एक बार एक आदमी मिस्टर x शहर की नामी एक रेडीमेड कपडे की दूकान पर गया
वहां के सेल्समेन से सूट दिखाने को कहा
सेल्समेन सूट दिखानेलगा
करीब 50 सूट दिखाने के बाद भी मिस्टर x को कोई सूट पसंद नहीं आया तब वहां दूकान का मालिक आया और उनसे सूट न पसंद आने का कारण पूछा
मिस्टर x ने कहा इस सूट को अगर मैं आपसे खरीदूंगा तो कितनी छूट मिलेगी क्योंकि कोई भी सूट 14000 से कम नहीं है और मुझे 25000 से निचे का सूट पसंद ही नहीं आ रहा है
दूकानदार ने महंगाई का हवाला देते हुए बमुश्किल 5 %छूट देने का भरोसा दिया वो भी तब जब बिल बनेगा और सारे टैक्स छूट देने के बाद जुड़ेगा
x राजी हो गया फिर एक सूट जो कि30000 का था पसंद कर के बोला इसके कपडे की गारंटी आपको लिखकर देनी पड़ेगी
और इसके साथ एक महंगा डिब्बा जो की देखने में अच्छा लगे
और एक झोला जो की अच्छा हो बाद में इस्तेमाल किया जा सके
दुकानदार परेशान बिल बन चूका था लेकिन कपडे की गारंटी लिखकर देना असंभव था बहुत समझानेके बाद दुकानदार बोला जब कपडे में कोई शिकायत हो तो मैं उसको बदल सकता हु वापस नहीं ले सकता
और झोला और डिब्बा जो मेरे पास है मैं वो ही दे सकता हु
इसके अलावा और नहीं है
तब मिस्टर x ने कहा चलो मैं तुम्हारी सारी बात मान लेता हु की तुम मजबूरहो अब ये बताओ कि जरूरत पड़ने पर क्या ये सूट तुम्हारे यहाँ 15000 में गिरवी रखा या बेचाजा सकता है
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दुकानदार ने अपना सर पकड़ा और बोला भाई कपडा भी कहीं गिरवी या बिक सकता है वो भी आधी कीमत पर।।।
तब मिस्टर x ने कहा फिर तुमने पेपर वालों को ये क्यों कहा की ज्वेलर्स लूटते हैँ
डिब्बा और महंगा झोला देकर
एक बार जेवर खरीदने के बाद 20 प्रतिशत तक कटौती करके वापस लेते है हमारी सारी कमाई खा जाते है
जेवर चाहे जितनी बार पहनाजाए कुछ कटौती करके कहीं भी किसी भी सराफे की दूकान पर बेचाबदला या जरूरत पड़ने पर गिरवी रखा जा सकता है परंतु उतनी ही कीमत का कपडा आप आधे दाम पर भी वापस नहीं लेते आधे तो छोड़ो10 प्रतिशत पर भी नहीं लेते फिर सराफे जैसे मददगार व्यापारके लिए इतनी खिन्नता क्यों
मैं एक सराफा दूकानदार हु
मैंने जितनी फरमाइश आपसे की रोज ये फरमाइश ग्राहकों की पूरी करता हु और इसके बदले जो भी कमाता हु जैसा की अपने परिवार के लिए आप करते है फिर आपके और मेरे लिए आप जैसे लोगों के नजरिये में अन्तर क्यों
और हाँ हमें आपकी कमाई नहीं चाहिए हमें बस अपनी मेहनत जो की कच्चे सोने चांदीसे शुरू होकर आप जैसो की मदद पर जाकर ख़त्म होती है उसका लाभ जो की जायज है वही चाहिए इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं
अगर आप सम्मान नहीं दे सकते तो कृपया हमारा अपमान भी मत कीजिये
दूकान दार चुप था और शायद शर्मिंदा भी
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संजय गुप्ता