Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

(((((((( अतुलनीय समर्पण ))))))))
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वो रोज़ाना की तरह आज फिर इश्वर का नाम लेकर उठी थी । किचन में आई और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया।
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फिर बच्चों को नींद से जगाया ताकि वे स्कूल के लिए तैयार हो सकें ।
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कुछ ही पलों मे वो अपने सास ससुर को चाय देकर आयी फिर बच्चों का नाश्ता तैयार किया और इस बीच उसने बच्चों को ड्रेस भी पहनाई। फिर बच्चों को नाश्ता कराया।
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पति के लिए दोपहर का टिफीन बनाना भी जरूरी था। इस बीच स्कूल की बस आ गयी और वो बच्चों को बस तक छोड़ने चली गई ।
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वापस आकर पति का टिफीन बनाया और फिर मेज़ से जूठे बर्तन इकठ्ठा किये ।
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इस बीच पतिदेव की आवाज़ आई की मेरे कपङे निकाल दो । उनको ऑफिस जाने लिए कपङे निकाल कर दिए।
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अभी पति के लिए उनकी पसंद का नाश्ता तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था की छोटी ननद आई और ये कहकर ये कहकर गई की भाभी आज मुझे भी कॉलेज जल्दी जाना, मेरा भी नाश्ता लगा देना।
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तभी देवर की भी आवाज़ आई की भाभी नाश्ता तैयार हो गया क्या ?
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अभी लीजिये नाश्ता तैयार है। पति और देवर ने नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने अपने ऑफिस के लिए निकल चले ।
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उसने मेज़ से खाली बर्तन समेटे और सास ससुर के लिए उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी ।
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दोनों को नाश्ता कराने के बाद फिर बर्तन इकट्ठे किये और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी ।
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फिर उसने सारे बर्तन धोये अब बेड की चादरें वगेरा इकट्ठा करने पहुँच गयी और फिर सफाई में जुट गयी ।
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अब तक 11 बज चुके थे, अभी वो पूरी तरह काम समेट भी ना पायी थी कि दरवाजे पर खट खट आवाज आयी ।
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दरवाज़ा खोला.. सामने बड़ी ननद और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे ।
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उसने ख़ुशी ख़ुशी सभी को आदर के साथ घर में बुलाया और उनसे बाते करते करते उनके आने से हुई ख़ुशी का इज़हार करती रही ।
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ननद की फ़रमाईश के मुताबिक़ नाश्ता तैयार करने के बाद अभी वो नन्द के पास बेठी ही थी की सास की आवाज़ आई की बहु आज खाने का क्या प्रोग्राम हे ।
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उसने घडी पर नज़र डाली तो 12 बज रहे थे । उसकी फ़िक्र बढ़ गयी वो जल्दी से फ्रिज की तरफ लपकी और सब्ज़ी निकाली और फिर से दोपहर के खाने की तैयारी में जुट गयी ।
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खाना बनाते बनाते अब दोपहर का दो बज चुके थे । बच्चे स्कूल से आने वाले थे, लो बच्चे आ गये ।
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उसने जल्दी जल्दी बच्चों की ड्रेस उतारी और उनका मुंह हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया ।
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इस बीच छोटी नन्द भी कॉलेज से आगयी और देवर भी आ चुके थे। उसने सभी के लिए मेज़ पर खाना लगाया और खुद रोटी बनाने में लग गयी ।
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खाना खाकर सब लोग फ्री हुवे तो उसने मेज़ से फिर बर्तन जमा करने शुरू करदिये ।
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इस वक़्त तीन बज रहे थे । अब उसको खुदको भी भूख का एहसास होने लगा था ।
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उसने हॉट पॉट देखा तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी । उसने फिर से किचन की और रुख किया
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तभी पतिदेव घर में दाखिल होते हुये बोले की आज देर हो गयी भूख बहुत लगी है जल्दी से खाना लगा दो ।
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उसने जल्दी जल्दी पति के लिए खाना बनाया और मेज़ पर खाना लगा कर पति को किचन से गर्म रोटी बनाकर ला ला कर देने लगी ।
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अब तक चार बज चुके थे । अभी वो खाना खिला ही रही थी की पतिदेव ने कहा की आ जाओ तुमभी खालो ।
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उसने हैरत से पति की तरफ देखा तो उसे ख्याल आया की आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं ।
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इस ख्याल के आते ही वो पति के साथ खाना खाने बैठ गयी ।
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अभी पहला निवाला उसने मुंह में डाला ही था की आँख से आंसू निकल आये
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पति देव ने उसके आंसू देखे तो फ़ौरन पूछा की तुम क्यों रो रही हो ।
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वो खामोश रही और सोचने लगी की इन्हें कैसे बताऊँ की ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता हे और लोग इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं ।
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पति के बार बार पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा की कुछ नहीं बस ऐसे ही आंसू आ गये ।
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पति मुस्कुराये और बोले कि तुम औरते भी बड़ी “बेवक़ूफ़” होती हो, बिना वजह रोना शुरू कर देती हो।
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सभी ग्रहणीयों को नमन जिनकी वजह से हमारे घरों में प्यार, ममता, वात्सल्य की गंगा बहती है, और उनका समर्पण अतुलनीय है।

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संजय गुप्ता

Posted in सुभाषित - Subhasit

: 🙏
•२००० square फीट के घर में
सिर्फ २०० फीट में हम रहते है । ….और

•बाकि के १८०० फीट में
हमारा अहंकार रहता है ॥
🙏
“वक्त” और “दौलत” के बीच का
सबसे बड़ा अंतर….

•आपको हर “वक्त” पता होता है कि
आपके पास कितनी “दौलत” है । ….लेकिन

•आप यह बिल्कुल भी नही जानते कि
आपके पास कितना ”वक्त”है ॥

🙏
•पायल हज़ारो रूपये में आती है,
पर पैरो में पहनी जाती है । ….और

•बिंदी 2 रूपये में आती है,
मगर माथे पर सजाई जाती है ॥

•इसलिए कींमत मायने नहीं रखती,
उसका मान मायने रखता हैं ॥

🙏
•एक किताबघर में पड़ी गीता और कुरान आपस में कभी नहीं लड़ते ।

•और जो उनके लिए लड़ते हैं वो
कभी उन दोनों को नहीं पढ़ते ॥

🙏
•नमक की तरह कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है,
मीठी बात करने वाले तो चापलूस भी होते है ।

•इतिहास गवाह है की आज तक कभी नमक में कीड़े नहीं पड़े । ….और
•मिठाई में अक़्सर कीड़े पड जाया करते है ॥
🙏
•विज्ञान कहता है:
“जीभ पर लगी चोट
सबसे जल्दी ठीक होती है ।” ….और

•ज्ञान कहता है:
“जीभ से लगी चोट कभी ठीक नहीं होती … !!”

                       ~हरी ओउःम्🔔

संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

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💎ज्ञानवर्धक कहानी….प्रेम के बोल🌷

एक गाँव में एक मजदुर रहा करता था जिसका नाम हरिराम था | उसके परिवार में कोई नहीं था | दिन भर अकेला मेहनत में लगा रहता था | दिल का बहुत ही दयालु और कर्मो का भी बहुत अच्छा था | मजदुर था इसलिए उसे उसका भोजन उसे मजदूरी के बाद ही मिलता था | आगे पीछे कोई ना था इसलिये वो इस आजीविका से संतुष्ट था |

एक बार उसे एक छोटा सा बछड़ा मिल गया | उसने ख़ुशी से उसे पाल लिया उसने सोचा आज तक वो अकेला था अब वो इस बछड़े को अपने बेटे के जैसे पालेगा | हरिराम का दिन उसके बछड़े से ही शुरू होता और उसी पर ख़त्म होता वो रात दिन उसकी सेवा करता और उसी से अपने मन की बात करता | कुछ समय बाद बछड़ा बैल बन गया | उसकी जो सेवा हरिराम ने की थी उससे वो बहुत ही सुंदर और बलशाली बन गया था |

गाँव के सभी लोग हरिराम के बैल की ही बाते किया करते थे | किसानों के गाँव में बैल की भरमार थी पर हरिराम का बैल उन सबसे अलग था | दूर-दूर से लोग उसे देखने आते थे |हर कोई हरिराम के बैल के बारे में बाते कर रहा था |

हरिराम भी अपने बैल से एक बेटे की तरह ही प्यार करता था भले खुद भूखा सो जाये लेकिन उसे हमेशा भर पेट खिलाता था एक दिन हरिराम के स्वप्न में शिव का नंदी बैल आया उसने उससे कहा कि हरिराम तुम एक निस्वार्थ सेवक हो तुमने खुद की तकलीफ को छोड़ कर अपने बैल की सेवा की हैं इसलिये मैं तुम्हारे बैल को बोलने की शक्ति दे रहा हूँ | इतना सुनते ही हरिराम जाग गया और अपने बैल के पास गया | उसने बैल को सहलाया और मुस्कुराया कि भला एक बैल बोल कैसे सकता हैं तभी अचानक आवाज आई बाबा आपने मेरा ध्यान एक पुत्र की तरह रखा हैं मैं आपका आभारी हूँ और आपके लिए कुछ करना चाहता हूँ यह सुनकर हरिराम घबरा गया उसने खुद को संभाला और तुरंत ही बैल को गले लगाया | उसी समय से वह अपने बैल को नंदी कहकर पुकारने लगा | दिन भर काम करके आता और नंदी से बाते करता |

गरीबी की मार बहुत थी नंदी को तो हरिराम भर पेट देता था लेकिन खुद भूखा सो जाता था यह बात नंदी को अच्छी नहीं लगी उसने हरिराम से कहा कि वो नगर के सेठ के पास जाये और शर्त रखे कि उसका बैल नंदी सो गाड़ी खीँच सकता हैं और शर्त के रूप में सेठ से हजार मुहरे ले लेना | हरिराम ने कहा नंदी तू पागल हो गया हैं भला कोई बैल इतना भार वहन कर भी सकता हैं मैं अपने जीवन से खुश हूँ मुझे यह नहीं करना लेकिन नंदी के बार-बार आग्रह करने पर हरिराम को उसकी बात माननी पड़ी |

एक दिन डरते-डरते हरिराम सेठ दीनदयाल के घर पहुँचा | दीनदयाल ने उससे आने का कारण पूछा तब हरिराम ने शर्त के बारे में कहा | सेठ जोर जोर से हँसने लगा बोला हरिराम बैल के साथ रहकर क्या तुम्हारी मति भी बैल जैसी हो गई हैं अगर शर्त हार गये तो हजार मुहर के लिये तुम्हे अपनी झोपड़ी तक बैचनी पड़ेगी |यह सुनकर हरिराम और अधिक डर गया लेकिन मुँह से निकली बात पर मुकर भी नहीं सकता था|

शर्त का दिन तय किया गया और सेठ दीनदयाल ने पुरे गाँव में ढोल पिटवाकर इस प्रतियोगिता के बारे गाँव वालो को खबर दी और सभी को यह अद्भुत नजारा देखने बुलाया | सभी खबर सुनने के बाद हरिराम का मजाक उड़ाने लगे और कहने लगे कि यह शर्त तो हरिराम ही हारेगा | यह सब सुन सुनकर हरिराम को और अधिक दर लगने लगा और उससे नंदी से घृणा होने लगी वो उसे कौसने लगा बार बार उसे दोष देता और कहता कि कहाँ मैंने इस बैल को पाल लिया मेरी अच्छी भली कट रही थी इसके कारण सर की छत से भी जाऊँगा और लोगो की थू थू होगी वो अलग | अब हरिराम को नंदी बिलकुल भी रास नहीं आ रहा था |

वह दिन आ गया जिस दिन प्रतियोगिता होनी थी | सौ माल से भरी गाड़ियों के आगे नंदी को जोता गया और गाड़ी पर खुद हरिराम बैठा | सभी गाँव वाले यह नजारा देख हँस रहे थे और हरिराम को बुरा भला कह रहे थे | हरिराम ने नंदी से कहा देख तेरे कारण मुझे कितना सुनना पड़ रहा हैं मैंने तुझे बेटे जैसे पाला था और तूने मुझे सड़क पर लाने का काम किया | हरिराम के ऐसे घृणित शब्दों के कारण नंदी को गुस्सा आगया और उसने ठान ली कि वो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ायेगा और इस तरह हरिराम शर्त हार गया सभी ने उसका मजाक उड़ाया और उसे अपनी झोपड़ी सेठ को देनी पड़ी |
अब हरिराम नंदी के साथ मंदिर के बाहर पड़ा हुआ था और नंदी के सामने रो रोकर उसे कोस रहा था उसकी बाते सुन नंदी को सहा नहीं गया और उसने कहा बाबा हरिराम यह सब तुम्हारे कारण हुआ | यह सुन हरिराम चौंक गया उसने गुस्से में पूछा कि क्या किया मैंने ? तुमने भांग खा रखी हैं क्या ? तब नंदी ने कहा कि तुम्हारे प्रेम के बोल के कारण ही भगवान ने मुझे बोलने की शक्ति दी | और मैंने तुम्हारे लिये यह सब करने की सोची लेकिन तुम उल्टा मुझे ही कोसने लगे और मुझे बुरा भला कहने लगे तब मैंने ठानी मैं तुम्हारे लिये कुछ नहीं करूँगा लेकिन अब मैं तुमसे फिर से कहता हूँ कि मैं सो गाड़ियाँ खींच सकता हूँ तुम जाकर फिर से शर्त लगाओ और इस बार अपनी झोपड़ी और एक हजार मुहरे की शर्त लगाना |

हरिराम वही करता हैं और फिर से शर्त के अनुसार सो गाड़ियाँ तैयार कर उस पर नंदी को जोता जाता हैं और फिर से उस पर हरिराम बैठता हैं और प्यार से सहलाकर उसे गाड़ियाँ खीचने कहता हैं और इस बार नंदी यह कर दिखाता हैं जिसे देख सब स्तब्ध रह जाते हैं और हरिराम शर्त जीत जाता हैं | सेठ दीनदयाल उसे उसकी झोपड़ी और हजार मुहरे देता हैं |

कहानी की शिक्षा :

प्रेम के बोल कहानी से यही शिक्षा मिलती हैं कि जीवन में प्रेम से ही किसी को जीता जा सकता हैं | कहते हैं प्रेम के सामने ईश्वर भी झुक जाता हैं इसलिये सभी को प्रेम के बोल ही बोलना चाहिये |

🙏🏼🌺ॐ हरि शरणम्🌺🙏🏼

संजय गुप्ता

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e-Library


|| e-Library ||

यह eLibrary है, इसमें कई सौ अमूल्य ग्रंथों के PDF हैं, ताकि यह ज्यादा से ज्यादा लोगों के काम आ सकें, देश धर्म संबंधी अमूल्य पुस्तकें इन लिंक में संग्रहीत हैं, आप विषय देखकर लिंक खोलें तो बहुत सी पुस्तकें मिलेंगी, सभी पुस्तकें आप निशुल्क download कर सकते हैं, इन लिंक्स की किताबें दो साल में अलग अलग स्त्रोतों से इकट्ठी की गईं हैं, अपनी पसंद की किताबें पढ़ें और शेयर करें…

Aadi Shankaracharya – आद्य शंकराचार्य :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRallkZ0VIWnRPVjA

Sri Aurobindo – श्री अरविंदो :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRSWktaVFPa2tSa2s

Swami Dayananda – स्वामी दयानंद :-
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRZnUxOEpPSVBHVzQ/edit

Swami Vivekanand – स्वामी विवेकानन्द :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRMFAtTi1yUFAzdW8

Swami Shivanand – स्वामी शिवानंद :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRYXJDclQwYTBfWFk

Swami Ramteerth – स्वामी रामतीर्थ :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRNGlYZzhqTEQtcU0

Sitaram Goel – सीताराम गोयल :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRT19aT3pnZ0tvODA

Veer Savarkar – वीर सावरकर :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRbE0wQng5YVZmb1E

P.N.Oak – पी.एन. ओक :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRRUVTTHpHVGhMVmM

हिन्दू, राष्ट्र:-
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRNW1scHdGMHQzZ0U/edit

Basic Hinduism –
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRTXdpN29OTUQ0Q3c

Hindutva and India :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRNzh0MXhyRVpiVEE

Islam Postmortem – इस्लाम की जांच पड़ताल :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRdjB2R1VNTTk2Q3M

Christianity Postmortem – बाइबिल पर पैनी दृष्टि :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRcHJfRnFkRGFQcFk

Autobiography – आत्मकथाएं :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRbEpPUGcydTZlWDQ

धर्म एवं आध्यात्म –
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRRzViUEdGMnI2Smc/edit

यज्ञ Yajna –
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRUThPYWlldEd6NVE/edit

Brahmcharya – ब्रह्मचर्य :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRNzJmbWpSYmg5bjQ

Yog – योग :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRcWZ1NzBoWER2Tkk

Upanishad – उपनिषद :-
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRNDJiQVFDbVFjbGc/edit

Geeta – श्रीमद्भगवद्गीता :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRWk9KVno2V3NNLXM

Manusmriti – मनुस्मृति :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRTXlYQUJhUXNWM00

Valmeeki and Kamba Ramayan – वाल्मीकि व कम्ब रामायण :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRa18yTE5EM1Z3Zk0

Puran – पुराण :-
https://drive.google.com/open?id=0B1giLrdkKjfRZnB1NnBCblVoUm8

Books on Vedas – वेदों पर किताबें :-
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRSU9OVzBfbENTcDg/edit

Maharshi Dayananda – महर्षि दयानंद :-
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRN2RzYVdFZWI1a0U/edit

————-Complete commentaries on Veda – सम्पूर्ण वेद भाष्य ——–

RigVeda – ऋग्वेद सम्पूर्ण –
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfROXl0b3B0RFpkWEE/edit

YajurVeda – यजुर्वेद सम्पूर्ण –
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRby02cXFWbnQ2b2M/edit

SamaVeda – सामवेद सम्पूर्ण –
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRNnh4ZG5PdUJ2bkU/edit

AtharvaVeda – अथर्ववेद सम्पूर्ण –
https://drive.google.com/folder/d/0B1giLrdkKjfRMFFXcU9waVl4aDQ/edit

🙏🙏

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આજની પોઝિટિવ સ્ટોરી

સલમાનને સજા કરાવવામાં મહત્વની ભૂમિકા ભજવનાર બિસ્નોઇ સમાજનો પ્રકૃતિ પ્રેમ જાણશો તો દંગ થઇ જશો..

આલેખનઃ રમેશ તન્ના

સલમાનખાનને કોટડીની કેદ સુધી પહોંચાડવામાં બિસ્નોઇ સમુદાયનું મોટું પ્રદાન છે. આ સમાજના લોકોએ આપેલી સાક્ષીએ કેસને અસર કરી હતી. કાળિયાર હરણનો શિકાર કરનારો સલમાન જેલમાં જશે પણ ‘હમ સાથ સાથ હૈં’ વાળા તેના સાથીદારો સૈફ અલી ખાન, તબ્બુ, નીલમ અને સોનાલી બેંદ્રે નિર્દોષ છુટી ગયા તેનું આ સમાજને દુઃખ છે. સરકારે તેમની સામે ઉપલી કોર્ટેમાં જવું જોઇએ તેવું તેઓ માને છે.


રાજસ્થાનના પશ્ચિમી થાર રણ વિસ્તારમાં રહેતા બિસ્નોઇ સમુદાયના લોકો પ્રકૃતિપ્રેમી છે અને પશુઓને તો ભગવાન જ માને છે. બિસ્નોઇ શબ્દ વીસ અને નવ(હિન્દીમાં નોઇ) મળીને બનેલો શબ્દ છે. એ લોકો વીસ વત્તા નવ ઓગણત્રીસ નિયમોનું પાલન કરે છે.
આ નિયમોમાંઃ પરોપકારી પશુઓનું રક્ષણ કરવું, માંસાહાર નહીં કરવાનો, તમ્બાકુ નહીં ખાવાની, ભાંગ-શરાબ નહીં, ચોરી નહીં કરવાની, જૂઠ્ઠું નહીં બોલવાનું, રસોઇ જાતે બનાવવાની વગેરેનો સમાવેશ થાય છે.
બિસ્નોઇ સમાજના લોકો પશુઓની હત્યા કોઇ પણ સંજોગોમાં થવા દેતા નથી. બિકાનેરના તાલવાના મહંતને દિના નામની વ્યક્તિ પર શંકા જતાં તેની પાસેથી તેમણે ઘેટું લઇ લીધું હતું તો 2001માં બાબુ નામની વ્યક્તિએ એક મરઘી મારી તો તેને સમુદાયમાંથી બહાર કાઢી દીધી હતી. આ નિર્ણય બિસ્નોઇ પંચાયતે કર્યો હતો.
સમાજની કોઇ વ્યક્તિ લીલા(જીવંત) ઝાડની ડાળી કાપી ના શકે. સમાજના જે ભાઇ-બહેનોએ ખિજડા કે અન્ય વૃક્ષો કાપ્યાં હતાં તેમણે આત્મસમર્પણ કરવું પડ્યું હતું. 1909માં કસાઇઓને એવો આદેશ અપાયો હતો કે તેઓ બકરો લઇને ગામમાંથી પસાર ના થાય.

વૃક્ષો માટે 363 બિસ્નોઇ શહીદ થયા હતાઃ


વાત 1730ની છે. જોધપુરના તત્કાલીન મહારાજા અભયસિંહને લાકડાંની જરૂર પડી. ખેજડલી ગામમાં ગીચ વૃક્ષો હતાં. દિવાન અને સૈનિકો ત્યાં વૃક્ષો કાપવા ગયા. 84 ગામના બિસ્નોઇઓની મહાપંચાયત મળી. એવો નિર્ણય કરાયો કે જ્યાં સુધી આપણામાં પ્રાણ છે ત્યાં સુધી લડીશું અને વૃક્ષો બચાવીશું. મા અમૃતાદેવી બિસ્નોઇના નેતૃત્વમાં આ સમુદાયના લોકો વૃક્ષોને ચોંટી ગયા. 60 ગામનો, 64 ગોત્રોના, 217 પરિવારના, 294 પુરુષો અને 69 મહિલાઓ સહિત 363 વ્યક્તિઓ વૃક્ષ બચાવવા શહીજ થયાં હતાં.
આ ઘટનાના 250 વર્ષ પછી 1978માં શહીદોની સ્મૃતિમાં મેળો ભરાયો. ભારતમાં હજારો-લાખો મેળા ભરાય છે, પણ પર્યાવરણ મેળો તો આ એક માત્ર છે. મેળામાં પર્યાવરણને લાગતી અનેક પ્રવૃતિ યોજાય છે. પ્રકૃતિ અને પશુઓ માટે શહીદ થનારી આ સમુદાય સામે હરણનો શિકાર પડદા પરનો હીરો સલમાન કેવો મોટો વિલન લાગે નહીં ?
જે સમુદાય વૃક્ષ માટે પ્રાણ આપી દે એ સમુદાય શિકારીને સજા કરાવવા પોતાનાથી થાય તે બધું જ કરે.
બિસ્નોઇ સમાજનો આ પર્યાવરણ પ્રેમ પ્રેરક બને તેવો છે.

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એક નગરમાં બે ભાઇઓ રહેતા હતા.


એક નગરમાં બે ભાઇઓ રહેતા હતા. એક બદમાશ અને દારુડીયો હતો તો બીજો નગરનો પ્રતિષ્ઠિત વેપારી હતો. બધા લોકોને એક જ સવાલ થતો કે બંને ભાઇઓ એક જ પિતાના સંતાન છે, એક જ ઘરમાં મોટા થયા છે, એક જ શાળામાં ભણ્યા છે અને આમ છતા બંને વચ્ચે આટલો મોટો તફાવત કેમ છે. નગરના એક સજ્જનને આ તફાવતનું કારણ જાણવાની ઇચ્છા થઇ આથી એમણે બંને ભાઇઓને રૂબરૂ મળવાનું નક્કી કર્યુ.
આ સજ્જન પ્રથમ દારુડીયાના ઘરે ગયા. પેલો તો દારુ ઢીંચીને પડ્યો હતો ઘરમાં. સજ્જને તો એના ઘરે જઇને આડીઅવળી વાતો કરવાને બદલે સીધુ જ પુછી નાખ્યુ , “ તમારી આવી ખરાબ પરિસ્થિતી માટે કોણ જવાબદાર છે?” દારુડીયાએ કહ્યુ , “ મારી આવી પરિસ્થિતી માટે મારા પિતા જવાબદાર છે ?” સજ્જને કહ્યુ કે “તમે મને સમજાવશો કે તમારી આવી ખરાબ હાલત માટે તમારા પિતા કેમ જવાબદાર છે ?”
પોતાનો બળાપો કાઢતા એ બોલ્યો , “ મારા પિતાને પણ દારુની અને જુગારની આદત હતી. કાયમ દારુ ઢીંચીને આવે અને ઘરમાં ઝગડાઓ થાય એની અસર મારા પર પડી અને હું પણ મારા બાપની જેમ આ દારુના રવાડે ચડી ગયો.”
પેલા સજ્જન હવે ગામના પ્રતિષ્ઠિત વેપારીની ઘરે ગયો અને તેમને પણ આવો જ સવાલ પુછ્યો કે “ તમારી આવી સારી પરિસ્થિતી માટે કોણ જવાબદાર છે?” નગરના એ વેપારીને એણે જવાબ આપ્યો , “ મારી આ સારી પરિસ્થિતી માટે મારા પિતા જવાબદાર છે.”
જવાબ સાંભળીને સજ્જન ચોંકી ગયા. એક ભાઇની ખરાબ અને બીજા ભાઇની સારી સ્થિતી માટે એના પિતા કેવી રીતે જવાબદાર હોઇ શકે ? એણે જ્યારે આ બાબતે સ્પષ્ટતા કરવા કહ્યુ ત્યારે વેપારીભાઇએ કહ્યુ , “ મારા પિતાને દારુ અને જુગારની આદત હતી. મેં મારા પિતાની આ સ્થિતી જોઇ ત્યારે જ નક્કી કર્યુ હતુ કે મારે મારા પિતા જેવું જીવન નથી જીવવું. મારે મારા પરિવારને એ તમામ ખુશીઓ આપવી છે જે મારા પિતા એમના પરિવારને નહોતા આપી શકતા અને આજે તમે એનું પરિણામ જોઇ રહ્યા છો.”
જીવનની કોઇપણ ઘટનાને કેવી રીતે મુલવવી તે આપણા હાથની વાત છે. જો નકારાત્મક વિચારવાની ટેવ હશે તો એ આપણને દુ:ખોની ઉંડી ખીણ તરફ લઇ જશે અને જો હકારાત્મક રીતે વિચારવાની ટેવ હશે તો એ આપણને સુખના શિખરો તરફ દોરી જશે. ક્યાં જવું છે તે આપણે જ નક્કી કરવાનું છે.

— કાઠીયાવાડી દરબાર

 

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एका संन्याशाचे ‘वैभव’…

एका राज्यात एक संन्यासी रहात होता. गावाबाहेर एका मंदिरात रहायचे, येणाऱ्या लोकांना मार्गदर्शन करायचे, मंदिराची आणि गावाची सेवा करायची आणि मिळेल त्यात गुजराण करायची असा त्याचा नित्यक्रम होता.

एकदा त्या राज्याचा राजा त्या बाजूने एका मोहिमेवर जात होता. त्याने या संन्याशाबद्दल ऐकले आणि त्याला भेटण्यासाठी तो त्या मंदिरात गेला.

संन्याशाने राजाचे यथोचित आदरातिथ्य केले आणि राजाला मार्गदर्शन केले. राजा पुढे मोहिमेवर गेला आणि त्यात त्याला खूप मोठे यश मिळाले. हे यश संन्याशाच्या मार्गदर्शनामुळे मिळाले म्हणून राजाचा त्याच्यावर प्रचंड विश्वास बसला. माघारी जाताना तो पुन्हा मंदिरात गेला आणि संन्याशाला राजवाड्यात वास्तव्यास येण्याची विनंती केली.

संन्याशी म्हणाला, “आम्ही संन्याशी लोक, आम्हाला काय करायचंय राजवैभव. आम्ही इथेच ठीक आहोत.”

परंतु राजा म्हणाला, “महाराज, आम्हाला, राज्याला आपल्या मार्गदर्शनाची गरज आहे. राज्याच्या कल्याणासाठी आपण आमच्यासोबत चलावे.”

अखेर संन्याशी तयार झाला आणि राजासोबत महालात रहायला गेला.

राजाचा राजवाडाच तो, तिथे काय कमी? संन्याशाला स्वतंत्र महाल देण्यात आला. उंची वस्त्रे, रेशमी बिछाने, गालिचे, सोन्याचांदीची भांडी, पंचपक्वाने कशाकशाची कमी नव्हती.

संन्याशाचा आता ‘राज ऋषी’ झाला. महालात रहात असताना पण त्याची नित्यकर्मे सुरूच होती. आणि बैठकीत तो राजाला कारभाराबाबत सल्ले द्यायचा.

पण झालं असं की त्याच्या सोबत इतर जे संन्याशी होते, त्यांचा जळफळाट होऊ लागला. त्यांना या वैभवाची लालसा होती, पण त्यांना ते मिळत नव्हते.

एके दिवशी ते सगळे त्या संन्याशाच्या महालात गेले. संन्याशी आसनावर बसून काहीतरी वाचन करत होता. त्याने त्या सर्वांना बसायला सांगितले, आदरातिथ्य केले.

भेटीला गेलेल्या संन्याशांच्या म्होरक्याने त्यास विचारले, “काय रे, तू तर विरक्तीच्या मोठ्या मोठ्या बाता मारत होतास. ‘माझे जीवन मी परमेश्वराला दिले आहे’ असे सांगत होतास. आणि इथे मात्र चैन करतो आहेस. आता तुला विरक्ती नाही का आठवत?”

हे ऐकून संन्याशी मंद हसला. आपल्या आसनावरून उठला आणि सर्वांना म्हणाला, “चला माझ्यासोबत.”

सर्वजण आपल्या जागेवरून उठले आणि कुतूहलाने संन्याशाच्या मागे जाऊ लागले. चालत चालत ते सर्वजण महालाबाहेर आले, गावाबाहेर आले, लोकवस्ती संपून जंगल सुरू झाले… मग मात्र एकेकाचा धीर सुटायला लागला.

एकाने विचारले, “अरे इकडे कुठे नेतोयस आम्हाला?”

संन्याशी म्हणाला, “आपण देवाकडे जातोय.”

दुसरा म्हणाला, “अरे, पण आपण इकडे रहाणार कुठं, खाणार काय? आणि आमची झोळी, ती तर तिकडे महालातच राहिली, ती तरी घेतली असती…”

तेव्हा संन्याशी म्हणाला, “बंधुनो, मी माझा महाल, माझे वैभव सोडून आलो… तुम्हाला तुमची झोळी सुद्धा सोडवत नाही?? आता तुम्हीच सांगा आसक्ती कुणाला आहे आणि विरक्त कोण आहे? लोभी कोण आहे आणि योगी कोण आहे?”

“माझ्याकडे जे आहे, ते मी माझे म्हणून उपभोगत नाही, तर मी ज्या स्थानावर आहे त्याची गरज म्हणून वापरतो आहे. मला याचा जराही लोभ नाही.”

हे ऐकून त्या सर्व संन्याशाना त्यांची चूक लक्षात आली.


गोष्ट पहिली तर अगदी साधी…

एखाद्या लहान मुलाला ऐकवावी अशी…

पण आज ती सर्वांना सांगायची गरज आहे ती यासाठी की, आसक्ती आणि विरक्तीचा विचार करताना आपली गफलत होऊ नये.

देशहिताचा विचार करताना ‘मोदी’ नावाचा संन्याशी, स्थानाची प्रतिष्ठा राखण्यासाठी वैभव वापरितही असेल, पण ते विरक्तपणे… परंतु जे त्यांच्या नावाने अखंड टोळ्या जमवून शिमगा करतात, त्यांचे हेतू आपण ओळखायला हवेत.

उद्या जर या संन्याशाला आपण हाकलून दिले, तर तो सहजच निघूनही जाईल… त्याला त्याचा काही खेद नसेल, परंतु तो गेल्यावर संधीसाधू लांडग्यांची जी लचकेतोड सुरू होईल, त्याचे काय? याचा आपण विचार करायला हवा.

अधिक काय लिहावे??

— डॉ. मनोहर देशमुख


Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

अवश्य पढ़ें एक ज्ञानवर्धक एवम रोचक प्रस्तुति,,,,,

मित्रो, बात उस समय की है जब भरतजी प्रभु श्रीरामजी को मनाने वनवास जा रहे हैं तथा सभी अयोध्या वासी भी उनके साथ है, सभी वाहनों में बैठे हैं जबकि भरतजी पैदल चल रहे है, जब भरतजी को पैदल चलते देखकर सब अपने वाहनों से उतर गये, किसी आचार्य ने टिप्पणी की कि साधक के जीवन में यही सत्य है, हर मनुष्य के मन में अनुकरण की इच्छा होती है, महापुरुषों को देखकर सोचता है कि मैं भी इनके जैसा साधक बनूँ।

मोरे जिय भरोस दृढ नाहीं, भगति बिरति न ग्यान मन माहीं।
नहीं सतसंग जोग जप जागा, नहीं दृढ चरण कमल अनुरागा।।

देखो सज्जनों! देखा-देखी किसी की साधन पद्धति को नही अपनाना चाहिये, किसी दुसरे की पद्धति को देखकर अपनी पद्धति को छोडना भी नहीं चाहिये, सभी साधन पूर्ण हैं, जब नाम परमात्मा तक ले जा सकता है तो वाहन तो कोई भी हो, सबकी शारीरिक मानसिक क्षमता एक जैसी नहीं होती, इसलिये देखा-देखी छोड देना कई बार कष्टकारी हो सकता है।

इसलिये गीता में भगवान् कहते हैं- अर्जुन! ये ज्ञान और योग कितना भी उत्कृष्ट क्यों न हो किन्तु जो कर्म के आस्थावान है उनको इस कर्म के मार्ग से विचलित नहीं करना चाहिये, कई बार योगी-ध्यानी कहते हैं- ये क्या कर्मकाण्ड में लगे हो? नहीं दूसरे की साधना को कभी न्यून-हीन नहीं मानना चाहिये।

यहाँ कौशल्या माँ भरतजी से आग्रह करती है कि तुम पैदल मत चलो क्योंकि? तुम्हारी वजह से अयोध्यावासी भी पैदल चल रहे हैं, ये तुम्हारे समान तपस्वी नहीं हैं ये सब बड़े साधन भोगी हैं, हमारे भरतजी तो बहुत शीलवान हैं, उनकी साधना वास्तव में प्रदर्शन के लिये नहीं है, उनकी साधना तो भगवत दर्शन के लिये हैं प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिये नहीं, प्रभु प्राप्ति के लिये है।

भरतजी बहुत सरल हैं, साधना जितनी सहज और सरल होगी वो उतनी ही आपको प्रभु के निकट ले जायेगी, कई बार साधना के नाम पर हम दिखावे में फँस जाते हैं, अन्ततः ये दिखावा एक दिन मनुष्य को पाखण्डी बना देता है, ऐसा व्यक्ति प्रभु को तो भूल जाता है, लोगों को क्या अच्छा लगता है बस इसी में डूबा रहता है, इसलिये प्रार्थना कोई क्रिया नहीं है, प्रार्थना तो एक भाव है।

प्रार्थना के भाव में जीना ही पूजा है, पूजा करने और पूजा में होने में जमीन आसमान का फर्क है, जो की जाती है वो दिखावे के लिये, हर समय पूजा के भाव में रहना यह उच्चकोटि की पूजा है, और भरतजी इसी कोटि के आचार्य हैं, पूजा को हमने कर्मकाण्ड बना दिया, पूजा तो सज्जनों! भाव हैं।

मीरा बाई ने गीत गाया और लताजी ने गीत गाया, लताजी को तो अनेकों पुरूस्कार मिले थे लेकिन मीरा को तो पुरूस्कार नहीं मिले, उन्हें तो गालियाँ मिली, मीरा को विष मिला, मीरा का गायन प्रायोजित नहीं था लेकिन प्राणवान था, ऐसे ही पूजा प्रायोजित नहीं प्राणवान चाहिये, भाव चाहिये शबरी के जैसा, सबरी को कोई स्तुति की विधि भी नहीं आती लेकिन विधाता इनके द्वार पर आता है।

केहि बिधि अस्तु करहुँ तुम्हारी, अधम जाति मैं जडमति भारी।
अधम ते अधम अति नारी, तिन्ह महँ मैं मति मन्द अधारी।।

शबरी कहती है प्रभु! किस विधि से आपकी स्तुति करूँ, मुझे तो कोई विधि आती ही नहीं, भगवान् ने कहा विधि से क्या होगा? शबरी ने कहा कि आपकी स्तुति तो विधि विधान से ही होगी, भगवान् ने कहा बावली! विधि का क्या करोगी जब विधाता तुम्हारे बगल में बैठा है? विधि चाहिये लेकिन विधि कोई बन्धन न बने, विधि ढ़ोग न बन जायें।

हमने एक फकीर की कथा सुनि, एक सूफी संत फकीर के पास उनका एक साधु मित्र मिलने आया, अब सतसंग व भगवत चर्चा होने लगी, आधी रात हो गयी ये अंधा था, जाने लगा तो फकीर ने कहा, ज्यादा रात हो गयी है, अंधेरा है लालटेन ले जाओ, वो हंस कर बोला जानते नहीं अन्धा हूँ मुझे दिन और रात का तो कोई अन्तर ही नही लगता है लालटेन का क्या लाभ होगा? मेरे लिये तो सब बराबर है।

उस फकीर साधु ने कहा ये तो ठीक है पर लालटेन हाथ में रहेगी तो सामने वाला तो नहीं टकरायेगा, अंधे साधु ने तर्क को मान लिया, वो चला, रास्ते में एक आदमी से टकरा गया, अंधे ने कहा कमाल है इस गाँव में केवल मैं अकेला अंधा आदमी हूँ लगता है तुम किसी दूसरे गाँव से आये हो, तुम्हे नहीं दिखा कि मेरे हाथ में लालटेन हैं।

सामने वाला आदमी बड़ी जोर से हँसा, बोला क्षमा करें महाराज! मैं तो अन्धा नहीं हूँ लेकिन आपके हाथ में जो लालटेन लगी है वो बुझ गयी है इसका आपको भी पता नही है, अगर कोई अन्धा लालटेन ले भी जाये तो रास्ते में बुझ जायेगी और उसको पता भी नहीं चलेगा।

ऐसे ही कई बार अंधों के हाथ में पड़कर साधनायें भी कर्म काण्ड हो जाती हैं, बुझ जाती हैं श्री भरतजी पूजा के भाव में रहते हैं, वे साधना के कर्म काण्ड में फँसे नहीं हैं, साधना में डूबे हैं इसलिये भरतजी प्रदर्शन के लिये पैदल नहीं चल रहे हैं, माँ ने कहा वाहन में बैठ गये, भरतजी साधु हैं और साधु हमेशा अपना आत्म निरीक्षण करता हैं।

साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥
जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥3॥

भावार्थ:-संतों का चरित्र कपास के चरित्र (जीवन) के समान शुभ है, जिसका फल नीरस, विशद और गुणमय होता है। (कपास की डोडी नीरस होती है, संत चरित्र में भी विषयासक्ति नहीं है, इससे वह भी नीरस है, कपास उज्ज्वल होता है, संत का हृदय भी अज्ञान और पाप रूपी अन्धकार से रहित होता है, इसलिए वह विशद है और कपास में गुण (तंतु) होते हैं, इसी प्रकार संत का चरित्र भी सद्गुणों का भंडार होता है, इसलिए वह गुणमय है।

(जैसे कपास का धागा सुई के किए हुए छेद को अपना तन देकर ढँक देता है, अथवा कपास जैसे लोढ़े जाने, काते जाने और बुने जाने का कष्ट सहकर भी वस्त्र के रूप में परिणत होकर दूसरों के गोपनीय स्थानों को ढँकता है, उसी प्रकार संत स्वयं दुःख सहकर दूसरों के छिद्रों (दोषों) को ढँकता है, जिसके कारण उसने जगत में वंदनीय यश प्राप्त किया है॥
भाई-बहनों! आज के पावन दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हों।

जय श्री रामजी!

संजय गुप्ता

Posted in ज्योतिष - Astrology

शनिदेव
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शनि के बारे में आप सब ने सुना होगा और शनि से भयभीत भी हुए होंगे जब भी किसी ज्योतिषी के पास जाओ वो शनि देव से भयभीत करता है आइये आज जानते हैं शनि देव का सही रूप और कुछ रहस्य पहले शनि देव के परिवार के बारे में जानते हैं शनि देव कश्यप गोत्र के हैं और सूर्य देव के पुत्र हैं शनि के भाई यमराज हैं और बहन का नाम यमुना है शनि देव के दो भाई एक बहन और हैं उन के नाम हैं भद्रा और अश्वनी कुमार जो देवताओं के वैद धन्वंतरि के शिष्य हैं।

जब शनि देव का जन्म हुआ तो सूर्य देव की आभा फीकी पड़ गयी इसलिए सूर्य देव ने शनि देव को अपने घर से निकाल दिया तब से ही माना गया है की शनि सूर्य की आपस में दुश्मनी है जबकि सच यह है की शनि अपने पिता सूर्य से बहुत प्यार करते है और सूर्य देव शनि देव से दुश्मनी रखते हैं।

शनि देव का परिवार भी बड़ा आश्चर्य से भरा है एक तरफ विष्णु देव रूप सूर्य पिता हैं जो सब को जीवन देते हैं और एक तरफ यम राज भाई जो प्राण हरने का काम करते हैं और दो भाई जो रोग नाश करते हैं।

शनि देव को शिव का परम गण माना गया है शिव के बहुत प्रिय हैं शनि देव और शनि देव कृपालु बहुत हैं इन को न्यायाधीश का पद प्राप्त है यह सिर्फ आप के कर्म अनुसार फल प्रदान करते हैं और कुछ नहीं बिगाड़ते अगर आप के कर्म सही हैं तो भय मुक्त हो जाइये शनि देव आप का कोई अहित नहीं करेगे और अगर आप के कर्म ख़राब हैं तो उन्हें अच्छा कीजिये और पुराने पाप के नाश के लिए शिव की शरण लीजिये।

शनि देव का जंहा मंदिर होगा वंहा हनुमान जी का मंदिर जरूर होगा ऐसा इसलिए की हनुमान जी और शिव में कोई अन्तर ही नहीं है यानि हनुमान जी भी 11 वे रूद्र अवतार हैं और शनि देव तो हैं ही शिव के परम गण शनि देव मेष राशि में नीच और तुला राशि में उच्च के माने जाते हैं यंहा ध्यान देने की बात है की मेष राशि के स्वामी मंगल होता है और मंगल के देवता हनुमान जी होते हैं अतः वंहा शनि देव सेवक रूप में रहते हैं और इसीलिए शनि शांति हेतु हनुमान उपासना प्रमुख मानी जाती है शनि देव की शांति के लिए शिव पूजा , हनुमान पूजा , और भैरव पूजा का विधान है।
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देव शर्मा