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एक महिला रोज मंदिर जाती थी ! एक दिन उस महिला ने पुजारी से कहा अब मैं मंदिर नही आया करूँगी !

इस पर पुजारी ने पूछा — क्यों ?

तब महिला बोली — मैं देखती हूँ लोग मंदिर परिसर में अपने फोन से अपने व्यापार की बात करते हैं ! कुछ ने तो मंदिर को ही गपशप करने का स्थान चुन रखा है ! कुछ पूजा कम पाखंड,दिखावा ज्यादा करते हैं !

इस पर पुजारी कुछ देर तक चुप रहे फिर कहा — सही है ! परंतु अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले आप मेरे कहने से कुछ कर सकती हैं !

महिला बोली -आप बताइए क्या करना है ?

पुजारी ने कहा — एक गिलास पानी भर लीजिए और 2 बार मंदिर परिसर के अंदर परिक्रमा लगाइए शर्त ये है कि गिलास का पानी गिरना नही चाहिये !

महिला बोली — मैं ऐसा कर सकती हूँ !

फिर थोड़ी ही देर में उस महिला ने ऐसा कर दिखाया !

उसके बाद मंदिर के पुजारी ने महिला से 3 सवाल पूछे –
1.क्या आपने किसी को फोन पर बात करते देखा !
2.क्या आपने किसी को मंदिर मे गपशप करते देखा !
3.क्या किसी को पाखंड करते देखा !

महिला बोली — नही मैंने कुछ भी नही देखा !

फिर पुजारी बोले — जब आप परिक्रमा लगा रही थी तो आपका पूरा ध्यान गिलास पर था कि इसमे से पानी न गिर जाए इसलिए आपको कुछ दिखाई नही दिया अब जब भी आप मंदिर आये तो सिर्फ अपना ध्यान परम पिता परमात्मा में ही लगाना फिर आपको कुछ दिखाई ही नही देगा ! सिर्फ भगवान ही सर्ववृत दिखाई देगें … !!

जाकी रही भावना जैसी ..प्रभु मूर्त देखी तिन तैसी !!

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एक कंपनी का मालिक अपनी एक फैक्टरी में विजिट करने गया।

वहाँ उसने देखा कि सारे कर्मचारी तो काम कर रहे थे लेकिन एक युवक एक कोने में आराम से खड़ा मोबाइल पर मैसेज पढ़ रहा था और मुस्कुरा रहा था।

मालिक को यह देखकर और भी हैरत हुई कि उसके आने के बावजूद भी युवक अपने काम पर लगने की बजाये ढीठता पूर्ण तरीके से वैसे ही खड़ा रहा।

मालिक को गुस्सा आ गया। उसने युवक को बुलाया और पूछा, “तुम्हें हर महीने कितनी तनख्वाह मिलती है?”

युवक: “6000 रुपये सर!”

मालिक ने जेब से 18000 रुपये निकाले और युवक को देते हुए बोला, “ये पकड़ो तुम्हारी 3 महीने की एडवांस तनख्वाह और दफा हो जाओ यहाँ से, तुम्हारे जैसे कामचोरों के लिए मेरी कंपनी में कोई जगह नहीं है।”

युवक ने शांतिपूर्वक रुपये लिए और मुस्कुराता हुआ चला गया।

अब मालिक ने वहाँ काम कर रहे लोगों से पूछा, “अब कोई मुझे बताएगा कि ये आदमी कौन था और क्या काम करता था?”

बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी दबाते हुए एक कर्मचारी ने बताया, “सर, वो तो पिज्जा डिलीवरी करने वाला लड़का था। दरअसल आज सुपरवाइजर साहब अपना लंच बॉक्स लाना भूल गए थे।”

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———- A small story ——–

I have heard that when the universe was created and God created all things, it is a wonderful story. And when he had created this man, he asked his Gods that this man knows me a bigger complaint. It was made, but this small complaint would stand at my door. I was made of tree, tree never came from complaining, neither trees have ever prayed and complained. I became a beast, the animal never came to my door. The bird did not come at my door, but the bird made the moonlight, but this man is the house of trouble. It knocks at the door of the twenty-four hours in the morning and in the evening, says, do this, do it; It should be, that should not be, I want some remedy to avoid this man. Where do I hide?
So some god said, hide on the Himalayas.
So he said, you do not know, the time will come very soon that Hillary and Tenans will be offered on the Himalayas.
So someone said, hide in the Pacific ocean.
So he said, that too will not work. American scientists will be here soon
Someone said, sit down on the moonlight.
He said, there is nothing going to happen to him. Just a time will come and the man arrives at the moonlight
Then an old deity said in his ear, there is only one way, you hide inside man. Man will never be there
And God took notice and hidden within man and the man reached the Himalayas, reached the moonlight, even a place reached in the Pacific, where a man has not reached, he himself
🌹🌹👁🌞👁🌹🌹💲
Osho.
Crushed to a drop -6

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आत्मान् रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु ।
बुद्धि तु सारथि विद्धि मन: प्रग्रहमेव च॥
इन्द्रियाणि हयानाहुर्विषयां स्तेषु गोचरान् ।
आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिण: ।।
यस्त्वविज्ञानवान्भवत्ययुक्तेन मनसा सदा ।
तस्येन्द्रियाण्यवश्यानि दुष्टाश्र्वा इव सारथे: ।।

यमराज नचिकेता से कहते हैं कि हे नचिकेता! तुम शरीर को रथ जानो ,जिस प्रकार कर्ण के रथ ने कुरूक्षेत्र युद्ध में उसका साथ नहीं दिया तो उसका पतन हुआ,उसी प्रकार शरीर रूपी रथ का जीवन में उसके साथ तालमेल का होना जरूरी है ,शरीर तुम्हारा पहला आधार है जीवन का ,देवता आदि भी मनुष्य योनि मे आने के लिए तरसते है ,तुम्हें इस शरीर की उपयोगिता को जान कर,उसका उपयोग कर ,इसके पार होना है।
इस शरीर रूपी रथ के घोड़े इन्द्रियों को जान और घोड़े रूप से जो कल्पना रूपी विषय है,वो उन इन्द्रियो का मार्ग कहा गया है। जिसकी लगाम मन को कहा गया है। और उस रथ का सारथि बुद्धि को कहा गया है। जिस रथ का सारथी सदा अविवेकी तथा अस्थिर चित्त युक्त होता है उसकी इन्द्रिया उसी प्रकार उसके नियंत्रण में नहीं होती जिस प्रकार सारथी के अधीन दुष्ट घोड़े
उस रथ का रथी आत्मा को कहा गया है।
कृष्ण गीता में कहते हैं कि हे धनंजय इन्द्रियो से श्रेष्ठ मन,मन से श्रेष्ठ बुद्धि और बुद्धि से भी महान आत्मा है।
तुम इन्द्रियो का मार्ग भीतर ह्रदय प्रदेश में स्थित आत्मा की ओर मोड़ दो !!जय श्रीकृष्ण नमन ओशो

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पूरी कहानी पढियेगा…
वो विधवा थी पर श्रृंगार ऐसा कर के रखती थी कि पूछो मत। बिंदी के सिवाय सब कुछ लगाती थी। पूरी कॉलोनी में उनके चर्चे थे। उनका एक बेटा भी था जो अभी नौंवी कक्षा में था । पति रेलवे में थे उनके गुजर जाने के बाद रेलवे ने उन्हें एक छोटी से नौकरी दे दी थी । उनके जलवे अलग ही थे । 1980 के दशक में बॉय कटिंग रखती थी । सभी कालोनी की आंटियां उन्हें ‘परकटी’ कहती थी । ‘गोपाल’ भी उस समय नया नया जवान हुआ था । अभी 16 साल का ही था । लेकिन घर बसाने के सपने देखने शुरू कर दिए थे । गोपाल का आधा दिन आईने के सामने गुजरता था और बाकि आधा परकटी आंटी की गली के चक्कर काटने में।
गोपाल का नव व्यस्क मस्तिष्क इस मामले में काम नहीं करता था कि समाज क्या कहेगा ? यदि उसके दिल की बात किसी को मालूम हो गई तो ? उसे किसी की परवाह नहीं थी । परकटी आंटी को दिन में एक बार देखना उसका जूनून था ।
उस दिन बारिश अच्छी हुई थी । गोपाल स्कूल से लौट रहा था । साइकिल पर ख्वाबो में गुम उसे पता ही नहीं लगा कि अगले मोड़ पर कीचड़ की वजह से कितनी फिसलन थी । अगले ही क्षण जैसे ही वह अगले मोड़ पर मुड़ा साइकिल फिसल गई और गोपाल नीचे । उसी वक्त सामने से आ रहे स्कूटर ने भी टक्कर मार दी । गोपाल का सर मानो खुल गया हो । खून का फव्वारा फूटा । गोपाल दर्द से ज्यादा इस घटना के झटके से स्तब्ध था । वह गुम सा हो गया । भीड़ में से कोई उसकी सहायता को आगे नहीं आ रहा था । खून लगातार बह रहा था । तभी एक जानी पहचानी आवाज गोपाल नाम पुकारती है । गोपाल की धुंधली हुई दृष्टि देखती है कि परकटी आंटी भीड़ को चीर पागलों की तरह दौड़ती हुई आ रही थी । परकटी आंटी ने गोपाल का सिर गोद में लेते ही उसका माथा जहाँ से खून बह रहा था उसे अपनी हथेली से दबा लिया । आंटी की रंगीन ड्रेस खून से लथपथ हो गई थी । आंटी चिल्ला रही थी “अरे कोई तो सहायता करो, यह मेरा बेटा है, कोई हॉस्पिटल ले चलो हमें ।”
गोपाल को अभी तक भी याद है । एक तिपहिया वाहन रुकता है । लोग उसमे उन दोनों को बैठाते हैं । आंटी ने अब भी उसका माथा पकड़ा हुआ था । उसे सीने से लगाया हुआ था । गोपाल को टांके लगा कर घर भेज दिया जाता है । परकटी आंटी ही उसे रिक्शा में घर लेकर जाती हैं । गोपाल अब ठीक है । लेकिन एक पहेली उसे समझ नहीं आई कि उसकी वासना कहाँ लुप्त हो गई । जब परकटी आंटी ने उसे सीने से लगाया तो उसे ऐसा क्यों लगा कि उसकी माँ ने उसे गोद में ले लिया हो । वात्सल्य की भावना कहाँ से आई । उसका दृष्टिकोण कैसे एकक्षण में बदल गया । क्यों वह अब मातृत्व के शुद्ध भाव से परकटी आंटी को देखता था ।
(2017) आज गोपाल एक रिटायर्ड अफसर है । समय बिताने के लिए कम्युनिटी पार्क में जाता है । वहां बैठा वो आज सुन्दर औरतों को पार्क में व्यायाम करते देख कर मुस्कुराता है । क्योंकि उसने एक बड़ी पहेली बचपन में हल कर ली थी । वो आज जानता है, मानता है, और कई लेख भी लिख चूका है कि महिलाओं का मूल भाव मातृत्व का है । वो चाहें कितनी भी अप्सरा सी दिखें दिल से हर महिला एक ‘माँ’ है । वह ‘माँ’ सिर्फ अपने बच्चे के लिए ही नहीं है । वो हर एक लाचार में अपनी औलाद को देखती है । दुनिया के हर छोटे मोटे दुःख को एक महिला दस गुणा महसूस करती है क्योंकि वह स्वतः ही कल्पना कर बैठती है कि अगर यह मेरे बेटे या बेटी के साथ हो जाता तो ? इस कल्पना मात्र से ही उसकी रूह सिहर उठती है । वो रो पड़ती है । और दुनिया को लगता है कि महिला कमजोर है । गोपाल मुस्कुराता है, मन ही मन कहता है कि “हे, विश्व के भ्रमित मर्दो ! औरत दिल से कमजोर नहीं होती, वो तो बस ‘माँ’ होती है।”

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“ईश्वर प्राप्ति का उपाय”

एक चोर एक बड़े महात्मा के पास नित्य जाता और उनसे बड़ी प्रार्थना करता कि कोई ऐसा उपाय बता दीजिए, जिससे मैं माया-बन्धन से छूटकर स्वर्ग का अधिकारी हो जाऊँ और परमात्मा के दर्शन कर लूँ।

महात्मा जी बहुत दिन तो टालते रहे पर एक दिन जब चोर बहुत आग्रह करने लगा, तो महात्मा जी ने उसकी प्रार्थना मंजूर कर ली और कहा-कल आना, मैं सामने वाली पहाड़ी की चोटी पर ले जा कर एकान्त में तुझे ईश्वर प्राप्त करने का सारा रहस्य समझा दूँगा।

दूसरे दिन सवेरे ही चोर बहुत खुश होता हुआ आ गया। महात्मा जी ने तीन भारी-भारी पत्थर उसके ऊपर रख दिये और कहा-मेरे पीछे-पीछे चले आओ। पत्थर बहुत भारी थे, पहाड़ी की चढ़ाई बड़ी कठिन थी, कुछ दूर चलकर चोर हाँफने लगा। उसने कहा- भगवन्, यह बोझा तो बहुत भारी है, इसे लेकर मैं आगे नहीं चल सकता। महात्मा ने कहा—अच्छा तो एक पत्थर फेंक दो और मेरे पीछे चले आओ। एक पत्थर फेंकने पर कुछ बोझा हलका हुआ और वह चलने लगा। लेकिन दो पत्थर ही क्या कम थे। दो चार फर्लांग चलकर उसके पाँव काँपने लगे, गरदन टूटने लगी। वह चिल्लाया- महाराज! यह बोझा तो मुझे मारे डालता है। साधु ने उससे एक और पत्थर फिंकवा दिया। अब कुछ सरलता हुई और चोर धीरे-धीरे चलने लगा। अभी पहाड़ी की आधी चढ़ाई ही पूरी हो पाई थी कि चोर पसीने में लथपथ हो गया, उसका दम फूल गया और थकान के मारे आगे बढ़ना कठिन हो गया। वह दुखी होकर महात्मा जी से कहने लगा—अब आगे चलना मेरे बस की बात नहीं, यह पत्थर भी तो बहुत भारी है। मैं तो थक कर चूर-चूर हो गया हूँ। शरीर में एक कदम भी आगे चलने की शक्ति नहीं। महात्मा जी ने तीसरा पत्थर भी उससे फिंकवा दिया।

तीनों पत्थरों को फेंक कर चोर हलका हो गया और साधु के साथ आनन्दपूर्वक चला गया। पहाड़ी के शिखर पर जब वे पहुँच गये, तो महात्मा जी ने पेड़ की छाया में आसन बिछाया और कहा- बेटा! मैंने तुझे ईश्वर प्राप्त करने का सारा रहस्य समझा दिया। अपने सिर पर अन्याय, स्वार्थ और असत्य के भारी-भारी पत्थर लादकर इस ऊँची चोटी पर परमपद के महान शिखर पर पहुँचने की इच्छा करने वालों के लिए आवश्यक है कि वे इन तीनों भारी पत्थरों को फेंक दें, तभी ईश्वर का दर्शन हो सकता है।

“चोर समझ गया कि बुरे आचरण रखकर झूठ-मूठ पूजा-उपासना का आडम्बर रखने से मुक्ति नहीं मिल सकती। अपने को सदाचारी बनाने में ही सारी योग-साधना छिपी हुई है। चोर ने उसी दिन से बुरे कर्म करना छोड़ दिया और सत् कर्म करने लगा।”

लष्मीकांत

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(((( चटोरे मदनमोहन ))))
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सनातन गोस्वामी जी मथुरा में एक चौबे के घर मधुकरी के लिए जाया करते थे,
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उस चौबे की स्त्री परमभक्त और मदन मोहन जी की उपासिका थी, उसके घर बाल भाव से मदन मोहन भगवान विराजते थे।
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असल में सनातन जी उन्ही मदन मोहन जी के दर्शन हेतु प्रतिदिन मधुकरी के बहाने जाया करते थे।
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मदन मोहन जी तो ग्वार ग्वाले ही ठहरे ये आचार विचार क्या जाने उस चौबे के लड़के के साथ ही एक पात्र में भोजन करते थे,
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ये देख सनातन जी को बड़ा आश्चर्य हुआ, ये मदनमोहन तो बड़े वचित्र है।
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एक दिन इन्होने आग्रह करके मदन मोहन जी का उच्छिष्ठ (झूठा) अन्न मधुकरी में माँगा,
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चौबे की स्त्री ने भी स्वीकार करके दे दिया, बस फिर क्या था, इन्हे उस माखन चोर की लपलपाती जीभ से लगे हुए अन्न का चश्का लग गया, ये नित्य उसी अन्न को लेने जाने लगे।
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एक दिन मदन मोहन ने इन्हे स्वप्न में दर्शन देकर कहा, बाबा तुम रोज इतनी दूर से आते हो, और इस मथुरा शहर में भी हमे ऊब सी मालूम होवे हे
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तुम उस चौबे से हमको मांग के ले आओ हमको भी तुम्हारे साथ जंगल में रहनो है।
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ठीक उसी रात को चौबे को भी यही स्वप्न हुआ की हमको आप सनातन बाबा को दान कर दो।
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दूसरे दिन सनातन जी गये उस चौबे के घर और कहने लगे मदन मोहन को अब जंगल में हमारे साथ रहना है, आपकी क्या इच्छा है ?
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कुछ प्रेमयुक्त रोष से चौबे की पत्नी ने कहा इसकी तो आदत ही ऐसी हे। जो भला अपनी सगी माँ का न हुआ तो मेरा क्या होगा।
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और ठाकुर जी की आज्ञा जान अश्रुविमोचन करते हुए थमा दिया मदन मोहन जी को सनातनजी को।
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अब मदन मोहन को लेके ये बाबा जंगल में यमुना किनारे आये और सूर्यघाट के समीप एक सुरम्य टीले पे फूस की झोपडी बना के मदन मोहन को स्थापित कर पूजा करने लगे।
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सनातन जी घर घर से चुटकी चुटकी आटा मांग के लाते और उसी की बिना नमक की बाटिया बना के मदन मोहन को भोग लगाते।
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एक दिन मदन मोहन जी ने मुँह बिगाड़ के कहा ओ बाबा ये रोज रोज बिना नमक की बाटी हमारे गले से नीचे नहीं उतरती, थोड़ा नमक भी मांग के लाया करो ना।
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सनातन जी ने झुँझलाकर कहा – यह इल्लत मुझसे न लगाओ, खानी हो तो ऐसी ही खाओ वरना अपने घर का रास्ता पकड़ो ।
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मदन मोहन ने हस के कहा – एक कंकड़ी नमक के लिये कौन मना करेगा, और ये जिद करने लगे।
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दूसरे दिन ये आटे के साथ थोड़ा नमक भी मांग के लाने लगे।
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चटोरे मदन मोहन को तो माखन मिश्री की चट पड़ी थी,
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एक दिन बड़ी दीनता से बाबा से बोले- बाबा ये रूखे टिक्कड तो रोज रोज खावे ही न जाये, थोड़ा माखन या घी भी कही से लाया करो तो अच्छा रहेगा।
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अब तो सनातन जी मदन मोहन को खरी-खोटी सुनाने लगे, उन्होंने कहा – देखो जी मेरे पास तो यही सूखे टिक्कड है,
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तुम्हे घी और माखन मिश्री की चट थी तो कही धनी सेठ के वहां जाते, ये भिखारी के वहां क्या करने आये हो,
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तुम्हारे गले से उतरे चाहे न उतरे, में तो घी-बुरा माँगने बिल्कुल नही जाने वाला, थोड़े यमुना जी के जल के साथ सटक लिया करो ना। मिट्टी भी तो सटक लिया करते थे।
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बेचारे मदन मोहन जी अपना मुँह बनाए चुप हो गये, उस लंगोटि बन्ध साधु से और कह भी क्या सकते थे।
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दूसरे दिन सनातन जी ने देखा कोई बड़ा धनिक व्यापारी उनके समीप आ रहा हे,
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आते ही उसके सनातन जी को दण्डवत प्रणाम किया और करुण स्वर में कहने लगा –
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महात्मा जी मेरा जहाज बीच यमुना जी में अटक गया है, ऐसा आशीर्वाद दीजिये की वो निकल जाये,
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सनातन जी ने कहा भाई में कुछ नही जानता, इस झोपडी में जो बैठा है न उससे जाके कहो,
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व्यापारी ने झोपड़े में जा के मदन मोहन जी से प्रार्थना की, बस फिर क्या था इनकी कृपा से जहाज उसी समय निकल गया,
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उसी समय उस व्यापारी ने हजारो रूपए लगा के बड़ी उदारता के साथ मदन मोहन जी का वही भव्य मंदिर बनवा दिया, और भगवान की सेवा के लिए बहुत सारे सेवक, रसोइये और नोकर चाकर रखवा दिये।
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वह मंदिर वृंदावन में आज भी विध्यमान है…

((((((( जय जय श्री राधे )))))))

लष्मीकांत वर्षनाय

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विवाहिता स्त्री को गुरू करना चाहिये या नहीं ?

आइए इसके बारे में हमारे शास्त्र क्या कहते हैं
जरा वह देखें ।

1- गुरूग्निद्विर्जातिनां वर्णाणां ब्रह्मणो गुरूः।
पतिरेकोगुरू स्त्रीणां सर्वस्याम्यगतो गुरूः।।
(पदम पुं . स्वर्ग खं 40-75)

अर्थ : अग्नि ब्राह्मणो का गुरू है।
अन्य वर्णो का ब्राह्मण गुरू है।
एक मात्र उनका पति ही स्त्रीयों का गुरू है
तथा अतिथि सब का गुरू है।

2- पतिर्बन्धु गतिर्भर्ता दैवतं गुरूरेव च।
सर्वस्याच्च परः स्वामी न गुरू स्वामीनः परः।।
(ब्रह्मवैवतं पु. कृष्ण जन्म खं 57-11)

अर्थ > स्त्रीयों का सच्चा बन्धु पति है, पति ही उसकी गति है। पति ही उसका एक मात्र देवता है। पति ही उसका स्वामी है और स्वामी से ऊपर उसका कोई गुरू नहीं।।

3- भर्ता देवो गुरूर्भता धर्मतीर्थव्रतानी च।
तस्मात सर्वं परित्यज्य पतिमेकं समर्चयेत्।।
(स्कन्द पु. काशी खण्ड पूर्व 30-48)

अर्थ > स्त्रीयों के लिए पति ही इष्ट देवता है। पति ही गुरू है। पति ही धर्म है, तीर्थ और व्रत आदि है। स्त्री को पृथक कुछ करना अपेक्षित नहीं है।

4- दुःशीलो दुर्भगो वृध्दो जड़ो रोग्यधनोSपि वा।
पतिः स्त्रीभिर्न हातव्यो लोकेप्सुभिरपातकी।।
(श्रीमद् भा. 10-29-25)

अर्थ > पतिव्रता स्त्री को पति के अलावा और किसी को पूजना नहीं चाहिए, चाहे पति बुरे स्वभाव वाला हो, भाग्यहीन, वृध्द, मुर्ख, रोगी या निर्धन हो। पर वह पातकी न होना चाहिए।

वेदों, पुराणों, भागवत आदि शास्त्रो ने स्त्री को बाहर का गुरू न करने के लिए कहा यह शास्त्रों के उपरोक्त श्लोकों से ज्ञात होता है। आज हर स्त्री बाहर के गुरूओं के पीछे पागलों की तरह पड जाती हैं तथा उनके पीछे अपने पति की कड़े परिश्रम की कमाई लुटाती फिरती हैं।

आज सत्संग आध्यात्मिक ज्ञान की जगह न होकर व्यापारिक स्थल बन गया है।

इसलिए सावधान हो जाइये.

गुरू करने से पहले देख लो कि वह गुरू जिन शास्त्रों का सहारा लेकर हमें ज्ञान दे रहा है, वह स्वयं उस पर कितना चल रहा है?

हिन्दू धर्म में पति के रहते किसी को गुरु बनाने की इजाजत नहीं है।

आप कोई भी समागम देख लो,
औरतो ने ही भीड़ लगाई हुई है।
परिवार जाए भाड़ में।
बाबा की सेवा करके मोक्ष प्राप्त करना है बस..!!

खुद फैसला कीजिये।
बदलाव कहाँ चहिये।
🙏🙏
साभार
सुनील गिरी
आप की राय महत्वपूर्ण है।

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👉એક ઓટોમોબાઇલ એન્જીનીયરે અફ્લાતૂન કાર બનાવી.

👉કારને જોઇને જ લોકોની આંખો આશ્વર્યથી પહોળી થઇ જાય એવી અદભૂત કાર હતી.

👉એન્જીનિયર કંપનીના માલીકને સરપ્રાઇઝ આપવા માંગતો હતો એટલે ગેરેજના અંદરના ભાગમાં છુપી રીતે આ કાર બનાવવામાં આવી હતી.

👉કાર તૈયાર થયા પછી કંપનીના માલિકને જાણ કરવામાં આવી.

👉કંપનીના માલિક ગેરેજના અંદરના ભાગે આવ્યા અને કારને જોઇને રીતસરના નાચવા લાગ્યા.

👉કાર બનાવનાર એન્જીનિયરને ભેટીને અભિનંદન આપ્યા અને એન્જીનિયર માટે મોટી રકમના ઇનામની જાહેરાત કરી.

👉કારને હવે ગેરેજના અંદરના ભાગમાંથી બહાર લાવીને પ્રદર્શન માટે મુકવાની હતી.

👉ડ્રાઇવર ગાડી ચલાવીને દરવાજા સુધી આવ્યો પછી અટકી ગયો.

👉દરવાજાની ઉંચાઇ કરતા ગાડીની ઉંચાઇ સહેજ વધુ હતી. એન્જીનિયર આ બાબતને ધ્યાને લેવાનું ભૂલી ગયેલો.

👉ત્યાં હાજર જુદી-જુદી વ્યક્તિઓએ જુદા-જુદા સુચનો આપવાના ચાલુ કર્યા.

1⃣એકે કહ્યુ ‘દરવાજાનો ઉપરનો ભાગ તોડી નાંખો, ગાડી નીકળી જાય પછી ફરીથી ચણી લેવાનો’.

2⃣બીજાએ કહ્યુ ‘ઉપરનો ભાગ તોડવાને બદલે નીચેની લાદી જ તોડી નાંખો અને ગાડી નીકળી ગયા પછી નવી લાદી ચોંટાડી દેવાની.

3⃣ ત્રીજાએ વળી કહ્યુ ‘ ગાડી દરવાજા કરતા સહેજ જ ઉંચી દેખાય છે એટલે પસાર થઇ જવા દો. ગાડીના ઉપરના ભાગે ઘસરકા પડે તો ફરીથી કલર કરીને ઘસરકાઓ દુર કરી શકાય’.

⚫આ બધા સુચનો પૈકી ક્યુ સુચન સ્વિકારવું એ બાબતે માલિક મનોમંથન કરતા હતા.

🔴માલિક અને બીજા લોકોને મુંઝાયેલા જોઇને વોચમેન નજીક આવ્યો અને વિનમ્રતાથી કહ્યુ,

🔵”શેઠ, આ કંઇ કરવાની જરૂર નથી. ચારે વીલમાંથી હવા ઓછી કરી નાંખો એટલે ગાડી સરળતાથી દરવાજાની બહાર નીકળી જશે”

😱માલિક સહિત બધાને થયુ કે વોચમેનને જે વિચાર આવ્યો એ વિચાર આપણને કોઇને કેમ ન આવ્યો ?

👉જીવનમાં આવતી દરેક સમસ્યાને નિષ્ણાંત તરીકેના દ્રષ્ટિકોણથી ન જુવો. મોટાભાગની સમસ્યાઓના ઉકેલ બહુ સરળ હોય છે પણ વધુ પડતા વિચારોથી આપણે સમસ્યાને ગૂંચવી નાંખીએ છીએ.

🙏બીજુ કે મિત્રો અને સગા-સંબંધીઓના ઘરના દરવાજા કરતા આપણી ઉંચાઇ વધી જાય અને અંદર પ્રવેશવામાં મુશ્કેલી થાય તો થોડી હવા ( અહંકાર ) કાઢી નાંખવી પછી આરામથી પ્રવેશ કરી શકાશે.

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एकोहं द्वितीयोनास्ति
ॐ नमः शिवाय !

आप सभी का दिवस बरस
मंगलमय हो,,,
समस्त मनोकामनायें पूर्ण हों,,,,,

” रौद्र रुद्र ब्रह्मांड प्रलयति,
प्रलयति प्रलेयनाथ केदारनाथम्”

केदारनाथ के मार्ग मेँ यह लिखा है।

इसका भावार्थ यह है कि जो रुद्र अपने
रौद्र रुप से संपूर्ण ब्रह्मांड को भस्म कर
देने की सामर्थ्य रखते हैँ वही भगवान
रुद्र यहाँ केदारनाथ के रुप मेँ निवास
करते हैँ।

“एकोहं द्वितीयोनास्ति” अर्थात जहां
और कोई नही है,,,हैं तो सिर्फ शिव
और साक्षात् शिव।

संपूर्ण भारतीय सनातन संस्कृति में
शिव अकेले ऐसे देवता हैं जो निर्गुट हैं,
गुट निरपेक्ष हैं।

देव-दानव, सुर-असुर दोनों को उनमें
विश्वास है,भरोसा है।

राक्षस भी उन्हें पूजते रहे हैं और
आर्य जन भी।

चाहे दक्षिण भारत हो,उत्तर हो या पूर्व
या पश्चिम,शिव हर जगह समान रूप
से पूजित हैं।

हर पूजा के पहले और हर युद्ध के पहले
भारतीय पौराणिक इतिहास में दोनों ही
पक्ष शिव को पूजते मिल जाते हैं।

राम ने रावण पर विजय पाने के लिए पहले
इन्हीं शिव की पूजा की तो रामेश्वरम बना
और रावण ने तो कैलाश उठाकर लंका ले
जाने की ठानी थी पर शिव की शर्त थी कि
जहां तुम मुझे रख दोगे बस मैं वहीं का हो
जाऊंगा..अंततः वह असफल हुआ।

शिव जो सचमुच तीनों लोकों के स्वामी हैं।

वे अकेले समुद्र मंथन से निकला हलाहल
पीते हैं ताकि देव-दानव उसके दुष्प्रभाव
से बचे रहें।

शिव डमरू बजाते हैं तो प्रलय होती है।

लेकिन प्रलयंकारी इसी डमरू से संस्कृत
व्याकरण के 14 सूत्र निकलते हैं।

इन्हीं माहेश्वर सूत्रों से दुनिया की कई
भाषाओं का जन्म हुआ।

आज पर्यावरण बचाने की चिंता
विश्वव्यापी है।

शिव पहले पर्यावरण प्रेमी हैं।
वे पशुपति हैं।
निरीह पशुओं के रक्षक हैं।
शिव ने बूढ़े बैल नंदी को अपना वाहन बनाया।
सांड को अभयदान दिया।

जंगल काटने से बेदखल सांपों को अपने
गले में आश्रय दिया।

कोई गृहविहीन उपेक्षितों को गले नहीं
लगाता लेकिन शिव ने उन्हें गले लगाया।

श्मशान,मरघट में कोई नहीं रुकता पर
शिव तो अलबेले ठहरे,मरघट और श्मशान
को अपना निवास बनाया।

जिस कैलाश पर ठहरना मुश्किल है वहां
न तो प्राणवायु है,न कोई वनस्पति वहां
उन्होंने धूनी रमाई।

दूसरे सारे देवता अपने शरीर पर सुगंधित,
सुवासित द्रव्य लगाते हैं पर शिव केवल
भभूत।

उनमें रत्ती भर लोक-दिखावा नहीं है।

बाकी के देवता रत्नजटित,स्वर्ण के आभूषण और बेशकीमती परिधान
पहनते हैं लेकिन शिव का काम तो
महज व्याघ्रचर्म से चल जाता है।

अचरज की बात कि शिव उसी रूप में
विवाह के लिए जाते हैं जिसमें वे हमेशा
रहते हैं।

वे साकार भी हैं,निराकार भी।

शिव न्यायप्रिय हैं।
मर्यादा तोडऩे के लिए दंड देते हैं।
काम बेकाबू हुआ तो उन्होंने उसे भस्म
कर दिया।

अगर किसी ने अति की तो उसे ठीक करने
के लिए उनके पास तीसरी आंख भी है।

हमेँ शिव के संतुलन रुप पर ध्यान देना चाहिये।

अपने भीतर तो संतुलन लाना ही चाहिये,
साथ ही प्रकृति के संतुलन को भी बनाये
रखने का प्रयास करना चाहिये,पर्यावरण
की सुरक्षा कर इस संतुलन को बनाये रख
सकते हैँ,
अर्थात् एक वृक्ष कटने पर कम से कम
एक वृक्ष तो अवश्य लगाना चाहिये
अन्यथा जीवन का लय प्रलय मेँ
बदल जायेगा।

लय और प्रलय दोनोँ के स्वामी
भगवान शिव,

परस्पर विरोधी शक्तियोँ के बीच सामंजस्य
एवं संतुलन बनाये रखने के सुन्दरतम प्रतीक है,जो प्राणियोँ को जीवन मेँ
संतुलन बनाये रखने के लिये प्रेरित
करते हैँ।

किन्तु प्राणी इसके विपरित आचरण से
इसे असंतुलित करके प्राकृतिक आपदा
एवं प्रलय को आमंत्रित करते हैँ।

प्रकृति मेँ संतुलन साधना ही शिवत्व है,
शिवतत्व है।

अर्थात् आप एक पेड़ काटते हैँ तो कम
से कम एक पेड़ अवश्य लगायेँ।

लय और प्रलय दोनोँ शिव के अधीन हैँ।

शिव का अर्थ है सुन्दर एवं कल्याणकारी,
मंगल का मूल और अमंगल का उन्मूलन।

शिव के दो रुप हैँ,सौम्य एवं रौद्र।

जब शिव अपने सौम्य रुप मेँ होते हैँ
तो प्रकृति मेँ लय बनी रहती है।

रौद्र रुप मेँ प्रकृति मेँ प्रलय होता है।

पुराणों में शिव कि पुरुष (उर्जा) और
प्रकृति का पर्याय माना गया है अर्थात
प्रकृति एवं पुरुष का सम्यक संतुलन ही
आकाश,पदार्थ,ब्रह्माण्ड और उर्जा को
नियंत्रित रखते हुए गतिमान बनाये
रखता है।

प्रकृति में जो कुछ भी है आकाश,पाताल,
पृथ्वी,अग्नि,वायु,सबमें संतुलन बनाये
रखना ही शिवत्व है,,शिव तत्व है।

परस्पर विरोधी शक्तियोँ के बीच
सामंजस्य एवं संतुलन बनाये रखने
के सुन्दरतम प्रतीक है शिव।

शिव का जो प्रचलित रूप है वह है शीश
पर चन्द्रमा,गले में अत्यंत विषैला नाग।

चन्द्रमा आदि काल से शीतलता परदान
करने वाला माना जाता रहा है किन्तु नाग
अपने विष की एक बूँद से ही किसी को
काल कवलित कर देता है।

कैसा अद्भुत संतुलन है इन दोनों के बीच ?

शिव अर्द्धनारीश्वर हैं,पुरुष और प्रकृति
(स्त्री) का सम्मिलित रूप।

ये अर्द्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं,
काम पर विजय प्राप्त करने वाले और क्रोध
की ज्वाला में काम को भस्म कर देने वाले।

प्रकृति अर्थात उमा अर्थात पार्वती इनकी
पत्नी हैं,लेकिन वीतरागी हैं।

शिव गृहस्थ होते हुए भी श्मशान में रहते हैं,
अर्थात कामऔर संयम का सम्यक संतुलन,
भोग भी है वैराग भी है,
शक्ति भी है,विनयशीलता भी है।

आसक्ति इतनी कि पत्नी उमा के यग्य वेदी
में कूदजाने पर उनके शव को शोक में काँधे
पर लेकर तांडव करने लगते हैं।

विरक्ति इतनी कि काम देव द्वारा प्रेरित किये
जाने पर भी उसे भस्म कर पुनः ध्यान रत हो
जाते हैं।

वेदों में शिव को रूद्र ही कहा गया है,वेदों के बाद
रचे गए पुराणों और उपनिषदों में रूद्र का नाम
शिव हो गया।

वस्तुतः प्रकृति और पुरुष के बीच असंतुलन उत्पन्न
होने के परिणामस्वरूप रूद्र स्वरुप प्रगट होता है,
प्रकृति मेंजहाँ कहीं भी मानव असंतुलन की ओर
अग्रसर हुआ हैतब तब शिव ने रौद्र रूप धारण
किया है।

लय और प्रलय में संतुलन रखने वाली प्रकृति में
आई प्राकृतिक आपदाएं शिव का रौद्र रूप ही है।

इसी लय को बनाये रखने के लिए हमारी सनातन
परंपरा में वृक्षों,,नदियों एवं समस्त प्राकृतिक
वनस्पतियों के पूजन की सनातन परंपरा रही है ताकि ,,,
प्राकृतिक संतुलन बना रहे,,,
प्रलय ना हो।

आदिगुरू श्री शंकराचार्य द्वारा रचित यह
शिवस्तव वेद वर्णित शिव की स्तुति प्रस्तुत
करता है।

शिव के रचयिता,पालनकर्ता एव विलयकर्ता
विश्वरूप का वर्णन करता यह स्तुति संकलन
करने योग्य है।

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्॥

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्॥

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्॥

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले
महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप॥

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्॥

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु-
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे॥

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्॥

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः॥

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-
स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि॥

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन्॥

(हे शिव आप) जो प्राणिमात्र के स्वामी एवं
रक्षक हैं,पाप का नाश करने वाले परमेश्वर हैं,
गजराज का चर्म धारण करने वाले हैं,श्रेष्ठ एवं
वरण करने योग्य हैं,जिनकी जटाजूट में गंगा
जी खेलती हैं, उन एक मात्र महादेव को बारम्बार
स्मरण करता हूँ|

हे महेश्वर, सुरेश्वर,देवों (के भी) दु:खों का नाश
करने वाले विभुं विश्वनाथ (आप)विभुति धारण
करने वाले हैं,सूर्य,चन्द्र एवं अग्नि आपके तीन
नेत्र के सामान हैं।

ऎसे सदा आनन्द प्रदान करने वाले पञ्चमुख
वाले महादेवमैं आपकी स्तुति करता हूँ।

(हे शिव आप) जो कैलाशपति हैं,गणों के स्वामी,
नीलकंठ हैं,(धर्म स्वरूप वृष) बैल की सवारी करते
हैं,अनगिनत गुण वाले हैं, संसार के आदि कारण हैं,
प्रकाश पुंज सदृश्य हैं,भस्मअलंकृत हैं,जो भवानिपति
हैं,उन पञ्चमुख (प्रभु) को मैं भजता हूँ।

हे शिवा (पार्वति) पति, शम्भु! हे चन्द्रशेखर! हे
महादेव !
आप त्रीशूल एवं जटाजूट धारण करने वाले हैं।
हे विश्वरूप ! सिर्फ आप ही स्मपुर्ण जगद में
व्याप्त हैं।

हे पूर्णरूप आप प्रसन्न हों,प्रसन्न हों।
हे एकमात्र परमात्मा! जगत के आदिकारण!
आप इक्षारहित,निराकार एवं ॐकार स्वरूप
वाले हैं।

आपको सिर्फ प्रण (ध्यान) द्वारा ही जान जा
सकता है।

आपके द्वारा ही सम्पुर्ण सृष्टी की उतपत्ति होती
है,आपही उसका पालन करते हैं तथा अंतत:
उसका आप में ही लय हो जाता है।

हे प्रभू मैं आपको भजता हूँ।

जो न भुमि हैं,न जल,न अग्नि,न वायु और न ही
आकाश,-अर्थात आप पंचतत्वों से परे हैं।

आप तन्द्रा,निद्रा,गृष्म एवं शीत से भी अलिप्त हैं।

आप देश एव वेश की सीमा से भी परे हैं।

हे निराकार त्रिमुर्ति मैं आपकी स्तुति करता हूँ।

हे अजन्मे (अनादि),आप शाश्वत हैं,नित्य हैं,कारणों
के भी कारण हैं।

हे कल्यानमुर्ति (शिव) आप ही एक मात्र प्रकाश कों
को भी प्रकाश प्रदान करने वाले हैं।

आप तीनो अवस्थाओं से परे हैं।

हे आनादि,अनंत आप जो कि अज्ञान से परे हैं,आपके
उस परम् पावन अद्वैत स्वरूप को नमस्कार है।

हे विभो,हे विश्वमूर्ते आपको नमस्कार है,
नमस्कार है।

हे सबको आनन्द प्रदान करने वाले सदानन्द
आपको नमस्कार है,नमस्कार है।

हे तपोयोग ज्ञान द्वारा प्राप्त्य आपको नमस्कार
है, नमस्कार है।

हे वेदज्ञान द्वारा प्राप्त्य (प्रभु) आपको नमस्कार है,
नमस्कार है।

हे त्रिशूलधारी ! हे विभो विश्वनाथ ! हे महादेव !
हे शंभो ! हे महेश ! हे त्रिनेत्र ! हे पार्वतिवल्लभ !
हे शान्त ! हे स्मरणिय ! हे त्रिपुरारे !
आपके समक्ष न कोई श्रेष्ठ है,न वरण करने योग्य है,
न मान्य है और न गणनीय ही है।

हे शम्भो! हे महेश ! हे करूणामय !
हे शूलपाणे !
हे गौरीपति! हे पशुपति !
हे काशीपति !
आप ही सभी प्रकार के पशुपाश
(मोह माया) का
नाश करने वाले हैं।

हे करूणामय आप ही इस जगत के उत्तपत्ति,
पालन एवं संहार के कारण हैं।

आप ही इसके एकमात्र स्वामि हैं।

हे चराचर विश्वरूप प्रभु,आपके लिंगस्वरूप से ही
सम्पुर्णजगत अपने अस्तित्व में आता है (उसकी
उत्पत्ती होती है),
हे शंकर ! हे विश्वनाथ अस्तित्व में आने के उपरांत
यह जगत आप में ही स्थित रहता है –
अर्थात आप ही इसका पालन करते हैं।

अंतत: यह सम्पुर्ण सृष्टिआप में ही लय हो
जाती है।
$#साभार_संकलित●

समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल विश्व
का कल्याण करो प्रभु !!

नमः सर्वहितार्थाय जगदाधारहेतवे।
साष्टाङ्गोऽयं प्रणामस्ते
प्रयत्नेन मया कृतः।।
पापोऽहं पापकर्माहं
पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहि मां पार्वतीनाथ
सर्वपापहरो भव।।
ॐ भूर्भुवः स्वः
श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नमः
प्रार्थनापूर्वक नमस्कारान् समर्पयामि
ॐ पार्वतीपतये नमः
ॐ नमः शिवाय

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,

सदा सर्वदा सुमंगल,,
ॐ नमः शिवाय,

कष्ट हरो,,काल हरो,,
दुःख हरो,,दारिद्रय हरो,,
हर,,हर,,महादेव,,
जयमहाकाल
जय भवानी
जय श्री राम,,, — at Bichiya,Gorakhpur.

विजय कृष्णा पांडेय