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मैंने सुना है, एक गुरुकुल में एक युवक उत्तीर्ण हुआ। गुरु उससे बहुत प्रसन्न था। गुरु ने कहा : तू मांग ले, तुझे क्या चाहिए? मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूं।

उस युवक ने कहा : मुझे कुछ और मांगना नहीं। जब घर से आया था तो मेरे पिता बड़े कर्जदार थे, गरीब थे। मैं तो यहां वर्षों आश्रम में रहा, पता नहीं उनकी कैसी हालत है, चुका पाए कर्ज, नहीं चुका पाए। चुका भी दिया होगा तो भी गरीब ही होंगे, भूखे होंगे, बस एक ही आकांक्षा है कि जाकर किसी तरह उनकी सेवा कर सकूं।
तो उसके गुरु ने कहा: तू एक काम कर। इस देश का जो सम्राट है, तू वहां चला जा। वह रोज सुबह एक व्यक्ति को वरदान देता है, जो भी मांगो। तो जल्दी से जाकर खड़े हो जाना। चार बजे रात ही पहुंच जाना, ताकि तू पहला मिलने वाला व्यक्ति हो।

तो वह खड़ा हो गया चार बजे से। पांच बजे सम्राट अपने बगीचे में घूमने निकला, तो उस युवक को खड़े देखा। पूछा, क्या चाहते हो? जब सम्राट ने यह पूछा क्या चाहते हो…गुरु ने कहा था; जो मांगेगा, वह सम्राट दे देगा। तो तुम सोच सकते हो: उसकी हालत बहुत मुश्किल हो गई। सोचा था कि पांच सौ रुपये मांग लूं। उस पुराने जमाने की बात। पांच सौ रुपये तो जिंदगी भर के लिए बहुत हो जाते हैं। मगर जब सम्राट ने कहा—मांग ले जो तुझे मांगना! तो उसने सोचा मैं पागल हूं, अगर पांच सौ मांगूं। पांच हजार क्यों न मांगूं? पांच लाख क्यों न मांगूं? पांच करोड़ क्यों न मांगूं?
बात बढ़ती चली गई। सम्राट ने कहा: मालूम होता है तू तय करके नहीं आया। तू विचार कर ले। मैं जब तक बगीचे का चक्कर लगा लूं।
जब तक सम्राट ने बगीचे का चक्कर लगाया तब तक तो वह युवक बिलकुल पागल हालत में आ गया। संख्या बढ़ती ही चली जाती। जब देने को ही राजी है कोई, तो फिर कम क्यों मांगना! जितनी उसे संख्या आती थी, वहां पहुंच गया, आखिरी संख्या पर पहुंच गया। तब सिर पीट लिया उसने कि गुरु सदा कहते थे गणित पर ध्यान दे, मैंने ज्यादा ध्यान न दिया। आज काम आ जाता। यह संख्या इससे ज्यादा मुझे आती नहीं। अब अटक गया।

तब तक सम्राट आया। उसने पूछा: तू बड़ा बेचैन, परेशान मालूम होता है। बात क्या है? तू मांग ही ले, तुझे जो मांगना है।
तो उसने कहा कि संकोच लगता है। सम्राट ने कहा: संकोच का सवाल ही नहीं। तू बोल। तो उसने कहा: ऐसा करें, मैंने बहुत सोचा, बहुत संख्या सोची, लेकिन गणित मेरा ठीक नहीं है और संख्या पर जाकर मैं अटक गया हूं। और अगर उतना मैं मांगूं तो जिंदगी भर पछताऊंगा कि और क्यों न मांग लिया। तो आप ऐसा करें कि आप जिस दरवाजे से मैं आया हूं बाहर निकल जाएं और जो आपके पास है, सब मुझे दे दें। तो मुझे जिंदगी में दुख नहीं होगा कि जो था सभी मिल गया, अब संख्या का कोई सवाल ही नहीं था। जितना है, सब दे दें।
युवक तो सोचता था सम्राट घबड़ा जाएगा यह सुन कर। लेकिन सम्राट ने तो आकाश की तरफ हाथ जोड़े और कहा: हे प्रभु, तो तूने भेज दिया वह आदमी, जिसकी मुझे तलाश थी! तब तो युवक थोड़ा घबड़ाया। उसने कहा: बात क्या है? आप क्या कह रहे हैं?

वह सम्राट बोला: अब तू सोच—विचार में मत पड़ जाना। तू भीतर जा, सम्हाल! मैं थक गया हूं बहुत। और मैं वर्षों से प्रार्थना कर रहा हूं कि हे प्रभु, किसी को भेज दो, जो सब मांग ले। आज सुन ली उसने!
उस युवक ने कहा: मुझे एक दफा और सोचने का मौका दें। आप एक चक्कर और बगीचे का लगा आएं।
सम्राट ने कहा कि नहीं, मुश्किल से तू आया है। वर्षों हो गए मुझे दान देते; मगर छोटे—छोटे दान लोग मांगते, उससे क्या बनता—बिगड़ता है! तू हिम्मतवर आदमी है। सोचने की अब क्या जरूरत है? फिर सोचना मजे से। महल में जा, वहीं सोचना। जैसे हम सोचते रहे जिंदगी भर, तू भी सोचना। जल्दी क्या है? तू अभी जवान है।

उस युवक ने कहा कि नहीं, एक मौका तो मुझे देना ही पड़ेगा। सम्राट चक्कर लगा कर आया और जो उसने सोचा था वही हुआ, युवक भाग गया था। द्वारपाल को कह गया था : मेरी तरफ से क्षमा मांग लेना। क्योंकि जब सम्राट इतने सब होने से तृप्त नहीं हुआ, तो अब इस झंझट में मैं क्यों पडूं। इसकी जिंदगी खराब हुई, मेरी भी खराब करूं।
धन कितना ही हो, तुम निर्धन बने ही रहते हो। तो धन में परम धन की तलाश चल रही है। परमात्मा की तलाश चल रही है। आदमी सभी दिशाओं में उसी को खोज रहा है।

ओशो,

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मृत्यु क्या है?

मृत्यु क्या है? मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु एक झूठ है—सरासर झूठ—जो न कभी हुआ, न कभी हो सकता है। जो है, वह सदा है। रूप बदलते हैं। रूप की बदलाहट को तुम मृत्यु समझ लेते हो। तुम किसी मित्र को स्टेशन पर विदा करने गए; उसे गाड़ी में बिठा दिया। नमस्कार कर ली। हाथ हिला दिया। गाड़ी छूट गयी। क्या तुम सोचते हो, यह आदमी मर गया? तुम्हारी आंख से ओझल हो गया। अब तुम्हें दिखायी नहीं पड़ रहा है। लेकिन क्या तुम सोचते हो, यह आदमी मर गया? बच्चे थे, फिर तुम जवान हो गए। बच्चे का क्या हुआ? बच्चा मर गया? अब तो बच्चा कहीं दिखायी नहीं पड़ता! जवान थे, अब के हो गए। जवान का क्या हुआ? जवान मर गया? जवान अब तो कहीं दिखायी नहीं पड़ता! सिर्फ रूप बदलते हैं। बच्चा ही जवान हो गया। जवान ही बूढ़ा हो गया। और कल जीवन ही मृत्यु हो जाएगा।

यह सिर्फ रूप की बदलाहट है। दिन में तुम जागे थे, रात सो जाओगे। दिन और रात एक ही चीज के रूपांतरण हैं। जो जागा था, वही सो गया। बीज में वृक्ष छिपा है। जमीन में डाल दो, वृक्ष पैदा हो जाएगा। जब तक बीज में छिपा था, दिखायी नहीं पड़ता था। मृत्यु में तुम फिर छिप जाते हो, बीज में चले जाते हो। फिर किसी गर्भ में पड़ोगे; फिर जन्म होगा। और गर्भ में नहीं पड़ोगे, तो महाजन्म होगा, तो मोक्ष में विराजमान हो जाओगे। मरता कभी कुछ भी नहीं। विज्ञान भी इस बात से सहमत है। विज्ञान कहता है. किसी चीज को नष्ट नहीं किया जा सकता।

एक रेत के छोटे से कण को भी वितान की सारी क्षमता के बावजूद हम नष्ट नहीं कर सकते। पीस सकते हैं, नष्ट नहीं कर सकते। रूप बदलेगा पीसने से तो। रेत को पीस दिया, तो और पतली रेत हो गयी। उसको और पीस दिया, तो और पतली रेत हो गयी। हम उसका अणु विस्फोट भी कर ‘सकते हैं। लेकिन अणु टूट जाएगा, तो परमाणु होंगे। और पतली रेत हो गयी। हम परमाणु को भी तोड़ सकते हैं, तो फिर इलेक्ट्रान, न्द्वान, पाजिट्रान रह जाएंगे। और पतली रेत हो गयी! मगर नष्ट कुछ नहीं हो रहा है। सिर्फ रूप बदल रहा है। विज्ञान कहता है पदार्थ अविनाशी है।

विज्ञान ने पदार्थ की खोज की, इसलिए पदार्थ के अविनाशत्व को जान लिया। धर्म कहता है – चेतना अविनाशी है, क्योंकि धर्म ने चेतना की खोज की और चेतना के अविनाशत्व को जान लिया। विज्ञान और धर्म इस मामले में राजी हैं कि जो है, वह अविनाशी है। मृत्यु है ही नहीं। तुम पहले भी थे; तुम बाद में भी होओगे। और अगर तुम जाग जाओ, अगर तुम चैतन्य से भर जाओ, तो तुम्हें सब दिखायी पड़ जाएगा जो—जो तुम पहले थे। सब दिखायी पड जाएगा, कब क्या थे। बुद्ध ने अपने पिछले जन्मों की कितनी कथाएं कही हैं! तब ऐसा था। तब ऐसा था। तब वैसा था। कभी जानवर थे; कभी पौधा थे, कभी पशु थे; कभी पक्षी। कभी राजा, कभी भिखारी। कभी स्त्री, कभी पुरुष। बुद्ध ने बहुत कथाएं कही हैं। वह जो जाग जाता है, उसे सारा स्मरण आ जाता है। मृत्यु तो होती ही नहीं। मृत्यु तो सिर्फ पर्दे का गिरना है। तुम नाटक देखने गए। पर्दा गिरा। क्या तुम सोचते हो, मर गए सब लोग जो पर्दे के पीछे हो गए! वे सिर्फ पर्दे के पीछे हो गए।

अब फिर तैयारी कर रहे होंगे। मूंछ इत्यादि लगाएंगे; दाढ़ी वगैरह लगाएंगे, लीप—पोत करेंगे। फिर पर्दा उठेगा। शायद तुम पहचान भी न पाओ कि जो सज्जन थोड़ी देर पहले कुछ और थे, अब वे कुछ और हो गए हैं! तब वे बिना मूंछ के थे; अब वे मूंछ लगाकर आ गए हैं। शायद तुम पहचान भी न पाओ। बस, यही हो रहा है। इसलिए संसार को नाटक कहा है, मंच कहा है। यहां रूप बदलते रहते हैं। यहां राम भी रावण बन जाते हैं और रावण भी राम बन जाते हैं। ये पर्दे के पीछे तैयारियां कर आते हैं। फिर लौट आते हैं, बार—बार लौट आते हैं। तुम पूछते हो ‘मृत्यु क्या है?’ मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु एक भांति है। एक धोखा है।

“सरूरे—दर्द गुदाजे—फुगा से पहले था
सरूदे —गम मेरे सोजे— बया से पहले था
मैं आबोगिल ही अगर हूं बकौदे—शमो—सहर
तो कौन है जो मकानो — जमी से पहले था
ये कायनात बसी थी तेरे तसव्वर में
वजूदे हर दो जहां कुन फिकां से पहले था
अगर तलाश हो सच्ची सवाल उठते हैं
यकीने—रासिखो — महकम गुमां से पहले था
तेरे खयाल में अपना ही अक्से —कामिल था
तेरा कमाल मेरे इप्तिहा से पहले था
मेरी नजर ने तेरे नक्यो — पा में देखा था
जमाले—कहकशा कहकशा से पहले था
छुपेगा ये तो फिर ऐसा ही एक उभरेगा
इसी तरह का जहां इस जहां से पहले था
तज्जलियात से रौशन है चश्मे—शौक मगर
कहां वो जल्वा जो नामो —निशा से पहले था”

सब था पहले ऐसा ही। फिर—फिर ऐसा ही होगा। यह दुनिया मिट जाएगी, तो दूसरी दुनिया पैदा होगी। यह पृथ्वी उजड़ जाएगी, तो दूसरी पृथ्वी बस जाएगी। तुम इस देह को छोड़ोगे, तो दूसरी देह में प्रविष्ट हो जाओगे। तुम इस चित्तदशा को छोड़ोगे, तो नयी चित्तदशा मिल जाएगी। तुम अज्ञान छोड़ोगे, तो ज्ञान में प्रतिष्ठित हो जाओगे; मगर मिटेगा कुछ भी नहीं। मिटना होता ही नहीं। सब यहां अविनाशी है। अमृत इस अस्तित्व का स्वभाव है। मृत्यु है ही नहीं। इसलिए मजबूरी है, तुम्हारे प्रश्न का उत्तर न दे सकूंगा कि मृत्यु क्या है? क्योंकि जो है ही नहीं, उसकी परिभाषा कैसे करें! जो है ही नहीं, उसकी व्याख्या कैसे करें?

ऐसा ही है, जैसे तुमने रास्ते पर पड़ी रस्सी में भय के कारण सांप देखा। भागे। घबडाए। फिर कोई मिल गया, जो जानता है कि रस्सी है। उसने तुम्हारा हाथ पकड़ा और कहा. मत घबड़ाओ, रस्सी है। तुम्हें ले गया; पास जाकर दिखा दी कि रस्सी है। फिर क्या तुम उससे पूछोगे सांप का क्या हुआ? नहीं; तुम नहीं पूछोगे कि सांप का क्या हुआ? बात खतम हो गयी, साप था ही नहीं। क्या हुआ का सवाल नहीं है। क्या तुम उससे पूछोगे अब जरा सांप के संबंध में समझाइए! वह जो सांप मैंने देखा था, वह क्या था? वह तुम्हारी भ्रांति थी। वह बाहर कहीं था ही नहीं। रस्सी के रूप—रंग ने तुम्हें भ्रांति दे दी, सांझ के धुंधलके ने तुम्हें भ्रांति दे दी, तुम्हारे भीतर के भय ने तुम्हें भांति दे दी। सारी भ्रांतियों ने मिलकर एक सांप निर्मित कर दिया। वह तुम्हारा सपना था। मृत्यु तुम्हारा सपना है। कभी घटा नहीं। घटता मालूम होता है। और इसलिए भ्रांति मजबूत बनी रहती है कि जो आदमी मरता है, वह तो विदा हो जाता है। वही जानता है कि क्या है मृत्यु जो मरता है।

तुम तो मर नहीं रहे। तुम बाहर से खड़े देख रहे हो। एक डाक्टर मुझे मिलने आए थे। वे कहने लगे मैंने सैकड़ों मृत्युएं देखी हैं। मैंने कहा – गलत बात मत कहो। तुमने मरते हुए लोग देखे होंगे, मृत्युएं कैसे देखोगे? मृत्यु तुम कैसे देखोगे? तुम तो अभी जिंदा हो! तुमने सैकडों मरते हुए लोग देखे होंगे, लेकिन मरते हुए लोग देखने से क्या होता है! तुम क्या देखोगे बाहर? यही देख सकते हो कि इसकी सांस धीमी होती जाती है; कि धड़कन डूबती जाती है। मगर यह थोड़े ही मृत्यु है। यह आदमी अब ठंडा हो गया, यही देखोगे। मगर इसके भीतर क्या हुआ? इसके भीतर जो चेतना थी, कहां गयी? उसने कहां पंख फैलाए? वह किस आकाश में उड गयी? वह किस द्वार से प्रविष्ट हो गयी? किस गर्भ में बैठ गयी? वह कहां गयी? क्या हुआ? उसका तो तुम्हें कुछ भी पता नहीं है।

वह तो वही आदमी कह सकता है। और मुर्दे कभी लौटते नहीं। जो मर गया, वह लौटता नहीं। और जो लौट आते हैं, उनकी तुम मानते नहीं। जैसे बुद्ध यही कह रहे हैं कि मैंने ध्यान में वह सारा देख लिया जो मौत में देखा जाता है। इसलिए तो ज्ञानी की कब को हम समाधि कहते हैं, क्योंकि वह समाधि को जानकर मरा। उसने ध्यान की परम दशा जानी। इसलिए तुमने देखा. हम संन्यासी को जलाते नहीं, गड़ाते हैं। शायद तुमने सोचा ही न हो कि क्यों! गृहस्थ को जलाते हैं, संन्यासी को गड़ाते हैं। क्यों? क्योंकि गृहस्थ को अभी फिर पैदा होना है। उसकी देह जल जाए, यह अच्छा। क्योंकि देह के जलते ही उसकी आत्मा की जो आसक्ति इस देह में थी, वह मुक्त हो जाती है। जब जल ही गयी; खतम ही हो गयी, राख हो गयी—अब इसमें मोह रखने का क्या प्रयोजन है? वह उड़ जाता है। वह नए गर्भ में प्रवेश करने की तैयारी करने लगता है। पुराना घर जल गया, तो नया घर खोजता है।

संन्यासी तो जानकर ही मरा है। अब उसे कोई नया घर स्वीकार नहीं करना है। पुराने घर से मोह तो उसने मरने के पहले ही छोड़ दिया। अब जलाने से क्या सार? अब जले—जलाए को जलाने से क्या सार! अब मरे —मराए को जलाने से क्या सार? इस आधार पर संन्यासी को हम जलाते नहीं, गड़ाते हैं। और संन्यासी की हम समाधि बनाते हैं। उसकी कब को समाधि कहते हैं। इसीलिए कि वह ध्यान की परम अवस्था समाधि को पाकर गया है। वह मृत्यु को जीते जी जानकर गया है कि मृत्यु झूठ है। जिस दिन मृत्यु झूठ हो जाती है, उसी दिन जीवन भी झूठ हो जाता है। क्योंकि वह मृत्यु और जीवन हमारे दोनों एक ही भांति के दो हिस्से हैं। जिस दिन मृत्यु झूठ हो गयी, उस दिन जीवन भी झूठ हो गया। उस दिन कुछ प्रगट होता है, जो मृत्यु और जीवन दोनों से अतीत है। उस अतीत का नाम ही परमात्मा है; जो न कभी पैदा होता, न कभी मरता, जो सदा है।

#ओशो

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बर्तन का व्यापारी परिवार के लिये जूते ऑनलाइन खरीद रहा है,

जूते का व्यापारी परिवार के लिये मोबाइल ऑनलाइन खरीद रहा है,

मोबाइल का व्यापारी परिवार के लिए कपडे ऑनलाइन खरीद रहा है,

कपड़े का व्यापारी परिवार के लिये घड़ी ऑनलाइन ख़रीद रहा है,

घडी का व्यापारी घर के लिये अनेकों इलेक्ट्रॉनिक सामान ऑनलाइन ख़रीद रहा है,

इलेक्ट्रानिक का व्यापारी बच्चों के लिए खिलोने ऑनलाइन ख़रीद रहा है,

खिलोने का व्यापारी घर के लिये बर्तन ऑनलाइन खरीद रहा है,

और ये सब रोज सुबह अपनी-अपनी दुकान खोलकर अगरबत्ती लगाकर भगवान से प्रार्थना कर रहे है कि आज धंदा अच्छा हो जाये , हे भगवान इस बार दिवाली सीज़न पर अच्छी बिक्री हो जाये । कहाँ से होगी बिक्री ?

खरीददार आसमान से नहीं आते हमही एक दूसरे का सामान खरीदकर बाजार को चलाते हैं क्योकिं हर व्यक्ति कुछ न कुछ बेंच रहा है और हर व्यक्ति खरीददार भी है ।

ऑनलाइन खरीदी करके आप भले 50-100 रु की एक बार बचत कर लें लेकिन इसके नुकसान बहुत है क्योंकि ऑनलाइन खरीदी से सारा मुनाफा बड़ी बड़ी कंपनियों को जाता है जिनमे काफी विदेशी कंपनियां भी हैं ।

ये कम्पनियाँ मुठ्ठीभर कर्मचारियों के बल पर बाजार के एक बहुत बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं। ये कम्पनियां ना सर्फ बेरोजगारी पैदा कर रही है बल्कि इनके द्वारा कमाये गये मुनाफे का बहुत छोटा हिस्सा ही पुनः बाजार में आता है ।

यदि आप सोचते हैं कि मैं तो कोई दुकानदार नहीं हूं और ना ही व्यापारी , मैं तो नौकरी करता हूँ ऑनलाइन खरीदी से मुझे सिर्फ फायदा है नुकसान कोई नहीं तो आप सरासर गलत हैं क्योकि जब समाज में आर्थिक असमानता बढ़ती है या देश का पैसा देश के बाहर जाता है तो देश के हर व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसका नुकसान उठाना पड़ता है चाहे वह अमीर हो या गरीब, व्यापारी हो या नौकरी करने वाला, दुकानदार हो या किसान हर कोई प्रभावित होता है ।

अभी भी समय है अपने आपको, अपने परिवार को, बाकी दुकानदारों को ऑनलाइन और बड़े बड़े शॉपिंग मॉल से ख़रीद करने से रोकें और उन्हें समझाएं नहीं तो आगे और भी मुश्किल परिस्थिति होनी वाली है ।

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।। अहंकार की कोई कीमत नहीं है ।।

अशोक के जीवन में मैंने पढ़ा है, गांव में एक भिक्षु आता था। अशोक गया और उस भिक्षु के चरणों में सिर रख दिया। अशोक के बड़े आमात्य, वह जो बड़ा वजीर था अशोक का, उसे यह अच्छा नहीं लगा। अशोक जैसा सम्राट गांव में भीख मांगते एक भिखारी के पैरों पर सिर रखे! बहुत……घर लौटते ही, महल लौटते ही उसने कहा कि नहीं सम्राट, यह मुझे ठीक नहीं लगा। आप जैसा सम्राट, जिसकी कीर्ति शायद जगत में कोई सम्राट नहीं छू सकेगा फिर, वह एक साधारण से भिखारी के चरणों पर सिर रखे!

अशोक हंसा और चुप रह गया। महीने भर, दो महीने बीत जाने पर उसने बड़े वजीर को बुलाया और कहा कि एक काम करना है। कुछ प्रयोग करना है, तुम यह सामान ले जाओ और गांव में बेच आओ। सामान बड़ा अजीब था। उसमें बकरी का सिर था, गाय का सिर था, आदमी का सिर था, कई जानवरों के सिर थे और कहा कि जाओ बेच आओ बाजार में।

वह वजीर बेचने गया। गाय का सिर भी बिक गया और घोड़े का सिर भी बिक गया, सब बिक गया, वह आदमी का सिर नहीं बिका। कोई लेने को तैयार नहीं था कि इस गंदगी को कौन लेकर क्या करेगा? इस खोपड़ी को कौन रखेगा? वह वापस लौट आया और कहने लगा कि महाराज! बड़े आश्चर्य की बात है, सब सिर बिक गए हैं, सिर्फ आदमी का सिर नहीं बिक सका। कोई नहीं लेता है।

सम्राट ने कहा कि मुफ्त में दे आओ। वह वजीर वापस गया और कई लोगों के घर गया कि मुफ्त में देते हैं इसे, इसे आप रख लें। उन्होंने कहा. पागल हो गए हो! और फिंकवाने की मेहनत कौन करेगा? आप ले जाइए। वह वजीर वापस लौट आया और सम्राट से कहने लगा कि नहीं, कोई मुफ्त में भी नहीं लेता।

अशोक ने कहा कि अब मैं तुमसे यह पूछता हूं कि अगर मैं मर जाऊं और तुम मेरे सिर को बाजार में बेचने जाओ तो कोई फर्क पड़ेगा? वह वजीर थोड़ा डरा और उसने कहा कि मैं कैसे कहूं क्षमा करें तो कहूं। नहीं, आपके सिर को भी कोई नहीं ले सकेगा। मुझे पहली दफा पता चला कि आदमी के सिर की कोई भी कीमत नहीं है।

उस सम्राट ने कहा, उस अशोक ने कि फिर इस बिना कीमत के सिर को अगर मैंने एक भिखारी के पैरों में रख दिया था तो क्यों इतने परेशान हो गए थे तुम।
आदमी के सिर की कीमत नहीं, अर्थात आदमी के अहंकार की कोई भी कीमत नहीं है। आदमी का सिर तो एक प्रतीक है आदमी के अहंकार का, ईगो का। और अहंकार की सारी चेष्टा है भीतर लाने की और भीतर कुछ भी नहीं जाता—न धन जाता है, न त्याग जाता है, न ज्ञान जाता है। कुछ भी भीतर नहीं जाता। बाहर से भीतर ले जाने का उपाय नहीं है। बाहर से भीतर ले जाने की सारी चेष्टा खुद की आत्महत्या से ज्यादा नहीं है, क्योंकि जीवन की धारा सदा भीतर से बाहर की ओर है।

⚘ प्रभु की पगडंडियां, प्रवचन~२, ओशो ⚘

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मुल्ला नसरुद्दीन एक लिफ्ट में सवार हुआ। एक सुंदर महिला भी लिफ्ट में थी। दोनों ही थे। मुल्ला ने नमस्कार किया और कहा कि अगर दस हजार रुपए दूं तो एक रात मेरे साथ गुजारोगी? वह स्त्री एकदम नाराज हो गयी। उसने कहा, तुमने मुझे समझा क्या है? अभी लिफ्ट रोककर पुलिस को बुलाती हूं।

मुल्ला ने कहा, पुलिस वगैरह बुलाने की कोई जरूरत नहीं, बीस हजार दूंगा। महिला नरम हुई। मुल्ला ने कहा, जो मांगो——तीस, चालीस, पचास। गर्मी मुस्कुराहट में बदल गयी। स्त्री ने कहाः पचास! पचास हजार रुपए एक रात के! राजी हूं।

मुल्ला ने कहाः और अगर पच्चीस रुपए दूं तो? तो स्त्री फिर भन्ना गयी। कहा, जानते हो कि मैं कौन हूं? मुल्ला ने कहा, वह तो हमने तय कर लिया; जब पचास हजार में राजी हो गयी, तो वह तो तय हो गया कि तू कौन है, अब तो दाम तय कर रहे हैं। अब पुलिस—मुलिस को बुलाने की कोई जरूरत नहीं है। पचास हजार में बिको या पच्चीस रुपए में बिको, क्या फर्क पड़ता है? वह तो तय हो गया कि तू कौन है? अब रह गयी दाम करने की बात, सो सौदा कर लें। सो आपस में निपटारा कर लें। पुलिस को बुलाने की क्या जरूरत है? पुलिस क्या करेगी इसमें?
मुल्ला ठीक कह रहा है। तुम भी सोचना, कितने में बिक जाओगे? कितनी तुम्हारी कीमत है? कितनी ही कीमत हो, जो बिक सकता है उसने अभी आत्मा को नहीं जाना, क्योंकि आत्मा की कोई कीमत ही नहीं है।
सारा संसार भी मिलता हो तो जिसने स्वयं को जाना है, वह बिकने को राजी नहीं हो सकता। यह सारा संसार रख दो तराजू के एक पलड़े पर और आत्मा को रख दो दूसरे पलड़े पर, तो भी आत्मा का तराजू ही भारी होगा।
-#ओशो
राम दुवारे जो मरे–(प्रवचन–03)

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हल्दी: बहुत लाभदायक औषधि

विषय – सूची [hide]
1 हल्दी के लाभ (Benefits of Turmeric In Hindi As Per Ayurveda)
2 हल्दी के बारे में अन्य रोचक जानकारी (Some more Interesting Facts About Ayurvedic Herb Turmeric In Hindi)
3 कुछ फ़ायदेमंद घरेलू प्रयोग (Some Ayurvedic Home Remedies Of Turmeric)
4 सावधानी
हल्दी पुरातन काल से ही भारत में इस्तेमाल की जाने वाली घरेलू मसाला और औषधीय रूप में होता रहा है. वास्तव में यह भोजन की रंगत प्रदान कर उसकी गुणवत्ता को बढ़ा देती है. शोधकर्तायों के अनुसार हल्दी में पाए जाने वाले कुरकुमिनॉइडॅस (curcuminoids) द्वारा हल्दी में औषधीय गुण अधिक होते हैं. 9000 से अधिक औषधीय प्रयोगों में हल्दी पर शोध किया जा चुका है. कुरकुमीन (Curcumin) नामक तत्व का उद्धरण (extraction) हल्दी से किया जा चुका है. इस तत्व के कारण हल्दी का रंग सुंदर पीला होता है. साथ ही इसमे वाष्पिकृत (volatile) होने वाला तेलिय पदार्थ टरमरोन (turmerone) भी मौजूद है जिसके कारण हल्दी की एक ख़ास गंध पाई जाती है.
शोध के अनुसार कुरकुमिनॉइडॅस (curcuminoids) अत्यंत शक्तिशाली स्वस्थवर्धक प्रभाव डालते हैं. शोथ के अनुसार कम -से कम 160 विधायों द्वारा ये अपना कार्य करते हैं. एंटीओक्सीडेंट (anti-oxidants), तंत्रिकासंरक्षक (neuro-protective), स्वप्रतिरक्षाकारी (immune-booster), शोथरोधी (anti-inflammatory), तथा अन्य प्रभावशाली लाभ देती है.benefits of turmeric ayurveda hindi

यह मनोदशा को नियंत्रित करने में सहायता देती है (Anti-Depressant) : जिन लोगों को हल्दी की औषधि अवसाद और घबराहट को रोकने के लिए दी गयी, ये पाया गया की 7 हफ्तों बाद उनकी दशा में काफ़ी सुधार आया जबकि जिन्होने कोई औषधि नही ली, उनमें कोई भी सुधार नही पाया गया.
चोट को ठीक करने की अद्भुत क्षमता (Wound-healer): यदि आपको चोट लग गयी है या फिर सूजन आ गयी है तो हल्दी के उपयोग से आपको सामान्य से कही जल्दी आराम आ जाएगा. वैज्ञानिक मानते हैं यह हल्दी में मौजूद कुरकुमीन नामक तत्व की वजह से है.
दर्द-निवारक (Anti-pain): इब्यूप्रोफन (Ibuprofen) नामक अंग्रेज़ी दवा के साथ तुलनात्मक शोध (comparative study) में यह पाया गया की हल्दी गठिया जैसी बीमारी के मरीजों में बराबर मात्रा से दर्द-निवारण करने में प्रभावशाली है. यही नही, हल्दी का उपयोग कर रहे गुट के व्यक्तियों के जोड़ों में तनावरोधी प्रभाव भी हल्दी के कारण पाया गया है. साथ ही ब्रुफेन के दुष्प्रभाव से भी यह गुट सुरक्षित रहा. पित्ताशय के ऑपरेशन के उपरांत मरीज़ों को हल्दी के सेवन से दर्द और ऑपरेशन के कारण आई थकावट की निवृत्ति में भी अत्यंत लाभ मिला.
खून में शुगर की मात्रा को संतुलित करने में प्रभावशाली(Diabetic-controller): हल्दी के सेवन के उपरांत शोधकर्तायों ने पाया कि इससे इंसुलिन (insulin) नामक हारमोन के स्राव में बढ़ोतरी होती है तथा इससे इंसुलिन की कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी होती है. इस कारण वैज्ञानिक ऐसा सोचते हैं कि भविष्य में कुरकुमीन से मधुमेह-नाशक दवाएँ भी बनाई जा सकती हैं.
उपशामक गुणवत्ता(Anti-inflammatory): हल्दी में उपशामक होने के गुण पाए गये हैं. यदि किसी भी कारण से शरीर के किसी भाग में शोथ उत्पन्न हो जाए तो हल्दी के उपयोग द्वारा ये पाया जाता है कि जलन और शोथ धीरे-धीरे कम हो जाते हैं.
वैज्ञानिकों द्वारा यह समझा जाता है की शोथ (inflammation) कार्य में सहायक कॉक्स 2 (COX-2), लिपो ऑक्सीजेनेस (Lipo-oxygenase) और नाइट्रिक ऑक्साइड सिनथेटेज़ (Nitric oxide Synthetase) नामक किन्वक (enzyme) तत्वों के उत्पादन को कम करके हल्दी अपना कार्य करती है.
गठिया से दिलाए निजात (Anti-arthritic): हल्दी के उपयोग से मिलता है गठिया जैसी तकलीफ़ से निजात. डिकोल्फ़ेनाक के मुक़ाबले में हल्दी की गुणवत्ता का मुकाबला किया गया तो यह पाया गया हल्दी दर्द निवारण में डाइक्लोफेनॅक (Diclofenac) से अधिक प्रभावशाली है और इसके प्रयोग से आल्लोपथिक (Allopathic) दवा के भयंकर दुष्प्रभावों से भी बचाव मिलता है.
कोलेस्टेरोल के बढ़ी हुई मात्रा को कम करती है (Cholesterol-regulator): हल्दी के सेवन स रक्त में बढ़ा हस कोलेस्टरॉल कम हो जाता है. पहले ये विचार रूप से प्रस्तुत किया जाने वाला तथ्य अब अनेक शोधों(researches) में सटीक पाया गया है.
विटामिन ई (Vitamin E) के मुक़ाबले में थोड़ी सी मात्रा हल्दी के उपयोग से रोगियों के खून में कोलेस्टरॉल की मात्रा लगभग 47 प्रतिशत कम थी. इसी तरह से जब एक अन्य शोध में एक हफ्ते तक हल्दी के प्रयोग के बाद कोलेस्टेरोल की मात्रा 12 प्रतिशत गिरावट पाई गयी. यही नही बल्कि यह भी पाया गया कि एल डी एल (LDL) की मात्रा में कमी थी और एच डी एल (HDL) की मात्रा बढ़ कर 33 प्रतिशत हो चुकी थी. इससे पता चलता है यह औषधि प्रकृति का कितना बड़ा वरदान है.
हल्दी के प्रयोग से पेट में अल्सर हो कम (Anti-Ulcer): हल्दी के प्रयोग द्वारा पेट में अल्सर को बड़ी जल्दी आराम आता है. खाने में इसका प्रयोग करने से पाचक शक्ति पर भी सकारात्मक असर पड़ता है. अम्लता (Acidity) बढ़ाने वाले तत्वों के साथ जब हल्दी भी लैब में परीक्षित जानवरों को दी गयी तो यह पाया गया कि अल्सर से बचाव करने में हल्दी बहुत उपयोगी है.
हल्दी के बारे में अन्य रोचक जानकारी (Some more Interesting Facts About Ayurvedic Herb Turmeric In Hindi)

वास्तव में यह औषधि 15 विभिन्न श्रेणियों की आल्लोपथिक दवाइयों के बारबार कारगर है. यही नही बल्कि हल्दी अन्य दवाइयों की भाँति दुष्प्रभावकारी भी नहीं है.
यह अनेक प्रकार के कैंसर या कर्क रोग की रोकथाम में भी सहायक है. भारतीयों में आल्झाइमर(Alzheimer’s), पारकिनसन (Parkinson) जैसे रोगों की कम दर का कारण वैज्ञानिक हल्दी को ही मानते हैं.
यह मस्तिष्क में अनेक कारणों से उत्पन्न शोथ (inflammation) का शमन करके अवसाद (depression) जैसे रोग का शमन भी करने में बहुत प्रभावशाली है.
कुछ फ़ायदेमंद घरेलू प्रयोग (Some Ayurvedic Home Remedies Of Turmeric)

यदि आपको बहुत नजला, जुकाम, खाँसी हो रहा है, तो गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी मिलाकर उसका सेवन करें.
त्वचा में निखार के लिए भी उबटन में हल्दी के जूस को मिलाकर हफ्ते में एक से दो बार अवश्य प्रयोग करें.
सावधानी

यदि आपके पित्ताशय में पथरी है तो हल्दी का प्रयोग न करें.
जिनकी प्रकृति गर्म है, उन्हें हल्दी आयुर्वेदीय सलाह के बाद ही उचित रूप से लेनी चाहिए ताकि आपको इसका लाभ मिल सके.
क्योंकि यह खून को पतला करती है, इसलिए कुछ आल्लोपथिक दवायों (anti-coagulants- warfarin) के साथ इसका उपयोग वर्जित है.

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  • हृदय परिवर्तन
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    एक राजा को राज भोगते काफी समय हो गया था । बाल भी सफ़ेद होने लगे थे । एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया । उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया ।
    राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें । सारी रात नृत्य चलता रहा । ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी । नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है, उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा – “बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताई । एक पलक के कारने, ना कलंक लग जाए ।”
    अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला । तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा ।
    जब यह बात गुरु जी ने सुनी । गुरु जी ने सारी मोहरें उस नर्तकी के सामने फैंक दीं ।
    वही दोहा नर्तकी ने फिर पढ़ा तो राजा की लड़की ने अपना नवलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया ।
    उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के पुत्र युवराज ने अपना मुकट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया ।
    नर्तकी फिर वही दोहा दोहराने लगी तो राजा ने कहा – “बस कर, एक दोहे से तुमने वेश्या होकर सबको लूट लिया है ।”
    जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे – “राजा ! इसको तू वेश्या मत कह, ये अब मेरी गुरु बन गयी है । इसने मेरी आँखें खोल दी हैं । यह कह रही है कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई ! मैं तो चला ।” यह कहकर गुरु जी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े ।
    राजा की लड़की ने कहा – “पिता जी ! मैं जवान हो गयी हूँ । आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरी शादी नहीं कर रहे थे और आज रात मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था । लेकिन इस नर्तकी ने मुझे सुमति दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही । क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?”
    युवराज ने कहा – “पिता जी ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे । मैंने आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था । लेकिन इस नर्तकी ने समझाया कि पगले ! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है । धैर्य रख ।”
    जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया । राजा के मन में वैराग्य आ गया । राजा ने तुरन्त फैंसला लिया – “क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ ।” फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा – “पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं । तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो ।” राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया ।
    यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा – “मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी ?” उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया । उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुरा धंधा बन्द करती हूँ और कहा कि “हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना । बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।”
    समझ आने की बात है, दुनिया बदलते देर नहीं लगती । एक दोहे की दो लाईनों से भी हृदय परिवर्तन हो सकता है । बस, केवल थोड़ा धैर्य रखकर चिन्तन करने की आवश्यकता है ।
    प्रशंसा से पिंघलना मत, आलोचना से उबलना मत, नि:स्वार्थ भाव से कर्म करते रहो, क्योंकि इस धरा का, इस धरा पर, सब धरा रह जाये।

लष्मीकांत वर्षनाय

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(((( सुखी गृहस्थी ))))
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एक संत हर रोज सत्संग किया करते थे। उनके सत्संग में दूर दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे।
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एक दिन सत्संग खत्म होने पर जब सभी लोग चले गए तो उन्होंने देखा कि एक आदमी अभी भी वहां बैठा है।
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संत ने उसे अपने पास बुलाया और सत्संग खत्म होने के बाद भी बैठे रहने का कारण पूछा तो वह बोला, “महाराज, मैं बहुत दुविधा में हूँ और आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ। ”
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संत ने कहा,’पूछो’ तो वह बोला,’मैं गृहस्थ हूँ, मेरे घर में बहुत कलह होती है, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है।
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मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे यहाँ क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है ?’
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संत ने उस आदमी को तुरंत इसका कोई जवाब नहीं दिया। वे थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने घर के भीतर की ओर मुँह करके अपनी पत्नी को आवाज लगाई, ‘सुनती हो, ज़रा लालटेन जलाकर लाओ।’
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संत की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई ?
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थोड़ी देर बाद संत ने फिर अपनी पत्नी को पुकारा, ’कुछ मीठा दे जाओ।’ इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय कुछ नमकीन देकर चली गयी।
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उस आदमी ने सोचा कि यह सब क्या हो रहा है। संत ने मीठा माँगा तो पत्नी नमकीन दे गयी, दिन में लालटेन मांगी तो बिना कुछ कहे लालटेन देकर चली गयी।
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उसने सोचा इन लोगों का तो खुद का ही दिमाग ठिकाने पर नहीं है, ये मेरी क्या मदद करेंगे और ये सोचकर वह बोला ,’ठीक है, महाराज मैं चलता हूँ।’
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तब संत ने उस आदमी से पूछा,’आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है ?’
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वह व्यक्ति बोला,’मेरी समझ में कुछ नहीं आया।’
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संत ने उसे समझाया ,’जब मैंने दिन में लालटेन मंगाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो ? इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत ?
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लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं कहा, बल्कि उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगाई होगी।
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दूसरी बार मैंने जब मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गयी। तो मैं चुप रहा क्योंकि हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो।
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हम दोनों चाहते तो अभी झगड़ सकते थे लेकिन आपसी विश्वास और समझ से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गयी।’
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उस आदमी को हैरानी हुई। वह समझ गया कि संत ने यह सब उसे बताने के लिए किया था।
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संत ने फिर कहा,’ गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नज़रअंदाज़ कर दे। यही सुखी गृहस्थी का मूल मंत्र है।’

((((((( जय जय श्री राधे )))))))

लष्मीकांत वर्शनय

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शरद पूर्णिमा आ रही है चंद्रमा की किरणों से बरसेगा अमृत…..
वैसे तो हर महीने पूर्णिमा होती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व कुछ और ही है। अश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है और ये किरणें हमारे लिए भी बहुत लाभदायक होती हैं। ज्योतिष की मान्यता अनुसार पूरे वर्ष में सिर्फ इसी दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर धरती पर अपनी अद्भुत छटा बिखेरता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है।

स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण

आयुर्वेद में भी शरद ऋतु का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार शरद में दिन बहुत गर्म और रात बहुत ठंडी होती हैं। इस ऋतु में पित्त या एसिडिटी का प्रकोप ज्यादा होता है जिसके लिए ठंडे दूध और चावल को खाना अच्छा माना जाता है। यही वजह है कि शरद ऋतु में दूध मिश्रित खीर बनाने का प्रावधान है। साथ ही इस खीर को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां इस पर चंद्रमा की किरणें पड़ें जिससे वह अमृतमयी हो जाए। इस खीर को खाने से न जाने कितनी बड़ी-बड़ी बीमारियों से निजात मिल जाता है। खासकर दमा और सांस की तकलीफ में यह खीर अमृत समान है। शरद पूर्णिमा की रात चांद की किरणें धरती पर छिटककर अन्न-वनस्पति आदि में औषधीय गुणों को सींचती हैं इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से शरद पूर्णिमा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

अगर शरद पूर्णिमा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो माना जाता है कि इस दिन से मौसम में परिवर्तन होता है और शीत ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन खीर खाने को माना जाता है कि अब ठंड का मौसम आ गया है इसलिए गर्म पदार्थों का सेवन करना शुरु कर दें। ऐसा करने से हमें ऊर्जा मिलती है।

लक्ष्मी की उपासना

हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस दिन कोजागर व्रत भी किया जाता है। कोजागर का शाब्दिक अर्थ है “कौन जाग रहा है।” ऐसा विश्वास है कि इस रात देवी लक्ष्मी स्वंय यह देखने आती हैं कि कौन जाग रहा है और कौन नहीं। माना जाता है कि जो श्रद्धालु, शरद पूर्णिमा के दिन, रात भर जागकर महालक्ष्मी की उपासना करते हैं मां उन्हें आशीर्वाद देती हैं और उनका जीवन खुशियों से भर देती हैं। माना जाता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण रासलीला करते थे। इसी वजह से वृदांवन में इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को ‘रासोत्सव’ और ‘कामुदी महोत्सव’ भी कहा जाता है।

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ब्राहमण भाईयो के लिये विषेश सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। इसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में हैं।

एक अन्य मत के अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री राम ने भोजन और दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए और भोजन तथा दान सामंग्री ग्रहण नहीं की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए।

सरयूपारीण ब्राहमणों के मुख्य गाँव :

गर्ग (शुक्ल- वंश)

गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|

(१) मामखोर (२) खखाइज खोर (३) भेंडी (४) बकरूआं (५) अकोलियाँ (६) भरवलियाँ (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं|

उपगर्ग (शुक्ल-वंश)

उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|

बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार

यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|

गौतम (मिश्र-वंश)

गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|

(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी

इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|

उप गौतम (मिश्र-वंश)

उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|

(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा

इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है|

वत्स गोत्र ( मिश्र- वंश)

वत्स ऋषि के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|

(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा

बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|

कौशिक गोत्र (मिश्र-वंश)

तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है|

(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी

बशिष्ट गोत्र (मिश्र-वंश)

इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है|

(१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी

शांडिल्य गोत्र ( तिवारी,त्रिपाठी वंश)

शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं|

(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७) बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) नोनापार (१२) कटियारी, नोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है

इन्ही बारह गांवों से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य त्रि प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारों का अस्तित्व कायम है|

उप शांडिल्य ( तिवारी- त्रिपाठी, वंश)

इनके छ: गाँव बताये जाते हैं जी निम्नवत हैं|

(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४) जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा

भार्गव गोत्र (तिवारी या त्रिपाठी वंश)

भार्गव ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है|

(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक (३) चेतियाँ (४) मदनपुर

भारद्वाज गोत्र (दुबे वंश)

भारद्वाज ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|

(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४) गरयापार

कन्चनियाँ और लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं लेकिन इनके पिता क्रमश: उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गददी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें|

सरार के दुबे के वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|

सावरण गोत्र ( पाण्डेय वंश)

सावरण ऋषि के तीन पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं|

(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट (चमरूपट्टी)

सांकेत गोत्र (मलांव के पाण्डेय वंश)

सांकेत ऋषि के तीन पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बताये जाते हैं|

(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ

कश्यप गोत्र (त्रिफला के पाण्डेय वंश)

इन तीन गांवों से बताये जाते हैं|

(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ (३) ढडमढीयाँ

ओझा वंश

इन तीन गांवों से बताये जाते हैं|

(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां

चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)

इनके लिए तीन गांवों का उल्लेख मिलता है|

(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां

एक गाँव कुसहाँ का उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है|

🌇ब्राह्मणों की वंशावली🌇
भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई। ब्रम्हा की आज्ञा से
दोनों कुरुक्षेत्र वासनी
सरस्वती नदी के तट
पर गये और कण् व चतुर्वेदमय
सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे
एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें
वरदान दिया ।
वर के प्रभाव कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका
क्रमानुसार नाम था –
उपाध्याय,
दीक्षित,
पाठक,
शुक्ला,
मिश्रा,
अग्निहोत्री,
दुबे,
तिवारी,
पाण्डेय,
और
चतुर्वेदी ।
इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने
अपनी कन्याए प्रदान की।
वे क्रमशः
उपाध्यायी,
दीक्षिता,
पाठकी,
शुक्लिका,
मिश्राणी,
अग्निहोत्रिधी,
द्विवेदिनी,
तिवेदिनी
पाण्ड्यायनी,
और
चतुर्वेदिनी कहलायीं।
फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं
वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम –
कष्यप,
भरद्वाज,
विश्वामित्र,
गौतम,
जमदग्रि,
वसिष्ठ,
वत्स,
गौतम,
पराशर,
गर्ग,
अत्रि,
भृगडत्र,
अंगिरा,
श्रंगी,
कात्याय,
और
याज्ञवल्क्य।
इन नामो से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं।
मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं-
(1) तैलंगा,
(2) महार्राष्ट्रा,
(3) गुर्जर,
(4) द्रविड,
(5) कर्णटिका,
यह पांच “द्रविण” कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाये जाते हैं|
तथा
विंध्यांचल के उत्तर में पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण
(1) सारस्वत,
(2) कान्यकुब्ज,
(3) गौड़,
(4) मैथिल,
(5) उत्कलये,
उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं।
वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है।
ऐसी संख्या मुख्य 115 की है।
शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है ।
यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं।
जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं,
फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के
लगभग है |
तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है।
उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है
81 ब्राम्हाणां की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या, मुख्य है –
(1) गौड़ ब्राम्हण,
(2)गुजरगौड़ ब्राम्हण (मारवाड,मालवा)
(3) श्री गौड़ ब्राम्हण,
(4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण,
(5) हरियाणा गौड़ ब्राम्हण,
(6) वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण,
(7) शोरथ गौड ब्राम्हण,
(8) दालभ्य गौड़ ब्राम्हण,
(9) सुखसेन गौड़ ब्राम्हण,
(10) भटनागर गौड़ ब्राम्हण,
(11) सूरजध्वज गौड ब्राम्हण(षोभर),
(12) मथुरा के चौबे ब्राम्हण,
(13) वाल्मीकि ब्राम्हण,
(14) रायकवाल ब्राम्हण,
(15) गोमित्र ब्राम्हण,
(16) दायमा ब्राम्हण,
(17) सारस्वत ब्राम्हण,
(18) मैथल ब्राम्हण,
(19) कान्यकुब्ज ब्राम्हण,
(20) उत्कल ब्राम्हण,
(21) सरवरिया ब्राम्हण,
(22) पराशर ब्राम्हण,
(23) सनोडिया या सनाड्य,
(24)मित्र गौड़ ब्राम्हण,
(25) कपिल ब्राम्हण,
(26) तलाजिये ब्राम्हण,
(27) खेटुवे ब्राम्हण,
(28) नारदी ब्राम्हण,
(29) चन्द्रसर ब्राम्हण,
(30)वलादरे ब्राम्हण,
(31) गयावाल ब्राम्हण,
(32) ओडये ब्राम्हण,
(33) आभीर ब्राम्हण,
(34) पल्लीवास ब्राम्हण,
(35) लेटवास ब्राम्हण,
(36) सोमपुरा ब्राम्हण,
(37) काबोद सिद्धि ब्राम्हण,
(38) नदोर्या ब्राम्हण,
(39) भारती ब्राम्हण,
(40) पुश्करर्णी ब्राम्हण,
(41) गरुड़ गलिया ब्राम्हण,
(42) भार्गव ब्राम्हण,
(43) नार्मदीय ब्राम्हण,
(44) नन्दवाण ब्राम्हण,
(45) मैत्रयणी ब्राम्हण,
(46) अभिल्ल ब्राम्हण,
(47) मध्यान्दिनीय ब्राम्हण,
(48) टोलक ब्राम्हण,
(49) श्रीमाली ब्राम्हण,
(50) पोरवाल बनिये ब्राम्हण,
(51) श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण
(52) तांगड़ ब्राम्हण,
(53) सिंध ब्राम्हण,
(54) त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण,
(55) इग्यर्शण ब्राम्हण,
(56) धनोजा म्होड ब्राम्हण,
(57) गौभुज ब्राम्हण,
(58) अट्टालजर ब्राम्हण,
(59) मधुकर ब्राम्हण,
(60) मंडलपुरवासी ब्राम्हण,
(61) खड़ायते ब्राम्हण,
(62) बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(63) भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(64) लाढवनिये ब्राम्हण,
(65) झारोला ब्राम्हण,
(66) अंतरदेवी ब्राम्हण,
(67) गालव ब्राम्हण,
(68) गिरनारे ब्राम्हण
सभी ब्राह्मण बंधुओ को मेरा नमस्कार बहुत दुर्लभ जानकारी है जरूर पढ़े। और समाज में शेयर करे हम क्या है
इस तरह ब्राह्मणों की उत्पत्ति और इतिहास के साथ इनका विस्तार अलग अलग राज्यो में हुआ और ये उस राज्य के ब्राह्मण कहलाये।
ब्राह्मण बिना धरती की कल्पना ही नहीं की जा सकती इसलिए ब्राह्मण होने पर गर्व करो और अपने कर्म और धर्म का पालन कर सनातन संस्कृति की रक्षा करें।


नोट:आप सभी बंधुओं से अनुरोध है कि सभी ब्राह्मणों को भेजें और यथासम्भव अपनी वंशावली का प्रसार करने में सहयोग करें।