इसबगोल के विभिन्न रोगो में उपयोग।
ईसबगोल प्लेनटेगो आवेटा तथा प्लेंटेगो सिलियम नामक पौधे के लाल भूरे एवं काले बीजो से इसबगोल प्राप्त होता हैं। यह एक झाड़ी के रूप में उगता है, जिसकी अधिकतम ऊँचाई ढाई से तीन फुट तक होती है। इसके पत्ते महीन होते हैं तथा इसकी टहनियों पर गेहूँ की तरह बालियाँ लगने का बाद फूल आते हैं। फूलों में नाव के आकार के बीज होते हैं। इसके बीजों पर पतली सफ़ेद झिल्ली होती है। यह झिल्ली ही ‘ईसबगोल की भूसी’ कहलाती है। यह एक स्वादिष्ट एवं महक रहित आयुर्वेदीय औषिधि हैं। इसबगोल का बीज तथा बीज का छिलका (भूसी या हस्क) औषिधीय कार्यो में बेहद उपयोगी हैं।
आइये जाने इनको प्रयोग।
अमीबिका (पेचिश):
100 ग्राम ईसबगोल की भूसी में 50-50 ग्राम सौंफ और मिश्री को 2-2 चम्मच की मात्रा में रोजाना 3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
जोड़ों का दर्द:
ईसबगोल की पुल्टिश (पोटली) पीड़ित स्थान पर बांधने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।
पायरिया:
ईसबगोल को सिरके में मिलाकर दांतों पर मालिश करने से पायरिया के रोग में लाभ मिलता है।
स्वप्नदोष:
ईसबगोल और मिश्री मिलाकर एक-एक चम्मच एक कप दूध के साथ सोने से 1 घंटा पहले लें और सोने से पहले पेशाब करके सोयें।
आंव:
1 चाय की चम्मच ईसबगोल गर्म दूध में फुलाकर रात्रि को सेवन करें। प्रात: दही में भिगोकर, फुलाकर उसमें सोंठ, जीरा मिलाकर 4 दिन तक लगातार सेवन करने से आंव निकलना बंद हो जाएगा।
पुरानी कब्ज, आंव, आंतों की सूजन :
पुरानी आंव या आंतों की सूजन में 100-100 ग्राम बेल का गूदा, सौंफ, ईसबगोल की भूसी और छोटी इलायची को एक साथ पीसकर पाउडर बना लेते हैं। अब इसमें 300 ग्राम देशी खांड या बूरा मिलाकर कांच की शीशी में भरकर रख देते हैं।
इस चूर्ण की 2 चम्मच मात्रा सुबह नाश्ता करने के पहले ताजे पानी के साथ लेते हैं और 2 चम्मच शाम को खाना खाने के बाद गुनगुने पानी या गर्म दूध के साथ 7 दिनों तक सेवन करने से लाभ मिल जाता है। लगभग 45 दिन तक यह प्रयोग करने के बाद बंद कर देते हैं। इससे कब्ज, पुरानी आंव और आंतों की सूजन के रोग दूर हो जाते हैं।
श्वास या दमा:
1 वर्ष या 6 महीने तक लगातार रोजाना सुबह-शाम 2 चम्मच ईसबगोल की भूसी गर्म पानी से सेवन करते रहने से सभी प्रकार के श्वांस (सांस) रोग दूर हो जाते हैं। 6 महीने से लेकर 2 साल तक सेवन करते रहने से 20 से 22 साल तक का पुराना दमा रोग भी इस प्रयोग से चला जाता है। 1-1 चम्मच ईसबगोल की भूसी को दूध के साथ लगातार सुबह और शाम कुछ महीनों तक सेवन करने से दमा के रोग में लाभ मिलता है।
पेशाब की जलन:
1 गिलास पानी में 3 चम्मच ईसबगोल की भूसी को भिगोकर उसमें स्वाद के मुताबिक बूरा (खांड या चीनी) डालकर पीने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है।
श्वेतप्रदर:
ईसबगोल को दूध में देर तक उबालकर, उसमें मिश्री मिलाकर खाने से स्त्रियों के श्वेत प्रदर में बहुत लाभ मिलता है।
सिर दर्द:
ईसबगोल को बादाम के तेल में मिलाकर मस्तक पर लेप करने से सिर दर्द दूर हो जाता है।
कान का दर्द:
ईसबगोल के लुवाब में प्याज का रस मिलाकर, हल्का सा गर्म करके कान में बूंद-बूंद करके डालने से कान के दर्द में लाभ मिलता है।
मुंह के छाले:
ईसबगोल को पानी में डालकर रख दें। लगभग 2 घंटे के बाद उस पानी को कपड़े से छानकर कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
3 ग्राम ईसबगोल की भूसी को मिश्री में मिलाकर हल्के गर्म पानी के साथ सेवन करें। इससे मुंह के छाले और दाने ठीक हो जाते हैं। ईसबगोल से कब्ज व छाले नष्ट होते हैं। ईसबगोल को गर्म पानी में घोलकर दिन में 2 बार कुल्ला करने से मुंह के छालों में आराम होगा।
आंतों की जलन- संग्रहणी
आंतों की जलन- संग्रहणी की दाहजन्य पीड़ा में ईसबगोल को दूध में पकाकर मिसरी मिलाकर दूध ठंडा होने के बाद पिलाने से आंतों की जलन कम होती है। यह औषधि भूख बढ़ाती है, मल को बांधती हैं।
पित्तजन्य सिरदर्द में
पित्त विकार के कारण सिरदर्द एवं आंखों का दर्द हो तो ईसबगोल के बीज की 10 ग्राम मात्रा लेकर पानी में भिगो दें तथा 3-4 घंटे बाद मसलकर छानकर मिसरी मिलाकर ठंडे पानी या ठंडे दूध के साथ पीने से लाभ मिलता है।
बवासीर एवं दस्त रोगों में (ईसबगोल का विशिष्ट योग)-
ईसबगोल 50 ग्राम, छोटी इलायची 25 ग्राम और धनिया के बीज 25 ग्राम लेकर सबको मिलाकर चूर्ण बना लें तथा नित्य 5 ग्राम की मात्रा में नित्य प्रात: एवं शाम को पानी या दूध के साथ सेवन करने से बवासीर, रक्तस्राव, मूत्रकृच्छ, प्रमेह, कब्ज, वर में दस्त, पुराना दस्त रोग, नकसीर एवं पित्तविकार के कारण दस्त में लाभ होता है। दस्त रोगों में चूर्ण को जल के साथ ही लेना उचित रहता है। ईसबगोल बवासीर एवं कब्ज