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पटेल की मौत के बाद नेहरू ने उनकी बेटी मणिबेन के साथ किया था जानवरो जैसा बर्ताव
नेहरू की सन्तानो ने नेहरू के बाद भी देश पर राज किया, और उनके पास आज खरबो की संपत्ति है, नेहरू की सन्तानो के बारे में आप सब जानते है, पर क्या आप सरदार पटेल वंशजो के बारे में जानते है, उनके भी बच्चे थे, उनकी भी बेटी थी, उनका भी परिवार था, कांग्रेस पार्टी और नेहरू ने उनके साथ क्या किया, कभी आपने इसके बारे में जाना ही नहीं
कांग्रेस पार्टी और खासकर नेहरू और उसके सन्तानो को सरदार पटेल से कितनी नफरत थी इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है की पटेल देहांत 1950 में हुआ था, पर कांग्रेस ने उन्हें भारत रत्न देने से इंकार कर दिया, और जब बहुत ज्यादा विरोध होने लगा तो 1991 में जाकर सरदार पटेल को उनकी मौत के 41 साल बाद भारत रत्न दिया गया
आज जो हम आपको जानकारी देने वाले है वो जानकारी बहुत ही कम लोगों के पास है, सरदार पटेल की पुत्री जी जिनका नाम था मणिबेन पटेल, वो भी कांग्रेस की नेता थी और अपने पिता की तरह ही अंग्रेजो के खिलाफ उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा लिया था, 1947 में सरदार पटेल भारत के गृह मंत्री बने, 1950 में पटेल का देहांत हो गया
पटेल के देहांत के बाद उनकी पुत्री मणिबेन नेहरू से मिलने दिल्ली गयी थी, दरअसल वो नेहरू को अपने पिता के कहे अनुसार 2 चीजें देने गयी थी, वो 2 चीजें थी एक बैग और एक किताब, नेहरू ने पहले तो मिलने से ही इंकार कर दिया, फिर काफी देर इंतज़ार करवाया और मिला, मणिबेन ने बैग और किताब देकर नेहरू से कहा की, सरदार पटेल ने उन्हें कहा था की जब मैं मर जाऊं तो ये बैग और किताब सिर्फ नेहरू को ही देना, और यही देने मैं आपके पास दिल्ली आई हूँ
बता दें की उस बैग में 35 लाख रुपए थे, जो की कांग्रेस पार्टी को आम भारतीयों ने चंदे के रूप में दिया था, और किताब कुछ और नहीं बल्कि किन किन लोगों ने चंदा दिया था उनके नाम और लिस्ट थे, 1947 में 35 लाख की रकम आज के हिसाब से बहुत ज्यादा थी, पटेल बहुत ईमानदार थे, और उनकी मौत के बाद उनकी बेटी ने कांग्रेस का सारा पैसा और अकाउंट की किताब नेहरू को सौंप दिया
दिल्ली के आवास में नेहरू ने मणिबेन से वो बैग और किताब ले लिया, और मणिबेन को पानी तक नहीं पूछा गया, और उन्हें जाने के लिए कह दिया गया, वो किताब और 35 लाख रुपए नेहरू को सौंपकर अहमदाबाद लौट आयीं
उसके बाद कांग्रेस पार्टी और उसके किसी भी नेता ने मणिबेन का हाल तक नहीं जाना, मणिबेन जो की देश के गृहमंत्री की पुत्री थी, वो इतनी गरीबी में रहने लगी जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता की गृहमंत्री की बेटी की ये स्तिथि हो सकती है, उस ज़माने में गुजरात में भी कांग्रेस की ही सरकार थी पर मणिबेन से जैसे कांग्रेस को नफरत सी थी क्यूंकि नेहरू और उसकी औलादें पटेल और उनकी बेटी को बस मार डालना चाहते थे
अपने अंतिम दिनों में मणिबेन की आँखें कमजोर हो गयी थी, उनके पास 30 साल पुराना चश्मा था पर उनकी आँखें इतनी कमजोर हो गयी थी की चश्मे का नंबर बढ़ गया था, नए चश्मे की जरुरत थी, पर मणिबेन के पास चश्मा खरीदने का भी पैसा नहीं था, वो अहमदाबाद की सड़कों पर चलते हुए गिर जाया करती थी, और ऐसे ही उनकी दुखद मौत भी हो गयी
आपको एक और बात बताते है, उस ज़माने में कांग्रेस का गुजरात में मुख्यमंत्री था चिमनभाई पटेल, जब चिमनभाई पटेल को पता चला की मणिबेन मर रह है तो वो एक फोटोग्राफर को लेकर उनके पास पहुंचा और उसने उनके अधमरे शरीर के साथ तस्वीर खिंचवाई और चला गया, 1 चश्मा तक कांग्रेस ने सरदार पटेल की बेटी को नहीं दिया, वो तस्वीर भी अख़बारों में छपी थी, कोंग्रेसी मुख्यमंत्री ने तस्वीर के लिए मणिबेन से मुलाकात की थी और मरने के लिए छोड़ आया था, उसके बाद मणिबेन का देहांत हो गया, जिसमे कांग्रेस का एक भी नेता नहीं गया
नेहरू की संताने आज खरबों के मालिक है, पर कांग्रेस पार्टी ने सरदार पटेल के देहांत के बाद उनके परिवार से कैसा बर्ताव किया आप मणिबेन की कहानी को जानकर समझ सकते हैं, आज गुजरात में कथित पटेलों का नेता हार्दिक पटेल इसी कांग्रेस के साथ पटेलों के वोट का सौदा कर रहा है, जिस कांग्रेस ने सरदार पटेल की बेटी को सरदार पटेल की मौत के बाद 1 चश्मा तक नहीं दिया

मित्रों इस पोस्ट को गुजरात ही नही देश के हर नागरिक तक पहुंचायें

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जय हिंद जय श्री राम जय माँ भारती

लष्मीकांत

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“जीवन में एक साथी होना जरूरी है”

किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था। उसका नाम था ब्रह्मदत्त। एक बार उसे किसी दूसरे गांव में कोई काम आ पड़ा। वह चलने लगा तो उसकी मां ने कहा- बेटा अकेले न जाओ। किसी को साथ ले लो।

लड़के ने कहा- “तुम इतना क्यों घबराती हो मां। इस रास्ते में कोई विघ्न-बाधा नहीं है। किसी को साथ लेने की क्या जरूरत है।” मां ने देखा, लड़का टस से मस नहीं हो रहा है तो उसने उसे एक केकड़ा देते हुए कहा- अच्‍छा, कोई और साथी नहीं है तो तुम इस केकड़े को ही साथ ले लो। हो सकता है यहीं तुम्हारे किसी काम आ जाए।

मां का मन रखने के लिए लड़के ने उस केकड़े को पकड़कर कपूर की एक डिबिया में रख लिया और उसे एक झोले में डालकर चल पड़ा। गर्मी के दिन थे। कड़ाके की धूप थी। वह कुछ दूर जाने के बाद एक पेड़ के नीचे आराम करने को रुका और वहीं सो गया।

इसी बीच उस पेड़ के कोटर से एक सांप निकला और रेंगता हुआ ब्राह्मण के पास चला आया। सांपों को कपूर की गंध बहुत भाती है इसलिए वह पोटली फाड़कर उसमें रखी डिबिया को ही निगलने लगा। इसी बीच डिबिया खुल गई और डिबिया में रखे केकड़े ने निकलकर सांप का गला पकड़ लिया और उसकी जान ले ली।

ब्राह्मण की नींद खुली तो वह हैरान हो गया। देखता क्या है कि कपूर की डिबिया से सिर टिकाए सांप मरा पड़ा है। उसे समझते देर नहीं लगी कि यह डिबिया में रखे केकड़े का ही काम है।

अब उसे अपनी मां की कही बात याद आई कि अकेले नहीं जाना चाहिए। रास्ते के लिए कोई न कोई साथी जरूर ढूंढ लेना चाहिए। उसने सोचा, मैंने अपनी मां की बात मान ली, सो ठीक ही किया।

सीख: जीवन में अकेले रहने से अच्छा एक साथी होना लाभदायी होता है।

संतोष चतुर्वेदी

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विश्वप्रसिद्ध है काशी की गंगा आरती
1991 में शुरू हुई थी आज विश्वप्रसिद्ध गंगा आरती, हरिद्वार की परंपरा को काशी ने आत्मसात
वाराणसी. काशी नगरी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्व से अटूट रिश्ता है। यह हमेशा से पर्यटकों को लुभाता रहा है। इस शहर की गलियों में संस्कृति और परम्परा कूट-कूट भरी हुई है। मथुरा-वृंदावन और हरिद्वार की तरह यहां भी आपको हर घर में प्रचीन मंदिरों के दर्शन होते हैं। कहते तो यह भी हैं कि काशी के कड़-कड़ में शिव का वास है। शिव के त्रिशूल पर बसी काशी देवाधिदेव महादेव को अत्यंत प्रिय है। इसीलिए यह धर्म, कर्म और मोक्ष की नगरी मानी जाती है।
काशी में सबसे फेमस दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती है। जिसे देखने के लिए विदेशी सैलानी आते हैं।

वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली इस भव्य गंगा आरती की शुरुआत 1991 से हुई थी। यह आरती हरिद्वार में हो रही आरती का जीता जागता उदाहरण है। हरिद्वार की परंपरा को काशी ने पूरी तरह आत्मसात किया है। सबसे पहले हरिद्वार में इस आरती की शुरूआत हुई। उस आरती को देखते हुए काशी के लोग भी 1991 में बनारस के घाट पर आरती की शुरूआत की।
हर शाम गंगा आरती करते होती है। उस समय नदी का नीचे की ओर बहता जल पूरी तरह से रोशनी में नहाया होता है। आज वही आरती विश्वप्रसिद्ध हो गई। जिसे देखने के लिए प्रतिदिन सैलानियों का ताता लगा होता है। यहां सेलीब्रिटी हों या वीवीआईपी सभी काशी के गंगा आरती को देखने और गंगा आरती करने के लिए बनारस आते हैं।

काशी को यह गौरव प्राप्त है कि यह नगरी विद्या, साधना और कला तीनों का अधिष्ठान रही है। काशी के घाट गंगा के मुहाने पर बसे इस शहर की छटा को निखारने वाले सौ से अधिक पक्के घाट पूरी नगरी को धनुषाकार स्वरूप प्रदान करते हैं। प्रात: काल सूर्योदय के समय इन घाटों की छटा देखने योग्य होती है।

यह शहर सहस्त्रों वर्षों से भारत का विशेषकर दशाश्वमेघ घाट गोदौलिया से गंगा जाने वाले मार्ग के अंतिम छोर पर पड़ता है। प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक, राजा दिवोदास द्वारा यहां दस अश्वमेध यज्ञ कराने के कारण इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा।

काशी के घाट
दशाश्वमेध घाट गंगा के किनारे काशी के हर घाट का अपना अलग महत्व है। सबसे महत्वपूर्ण घाट दशाश्वमेध घाट है। इस घाट को सर्वप्रथम बाजीराव पेशवा ने बनवाया। यह घाट पंचतीर्थों में एक है। मणिकर्णिका घाट पर मणिकर्णिका कुंड अवस्थित है। मान्यता है कि यहां चिता कभी नहीं बुझती। जहां से गुजरते हुए बरबस संसार के सबसे बड़े सच से साक्षात्कार होता है। पंचगंगा घाट पुराणों के मुताबिक, गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण व धूतपाया नदियों का गुप्त संगम है। इसलिए इसे पंचगंगा घाट भी कहा जाता है।

दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती
धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी को बाबा विश्वनाथ, गंगा व घाटों और यहां की गंगा आरती दुनिया भर में प्रसिद्ध माना जाता है। काशी में दुनिया के हर कोने से लोग इस शहर के मिजाज को और इसकी खासियतों को देखने आते हैं। इन सब खासियतों के साथ काशी की गंगा आरती भी अब विश्व प्रसिद्ध हो गई है।

वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली इस भव्य गंगा आरती की शुरुआत 1991 से हुई थी। इस घाट पर आरती का आयोजन करने वाली संस्था गंगा सेवा निधि के संस्थापक अध्यक्ष स्व. सत्येंद्र मिश्र के नेतृत्व में गंगा आरती की शुरुआत हुई थी। समिति घाट पर ही रहने वाले कुछ लोगों ने बनाई जिसके अंतर्गत गंगा आरती कराने का विचार बना और आरती शुरू हुई। तीन लोगों से शुरू की गई आरती को बाद में भव्य रूप दिया गया। आरती की भव्यता धीरे-धीरे लोगों को आकर्षित करने लगी और इसको देखने के लिए प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में लोग गंगा घाट पहुंचने लगे।

सेलिब्रेटीज की भी पसंद काशी की ‘गंगा आरती’
हर रोज पूरे विधि-विधान से होने वाली इस आरती को देखने के लिए देशी-विदेशी पर्यटकों के साथ वीवीआईपी और सेलिब्रेटीज भी इस मनोरम दृश्य का आनंद लेने वाराणसी आते हैं। बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड स्टार और देश-विदेश के राजनेता अकसर गंगा आरती देखने काशी पहुंचते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, बिग बी अमिताभ बच्चन अपनी पत्नी जया बच्चन बेटे अभिषेक बच्चन और बहु ऐश्वर्या राय के साथ गंगा आरती में शरीक हो चुके हैं। हॉलीवुड स्टार एंजलीना जोली भी इस भव्य आरती को देखने काशी आ चुकी हैं। इसी प्रकार अनुपम खेर, जूही चावला, विद्या बालन, सोनम कपूर, मुकेश अम्बानी, नीता अम्बानी, उमा भारती, राजनाथ सिंह सहित कई वीवीआईपी और सेलिब्रेटीज मां गंगा आरती में सम्मिलित हुए हैं। विदेशों से दलाईलामा, भूटान के प्रधानमंत्री, भूटान नरेश, पोलैंड अम्बेसडर, यूएस अम्बेसडर और कई बड़ी और नामचीन हस्तियां भी गंगा आरती में शामिल होती रही हैं।

सतीश

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शाकाहार : उत्तम आहार

एक प्रेस समाचार के अनुसार अमरीका में डेढ़ करोड़ व्यक्ति शाकाहारी हैं। दस वर्ष पूर्व नीदरलैंड की ”१.५% आबादी” शाकाहारी थी जबकि वर्तमान में वहाँ ”५%” व्यक्ति शाकाहारी हैं। सुप्रसिद्ध गैलप मतगणना के अनुसार इंग्लैंड में प्रति सप्ताह ”३००० व्यक्ति” शाकाहारी बन रहे हैं। वहाँ अब ”२५ लाख” से अधिक व्यक्ति शाकाहारी हैं। सुप्रसिद्ध गायक माइकेल जैकसन एवं मैडोना पहले से ही शाकाहारी हो चुके हैं। अब विश्व की सुप्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी मार्टिना नवरातिलोवा ने भी ‘शाकाहार’ व्रत धारण कर लिया है। बुद्धिजीवी व्यक्ति शाकाहारी जीवन प्रणाली को अधिक आधुनिक, प्रगतिशील और वैज्ञानिक कहते हैं एवं अपने आपको शाकाहारी कहने में विश्व के प्रगतिशील व्यक्ति गर्व महसूस करते हैं।

संसार के महान बुद्धिजीवी, उदाहरणार्थ अरस्तू, प्लेटो, लियोनार्दो दविंची, शेक्सपीयर, डारविन, पी.एच.हक्सले, इमर्सन, आइन्सटीन, जार्ज बर्नार्ड शा, एच.जी.वेल्स, सर जूलियन हक्सले, लियो टॉलस्टॉय, शैली, रूसो आदि सभी शाकाहारी ही थे।

विश्वभर के डॉक्टरों ने यह साबित कर दिया है कि शाकाहारी भोजन उत्तम स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। फल-फूल, सब्ज़ी, विभिन्न प्रकार की दालें, बीज एवं दूध से बने पदार्थों आदि से मिलकर बना हुआ संतुलित आहार भोजन में कोई भी जहरीले तत्व नहीं पैदा करता। इसका प्रमुख कारण यह है कि जब कोई जानवर मारा जाता है तो वह मृत-पदार्थ बनता है। यह बात सब्ज़ी के साथ लागू नहीं होती। यदि किसी सब्ज़ी को आधा काट दिया जाए और आधा काटकर ज़मीन में गाड़ दिया जाए तो वह पुन: सब्ज़ी के पेड़ के रूप में हो जाएगी। क्यों कि वह एक जीवित पदार्थ है। लेकिन यह बात एक भेड़, मेमने या मुरगे के लिए नहीं कही जा सकती। अन्य विशिष्ट खोजों के द्वारा यह भी पता चला है कि जब किसी जानवर को मारा जाता है तब वह इतना भयभीत हो जाता है कि भय से उत्पन्न ज़हरीले तत्व उसके सारे शरीर में फैल जाते हैं और वे ज़हरीले तत्व मांस के रूप में उन व्यक्तियों के शरीर में पहुँचते हैं, जो उन्हें खाते हैं। हमारा शरीर उन ज़हरीले तत्वों को पूर्णतया निकालने में सामर्थ्यवान नहीं हैं। नतीजा यह होता है कि उच्च रक्तचाप, दिल व गुरदे आदि की बीमारी मांसाहारियों को जल्दी आक्रांत करती है। इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से हम पूर्णतया शाकाहारी रहें।

पोषण :

अब आइए, कुछ उन तथाकथित आँकड़ों को भी जाँचें जो मांसाहार के पक्ष में दिए जाते हैं। जैसे, प्रोटीन की ही बात लीजिए। अक्सर यह दलील दी जाती है कि अंडे एवं मांस में प्रोटीन, जो शरीर के लिए एक आवश्यक तत्व है, अधिक मात्रा में पाया जाता है। किंतु यह बात कितनी ग़लत है यह इससे साबित होगा कि सरकारी स्वास्थ्य बुलेटिन संख्या ”२३” के अनुसार ही ”१०० ग्रा”. अंडों में जहाँ ”१३ ग्रा.” प्रोटीन होगा, वहीं पनीर में ”२४ ग्रा.”, मूंगफल्ली में ”३१ ग्रा.”, दूध से बने कई पदार्थों में तो इससे भी अधिक एवं सोयाबीन में ”४३ ग्रा.” प्रोटीन होता है। अब आइए कैलोरी की बात करें। जहाँ ”१०० ग्रा.” अंडों में ”१७३ कैलोरी”, मछली में ”९१ कैलोरी” व मुर्गे के गोश्त में ”१९४ कैलोरी” प्राप्त होती हैं वहीं गेहूँ व दालों की उसी मात्रा में लगभग ”३३० कैलोरी”, सोयाबीन में ”४३२ कैलोरी” व मूंगफल्ली में ”५५० कैलोरी” और मक्खन निकले दूध एवं पनीर से लगभग ”३५० कैलोरी” प्राप्त होती है। फिर अंडों के बजाय दाल आदि शाकाहार सस्ता भी है। तो हम निर्णय कर ही सकते हैं कि स्वास्थ्य के लिए क्या चीज़ ज़रूरी है। फिर कोलस्ट्रोल को ही लीजिए जो कि शरीर के लिए लाभदायक नहीं है। ”१०० ग्राम” अंडों में कोलस्ट्रोल की मात्रा ”५०० मि.ग्रा.” है और मुरगी के गोश्त में ”६०” है तो वहीं कोलस्ट्रोल सभी प्रकार के अन्न, फलों, सब्ज़ियों, मूंगफली आदि में ‘शून्य’ है। अमरीका के विश्व विख्यात पोषण विशेषज्ञ डॉ.माइकेल क्लेपर का कहना है कि अंडे का पीला भाग विश्व में कोलस्ट्रोल एवं जमी चिकनाई का सबसे बड़ा स्रोत है जो स्वास्थ्य के लिए घातक है। इसके अलावा जानवरों के भी कुछ उदाहरण लेकर हम इस बात को साबित कर सकते हैं कि शाकाहारी भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। जैसे गेंडा, हाथी, घोड़ा, ऊँट। क्या ये ताकतवर जानवर नहीं हैं? यदि हैं, तो इसका मुख्य कारण है कि वे शुद्ध शाकाहारी हैं। इस प्रकार शाकाहारी भोजन स्वास्थ्यप्रद एवं पोषण प्रदान करनेवाला है।

स्वाभाविक भोजन:

मनुष्य की संरचना की दृष्टि से भी हम देखेंगे कि शाकाहारी भोजन हमारा स्वाभाविक भोजन है। गाय, बंदर, घोड़े और मनुष्य इन सबके दाँत सपाट बने हुए हैं, जिनसे शाकाहारी भोजन चबाने में सुगमता रहती हैं, जबकि मांसाहारी जानवरों के लंबी जीभ होती है एवं नुकीले दाँत होते हैं, जिनसे वे मांस को खा सकते हैं। उनकी आँतें भी उनके शरीर की लंबाई से दुगुनी या तिगुनी होती हैं जबकि शाकाहारी जानवरों की एवं मनुष्य की आँत उनके शरीर की लंबाई से सात गुनी होती है। अर्थात, मनुष्य शरीर की रचना शाकाहारी भोजन के लिए ही बनाई गई हैं, न कि मांसाहार के लिए।

अहिंसा और जीव दया :

आज विश्व में सबसे बड़ी समस्या है, विश्व शांति की और बढ़ती हुई हिंसा को रोकने की। चारों ओर हिंसा एवं आतंकवाद के बादल उमड़ रहे हैं। उन्हें यदि रोका जा सकता हैं तो केवल मनुष्य के स्वभाव को अहिंसा और शाकाहार की ओर प्रवृत्त करने से ही। महाभारत से लेकर गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, भगवान महावीर, गुरुनानक एवं महात्मा गांधी तक सभी संतों एवं मनीषियों ने अहिंसा पर विशेष ज़ोर दिया है। भारतीय संविधान की धारा ”५१ ए (जी)” के अंतर्गत भी हमारा यह कर्तव्य है कि हम सभी जीवों पर दया करें और इस बात को याद रखें कि हम किसी को जीवन प्रदान नहीं कर सकते तो उसका जीवन लेने का भी हमें कोई हक नहीं हैं।

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हाई ब्लड प्रेशर बीमारी और परहेज”
हाई बीपी दिल की बीमारी का इशारा हो सकता है। डायट में सैचुरेटिड फैट जैसे कि मक्खन , घी , मलाई आदि कम करें क्योंकि इससे दिल की नलियों के संकरा होने का खतरा बढ़ जाता है। जितना हो सके , लो फैट डायट लें।
– कैल्शियम , मैग्नीशियम और पोटैशियम आदि प्रचुर मात्रा में खाएं। ये तत्व दूध , हरी सब्जियां , दालें , संतरा ,स्ट्रॉबेरी , खुबानी , बादाम , केला और सीताफल आदि में खूब मिलते हैं।
– सूप , सलाद , खट्टे फल , नीबू पानी , नारियल पानी , काला चना , लोबिया , अलसी , आडू , सोया आदि खाना फायदेमंद है।
– गाजर , पत्ता गोभी , ब्रोकली , पालक , कटहल , टमाटर , लहसुन , प्याज और पत्तेदार सब्जियां खाएं। मौसमी फल खूब खाएं।
– पानी खूब पीएं। दिन भर में करीब 10 गिलास पानी पिएं।
– ओमेगा थ्री वाली चीजें , जैसे कि अखरोट , बादाम , फिश ऑयल , अलसी आदि खाएं। रोजाना पांच-सात बादाम और 3-4 अखरोट जरूर खाएं।
– बीपी के लिए इन दिनों DASH डायट यानी डायट्री अप्रोचिस टु स्टॉप हाइपरटेंशन खूब चलन में है। इसमें क्या न खाएं से ज्यादा जोर इस बात पर होता है कि क्या खाएं। इसे अमेरिकन हार्ट असोसिएशन के साथ-साथ इंडियन नैशनल कैंसर इंस्टिट्यूट ने भी रेकमेंड किया है। इसमें दिन भर में एक किलो तक फल-सब्जियां और कार्बोहाइड्रेट व लो फैट मिल्क प्रॉडक्ट्स पर खूब जोर होता है।
परहेज करें
– नमक कम खाएं। दिन में करीब आधा चम्मच नमक काफी है। टेबल सॉल्ट यूज न करें। दिन भर में आधा चम्मच के करीब नमक खाएं। यह हमें खाने से आसानी से मिल जाता है। वैसे , अनाज , फल , सब्जियों आदि से भी हमें नैचरल तरीके से नमक मिल जाता है। हफ्ते में एक बार बिना नमक के खाने की आदत डालें।
– सॉस , अचार , चटनी , अजीनोमोटो , बेकिंग पाउडर आदि से परहेज करें। पापड़ भी बिना नमक वाला खाएं।
– पैक्ड या फ्रोजन आइटम न खाएं। इनमें प्रिजरवेटिव होते हैं और नमक भी ज्यादा होता है। इसी तरह बेकरी आइटम्स में सैचुरेटिड फैट ज्यादा होता है। चिप्स , बिस्कुट , भुजिया , कुकीज , फ्रोजन मटर , केक , पेस्ट्री आदि से बचें।
– खाने में ऊपर से नमक न मिलाएं। सलाद , रायते आदि में भी नमक न डालें।
– नियमित रूप से नॉन वेज खासकर हेवी नॉन वेज (रेड मीट आदि) खाने से बीपी की आशंका बढ़ जाती है।
नोट : बीपी कंट्रोल करने में डायट का रोल 50 फीसदी है। स्ट्रेस मैनेजमेंट और एक्सर्साइज से बाकी फायदा मिलता है। योगासन , प्राणायाम और मेडिटेशन करें। भ्रामरी प्राणायाम खासतौर से फायदेमंद है।
लो ब्लडप्रेशर
लो बीपी में खाने का कोई खास परहेज नहीं होता। उन्हें हेल्थी चीजें खानी चाहिए और तीनों वक्त खाना और दो बार स्नैक्स लेने चाहिए। इन्हें ध्यान रखना होगा कि खाने की क्वॉलिटी के साथ क्वॉन्टिटी भी अच्छी हो , यानी भरपूर खाएं। कम खाने से बीपी और लो हो सकता है।
– अगर बीपी एकदम लो हो गया है तो कॉफी या चाय पी लें। इससे फौरी राहत मिलती है और चाय-कॉफी में मौजूद टेनिन व निकोटिन बीपी को बढ़ा देता है। लेकिन लंबे समय में इसका कोई फायदा नहीं होगा।
– नॉर्मल बैलेंस डायट लें। स्प्राउट्स , दालें , काला चना , फल या सब्जियां खूब खाएं। हर दो-तीन घंटे में हल्का-फुल्का खाएं। इससे बीपी में बहुत उतार-चढ़ाव नहीं होगा।
– केसर , खजूर , केला , दालचीनी और काली मिर्च खाएं।
– पानी खूब पीएं। दिन में 10-12 गिलास पानी जरूर पीएं। अगर मरीज के अंदर सोडियम लेवल कम है तो डॉक्टर उससे डायट में नमक बढ़ाने को कहते हैं।
नोट : एक्सर्साइज न करने से बीपी लो हो सकता है। नियमित रूप से एक्सर्साइज जरूर करें।

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सिकन्दर उस जल की तलाश में था, जिसे पीने से मानव अमर हो जाते हैं.!

दुनियाँ भर को जीतने के जो उसने आयोजन किए, वह अमृत की तलाश के लिए ही थे !

काफी दिनों तक देश दुनियाँ में भटकने के पश्चात आखिरकार सिकन्दर ने वह जगह पा ही ली, जहाँ उसे अमृत की प्राप्ति होती !

वह उस गुफा में प्रवेश कर गया, जहाँ अमृत का झरना था, वह आनन्दित हो गया !

👉 जन्म-जन्म की आकांक्षा पूरी होने का क्षण आ गया, उसके सामने ही अमृत जल कल – कल करके बह रहा था, वह अंजलि में अमृत को लेकर पीने के लिए झुका ही था कि तभी एक कौआ 🦅जो उस गुफा के भीतर बैठा था, जोर से बोला, ठहर, रुक जा, यह भूल मत करना…!’

सिकन्दर ने🦅कौवे की तरफ देखा!

बड़ी दुर्गति की अवस्था में था वह कौआ.🦅!

पंख झड़ गए थे, पँजे गिर गए थे, अंधा भी हो गया था, बस कंकाल मात्र ही शेष रह गया था !

सिकन्दर ने कहा, ‘तू रोकने वाला कौन…?’

🦅 कौवे ने उत्तर दिया, ‘मेरी कहानी सुन लो…मैं अमृत की तलाश में था और यह गुफा मुझे भी मिल गई थी !, मैंने यह अमृत पी लिया !

🦅 अब मैं मर नहीं सकता, पर मैं अब मरना चाहता हूँ… !
🦅 देख लो मेरी हालत…अंधा हो गया हूँ, पंख झड़ गए हैं, उड़ नहीं सकता, पैर गल गए हैं, एक बार मेरी ओर देख लो फिर उसके बाद यदि इच्छा हो तो अवश्य अमृत पी लेना!

🦅 देखो…अब मैं चिल्ला रहा हूँ…चीख रहा हूँ…कि कोई मुझे मार डाले, लेकिन मुझे मारा भी नहीं जा सकता !

🦅 अब प्रार्थना कर रहा हूँ परमात्मा से कि प्रभु मुझे मार डालो !

🦅 मेरी एक ही आकांक्षा है कि किसी तरह मर जाऊँ !

🦅 इसलिए सोच लो एक बार, फिर जो इच्छा हो वो करना.’!

🦅 कहते हैं कि सिकन्दर सोचता रहा….बड़ी देर तक…..!

आखिर उसकी उम्र भर की तलाश थी अमृत !💧

उसे भला ऐसे कैसे छोड़ देता !

सोचने के बाद फिर चुपचाप गुफा से बाहर वापस लौट आया, बिना अमृत पिए !

सिकन्दर समझ चुका था कि जीवन का आनन्द ✨उस समय तक ही रहता है, जब तक हम उस आनन्द को भोगने की स्थिति में होते हैं!

इसलिए स्वास्थ्य की रक्षा कीजिये !
जितना जीवन मिला है,उस जीवन का भरपूर आनन्द लीजिये !
❣🥀 हमेशा खुश रहिये ?❣🥀

दुनियां में सिकन्दर कोई नहीं, वक्त सिकन्दर होता है..

🙏🌸सहृदय नमस्कार🌸 🙏

बलराम सिंह

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किस देवता का रंग कौन-सा जानिए रहस्य…
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धरती पर पहले शुद्ध रूप से चार वर्णों के लोग रहते थे। प्राचीनकाल में श्वेत, रक्त, पीत और कृष्ण रंग के मनुष्यों की ही संख्या अधिक रही है और आज भी है। इन्हें ही गौर, लाल, पीला (गेहुआ) और काला कहा गया। लेकिन क्या कभी किसी ने नीले या श्याम वर्ण के लोगों को देखा है?
माना जाता है कि प्राचीनकाल में नील वर्ण की भी एक जाति रहती थी। आज भी बहुत से लोगों की आंखे नीली क्यों और किस तरह हो जाती है? क्या सचमुच ही प्राचीनकाल में नीले रंग के भी लोग रहते थे।

अनंत का प्रतीक नीला रंग👉 हिन्दू धर्म अनुसार नीला रंग आत्मा का मूल रंग माना जाता है। कहते हैं कि जब कोई जल ज्यादा गहराई लिए हुए हो तो वह नीला दिखाई देने लगता है। नीलवर्ण विशाल, व्यापकता और अनन्तता का द्योतक है। अगाध आकाश का रंग नीला है, वैसे ही अनन्त महासागर का रंग भी नीला है।

कुछ विद्वान तर्क देते हैं कि राम के नीले वर्ण और कृष्ण के काले रंग के पीछे एक दार्शनिक रहस्य है। भगवानों का यह रंग उनके व्यक्तित्व को दर्शाता है। दरअसल इसके पीछे भाव है कि भगवान का व्यक्तित्व अनंत है। उसकी कोई सीमा नहीं है, वे अनंत है।

ब्राह्मा👉 ब्रह्मा और सरस्वती का रंग श्वेत बताया गया है।

विष्णु👉 भगवान विष्णु का रंग नीला और माता लक्ष्मी का रंग स्वर्ण के समान है।

शिव👉 शिव का रंग श्याम और माता पार्वती का रंग गौरा बताया जाता है।

श्रीराम👉 कुछ ग्रंथों अनुसार भगवान श्रीराम भी नीलवर्ण के थे। इसीलिए उन्हें नीलाम्बुज, मेघवर्ण, नीलमणि, गगनसदृश आदि उपमाएं दी जाती हैं। क्या वाकई भगवान राम नीले रंग के थे, किसी इंसान का नीला रंग कैसे हो सकता है?

श्रीकृष्ण👉 भगवान श्रीकृष्ण को भी नील वर्ण का माना जाता है। उनके नीले रंग को श्याम वर्ण कहते थे। श्याम रंग अर्थात कुछ-कुछ काला और कुछ-कुछ नीला। दरअसल उनकी त्वचा का रंग मेघ श्यामल था। अर्थात काला, नीला और सफेद मिश्रित रंग। श्याम वर्ण के होने के कारण कुछ कवियों ने उनको काला रंग का मान लिया।
माता दुर्गा👉 दुर्गामासुर का वध करने के कारण आद्य शक्ति को दुर्गा कहा गया। काजल के समान देह, नील कमल के समान विशाल नेत्रों से युक्त दस भुजाओं वाली देवी ने स्वयं प्रकट होकर देवताओं की रक्षा की थी।

1.शैलपुत्री : राजा दक्ष की पुत्री सती को ही शैलपुत्री कहा गया। इनका वर्ण गौर है।

2.ब्रह्मचारिणी : माता सती ने हिमालय राज के यहां जन्म लिया और शिव को पाने के लिए कठिन तप किया इसीलिए ब्रह्मचारिणी कहलाई। कठोर तप के कारण इनका रंग काला पड़ गया था लेकिन बाद में गौरा हो गया।

3.चंद्रघंटा : माता की तीसरी शक्ति का शारीरिक वर्ण स्वर्ण के समान हैं।

4.कुष्मांडा : इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है।

5.स्कंदमाता : ब्रह्मचारिणी और स्कंदमाता एक ही है। स्कन्द’, शिव तथा पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का एक और नाम हैं। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है।

6.कात्यायनी : कत नमक एक विख्यात महर्षि थे, उनके पुत्र कात्य हुए तथा तथा इन्हीं कात्य के गोत्र में प्रसिद्ध ऋषि कात्यायन उत्पन्न हुए। कात्यायन, ऋषि ने देवी माता को पुत्री रूप में पाने हेतु बहुत वर्षों तक कठिन तपस्या की तथा ऋषि की इच्छानुसार ही मां दुर्गा ने इनके यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया, तथा कात्यायनी नाम से प्रसिद्ध हुई।

7.कालरात्रि : नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है।

8.महागौरी : महागौरी ही पार्वती है यही स्कंदमाता है और यही ब्रह्मचारिणी है। यही अपने पूर्व जन्म में सती थीं। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। ब्रह्मचारिणी के रूप में तपस्या करने के बाद शिव की कृपा से यह गौर वर्ण की हो गई थीं।

9.सिद्धिदात्री : भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से ये तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। देवी का स्वरूप कांति युक्त तथा मनोहर हैं।

दस महाविद्या देवी का वर्ण :
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1.माता कालीका : मां काली का रंग कहीं-कहीं काला और कहीं पर नीले का वर्णन मिलता है। कुछ विद्वान इन्हें श्यामरंग की मानते हैं।

2.तारा : भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- 1.नील सरस्वती 2.एक जटा 3.उग्र तारा। ‘आद्या शक्ति महाकाली ने हयग्रीव नमक दैत्य के वध हेतु घोर नीला वर्ण धारण किया तथा वे उग्र तारा के नाम से जानी जाने लगी।

3.त्रिपुर सुंदरी : देवी का शारीरिक वर्ण हजारों उदयमान सूर्य के कांति की भांति है।

4.भुवनेश्वरी : दस महाविद्याकों में से एक माता भुवनेश्वरी का वर्ण लाल बताया गया है। कुछ जगह पर इन्हें स्वर्ण आभा के सामान कांति वाली और देवी उगते सूर्य या सिंदूरी वर्ण से शोभिता हैं।

5.देवी छिन्नमस्तका : देवी का शारीरक वर्ण पिला या लाल-पीले मिश्रित रंग का हैं।

6.देवी महा त्रिपुरभैरवी : देवी भैरवी कि शारीरिक कांति हजारों उगते हुए सूर्य के समान है। कभी-कभी देवी का शारीरिक वर्ण गहरे काले रंग के समान प्रतीत होती है, जैसे काली या काल रात्रि देवियों का हैं।

7.धूमावती : देवी धूमावती का वास्तविक रूप धुएं जैसा है अर्थात मटमेला।

8.बगलामुखी : दस महाविद्याओं में से एक बगलामुखी देवी का रंग पीला है।

9.देवी मातंगी : देवी मातंगी का वर्ण गहरे नीले रंग (नील कमल के समान) या श्याम वर्ण का है।

10.कमला : देवी कमला का स्वरूप अत्यंत ही मनोहर तथा मनमोहक हैं तथा स्वर्णिम आभा लिया हुए हैं। अर्थात इनका रंग पीला है।
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰देव शर्मा

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,,,, *हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं। ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं॥ कैलाश पर्वत: दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत,,,शिव के धाम कैलाश के अनजाने रहस्य,,,,,

*सिद्ध तपोधन जोगिजन सुर किंनर मुनिबृंद।
बसहिं तहाँ सुकृती सकल सेवहिं सिव सुखकंद॥

भावार्थ:-सिद्ध, तपस्वी, योगीगण, देवता, किन्नर और मुनियों के समूह उस पर्वत पर रहते हैं। वे सब बड़े पुण्यात्मा हैं और आनंदकन्द श्री महादेवजी की सेवा करते हैं॥

पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभु का धाम है। ‘परम रम्य गिरवरू कैलासू, सदा जहां शिव उमा निवासू।’ आप ये तो जानते होंगे की कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं पर ये नहीं जानते होंगे की वह इस दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत है जो की माना जाता है की अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डार है। आइए जानें कैसे…

कई शक्तियाँ हैं कैलाश पर्वत के आस-पास,,,,,एक्सिस मुंडी को ब्रह्मांड का केंद्र या दुनिया की नाभि के रूप में समझें। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं मिल जाती हैं। और यह नाम, असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे रहस्यमय पहाड़ों में से एक कैलाश पर्वत से सम्बंधित हैं। एक्सिस मुंडी वह स्थान है अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं रूसिया के वैज्ञानिक ने वह स्थान कैलाश पर्वत बताया है।

शिव के धाम कैलाश के अनजाने रहस्य,,,इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई 6714 मीटर है। और यह पास की हिमालय सीमा की चोटियों जैसे माउन्ट एवरेस्ट के साथ रेस तो नहीं लगा सकता पर इसकी भव्यता ऊंचाई में नहीं, लेकिन उसके आकार में है। उसकी छोटी की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। जिस पर सालभर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है। कैलाश पर्वत पर चढना निषिद्ध है पर 11 सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढाई की थी।

शिव के धाम कैलाश के अनजाने रहस्य,,,कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्त्रोतों से घिरा है सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं पहला मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकर सूर्य के सामान है तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के सामान है।

मानसरोवर झील और राक्षस झील,,,मानसरोवर झील और राक्षस झील, ये दोनों झीलें सौर और चंद्र बल को प्रदर्शित करते हैं जिसका सम्बन्ध सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा से है। जब इन्हें दक्षिण की तरफ से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिन्ह वास्तव में देखा जा सकता है।

चारों ओर एक अलौकिक शक्ति,,,कैलाश पर्वत और उसके आस पास के बातावरण पर अध्यन कर रहे वैज्ञानिक ज़ार निकोलाइ रोमनोव और उनकी टीम ने तिब्बत के मंदिरों में धर्मं गुरुओं से मुलाकात की उन्होंने बताया कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है जिसमे तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलिपेथी संपर्क करते है।

ओम की ध्वनी,,,पुराणों के अनुसार यहाँ शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थान को 12 ज्येतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कैलाश बर्फ़ से सटे 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को ‘कैलाश मानसरोवर तीर्थ’ कहते है और इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि करता है।

कैलाश का महत्व,,,,पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था।

जब आती है मृदुंग की आवाज़,,,,गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ़ पिघलती है, तो एक प्रकार की आवाज़ भी सुनाई देती है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज़ है। मान्यता यह भी है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले, तो वह ‘रुद्रलोक’ पहुंच सकता है। कैलाश पर्वत, जो स्वर्ग है जिस पर कैलाशपति सदाशिव विराजे हैं, नीचे मृत्यलोक है, इसकी बाहरी परिधि 52 किमी है।

मानसरोवर झील में है विष्णु का वास,,,,,,, मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील है, जो पुराणों में ‘क्षीर सागर’ के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे है।

कैलाश पर्वत का दर्शन,,,कैलाश पर्वत को ‘गणपर्वत और रजतगिरि’ भी कहते हैं। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। यह हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है – जो चार धर्मों तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केन्द्र है।

कैलाश पर्वत की परिक्रमा,,,इसकी परिक्रमा का महत्त्व कहा गया है। कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कैलास परिक्रमा मार्ग 15500 से 19500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर से 45 किलोमीटर दूर तारचेन कैलास परिक्रमा का आधार शिविर है। कैलाश की परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी तारचेन से शुरू होती है और सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है।

कैलाश पर्वत की परिक्रमा,,,,घोडे और याक पर चढ़कर ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके कठिन रास्ते से होते हुये यात्री डेरापुफ पहुंचते हैं। जहां ठीक सामने कैलास के दर्शन होते हैं। यहां से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है, मानों भगवान शिव स्वयं बर्फ़ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को ‘हिमरत्न’ भी कहा जाता है।

इतनी ठंडी जगह पर भी है गरम पानी के झरने,,, ड्रोल्मापास तथा मानसरोवर तट पर खुले आसमान के नीचे ही शिवशक्ति का पूजन भजन करते हैं। यहां कहीं कहीं बौद्धमठ भी दिखते हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु साधनारत रहते हैं। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। कहा जाता है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था।

जहां देवी पार्वती ने किया था घोर तप,,,इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है। ड्रोल्मा से नीचे बर्फ़ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी में स्थित एक किलोमीटर परिधि वाला पन्ने के रंग जैसी हरी आभा वाली झील, गौरीकुंड है। यह कुंड हमेशा बर्फ़ से ढंका रहता है, मगर तीर्थयात्री बर्फ़ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते। साढे सात किलोमीटर परिधि तथा 80 फ़ुट गहराई वाली इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।

गंगा का स्थान,,,पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहाँ प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं।

मानसरोवर की महिमा,,,इस प्रकार यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। इसी कारण इसे ‘मानस मानसरोवर’ कहते हैं। दरअसल, मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्कद्ध) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मन का सरोवर। मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त (प्रातःकाल 3-5 बजे) में देवतागण यहां स्नान करते हैं।

मानसरोवर की महिमा,,,ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं। हिन्दू उसे ‘कल्पवृक्ष’ की संज्ञा देते हैं।

मानसरोवर की महिमा,,,झील लगभग 320 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में रक्षातल झील है। पुराणों के अनुसार मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर किसी भी देश में नहीं है। पुराणों के अनुसार शंकर भगवान द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी, उसी का नाम ‘मानसरोवर’ है।

राक्षस ताल (रक्षातल),,,राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है। प्रचलित है कि राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोडती है

संजय गुप्ता

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मै न होता तो क्या होता?

एक बार हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद् हो गया !
ओह प्रभु!
आपने कैसी शिक्षा दी, यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो क्या होता ?
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मुझे भी लगता कि यदि मै न होता तो सीताजी को कौन बचाता ?
परन्तु आज आपने उन्हें बचाया ही नहीं बल्कि बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया।
तब मै समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं, किसी का कोई महत्व नहीं है !
आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो मै बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है तो मै क्या करुं ?
पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मै समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया !
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली संत त्रिजटा की ही बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि……..