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कुतुबुद्दीन ऐबक और क़ुतुबमीनार—

किसी भी देश पर शासन करना है तो उस देश के लोगों का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि वो अपने देश, अपनी संसकृति और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें. इस्लामी हमलावरों और उनके बाद अंग्रेजों ने भी भारत में यही किया. हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूलकर उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बे हिसाब जुल्म किये थे।

अगर आप दिल्ली घुमने गए है तो आपने कभी विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को भी अवश्य देखा होगा. जिसके बारे में बताया जाता है कि उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था. हम कभी जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि कुतुबुद्दीन कौन था, उसने कितने बर्ष दिल्ली पर शासन किया, उसने कब विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को बनवाया या विष्णू स्तम्भ (कुतूबमीनार) से पहले वो और क्या क्या बनवा चुका था ?

कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का खरीदा हुआ गुलाम था. मोहम्मद गौरी भारत पर कई हमले कर चुका था मगर हर बार उसे हारकर वापस जाना पडा था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी और कुतुबुद्दीन की रणनीति के कारण मोहम्मद गौरी, तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराने में कामयाबी रहा और अजमेर / दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया।

अजमेर पर कब्जा होने के बाद मोहम्मद गौरी ने चिश्ती से इनाम मांगने को कहा. तब चिश्ती ने अपनी जासूसी का इनाम मांगते हुए, एक भव्य मंदिर की तरफ इशारा करके गौरी से कहा कि तीन दिन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना कर दो. तब कुतुबुद्दीन ने कहा आप तीन दिन कह रहे हैं मैं यह काम ढाई दिन में कर के आपको दूंगा।

कुतुबुद्दीन ने ढाई दिन में उस मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया. आज भी यह जगह “अढाई दिन का झोपड़ा” के नाम से जानी जाती है. जीत के बाद मोहम्मद गौरी, पश्चिमी भारत की जिम्मेदारी “कुतुबुद्दीन” को और पूर्वी भारत की जिम्मेदारी अपने दुसरे सेनापति “बख्तियार खिलजी” (जिसने नालंदा को जलाया था) को सौंप कर वापस चला गय था।

कुतुबुद्दीन कुल चार साल (१२०६ से १२१० तक) दिल्ली का शासक रहा. इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा. हांसी, कन्नौज, बदायूं, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता. अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाया।

जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेदशाला थी. जहा बैठकर खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर “विक्रम संवत” का आविष्कार किया था. यहाँ पर २७ छोटे छोटे भवन (मंदिर) थे जो २७ नक्षत्रों के प्रतीक थे और मध्य में विष्णू स्तम्भ था, जिसको ध्रुव स्तम्भ भी कहा जाता था।

दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन २७ मंदिरों को तोड दिया।विशाल विष्णु स्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया। तब से उसे क़ुतुबमीनार कहा जाने लगा. कालान्तर में यह यह झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनबाया था. जबकि वो एक विध्वंशक था न कि कोई निर्माता।

अब बात करते हैं कुतुबुद्दीन की मौत की।इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई. ये अफगान / तुर्क लोग “पोलो” नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया. अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है।
कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था. उसका सबसे कडा विरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा. उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया।

एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया. इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया. दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा. कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का “शुभ्रक” चुना।

कुतुबुद्दीन “शुभ्रक” घोडे पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा. राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया. राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक घोडे ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई बार किये, जिससे कुतुबुद्दीन वहीं पर मर गया।

इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक घोडे पर सवार होकर वहां से निकल गए. कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके. शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका. वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा।

वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया. कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है. *धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं।

धर्म जागरण समन्वय उत्तराखंड
सुधीर कुमार

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कहानी कुछ लम्बी है परन्तु है प्रेरणादायी
पढियेगा अवश्य।
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उसने हालात से समझौता कर अपनी सांवली रंगत को अपनी कमज़ोरी ही मान लिया था और इसकी भरपाई उसने सबकी ग़ुलामी बजाकर की थी. एकमात्र ससुरजी ही थे, जो उसके गुणों की सराहना करते थे और उसे समझते थे, लेकिन उनके देहांत के साथ ही स्नेह का वह सेतु भी टूट गया. अब तो सासू मां भी नहीं रहीं, लेकिन दोनों ननदें यदा-कदा आकर उसके सांवलेपन का एहसास तो करा ही जाती हैं.

कविता अपने ख़्यालों में इस क़दर खो गई थी कि उसे यह आभास ही नहीं हुआ कि कब श्याम उसके पास आकर खड़े हो गए, ङ्गङ्घजल्दी से नाश्ता दे दो, मुझे ऑफ़िस के लिए देर हो रही है.फफ कविता सकपका गई. कुछ बोल न सकी. चुपचाप टेबल पर नाश्ता लगा दिया. श्याम नाश्ता करने के बाद बोले, “कविता, मैंने रूपा दीदी, सोना और श्‍वेता को फ़ोन कर दिया है, सब लोग शाम तक आ जाएंगे. रात के खाने में सबकी पसंद की एक-एक डिश बनवा देना. तुम्हें तो सबकी पसंद मालूम ही है.” श्याम आदेश उछालकर ऑफ़िस चले गए.
कविता मन ही मन सोचने लगी. बस, दूसरों की पसंद का ही तो ध्यान रखती आई है वह. अपनी पसंद तो वह इतने बरसों में भूल ही चुकी है. ख़ैर, आज वह अपना मूड नहीं ख़राब करेगी. फ़िलहाल, वह अपने बेटे श्‍लोक की पसंद का नाश्ता ख़ुद बनाएगी.

दो साल विदेश में रहकर आया है श्‍लोक. मुंबई से बीटेक करने के बाद उसे लंदन में एमबीए करने का मौक़ा मिला, तो कलेजे पर पत्थर रखकर कविता ने उसे जाने की अनुमति दे दी थी. मन में हमेशा संशय के बादल घुमड़ते रहते थे. ‘क्या पता, पढ़ाई पूरी करने के बाद श्‍लोक को वहां जॉब का ऑफ़र मिले, तो वह वहीं बसने का फैसला कर ले और फिर किसी विदेशी लड़की से शादी करके…?’
बस, इसके आगे सोचने की हिम्मत नहीं कर पाती थी वह. उनके रिश्तेदार और जान-पहचान के लोग भी यदा-कदा इस तरह के शगू़फे छोड़कर कविता का दिल धड़काते रहते थे. अब इकलौते बेटे से ही तो उसकी सारी उम्मीदें जुड़ी थीं. वह भगवान से यही प्रार्थना करती रहती कि उसका श्‍लोक अपनी ज़मीन और अपने संस्कारों से हमेशा जुड़ा रहे.
उसकी दुआ रंग लाई. उसके दिए संस्कारों की बदौलत ही श्‍लोक ने लंदन में मिल रहे जॉब को ठुकरा दिया और दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी से मिले ऑफ़र को स्वीकार कर लिया. लंदन से वापस आते ही उसने वह कंपनी ज्वाइन कर ली. मात्र दो महीने ही तो हुए थे उसे वापस आए, लेकिन लड़कीवालों की लाइन लग गई. एक से एक लड़कियों के फ़ोटोग्राफ़ और बायोडाटा. अब शादी तो करनी ही थी उसकी, लेकिन निर्णय लेना कठिन हो गया था. वैसे भी कविता का निर्णय कोई मायने नहीं रखता था, इसीलिए तो श्याम ने अपनी दोनों बहनों और बेटी को बुलाया था.

आज श्‍लोक की शनिवार की छुट्टी थी. वह शनिवार और रविवार को देर तक सोता रहता था. आज कविता उसके लिए उसकी पसंद के आलू परांठे बनानेवाली थी. सारी तैयारी करके उसने जाकर देखा, तो वह अभी सो रहा था.
कविता लड़कियों के फ़ोटो लेकर बैठ गई और बड़ी हसरत से एक-एक फ़ोटो देखने लगी. उसे अच्छी तरह पता था कि फैसला लेना तो दूर की बात रही, दोनों ननदों के आने के बाद उसे तस्वीरें देखना भी नसीब नहीं होगा. अपनी सास और ननदों से मिली उपेक्षा का दंश तो वह ससुराल में पहले दिन से ही झेलती आई थी. यह तो एक इत्तेफ़ाक ही था कि उसके ससुर ने अपने दोस्त की सांवली-सलोनी पुत्री को अपने इकलौते बेटे के लिए पसंद कर लिया था. दरअसल, उन्होंने उसके रंग की बजाय उसके गुणों को देखा था, लेकिन उसका सांवला रंग उसके सारे गुणों पर भारी पड़ गया.
श्याम तो अपने नाम के विपरीत थे. वे भी अपनी मां और बहनों की तरह बिल्कुल गोरे-चिट्टे थे और गोरे लड़के की सांवली पत्नी उन लोगों के गले नहीं उतर रही थी, पर यह भी सच है कि श्याम ने कभी उस पर कटाक्ष नहीं किया, लेकिन उनकी मां-बहनों ने जो ज़ख़्म कविता को दिए, वे उसका मरहम भी नहीं बन सके. वह तो कविता की क़िस्मत अच्छी थी कि दोनों बच्चे गोरे पैदा हुए. बेटे के जन्म के बाद वह अभी उसे मुग्ध भाव से निहार ही रही थी कि सोना की आवाज़ उसके कानों से टकराई, “थैंक गॉड कि यह भइया पर गया है, वरना हमारा खानदान ही काला हो जाता.”

कविता का हृदय छलनी होकर रह गया, फिर बेटी के जन्म के समय भी कुछ ऐसा ही सुनने को मिला. इस बार उसे आहत करनेवाली रूपा दीदी थीं, “चलो, अच्छा हुआ कि लड़की हमारे जैसी है, वरना कविता की तरह होती, तो इसका रिश्ता तय करने में श्याम के जूते घिस जाते.”
कविता ने सारा दर्द अंदर ही समेट लिया और अपने ख़ूबसूरत बच्चों की परवरिश में व्यस्त हो गई. उसने हालात से समझौता कर अपनी सांवली रंगत को अपनी कमज़ोरी ही मान लिया था और इसकी भरपाई उसने सबकी ग़ुलामी बजाकर की थी. एकमात्र ससुरजी ही थे, जो उसके गुणों की सराहना करते थे और उसे समझते थे, लेकिन उनके देहांत के साथ ही स्नेह का वह सेतु भी टूट गया. अब तो सासू मां भी नहीं रहीं, लेकिन दोनों ननदें यदा-कदा आकर उसके सांवलेपन का एहसास तो करा ही जाती हैं.

3
चार बजे बड़ी ननद रूपा दीदी अपने पति के साथ आ गईं. आते ही फ़रमाइश शुरू हो गई, “कविता पहले हमें बढ़िया-सी कॉफ़ी पिला दो.”
पांच बजे छोटी ननद सोना और बेटी श्‍वेता अपने-अपने पति और बच्चों के साथ पहुंच गईं. श्याम भी ऑफ़िस से आ गए थे. सभी लोग आराम से ड्रॉइंग रूम में बैठकर स्नैक्स और कॉफ़ी का लुत्फ़ उठा रहे थे और लड़कियों के फ़ोटोग्राफ़्स और बायोडाटा पर खुलकर चर्चा हो रही थी. बस, कविता ही थी जो मूकदर्शक बनी बैठी थी.
“अच्छा हुआ श्याम, जो तुमने हमारे पापा की तरह श्‍लोक के लिए कोई ऐसी-वैसी लड़की पसंद नहीं की.” रूपा दीदी श्याम से कह रही थीं.
“हां भइया, जिस तरह से पापा ने भाभी को आपके ऊपर थोप दिया था, वह तो आप ही थे, जो इनके साथ एडजस्ट कर लिया, वरना आजकल के लड़के तो ख़ुद से ज़रा भी उन्नीस लड़की बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं.” अब सोना कैसे चुप रहती. उनके कमेंट्स से आहत कविता अभी संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि श्‍वेता की भी बारी आ गई, “हां पापा, मेरे भइया इतने हैंडसम हैं, इनके लिए तो चांद-सी भाभी लानी होगी.”
कविता को लगा कि किसी ने उसके कानों में पिघला हुआ शीशा उड़ेल दिया हो. ननदें तो पराई हैं, लेकिन अपनी कोखजाई बेटी… वह उसे हैरानी से देखती रह गई. कहते हैं, बेटियां मां का दुख-दर्द समझती हैं, लेकिन श्‍वेता ने कभी अपनी मां की कद्र नहीं की, अपने रंग- रूप के घमंड में चूर हमेशा मां का दिल ही दुखाती रही है. बड़ी मुश्किल से कविता ने अपने आंसुओं को बहने से रोका.
श्याम बोले, “फ़ोटो में तो सभी लड़कियां अच्छी दिख रही हैं. तुम लोगों को जो लड़की सबसे अच्छी लग रही हो, उसे कल ही देखने का प्रोग्राम बना लेते हैं. हमें तो अब जल्दी से श्‍लोक की शादी कर डालनी है.”
तभी सोना के पति हंसकर बोले, “हम लोगों की पसंद-नापसंद से क्या करना है? शादी तो श्‍लोक को करनी है, लड़की भी उसी की पसंद की होनी चाहिए.”
“हां श्‍लोक, तुम बताओ. इन तस्वीरों में से तुम्हें कौन-सी लड़की सबसे ज़्यादा पसंद है?” रूपा दीदी ने श्‍लोक से पूछा.

“बुआ, सच तो यह है कि मुझे इनमें से कोई भी लड़की पसंद नहीं है.” श्‍लोक ने बेबाक़ी से कहा, तो सभी हैरान रह गए. कविता को लगा कि शायद श्‍लोक ने ख़ुद के लिए कोई लड़की पसंद की हो. उसने सोचा कि सबके जाने के बाद अकेले में श्‍लोक से बात करेगी और उसकी जो भी पसंद होगी श्याम से स्वीकार करने का अनुरोध ज़रूर करेगी. कमरे में एक चुप्पी-सी छा गई थी.
उस चुप्पी को तोड़ा श्‍वेता ने, “भइया, आपकी बात से तो ऐसा लग रहा है कि आपने किसी लड़की को पसंद कर लिया है. अब तो हमें बता दीजिए कि वह कौन है?”
“नहीं श्‍वेता, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं लव मैरेज में विश्‍वास नहीं करता. शादी तो मैं घरवालों की पसंद से ही करूंगा.”
श्‍लोक जल्दी से बोल पड़ा. श्‍वेता के पति से रहा नहीं गया, “भइया, तो फिर इतनी सुंदर तस्वीरों में से आपको कोई भी पसंद क्यों नहीं आ रही है? आख़िर कैसी लड़की चाहिए आपको?”
“बताऊं?” श्‍लोक कविता के गले में बांहें डालकर झूल गया, “क्योंकि कोई भी लड़की मेरी मां जैसी नहीं है.”
“व्हॉट नॉनसेंस? क्या बेवकूफ़ों जैसी बात कर रहा है श्‍लोक? दिमाग़ तो नहीं ख़राब हो गया तुम्हारा?” सोना लगभग डांटनेवाले अंदाज़
में बोली.

“नहीं बुआ, मेरा दिमाग़ बिल्कुल ठीक है. मुझे अपनी मां जैसी लड़की चाहिए और हां, मेरी मां जिस लड़की को पसंद करेंगी, वह लड़की मुझे भी पसंद होगी.” श्‍लोक ने ऐलान कर दिया.
अपने रूप के मद में चूर रूपा, सोना और श्‍वेता उसे ऐसे देख रही थीं जैसे वह कोई अजूबा हो. उनके गोरे-गोरे मुखड़े बिल्कुल स्याह पड़ गए और कविता… उसे तो उसके बेटे ने इस एक पल में इतना ऊंचा उठा दिया कि सारी ज़िंदगी अपमान के रेगिस्तान में झुलसती रही कविता के लिए वह एक पल जैसे मान-सम्मान और ख़ुशियों का गुलिस्तान बन गया. उसका सांवला चेहरा कुंदन की तरह दमक उठा, आंखें ख़ुशी के आवेग में बहने लगीं और उन आंसुओं के साथ उम्रभर की उपेक्षा का एहसास भी बहता चला गया……….

सुरेंद्र जैन

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भगवान बचायेगा- प्रेरणादायक कहानी
एक समय की बात है किसी गाँव में एक साधु रहता था, वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या किया करता था | उसका भागवान पर अटूट विश्वास था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे|

एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई | चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी| पर साधु ने कहा-

” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!”

धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया , और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा , इतने में वहां से एक नाव गुजरी|

मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |”

“नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया.

नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया.

कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया|

पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |”

उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया |

कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी |

मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की… तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु ?

भगवान बोले , ” हे साधु महात्मा मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया , पहला, ग्रामीणों के रूप में , दूसरा नाव वाले के रूप में , और तीसरा ,हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में. किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए |”

सतीश

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क्या खूब लिखा है.. एक पत्नी ने अपने पति के लिए प्यारे मित्रो एक बार अवश्य पढ़े……………….

प्रिय पतिदेव,

नहीं कहती हूँ आपसे कि चाँद -तारे तोडकर लाओ,
पर जब आते हो, एक मुस्कान साथ लाया करो..!!

नहीं कहती, के मुझे सबसे ज्यादा चाहो,
पर एक नज़र प्यार से तो उठाया करो..!!

नही कहती, के बाहर खिलाने ले जाओ,
पर एक पहर साथ बैठ के तो खाया करो..!!

नही कहती, के हाथ बंटाओ मेरा,
पर कितना करती हूँ, देख तो जाया करो..!!

नही कहती, के हाथ पकड के चलो मेरा,
पर कभी दो कदम साथ तो आया करो..!!

यूँ ही गुज़र जाएगा जिंदगी का सफ़र भागते भागते,
एक पल थक के साथ तो बैठ जाया करो..!!

नही कहती, के कई नामों से पुकारो,
एक बार फुर्सत से “सुनो” ही कह जाया करो..!!

नहीं कहती हूँ आपसे कि चाँद -तारे तोडकर लाओ,
पर जब आते हो, एक मुस्कान साथ लाया करो..!

✍🏻……… 🏀👉आखिर पति के लिए पत्नी क्यों जरूरी है?👈🏀

🙏मानो न मानो -🙏
👌(१) जब तुम दुःखी हो,
तो वह तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेगी।🎾

👌(२) हर वक्त, हर दिन,
तुम्हें तुम्हारे अन्दर की बुरी आदतें छोड़ने को कहेगी।🌕

👌(३) हर छोटी-छोटी बात पर तुमसे झगड़ा करेगी,
परंतु ज्यादा देर गुस्सा नहीं रह पाएगी।🎾

👌(४)तुम्हें आर्थिक मजबूती देगी।🌕

👌(५) कुछ भी अच्छा न हो, फिर भी,
तुम्हें यही कहेगी; चिन्ता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।🎾

👌(६) तुम्हें समय का पाबन्द बनाएगी।🌕

👌(७) यह जानने के लिए कि तुम क्या कर रहे हो, दिन में 15 बार फोन करके हाल पूछेगी। कभी कभी तुम्हें खीझ भी आएगी, पर सच यह है कि तुम कुछ कर नहीं पाओगे।🎾

👌(८) चूँकि, पत्नी ईश्वर का दिया एक विशेष उपहार है,
इसलिए उसकी उपयोगिता जानो और उसकी देखभाल करो।🌕

👌(९) यह सन्देश हर विवाहित पुरुष के मोबाइल पर होना चाहिए,
ताकि उन्हें अपनी पत्नी के महत्व का अंदाजा हो।🎾

👌(१०) अंत में हम दोनों ही होंगे।🌕

👌(११) भले ही झगड़ें, गुस्सा करें,
एक दूसरे पर टूट पड़ें, एक दूसरे पर दादागीरी करने के
लिए; अंत में हम दोनों ही होंगे।🎾

👌(१२) जो कहना है, वह कह लें, जो करना है,
वह कर लें; एक दूसरे के चश्मे और लकड़ी ढूंढने में,
अंत में हम दोनों ही होंगे।🌕

👌(13) मैं रूठूँ तो तुम मना लेना,
तुम रूठो तो मैं मना लूंगा,
एक दूसरे को लाड़ लड़ाने के लिए;
अंत में हम दोनों ही होंगे।🎾

👌(१४) आंखें जब धुंधली होंगी,
याददाश्त जब कमजोर होगी,
तब एक दूसरे को, एक दूसरे
में ढूंढने के लिए, अंत में हम दोनों ही होंगे।🌕

👌(१५) घुटने जब दुखने लगेंगे,
कमर भी झुकना बंद करेगी, तब एक दूसरे के पांव के नाखून काटने के लिए, अन्त में हम दोनों ही होंगे।🎾

👌(१६) “अरे मुुझे कुछ नहीं हुआ,
बिल्कुल नॉर्मल हूं” ऐसा कह कर एक दूसरे को बहकाने के लिए, अंत में हम दोनों ही होंगे।🌕

👌(१७) साथ जब छूट जाएगा,
विदाई की घड़ी जब आ जाएगी,
तब एक दूसरे को माफ करने के लिए
अंत में हम दोनों ही होंगे।🎾

टिप्पणी : पति-पत्नी पर व्यंग्य कितने भी हों,
किन्तु तथ्य यही है।

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रात के दो बजे थे।🕑
एक श्रीमंत को नींद नहीं आ रही थी।चाय पी, सिगरेट पी, घर में कई चक्कर लगाये पर चैन नहीं पड़ा।

आखिर मैं थक कर नीचे आया, कार निकाली और शहर की सड़कों पर निकल गया। रास्ते में एक मंदिर दिखा, सोचा थोड़ी देर इस मंदिर में भगवान के पास बैठता हूं, प्रार्थना करता हूं तो शायद शांति मिल जाये।

वह आदमी मंदिर के अंदर गया तो देखा, एक दूसरा आदमी भगवान की मूर्ति के सामने बैठा था, उदास चेहरा, आंखों में करूणता।

श्रीमंत ने पूछा ” क्यों भाई इनी रात को?”
आदमी ने कहा ” मेरी पत्नी अस्पताल में है, सुबह यदि उनका आपरेशन नहीं हुआ तो मर जायेगी और मेरे पास आपरेशन का पैसा नहीं है” ।

इस श्रीमंत न पोकट में जीतने रूपए थे उसको दे दिये। गरीब आदमी के चहरे पे चमक आ गयी।

श्रीमंत ने कार्ड दिया और कहा इस में फोन नं. और पता भी है और जरूरत हो तो निसंकोच बताना।

उस गरीब आदमी ने कार्ड वापिस दिया और कहा “मेरे पास एड्रेस है” इस एड्रेस की जरूरत नहीं है सेठजी।

आश्चर्य से श्रीमंत ने कहा “किसका एड्रेस है।” उस गरीब आदमी ने कहा: “जिसने रात को साढ़े तीन बजे आपको यहां भेजा,
“उनका”

🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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मलिन मन
शिव और पार्वती आकाश मार्ग में विचरण कर रहे थे । नीचे पृथ्वी पर एक जगह कथा प्रवचन कार्यक्रम चल रहा था भक्त तन्मयता से सुन रहे थे। पार्वती ने महादेव से कहा ‘देखिए नाथ प्रथ्वी पर धर्म ध्यान में भक्त कितना समय दे रहे है क्या इन सभी को सद्गति मिल जायगी ?’शिवजी ने मुस्कुराते हुए बोले ‘पार्वती यह जो द्रश्य तुम देख रही हो पूर्णतः सत्य नहीं है ये लोग यहां बैठे हुए जरूर है लेकिन इन का मन कहीं और है।’ तभी उन्होंने देखा कि वन में हाथियों का झुंड ताल में स्नान कर रहा था शिवजी पार्वती को नीचे ले आये और हाथियों को ताल से बाहर निकालने की प्रतिक्षा करने लगे ।
स्नान करके बाहर निकलते हुए वहां बिखरी हुई धूल में सूंड मारकर, धूल अपने शरीर पर डाल रहे थे । ‘यह देख कर पार्वती बोली देखिए नाथ साथियों की मूर्खता ।अभी स्नान करके आये हैं और बाहर आकार स्वयं को फिर गंदा भी कर लिया ‘ तब महादेव पार्वती को समझाते हुए बोले ‘मैं तुम्हेँ यही समझाने के लिए यहाँ लाया था कि कथा सुन रहे भक्तों की मन स्थिति भी इन हाथियों जैसी ही है खूब रस लेकर प्रवचन सुनते है मगर मंडप से बाहर निकलते ही उसी सांसारिकता की धूल से स्वयं को मलिन कर लेते हैं।

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#ब्रह्माविष्णुमहेश

लोगो मे ऐसा मत है कि ब्रह्मा ,विष्णु ,और महेश ,तिनों भिन्न भिन्न देवता है परन्तु वास्तविकता यह नही है ।
स्मृति सास्त्रो का आदेस है कि धर्मजिज्ञाषा में श्रुति स्मृति सास्त्र ही प्रमाण है ।

धर्मं जिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः (मनुस्मृति)
अतः धर्मबिषय के परिपेक्ष्य में सास्त्र ही प्रमाण है हमे भी उसी को धारण करना चाहिए ।
श्रीमद्भागवत गीता में श्री हरि: स्वयं कहते है ।

आदित्यानामहं विष्णु-
रुद्राणां शंकरश्चास्मि
पश्यामि देवांस्तव देव देहे
सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान्।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ (गीता)

आदित्यों में विष्णु मैं हूँ ,रुद्रों में एकादश शङ्कर मैं ही हुँ ।
हे देव मैं आपके शरीरमें सम्पूर्ण देवताओंको? प्राणियोंके विशेषविशेष समुदायोंको? कमलासनपर बैठे हुए ब्रह्माजीको? शङ्करजीको? सम्पूर्ण ऋषियोंको देख रहा हूँ ।

शिवपुराण

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च महेश्वरसदाशिवौ ।।
ते हि साक्षाच्छिवस्यैव मूर्तयः श्रुतिविश्रुताः ।।६/१७/२१।।
ब्रह्मा ,विष्णु,रुद्र,सदाशिव,ये सभी श्रुतियों द्वारा प्रसिद्ध उस एक ही परमतत्व के भिन्न भिन्न रूप है ।

स्कन्दपुराण

स वै ब्रह्मा स वै रुद्र: स वै विष्णु: प्रजापति:
कार्य च कारणं चैव स एव भगवानज: || (स्कंद पुराण )
वही ब्रह्मा है वही रुद्र है वही विष्णु और वही प्रजापति है वे ही कार्य कारण भाव से भिन्न भिन्न रूप में ज्ञे जाते है ।

विष्णु पुराण

सृष्टि-स्थिति-विनाशानां कर्त्ता पतिर्भवान!
ब्रह्म-विष्णु-शिवाख्याभिरात्ममूर्त्तिभिरीश्वर ।।(विष्णु पुराण ५-३०-१० )
हे ईश्वर आप ही सृष्टि ,स्थिति,विनाश, करने वाले कर्तुपति है आप ब्रह्मा ,विष्णु ,शिव स्वरूप है ,और इन तीनो मूर्तियों के धारण करके पूर्वोक्त तीनो कार्यो का सम्पादन करते है ।

समस्त वेदादिपुराण में ब्रह्मा,विष्णु,शिव को एकात्मरूप से ही कहा गया है शिव का कार्य क्षेत्र पृथक है विनाश कार्य हेतु तमोगुणक्रान्त स्वभाव एवं तदुचित आचरण करना ही उनका स्वभाव है तद्रूप सृष्टि कार्य हेतु रजोगुणात्मक होना तदुचित आचरण परायण होना ब्रह्मा का स्वभाव है स्थिति हेतु सत्वगुण सम्पन्न तदुचित आचरण करना विष्णु का स्वभाव है ।
सत्व, रज,तम यह तीनों गुण प्रकृति का स्वभाव है एक परम् पुरुष तीनो गुण युक्त हो कर इस विश्व के सृष्टि ,स्थिति ,एवं संहार हेतु सत्व गुण से हरी: रजो गुण से ब्रह्मा,तमो गुण से शिव रूप धारण कर सृष्टि का संचालन करते है ।
वेद का आदेश है कि ईश्वर को भिन्न भिन्न रूप में देखना पाप का कारण बनता है अतः हम उन्हें उनकी विभूतियों के रूप में ही देख एक ही परम् तत्व की आराधना करें ।

मृत्यो: स मृत्युं गच्छति य इह नानेव पश्यति। (काठोउपनिषद)
वे मृत्यु से भी मृत्यु की प्राप्त करते है जो नानात्व की कल्पना करते है ।
आप के इष्ट देव कोई भी हो
शिव ,या विष्णु उससे कोई फर्क नही पड़ता आप उन्हें उसी रूप में देख कर कल्पना करे कि शिव ही विष्णु है और विष्णु ही शिव है इन दोनों में भेद देखना ही महापाप है ।
भागवत गीता में भी भगवन यही कहते है
नान्तो अस्ति मम् दिब्य बिभूतिनाम् (गीता)
मेरे दिब्य विभूतियों का अंत नही

प्रमोद कुमार

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आज गोवर्धन का पर्व है। गोवर्धन का अर्थ है कि गायों की रक्षा व उनकी संवृद्धि करें। गाय की संवृद्धि गोरक्षा और गोसंवर्धन के अनेक कार्यों को करके ही हो सकती है। गोरक्षा की प्रथम आवश्यकता है कि गो के प्रति कोई किसी प्रकार का अपराध व उसका असम्मान न करे। यदि अज्ञानतावश करता हो तो उसे गाय के महत्व को समझाना गोरक्षकों व गोभक्तों का कर्तव्य है। जिस प्रकार की स्थिति देश में गोरक्षा की है उसके लिए एक सीमा तक गो को माता मानने वाले गोरक्षक भी उत्तरदायी हैं। केवल गोरक्षक होना ही पर्याप्त नहीं है। गोरक्षकों का आज की परिस्थितियों में एक राष्ट्र स्तरीय प्रभावशाली संगठन होना चाहिये। आज गोवर्धन पूजा का महान पर्व है। आज के दिन जहां हमें इस पर्व को धार्मिक भावना से मनाना है वहीं हमें गो के उपकारों को स्मरण कर इनकी रक्षा व संवृद्धि करने का संकल्प लेने की भी आवश्यकता है। इसके लिए आज के दिन सभी मन्दिरों व घरों में महर्षि दयानन्द लिखित गोकरूणानिधि पुस्तक का आंशिक व पूर्ण पाठ भी करना चाहिये। यह पाठ करते समय इसके एक-एक शब्द पर मनन होना चाहिये और विवेक से अपने कर्तव्य का निर्धारण करना चाहिये। हमें यह भी उचित लगता है आर्यसमाज व हिन्दुओं के मन्दिरों में दीवारों आदि पर गोरक्षा के लाभों व मनुष्य के गाय के प्रति कर्तव्यों के सूचक वाक्य लिखकर लोगों में जागृति उत्पन्न करनी चाहिये। गोरक्षा के लिए एक पृथक राष्ट्रीय स्तर का संगठन भी बनना चाहिये जो तर्क, बुद्धि, विज्ञान के द्वारा गोहत्या को रोकने का प्रभावी कार्य करे। ऐसा होने पर ही देश में यथार्थ गोपूजा हो सकती है और गोवर्धन पूजा पर्व मनाना सार्थक हो सकता है।

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#गौ_महिमा

नमोगोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य एव च |
नमोब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्योनमोनमः ||
गावो विश्वस्य मातरः – गाय विश्व की माता है | सनातन धर्मावलम्बियों के लिए गौ माता अति पूजनीय हैं | इनकी महिमा विश्व विदित है | वेदों ने इनकी महिमा का गान किया है | शुक्ल यजुर्वेद का प्रथम मन्त्र गौ माता को ही समर्पित है | शास्त्रों में पृथिवी देवी को गौ स्वरूपा ही कहा गया है | पृथिवी को धारण करनेवाले तत्त्वों में भी सर्वप्रथम गौ माता का ही नाम आता है | गौ माता के विना कोई भी धार्मिक कृत्य संभव ही नहीं है | हिन्दुओं का लोक और परलोक दोनों गौ माता के विना असफल है | सनातन धर्म के चार स्तम्भ है – गौ , गंगा , गायत्री और गीता इनमें भी प्रथम गौ माता का ही नाम आता है | भगवान भी गौ के लिए अवतार ग्रहण करते हैं- विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार | गौ माता में तैंतीस कोटि देवताओं का वास है , इनकी सेवा – पूजा करने से सभी देवता और पितर प्रसन्न हो जाते हैं | गव्यों को अमृत तुल्य बताया गाया है , इनके सेवन से सभी शारीरिक तथा मानसिक कष्टों की निवृत्ति होती है | अतः सनातन धर्मावलम्बियों के लिए गौ माता की सेवा और पूजा अत्यावश्यक है | गौ माता की उपेक्षा करने पर लौकिक और परमार्थिक दोनों कार्य असफल होते हैं | शास्त्रों में वर्णित गौ महिमा का कुछ अंश इस प्रकार से हैं-

अत्रि स्मृति –

यस्यैकापि गृहे नास्ति धेनुर्वत्सानुचारिणी |
मंगलानि कुतस्तस्य कुतस्तस्य तमः क्षयः ||
जिसके घर में एक भी गौ बछडेवाली अर्थात् दूध देनेवाली न हो उसका मंगल किस प्रकार से हो सकता है और पाप दुःख वाअमंगल का नाश किस प्रकार से हो सकता है |

महाभारत-

गा वै पश्याम्यहं नित्यं गावः पश्यन्तु मां सदा |
गावोस्माकं वयं तासां यतो गावस्ततो वयम् ||
मैं सदा गौओंका दर्शन करूँ और गौएँ मुझ पर कृपा दृष्टि करें | गौएँ हमारी हैं और हम गौओंके हैं | जहाँ गौएँ रहें,वहीं हम रहें |
कीर्तनं श्रवणं दानं दर्शनं चापि पार्थिव |
गवां प्रशस्यते वीर सर्वपापहरं शिवम् ||
गौओंके नाम और गुणों का कीर्तन तथा श्रवन करना , गौओंका दान देना और उनका दर्शन करना – इनकी शास्त्रों में बडी प्रशंसाकी गयी है | ये सब कार्य सम्पूर्ण पापों को दूर करके परम कल्याण की प्राप्ति कराने वाले हैं |
अमृतं ह्यव्ययं दिव्यं क्षरन्ति च वहन्ति च |
अमृतायतनं चैताः सर्वलोकनमस्कृताः ||
वे विकाररहित दिव्य अमृत धारण करती और दुहने पर अमृत ही देती हैं | वे अमृत की आधारभूत हैं | सारा संसार उनके सामने नतमस्तक होता है |
निविष्टं गॊकुलं यत्र श्वासं मुञ्चति निर्भयम् ।
विराजयति तं देशं पापं चास्यापकर्षति ।।
गौओं का समुदाय जहाँ बैढकर निर्भयतापूर्वक साँस लेता है , उस स्थान की शॊभा बढ़ा देता है और वहाँ के सारे पापों को खींच लेता है ।
गावः स्वर्गस्य सोपानं गावः स्वर्गेपि पूजिताः |
गावः कामदुहो देव्यो नान्यत् किंचित् परं स्मृतम् ||
गौएँ स्वर्ग की सीढी हैं | गौएँ स्वर्ग में भी पूजी जाती हैं | गौएँ समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली देवियॉ हैं | उनसे बढकरदूसरा कोई नहीं है |
घासमुष्टिं परगवे दद्यात् संवत्सरं तु यः |
अकृत्वा स्वयमाहारं व्रतं तत् सार्वकामिकम् ||
जो एक वर्षतक प्रतिदिन स्वयं भोजनके पहले दूसरेकी गायको एक मुठ्ठी घास खिलाता है,उसका वह व्रत समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाला होता है |
यानि कानि च दुर्गाणि दुष्कृतानि कृतानि च |
तरन्ति चैव पाप्मानं धेनुं ये ददति प्रभो ||
जो लोग दूध देनेवाली गौ का दान करते हैं ,वे जो कोई भी दुर्गम संकट आनेवाले होते हैं ,उन सबसे अपने किये हुए दुष्कर्मों से तथा समस्त पाप समूहसे भी तर जाते हैं |
नातः पुण्यतरं दानं नातः पुण्यतरं फलम् |
नातो विशिष्टं लोकेषु भूतं भवितुमर्हति ||
गोदान से बढकर कोई पवित्र दान नहीं है | गोदान फलसे श्रेष्ठ दूसरा कोई फल नहीं है तथा संसार में गौ से बढकर दूसरा कोई उत्कृष्ट प्राणी नहीं है |
गोषु भक्तश्च लभते यत् यदिच्छति मानवः |
स्त्रियोपि भक्ता या गोषु ताश्च काममवाप्नुयुः ||
गोभक्त मनुष्य जिस – जिस वस्तु की इच्छा करता है , वह सब उसे प्राप्त होती है | स्त्रियों में भी जो गौओंकी भक्त हैं , वे मनोवाञ्छित कामनाएँ प्राप्त कर लेती हैं |
पुत्रार्थी लभते पुत्रं कन्यार्थी तामवाप्नुयात् |
धनार्थी लभते वित्तं धर्मार्थी धर्ममाप्नुयात् ||
पुत्रार्थी मनुष्य पुत्र पाता है और कन्यार्थी कन्या | धन चाहनेवाले को धन और धर्म चाहनेवालेको धर्म प्राप्त होता है |
विद्यार्थी चाप्नुयाद् विद्यां सुखार्थी प्राप्नुयात् सुखम् |
न किञ्चिद् दुर्लभं चैव गवां भक्तस्य भारत ||
विद्यार्थी विद्या पाता है और सुखार्थी सुख | भारत! गोभक्त के लिये यहॉ कुछ भी दुर्लभ नहीं है |
गोप्रदानरतो याति भित्त्वा जलदसंचयान् |
विमानेनार्कवर्णे दिवि राजन् विराजते ||
राजन् ! गोदानमें अनुरागपूर्वक तत्पर रहनेवाला पुरुष सूर्य के समान देदीप्यमान विमान में बैठकर मेघमण्डल को भेदता हुआ स्वर्गमें जाकर सुशोभित होता है |
समानवत्सां श्वेतां तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम् |
सुव्रतां वस्त्रसंवीतामिन्द्रलोके महीयते ||
जो मानव दूध देनेवाली सुलक्षणा श्वेत वर्ण की गौको वस्त्र ओढाकर श्वेत वर्ण के बछडेसहित दान करता है, उसे इन्द्रलोक में सम्मान प्राप्त होता है |
गोप्रदानात् तारयते सप्त पूर्वोस्तथा परान् |
सुवर्णं दक्षिणां कृत्वा तावद् द्विगुणमुच्यते ||
मनुष्य गोदान करनेसे अपनी सात पीढी पहलेके पितरों का और सात पीढी आगे आनेवाली संतानों का उद्धार करता है , किंतु यदि उसके साथ सोने की दक्षिणा भी दी जाय तो उस दान का फल दूना बताया गया है |
यावन्ति रोमाणि भवन्ति धेन्वा- स्तावन्ति वर्षाणि महीयते सः |
स्वर्गच्युतश्चापि ततो नृ लोके प्रसूयते वै विपुले गृहे सः ||
गौ के शरीर में जितने रोएँ होते हैं , उतने वर्षोंतक वह स्वर्गलोकमें सम्मानपूर्वक रहता है | फिर पुण्यक्षीण होनेपर जब स्वर्ग सेनीचे उतरता है, तब इस मनुष्य लोक में आकर सम्पन्न घर में जन्म लेता है |
लोकज्येष्ठा लोकवृत्तिप्रवृता रुद्रोपेताः सोमविप्यन्दभूताः|
सौम्याः पुण्याः कामदाः प्राणदाश्च गा वै दत्त्वा सर्वकामप्रदःस्यात् ||
गौएँ संसार की सर्वश्रेष्ठ वस्तु हैं | ये जगत को जीवन देने के कार्यमें प्रवृत हुई हैं | भगवान शंकर सदा उनके साथ रहते हैं | वे चन्द्रमा से निकले हुए अमृत से उत्पन्न हुई हैं तथा शान्त , पवित्र , समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाली और जगत को प्राण देनेवाली हैं, अतः गोदान करनेवाला मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओंका दाता माना गया है |
स्वकर्मभिर्मानवं संनिरुद्धं तीव्रान्धकारे नरके पतन्तम् |
महार्णवे नौरिव वायुयुक्ता दानं गवां तारयते परत्र ||
जैसे महासागर के बीचमें पडी हुई नाव वायु का सहारा पाकर पार पहुँचा देती है ,उसी प्रकार अपने कर्मों से बँधकर घोर अन्धकारमय नरक में गिरते हुए मनुष्य को गोदान ही परलोक में पार लगाता है |
तथैव सर्वभूतानां समतिष्ठन्त मूर्धनि |
समानवत्सां कपिलां धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम् |
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां ब्रह्मलोके महीयते ||
ये समस्त प्राणियोंके मस्तकपर स्थित हैं ( अर्थात् सबसे श्रेष्ठ एवं वन्दनीय हैं) | जो मनुष्य दुध देनेवाली सुलक्षणा कपिला गौको वस्त्र ओढाकर कपिल रंग के बछडे सहित दान करता है, वह ब्रह्मलोक में सम्मानित होता है |
गावो भूतं च भव्यं च गावः पुष्टिः सनातनी |
गावो लक्ष्म्यास्तथा मूलं गोषु दत्तं न नश्यति ||
गौएँ ही भूत और भविष्य हैं | गौएँ ही सदा रहनेवाली पुष्टिका कारण तथा लक्ष्मीकी जड हैं | गौओं को जो कुछ दिया जाता है, उसका पुण्य कभी नष्ट नही होता |

स्कन्द पुराण –

तृणानि शुष्काणि वने चरित्वा पीत्वापि तोयान्यमृतं स्रवन्ति |
यद्गोमयाद्याश्च पुनन्ति लोकान् गोभिर्न तुल्यं धनमस्ति किञ्चित् ||
वन में सुखे घास चरकर , जल पीकर भी जो अमृत देती हैं तथा जो अपने गोबरादि गव्य पदार्थों से सभी लोकों को पवित्र करती हैं , उन गौओं के समान दूसरा कोई धन नहीं है |

याज्ञवल्क्य -स्मृति

यथाकथञ्चिद्दत्त्वा गां धेनुं वाधेनुमेव वा |
अरोगामपरिक्लिष्टां दाता स्वर्गे महीयते ||
रोग और क्लेश से रहित ब्यायी हुई या विना ब्यायी गाय का किसी भी प्रकार से दान करनेवाला स्वर्ग में सम्मानित होता है |

विष्णुः-स्मृति

गोप्रदानेन स्वर्गमाप्नोति दशधेनुप्रदोगोलोकं शतप्रदश्च ब्रह्मलोकम् |
गोदान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है | दस ब्यायी हुई गाय का दाता गोलोक में जाता है तथा सौ का दाता ब्रह्मलोक को प्राप्त होता है |
भविष्यत् पुराणे –
श्रृंगमूलं गवां नित्यम् ब्रह्मविष्णू समिश्रितौ |
श्रृंगाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावराणि चराणि च ||
गौ माता के श्रृंगमूल में सदा ब्रह्मा और विष्णु का वास होता है | श्रृंगाग्र में सभी स्थावर और जंगम तीर्थ विराजते हैं ।
शिरोमध्ये महादेवः सर्वभूतमयः स्थितः |
ललाटाग्रे स्थिता देवी नासावंशे षण्मुखः ||
गौ माता के शिर के मध्य भाग में सब प्राणियों में स्थित महादेव का वास है | ललाट के अग्र भाग में भगवती का तथा नासिका प्रदेश में कार्त्तिकेय का वास है ।
सरस्वती च हुंकारे यमयक्षौ च गण्डयोः |
सन्ध्याद्वयं तथोष्ठाभ्यां ग्रीवामिन्द्रः समाश्रितः ||
गौ माता के हुंकार में सरस्वती का तथा कपोलों में यम और यक्ष का वास है | औष्ठ में दोनों संध्याओं का तथा गर्दन में इन्द्र का वास है|
साक्षाद्गंगा च गोमूत्रे गोमये यमुना स्थिता |
क्षीरे सरस्वती देवी नर्मदा दधिसंस्थिता ||
गौ माता के मूत्र में साक्षात गंगा का तथा गोबर में यमुना का वास है | दूध में सरस्वती देवी का तथा दही में नर्मदा का वास है|
अतः हम सब को तन मन धन से गौ माता की सेवा – पूजा करनी चाहिए | गौ माता की सेवा – पूजा तथा गोदान करने से लौकिक और पारलौकिक उन्नति होती है | घर में सुख , शांति और समृद्धि आती है , सभी प्रकार के वास्तु दोष दूर होते हैं | गोदान करने से सभी प्रकार के अरिष्ट कारक ग्रहों की शांति होती है | पाप ग्रहों की दशा – अन्तर्दशा में , मारक ग्रहों की दशा-अन्तर्दशा में तथा सभी प्रकार के बुरे योगों में गोदान करने से अनिष्ट प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और शुभ फल की प्राप्ति होती है | इसलिए गौ सेवक बनें तथा गौ सेवार्थ सहयोग करें |
—||● श्रीनारायण हरि: ●||—

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स्वामी विवेकानंद भारत के महान संतों में से एक रहे हैं। उन्होने कम उम्र में ही न सिर्फ ज्ञान अर्जित कर लिया बल्कि अपने ज्ञान के प्रकाश से अनेकों लोगों का भला भी किया। ऐसी हीं एक घटना उनके साथ हुई थी जिसे हम यहाँ बताने जा रहे हैं।

एक बार स्वामी विवेकानंद अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी एक व्यक्ति उनके पास आया और उनके पैर पकड़ लिया। उस व्यक्ति ने स्वामी जी से कहा कि मै बहुत पढा-लिखा हूँ और बहुत मेहनत भी करता हूँ लेकिन फिर भी मुझे मनवांछित सफलता नही मिलती है। आखिर क्यों मेरी किस्मत इतनी खराब है।

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स्वामी जी ने उस व्यक्ति को देख कर कुछ सोचा और कहा कि मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूँगा लेकिन उससे पहले तुम्हे मेरा एक काम करना होगा। वो व्यक्ति मान गया। तब स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मेरे कुत्ते को थोड़ी दूर ले जाकर टहला लाओ फिर मैं तुम्हारे सवालों के जवाब दूँगा। वह व्यक्ति उनके कुत्ते को लेकर वहाँ से चला गया।

कुछ देर बाद वो व्यक्ति, कुत्ते को लेकर वापस आया तो स्वामी जी ने देखा कि उनका कुत्ता हांफ रहा था जबकि उस व्यक्ति के चेहरे पर थकान का नामोनिशान तक नहीं था। जब स्वामी जी ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि कुत्ता राह चलते हुए किसी भी गली में घुस जा रहा था और वहाँ के कुत्तों से लड़-झगड़कर मेरे पास वापस आ जा रहा था।

हम दोनों ने एक हीं बराबर दूरी तय की लेकिन आपका कुत्ता, दूसरे कुत्तों के पीछे ज्यादा लगा रहा इसलिए वो थक गया और मैं अभी तक ऊर्जावान हूँ। उसकी बात सुनकर स्वामी जी ने कहा कि यही तुम्हारे सवालों का जवाब है। तुम मेहनती हो लेकिन तुम्हारी प्रवृति इस कुत्ते जैसी है। तुम अपना काम करने से ज्यादा दूसरे के कामों में ज्यादा दखल देते हो, यही कारण है कि तुम आगे नहीं बढ पा रहे।

इसलिए अब से सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना और बेकार के लोगों से उलझने से बचो। फिर सफलता तुम्हारे कदमों में होगी। देखा जाए तो स्वामी जी की बात सही है। अगर हम लोग अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर के अपना काम करें तो सफलता पाने से हमें कोई नहीं रोक सकता है।