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दोस्तों आपसे निवेदन है ये कहानी एक बार जरूर पढ़े…

पिताजी के अचानक आ धमकने से पत्नी तमतमा उठी…
“लगता है, बूढ़े को पैसों की ज़रूरत आ पड़ी है,
वर्ना यहाँ कौन आने वाला था… अपने पेट का गड्ढ़ा भरता नहीं,
घर वालों का कहाँ से भरोगे?”

मैं नज़रें बचाकर दूसरी ओर देखने
लगा।
पिताजी नल पर हाथ-मुँह धोकर सफ़र की थकान दूर कर रहे थे।

इस बार मेरा हाथ कुछ ज्यादा ही तंग हो गया। बड़े बेटे का जूता फट चुका है।वह स्कूल जाते वक्त रोज भुन
भुनाता है।पत्नी के इलाज के लिए पूरी दवाइयाँ नहीं खरीदी जा सकीं।

बाबूजी को भी अभी आना था। घर में बोझिल चुप्पी पसरी हुई थी।खाना खा चुकने पर पिताजी ने मुझे पास बैठने का इशारा किया।मैं शंकित था कि कोई आर्थिक समस्या लेकर आये होंगे…

पिताजी कुर्सी पर उठ कर बैठ गए। एकदम बेफिक्र…!!!

“सुनो”कहकर उन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा।
मैं सांस रोक कर उनके मुँह की ओर देखने लगा।

रोम-रोम कान बनकर अगला वाक्य
सुनने के लिए चौकन्ना था।

वे बोले… “खेती के काम में घड़ी भर भी फुर्सत नहीं मिलती।इस बखत काम का जोर है।रात की गाड़ी से वापस
जाऊँगा।
तीन महीने से तुम्हारी कोई चिट्ठी तक
नहीं मिली…
जब तुम परेशान होते हो, तभी ऐसा करते हो।
उन्होंने जेब से सौ-सौ के पचास
नोट निकालकर मेरी तरफ बढ़ा दिए, “रख लो।
तुम्हारे काम आएंगे। धान की फसल अच्छी हो गई थी।
घर में कोई दिक्कत नहीं है तुम बहुत कमजोर लग रहे हो।ढंग से खाया-पिया करो। बहू का भी ध्यान रखो।
मैं कुछ नहीं बोल पाया।
शब्द जैसे मेरे हलक में फंस कर रह गये हों।मैं कुछ कहता इससे पूर्व ही पिताजी ने प्यार से डांटा…
“ले लो,बहुत बड़े हो गये हो क्या ..?”
“नहीं तो।” मैंने हाथ बढ़ाया। पिताजी ने नोट मेरी हथेली पर रख दिए। बरसों पहले पिताजी मुझे स्कूल भेजने
के लिए इसी तरह हथेली पर अठन्नी टिका देते थे,
पर तब मेरी नज़रें आजकी तरह झुकी नहीं होती थीं।
दोस्तों एक बात हमेशा ध्यान रखे… माँ बाप अपने बच्चो पर बोझ हो सकते हैं बच्चे उन पर बोझ कभी नही होते है।

अरुण पांडे

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एक बार औरंगजेब की सेना जा रही थी। रास्ते में एक जगह रुकी और सैनिको ने एक किसान की सारी खेती उजाड दी। साथ में खेत की मेढ पर बना थान यानी देवस्थान भी तोडफोड दिया। किसान जब खेत में गया तो उसने दूसरे किसानों से पूछा कि हमारे खेत को किसने उजाडा है, तो उसे बताया कि दिल्ली के राजा औरंगजेब ने…और उसने ही तुम्हारे बापदादा के थान यानी स्मारक स्थल तोडे़। किसान ने पूछा कि औरंगजेब के बाप-दादा की कब्रें कहां है, तो बताया कि आगरा में…और किसान ने अपने लड़कों को लिया और आगरा में जाकर अकबर आदि की कब्रें तोड़ डाली…इस किसान ने मुगलों को देश से भगाने के लिए एक सेना तक बना ली थी।
इतिहास गवाह है कि कई साल तक इस राजराम नामक जाट ने औरंगजेब की नाक में दम करके रखा और यहां तक कि एक बार तो औरंगजेब के शयनकक्ष तक भी पहुंच गया था। कहते हैं कि औरंगजेब एक बेगम के 52 गजे घाघरे में छिप गया था….लेकिन बाद में किसान को अरेस्ट कर लिया गया और उसके बेटे समेत टुकडे़-टुकडे कर दिए गए…कहते हैं कि औरंगजेब ने उस किसान से कहा था कि यदि तुम इस्लाम कबूल कर लोगे तो अपनी बेटी का निकाह तुमसे कर दूंगा…लेकिन किसान झुका नहीं….अमर हो गया!

फ्रांसीसी यात्राी बर्नियर के यात्रा एवं संस्मरण के हिन्दी अनुवाद खूख्वार तानाशाह बेरहम लुटेरा औरंगजेब पुस्तक से साभार ।

हिन्दू ( आरंभ से अनन्त के ज्ञानी मानव )

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*”भील-भीलनी की शिव भक्ति”

सिंहकेतु पांचाल देश का एक राजा था, राजा बहुत बड़ा शिवभक्त था, शिव आराधना और शिकार उसके दो चीजें प्यारी थीं.. वह शिकार खेलने रोज जंगल जाता था..!!
.
एक दिन घने जंगल में सिंहकेतु को एक ध्वस्त मंदिर दिखा. राजा शिकार की धुन में आगे बढ गया पर सेवक भील ने ध्यान से देखा तो वह शिव मंदिर था जिसके भीतर लता, पत्रों में एक शिवलिंग था..!!
.
भील का नाम चंड था. सिंहकेतु के सानिध्य और उसके राज्य में रहने से वह भी धार्मिक प्रवृत्ति का हो गया था. चबूतरे पर स्थापित शिवलिंग जो कि अपनी जलहरी से लगभग अलग ही हो गया था वह उसे उखाड़ लाया..!!
.
चंड ने राजा से कहा- महाराज यह निर्जन में पड़ा था. आप आज्ञा दें तो इसे मैं रख लूं, पर कृपा कर पूजन विधि भी बता दें, ताकि मैं रोज इसकी पूजा कर पुण्य कमा सकूं..!!
.
राजा ने कहा कि चंड भील इसे रोज नहला कर इसकी फूल-बेल पत्तियों से सजाना, अक्षत, फल मीठा चढाना. जय भोले शंकर बोल कर पूजा करना और उसके बाद इसे धूप-दीप दिखाना..!!
.
राजा ने कुछ मजाक में कहा कि इस शिवलिंग को चिता भस्म जरूर चढ़ाना और वो भस्म ताजी चिता राख की ही हो. फिर भोग लगाकर बाजा बजाकर खूब नाच-गाना किया करना..!!
.
शिकार से राजा तो लौट गया पर भील जो उसी जंगल में रहता था, उसने अपने घर जाकर अपनी बुद्धि के मुताबिक एक साफ सुथरे स्थान पर शिव-लिंग की स्थापना की और रोज ही पूजा करने का अटूट नियम बनाया..!!
.
भीलनी के लिए यह नयी बात थी. उसने कभी पूजा-पाठ न देखी थी. भील के रोज पूजा करने से ऐसे संस्कार जगे की कुछ दिन बाद वह खुद तो पूजा न करती पर भील की सहायता करने लगी..!!
.
कुछ दिन और बीते तो भीलनी पूजा में पर्याप्त रुचि लेने लगी. एक दिन भील पूजा पर बैठा तो देखा कि सारी पूजन सामग्री तो मौजूद है पर लगता है वह चिता भस्म लाना तो भूल ही गया..!!
.
वह भागता हुआ जंगल के बाहर स्थित श्मशान गया, आश्चर्य आज तो कोई चिता जल ही नहीं रही थी, पिछली रात जली चिता का भी कोई नामो निशान ही नहीं था, जबकि उसे लगता था कि रात को मैं यहां से भस्म ले गया हूं..!!
.
भील भागता हुआ उलटे पांव घर पहुंचा. भस्म की डिबिया उलटायी पलटाई पर चिता भस्म तनिक भी न थी. चिंता और निराशा में उसने अपनी भीलनी को पुकारा जिसने सारी तैयारी की थी..!!
.
पत्नी ने कहा- आज बिना भस्म के ही पूजा कर लें, शेष तो सब तैयार है. पर भील ने कहा नहीं राजा ने कहा था कि चिता भस्म बहुत ज़रूरी है. वह मिली नहीं. क्या करूं ! भील चिंतित हो बैठ गया..!!
.
भील ने भीलनी से कहा- प्रिये यदि मैं आज पूजा न कर पाया तो मैं जिंदा न रहूंगा, मेरा मन बड़ा दुःखी है और चिन्तित है. भीलनी ने भील को इस तरह चिंतित देख एक उपाय सुझाया..!!
.
भीलनी बोली, यह घर पुराना हो चुका है. मैं इसमें आग लगाकर इसमें घुस जाती हूं. आपकी पूजा के लिए मेरे जल जाने के बाद बहुत सारी भस्म बन जायेगी. मेरी भस्म का पूजा में इस्तेमाल कर लें..!!
.
भील न माना बहुत विवाद हुआ. भीलनी ने कहा मैं अपने पतिदेव और देवों के देव महादेव के काम आने के इस अवसर को न छोड़ूंगी. भीलनी की ज़िद पर भील मान गया..!!
.
भीलनी ने स्नान किया. घर में आग लगायी. घर की तीन बार परिक्रमा की. भगवान का ध्यान किया और भोलेनाथ का नाम लेकर जलते घर में घुस गयी. ज्यादा समय न बीता कि शिव भक्ति में लीन वह भीलनी जलकर भस्म हो गई..!!
.
भील ने भस्म उठाई. भली भांति भगवान भूतनाथ का पूजन किया. शिवभक्ति में घर सहित घरवाली खो देने का कोई दुःख तो भील के मन में तो था नहीं सो पूजा के बाद बड़े उत्साह से उसने भीलनी को प्रसाद लेने के लिये आवाज दी..!!
.
क्षण के भीतर ही उसकी पत्नी समीप बने घर से आती दिखी. जब वह पास आयी तो भील को उसको और अपने घर के जलने का ख्याल आया. उसने पूछा यह कैसे हुआ.. तुम कैसे आयीं..?? यह घर कैसे वापस बन गया..??
.
भीलनी ने सारी कथा कह सुनायी, जब धधकती आग में घुसी तो लगा जल में घुसती जा रही हूं और मुझे नींद आ रही है, जगने पर देखा कि मैं घर में ही हूं और आप प्रसाद के लिए आवाज लगा रहे हैं..!!
.
वे यह सब बातें कर ही रहे थे कि अचानक आकाश से एक विमान वहां उतरा, उसमें भगवान के चार गण थे, उन्होंने अपने हाथों से उठा कर उन्हें विमान में बैठा लिया..!!
.
गणों का हाथ लगते ही दोनों के शरीर दिव्य हो गए. दोनों ने शिव-महिमा का गुणगान किया और फिर वे अत्यंत श्रद्धायुक्त भगवान की आराधना का फल भोगने शिव लोक चले गये..!!
. *|”जय श्री कृष्ण” जय शिव संभु

लष्मीकांत

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*”भील-भीलनी की शिव भक्ति”

सिंहकेतु पांचाल देश का एक राजा था, राजा बहुत बड़ा शिवभक्त था, शिव आराधना और शिकार उसके दो चीजें प्यारी थीं.. वह शिकार खेलने रोज जंगल जाता था..!!
.
एक दिन घने जंगल में सिंहकेतु को एक ध्वस्त मंदिर दिखा. राजा शिकार की धुन में आगे बढ गया पर सेवक भील ने ध्यान से देखा तो वह शिव मंदिर था जिसके भीतर लता, पत्रों में एक शिवलिंग था..!!
.
भील का नाम चंड था. सिंहकेतु के सानिध्य और उसके राज्य में रहने से वह भी धार्मिक प्रवृत्ति का हो गया था. चबूतरे पर स्थापित शिवलिंग जो कि अपनी जलहरी से लगभग अलग ही हो गया था वह उसे उखाड़ लाया..!!
.
चंड ने राजा से कहा- महाराज यह निर्जन में पड़ा था. आप आज्ञा दें तो इसे मैं रख लूं, पर कृपा कर पूजन विधि भी बता दें, ताकि मैं रोज इसकी पूजा कर पुण्य कमा सकूं..!!
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राजा ने कहा कि चंड भील इसे रोज नहला कर इसकी फूल-बेल पत्तियों से सजाना, अक्षत, फल मीठा चढाना. जय भोले शंकर बोल कर पूजा करना और उसके बाद इसे धूप-दीप दिखाना..!!
.
राजा ने कुछ मजाक में कहा कि इस शिवलिंग को चिता भस्म जरूर चढ़ाना और वो भस्म ताजी चिता राख की ही हो. फिर भोग लगाकर बाजा बजाकर खूब नाच-गाना किया करना..!!
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शिकार से राजा तो लौट गया पर भील जो उसी जंगल में रहता था, उसने अपने घर जाकर अपनी बुद्धि के मुताबिक एक साफ सुथरे स्थान पर शिव-लिंग की स्थापना की और रोज ही पूजा करने का अटूट नियम बनाया..!!
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भीलनी के लिए यह नयी बात थी. उसने कभी पूजा-पाठ न देखी थी. भील के रोज पूजा करने से ऐसे संस्कार जगे की कुछ दिन बाद वह खुद तो पूजा न करती पर भील की सहायता करने लगी..!!
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कुछ दिन और बीते तो भीलनी पूजा में पर्याप्त रुचि लेने लगी. एक दिन भील पूजा पर बैठा तो देखा कि सारी पूजन सामग्री तो मौजूद है पर लगता है वह चिता भस्म लाना तो भूल ही गया..!!
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वह भागता हुआ जंगल के बाहर स्थित श्मशान गया, आश्चर्य आज तो कोई चिता जल ही नहीं रही थी, पिछली रात जली चिता का भी कोई नामो निशान ही नहीं था, जबकि उसे लगता था कि रात को मैं यहां से भस्म ले गया हूं..!!
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भील भागता हुआ उलटे पांव घर पहुंचा. भस्म की डिबिया उलटायी पलटाई पर चिता भस्म तनिक भी न थी. चिंता और निराशा में उसने अपनी भीलनी को पुकारा जिसने सारी तैयारी की थी..!!
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पत्नी ने कहा- आज बिना भस्म के ही पूजा कर लें, शेष तो सब तैयार है. पर भील ने कहा नहीं राजा ने कहा था कि चिता भस्म बहुत ज़रूरी है. वह मिली नहीं. क्या करूं ! भील चिंतित हो बैठ गया..!!
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भील ने भीलनी से कहा- प्रिये यदि मैं आज पूजा न कर पाया तो मैं जिंदा न रहूंगा, मेरा मन बड़ा दुःखी है और चिन्तित है. भीलनी ने भील को इस तरह चिंतित देख एक उपाय सुझाया..!!
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भीलनी बोली, यह घर पुराना हो चुका है. मैं इसमें आग लगाकर इसमें घुस जाती हूं. आपकी पूजा के लिए मेरे जल जाने के बाद बहुत सारी भस्म बन जायेगी. मेरी भस्म का पूजा में इस्तेमाल कर लें..!!
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भील न माना बहुत विवाद हुआ. भीलनी ने कहा मैं अपने पतिदेव और देवों के देव महादेव के काम आने के इस अवसर को न छोड़ूंगी. भीलनी की ज़िद पर भील मान गया..!!
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भीलनी ने स्नान किया. घर में आग लगायी. घर की तीन बार परिक्रमा की. भगवान का ध्यान किया और भोलेनाथ का नाम लेकर जलते घर में घुस गयी. ज्यादा समय न बीता कि शिव भक्ति में लीन वह भीलनी जलकर भस्म हो गई..!!
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भील ने भस्म उठाई. भली भांति भगवान भूतनाथ का पूजन किया. शिवभक्ति में घर सहित घरवाली खो देने का कोई दुःख तो भील के मन में तो था नहीं सो पूजा के बाद बड़े उत्साह से उसने भीलनी को प्रसाद लेने के लिये आवाज दी..!!
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क्षण के भीतर ही उसकी पत्नी समीप बने घर से आती दिखी. जब वह पास आयी तो भील को उसको और अपने घर के जलने का ख्याल आया. उसने पूछा यह कैसे हुआ.. तुम कैसे आयीं..?? यह घर कैसे वापस बन गया..??
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भीलनी ने सारी कथा कह सुनायी, जब धधकती आग में घुसी तो लगा जल में घुसती जा रही हूं और मुझे नींद आ रही है, जगने पर देखा कि मैं घर में ही हूं और आप प्रसाद के लिए आवाज लगा रहे हैं..!!
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वे यह सब बातें कर ही रहे थे कि अचानक आकाश से एक विमान वहां उतरा, उसमें भगवान के चार गण थे, उन्होंने अपने हाथों से उठा कर उन्हें विमान में बैठा लिया..!!
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गणों का हाथ लगते ही दोनों के शरीर दिव्य हो गए. दोनों ने शिव-महिमा का गुणगान किया और फिर वे अत्यंत श्रद्धायुक्त भगवान की आराधना का फल भोगने शिव लोक चले गये..!!
. *|”जय श्री कृष्ण” जय शिव संभु

लष्मीकांत

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प्राचीन समय की बात है कि किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी, उसके चार बेटे थे. बुढ़िया ने चार ही भैंसे पाल रखी थी. कार्तिक का महीना आने पर बुढ़िया ने अपनी चारों बहुओं को बुलाया और कहा कि मैं तो कार्तिका नहाने जा रही हूँ. तुम चारों एक-एक भैंस रख लो,
मैं एक महीने में वापिस आऊँगी. चारों बहुओं में से सबसे छोटी बहू बुढ़िया की लाडली थी. बुढ़िया ने जाते-जाते यह भी कहा कि मैं

एक महीने में जब वापिस आऊँगी तो देखूंगी कि किसने सबसे ज्यादा घी जोड़ा है.
बुढ़िया की बातें सुन तीनों बड़ी बहुओ ने सोचा कि यही समय है बुढ़िया को बताने का कि छोटी को कुछ नहीं आता है. वह दही बिलौना नहीं जानती थी और ना ही उसे पता था कि घी कैसे बनाते हैं.

उसकी जेठानियों ने भी जान-बूझकर उसे कुछ नहीं बताया ताकि बुढ़िया वापिस आने पर उसे डाँट-फटकार कर सके. तीनो *जेठानियाँ घी बनाने में जुट गई लेकिन छोटी बहू को कुछ नहीं आता था तो वह सारे दूध-दही को प पीपल पथवारी में गिरा देती, मन से यह भोली थी

महीना पूरा होने पर तीनों जेठानियों ने एक-एक डिब्बा घी का भरकर रख लिया. छोटी बहू ने जरा सा भी घी नहीं निकाला था. वह तो सारा दूध-दही पीपल की पथवारी पर गिरा आती थी. बुढ़िया के आने की खबर वह

पथवारी माता से कहती है कि मैं क्या करुँ? मैने तो सारा दूध-दही यहाँ गिरा दिया है. अब मेरी सासू माँ आकर घी के बारे में पूछेगी तो मैं क्या जवाब दूँगी?
पथवारी माता कहती हैं कि तुम ये चार कंकड़ ले जाओ और चार अलग-अलग डिब्बों में रख देना इससे चारों डिब्बे घी से भर जाएंगे. उसने ऎसा ही किया और उसके पास चार डिब्बे घी हो गया.

अब सासू माँ घर आई और आते ही उसने चारों बहुओं को कहा कि लाओ अपना-अपना घी दिखाओ कि किसने कितना घी जोड़ा है? तीनों जेठानियां

अपना घी का डिब्बा ले आई और मन ही मन खुश होने लगी कि अब छोटी बहू को सास से डाँट पड़ेगी.

छोटी बहू आई तो साथ में चार डिब्बे घी भी लाई
वह सब ये देख के हैरान हुई कि इसे तो दही बिलौना भी नहीं आता था तो यह घी कहाँ सेआया.
वह कहने लगी कि जरुर इसके पति ने यह घी खरीदा है

.* इस पर छोटी बहू ने कहा कि मुझे तो कुछ नहीं आता था और ना ही मुझे किसी ने बताया कि किस तरह से दही बिलोकर घी बनाया जाता है. मैं तो सारा दूध पीपल में सींच देती थी और दही पथवारी पर चढ़ा देती थी. यह तो पथवारी माता की कृपा का प्रभाव है.

छोटी बहू की सारी बातें सुनकर सारी बहुओं ने कहा कि अगर पथवारी माता को सींचने से इतना अधिक पुण्य मिलता है तब हम भी अगले साल उसे सींचेंगे और कार्तिक नहाएंगे. हे पथवारी माता! जैसे आपने छोटी बहू की सुनी वैसे ही आप सभी की सुनना.

*जय बृजधाम श्री वृन्दावन

लष्मीकांत

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मैं मॉर्निंगवाक करके घर आ रहा था । रास्ते में एक बिजली के खंभे पर एक कागज लगा हुआ था । पास जाकर देखा, लिखा था:
कृपया ध्यान से पढ़ो
“इस रास्ते पर मैंने कल एक 50 का नोट गंवा दिया है । मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता । जिसे भी मिले कृपया इस पते पर दे सकते हैं ।” …
यह पढ़कर पता नहीं क्यों उस पते पर जाने की इच्छा हुई । पता याद रखा । यह उस गली के आखिरी में एक झुग्गी झोपड़ी का है । वहाँ जाकर आवाज लगाया तो एक वृद्धा लाठी के सहारे धीरे-धीरे बाहर आई । मुझे मालूम हुआ कि वह अकेली रहती है । उसे ठीक से दिखाई नहीं देता ।
“माँ जी”, मैंने कहा – “आपका खोया हुआ 50 मुझे मिला है उसे देने आया हूँ ।”
यह सुन वह वृद्धा रोने लगी ।
“बेटा, अभी तक करीब 50-60 व्यक्ति मुझे 50-50 दे चुके हैं । मै पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, । ठीक से दिखाई नहीं देता । पता नहीं कौन मेरी इस हालत को देख मेरी मदद करने के उद्देश्य से लिख गया है ।”
बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख लिए । पर एक विनती की – ‘ बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।’
मैनें हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उन 50-60 लोगों से भी “माँ” ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा । मेरा हृदय उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से भर गया । जिसने इस वृद्धा की सेवा का उपाय ढूँढा । सहायता के तो बहुत से मार्ग हैं , पर इस तरह की सेवा मेरे हृदय को छू गई ।
और मैंने भी उस कागज को फाड़ा नहीं!

लष्मीकांत