वैद्य प्रशंसा और निन्दा (श्री मोहन चन्द्र जोशी जी से)-सुभाषित रत्नाकर में वैद्य प्रशंसा का प्रथम श्लोक-
गुरोरधीताऽखिलवैद्यविद्यः पीयूषपाणिः कुशलः क्रियासु॥
गतस्प्रहो धैर्यधरः कृपालुः शुद्धोऽधिकारी भिषगीदृशः स्यात्॥
= जिसने अपने विद्वान गुरुओं से संपूर्ण चिकित्सा विज्ञान सीखा हो, शल्यक्रिया करने में इतना कुशल हो कि मानो उसके हाथों में मृतक को भी जीवित करने वाला अमृत हो, ईर्ष्या से रहित, धैर्यवान, दयालु और
सरल स्वभाव वाला हो, वही वैद्य वास्तव में एक आदर्श वैद्य होता है।
कुवैद्योपहास का प्रथम श्लोक-
वैद्यराज नमस्तुभ्यं यमराज सहोदर। यमस्तु हरति प्राणान्वैद्यः प्राणान्धनानि च॥
= यमराज के सहोदर वैद्यराज को नमस्कार है। यम केवल प्राण हरता है, वैद्य प्राण और धन दोनों हर लेता है।