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बुजुर्ग का फैसला…

मुक्ता को समझ में नहीं आ रहा है कि मोहित को कैसे समझाएं कि शादी के बिना एकसाथ रहना आज भी समाज में गुनाह माना जाता है।
मुक्ता दिल्ली की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में
असिस्टेंट मैनेजर थी और मोहित उस कंपनी में मैनेजर। दोनों में प्यार हो गया और करीब एक साल से दोनों लिव-इन में रह रहे थे। मोहित अपने पिता की इकलौती संतान था।
मुक्ता दो बहनें थीं। मुक्ता के पिता रेलवे के रिटायर्ड अफसर थे। मोहित के पिता मुंबई में प्रॉपर्टी का धंधा करते थे।
दोनों के माता-पिता को इसकी जानकारी लगी तो दोनों तरफ से विरोध हुआ और दोनों को शादी के लिए तैयार किया गया।
मोहित के दादाजी कस्बे में रहते थे। अच्छी उपजाऊ करीब 100 एकड़ जमीन के मालिक थे। शहर में राजनीतिक और सामाजिक रुतबा था। सामाजिक एवं नैतिक संस्कारों के लिए प्रतिबद्ध व्यक्तित्व था। मोहित के पिता को यही चिंता सता रही थी कि अगर बाबूजी को पता चल गया तो उनकी खैर नहीं।
मोहित भी यह बात जानता था कि पापा, दादाजी का सामना नहीं कर सकेंगे। उसने इन सब परिस्थितियों से बचने के लिए पापा से कहा, ‘पापा हम शादी यही मुंबई से करें तो कैसा रहेगा?’
‘ये निर्णय तो बाबूजी ने बहुत पहले कर लिया है बेटा कि तुम्हारी शादी हमारे शहर से ही होगी। इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता’, पिता ने चिंतित स्वर में उत्तर दिया।
‘लेकिन पापा वहां सब दकियानूसी लोग हैं, अगर उन्हें हमारे बारे में पता चला तो क्या होगा?’
‘मुझे मेरी चिंता नहीं है लेकिन दादाजी आपको बहुत लताड़ेगें’, मोहित ने चेतावनी देते हुए कहा।
‘पुत्र के कर्म पिता को ही भोगने होते हैं बेटा, देखेंगे, जो होगा सो भुगतेंगे, लेकिन बाबूजी का निर्णय अटल है, उसे कोई नहीं बदल सकता’, पिता ने लगभग निर्णय सुना दिया।

मोहित को भी मालूम था कि पापा, दादाजी की बात नहीं टाल सकते अत: उसने भी बुरे मन से ही सही, निर्णय मान लिया।
दादाजी ने शहर का सबसे महंगा शादी हाउस अपने पोते के लिए अनुबंधित किया। मुक्ता एवं उसके परिवार वालों को भी वहीं बुला लिया गया। सभी नातेदारों और रिश्तेदारों को निमंत्रित किया गया।
मेहंदी की रस्म चल रही थी। सभी मस्त थे व नाच-गा रहे थे। तभी मोहित के फूफाजी को मोहित एवं मुक्ता के लिव-इन की बात कहीं से पता चली। वो मुस्कुराते हुए दादाजी के पास गए और उनके कान में कुछ कहा।
दादाजी उनकी बात सुनकर सन्न रह गए और उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि बात सच हो सकती है। लेकिन जब फूफाजी ने बात को पुष्ट कर दिया तो उन्होंने दूसरे कमरे में जाकर मुक्ता, उसके माता-पिता, मोहित के माता-पिता, फूफाजी-बुआजी और अपनी पत्नी को बुलाया।
क्यों साले साहब, जब सब पहले ही हो चुका है तो यह शादी का नाटक कर हम लोगों का समय क्यों बर्बाद कर रहे हो आप?’ फूफाजी ने मोहित के पिता को इंगित करके कहा।

‘जीजाजी, वो ऐसा है कि मैं…’ मोहित के पिता अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए कि इसी बीच दादाजी बोल उठे।
‘क्यों सुरेश, यही संस्कार दिए हैं अपने बेटे को? मैंने तो तुम्हें ऐसे संस्कार नहीं दिए थे’, दादाजी ने अपने बेटे को लताड़ते हुए कहा।
‘लेकिन दादाजी इसमें बुराई क्या है? हमने प्रेम किया और साथ रहने लगे’, मोहित ने अपना बचाव करते हुए कहा।
‘बुराई इसमें बेटा यह है कि ऐसा सिर्फ जानवर करते हैं और हम शायद जानवर नहीं हैं’, दादाजी ने बहुत तीक्ष्ण स्वर में उत्तर दिया।

‘जो लड़की शादी से पहले ही अपना सबकुछ दूसरे को दे दे, उस पर कैसे विश्वास करोगी भाभी’, बुआजी ने मोहित की मां को इंगित कर मुक्ता के मां-बाप पर कटाक्ष किया।
मुक्ता का चेहरा तमतमा गया। वो कुछ बोलने वाली थी, पर उसकी मां ने उसका हाथ दाब दिया। मुक्ता के मां-बाप स्थिति की गंभीरता से वाकिफ थे अत: उन्होंने चुप रहना बेहतर समझा।
‘लेकिन दादाजी, आजकल महानगरों में ये सब आम है, इसे कानूनी वैधता भी है’, मोहित ने अपना पक्ष रखते हुए कहा।

‘आजकल बिना एक-दूसरे को जाने-बूझे शादी नहीं करनी चाहिए, शादियां टूट जाती हैं। मोहित बेटा, ये भारत है। भारत की 80 प्रतिशत जनता गांव-कस्बों व शहरों में रहती है, महानगरों में नहीं। भारत में संस्कार और सामाजिक मर्यादाएं निभाई जाती हैं। और जहां तक एक-दूसरे को जानने-बूझने की बात है तो इस भारत में करीब 95% शादियां मां-बाप द्वारा समझ-बूझ कर की जाती हैं, जो अधिकांशत: सफल होती हैं। क्या तुम्हारी दादी, तुम्हारी बुआ, तुम्हारी मां- इन सबने लिव-इन से शादी की है? क्या शादी से पहले ये एक-दूसरे को जानते थे? क्या ये शादियां असफल हैं?’ दादाजी के तर्कों के सामने मोहित निरुत्तर-सा हो गया।
‘सिर्फ शारीरिक भूख बुझाने के अलावा लिव-इन का कोई औचित्य नहीं है’, दादाजी ने मोहित को लताड़ते हुए कहा।
हम जिस समाज में रहते हैं वहां विवाह एक एग्रीमेंट नहीं है कि पसंद आया तो निभाया, नहीं तो छोड़ दिया। विवाह दो समाजों, दो संस्कृतियों, दो परिवारों और दो आत्माओं का मिलन हैं। हां, मैं विवाह में जातिवाद का विरोध करता हूं’, दादाजी ने वहां उपस्थित सभी को संबोधित करते हुए कहा।

‘आज इस विवाह में करीब 10 हजार लोग आ रहे हैं। क्या कोई बता सकता है कि वो सब यहां क्यों आ रहे हैं?’ दादाजी ने एक प्रश्न उछाला।
सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। किसी को भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं सूझा।
‘ये सब लोग मेरे यहां खाना खाने नहीं आ रहे हैं। ये सभी सामाजिक सरोकारों को स्वीकृति देने आ रहे हैं। ये आज की परंपराएं नहीं हैं, अनादिकाल से ये पवित्र परंपराएं चली आ रही हैं और भविष्य में भी रहेंगी। बिना सामाजिक स्वीकृति के सिर्फ पशु ही संबंध बनाते हैं।’
दादाजी ने मुक्ता के माता-पिता से पूछा, ‘अगर आज मोहित इस लड़की से शादी करने से मना कर दे, इसे व्यभिचारिणी घोषित कर दे तो आपका और आपके परिवार का क्या भविष्य होगा, आपने सोचा है? समाज को क्या आप मुंह दिखा सकते हैं। हरेक मां-बाप की जिम्मेवारी होती है कि वह अपनी संतानों के क्रिया-कलापों पर नजर रखे और अगर कहीं वो गलत कर रहे हैं तो उन्हें रोके। अगर आपने मुक्ता को टोक दिया होता तो आज ये सब बातें आपको नहीं सुनना पड़तीं’, दादाजी ने मुक्ता के परिवार को नसीहत देते हुए कहा।
‘हमें समाज में विकृति फैलाने वाली, समाज को तोड़ने वाली और व्यक्तिगत स्वार्थ और सुख केंद्रित कुरीतियों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। इससे परिवार, समाज और राष्ट्र का नुकसान होता है’, दादाजी ने पूरे प्रकरण पर पटाक्षेप करते हुए कहा।

‘अब इस संबंध में कोई चर्चा नहीं होगी और सब लोग हर्षपूर्वक विवाह की तैयारी करो’, दादाजी ने सबको निर्देशित करते हुए कहा।
मोहित के पिता और मुक्ता के पिता ने दादाजी से क्षमा-याचना की। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो रहा था कि काश! उन्होंने मुक्ता और मोहित को इस कुरीति के बारे में आगाह किया होता, लेकिन वे खुश थे कि सब ठीक-ठाक हो गया।
जब सब लोग उस कमरे से निकल गए तो दादाजी ने दादी के कान में कहा, ‘क्यों लिव-इन में रहोगी मेरे साथ?’
दादी शर्माते हुए बोली, ‘दादा और पोता एक जैसे हैं।’
बाहर मधुर शहनाई गूंज रही थी!

लष्मीकांत वर्षनाय

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एक छोटा सा बोर्ड रेहड़ी की छत से लटक रहा था, उस पर मोटे मार्कर से लिखा हुआ था…..!!
“घर मे कोई नही है, मेरी बूढ़ी माँ बीमार है, मुझे
थोड़ी-थोड़ी देर में उन्हें खाना, दवा और टायलट कराने के लिए घर जाना पड़ता है, अगर आपको जल्दी है तो अपनी मर्ज़ी से फल तौल लें और पैसे कोने पर गत्ते के नीचे रख दें, साथ ही रेट भी लिखे हुये हैं”

और अगर आपके पास पैसे नही हों तो मेरी तरफ से ले लेना, इजाजत है..!!
मैंने इधर-उधर देखा, पास पड़े तराजू में दो किलो सेब तोले, दर्जन भर केले लिए, बैग में डाले, प्राइस लिस्ट से कीमत देखी, पैसे निकाल कर गत्ते को उठाया वहाँ सौ पच्चास और दस:दस के नोट पड़े थे, मैंने भी पैसे उसमे रख कर उसे ढक दिया । बैग उठाया और अपने फ्लैट पे आ गया, रात को खाना खाने के बाद मैं और भाई उधर निकले तो देखा एक कमज़ोर सा आदमी, दाढ़ी आधी काली आधी सफेद, मैले से कुर्ते-पजामे में रेहड़ी को धक्का लगा कर बस जाने ही वाला था, वो हमें देख कर मुस्कुराया और बोला “साहब ! फल तो खत्म हो गए
नाम पूछा तो बोला सीताराम ..
फिर हम सामने वाले ढाबे पर बैठ गए…
चाय आयी, कहने लगा “पिछले तीन साल से मेरी माता बिस्तर पर हैं, कुछ पागल सी भी हो गईं है और अब तो फ़ालिज भी हो गया है, मेरी कोई संतान नही है, बीवी मर गयी है, सिर्फ मैं हूँ और मेरी माँ ! माँ की देखभाल करने वाला कोई नही है इसलिए मुझे हर वक़्त माँ का ख्याल रखना पड़ता है”
एक दिन मैंने माँ का पाँव दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, माँ ! तेरी सेवा करने को तो बड़ा जी चाहता है । पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नही देती, कहती है तू जाता है तो जी घबराने लगता है, तू ही बता मै क्या करूँ?”
“अब क्या गले से खाना उतरेगा ? न मेरे पास.कोई जमा पूंजी है”
ये सुन कर माँ ने हाँफते काँपते उठने की कोशिश की, मैंने तकिये की टेक लगवाई, उन्होंने झुर्रियों वाला चेहरा उठाया अपने कमज़ोर हाथों को ऊपर उठाया मन ही मन राम जी की स्तुति की फिर बोली…
“तू रेहड़ी वहीं छोड़ आया कर हमारी किस्मत हमे इसी कमरे में बैठ कर मिलेगा”
मैंने कहा “माँ ! क्या बात करती हो, वहाँ छोड़ आऊँगा तो कोई चोर-उचक्का सब कुछ ले जायेगा, आजकल कौन लिहाज़ करता है ? और बिना मालिक के कौन खरीदने आएगा ?”
कहने लगीं “तू राम का नाम लेने के बाद बाद रेहड़ी को फलों से भरकर छोड़ कर आ जा बस, ज्यादा बक-बक नही कर, शाम को खाली रेहड़ी ले आया कर, अगर तेरा रुपया गया तो मुझे बोलियो”
ढाई साल हो गए है भाई ! सुबह रेहड़ी लगा आता हूँ शाम को ले जाता हूँ, लोग पैसे रख जाते है फल ले जाते हैं, एक धेला भी ऊपर नीचे नही होता, बल्कि कुछ तो ज्यादा भी रख जाते है, कभी कोई माँ के लिए फूल रख जाता है, कभी कोई और चीज़ ! परसों एक बच्ची पुलाव बना कर रख गयी साथ मे एक पर्ची भी थी “अम्मा के लिए”
एक डॉक्टर अपना कार्ड छोड़ गए पीछे लिखा था “माँ की तबियत नाज़ुक हो तो मुझे काल कर लेना मैं आ जाऊँगा,” कोई खजूर रख जाता है , रोजाना कुछ न कुछ मेरे हक के साथ मौजूद होता है ।
न माँ हिलने देती है न मेरे राम कुछ कमी रहने देता है
माँ कहती है तेरा फल मेरा राम अपने फरिश्तों मे बिकवा देता है ।

आखिर में इतना ही कहूँगा कि अपने मां बाप की खिदमत करो, और देखो दुनियाँ की कामयाबियाँ कैसे हमारे कदम चूमती है ।

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भाई परमानंद
बलिदानों का इतिहास लिए भाई परमानंद के पूर्वज भी मतिदास तथा उनके छोटे भाई सती दास और भाई दयाल दास नवें गुरु तेगबहादुर के साथ शहीद हुए थे। उनको औरंगजेब के आदेश से दिल्ली के चांदनी चौक में 09 नवम्बर 1675 को आरे से चीर दिया गया था। ‘भाई’ का सम्मान स्वयं गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस परिवार को दिया गया ।
भाई परमानंद के भाई बालमुकंद जिन्हें वर्ष 1912 में चांदनीचौक में हुए लार्ड हार्डिंग बम कांड में मास्टर अमीरचंद , भाई बालमुकंद और मास्टर अवध बिहारी को 8 मई 1915 को फांसी पर लटका दिया गया । वे महान क्रांतिकारी भाई परमानंद के चचेरे भाई थे ।

भाई परमानंद जी का जन्म 4 नवम्बर 1876 को जिला जेहलम (अब पाकिस्तान) के करियाला गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता जी का नाम भाई ताराचंद्र था । भाई परमानंद 1902 में स्नातकोत्तर शिक्षा के बाद लाहौर के दयानंद एंग्लो महाविद्यालय में एक शिक्षक नियुक्त हुए । वैदिक संस्कृति के प्रति आप की रुचि अधिक थी । महात्मा हंसराज जी ने आप को इसके प्रचार के विदेशों में भेजा । अफ्रीका में भाई परमानंद जी ने क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह, अम्बा प्रसाद से मिले लेकिन पुलिस इनके पीछे पढ़ गयी तब वह लंदन चले गए और वहां पर भाई परमानंद जी की भेंट प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा और वीर सावरकर के संपर्क में आये । वर्ष 1997 में भारत लौट आये ।
भारत मे भाई परमानंद जी ने पुनः दयानंद एंग्लो महाविद्यालय में बच्चों को पढ़ाना आरम्भ किया । सरदार अजीतसिंह और लाला लाजप्प्त के संपर्क हुआ लेकिन पुलिस की दृष्टि से बच नहीं पाए और 1910 में लाहौर में गिरफ्तार हो गए । रिहा होने के बाद अमेरिका चले गए ।
अमरीका में भाई परमानंद जी की भेंट प्रख्यात क्रांतिकारी लाला हरदयाल जी से हुई । वहां लाला हरदयाल जी की प्रेरणा से वहां क्रांतिकारियों को संगठित किया । वर्ष 1913 में भारत लौट कर लाहौर के युवकों को क्रांति के लिए प्रेरित किया । 1914 में भी भाई परमानंद जी ने एक व्याख्यान यात्रा लाला हरदयाल जी के साथ दाक्षिण अमेरिका के उपनिवेशों मद की और ग़दर पार्टी की लिए तवारीखे हिन्द ( भारत का इतिहास ) नामक पुस्तक और लेख युवकों को क्रांति के लिए प्रेरित करने के लिए लिखे ।
भारत मे क्रांति के उड़े से 5000 ग़दर की भावना लिए भारत पहुंचे । 25 फरवरी 1915 को लाहौर में ग़दर पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ कर लिए गए । उनके विरुद्ध अंग्रेजी सत्त्ता के विरुद्ध षड्यंत्र रचने और क्रांतिकारी साहित्य लिखने के आरोप में फांसी की सज़ा सुनाई गई । देश भर में विरोध होने पर आजीवन कारावास काला पानी (अंडमान) में दी गयी ।
अंडमान की कॉल कोठरी में ” मेरे अंत समय का आश्रय ” नामक ग्रंथ की रचना की । ज़ैल में दी गयी यातनाओं को उन्होंने ” मेरी आप बीती ” , लिखी । प्रोफेसर धर्मबीर ने भी अपनी पुस्तक “क्रांतिकारी भी परमानंद ” उन पर हुई घटनाओँ का दिल हिला देने वाला विवरण है ।
ज़ैल से मुक्त हो कर भाई परमानंद जी ने बाबा बंदा बहादुर लिखी पुस्तक पूरे देश मे लोक प्रिय हुई ।

भाई परमानंद जी ने गांधी जी और कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण का विरोध करते हुए तब कहा था कि इससे देश का विभाजन हो सकता है । वर्ष 1933 में भाई परमानंद जी हिन्दू महासभा के अध्यक्ष बने । 15 अगस्त 1947 को हुए भारत के विंभाजन की पीड़ा नही सह सके । 8 दिसम्बर 1947 को उन्होनें अंतिम सांस ली । उनके सयोग्य पुत्र भाई महावीर जो एक शिक्षाविद और जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे , राज्यसभा के सदस्य और मध्य प्रदेश के राजपाल भी रहे । वर्ष 2016 में उनका देहांत हुआ ।

भाई परमानंद जी की जयंती पर उन्हें देशवासियों की विनम्र श्रद्धांजलि

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas, Uncategorized

क्या आप जानते हैं विश्व की सबसे मंहंगी ज़मीन सरहिंद, जिला फतेहगढ़ साहब (पंजाब) में है, जो मात्र 4 स्क्वेयर मीटर है।

क्यों हुई ये छोटी सी ज़मीन सबसे महंगी? जरूर जानिये – रोंगटे खड़े कर देनें वाली ऐतिहासिक घटना।

यहां पर श्री गुरु गोविंद सिंह जी क दोे छोटे साहिबजादों का अंतिम संस्कार किया गया था।

सेठ दीवान टोडर मल ने यह ज़मीन 78000 सोने की मोहरें (सिक्के) दे कर मुस्लिम बादशाह से खरीदी थी। सोने की कीमत के मुताबिक इस 4 स्कवेयर मीटर जमीन की कीमत 2500000000 (दो अरब पचास करोड़)💰💰💰 बनती है।

दुनिया की सबसे मंहंगी जगह खरीदने का रिकॉर्ड सिख धर्म के इतिहास में दर्ज करवाया गया है। आजतक दुनिया के इतिहास में इतनी मंहंगी जगह कहीं नही खरीदी गयी।

और….दुनिया के इतिहास में ऐसा युद्ध ना कभी किसी ने पढ़ा होगा ना ही सोचा होगा, जिसमे 10 लाख की फ़ौज का सामना महज 42 लोगों के साथ हुआ था और जीत किसकी होती है..??
उन 42 सूरमो की !

यह युद्ध ‘चमकौर युद्ध’ (Battle of Chamkaur) के नाम से भी जाना जाता है जो कि मुग़ल योद्धा वज़ीर खान की अगवाई में 10 लाख की फ़ौज का सामना सिर्फ 42 सिखों से, 6 दिसम्बर 1704 को हुआ जो कि गुरु गोबिंद सिंह जी की आज्ञा से तैयार हुए थे !

नतीजा यह निकलता है की उन 42 शूरवीरों की जीत होती है और हिंदुस्तान में मुग़ल हुकूमत की नींव, जो बाबर ने रखी थी, उसे जड़ से उखाड़ दिया गया।

औरंगज़ेब ने भी उस वक़्त गुरु गोविंद सिंह जी का लोहा माना और घुटने टेक दिए और ऐसे मुग़ल साम्राज्य का अंत हुआ।

औरंगजेब की तरफ से एक प्रश्न किया गया गुरु गोविंद सिंह जी से, कि यह कैसी फ़ौज तैयार की आपने जिसने 10 लाख की फ़ौज को उखाड़ फेंका?

गुरु गोविंद सिंह जी ने जवाब दिया,

“चिड़ियों 🐥से मैं बाज 🦅 लडाऊ,
गीदड़ों 🐺को मैं शेर 🦁 बनाऊं
सवा लाख से एक लडाऊं,
तभी गोविंद सिंह नाम कहाउँ !!” 🙏

गुरु गोविंद सिंह जी ने जो कहा वो किया और जिन्हें आज हर कोई शीश झुकता है। यह है हमारे भारत की अनमोल विरासत जिसे कभी पढ़ाया ही नहीं जाता!

अगर आपको यकीन नहीं होता तो एक बार जरूर Google में लिखे ‘बैटल ऑफ़ चमकौर’ और सच आपको स्वयं पता लग जाएगा।

आपको अगर ये लेख थोड़ा सा भी अच्छा लगा हो और आपको भारतीय होने पर गर्वान्वित करता हो तो ज़रूर इसे आगे शेयर करें जिससे हमारे देश के गौरवशाली इतिहास के बारे में दुनिया को पता लगे !

***कुछ आगे ***

चमकौर साहिब की जमीन, आगे चलकर, एक समृद्ध सिख ने खरीदी। उस को इसके इतिहास का कुछ पता नहीं था। जब पता चला कि यहाँ गुरु गोविंद सिंह जी के दो बेटे शहीद हुए थे, तो उन्होंने यह ज़मीन गुरु महाराज जी के बेटों की यादगार ( गुरुद्वारा साहिब) के लिए देने का मन बनाया।

जब अरदास करने के समय उस सिख से पूछा गया कि अरदास में उनके लिए गुरु साहिब से क्या विनती करनी है ….तो उस सिख ने कहा के गुरु जी से विनती करनी है कि मेरे घर कोई औलाद ना हो ताकि मेरे वंश में कोई भी यह कहने वाला ना हो कि यह ज़मीन मेरे बाप दादा ने दी है।
वाहेगुरु… 🙏

और यही अरदास हुई और बिलकुल ऐसा ही हुआ कि उन सिख के घर कोई औलाद नहीं हुई।

अब हम अपने बारे में सोचें
50….100 रु. दे कर क्या क्या माँगते हैं।

वाहेगुरु जी का खालसा, 🙏
वाहेगुरु जी की फतेह। 🙏

A whatsapp post of Madhukar Shukla.

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

ज्ञान वर्धक कहानी एक ब्राह्मण को विवाह के बहुत सालों बाद पुत्र हुआ लेकिन कुछ वर्षों बाद बालक की असमय मृत्यु हो गई
ब्राह्मण शव लेकर श्मशान पहुँचा। वह मोहवश उसे दफना नहीं पा रहा था। उसे पुत्र प्राप्ति के लिए किए जप-तप और पुत्र का जन्मोत्सव याद आ रहा था।
श्मशान में एक गिद्ध और एक सियार रहते थे। दोनों शव देखकर बड़े खुश हुए। दोनों ने प्रचलित व्यवस्था बना रखी थी – दिन में सियार माँस नहीं खाएगा और रात में गिद्ध।
सियार ने सोचा – यदि ब्राह्मण दिन में ही शव रखकर चला गया तो उस पर गिद्ध का अधिकार होगा। इसलिए क्यों न अंधेरा होने तक ब्राह्मण को बातों में फँसाकर रखा जाए।

वहीं गिद्ध ताक में था कि शव के साथ आए कुटुंब के लोग जल्द से जल्द जाएँ और वह उसे खा सके।

गिद्ध ब्राह्मण के पास गया और उससे वैराग्य की बातें शुरू की।

गिद्ध ने कहा – मनुष्यों, आपके दुख का कारण यही मोहमाया ही है। संसार में आने से पहले हर प्राणी का आयु तय हो जाती है। संयोग और वियोग प्रकृति के नियम हैं।
आप अपने पुत्र को वापस नहीं ला सकते। इसलिए शोक त्यागकर प्रस्थान करें। संध्या होने वाली है। संध्याकाल में श्मशान प्राणियों के लिए भयदायक होता है इसलिए शीघ्र प्रस्थान करना उचित है।

गिद्ध की बातें ब्राह्मण के साथ आए रिश्तेदारों को बहुत प्रिय लगीं। वे ब्राह्मण से बोले – बालक के जीवित होने की आशा नहीं है। इसलिए यहाँ रुकने का क्या लाभ?

सियार सब सुन रहा था। उसे गिद्ध की चाल सफल होती दिखी तो भागकर ब्राह्मण के पास आया।

सियार कहने लगा – बड़े निर्दयी हो। जिससे प्रेम करते थे, उसके मृत-देह के साथ थोड़ा वक्त नहीं बिता सकते!! फिर कभी इसका मुख नहीं देख पाओगे। कम से कम संध्या तक रुककर जी भर के देख लो!

उन्हें रोके रखने के लिए सियार ने नीति की बातें छेड़ दीं – जो रोगी हो, जिस पर अभियोग लगा हो और जो श्मशान की ओर जा रहा हो उसे बंधु-बांधवों के सहारे की ज़रूरत होती है।

सियार की बातों से परिजनों को कुछ तसल्ली हुई और उन्होंने तुरंत वापस लौटने का विचार छोड़ा।

अब गिद्ध को परेशानी होने लगी। उसने कहना शुरू किया – तुम ज्ञानी होने के बावजूद एक कपटी सियार की बातों में आ गए। एक दिन हर प्राणी की यही दशा होनी है। शोक त्यागकर अपने-अपने घर को जाओ।
जो बना है वह नष्ट होकर रहता है। तुम्हारा शोक मृतक को दूसरे लोक में कष्ट देगा। जो मृत्यु के अधीन हो चुका क्यों रोकर उसे व्यर्थ कष्ट देते हो ?

लोग चलने को हुए तो सियार फिर शुरू हो गया – यह बालक जीवित होता तो क्या तुम्हारा वंश न बढ़ाता? कुल का सूर्य अस्त हुआ है कम से कम सूर्यास्त तक तो रुको!

अब गिद्ध को चिंता हुई। गिद्ध ने कहा – मेरी आयु सौ वर्ष की है। मैंने आज तक किसी को जीवित होते नहीं देखा। तुम्हें शीघ्र जाकर इसके मोक्ष का कार्य आरंभ करना चाहिए।

सियार ने कहना शुरू किया – जब तक सूर्य आकाश में विराजमान हैं, दैवीय चमत्कार हो सकते हैं। रात्रि में आसुरी शक्तियाँ प्रबल होती हैं। मेरा सुझाव है थोड़ी प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए।

सियार और गिद्ध की चालाकी में फँसा ब्राह्मण परिवार तय नहीं कर पा रहा था कि क्या करना चाहिए। अंततः पिता ने बेटे का सिर में गोद में रखा और ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगा। उसके विलाप से श्मशान काँपने लगा।

तभी संध्या-भ्रमण पर निकले महादेव-पार्वती वहाँ पहुँचे। पार्वती जी ने बिलखते परिजनों को देखा तो दुखी हो गईं। उन्होंने महादेव से बालक को जीवित करने का अनुरोध किया।

महादेव प्रकट हुए और उन्होंने बालक को सौ वर्ष की आयु दे दी। गिद्ध और सियार दोनों ठगे रह गए।
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गिद्ध और सियार के लिए आकाशवाणी हुई – तुमने प्राणियों को उपदेश तो दिया उसमें सांत्वना की बजाय तुम्हारा स्वार्थ निहीत था। इसलिए तुम्हें इस निकृष्ट योनि से शीघ्र मुक्ति नहीं मिलेगी।

दूसरों के कष्ट पर सच्चे मन से शोक करना चाहिए। शोक का आडंबर करके प्रकट की गई संवेदना से गिद्ध और सियार की गति प्राप्त होती।

एक महात्मा एक जगह बैठा था.
पास से एक गाड़ी गुजरी जिससे एक गेहूं की बोरी नीचे गिर गई और फट गई और बाहर गेहूं के दाने गिर गये.
महात्मा बैठकर देख ही रहा, एक कौआ आया अपने पेट के अनुसार कुछ दाने खाये और उड़ गया.
कुछ समय बाद एक गाय आई उसने भी भर पेट खाया और चली गई.
बाद में एक आदमी आया उसने वो बोरी ही पीठ पर उठा ली और अपने घर लेकर चला गया.

सोचने वाली बात है उन पशु पक्षी को ये समझ में आ गया कि जिस मालिक ने उन्हें यहां भेजा है वो हर रोज उन्हें भर पेट देता है पर मनुष्य को यह छोटी सी बात क्यों नहीं समझ में आ रही.

हम दिन रात सिर्फ माया ही कमाने के पीछे लगे पडे़ हैं पर हमारी भूख है की कभी खत्म ही नहीं होती.
हमें क्यों उस मालिक पर विश्वास नहीं है

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

મહાન વૈજ્ઞાનીક આલ્બર્ટ આઇન્સ્ટાઇનના જીવનનો એક યાદગાર પ્રસંગ

આલ્બર્ટ આઇન્સ્ટાઇનની “Theory of Relativity” ખુબજ પ્રસિદ્ધ થઇ એટલે તેના વિશે લેકચર આપવા માટે આમંત્રણ મળવા લાગ્યા.
આલ્બર્ટ આઇન્સ્ટાઇન હંમેશા ગાડી લઈને જતા અને ડ્રાઈવર સાથે રાખતા. લેકચર દરમિયાન ડ્રાઈવર છેલ્લી હરોળમાં બેસીને આઇન્સ્ટાઇને સાંભળતો.

એક દિવસ ડ્રાઈવરે આઇન્સ્ટાઇને કહ્યું કે તમારી થિયરી એટલી સરળ છે કે હું પણ એના વિશે પ્રવચન કરી શકું. મેં એટલી બધી વાર સાંભળી છે કે તમારા પ્રવચનનાં દરેક શબ્દો મને યાદ રહી ગયા છે.

ત્યારે ગુસ્સે થવાને બદલે આઇન્સ્ટાઇન ખુશ થયા કે એમની થિયરી એટલી સરળ છે કે વિજ્ઞાનનું જરા પણ જ્ઞાન ન હોય એવા લોકો પણ એ સમજી શકે છે.

એ દિવસોમાં મીડિયા એટલું લોકપ્રિય હતું નહિ. એટલે બધા લોકો આઇન્સ્ટાઇને ઓળખતા હતા પણ મોટાભાગના લોકો એમના ચહેરાથી અજાણ હતા.

એક દિવસ પ્રવચનમાં જતી વખતે આઇન્સ્ટાઇને એના ડ્રાઈવરને કહ્યું કે આજે મારી જગ્યાએ તારે પ્રવચન આપવાનું છે. ડ્રાઈવરે વૈજ્ઞાનિક જેવા કપડાં પહેરી લીધા અને આઇન્સ્ટાઇન ડ્રાઇવરના કપડાં પહેરીને બંને હોલમાં ગયા.
છેલ્લી હરોળમાં બેસીને આઇન્સ્ટાઇન ડ્રાઈવરનું પ્રવચન સાંભળવા લાગ્યા.

ડ્રાઈવરે એટલી કુશળતાથી “Theory of Relativity” સમજાવી કે કોઈને શંકા ગઈ નહિ.
અંતમાં પ્રશ્નોત્તરી થઇ એમાં પણ ડ્રાઈવરે તમામ પ્રશ્નોના સાચા અને સચોટ જવાબ આપ્યા. કારણ કે મોટા ભાગના પ્રશ્નો અગાઉના પ્રવચનોમાં પૂછાય ગયા હોય એ પ્રકારના જ હતા.

પરન્તુ અંતમાં એક માણસે એવો સવાલ કર્યો કે ડ્રાઈવર મૂંઝાય ગયો. એ પ્રકારનો સવાલ અગાઉ ક્યારેય પુછાયો હતો નહિ. ડ્રાઈવરને ચિંતા થઇ કે હવે શું કરવું ?
એને થયું કે જો બધાને ખબર પડી જશે કે આઇન્સ્ટાઇની જગ્યાએ એનો ડ્રાઈવર પ્રવચન આપે છે તો સારું નહિ લાગે અને છાપ ખરાબ પડશે.

માત્ર થોડી સેકન્ડસ વિચાર કરી, જરા પણ ગભરાયા વિના ડ્રાઈવરે પેલા ભાઈને જવાબ આપ્યો કે ‘તમારો સવાલ એટલો બધો સરળ છે કે મારો ડ્રાઈવર પણ એનો જવાબ આપી શકે. મારો ડ્રાઈવર છેલ્લી હરોળમાં બેઠો છે, હું એને વિનંતી કરીશ કે તમારી સમસ્યાનું સમાધાન કરે.’

આલ્બર્ટ આઇન્સ્ટાઇન પોતે પણ ડ્રાઇવરના જવાબથી આશ્ચર્યચકિત થઇ ગયા. આઇન્સ્ટાઇને પેલા માણસના સવાલનો જવાબ ડ્રાઈવર બનીને આપ્યો અને કાર્યક્રમ નિર્વિઘ્ને પૂરો થયો.

તમે કેવા પ્રકારની વ્યક્તિ સાથે રહો છો એ ઘણું મહત્વનું છે. આલ્બર્ટ આઇન્સ્ટાઇન જેવી વ્યક્તિ સાથે રહેવાથી એક અભણ ડ્રાઈવર પણ હોશિયાર થઇ ગયો હતો. માણસની સોબત એના જીવનમાં બહુ મોટો ભાગ ભજવે છે.

~ મૌલિક જગદીશ ત્રિવેદી