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शिवलिंग की महत्ता उसकी रचना ।

शिव लिंग

शिव – ‘ श ‘ + ‘ इ ‘ + ‘ व ‘ :-*

*- ‘ श ‘ कार अर्थात नित्य सुख एवं आनंद ।
– ‘ इ ‘ कार अर्थात पुरुष ।
– ‘ व ‘ कार अर्थात अमृतस्वरूपा भक्ति ।

           *शिव अर्थात ' कल्याण ' का प्रतीक , निश्चल ज्ञान , ब्रह्म तेज़ ,  सृजन -  सृजनहार शक्ति का प्रतीक है । वहीं स्कन्दपुराणानुसार लिंग अर्थात ' लय ' , प्रलय  के समय सब कुछ अग्नि मे परिवर्तित हो कर लिंग मे समा जाता है और पुन: सृष्टि के समय लिंग से ही प्रकट हो जाता है ।*

मूले ब्रह्मा मध्ये विष्णु त्रिभुवनेश्वर: रुद्रोपारि सदाशिव: ।
लिंगवेदी महादेवी लिंग साक्षान्महेश्वर: ।। ( लिंग पुराण )

               * - शिव लिंग मे सब से नीचे ब्रह्मा जी - मध्य मे श्री विष्णु भगवान - सबसे ऊपर स्वंयमेव भोलेनाथ महादेव  विराजते हैं जब कि जलाधारी ( अर्घा ) तो साक्षात माता पार्वती हैं ।  सनातन वैदिक मान्यतानुसार पंच देव पूजन का विधान मान्य है , शिवं लिंग के पूजन से साक्षात सभी पंच देवों का पूजन हो जाता है ।*

                    *लिंग मानव सभ्यता के प्राचीन प्रतीकों मे सर्वोपरि है । सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय यह अपनी चिकित्सा शक्ति की ऊर्जा के प्रतीक रूप मे इसे मान्यता दी गयी है । लिंग और योनि की अविभाज्य एकात्मकता प्रतीकात्मक रूप मे जीवन के स्रोत्र मे निष्क्रिय अंतिरक्ष और सक्रिय समय का दर्शन है । कुछ तथाकथित विद्वानों ने इसकी व्याख्या यौन अंगों के रूप मे की है परंतु सनातन दर्शन पुरुष एवं महिला सिद्धान्तों और रचना की समग्रता और अवियोज्यता का प्रतीकात्मक स्वरूप मानता है ।*

                 *शिवलिंग की महत्ता उसकी रचना ,  दुर्लभता के साथ स्थापित स्थल पर निर्भर करती है । शिवलिंग के कई रूपों का निर्माण विभिन्न कालक्रमों मे हुआ है ।* प्रकृतिक रूप से नदी के बहाव से अद्भुत शिव लिंगों का निर्माण होता है ( नर्मदा जी मे पाये जाने वाले ' वाणलिंग ' कंकर कंकर मे शँकर ) । सिन्धु घाटी की सभ्यता से ले कर एकमुखी , चतुर्मुखी , पन्चमुखी , अष्टमुखी शिवलिंगों की निर्मित हुई । भारत एवं अन्य सनातन हिन्दु मान्यता वाले देशों मे लिंगोद्भव प्रतिमाओं की रचनायें बहुतायत से अभी भी पायी जाती हैं ।

(१) स्वयंभू लिंग – देवर्षियों की तपस्या से प्रसन्न हो कर उनके समीप प्रकट होने के लिये पृथ्वी के अन्तर्गत बीजरूप से व्याप्त भगवान शिव वृक्षों के अँकुर की भाँति भूमि को भेद कर ‘ नाद ‘ लिंग के रूप मे व्यक्त होते हैं और स्वंय प्रगट होने के कारण ‘ स्वयंभू ‘ कहलाते हैं ।

(२) बिन्दु लिंग – सोने या चाँदी के पात्र पर भूमि अर्थात वेदी पर अपने हाथ से लिखे शुद्ध प्रणवरूप लिंग मे भगवान शिव की प्रतिष्ठा और आवाहन् करने पर पूजा जाने वाला नाद लिंग – बिन्दु लिंग कहलाते हैं ( इनमें स्थावर और जंगम् दो भेद हैं )

(३) प्रतिष्ठित लिंग – देवताओं और ऋषियों द्वारा आत्मसिद्घि के लिये वैदिक मन्त्रो के उच्चारण पूर्वक अपने हाथ से शुद्ध भावनापूर्वक पौरुष लिंग ही ‘ प्रतिष्ठित लिंग ‘ कहलाते हैं ।

(४) चर लिंग – लिंग , नाभि , जिव्हा , नासाग्र भाग , शिखा के क्रम मे कटि , हृदय , और मस्तिष्क मे की गयी लिंग की भावना ही ‘ अध्यात्मिकता ‘ है और यही चर लिंग कहलाते हैं ।

(५) गुरु लिंग – गुरु मे शिव भावना करना तथा उनके निर्देश से पूजन के लिये अस्थायी रूप से मिट्टी से बनाया हुआ लिंग , जिसे पूजन पश्चात विसर्जित किया जाता है ‘ गुरु लिंग ‘ कहलाते हैं ।

                        *॥ महादेव ॥*
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स्त्रष्टा का ध्यान
महर्षि वेदव्यास सरस्वती नदी के तट पर बैठे यह सोच रहे थे कि उनके अमर काव्य
‘ महाभारत ’ में अनेक महापुरुषों के दिव्य चरित्र हैं। जो उनका पाठ करेगा, उसका हृदय पवित्र हो जाएगा। लेकिन मेरे हृदय में उदासी क्यों है ? तभी वेदव्यास जी ने देखा कि वीणा के तार झंकृत करते नारदजी चले आ रहे हैं। नारदजी वेदव्यास के उदास मुखमंडल को देखकर बोले- “महाभारत के अमर रचयिता को मैं उदास देख रहा हूं, ऐसा क्यों ?” महर्षि वेदव्यास ने उत्तर दिया-“मेरा मन सचमुच उदास है।” नारदजी ने पूछा- “क्यों ?” वेदव्यास ने कहा- “कारण तो मैं नहीं जान पाया हूं। लेकिन मैंने निश्चय किया है कि अब मैं ग्रंथ-रचना छोड़कर हिमालय जाकर तप करुंगा।” नारदजी बोले- “मैं आपके विचार जानकर बहुत खिन्न हुआ। तप से तो मात्र आपका ही कल्याण होगा परंतु आपकी रचनाओं से करोड़ों मनुष्यों का कल्याण होगा।” महर्षि वेदव्यास मौन रह गए। नारदजी ने वेदव्यास की ओर देखते हुए कहा- “चिंता छोड़िए। चलिए, मेरे साथ। आप घूम-घूमकर महाभारत का गान करेंगे और मैं वीणा बजाऊंगा। इससे नर-नारी दुखों से मुक्त होंगे।” वेदव्यास ने कहा- “ मेरा मन अत्यधिक उदास है। मुझसे महाभारत का गान नहीं किया जा सकेगा। बताइए, मुझसे कौन सी भूल हुई है?” नारदजी बोले-“आपने महाभारत के रूप में एक युग को चित्रित किया है परंतु युग के स्त्रष्टा के संबंध में कुछ नहीं लिखा। जब तक आप महाभारत युग के स्त्रष्टा श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान नहीं करेंगे, आपका मन उदास रहेगा।” वेदव्यास जी मानो सोते से जागकर बोले- “आपने मुझे सच्चा मार्ग दिखा दिया। अभी तक मैंने जो किया, वह व्यर्थ है। अब मैं हिमालय जाकर श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान करूंगा।” फिर वेदव्यास जी पुराणों की रचना करने में लग गए।

K l kakkad

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आपकी सन्तानों के लिए विरासत

मृत्यु के समय, एक व्यक्ति टॉम स्मिथ ने अपने बच्चों को बुलाया और अपने पदचिह्नों पर चलने की सलाह दी, ताकि उनको अपने हर कार्य में मानसिक शांति मिले।

उसकी बेटी सारा ने कहा, “डैडी, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप अपने बैंक में एक पैसा भी छोड़े बिना मर रहे हैं। दूसरे पिता, जिनको आप भ्रष्ट और सार्वजनिक धन के चोर बताते हैं, अपने बच्चों के लिए घर और सम्पत्ति छोड़कर जाते हैं। यह घर भी जिसमें हम रहते हैं किराये का है।
सॉरी, मैं आपका अनुसरण नहीं कर सकती। आप जाइए, हमें अपना मार्ग स्वयं बनाने दीजिए।”

कुछ क्षण बाद उनके पिता ने अपने प्राण त्याग दिये।

तीन साल बाद, सारा एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में इंटरव्यू देने गई। इंटरव्यू में कमेटी के चेयरमैन ने पूछा, “तुम कौन सी स्मिथ हो?”

सारा ने उत्तर दिया, “मैं सारा स्मिथ हूँ। मेरे पिता टॉम स्मिथ अब नहीं रहे।”

चेयरमैन ने उसकी बात काट दी, “हे भगवान! तुम टॉम स्मिथ की पुत्री हो?”

वे कमेटी के अन्य सदस्यों की ओर घूमकर बोले, “यह आदमी स्मिथ वह था जिसने प्रशासकों के संस्थान में मेरे सदस्यता फ़ार्म पर हस्ताक्षर किये थे और उसकी संस्तुति से ही मैं वह स्थान पा सका हूँ, जहाँ मैं आज हूँ। उसने यह सब कुछ भी बदले में लिये बिना किया था। मैं उसका पता भी नहीं जानता था और वह भी मुझे कभी नहीं जानता था। पर उसने मेरे लिए यह सब किया था!”

फिर वे सारा की ओर मुड़े, “मुझे तुमसे कोई सवाल नहीं पूछना है। तुम स्वयं को इस पद पर चुना हुआ मान लो। कल आना, तुम्हारा नियुक्ति पत्र तैयार मिलेगा।”

सारा स्मिथ उस कम्पनी में कॉरपोरेट मामलों की प्रबंधक बन गई। उसे ड्राइवर सहित दो कारें, ऑफिस से जुड़ा हुआ डुप्लेक्स मकान और एक लाख पाउंड प्रतिमाह का वेतन अन्य भत्तों और ख़र्चों के साथ मिला।

उस कम्पनी में दो साल कार्य करने के बाद, एक दिन कम्पनी का प्रबंध निदेशक अमेरिका से आया। उसकी इच्छा त्यागपत्र देने और अपने बदले किसी अन्य को पद देने की थी। उसे एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो बहुत सत्यनिष्ठ (ईमानदार) हो। कम्पनी के सलाहकार ने उस पद के लिए सारा स्मिथ को नामित किया।

एक इंटरव्यू में सारा से उसकी सफलता का राज पूछा गया। आँखों में आँसू भरकर उसने उत्तर दिया, “मेरे पिता ने मेरे लिए मार्ग खोला था। उनकी मृत्यु के बाद ही मुझे पता चला कि वे वित्तीय दृष्टि से निर्धन थे, लेकिन प्रामाणिकता, अनुशासन और सत्यनिष्ठा में वे बहुत ही धनी थे।”

फिर उससे पूछा गया कि वह रो क्यों रही है, क्योंकि अब वह बच्ची नहीं रही कि इतने समय बाद पिता को अभी भी याद करती हो।

उसने उत्तर दिया, “मृत्यु के समय, मैंने ईमानदार और प्रामाणिक होने के कारण अपने पिता का अपमान किया था। मुझे आशा है कि अब वे अपनी क़ब्र में मुझे क्षमा कर देंगे। मैंने यह सब प्राप्त करने के लिए कुछ नहीं किया, उन्होंने ही मेरे लिए यह सब किया था।”

अन्त में उससे पूछा गया, “क्या तुम अपने पिता के पदचिह्नों पर चलोगी जैसा कि उन्होंने कहा था?”

उसका सीधा उत्तर था, “मैं अब अपने पिता की पूजा करती हूँ, उनका बड़ा सा चित्र मेरे रहने के कमरे में और घर के प्रवेश द्वार पर लगा है। मेरे लिए भगवान के बाद उनका ही स्थान है।”

क्या आप टॉम स्मिथ की तरह हैं? नाम कमाना सरल नहीं होता। इसका पुरस्कार जल्दी नहीं मिलता, पर देर सवेर मिलेगा ही। और वह हमेशा बना रहेगा।

ईमानदारी, अनुशासन, आत्मनियंत्रण और ईश्वर से डरना ही किसी व्यक्ति को धनी बनाते हैं, मोटा बैंक खाता नहीं। अपने बच्चों के लिए एक अच्छी विरासत छोड़कर जाइए।

Ramchandra aarya

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इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था। यह सब मनगढ़ंत बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी।
दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू शैली का छोटे गुम्बद के आकार का मंडप है और अत्यंत भव्य प्रतीत होता है।
आस पास मीनारें खड़ी की गई और फिर सामने स्थित फव्वारे
को फिर से बनाया गया।

जे ए माॅण्डेलस्लो ने मुमताज की मृत्यु के 7 वर्ष पश्चात Voyages and Travels into the East Indies नाम से निजी पर्यटन के संस्मरणों में आगरे का तो उल्लेख किया गया है किंतु ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया। टाॅम्हरनिए के कथन के अनुसार 20 हजार मजदूर यदि 22 वर्ष तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो माॅण्डेलस्लो भी उस विशाल निर्माण कार्य का उल्लेख अवश्य करता।
ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े की एक अमेरिकन प्रयोगशाला में की गई कार्बन जांच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहजहां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वीं सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिए दूसरे दरवाजे भी लगाए गए हैं। ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात शाहजहां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था
ताजमहल के गुम्बद पर जो अष्टधातु का कलश खड़ा है वह त्रिशूल आकार का पूर्ण कुंभ है। उसके मध्य दंड के शिखर पर नारियल की आकृति बनी है। नारियल के तले दो झुके हुए आम के पत्ते और उसके नीचे कलश दर्शाया गया है। उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है। हिन्दू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं कब्र के ऊपर गुंबद के मध्य से अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है शिवलिंग पर जल सिंचन करने वाला सुवर्ण कलश इसी जंजीर पर टंगा रहता था उसे निकालकर जब शाहजहां के खजाने में जमा करा दिया गया तो वह जंजीर लटकी रह गई उस पर लाॅर्ड कर्जन ने एक दीप लटकवा दिया, जो आज भी है।
कब्रगाह को महल क्यों कहा गया?
मकबरे को महल क्यों कहा गया? क्या किसी ने इस पर कभी सोचा, क्योंकि पहले से ही निर्मित एक महल को कब्रगाह में बदल दिया गया कब्रगाह में बदलते वक्त उसका नाम नहीं बदला गया। यहीं पर शाहजहां से गलती हो गई उस काल के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ‘ताजमहल’ शब्द का उल्लेख नहीं आया है ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है।
‘महल’ शब्द मुस्लिम शब्द नहीं है। अरब, ईरान, अफगानिस्तान आदि जगह पर एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके बाद महल लगाया गया हो।
यह भी गलत है कि मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ा, क्योंकि उनकी बेगम का नाम था #मुमता -उल-जमानी। यदि मुमताज के नाम पर इसका नाम रखा होता तो ताजमहल के आगे से मुम को हटा देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।
विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक ‘Akbar the Great Moghul’ में लिखते हैं, बाबर ने सन् 1630 में आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था। यह इतना विशाल और भव्य था कि इसके जितना दूसरा कोई भारत में महल नहीं था। बाबर की पुत्री गुलबदन ‘हुमायूंनामा’ नामक अपने ऐतिहासिक वृत्तांत में ताज का संदर्भ ‘रहस्य महल’ (Mystic House) के नाम से देती है।
ताजमहल का निर्माण राजा परमर्दिदेव के शासनकाल में 1155 अश्विन शुक्ल पंचमी, रविवार को हुआ था। अतः बाद में मुहम्मद गौरी सहित कई मुस्लिम आक्रांताओं ने ताजमहल के द्वार आदि को तोड़कर उसको लूटा। *यह महल आज के ताजमहल से कई गुना ज्यादा बड़ा था और इसके तीन गुम्बद हुआ करते थे। हिन्दुओं ने उसे फिर से मरम्मत करके बनवाया, लेकिन वे ज्यादा समय तक इस महल की रक्षा नहीं कर सके।
वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में ‘तेज-लिंग’ का वर्णन आता है। ताजमहल में ‘तेज-लिंग’ प्रतिष्ठित था इसीलिए उसका नाम ‘तेजोमहालय’ पड़ा था। शाहजहां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख ‘ताज-ए-महल’ के नाम से किया है, जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम ‘तेजोमहालय’ से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहजहां और औरंगजेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुए उसके स्थान पर पवित्र मकबरा शब्द का ही प्रयोग किया है। लेखक नागेश ओक के अनुसार अनुसार हुमायूं, अकबर, मुमताज, एतमातुद्दौला और सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिन्दू महलों या मंदिरों में दफनाया गया है।
ताजमहल तेजोमहल शिव मंदिर है – इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज की लाश दफनाई गई न कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया। ‘ताजमहल’ शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द ‘तेजोमहालय’ शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वरमहादेव प्रतिष्ठित थे। देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित चित्रकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज के मकबरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है। संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिन्दू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।
तेजोमहालय उर्फ ताजमहल को नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था।
यह मंदिर विशालकाय महल क्षेत्र में था आगरा को प्राचीनकाल में अंगिरा कहते थे क्योंकि यह ऋषि अंगिरा की तपोभूमि थी। अंगिरा ऋषि भगवान शिव के उपासक थे। बहुत प्राचीन काल से ही आगरा में 5 शिव मंदिर बने थे। यहां के निवासी सदियों से इन 5 शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करते थे लेकिन अब कुछ सदियों से बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल 4 ही शिव मंदिर शेष हैं। 5वें शिव मंदिर को सदियों पूर्व gकब्र में बदल दिया गया। स्पष्टतः वह 5वां शिव मंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही हैं, जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।

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एक सोची समझी साजिश


सलीम – जाबेद की जोड़ी की लिखी हुई फिल्मो को देखे, तो उसमे आपको अक्सर बहुत ही चालाकी से हिन्दू धर्म का मजाक तथा मुस्लिम / इसाई / साईं बाबा को महान दिखाया जाता मिलेगा. इनकी लगभग हर फिल्म में एक महान मुस्लिम चरित्र अवश्य होता है और हिन्दू मंदिर का मजाक तथा संत के रूप में पाखंडी ठग देखने को मिलते हैं .

फिल्म “शोले” में धर्मेन्द्र भगवान् शिव की आड़ लेकर “हेमामालिनी” को प्रेमजाल में फंसाना चाहता है जो यह साबित करता है कि – मंदिर में लोग लडकियां छेड़ने जाते है. इसी फिल्म में ए. के. हंगल इतना पक्का नमाजी है कि – बेटे की लाश को छोड़कर, यह कहकर नमाज पढने चल देता है.कि- उसे और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान होने के लिए.

“दीवार” का अमिताब बच्चन नास्तिक है और वो भगवान् का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो बिल्ला भी बार बार अमिताब बच्चन की जान बचाता है. “जंजीर” में भी अमिताभ नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है लेकिन शेरखान एक सच्चा इंसान है.

फिल्म ‘शान” में अमिताभ बच्चन और शशिकपूर साधू के वेश में जनता को ठगते है लेकिन इसी फिल्म में “अब्दुल” जैसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे देता है. फिल्म “क्रान्ति” में माता का भजन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार) गद्दार है और करीमखान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त, जो देश के लिए अपनी जान दे देता है.

अमर-अकबर-अन्थोनी में तीनो बच्चो का बाप किशनलाल एक खूनी स्मंग्लर है लेकिन उनके बच्चो अकबर और अन्थोनी को पालने वाले मुस्लिम और इसाई महान इंसान है. साईं बाबा का महिमामंडन भी इसी फिल्म के बाद शुरू हुआ था. फिल्म “हाथ की सफाई” में चोरी – ठगी को महिमामंडित करने वाली प्रार्थना भी आपको याद ही होगी.

कुल मिलाकर आपको इनकी फिल्म में हिन्दू नास्तिक मिलेगा या धर्म का उपहास करता हुआ कोई कारनामा दिखेगा और इसके साथ साथ आपको शेरखान पठान, DSP डिसूजा, अब्दुल, पादरी, माइकल, डेबिड, आदि जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे. हो सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो लेकिन अबकी बार ज़रा ध्यान से देखना.

केवल सलीम / जावेद की ही नहीं बल्कि कादर खान, कैफ़ी आजमी, महेश भट्ट, आदि की फिल्मो का भी यही हाल है. फिल्म इंडस्ट्री पर दौउद जैसों का नियंत्रण रहा है. इसमें अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है और पंडित को धूर्त, ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कामेडियन, आदि ही दिखाया जाता है.

“फरहान अख्तर” की फिल्म “भाग मिल्खा भाग” में “हवन करेंगे” का आखिर क्या मतलब था ? pk में भगवान् का रोंग नंबर बताने वाले आमिर खान क्या कभी अल्ला के रोंग नंबर पर भी कोई फिल्म बनायेंगे ? मेरा मानना है कि – यह सब महज इत्तेफाक नहीं है बल्कि सोंची समझी साजिश है.
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in राजनीति

ब्रेकिंग- अमेरिका से आयी बंगाल के बारे में ऐसी खौफनाक रिपोर्ट, जिसने पूरी दुनिया में मचा दी खलबली

by Nisha SahaOctober 21, 2017, 7:15 pm895 Views

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नई दिल्ली : कभी भारतीय संस्कृति का प्रतीक माने जाने वाले बंगाल की दशा आज क्या हो चुकी है, ये बात तो किसी से छिपी नहीं है. हिन्दुओं के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे तो पिछले काफी वक़्त से होना शुरू हो चुके हैं और अब तो हालात ये हो चुके हैं कि त्यौहार मनाने तक पर रोक लगाई जानी शुरू हो गयी है. मगर बंगाल पर मशहूर अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने अब जो लेख लिखा है और उसमे जो खुलासे किये हैं, उन्हें देख आपके पैरों तले जमीन खिसक जायेगी.

जेनेट लेवी का दावा – बंगाल जल्द बनेगा एक अलग इस्लामिक देश


जेनेट लेवी ने अपने ताजा लेख में दावा किया है कि कश्मीर के बाद बंगाल में जल्द ही गृहयुद्ध शुरू होने वाला है, जिसमे बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का कत्लेआम करके मुगलिस्तान नाम से एक अलग देश की मांग की जायेगी. यानी भारत का एक और विभाजन होगा और वो भी तलवार के दम पर और बंगाल की वोटबैंक की भूखी ममता बनर्जी की सहमति से होगा सब कुछ.

जेनेट लेवी ने अपने लेख में इस दावे के पक्ष में कई तथ्य पेश किए हैं. उन्होंने लिखा है कि “बंटवारे के वक्त भारत के हिस्से वाले पश्चिमी बंगाल में मुसलमानों की आबादी 12 फीसदी से कुछ ज्यादा थी, जबकि पाकिस्तान के हिस्से में गए पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 फीसदी थी. आज पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर 27 फीसदी हो चुकी है. कुछ जिलों में तो ये 63 फीसदी तक हो गई है. वहीँ दूसरी ओर बांग्लादेश में हिंदू 30 फीसदी से घटकर केवल 8 फीसदी ही बचे हैं.”

आप यहाँ जेनेट का पूरा लेख खुद भी पढ़ सकते हैं. http://www.americanthinker.com/articles/2015/02/the_muslim_takeover_of_west_bengal.html

बढ़ती हुई मुस्लिम आबादी को ठहराया जिम्मेदार
बता दें कि जेनेट ने ये लेख ‘अमेरिकन थिंकर’ मैगजीन में लिखा है. ये लेख एक चेतावनी के तौर पर उन देशों के लिए लिखा गया है, जो मुस्लिम शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल रहे हैं. जेनेट लेवी ने बेहद सनसनीखेज दावा करते हुए लिखा है कि किसी भी समाज में मुस्लिमों की 27 फीसदी आबादी काफी है कि वो उस जगह को अलग इस्लामी देश बनाने की मांग शुरू कर दें.

उन्होंने दावा किया है कि मुस्लिम संगठित होकर रहते हैं और 27 फीसदी आबादी होते ही इस्लामिक क़ानून शरिया की मांग करते हुए अलग देश बनाने तक की मांग करने लगते हैं. पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने लिखा है कि ममता बनर्जी के लगातार हर चुनाव जीतने का कारण वहां के मुस्लिम ही हैं. बदले में ममता मुस्लिमों को खुश करने वाली नीतियां बनाती है.

सऊदी से आने वाले पैसे से चल रहा जिहादी खेल?
जल्द ही बंगाल में एक अलग इस्लामिक देश बनाने की मांग उठने जा रही है और इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्ता की भूखी ममता इसे मान भी जाए. उन्होंने अपने इस दावे के लिए तथ्य पेश करते हुए लिखा कि ममता ने सऊदी अरब से फंड पाने वाले 10 हजार से ज्यादा मदरसों को मान्यता देकर वहां की डिग्री को सरकारी नौकरी के काबिल बना दिया है. सऊदी से पैसा आता है और उन मदरसों में वहाबी कट्टरता की शिक्षा दी जाती है.

ममता ने शुरू किया इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट?
गैर मजहबी लोगों से नफरत करना सिखाया जाता है. उन्होंने लिखा कि ममता ने मस्जिदों के इमामों के लिए तरह-तरह के वजीफे भी घोषित किए हैं, मगर हिन्दुओं के लिए ऐसे कोई वजीफे नहीं घोषित किये गए. इसके अलावा उन्होंने लिखा कि ममता ने तो बंगाल में बाकायदा एक इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट भी शुरू किया है.

पूरे बंगाल में मुस्लिम मेडिकल, टेक्निकल और नर्सिंग स्कूल खोले जा रहे हैं, जिनमें मुस्लिम छात्रों को सस्ती शिक्षा मिलेगी. इसके अलावा कई ऐसे अस्पताल बन रहे हैं, जिनमें सिर्फ मुसलमानों का इलाज होगा. मुसलमान नौजवानों को मुफ्त साइकिल से लेकर लैपटॉप तक बांटने की स्कीमें चल रही हैं. इस बात का पूरा ख्याल रखा जा रहा है कि लैपटॉप केवल मुस्लिम लड़कों को ही मिले, मुस्लिम लड़कियों को नहीं.

जेनेट ने मुस्लिमों को आतंकवाद का दोषी ठहराया
जेनेट लेवी ने लिखा है कि बंगाल में बेहद गरीबी में जी रहे लाखों हिंदू परिवारों को ऐसी किसी योजना का फायदा नहीं दिया जाता. जेनेट लेवी ने दुनिया भर की ऐसी कई मिसालें दी हैं, जहां मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ही आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता और अपराध के मामले बढ़ने लगे.

आबादी बढ़ने के साथ ऐसी जगहों पर पहले अलग शरिया क़ानून की मांग की जाती है और फिर आखिर में ये अलग देश की मांग तक पहुंच जाती है. जेनेट ने अपने लेख में इस समस्या के लिए इस्लाम को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है. उन्होंने लिखा है कि कुरान में यह संदेश खुलकर दिया गया है कि दुनिया भर में इस्लामिक राज स्थापित हो.

तस्लीमा नसरीन का उदाहरण किया पेश
जेनेट ने लिखा है कि हर जगह इस्लाम जबरन धर्म-परिवर्तन या गैर-मुसलमानों की हत्याएं करवाकर फैला है. अपने लेख में बंगाल के हालातों के बारे में उन्होंने लिखा है. बंगाल में हुए दंगों का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि 2007 में कोलकाता में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ दंगे भड़क उठे थे. ये पहली कोशिश थी जिसमे बंगाल में मुस्लिम संगठनों ने इस्लामी ईशनिंदा (ब्लासफैमी) कानून की मांग शुरू कर दी थी.

भारत की धर्म निरपेक्षता पर उठाये सवाल
1993 में तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों और उनको जबरन मुसलमान बनाने के मुद्दे पर किताब ‘लज्जा’ लिखी थी. किताब लिखने के बाद उन्हें कट्टरपंथियों के डर से बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था. वो कोलकाता में ये सोच कर बस गयी थी कि वहां वो सुरक्षित रहेंगी क्योंकि भारत तो एक धर्मनिरपेक्ष देश है और वहां विचारों को रखने की स्वतंत्रता भी है.

मगर हैरानी की बात है कि धर्म निरपेक्ष देश भारत में भी मुस्लिमों ने तस्लीमा नसरीन को नफरत की नजर से देखा. भारत में उनका गला काटने तक के फतवे जारी किए गए. देश के अलग-अलग शहरों में कई बार उन पर हमले भी हुए. मगर वोटबैंक के भूखी वामपंथी और तृणमूल की सरकारों ने कभी उनका साथ नहीं दिया. क्योंकि ऐसा करने पर मुस्लिम नाराज हो जाते और वोटबैंक चला जाता.

बंगाल में हो रही है ‘मुगलिस्तान’ देश की मांग
जेनेट लेवी ने आगे लिखा है कि 2013 में पहली बार बंगाल के कुछ कट्टरपंथी मौलानाओं ने अलग ‘मुगलिस्तान’ की मांग शुरू कर दी. इसी साल बंगाल में हुए दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानें लूट लिए गए और कई मंदिरों को भी तोड़ दिया गया. इन दंगों में सरकार द्वारा पुलिस को आदेश दिये गए कि वो दंगाइयों के खिलाफ कुछ ना करें.

हिन्दुओं का बहिष्कार किया जाता है?
ममता को डर था कि मुसलमानों को रोका गया तो वो नाराज हो जाएंगे और वोट नहीं देंगे. लेख में बताया गया है कि केवल दंगे ही नहीं बल्कि हिन्दुओं को भगाने के लिए जिन जिलों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है, वहां के मुसलमान हिंदू कारोबारियों का बायकॉट करते हैं. मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुसलमान हिंदुओं की दुकानों से सामान तक नहीं खरीदते.

यही वजह है कि वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन होना शुरू हो चुका है. कश्मीरी पंडितों की ही तरह यहाँ भी हिन्दुओं को अपने घरों और कारोबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ रहा है. ये वो जिले हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं.

आतंक समर्थकों को संसद भेज रही ममता
इसके आगे जेनेट ने लिखा है कि ममता ने अब बाकायदा आतंकवाद समर्थकों को संसद में भेजना तक शुरू कर दिया है. जून 2014 में ममता बनर्जी ने अहमद हसन इमरान नाम के एक कुख्यात जिहादी को अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा. हसन इमरान प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का सह-संस्थापक रहा है.

हसन इमरान पर आरोप है कि उसने शारदा चिटफंड घोटाले का पैसा बांग्लादेश के जिहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी तक पहुंचाया, ताकि वो बांग्लादेश में दंगे भड़का सके. हसन इमरान के खिलाफ एनआईए और सीबीआई की जांच भी चल रही है.

लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) की रिपोर्ट के मुताबिक कई दंगों और आतंकवादियों को शरण देने में हसन का हाथ रहा है. उसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से रिश्ते होने के आरोप लगते रहे हैं. जेनेट के मुताबिक़ बंगाल का भारत से विभाजन करने की मांग अब जल्द ही उठने लगेगी. इस लेख के जरिये जेनेट ने उन पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है, जो मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहाँ बसा रहे हैं, कि जल्द ही उन्हें भी इसी सब का सामना करना पडेगा.

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याद है न अखिलेश यादव जी ने अयोध्या में रामभक्तो की 14 कोसी परिक्रमा प्रतिबंधित कर दी थी और AK47 के साथ जवान खड़ा कर दिए थे जैसे कि वो रामभक्तों की परिक्रमा न होकर फिदायीन हमला हो..हालांकि ये वही अखिलेश जी हैं जिन्होंने संकटमोचन मंदिर में बम फोड़कर हिंदुओं के चिथड़े करने वाले आतंकवादियों के ऊपर से मुकदमा हटाने की संस्तुति कर दी थी जिसपर हाईकोर्ट ने कहा था- “आज आतंकवादियों पर से मुकदमा हटा रहे हैं, कल अखिलेश जी आतंकवादियों को भारत रत्न दे दीजियेगा…”
आज योगी जी ने अयोध्या को राममय कर दिया। अयोध्या का ये दृश्य, अच्छा तो हर एक हिन्दू को लग रहा होगा।,चाहे वो सपाई हो, कांग्रेसी हो या भाजपाई। राम तो सबके हैं बस वोट के चक्कर में गैरभाजपा वाले राम को ही गरियाने लगे। याद कीजिये शिंजो अबे की गंगा तट पर आरती का दृश्य…इससे आप का बैंक बैलेंस नही बढ़ा मगर अपने धर्म संस्कृति के प्रति आत्मविश्वास जरूर बढ़ा। मैं बार बार कहता हूँ कि देश हो या धर्म उसको गुलाम बनाने के लिए सबसे पहले उसका आत्मविश्वास और स्वाभिमान तोड़ा जाता है।प्रतीक चिन्हों को नष्ट किया जाता है। मुगलों ने और अंग्रेजो ने यही किया और आजादी के बाद हिंदुओं के साथ विभिन्न दलों ने यही करके दमन किया।

बाबर ने राम मंदिर तोड़ा,वो सिर्फ मंदिर का टूटना नही था।बाबर चाहता तो 10 बाबरी मस्जिद खड़ा कर लेता मगर उसने रामजन्मभूमि को तोड़कर मस्जिद बनाया सिर्फ इसलिए कि वो हिन्दू स्वाभिमान को तोड़ के राज करना चाहता था। समस्या इफ्तार ईद मस्जिद से नही, समस्या रामनवमी और दीपावली की कीमत पर इफ्तार और ईद से जरूर होगी। समस्या मस्जिद से नही, समस्या राम जन्मभूमि को तोड़कर बनाये गये मस्जिद से जरूर होगी।

70 सालों में मोदी योगी के रूप में एक ऐसा साधन मिला है जो आप के रौंदे गये स्वाभिमान को पुनर्स्थापित कर रहा है। लेख की आखिरी लाइन का स्क्रीनशॉट सेव कर लीजिए। इन्हें रोज रोज अपने अहंकार के तुष्टिकरण हेतु परखना बंद करे। करने दें जो कर रहे हैं। विश्वास मानिये ये राम नही बन पाये तो रावण भी नही बनेंगे जो कारसेवकों को गोली से भून दें या सुप्रीम कोर्ट में राम को काल्पनिक बताने वाला ऐफिडेविट लगा दें..