“कर्ण को कैसे प्राप्त हुआ विजय धनुष”
कर्ण अपनी इस विजय धारी धनुष के कारण पूरी दुनिया में अजय माना जाता था। क्योंकि, कर्ण के इसी विजय धारी धनुष के कारण ही एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यह कहा था की जब तक कर्ण के हाथ में उसका विजय धनुष हो तो तीनों लोकों के योद्धा एक साथ मिलकर भी कर्ण को नहीं हरा सकते हैं। और उस में बहुत सारी ऐसी खूबियों थी, जो अर्जुन के गांडीव धनुष में नहीं थी।
विजय धनुष का निर्माणकर्ता विश्वकर्मा जी ने किया था और इसका निर्माण तारकासुर राक्षस के पुत्र की नगरी त्रिपुरा का विनाश करने के लिए किया गया था। दोस्तों, इसी विजय धनुष पर अपना पशुपति बाण चला कर भगवान शिव ने राक्षसों सहित उस त्रिपुरा नगरी का विनाश किया था और उस राक्षस नगरी के विनाश के बाद भगवान शिव ने इस विजय धनुष को देवराज इंद्र को दे दिया था और देवराज इंद्र ने इस अद्भुत और शक्तिशाली धनुष से कई बार युद्ध में असुरों और राक्षसों का विनाश किया था।
कहते हैं, उस समय असुर देवराज इंद्र से इतना नहीं डरते थे जितना उनके विजय धनुष से डरते थे। उसके बहुत समय बाद जब क्षत्रियों ने भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि की हत्या कर दी थी तो भगवान परशुराम ने पूरी पृथ्वी को छत्रिय विहीन करने की सौगंध खा ली थी। ऐसे समय पर भगवान शिव ने भगवान परशुराम को विजय धनुष देवराज इन्द्र से दिलवाया था। तब उसी शक्तिशाली विजय धनुष के कारण ही, भगवान परशुराम ने बिना किसी की मदद से, अकेले ही २१ बार पृथ्वी को छत्रिय से विहीन किया था।
कर्ण भगवान परशुराम का शिष्य था और भगवान परशुराम कर्ण जैसे शिष्य को धनुर्विद्या की शिक्षा देकर बड़े प्रसन्न हुए थे। कर्ण झूठ का सहारा लेकर भगवान परशुराम का शिष्य बना था और उसी कारण भगवान परशुराम ने उसे युद्ध के समय धनुर्विद्या भूल जाने का श्राप भी दे दिया था। भगवान परशुराम को लगा की उनसे अपने सबसे प्रिय शिष्य कर्ण को कुछ ज्यादा ही कठोर श्राप दे दिया। और उनको कर्ण पर दया आ गयी। उसी समय उन्होंने कर्ण को अपना विजय धनुष दे दिया था।
लेकिन, कर्ण विजय धनुष पाने के बाद कभी भी उसका इस्तेमाल नहीं किया था। क्योंकि कर्ण उसी दिन उस विजय धनुष को इस्तेमाल करना चाहता था जिस दिन रणभूमि में उस का युद्ध अर्जुन के साथ हो और अर्जुन को मार सके। महाभारत युद्ध के १७ वे दिन जब कर्ण कौरवों की सेना का सेनापति था तब उसने अर्जुन से युद्ध करने के लिए पहली बार अपना विजय धनुष हाथ में उठाया था। परंतु, दुर्भाग्य से कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया था तो वहां रथ के पहिए को निकालने के लिए नीचे उतर आया था और अपना विजय धनुष रथ में ही छोड़ दिया।
भगवान श्री कृष्ण इस बात को जानते थे की यदि दुबारा कर्ण ने अपना विजय धनुष अपने हाथ में उठा लिए फिर तो अर्जुन को बचा पाना उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए उन्होंने अर्जुन को कर्ण को ललकारने को कहा। और फिर अर्जुन के हाथों कर्ण की मृत्यु हो गई।
शुभ संध्या
जय श्री कृष्ण
S N Vyas