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|| जय श्री राम ||

.!! क्यों चढ़ाते हैं बजरंगबली को सिन्दूर !!

हिन्दू धर्म में सिन्दूर के महत्त्व से भला कौन परिचित नहीं है ? एक विवाहित स्त्री के लिए सिन्दूर न केवल उसके विवाहित होने का प्रमाण है बल्कि एक प्रकार से गहना है । पूजा-पाठ में भी सिन्दूर की ख़ास एहमियत है । जहाँ अक्सर सभी देवी-देवताओं को सिन्दूर का तिलक लगाया जाता है, हनुमान जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाया जाता है । इसके पीछे एक कारण है जिसका वर्णन रामचरितमानस में है ।

कहा जाता है कि चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके जब श्री राम, सीता और लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या आए तो एक दिन हनुमान ने माता सीता को अपनी मांग में सिन्दूर लगाते देखा । एक वानर के लिए ये कुछ अजब सी चीज़ थी तो उन्होंने माता सीता से सिन्दूर के बारे में पूछा । माता सीता ने कहा कि सिन्दूर लगाने से उन्हें श्री राम का स्नेह प्राप्त होगा और इस तरह ये सौभाग्य का प्रतीक है । अब हनुमान तो ठहरे राम भक्त और ऊपर से अत्यंत भोले, तो उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिन्दूर से रंग लिया यह सोचकर कि यदि वे सिर्फ माँग नहीं बल्कि पूरे शरीर पर सिन्दूर लगा लेंगे तो उन्हें भगवान् राम का ख़ूब प्रेम प्राप्त होगा और उनके स्वामी कि उम्र भी लम्बी होगी । हनुमान इसी अवस्था में सभा में चले गए ।

श्री राम ने जब हनुमान को सिन्दूर से रंगा देखा तो उन्होंने हनुमान से इसका कारण पूछा । हनुमान ने भी बेझिझक कह दिया कि उन्होंने ये सिर्फ भगवान् राम का स्नेह प्राप्त करने के लिए किया था । उस वक्त राम इतने प्रसन्न हुए कि हनुमान को गले लगा लिया। बस तभी से हनुमान को प्रसन्न करने के लिए उनकी मूरत को सिन्दूर से रंगा जाता है । इससे हनुमान का तेज और बढ़ जाता है और भक्तों में आस्था बढ़ जाती है ।

|| 🚩🚩🕉🚩🚩

🚩🚩#जयश्रीराम🚩🚩
ह्रदय से”राम”सुमिरन किया तो आवाज हनुमान तक जाएगी !
हनुमान जी ने जो सुन ली, हमारी तो हर बिगड़ी ही बन जाएगी !!
🚩🚩#जय
सनातनधर्म🚩🚩
🚩🚩#जय
हिन्दुत्व 🚩🚩

#शुभ_संध्या वन्दन
मंगलमय दिवस हो आपका

🚩🚩#जयश्रीराम🚩🚩
🚩🚩 #जय_बजरंगवली🚩🚩

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लोभी आदमी अपने को और अपने परिवार को कष्ट डाल देता है…
| सातवां घड़ा |

गाँव में एक नाई अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। नाई ईमानदार था, अपनी कमाई से संतुष्ट था। उसे किसी तरह का लालच नहीं था। नाई की पत्नी भी अपनी पति की कमाई हुई आय से बड़ी कुशलता से अपनी गृहस्थी चलाती थी। कुल मिलाकर उनकी जिंदगी बड़े आराम से हंसी-खुशी से गुजर रही थी।

नाई अपने काम में बहुत निपुण था। एक दिन वहाँ के राजा ने नाई को अपने पास बुलवाया और रोज उसे महल में आकर हजामत बनाने को कहा।

नाई ने भी बड़ी प्रसन्नता से राजा का प्रस्ताव मान लिया। नाई को रोज राजा की हजामत बनाने के लिए एक स्वर्ण मुद्रा मिलती थी।

इतना सारा पैसा पाकर नाई की पत्नी भी बड़ी खुश हुई। अब उसकी जिन्दगी बड़े आराम से कटने लगी। घर पर किसी चीज की कमी नहीं रही और हर महीने अच्छी रकम की बचत भी होने लगी। नाई, उसकी पत्नी और बच्चे सभी खुश रहने लगे।

एक दिन शाम को जब नाई अपना काम निपटा कर महल से अपने घर वापस जा रहा था, तो रास्ते में उसे एक आवाज सुनाई दी।

आवाज एक यक्ष की थी। यक्ष ने नाई से कहा, ‘‘मैंने तुम्हारी ईमानदारी के बड़े चर्चे सुने हैं, मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत खुश हूँ और तुम्हें सोने की मुद्राओं से भरे सात घड़े देना चाहता हूँ। क्या तुम मेरे दिये हुए घड़े लोगे ?

नाई पहले तो थोड़ा डरा, पर दूसरे ही पल उसके मन में लालच आ गया और उसने यक्ष के दिये हुए घड़े लेने का निश्चय कर लिया।

नाई का उत्तर सुनकर उस आवाज ने फिर नाई से कहा, ‘‘ठीक है सातों घड़े तुम्हारे घर पहुँच जाएँगे।’’

नाई जब उस दिन घर पहुँचा, वाकई उसके कमरे में सात घड़े रखे हुए थे। नाई ने तुरन्त अपनी पत्नी को सारी बातें बताईं और दोनों ने घड़े खोलकर देखना शुरू किया। उसने देखा कि छः घड़े तो पूरे भरे हुए थे, पर सातवाँ घड़ा आधा खाली था।

नाई ने पत्नी से कहा—‘‘कोई बात नहीं, हर महीने जो हमारी बचत होती है, वह हम इस घड़े में डाल दिया करेंगे। जल्दी ही यह घड़ा भी भर जायेगा। और इन सातों घड़ों के सहारे हमारा बुढ़ापा आराम से कट जायेगा।

अगले ही दिन से नाई ने अपनी दिन भर की बचत को उस सातवें में डालना शुरू कर दिया। पर सातवें घड़े की भूख इतनी ज्यादा थी कि वह कभी भी भरने का नाम ही नहीं लेता था।

धीरे-धीरे नाई कंजूस होता गया और घड़े में ज्यादा पैसे डालने लगा, क्योंकि उसे जल्दी से अपना सातवाँ घड़ा भरना था।

नाई की कंजूसी के कारण अब घर में कमी आनी शुरू हो गयी, क्योंकि नाई अब पत्नी को कम पैसे देता था। पत्नी ने नाई को समझाने की कोशिश की, पर नाई को बस एक ही धुन सवार थी—सातवां घड़ा भरने की।

अब नाई के घर में पहले जैसा वातावरण नहीं था। उसकी पत्नी कंजूसी से तंग आकर बात-बात पर अपने पति से लड़ने लगी। घर के झगड़ों से नाई परेशान और चिड़चिड़ा हो गया।

एक दिन राजा ने नाई से उसकी परेशानी का कारण पूछा। नाई ने भी राजा से कह दिया अब मँहगाई के कारण उसका खर्च बढ़ गया है। नाई की बात सुनकर राजा ने उसका मेहताना बढ़ा दिया, पर राजा ने देखा कि पैसे बढ़ने से भी नाई को खुशी नहीं हुई, वह अब भी परेशान और चिड़चिड़ा ही रहता था।

एक दिन राजा ने नाई से पूछ ही लिया कि कहीं उसे यक्ष ने सात घड़े तो नहीं दे दिये हैं ? नाई ने राजा को सातवें घड़े के बारे में सच-सच बता दिया।

तब राजा ने नाई से कहा कि सातों घड़े यक्ष को वापस कर दो, क्योंकि सातवां घड़ा साक्षात लोभ है, उसकी भूख कभी नहीं मिटती।

नाई को सारी बात समझ में आ गयी। नाई ने उसी दिन घर लौटकर सातों घड़े यक्ष को वापस कर दिये।

घड़ों के वापस जाने के बाद नाई का जीवन फिर से खुशियों से भर गया था।

*कहानी हमें बताती है कि हमें कभी लोभ नहीं करना चाहिए। भगवान ने हम सभी को अपने कर्मों के अनुसार चीजें दी हैं, हमारे पास जो है, हमें उसी से खुश रहना चाहिए। अगर हम लालच करे तो सातवें घड़े की

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एक लड़का नौकरी कि तलाश कर रहा था वह सेल्समैन की नौकरी ढूंढ रहा था पर उसे कहीं भी नौकरी नही मिली क्योंकि उसे अंग्रेजी नही आती थी!

उसने और एक जगह इंटरव्यू दिया पर वहां भी उसे यही पूछा गया कि अंग्रेजी जानते हो? उसने मैनेजर से कहा कि साहब अंग्रेजी से क्या करना, यदि मैं अंग्रेजी वालों से ज्यादा बिक्री न करके दिखा दूं तो मुझे तनख्वाह मत दीजिएगा!

मैनेजर को उस लड़के बात जम गई उसे नौकरी पर रख लिया गया!

अगले दिन से ही दुकान की बिक्री पहले से ज्यादा बढ़ गई एक ही सप्ताह के अंदर लड़के ने तीन गुना ज्यादा माल बेचकर दिखाया!

स्टोर के मालिक को जब पता चला कि एक नए सेल्समैन की वजह से बिक्री इतनी ज्यादा बढ़ गई है तो वह खुद को रोक न सका फौरन उस लड़के से मिलने के लिए स्टोर पर पहुंचा!

लड़का उस वक्त एक ग्राहक को मछली पकड़ने का कांटा बेच रहा था मालिक थोड़ी दूर पर खड़ा होकर देखने लगा!

लड़के ने कांटा बेच दिया ग्राहक ने कीमत पूछी लड़के ने कहा 500 रूपए, यह कहकर लड़के ने ग्राहक के जूतों की ओर देखा और बोला सर, इतने मंहगे जूते पहनकर मछली पकड़ने जाएंगे क्या? खराब हो जाएंगे एक काम कीजिए, एक जोड़ी सस्ते जूते और ले लीजिए,ग्राहक ने जूते भी खरीद लिए अब लड़का बोला तालाब किनारे धूप में बैठना पड़ेगा एक टोपी भी ले लीजिए, ग्राहक ने टोपी भी खरीद ली, अब लड़का बोला मछली पकड़ने में पता नहीं कितना समय लगेगा कुछ खाने पीने का सामान भी साथ ले जाएंगे तो बेहतर होगा ग्राहक ने बिस्किट, नमकीन, पानी की बोतलें भी खरीद लीं!

अब लड़का बोला मछली पकड़ लेंगे तो घर कैसे लाएंगे एक बॉस्केट भी खरीद लीजिए, ग्राहक ने वह भी खरीद ली कुल 2000 रूपए का सामान लेकर ग्राहक चलता बना!

मालिक यह नजारा देखकर बहुत खुश हुआ उसने लड़के को बुलाया और कहा तुम तो कमाल के आदमी हो यार, जो आदमी केवल मछली पकड़ने का कांटा खरीदने आया था उसे इतना सारा सामान बेच दिया?

लड़का बोला कांटा खरीदने? अरे वह आदमी तो “स्टे फ्री पैक” खरीदने आया था, मैंने उससे कहा अब चार दिन तू घर में बैठा बैठा क्या करेगा जा के मछली पकड़!

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मेरा एक दोस्त मुझे बता रहा था कि कल उसने बहुत अलग सा सपना देखा !

मैंने उत्सुकता से पूंछा :- ” ऐसा क्या अलग था भाई तेरे सपने में ? ”

दोस्त बताने लगा :- ” कल सुबह-सुबह मुझे सपने में “5” नंबर दिखा, जो सोने से बना हुआ था और उसमें हीरे जडे़ हुए थे और वो बेइंतहा चमक रहा था ! ये देखने के बाद मेरी नींद खुल गई और मैं समझ गया कि सुबह-सुबह दिखे इस सपने का जरुर कोई खास अर्थ होगा !
मैंने अखबार उठाया और सीधे उसका 5 नंबर पेज खोला तो पाया कि उसमें रेसकोर्स में होने वाली आज की रेस के बारे में खबर थी जिसमें एक खास नस्ल का घोडा़ जिसका नाम “गोल्डन-5″ था , भाग लेने वाला था ! मेरे दिमाग में मेरा सपना कौंधा और मुझे लगने लगा कि ये 5 नंबर आज मेरे लिये कुछ खास मायने रखता है !”

मेरी उत्सुकता बढी़ और मैंने उससे पूंछा :- ” फिर क्या हुआ भाई !! ”

उसने आगे बताना शुरु किया :- ” इसके बाद मैंने 5 मिनिट
में ब्रश किया, 5 मिनिट में नहाया, नाश्ते में 5 सैंडबिच खाई और 5 कप काफी पी और 5 नंबर की बस पकड़कर सीधा रेसकोर्स पहुंचा ! वहां भी मैंने 5 नंबर वाली खिड़की पे जाकर उस “गोल्डन-5″ नाम के घोडे़ पर 55,555 रुपये लगाये और पांच नंबर गेट से रेसकोर्स के अंदर पहुंचा ! वहां मैंने बैठने के लिये ऐसी कुर्सी चुनी जिसमें मेरे दोनो तरफ पांच-पांच लोग थे ! ”

अब मेरी उत्सुकता चरम पर थी, सो मैंने पूंछा :- ” फिर क्या हुआ , तेरा घोड़ा रेस जीता ?? ”

दोस्त :- ” कहां यार ! वो साला पांचवे नंबर पे आया !! “

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एक बार पांच बंदरों को एक पिंजरे में बंद कर दिया गया और बीचों बीच एक सीढी लगा दी जिसके ऊपर केले लटक रहे थे
जैसा की अनुमानित था, एक बन्दर की नज़र केलों पर पड़ी वो उन्हें खाने के लिए दौ ड़ा..
जैसे ही बन्दर ने कुछ सीढ़ियां चढ़ीं उस पर ठण्डे पानी की तेज धार डाल दी गयी और उसे उतर कर भागना पड़ा..
पर वैज्ञानिक यहीं नहीं रुके,उन्होंने एक बन्दर के किये गए की सजा बाकी बन्दरों को भी दे डाली और सभी को ठन्डे पानी से भिगो दिया..
बेचारे बन्दर हक्के-बक्के एक कोने में दुबक कर बैठ गए..पर वे कब तक बैठे रहते,
कुछ समय बाद एक दूसरे बन्दर को केले खाने का मन किया..और वो उछलता कूदता सीढ़ी की तरफ दौड़ा..
अभी उसने चढ़ना शुरू ही किया था कि पानी की तेज धार से उसे नीचे गिरा दिया गया..
और इस बार भी इस बन्दर के गुस्ताखी की सज़ा बाकी बंदरों को भी दी गयी..
एक बार फिर बेचारे बन्दर सहमे हुए एक जगह बैठ गए…
थोड़ी देर बाद जब तीसरा बन्दर केलों के लिए लपका तो एक अजीब वाकया हुआ..
..बाकी के बन्दर उस पर टूट पड़े और उसे केले खाने से रोक दिया, ताकि एक बार फिर उन्हें ठन्डे पानी की सज़ा ना भुगतनी पड़े..
अब वैज्ञानिकों ने एक और मज़ेदार चीज़ की..
पिंजरे के अंदर बंद, बंदरों में से एक को बाहर निकाल दिया और एक नया बन्दर अंदर डाल दिया..
नया बन्दर वहां के नियम नहीं जानता था.वो तुरंत ही केलों की तरफ लपका..
..पर बाकी बंदरों ने झट से उसकी पिटाई कर दी..उसे समझ नहीं आया कि आख़िर क्यों ये बन्दर ख़ुद भी केले नहीं खा रहे और उसे भी नहीं खाने दे रहे..
ख़ैर उसे भी समझ आ गया कि केले सिर्फ देखने के लिए हैं खाने के लिए नहीं..
इसके बाद वैज्ञानिकों ने एक और पुराने बन्दर को निकाला और नया अंदर कर दिया..
इस बार भी वही हुआ नया बन्दर केलों की तरफ लपका पर बाकी के बंदरों ने उसकी धुनाई कर दी
…और मज़ेदार बात ये है कि पिछली बार आया नया बन्दर भी धुनाई करने में शामिल था..जबकि उसके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था!
प्रयोग के अंत में सभी पुराने बन्दर बाहर जा चुके थे और नए बन्दर, अंदर थे जिनके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था..
..पर उनका व्यवहार भी पुराने बंदरों की तरह ही था..वे भी किसी नए बन्दर को केलों को नहीं छूने देते..
##
मित्रों, हमारे समाज में भी ये आचरण देखा जा सकता है..
जब भी कोई नया काम शुरू करने की कोशिश करता है,चाहे वो पढ़ाई, खेल, व्यापार, राजनीति, समाजसेवा या किसी और क्षेत्र से जुड़ा हो, उसके आस पास के लोग उसे ऐसा करने से रोकते हैं..उसे असफल होने का डर दिखाया जाता है..
..और मज़े की बात ये है कि उसे रोकने वाले अधिकांश लोग वो होते हैं जिन्होंने ख़ुद उस क्षेत्र में कभी हाथ भी नहीं आज़माया होता..
..इसलिए यदि आप भी कुछ नया करने की सोच रहे हैं और आपको भी समाज या आस पास के लोगों का विरोध सहन करना पड़ रहा है तो थोड़ा संभल कर रहिये..
अपने तर्क और क़ाबीलियत की सुनिए..ख़ुद पर और अपने लक्ष्य पर विश्वास क़ायम रखिये..और बढ़ते रहिये..
कुछ बंदरों की ज़िद्द के आगे आप भी बन्दर मत बन जाइए…
मेरा भारत बदल रहा है ……..हरीश शर्मा

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श्री रंग जी मंदिर के दाहिने हाथ यमुना जी के जाने वाली पक्की सड़क के आखिर में ही यह रमणीय टटिया स्थान है। विशाल भूखंड पर फैला हुआ है।
किन्तु कोई दीवार, पत्थरो की घेराबंदी नहीं है केवल बॉस की खपच्चियाँ या टटियाओ से घिरा हुआ है इसलिए तटिया स्थान के नाम से प्रसिद्ध है।
संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी महाराज की तपोस्थली है।
यह एक ऐसा स्थल है जहाँ के हर वृक्ष और पत्तों में भक्तो ने राधा कृष्ण की अनुभूति की है, संत कृपा से राधा नाम पत्ती पर उभरा हुआ देखा है।

स्वामी श्री हरिदास जी की शिष्य परंपरा के सातवे आचार्य श्री ललित किशोरी जी ने इस भूमि को अपनी भजन स्थली बनाया था। उनके शिष्य महंत श्री ललितमोहनदास जी ने सं १८२३ में इस स्थान पर ठाकुर श्री मोहिनी बिहारी जी को प्रतिष्ठित किया था।
तभी चारो ओर बॉस की तटिया लगायी गई थी तभी से यहाँ के सेवा पुजाधिकारी विरक्त साधू ही चले आ रहे है.उनकी विशेष वेशभूषा भी है।
श्रीमोहिनी बिहारी जी का श्री विग्रह प्रतिष्ठित है।
मंदिर का अनोखा नियम…
ऐसा सुना जाता है कि श्री ललितमोहिनिदास जी के समय इस स्थान का यह नियम था कि जो भी आटा-दाल-घी दूध भेट में आवे उसे उसी दिन ही ठाकुर भोग ओर साधू सेवा में लगाया जाता है।
संध्या के समय के बाद सबके बर्तन खाली करके धो माज के उलटे करके रख दिए जाते है,कभी भी यहाँ अन्न सामग्री कि कमी ना रहती थी।
एक बार दिल्ली के यवन शासक ने जब यह नियम सुना तो परीक्षा के लिए अपने एक हिंदू कर्मचारी के हाथ एक पोटली में सच्चे मोती भर कर सेवा के लिए संध्या के बाद रात को भेजे।
श्री महंत जी बोले -वाह खूब समय पर आप भेट लाये है। महंत जी ने तुरंत उन्हें खरल में पिसवाया ओर पान बीडी में भरकर श्री ठाकुर जी को भोग में अर्पण कर दिया कल के लिए कुछ नहीं रखा।
असी संग्रह रहित विरक्त थे श्री महंत जी।
उनका यह भी नियम था कि चाहे कितने मिष्ठान व्यंजन पकवान भोग लगे स्वयं उनमें से प्रसाद रूप में कणिका मात्र ग्रहण करते सब पदार्थ संत सेवा में लगा देते ओर स्वयं मधुकरी करते।

इस स्थान के महंत पदासीन महानुभाव अपने स्थान से बाहर कही भी नहीं जाते स्वामी हरिदास जी के आविर्भाव दिवस श्री राधाष्टमी के दिन यहाँ स्थानीय ओर आगुन्तक भक्तो कि विशाल भीड़ लगती है।
श्री स्वामी जी के करुआ और दंड के उस (राधाष्टमी)दिन दर्शन कराए जाते है
उस दिन विशेष प्रकार कि स्वादिष्ट अरबी(शाग) का भोग लगता है ओर बटता है। जो दही ओर घी में विशेष प्रक्रिया से तैयार की जाती है यहाँ का अरबी प्रसाद प्रसिद्ध है। इसे सखी संप्रदाय का प्रमुख स्थान माना जाता है।

एक दिन श्रीस्वामी ललितमोहिनी देव जी संत-सेवा के पश्चात प्रसाद पाकर विश्राम कर रहे थे, किन्तु उनका मन कुछ बिचलित सा था। वे बार-बार आश्रम के प्रवेश द्वार की तरफ देखते, वहाँ जाते और फिर लौट आते।
वहाँ रह रहे संत ने पूंछा – स्वामी जी ! किसको देख रहे है आपको किसका इन्तजार है?
स्वामी जी बोले – एक मुसलमान भक्त है श्री युगल किशोर जी की मूर्तियाँ लाने वाला है उसका इन्तजार कर रहा हूँ।
इतने मे वह मुसलमान भक्त सिर पर एक घड़ा लिए वहाँ आ पहुँचा और दो मूर्तियों को ले आने की बात कही। श्री स्वामी जी के पूंछने पर उसने बताया, कि डींग के किले में भूमि कि खुदाई चल रही है।
मै वहाँ एक मजदूर के तौर पर खुदाई का काम कई दिन से कर रहा हूँ। कल खुदाई करते में मुझे यह घड़ा दीखा तो मैंने इसे मुहरो से भरा जान कर फिर दबा दिया ताकि साथ के मजदूर इसे ना देख ले।
रात को फिर मै इस कलश को घर ले आया खुदा का लाख लाख शुक्र अदा करते हुए कि अब मेरी परिवार के साथ जिंदगी शौक मौज से बसर होगी घर आकर जब कलश में देखा तो इससे ये दो मूर्तियाँ निकली, एक फूटी कौड़ी भी साथ ना थी।
स्वामी जी – इन्हें यहाँ लाने के लिए तुम्हे किसने कहा?
मजदूर – जब रात को मुझे स्वप्न में इन प्रतिमाओ ने आदेश दिया कि हमें सवेरे वृंदावन में टटिया स्थान पर श्री स्वामी जी के पास पहुँचा दो इसलिए में इन्हें लेकर आया हूँ।
स्वामी जी ने मूर्तियों को निकाल लिया और उस मुसलमान भक्त को खाली घड़ा लौटते हुए कहा भईया! तुम बड़े भाग्यवान हो भगवान तुम्हारे सब कष्ट दूर करेगे।
वह मुसलमान मजदूर खाली घड़ा लेकर घर लौटा, रास्ते में सोच रहा था कि इतना चमत्कारी महात्मा मुझे खाली हाथ लौटा देगा – मैंने तो स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा था। आज की मजदूरी भी मारी गई। घर पहुँचा एक कौने में घड़ा धर दिया और उदास होकर एक टूटे मांझे पर आकर सो गया।
पत्नी ने पूँछा – हो आये वृंदावन?
क्या लाये फकीर से?
भर दिया घड़ा अशर्फिर्यो से?
क्या जवाव देता इस व्यंग का?
उसने आँखे बंद करके करवट बदल ली।
पत्नी ने कोने में घड़ा रखा देखा तो लपकी उस तरफ देखती है कि घड़ा तो अशर्फियों से लबालव भरा है,
आनंद से नाचती हुई पति से आकर बोली मियाँ वाह ! इतनी दौलत होते हुए भी क्या आप थोड़े से मुरमुरे ना ला सके बच्चो के लिए?
अशर्फियों का नाम सुनते ही भक्त चौककर खड़ा हुआ और घड़े को देखकर उसकी आँखों से अश्रु धारा वह निकली।
बोला मै किसका शुक्रिया करू, खुदा का, या उस फकीर का जसने मुझे इस कदर संपत्ति बख्शी। फिर इन अशर्फिर्यो के बोझे को सिर पर लाद लाने से भी मुझे बारी
रखा आप की अहैतु की कृपा
जय जय श्री हरिदास दुलारी

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एक व्यक्ति का दिन बहुत खराब गया. उसने रात को ईश्वर से फ़रियाद की.
व्यक्ति ने कहा,
‘भगवान, ग़ुस्सा न हों तो एक प्रश्न पूछूँ ?
भगवान ने कहा,
‘पूछ, जो पूछना हो पूछ;
व्यक्ति ने कहा,
‘भगवान, आपने आज मेरा पूरा दिन एकदम खराब क्यों किया ?
भगवान हँसे ……
पूछा, पर हुआ क्या ?
व्यक्ति ने कहा,
‘सुबह अलार्म नहीं बजा, मुझे उठने में देरी हो गई……’
भगवान ने कहा, अच्छा फिर…..’
व्यक्ति ने कहा,
देर हो रही थी,उस पर स्कूटर बिगड़ गया. मुश्किल से रिक्शा मिला .’
भगवान ने कहा, अच्छा फिर……’
व्यक्ति ने कहा,
टिफ़िन ले नहीं गया था, वहां कैन्टीन बंद थी….एक सैन्डविच पर दिन निकाला, वो भी खराब थी ;
भगवान केवल हँसे…….
व्यक्ति ने फ़रियाद आगे चलाई , ‘मुझे काम का एक महत्व का फ़ोन आया था और फ़ोन बंद हो गया ;
भगवान ने पूछा…..’ अच्छा फिर….’
व्यक्ति ने कहा,
विचार किया कि जल्दी घर जाकर AC चलाकर सो जाऊं , पर घर पहुँचा तो लाईट गई थी .
भगवान…. सब तकलीफें मुझे ही. ऐसा क्यों किया मेरे साथ ?
भगवान ने कहा,
‘ देख , मेरी बात ध्यान से सुन .
आज तुझ पर कोई आफ़त थी.
मेरे देवदूत को भेजकर मैंने रुकवाई . अलार्म बजे ही नहीं ऐसा किया . स्कूटर से एक्सीडेंट होने का डर था इसलिए स्कूटर बिगाड़ दिया . केन्टीन में खाने से फ़ूड पॉइजन हो जाता .
फ़ोन पर बड़ी काम की बात करने वाला आदमी तुझे बड़े घोटाले में फँसा देता . इसलिए फ़ोन बंद कर दिया .
तेरे घर में आज शार्ट सर्किट से आग लगती, तू सोया रहता और तुझे ख़बर ही नहीं पड़ती . इसलिए लाईट बंद कर दी !
मैं हूं न …..,
मैंने ये सब तुझे बचाने के लिए किया;
व्यक्ति ने कहा,
भगवान,मुझसे भूल हो गई . मुझे माफ कीजिए . आज के बाद फ़रियाद नहीं करूँगा ;
भगवान ने कहा,
माफी माँगने की ज़रूरत नहीं , परंतु विश्वास रखना कि मैं हूं न….,
मैं जो करूँगा , जो योजना बनाऊँगा वो तेरे अच्छे के लिए ही ।
जीवन में जो कुछ अच्छा – खराब होता है उसकी सही असर लम्बे वक़्त के बाद समझ में आता है.
मेरे किसी भी कार्य पर शंका न कर , श्रद्धा रख .
जीवन का भार अपने ऊपर लेकर घूमने के बदले मेरे कंधों पर रख दे .
मैं हूं न……,

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(((( ठाकुर का गूजरी प्रेम ))))
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एक गूजरी रोजाना मदन मोहन जी करौली वालो के मदिर मे दूध देने आया करती थी।
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लोभवश वह दूध मे पानी मिलाया करती थी। किन्तु मदन मोहन जी का उस गूजरी का आपस मे बडा प्रेम था।
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एक दिन गूजरी ने दूध मे किसी बावडी का पानी मिलाया और भाग्यवश उसमे मछली आ गई।
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जब गुसॉई जी ने मछली देखी तो गूजरी को फटकार लगाते हुए दूध देने की सेवा से हटा दिया।
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गूजरी ने दो दिन मदन मोहन जी के दर्शन वियोग मे कुछ नही खाया और रोते रही।
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तीसरे दिन सुबह मदन मोहन जी उसके घर पहुच कर दूध मांगते हुऐ कहने लगे मै यदि दूध पीयूँगा तो सिर्फ तुम्हारा लाया हुआ ही पीयूँगा..
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और इसी बात के बीच ही गुसॉई जी ने मदिंर मे उत्थापन की घटीं बजा दी।
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मदन मोहन जी भागने के उपक्म् मे अपना पीताबरं वही छोड कर गूजरी की ओढनी लपेट कर मदिरं मे खडे हो गये।
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जब गुसॉई जी ने ठाकुर जी का दर्शन किया तो आनदं विभोर हो कर पूछने लगे की आप यह ओढनी किसकी ले आये है।
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तभी वह गूजरी भी ठाकुर जी का पीताबरं लिये मदिरं मे पहुच गई।
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अब गुसॉई जी को भक्त और भगवान की इस प्रेम लीला को समझने मे समय नही लगा।
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तभी ठाकुर जी ने गुसॉई जी को आदेश किया की यह गूजरी मुझे बहुत अधिक प्रिय है। यह रोज मेरे दर्शन को मदिंर मे आनी चाहिये
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तब से आज भी गूजरी की याद मे मदन मोहन जी को काली ओढनी धारण करवायी जाती है।

((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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➡【#भ्रमपालेंकिमैंनाहोतातोक्या_होता?】
⛳☀शिक्षाप्रद प्रसंग☀शेयर करें☀सीखें व सिखाएं
हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा कि मैंने लंका जाकर विभीषण का घर नहीं देखा था, तब तक मुझे लगता था कि लंका में भला संत कहां मिलेंगे ? प्रभू, मैं तो समझता था कि संत सिर्फ भारत में ही होते हैं, लेकिन जब मैं लंका में सीताजी को नही ढूंढ सका और जब विभीषण ने उपाय बताया तो मैंने सोचा कि जिन्हें मैं प्रयत्न करके नहीं ढूंढ सका, उनका पता तो इन लंका वाले संत ने ही बता दिया, शायद प्रभु ने यही दिखाने के लिए भेजा था कि इस दृश्य को भी देख लो !

*अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद् हो गया ! ओह प्रभू आपने कैसी शिक्षा दी, यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो क्या होता ?बहुधा व्यक्ति को ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मुझे भी लगता कि यदि मैं न होता तो सीताजी को कौन बचाता ? पर आपने उन्हें बचाया ही नही, बल्कि बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया, जिसको इस बात की प्रसन्नता होनी चाहिए कि सीता मरे तो मेरा भय दूर हो, तब मैं समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं, किसी का कोई महत्व नहीं है !

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो मैं बड़ी चिंता में पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है तो मैं क्या करुं ? पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मैं समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया !
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नहीं जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली संत त्रिजटा की ही बात सच थी, वरना *लंका को जलाने के लिए मैं कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

इसलिये याद रखें, कि संसार मे जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मैं न होता तो क्या होता…

लष्मीकांत

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लक्षमणजी की पत्नी उर्मिला की अनसुनी कथा।

श्री रामायण को आजतक हमने अपने और इस समाज ने श्री राम की दृष्टिकोण से देखा; लक्ष्मण को देखा; देवी सीता को जाना; हनुमान के भक्ति भाव को जाना; रावण के ज्ञान को पहचाना, लेकिन कभी यह नही ध्यान दिया कि इस रामायण में अगर कोई सबसे अधिक उपेक्षित और अनदेखा पात्र था तो वो थीं लक्ष्मण की पत्नी और जनकनंदिनी सीता की अनुजा उर्मिला।

जब राम सीता वनवास को जाने लगे और बड़े आग्रह पर लक्ष्मण को भी साथ जाने की आज्ञा हुई तो पत्नी उर्मिला ने भी उनके साथ जाने का प्रस्ताव रखा परन्तु लक्ष्मण ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि अयोध्या के राज्य को और माताओं को उनकी आवश्यकता है।

असीम पतिव्रता थीं उर्मिला के उस नवयौवन कंधो पर इतना बड़ा दायित्व डाल कर लक्ष्मण चले गए। वो पल, वो जीवन सरिता जो कोई भी नववधू अपने पति के साथ गुजारती है, वो उर्मिला के नसीब में नहीं लिखी गयी थी। पतिव्रता स्त्री ने जीवन के चंचल पड़ाव पर भी, अपने पति से दूर रहने पर भी लेशमात्र भी किसी और का ध्यान नहीं किया।

यह उर्मिला का अखंड पतिव्रत धर्म था, यह उर्मिला की अवर्णित, अचर्चित, अघोषित महानता थी, उर्मिला के महान चरित्र, अखंड पतिव्रत, स्नेह और त्याग की चर्चा रामायण में अपेक्षित थी पर वो हो न सका।

हर हाल में निभाया पति को दिया वचन
सबसे विकट क्षणों में भी उर्मिला आंसू न बहा सकी क्योंकि उनके पति लक्ष्मण ने उनसे एक और वचन लिया था कि वो कभी आंसू न बहायेंगी, क्यूंकि अगर वो अपने दुःख में डूबी रहेंगी तो परिजनों का ख्याल नहीं रख पाएंगी।

दशरथ की मृत्यु पर आंसू भी नहीं बहाए
ये कोई कल्पना कर सकता है की अपने पति को 14 वर्षो के लिए अपने से दूर जाने देना और उसकी विदाई पर आंसू भी न बहाना किसी नवविवाहिता के लिए कितना कष्टकारी हो सकता है? कितना हृदयविदारक पल था वो जब परम पूज्यनीय महाराज दशरथ स्वर्ग सिधार गए, पर वचन के सम्मान रखने के लिए उर्मिला तब भी न रोईं।

पति के लिए पिता को किया इंकार महाराज जनक अपनी पुत्री को मायके अर्थात मिथिला ले जाना चाहते थे, ताकि माँ और सखियों के सान्निध्य में उर्मिला का पति वियोग का दुःख कुछ कम हो सके परन्तु उर्मिला ने मिथिला जाने से सादर इंकार कर दिया, ये कहते हुए कि अब पति के परिजनों के साथ रहना और दुखो में उनका साथ न छोड़ना ही अब उसका धर्म है।

चौदह वर्षों तक सोती रहीं बहुत से लोग इस बात से परिचित हैं कि अपने वनवास के दौरान भाई और भाभी की सेवा करने के लिए लक्ष्मण पूरे 14 साल तक नहीं सोए थे। उनके स्थान पर उनकी पत्नी उर्मिला दिन और रात सोती रहीं। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि रावण की बेटे मेघनाद को यह वरदान प्राप्त था कि जो इंसान 14 वर्षों तक ना सोया हो केवल वही उसे हरा सकता है। निद्रा देवी को दिया था।

वचन इसलिए लक्ष्मण मेघनाद को मोक्ष दिलवाने में कामयाब हुए थे। रावण के अंत और 14 वर्ष के वनवास के पश्चात जब राम, सीता और लक्ष्मण वापस अयोध्या लौटे तब वहां राम के राजतिलक के समय लक्ष्मण जोर-जोर से हंसने लगे। सभी को ये बात बेहद आश्चर्यजनक लगी कि क्या लक्ष्मण किसी का मजाक उड़ा रहे हैं?

जब लक्ष्मण से इस हंसी का कारण पूछा तो उन्होंने जो जवाब दिया कि ताउम्र उन्होंने इसी घड़ी का इंतजार किया है लेकिन आज जब यह घड़ी आई है तो उन्हें निद्रा देवी को दिया गया वो वचन पूरा करना होगा जो उन्होंने वनवास काल के दौरान 14 वर्ष के लिए उन्हें दिया था।

लक्ष्मण ने नहीं देखा भगवान राम का राजतिलक। दरअसल निद्रा ने उनसे कहा था कि वह 14 वर्ष के लिए उन्हें परेशान नहीं करेंगी और उनकी पत्नी उर्मिला उनके स्थान पर सोएंगी। निद्रा देवी ने उनकी यह बात एक शर्त पर मानी थी कि जैसे ही वह अयोध्या लौटेंगे उर्मिला की नींद टूट जाएगी और उन्हें सोना होगा।

लक्ष्मण इस बात पर हंस रहे थे कि अब उन्हें सोना होगा और वह राम का राजतिलक नहीं देख पाएंगे। उनके स्थान पर उर्मिला ने यह रस्म देखी थी।

लक्ष्मण की विजय का कारण था उर्मिला का पतिव्रत।

एक और वाकया ऐसा है जो यह बताता है की लक्ष्मण की विजय का मुख्य कारण उर्मिला थी। मेघनाद के वध के बाद उनका शव राम जी के खेमे में था जब मेघनाद की पत्नी सुलोचना उसे लेने आयी, पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया। उसकी आंखें बड़े जोरों से बरसने लगीं।

रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा- “सुमित्रानन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना की मेघनाद का वध मैंने किया है। मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी। यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था।

अब आप सोच में पड़ गये होंगे कि निद्रा देवी के प्रभाव में आकर अगर उर्मिला 14 साल तक सोती रहीं, तो सास और अन्य परिजनों की सेवा करने का लक्षमण को किया वादा उन्होंने कैसे पूरा किया। तो उसका उत्तर भी सीधा है। वो यह कि सीता माता ने अपना एक वरदान उर्मिला को दे दिया था। उस वरदान के अनुसार उर्मिला एक साथ तीन कार्य कर सकती थीं।