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एक सम्राट के दरबार में एक आदमी ने आकर कहा कि में स्वर्ग से कपडे ला सकता हूं

वह भी सिर्फ आपके लिए.
उस सम्राट ने कहा स्वर्ग
के वस्त्र सुना नहीं कभी,
देखें नहीं कभी.
उस आदमी ने कहा में ले आउंगा उन्हें,
फिर आप देख भी सकेंगे और पहन भी
सकेंगे.
लेकिन बहुत पैसे खर्च करने पडेंगे कई करोडो रुपये खर्च हो जायेंगे क्योंकी रिश्वत की आदत दैवताओ तक पहुंच गयी है.
जब से ये दिल्ली के राजनितिज्ञ मर-मर कर स्वर्ग पहुंच गये.
तब से रिश्वत की आदत भी वहां तक पहुंच गयी.
वहा भी रिश्वत जारी हो गई है. क्योंकी देवता कहते है,
हम आदमियो से पिछे थोडी रह जायेंगे.
और यहा तो पांच रुपये की रिश्वत चलति है वहां तो करोडो रुपयों से निचे बात ही नहीं होती क्योंकी देवताओ का लोक है.
सम्राट ने कहा कोई बात नहीं.

लेकिन धोखा देने की कोशिश मत करना करोंडो रुपये देंगे
तुम्हे लेकिन भागने की कोशिश मत करना नहीं तो मुश्किल में पड जाओगे.
उसने कहा भागने का कोई सवाल नहीं महल के चारो तरफ पेहरे करवा दिये जाए
में महल के भितर ही रहुंगा क्योंकी देवताओ का रास्ता सडको से होकर नहीं जाता.
वो तो आतंरिक यात्रा है, अन्दर की. वही से अन्दर से कोशिश करुंगा.
उस आदमी ने 6 महिने का समय मांगा और 6 महिनो में कई करोड रुपये सम्राट से ले लिए.
दरबारी हेरान थे और चिंतित थे.
लेकिन सम्राट उनसे
कहता था घबाराओ नहीं.
घबराने की बात क्या है.
रुपये लेकर जाएगा कहा महल के बहार.
6 महिने पूरे होने पर पूरि राजधानी में हजारो लाखों लोग इकठ्ठे हो गए देखने को वह आदमी ठिक समय बारह बजें जो उसने दिया था.
फिर वह आदमी एक बहुमूल्य पैटी लिए हुए महल के बहार आ गया अब तो कोई शक की बात न थी.
वह आदमी ओर जूलुस,
महल पहुंचे दूर-दूर के सम्राट, धनपती,
दर्बारी इकठ्ठे थे देखने को.
उस आदमी ने पैटी को एक तरफ रखा और कहा ये ले आया वस्त्र (कपडे).
अब आप मेरे पास आ
जाईये में देवताओ के वस्त्र देदू

पेटी मे हाथ डाला
वहां से खाली हाथ बहार निकाला और कहा महाराज यह पगडी दिखायी पडती है,
हाथ में कुछ भी नहीं था.
महाराज ने गौर से देखा और उस आदमी ने कहा खयाल रहै. देवताओ ने चलते वक्त मुझसे कहा था.
ये पगडी और कपडे सिर्फ उसी को दिखाई पडेंगे जो अपने ही बाप से पैदा हुआ हो.
उस सम्राट ने यह सुनते ही कहा हा-हा दिखाई पडते है.
क्यु दिखाई नहीं पडेंगे. बडी सुंदर पगडी है ऐसी सुंदर पगडी न तो कहीं देखी है न कहीं सुनी है. दरबारियो ने सुना किसी को भि पगडी दिखाई नहीं पडती थी,
होती तो दिखाई पडती.
लेकिन दरबारीयो ने देखा ईस वक्त यह कहना कि नहीं दिखाई पडती व्यर्थ ही अपने मरें हुए बाप पर शक पैदा करवाना है.
हमें ईससे क्या फायदा है.
पगडी से हमकों क्या लेना देना.
वै भी तालियां बजाने लगे और कहने लगे,
धन्य महाराज धन्य प्रथवी पर ऐसा अवसर कभी नही आया ऐसी पगडी कभी देखी नहीं गयी.
एक-एक आदमी अपने मन में सोच रहा था की बडी गडबड बात है.
लेकिन उन्होंने देखा की सारे लोग कहते है कि पगडी है.
तो उसने सोचा कि हो सकता है अपने बाप गडबड रहै हो.
हमारे अवचेतन मन की शक्ती लेकिन यह किसी से कहने की बात नहीं है,
अपने भितर जान लिया वो ठीक है. अपना राज अपने घर में रखो.
जब सारे लोग कहतें है तो ठिक ही कहते होंगे.जिसको जितना डर लगा वह ओर लाईन से आगे आकर कहने लगा. वाह महाराज धन्यहै. क्योंकी उन्है लगा की कहीं पास के लोगो को शक न हो जाए कि ये आदमी थोडे धिरे-धिरे बोलता है.
सम्राट ने देखा की जब सारा दरबार कह रहा है तों समज गया वो के अपने पिता गडबड रहें होंगे.
अब कुछ बोलना ठिक नहीं.
जो कुछ हो कपडे हो या न हो स्वीकार कर लेना ही ठिक है.
पगडी पहन लि उसने जो की थि ही नहीं.
कोंट पहन लिया उसने जो था ही नहीं.
एक-एक वस्त्र उसका छिन्ने लगा. वो नंगा हो गया.
आखिरी वक्त रह गया तब वो घबराने लगा.
ये तो बडी मूश्किल बात है.
कहीं कपडे मालुम नहीं होते बस एक अण्डर वियर रह गया.
अब यह भी जाता है और उस आदमी ने कहा ये लिजिए महाराज अब ये देवताओ काअण्डर वियर पहनिए इसको निकालिये.
अब वो जरा घबडाया. यहां तक तो घनिमत थी. और दरबारी हैं कि तालीं पिटे जा रहे है
कि महाराज कितने सुंदर मालुम पड रहे है इन वस्त्रो में.
उस आदमी ने महाराज से धिरे से कहा घबराईये मत महाराज सभी को अपने बापकि फिकर है.
जल्दि निकालिए नहीं तो झंझट हो जायेगी,
लोगो को पता चल जायेगा.
उन्होने जल्दि से अण्डर वियर निकाल दिया.
क्योंकी यह तो बडा घबराहट का मामला था.
वो बिलकुल नंगे खडे हो गये.
और दरबारी तो नाच रहे खुशी में कि धन्य हो महाराज.
जबकी एक-एक आदमी को राजा नंगा दिखाई पड रहा था.
लेकिन अब कोई ऊपाय नहीं.
रानी भी देख रही है कि राजा नंगा है.
लेकिन कुछ कह नहीं सकते वह भी तालियां पिट रही है कि महाराज इतने सुंदर आप कभी दिखाई नहीं पडे.
और तब उस आदमी ने कहा महाराज देवताओ ने मुझसे कहा था
कि जब यह वस्त्र महाराज पहन ले तो उनकी

शोभा यात्रा निकाली जानी चाहिए.
राजधानी में लोग आपकी प्रतिक्षा कर रहे हैं.
रास्ते के किनारो पर हजारो-लाखो लोग खडे है.
वे कहते है हम महाराज के दर्शन करेंगे. रथ तेयार है
आप क्रपा करके संवार हो जाए. अब बहार चलिए.
अब महाराज और भी घबढाए अब तक तो कम से कम दरबारी थे, अपने मित्र थे,
परिचित थे, घर के लोग थे,
और अब ये नया झंझट.
उस आदमी ने राजा के कान में कहा घबराईये मत आपके रथ के पहले ही एक डुग-डुगी पिटती चलेगी और खबर कि जायेगी कि ये वस्त्र उसी को दिखाई पडेंगे जो अपने ही बाप से पैदा हुए,
जैसे ये आदमी भितर है ठिक वैसे ही बहार के आदमी है.
सब तरफ एक से बडकर एक बेवकूफ आदमी है.
आप घबराईये मत और अगर आपने इंकार किया की में बहार नहीं जाता हूँ
तो लोगो को आपके पिता पर शक हो जाएगा.
राजा ने कहा चलो भाई (एक बार आदमी झंझट में पड जाये तो कहा निकले यह बताना मुश्किल है.
जो आदमी झुट में पहले ही कदम पर रुक जायें वह रुक सकता है,
बच सकता है जो दस पांच कदम आगे चल जाये उसके लिए मुश्किल हो जाती है.
लोटना भी मुश्किल आगे जाना भी मुश्किल)
उस बेचारे गरीब सम्राट को नंगा जाकर रथ पर खडा होना पडा.
उसके सामने ही डुग-डूगी पिटने लगी कि ये वस्त्र,
महाराज के सुंदर वस्त्र,
देवताओं के वस्त्र है.
ये वस्त्र उन्ही को दिखाई पढेंगे जो अपने ही बाप से पैदा हुए हो.
और सब को वस्त्र दिखाई पडने लगें.
एक दमप्रशंशा होने लगी.
गांव में खबर तो पहले ही पहुंच गयी थी ये सब लोग तैय्यार हो कर आए थे कि अपने बाप कि रक्षा करनी है और वस्त्र भी देखने थे.
वस्त्र तो दिखाई नहीं पडते थे.
राजा नंगे थे. लेकिन सारा जन समुह कहने लगा कि ऐसे सुंदर वस्त्र सपने में भी कहीं नहीं देखे.
लेकिन कुछ छोटे बच्चे अपने बापों के कंधो पर चडकर आ गये थे.
वो अपने बाप से कहने लगे. पिताजी राजा नंगा है.
उनके पिताजी ने कहा चुप ना समझ अभी तेरा ज्ञान कम है,
अभी तेरी उम्र कम है, ये बातें अनुभव से आती है,
बडी गहरी बाते है.
जब मेरी उम्र का हो जायेगा तब अनुभव मिल जायेगा.
तब तुझे वस्त्र दिखाई पडने लगेंगे. ये बडे अनुभव से दिखाई पडते है. जो बच्चे चुप नहीं हुए उन्के बापों ने उन्का मुह बंद करके पिछे खिसक गयें.
क्योंकी बच्चों का क्या भरोसा आस-पास के लोग सुनले कि उस आदमी के लडके ने यह क्या कहा है.
हमेशा भिड के भय के कारण हम असत्यों को स्विकार करके बैठे रहते है भिड का भय
जिसको हम सत्य मान कर बैठे है. क्या वह सत्य है.
या फिर भिड का भय है कि चारों तरफ के लोग क्या कहेंगे.
चारों तरफ के लोग जो मानते है वही हम भी मानते है.
एक तरफ आप कहते है की हमें सत्य चाहिए ओर दूसरी तरफ यह ढोंग,
ऐसे लोग सत्य कि खोज में कभी नहीं जा सकते जो भिड को स्विकार कर लेते है.
सत्य कि खोज भिडॅ से मुक्त होने कि खोज है.
क्योंकी भिड एक दूसरे से भय-भीत है.
जिंसे आप भयभीत है वो आप से भयभित है
यह कहानी भेड़ चाल की ओर इशारा करती हैं.
हम भी वहीं मान लेते हैं जो भीड़ मान लेती हैं.
जागो गलत चीजों के प्रति संभलो. भेड़ चाल में शामिल होना बंद करो.
((((((ओशो))))))

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🔴एक छोटी सी कहानी, फिर मैं दूसरा प्रश्न लूं।
मैंने सुना है कि जब सृष्टि बनी और ईश्वर ने सारी चीजें बनाईं, बड़ी अदभुत कहानी है। और जब उसने आदमी बनाया, तो वह अपने देवताओं से पूछने लगा कि यह आदमी मुझे बड़ा शिकायती मालूम पड़ता है। यह बन तो गया, लेकिन यह छोटी-छोटी शिकायत लेकर मेरे द्वार पर खड़ा हो जाएगा। मैंने वृक्ष बनाए, वृक्ष कभी शिकायत लेकर नहीं आए, न वृक्षों ने कभी प्रार्थना की और न शिकायत की। मैंने पशु बनाए, पशु कभी मेरे द्वार पर नहीं आए। पक्षी बनाए, कभी पक्षी मेरे द्वार पर नहीं आए। चांदत्तारे बनाए। लेकिन यह आदमी मुसीबत का घर है। यह सुबह-शाम चौबीस घंटे द्वार पर दस्तक देगा, कहेगा कि यह करो, यह करो; यह होना चाहिए, वह नहीं होना चाहिए। इस आदमी से बचने का मुझे कोई उपाय चाहिए। मैं कहां छिप जाऊं?
तो किसी देवता ने कहा, हिमालय पर छिप जाइए।
तो उसने कहा, तुम्हें पता नहीं है, बहुत जल्द वह वक्त आएगा कि हिलेरी और तेनसिंग हिमालय पर चढ़ जाएंगे।
तो किसी ने कहा, पैसिफिक महासागर में छिप जाइए।
तो उसने कहा, वह भी कुछ काम नहीं चलेगा। जल्दी ही अमेरिकी वैज्ञानिक वहां भी उतर जाएंगे।
किसी ने कहा, चांदत्तारे पर बैठ जाइए।
उसने कहा, उससे भी कुछ होने वाला नहीं है। जरा ही समय बीतेगा और चांदत्तारों पर आदमी पहुंच जाएगा।
तब एक बूढ़े देवता ने उसके कान में कहा, एक ही रास्ता है, आप आदमी के भीतर छिप जाइए। वहां आदमी कभी नहीं जाएगा।
और ईश्वर ने बात मान ली और आदमी के भीतर छिप गया। और आदमी हिमालय पर भी पहुंच गया, चांदत्तारों पर भी पहुंच जाएगा, पैसिफिक में भी पहुंच गया। एक जगह भर छूट गई है जहां आदमी नहीं पहुंचता, वह खुद के भीतर।
तृष्णा गई एक बूंद से -6
ओशो♣️

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🔴।। आनंद की कसौटी ।।

दो फकीर एक संध्या अपने झोपड़े पर पहुंचे। वे चार महीने से बाहर थे और अब वर्षा आ गई थी तो अपने झोपड़े पर वापस लौटे थे। लेकिन झोपड़े के करीब आकर, जो आगे युवा फकीर था, वह एकदम क्रोध से भर गया और दुखी हो गया। वर्षा की हवाओं ने आधे झोपड़े को उड़ा दिया था, आधा ही झोपड़ा बचा था। वे चार महीने भटक कर आए थे इस आशा में कि वर्षा में अपने झोपड़े में विश्राम कर सकेंगे, पानी से बच सकेंगे, यह तो मुश्किल हो गई। झोपड़ा आधा टूटा हुआ पड़ा था, आधा छप्पर उड़ा हुआ था।

उस युवा संन्यासी ने लौट कर अपने बूढ़े साथी को कहा कि यह तो हद हो गई। इन्हीं बातों से तो भगवान पर शक आ जाता है, संदेह हो जाता है। महल खड़े हैं पापियों के नगर में, उनका कुछ बाल बांका नहीं हुआ। हम गरीबों की झोपड़ी, जो दिन-रात उसी की प्रार्थना में समय बिताते हैं, वह आधी छप्पर टूट गई। इसीलिए मुझे शक हो जाता है कि भगवान है भी! यह प्रार्थना है भी! क्या हम सब गलती में पड़े हैं, हम पागलपन में पड़े हैं? हो सकता है पाप ही असली सचाई हो, क्योंकि पाप के महल खड़े रह जाते हैं और प्रार्थना करने वालों के झोपड़े उड़ जाते हैं।

वह क्रोध से भर गया और निंदा से भर गया और उसे अपनी सारी प्रार्थनाएं व्यर्थ मालूम पड़ी। लेकिन वह जो उसका साथी था, वह हाथ आकाश की तरफ जोड़ कर खड़ा हो गया और उसकी आंखों से आनंद के आंसू बहने लगे। वह युवक तो हैरान हुआ! उसने कहा क्या करते हैं आप? उस बूढ़े ने कहा मैं परमात्मा को धन्यवाद देता हूं क्योंकि जरूर ही… आंधियों का क्या भरोसा था, पूरा झोपड़ा भी उड़ा कर ले जा सकती थीं। भगवान ने ही बीच में कोई बाधा दी होगी, इसलिए आधा छप्पर बचा। नहीं तो आंधियों का क्या भरोसा था, पूरा छप्पर भी उड़ सकता था। हम गरीबों की भी उसे फिकर है और खयाल है, तो उसे धन्यवाद दे दूं। हमारी प्रार्थनाएं सुनी गई हैं, हमारी प्रार्थनाएं व्यर्थ नहीं गईं। नहीं तो आधा छप्पर बचना मुश्किल था।

फिर वे रात दोनों सोए। सोच ही सकते हैं आप, दोनों अलग-अलग ढंग से सोए। क्योंकि जो क्रोध और गुस्से से भरा था और जिसकी सारी प्रार्थनाएं व्यर्थ हो गई थीं, वह रात भर करवट बदलता रहा और रात भर उसके मन में न मालूम कैसे-कैसे दुखस्वप्न चलते रहे, चिंताएं चलती रहीं। वह चिंतित था। वर्षा ऊपर खड़ी थी, बादल आकाश में घिर गए थे, आधा छप्पर उड़ा हुआ था, आकाश दिखाई पड़ रहा था। कल वर्षा शुरू होगी, फिर क्या होगा?

दूसरा बहुत गहरी नींद सोया, क्योंकि जिसके प्राण धन्यवाद से भरे हैं और ग्रेटिटयूड़ से और कृतज्ञता से उसकी निद्रा जैसी सुखद निद्रा और किसकी हो सकती है! वह सुबह उठा और नाचने लगा और उसने एक गीत गाया और उस गीत में उसने कहा कि हे परमात्मा! हमें पता भी न था कि आधे झोपड़े का इतना आनंद हो सकता है। अगर हमें पहले से पता होता तो हम तेरी हवाओं को कष्ट भी न देते, हम खुद ही आधा छप्पर अलग कर देते। ऐसी आनंददायी नींद तो मैं कभी सोया ही नहीं। आधा छप्पर नहीं था, तो जब भी रात आंख खुली तो तेरे आकाश के तारे भी दिखाई पड़े, तेरे घिरते हुए बादल भी दिखाई पड़े। अब तो बड़ा आनंद होगा, वर्षा आने को है, कल से पानी पड़ेगा, हम आधे छप्पर में सोए भी रहेंगे और रात तेरी बूंदों की आवाज, तेरी बूंदों का संगीत भी हमारे पास ही पड़ता रहेगा। हम पागल रहे अब तक। हमने कई वर्षाएं ऐसे ही पूरे छप्पर के भीतर छिपे हुए बिता दीं। हमें पता भी न था कि आधे छप्पर का भी कोई आनंद हो सकता है। अगर हमें मालूम होता, हम तेरी आंधियों को तकलीफ भी न देते, हम खुद ही आधा छप्पर अलग कर देते।

उस दूसरे युवक ने पूछा कि मैं यह क्या सुन रहा हूं यह सब क्या बकवास है? यह क्या पागलपन है? यह तुम क्या कहते हो?

तो उस के ने कहा मैंने बहुत खोजा और मैंने यह अनुभव कर लिया कि जिस बात से दुख बढ़ता हो वह जीवन—दिशा गलत है और जिस बात से आनंद बढ़ता हो वह जीवन—दिशा सही है। मैंने भगवान को धन्यवाद दिया, मेरा आनंद बढ़ा। तुमने भगवान पर क्रोध किया तुम्हारा दुख बढ़ा। तुम रात बेचैन रहे, मैं रात शांति से सोया। अभी मैं गीत गा पा रहा हूं और तुम क्रोध से जले जा रहे हो। बहुत पहले मुझे समझ में आ गया कि जो आनंद बढ़ाता है वही जीवन—दिशा सही है। और मैंने अपनी सारी चेतना को उसी तरफ प्रवाहित किया है। मुझे पता नहीं भगवान है या नहीं, मुझे पता नहीं उसने हमारी प्रार्थनाएं सुनी या नहीं सुनीं। लेकिन सबूत है मेरे पास कि मैं आनंदित हूं और नाच रहा हूं और तुम रो रहे हो और क्रोधित हो और परेशान हो। मेरा आनंद, मैं जैसा जी रहा हूं उसके सही होने का सबूत है। तुम्हारा दुख, तुम जैसे जी रहे हो, उसके गलत होने का सबूत है।

ओशो – साधना पथ, प्रवचन~७
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प्राचीन समय की बात है कि किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी, उसके चार बेटे थे. बुढ़िया ने चार ही भैंसे पाल रखी थी. कार्तिक का महीना आने पर बुढ़िया ने अपनी चारों बहुओं को बुलाया और कहा कि मैं तो कार्तिका नहाने जा रही हूँ. तुम चारों एक-एक भैंस रख लो,
मैं एक महीने में वापिस आऊँगी. चारों बहुओं में से सबसे छोटी बहू बुढ़िया की लाडली थी. बुढ़िया ने जाते-जाते यह भी कहा कि मैं

एक महीने में जब वापिस आऊँगी तो देखूंगी कि किसने सबसे ज्यादा घी जोड़ा है.
बुढ़िया की बातें सुन तीनों बड़ी बहुओ ने सोचा कि यही समय है बुढ़िया को बताने का कि छोटी को कुछ नहीं आता है. वह दही बिलौना नहीं जानती थी और ना ही उसे पता था कि घी कैसे बनाते हैं.

उसकी जेठानियों ने भी जान-बूझकर उसे कुछ नहीं बताया ताकि बुढ़िया वापिस आने पर उसे डाँट-फटकार कर सके. तीनो *जेठानियाँ घी बनाने में जुट गई लेकिन छोटी बहू को कुछ नहीं आता था तो वह सारे दूध-दही को प पीपल पथवारी में गिरा देती, मन से यह भोली थी

महीना पूरा होने पर तीनों जेठानियों ने एक-एक डिब्बा घी का भरकर रख लिया. छोटी बहू ने जरा सा भी घी नहीं निकाला था. वह तो सारा दूध-दही पीपल की पथवारी पर गिरा आती थी. बुढ़िया के आने की खबर वह

पथवारी माता से कहती है कि मैं क्या करुँ? मैने तो सारा दूध-दही यहाँ गिरा दिया है. अब मेरी सासू माँ आकर घी के बारे में पूछेगी तो मैं क्या जवाब दूँगी?
पथवारी माता कहती हैं कि तुम ये चार कंकड़ ले जाओ और चार अलग-अलग डिब्बों में रख देना इससे चारों डिब्बे घी से भर जाएंगे. उसने ऎसा ही किया और उसके पास चार डिब्बे घी हो गया.

अब सासू माँ घर आई और आते ही उसने चारों बहुओं को कहा कि लाओ अपना-अपना घी दिखाओ कि किसने कितना घी जोड़ा है? तीनों जेठानियां

अपना घी का डिब्बा ले आई और मन ही मन खुश होने लगी कि अब छोटी बहू को सास से डाँट पड़ेगी.

छोटी बहू आई तो साथ में चार डिब्बे घी भी लाई
वह सब ये देख के हैरान हुई कि इसे तो दही बिलौना भी नहीं आता था तो यह घी कहाँ सेआया.
वह कहने लगी कि जरुर इसके पति ने यह घी खरीदा है

.* इस पर छोटी बहू ने कहा कि मुझे तो कुछ नहीं आता था और ना ही मुझे किसी ने बताया कि किस तरह से दही बिलोकर घी बनाया जाता है. मैं तो सारा दूध पीपल में सींच देती थी और दही पथवारी पर चढ़ा देती थी. यह तो पथवारी माता की कृपा का प्रभाव है.

छोटी बहू की सारी बातें सुनकर सारी बहुओं ने कहा कि अगर पथवारी माता को सींचने से इतना अधिक पुण्य मिलता है तब हम भी अगले साल उसे सींचेंगे और कार्तिक नहाएंगे. हे पथवारी माता! जैसे आपने छोटी बहू की सुनी वैसे ही आप सभी की सुनना.

*जय बृजधाम श्री वृन्दावन