Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

किसी गाँव में चार मित्र रहते थे।
चारों में इतनी घनी मित्रता थी कि हर समय साथ रहते उठते बैठते, योजनाएँ बनाते।
एक ब्राह्मण
एक ठाकुर
एक बनिया और
एक नाई था
पर कभी भी चारों में जाति का भाव नहीं था गज़ब की एकता थी।

इसी एकता के चलते वे गाँव के किसानों के खेत से गन्ने
चने
आदि चीजे उखाड़ कर खाते थे।

एक दिन इन चारों ने किसी किसान के खेत से चने के झाड़ उखाड़े और खेत में ही बैठकर हरी हरी फलियों का स्वाद लेने लगे।

खेत का मालिक किसान आया
चारों की दावत देखी उसे बहुत क्रोध आया
उसका मन किया कि लट्ठ उठाकर चारों को पीटे
पर चार के आगे एक?
वो स्वयं पिट जाता
सो उसने एक युक्ति सोची।

चारों के पास गया,
ब्राह्मण के पाँव छुए,
ठाकुर साहब की जयकार की
बनिया महाजन से राम जुहार और फिर
नाई से बोला–
देख भाई
ब्राह्मण देवता धरती के देव हैं,
ठाकुर साहब तो सबके मालिक हैं अन्नदाता हैं,
महाजन सबको उधारी दिया करते हैं
ये तीनों तो श्रेष्ठ हैं
तो भाई इन तीनों ने चने उखाड़े सो उखाड़े पर तू? तू तो ठहरा नाई तूने चने क्यों उखाड़े?
इतना कहकर उसने नाई के दो तीन लट्ठ रसीद किये।
बाकी तीनों ने कोई विरोध नहीं किया क्योंकि उनकी तो प्रशंसा हो चुकी थी।

अब किसान बनिए के पास आया और बोला-
तू साहूकार होगा तो अपने घर का
पण्डित जी और ठाकुर साहब तो नहीं है ना! तूने चने क्यों उखाड़े?
बनिये के भी दो तीन तगड़े तगड़े लट्ठ जमाए।

पण्डित और ठाकुर ने कुछ नहीं कहा।

अब किसान ने ठाकुर से कहा–
ठाकुर साहब
माना आप अन्नदाता हो पर किसी का अन्न छीनना तो ग़लत बात है
अरे पण्डित महाराज की बात दीगर है
उनके हिस्से जो भी चला जाये दान पुन्य हो जाता है
पर आपने तो बटमारी की! ठाकुर साहब को भी लट्ठ का प्रसाद दिया,

पण्डित जी बोले नहीं,

नाई और बनिया अभी तक अपनी चोट सहला रहे थे।
जब ये तीनों पिट चुके
तब किसान पण्डितजी के पास गया और बोला–
माना आप भूदेव हैं
पर इन तीनों के गुरु घण्टाल आप ही हैं
आपको छोड़ दूँ
ये तो अन्याय होगा
तो दो लट्ठ आपके भी पड़ने चाहिए।
मार खा चुके बाकी तीनों बोले
हाँ हाँ, पण्डित जी को भी दण्ड मिलना चाहिए।
अब क्या पण्डित जी भी पीटे गए।

किसान ने इस तरह चारों को अलग अलग करके पीटा
किसी ने किसी के पक्ष में कुछ नहीं कहा,
उसके बाद से चारों कभी भी एक साथ नहीं देखे गये।

मित्रों पिछली दो तीन सदियों से हिंदुओं के साथ यही होता आया है,
कहानी सच्ची लगी हो तो समझने का प्रयास करो और
अगर कहानी केवल कहानी लगी हो
तो आने वाले समय के लट्ठ तैयार हैं।

प्रद्युम्न तिवारी
🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

बहुत समय पहले की बात है , एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहता था. वह बड़ा ज्ञानी था और उसकी बुद्धिमत्ता की ख्याति दूर -दूर तक फैली थी. एक दिन एक औरत उसके पास पहुंची और अपना दुखड़ा रोने लगी , ” बाबा, मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था , लेकिन वह जबसे युद्ध से लौटा है ठीक से बात तक नहीं करता .”

” युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है.” , सन्यासी बोला.

” लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है , कृपया आप मुझे वो जड़ी-बूटी दे दें.” , महिला ने विनती की.

सन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला ,” देवी मैं तुम्हे वह जड़ी-बूटी ज़रूर दे देता लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसी चीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है .”

” आपको क्या चाहिए मुझे बताइए मैं लेकर आउंगी .”, महिला बोली.

” मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए .”, सन्यासी बोला.

अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी , बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा , बाघ उसे देखते ही दहाड़ा , महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी.

अगले कुछ दिनों तक यही हुआ , महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती. महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी, और अब वह उसे देख कर सामान्य ही रहता. अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता. उनकी दोस्ती बढ़ने लगी और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी. और देखते देखते एक दिन वो भी आ गया जब उसने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया.

फिर क्या था , वह बिना देरी किये सन्यासी के पास पहुंची , और बोली
” मैं बाल ले आई बाबा .”

“बहुत अच्छे .” और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया

” अरे ये क्या बाबा , आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया ……अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी ?” महिला घबराते हुए बोली.

” अब तुम्हे किसी जड़ी-बूटी की ज़रुरत नहीं है .” सन्यासी बोला . ” जरा सोचो , तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया….जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्या एक इंसान को नहीं ? जाओ जिस तरह तुमने बाघ को अपना मित्र बना लिया उसी तरह अपने पति के अन्दर प्रेम भाव जागृत करो.”

महिला सन्यासी की बात समझ गयी , अब उसे उसकी जड़ी-बूटी मिल चुकी थी.

देव शर्मा

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🙏🏻🌹एक नास्तिक की भक्ति🙏🏻🌹

हरिराम नामक आदमी शहर के एक छोटी सी गली में रहता था। वह एक मेडिकल दुकान का मालिक था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी, दस साल का अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई कहाँ रखी है। वह इस पेशे को बड़े ही शौक से बहुत ही निष्ठा से करता था।दिन-ब-दिन उसके दुकान में सदैव भीड़ लगी रहती थी, वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों को सावधानी और इत्मीनान होकर देता था।

उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था वह एक नास्तिक था, खाली वक्त मिलने पर वह अपने दोस्तों के संग मिलकर घर या दुकान में ताश खेलता था। एक दिन उसके दोस्त उसका हालचाल पूछने दुकान में आए और अचानक बहुत जोर से बारिश होने लगी,बारिश की वजह से दुकान में भी कोई नहीं था। बस फिर क्या, सब दोस्त मिलकर ताश खेलने लगे। तभी एक छोटा लड़का उसके दूकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया। उसका पूरा शरीर भीगा था।

हरिराम ताश खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी। ठंड़ से ठिठुरते हुए उस लड़के ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा- “साहब जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ बहुत बीमार है, उनको बचा लीजिए. बाहर और सब दुकानें बारिश की वजह से बंद है। आपके दुकान को देखकर मुझे विश्वास हो गया कि मेरी माँ बच जाएगी।

यह दवाई उनके लिए बहुत जरूरी है। इस बीच लाइट भी चली गई और सब दोस्त जाने लगे। बारिश भी थोड़ा थम चुकी थी, उस लड़के की पुकार सुनकर ताश खेलते-खेलते ही हरिराम ने दवाई के उस पर्चे को हाथ में लिया और दवाई लेने को उठा, ताश के खेल को पूरा न कर पाने के कारण अनमने से अपने अनुभव से अंधेरे में ही दवाई की उस शीशी को झट से निकाल कर उसने लड़के को दे दिया। उस लड़के ने दवाई का दाम पूछा और उचित दाम देकर बाकी के पैसे भी अपनी जेब में रख लिया।

लड़का खुशी-खुशी दवाई की शीशी लेकर चला गया। वह आज दूकान को जल्दी बंद करने की सोच रहा था। थोड़ी देर बाद लाइट आ गई और वह यह देखकर दंग रह गया कि उसने दवाई की शीशी समझकर उस लड़के को दिया था, वह चूहे मारने वाली जहरीली दवा है, जिसे उसके किसी ग्राहक ने थोड़ी ही देर पहले लौटाया था, और ताश खेलने की धुन में उसने अन्य दवाइयों के बीच यह सोच कर रख दिया था कि ताश की बाजी के बाद फिर उसे अपनी जगह वापस रख देगा।

अब उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया। उस लड़के बारे में वह सोच कर तड़पने लगा। सोचा यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार माँ को देगा, तो वह अवश्य मर जाएगी। लड़का भी बहुत छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा। एक पल वह अपनी इस भूल को कोसने लगा और ताश खेलने की अपनी आदत को छोड़ने का निश्चय कर लिया पर यह बात तो बाद के बाद देखी जाएगी। अब क्या किया जाए ?

उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार माँ को बचाया जाए? सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। हरिराम को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था। घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा। पहली बार उसकी दृष्टि दीवार के उस कोने में पड़ी, जहाँ उसके पिता ने जिद्द करके भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर दुकान के उदघाटन के वक्त लगाई थी, पिता से हुई बहस में एक दिन उन्होंने हरिराम से भगवान को कम से कम एक शक्ति के रूप मानने और पूजने की मिन्नत की थी।

उन्होंने कहा था कि भगवान की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और हमें सदैव अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देता है। हरिराम को यह सारी बात याद आने लगी। आज उसने इस अद्भुत शक्ति को आज़माना चाहा। उसने कई बार अपने पिता को भगवान की तस्वीर के सामने कर जोड़कर, आंखें बंद करते हुए पूजते देखा था। उसने भी आज पहली बार कमरे के कोने में रखी उस धूल भरे कृष्ण की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर वहीं खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। हरिराम को पसीने छूटने लगे। वह बहुत अधीर हो उठा।

पसीना पोंछते हुए उसने कहा- क्या बात है बेटा तुम्हें क्या चाहिए? लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी…बाबूजी माँ को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के करीब पहुँच भी गया था, बारिश की वजह से ऑंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे वही दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी? लड़के ने उदास होकर पूछा। हाँ! हाँ ! क्यों नहीं? हरिराम ने राहत की साँस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई! पर उस लड़के ने दवाई की शीशी लेते हुए कहा, पर मेरे पास तो पैसे नहीं है, उस लड़के ने हिचकिचाते हुए बड़े भोलेपन से कहा।

हरिराम को उस बिचारे पर दया आई। कोई बात नहीं- तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी माँ को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हाँ अब की बार ज़रा संभल के जाना। लड़का, अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा। अब हरिराम की जान में जान आई। भगवान को धन्यवाद देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी धोती से पोंछने लगा और अपने सीने से लगा लिया। अपने भीतर हुए इस परिवर्तन को वह पहले अपने घरवालों को सुनाना चाहता था। जल्दी से दुकान बंद करके वह घर को रवाना हुआ। उसकी नास्तिकता की घोर अंधेरी रात भी अब बीत गई थी और अगले दिन की नई सुबह एक नए हरिराम की प्रतीक्षा कर रही थी…
संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

. ध्यान से पढ़ना बहुत कुछ सीखने को मिलेगा
“वसीयत और नसीहत”

एक दौलतमंद इंसान ने अपने बेटे को वसीयत देते हुए कहा,

“बेटा मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में ये फटे हुऐ मोज़े (जुराबें) पहना देना, मेरी यह इक्छा जरूर पूरी करना ।

पिता के मरते ही नहलाने के बाद, बेटे ने पंडितजी से पिता की आखरी इक्छा बताई ।

पंडितजी ने कहा: हमारे धर्म में कुछ भी पहनाने की इज़ाज़त नही है।

पर बेटे की ज़िद थी कि पिता की आखरी इक्छ पूरी हो ।

बहस इतनी बढ़ गई की शहर के पंडितों को जमा किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला ।

इसी माहौल में एक व्यक्ति आया, और आकर बेटे के हाथ में पिता का लिखा हुआ खत दिया, जिस में पिता की नसीहत लिखी थी

“मेरे प्यारे बेटे”

देख रहे हो..? दौलत, बंगला, गाड़ी और बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और फॉर्म हाउस के बाद भी, मैं एक फटा हुआ मोजा तक नहीं ले जा सकता ।

एक रोज़ तुम्हें भी मृत्यु आएगी, आगाह हो जाओ, तुम्हें भी एक सफ़ेद कपडे में ही जाना पड़ेगा ।

लिहाज़ा कोशिश करना,पैसों के लिए किसी को दुःख मत देना, ग़लत तरीक़े से पैसा ना कमाना, धन को धर्म के कार्य में ही लगाना ।

सबको यह जानने का हक है कि शरीर छूटने के बाद सिर्फ कर्म ही साथ जाएंगे”। लेकिन फिर भी आदमी तब तक धन के पीछे भागता रहता है जब तक उसका निधन नहीं हो जाता।

👉 1) जो आपसे दिल से बात करता है उसे कभी दिमाग से जवाब मत देना।

👉 2) एक साल मे 50 मित्र बनाना आम बात है। 50 साल तक एक मित्र से मित्रता निभाना खास बात है।

👉 3) एक वक्त था जब हम सोचते थे कि हमारा भी वक्त आएगा और एक ये वक्त है कि हम सोचते हैं कि वो भी क्या वक्त था।

👉 4) एक मिनट मे जिन्दगी नहीं बदलती पर एक मिनट सोच कर लिखा फैसला पूरी जिन्दगी बदल देता है।

👉 5) आप जीवन में कितने भी ऊॅचे क्यों न उठ जाएं, पर अपनी गरीबी और कठिनाई को कभी मत भूलिए।

👉 6) वाणी में भी अजीब शक्ति होती है। कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है।

👉 7) जीवन में सबसे बड़ी खुशी उस काम को करने में है जिसे लोग कहते हैं कि तुम नही कर सकते हो।

👉 8) इंसान एक दुकान है और जुबान उसका ताला। ताला खुलता है, तभी मालूम होता है कि दुकान सोने की है या कोयले की।

👉 9) कामयाब होने के लिए जिन्दगी में कुछ ऐसा काम करो कि लोग आपका नाम Face book पे नही Google पे सर्च करें।

👉 10) दुनिया विरोध करे तुम डरो मत, क्योंकि जिस पेङ पर फल लगते है दुनिया उसे ही पत्थर मारती है।

👉 11) जीत और हार आपकी सोच पर ही निर्भर है। मान लो तो हार होगी और ठान लो तो जीत होगी।

👉 12) दुनिया की सबसे सस्ती चीज है सलाह, एक से मांगो हजारो से मिलती है। सहयोग हजारों से मांगो एक से मिलता है।

👉 13) मैने धन से कहा कि तुम एक कागज के टुकड़े हो। धन मुस्कराया और बोला बिल्कुल मैं एक कागज का टुकड़ा हूँ, लेकिन मैने आज तक जिंदगी में कूड़ेदान का मुंह नहीं देखा।

👉 14) आंधियों ने लाख बढ़ाया हौसला धूल का, दो बूंद बारिश ने औकात बता दी।

👉 15) जब एक रोटी के चार टुकड़े हों और खाने वाले पांच हों, तब मुझे भूख नहीं है, ऐसा कहने वाला कौन है.? सिर्फ “माँ”।

👉 16) जब लोग आपकी नकल करने लगें तो समझ लेना चाहिए कि आप जीवन में सफल हो रहे हैं।

👉 17) मत फेंक पत्थर पानी में, उसे भी कोई पीता है।
मत रहो यूं उदास जिन्दगी में, तुम्हें देखकर भी कोई जीता है।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

(((( भगत नामदेव का व्रत ))))
.
श्री नामदेव जी महाराष्ट्र के एक सुप्रसिद्ध संत थे। वे विट्ठल भगवान के बहुत बड़े भगत हुए हैं। उनका ध्यान सदा विट्ठल भगवान के दर्शन, भजन और कीर्तन में ही लगा रहता था। सांसारिक कार्यों में उनका जरा भी मन नहीं लगता था।
.
वे एकादशी व्रत के प्रति पूर्ण निष्ठावान थे। वे उस दिन जल भी नहीं पीते थे। एकादशी की सम्पूर्ण रात्रि को हरिनाम संकीर्तन करते थे। एकादशी को वे न अन्न खाते और न किसी को खिलाते।
.
एक दिन एकादशी की रात्रि को वे हरिनाम संकीर्तन कर रहे थे। उनके साथ अनेकानेक भक्त भी संकीर्तन कर रहे थे। अचानक एक क्षीणकाय, हड्डियों का ढाचा मात्र एक वृद्ध ब्राह्मण उनके द्वार पर आया और बोला,‘मैं अत्यन्त भूखा हूं। मुझे भोजन कराओ अन्यथा मैं भूख के मारे मर जाऊंगा।’
.
श्री नामदेव जी बोले,‘मैं एकादशी को न अन्न खाता हूं और न अन्न किसी और को खिलाता हं। अतः ब्राह्मण देवता प्रातः काल सूर्योदय का इंतजार करो। व्रत का पारण कर आपको भर पेट भोजन कराऊंगा।’
.
ब्राह्मण बोला,‘मुझे तो अभी ही भोजन चाहिए। मैं एक सौ बीस वर्ष का बूढ़ा हूं। एकादशी व्रत आठ वर्ष से लेकर अस्सी वर्ष तक के लोगों के लिए है। मैं भूख से मर जाऊंगा और तुमको ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा।’
.
श्री नाम देव जी ने कहा,‘ब्राह्मण देवता चाहे कुछ भी हो जाए मैं आपको भोजन नहीं करा सकता। कृपया आप सुबह तक प्रतिक्षा करें।’
.
श्री नाम देव जी के ऐसे व्यवहार के प्रति अन्य ग्राम-वासियों ने नाम देव जी को निष्ठुर कहा और ब्राह्मण को भोजन देना चाहा परन्तु ब्राह्मण ने भोजन लेने से इंकार कर दिया और कहा,‘यदि मैं भोजन ग्रहण करूंगा तो सिर्फ और सिर्फ नामदेव से ही करूंगा।’
.
श्री नाम देव जी ने जब ब्राह्मण को भोजन न दिया तो कुछ ही समय में उसके प्राण पखेरू उड़ गए। वहां उपस्थित सभी लोग श्री नामदेव जी के प्रति अप शब्द कहने लगे और उन्हें हत्यारा कह कर संबोधित करने लगे।
.
श्री नाम देव जी कुछ न बोले पूर्ववत विट्ठल भगवान के भजन और कीर्तन में ही लगे रहे तथा एक पल के लिए उठे और मृतक शरीर को ढक कर रख दिया व मृत देह के समक्ष नाम संकीर्तन करते रहे।
.
प्रातःकाल श्री नाम देव जी ने व्रत पारण किया और एक चिता बनवाई। स्वयं उस ब्राह्मण के पार्थिव शरीर को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गए।
.
चिता को प्रज्वलित किया गया। जब आग की लपटें श्री नामदेव जी तक पहुंचने ही वाली थी तो अचानक वह ब्राह्मण उठा और श्री नाम देवजी को उठा कर चिता से बाहर कूद पड़ा जब तक नामदेव जी कुछ समझ पाते वह बूढ़ा अंतर्धान हो गया।
.
स्वयं विट्ठल भगवान ही उनकी परीक्षा लेने आए थे। इस घटना को देख कर सब आश्चर्यचकित हो गए और श्री नाम देव जी की जय-जयकार करने लगे। धन्य हैं श्री नामदेव जी।
.
चित में प्रज्ञा का प्रकाश, ज्ञान का दीपक जले तभी ठाकुर जी का निराकार स्वरूप दिखाई देता है। भागवत श्रवण से चित रूपी दीपक जलाने का प्रयास मानव को करना चाहिए। मानव को अज्ञानता से लडऩा चाहिए मगर आलोचना और अज्ञानता पर चर्चा करके अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।

देव शर्मा

Posted in मंत्र और स्तोत्र

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र विशेष
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
जीवन में सफलता की कुंजी है “सिद्ध कुंजिका”

दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है। जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वे केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करेंगे तो उससे भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है। जीवन में किसी भी प्रकार के अभाव, रोग, कष्ट, दुख, दारिद्रय और शत्रुओं का नाश करने वाले सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ नवरात्रि में अवश्य करना चाहिए। लेकिन इस स्तोत्र का पाठ करने में कुछ सावधानियां भी हैं, जिनका ध्यान रखा जाना आवश्यक है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि
🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸
कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। कुंजिका स्तोत्र साधना भी होती है, लेकिन यहां हम इसकी सर्वमान्य विधि का वर्णन कर रहे हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। इसलिए साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके लाल रंग के आसन पर बैठ जाए। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सामान्य पूजन करें।

अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाए

अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाए और देवी को हलवे या मिष्ठान्न् का नैवेद्य लगाएं। इसके बाद अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, एक रुपए का सिक्का रखकर नवरात्रि के नौ दिन कुंजिका स्तोत्र का पाठ संयम-नियम से करने का संकल्प लें। यह जल भूमि पर छोड़कर पाठ प्रारंभ करें। यह संकल्प केवल पहले दिन लेना है। इसके बाद प्रतिदिन उसी समय पर पाठ करें।

कुंजिका स्तोत्र के लाभ
🔸🔸🔹🔹🔸🔸
धन लाभ👉 जिन लोगों को सदा धन का अभाव रहता हो। लगातार आर्थिक नुकसान हो रहा हो। बेवजह के कार्यों में धन खर्च हो रहा हो उन्हें कुंजिका स्तोत्र के पाठ से लाभ होता है। धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं। धन संग्रहण बढ़ता है।

शत्रु मुक्ति👉 शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में जीत के लिए यह स्तोत्र किसी चमत्कार की तरह काम करता है। नवरात्रि के बाद भी इसका नियमित पाठ किया जाए तो जीवन में कभी शत्रु बाधा नहीं डालते। कोर्ट-कचहरी के मामलों में जीत हासिल होती है।

रोग मुक्ति👉 दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जीवन से रोगों का समूल नाश कर देते हैं। कुंजिका स्तोत्र के पाठ से न केवल गंभीर से गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि रोगों पर होने वाले खर्च से भी मुक्ति मिलती है।

कर्ज मुक्ति👉 यदि किसी व्यक्ति पर कर्ज चढ़ता जा रहा है। छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है, तो कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ जल्द कर्ज मुक्ति करवाता है।

सुखद दांपत्य जीवन👉 दांपत्य जीवन में सुख-शांति के लिए कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ किया जाना चाहिए। आकर्षण प्रभाव बढ़ाने के लिए भी इसका पाठ किया जाता है।

इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक
🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸
देवी दुर्गा की आराधना, साधना और सिद्धि के लिए तन, मन की पवित्रता होना अत्यंत आवश्यक है। साधना काल या नवरात्रि में इंद्रिय संयम रखना जरूरी है। बुरे कर्म, बुरी वाणी का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इससे विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।

कुंजिका स्तोत्र का पाठ बुरी कामनाओं, किसी के मारण, उच्चाटन और किसी का बुरा करने के लिए नहीं करना चाहिए। इसका उल्टा प्रभाव पाठ करने वाले पर ही हो सकता है।

साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें। मैथुन के बारे में विचार भी मन में न लाएं।

श्री दुर्गा सप्तशती में से हम आपको एक एसा पाठ बता रहे हैं, जिसके करने से आपकी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इस पाठ को करने के बाद आपको किसी अन्य पाठ की आवश्यकता नहीं होगी। यह पाठ है..सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्। समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें। श्री दुर्गा सप्तशती में यह अध्याय सम्मिलित है। यदि समय कम है तो आप इसका पाठ करके भी श्रीदुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जैसा ही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। नाम के अनुरूप यह सिद्ध कुंजिका है। जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए। भगवती आपकी रक्षा करेंगी।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा
🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔹🔸🔸
भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।

क्यों है सिद्ध
🔸🔹🔸
इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है। इसमें स्वर व्यंजन की ध्वनि है। योग और प्राणायाम है।

संक्षिप्त मंत्र
🔸🔹🔸
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ( सामान्य रूप से हम इस मंत्र का पाठ करते हैं लेकिन संपूर्ण मंत्र केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में है)

संपूर्ण मंत्र यह है
🔸🔸🔹🔸🔸
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

कैसे करें
🔸🔹🔸
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।
1👉 संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।
2👉 जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5. 7. 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें। कभी एक कभी दो कभी तीन न रखें।
3👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
4👉 प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।
5👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।

सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
👉 रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।
2👉 रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें।

आसन
🔸🔹🔸
लाल आसन पर बैठकर पाठ करें

दीपक
🔸🔹🔸
घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें। अर्थात दोनों दीपक जलाएं

किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
1👉 विद्या प्राप्ति के लिए….पांच पाठ ( अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)
2👉 यश-कीर्ति के लिए…. पांच पाठ ( देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)
3👉 धन प्राप्ति के लिए….9 पाठ ( सफेद तिल से अग्यारी करें)
4👉 मुकदमे से मुक्ति के लिए…सात पाठ ( पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)
5👉 ऋण मुक्ति के लिए….सात पाठ ( जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)
6👉 घर की सुख-शांति के लिए…तीन पाठ ( मीठा पान देवी को अर्पण करें)
7👉 स्वास्थ्यके लिए…तीन पाठ ( देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)
8👉 शत्रु से रक्षा के लिए…, 3, 7 या 11 पाठ ( लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)
9👉 रोजगार के लिए…3,5, 7 और 11 ( एच्छिक) ( एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख लें)
10👉 सर्वबाधा शांति- तीन पाठ ( लोंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें।

श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्
🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔸
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥

अथ मन्त्रः
🔸🔹🔸
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
इति मन्त्रः॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥२॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ॥४॥

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे ॥
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती
संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्ण।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸

देव शर्मा