अपनी कलाकृति के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यह खजुराहो में हैं। यहां हिंदू और जैन धर्म से संबंधित कामुक नक्काशी की हुईं प्रतिमाएं हैं। यह मंदिर 950 से 1150 ई. सदी के हैं। यहां बड़ी संख्या में जैन धर्म को मानने वाले अनुयायी रहते हैं।
सोनागिरी जैन मंदिरः सोनागिरी मप्र के दतिया के पास एक छोटा सा कस्बा है। यह क्षेत्र पहाड़ियों से घिरा हुआ है, सोनागिरी में जैन मंदिर अपना अधिक महत्व रखते हैं। मंदिर तक 300 सीढ़ियां चढ़ने के बाद एक ऊंची पहाड़ी पर पहुंचा जा सकता है।
गोमतेश्वर जैन मंदिरः यहां भगवान गोमतेश्वर की विशालकाय प्रतिमा हैं जो कि श्रवणबेलगोला शहर में स्थित है। गोमतेश्वर भगवान आदिनाथ के पुत्र थे। जोकि 24 तीर्थंकर में सबसे पहले तीर्थंकर माने गए हैं। भगवान गोमतेश्वर की यह मूर्ति 58 फीट ऊंची है। इस मूर्ति को हर 12वें वर्ष में महाअभिषेक होता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिरः यह मंदिर राजस्थान के अबू पर्वत श्रंखलाओं पर बना है। यह मंदिर संगमरमर के पत्थरों से बनाया गया है। यह मंदिर अपनी सुंदर आकृति के लिए जैन मंदिर में अलग स्थान रखता है। यह मंदिर 11-12वीं शताब्दी में बनाया गया है।
रणकपुर मंदिरः यह मंदिर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। यह रनकपुर की पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर 1444 संगमरमर के खंभों पर टिका हुआ है। यह खंभे अलग-अलग आकार में बने हुए हैं। यह मंदिर 14वीं और 15वीं शताब्दी के मध्य बनाया गया है।
पालिताना के जैन मंदिरः पालिताना शहर जैन धर्म के अनुयायियों का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह बहुत पवित्र तीर्थस्थल माना गया है। यह पवित्र क्षेत्र करीब 900 वर्ष पुराना है जो कि 11वीं शताब्दी में बयाय गया था। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 3,572 सीढ़ियां से पहुंचा जा सकता है। मंदिर एक पहाड़ पर स्थित है जहां पहुंचने में लगभग 2 घंटे लगते हैं।

संजय गुप्ता