ओ३म्
🌷वेद के 120 अनमोल रत्न(सूक्तियाँ)🌷
1) न यस्य हन्यते सखा न जीयते कदाचन ।। ऋ०१०/१५२/१
ईश्वर के भक्त को न कोई नष्ट कर सकता है न जीत सकता है।
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2) तस्य ते भक्तिवांसः स्याम ।। अ० ६/७९/३
हे प्रभो हम तेरे भक्त हो।
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3) स नः पर्षद् अतिद्विषः ।। अ० ६/३४/१
ईश्वर हमें द्वेषों से पृथक कर दे।
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4) न विन्धेऽस्य सुष्टुतिम् ।। ऋ० १/७/७
मैं परमात्मा की स्तुति का पार नहीं पाता।
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5) यत्र सोमः सदमित् तत्र भद्रम् ।। अ० ७/१८/२
जहां परमेश्वर की ज्योति है वहां सदा ही कल्याण है।
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6) महे चन त्वामद्रिवः परा शुक्लाय देयाम् ।। ऋ० ८/१/५
हे ईश्वर ! मैं तुझे किसी कीमत पर भी न छोडूँ।
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7) स एष एक एकवृदेक एव ।। अ० १३/४/२०
वह ईश्वर एक और सचमुच एक ही है।
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8) न रिष्यते त्वावतः सखा ।। ऋ०१/९१/८
ईश्वर ! आपका मित्र कभी नष्ट नहीं होता।
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9) ओ३म् क्रतो स्मर ।। य० ४०/१५
हे कर्मशील मनुष्य!तू ओ३म् का स्मरण कर।
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10) एको विश्वस्य भुवनस्य राजा ।। ऋ०६/३६/४
वह सब लोकों का एक ही स्वामी है।
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11) ईशावास्यमिदं सर्वम् ।। य०। ४०/१
इस सारे जगत में ईश्वर व्याप्त है।
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12) त्वमस्माकं तव स्मसि ।। ऋ०८/९२/३२
प्रभु ! तू हमारा है, हम तेरे हैं।
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13) अधा म इन्द्र श्रृणवो हवेमा ।।ऋ०७/२९/३
हे प्रभु !अब तो मेरी इन प्रार्थनाओं को सुन लो।
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14) तमेव विद्वान् न बिभाय मृत्योः ।। अ० १०/८/४४
आत्मा को जानने पर मनुष्य मृत्यु से नहीं डरता।
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15) यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति ।। ऋ०१/१६४/३९
जो उस ब्रह्म को नहीं जानता वह वेद से क्या करेगा।
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16) तवेद्धि सख्यम स्तृतम्।। ऋ० १/१५/५
प्रभो! तेरी मैत्री ही सच्ची है।
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17) स्वस्ति गोभ्यो जगते पुरूषेभ्यः ।। अ० १/३१/४
सब पशु पक्षी और प्राणीमात्र का भला हो।
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18) स्वस्ति मात्र उत पित्रे नो अस्तु ।।अ० १/३१/४
हमारे माता और पिता सुखी रहें।
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19) रमन्तां पुण्या लक्ष्मीर्याः पापीस्ताऽनीनशम् । अ०७/११५/४
पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढावे और पाप की कमाई को मैं नष्ट कर देता हूं।
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20) मा जीवेभ्यः प्रमदः ।।। अ०८/१/७
प्राणियों की और से बेपरवाह मत हो।
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