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परमात्मा की लाठी…#बोलोराधेराधे

एक साधु वर्षा के जल में प्रेम और मस्ती से भरा #राधे_राधे भजता चला जा रहा था….. कि इस साधु ने एक मिठाई की दुकान को देखा जहां एक कढ़ाई में गरम दूध उबला जा रहा था तो मौसम के हिसाब से दूसरी कढ़ाई में गरमा गरम जलेबियां तैयार हो रही थी साधु कुछ क्षणों के लिए वहाँ रुक गया….. शायद भूख का एहसास हो रहा था या मौसम का असर था…. साधु हलवाई की भट्ठी को बड़े गौर से देखने लगा साधु कुछ खाना चाहता था लेकिन साधु की जेब ही नहीं थी तो पैसे भला कहां से होते…. साधु कुछ पल भट्ठी से हाथ सेंकने के बाद चला ही जाना चाहता था….. कि नेक दिल हलवाई से रहा न गया और एक प्याला गरम दूध और कुछ जलेबियां साधु को दें दी… मलंग ने गरम जलेबियां गरम दूध के साथ खाई और फिर हाथों को ऊपर की ओर उठाकर हलवाई के लिऐ प्रार्थना की….. फिर आगे चल दिया….. साधु बाबा का पेट भर चुका था दुनिया के दु:खों से बेपरवाह वे फिर इक नए जोश से बारिश के गंदले पानी के छींटे उड़ाता चला जा रहा था……. वह इस बात से बेखबर था कि एक युवा नव विवाहिता जोड़ा भी वर्षा के जल से बचता बचाता उसके पीछे चला आ रहें है ……एक बार इस मस्त साधु ने बारिश के गंदले पानी में जोर से लात मारी….. बारिश का पानी उड़ता हुआ सीधा पीछे आने वाली युवती के कपड़ों को भिगो गया उस औरत के कीमती कपड़े कीचड़ से लथपथ हो गये….. उसके युवा पति से यह बात बर्दाश्त नहीं हुई…..

इसलिए वह आस्तीन चढ़ाकर आगे बढ़ा और साधु के कपड़ो से पकड़ कर कहने लगा अंधा है…… तुमको नज़र नहीं आता तेरी हरकत की वजह से मेरी पत्नी के कपड़े गीले हो गऐ हैं और कीचड़ से भर गऐ हैं….. साधु हक्का-बक्का सा खड़ा था…. जबकि इस युवा को साधु का चुप रहना नाखुशगवार गुजर रहा था….. महिला ने आगे बढ़कर युवा के हाथों से साधु को छुड़ाना भी चाहा…. लेकिन युवा की आंखों से निकलती नफरत की चिंगारी देख वह भी फिर पीछे खिसकने पर मजबूर हो गई…..

राह चलते राहगीर भी उदासीनता से यह सब दृश्य देख रहे थे लेकिन युवा के गुस्से को देखकर किसी में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उसे रोक पाते और आख़िर जवानी के नशे मे चूर इस युवक ने एक जोरदार थप्पड़ साधु के चेहरे पर जड़ दिया बूढ़ा मलंग थप्पड़ की ताब ना झेलता हुआ…. लड़खड़ाता हुऐ कीचड़ में जा पड़ा….. युवक ने जब साधु को नीचे गिरता देखा तो मुस्कुराते हुए वहां से चल दीया…..बूढे साधु ने आकाश की ओर देखा और उसके होठों से निकला वाह मेरे भगवान कभी गरम दूध जलेबियां और कभी गरम थप्पड़…. लेकिन जो तू चाहे मुझे भी वही पसंद है……..यह कहता हुआ वह एक बार फिर अपने रास्ते पर चल दिया….दूसरी ओर वह युवा जोड़ा अपनी मस्ती को समर्पित अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गया….. थोड़ी ही दूर चलने के बाद वे एक मकान के सामने पहुंचकर रुक गए……वह अपने घर पहुंच गए थे…. वे युवा अपनी जेब से चाबी निकाल कर अपनी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए ऊपर घर की सीढ़ियों तय कर रहा था….बारिश के कारण सीढ़ियों पर फिसलन हो गई थी अचानक युवा का पैर फिसल गया और वह सीढ़ियों से नीचे गिरने लगा….महिला ने बहुत जोर से शोर मचा कर लोगों का ध्यान अपने पति की ओर आकर्षित करने लगी जिसकी वजह से काफी लोग तुरंत सहायता के लिये युवा की ओर लपके….. लेकिन देर हो चुकी थी युवक का सिर फट गया था और कुछ ही देर मे ज्यादा खून बह जाने के कारण इस नौजवान युवक की मौत हो चुकी थी कुछ लोगों ने दूर से आते साधु बाबा को देखा तो आपस में कानाफुसी होने लगीं कि निश्चित रूप से इस साधु बाबा ने थप्पड़ खाकर युवा को श्राप दिया है…. अन्यथा ऐसे नौजवान युवक का केवल सीढ़ियों से गिर कर मर जाना बड़े अचम्भे की बात लगती है….. कुछ मनचले युवकों ने यह बात सुनकर साधु बाबा को घेर लिया एक युवा कहने लगा कि आप कैसे भगवान के भक्त हैं जो केवल एक थप्पड़ के कारण युवा को श्राप दे बैठे……#कान्हा_भगवान के भक्त मे रोष व गुसा हरगिज़ नहीं होता ….आप तो जरा सी असुविधा पर भी धैर्य न कर सकें….. साधु बाबा कहने लगा भगवान की क़सम मैंने इस युवा को श्राप नहीं दिया….

अगर आप ने श्राप नहीं दिया तो ऐसा नौजवान युवा सीढ़ियों से गिरकर कैसे मर गया? तब साधु बाबा ने दर्शकों से एक अनोखा सवाल किया कि आप में से कोई इस सब घटना का चश्मदीद गवाह मौजूद है? एक युवक ने आगे बढ़कर कहा….. हाँ मैं इस सब घटना का चश्मदीद गवाह हूँ साधु ने अगला सवाल किया…..मेरे क़दमों से जो कीचड़ उछला था क्या उसने युवा के कपड़े को दागी किया था? युवा बोला….. नहीं…. लेकिन महिला के कपड़े जरूर खराब हुए था साधु ने युवक की बाँहों को थामते हुए पूछा…., फिर युवक ने मुझे क्यों मारा? युवा कहने लगा…… क्योंकि वह युवा इस महिला का प्रेमी था और यह बर्दाश्त नहीं कर सका कि कोई उसके प्रेमी के कपड़ों को गंदा करे….. इसलिए उस युवक ने आपको मारा….

युवा बात सुनकर साधु बाबा ने एक जोरदार ठहाका बुलंद किया और यह कहता हुआ वहाँ से विदा हो गया…..तो भगवान की क़सम मैंने श्राप कभी किसी को नहीं दिया लेकिन कोई है जो मुझ से प्रेम रखता है…. अगर उसका यार सहन नहीं कर सका तो मेरे यार को कैसे बर्दाश्त होगा कि कोई मुझसे मारे और वह इतना शक्तिशाली है कि दुनिया का बड़े से बड़ा राजा भी उसकी लाठी से डरता है ….

उस परमात्मा की लाठी दीख़ती नही और आवाज भी नही करती लेकिन पडती हैं तों बहुत दर्द देंती हैं हमारें कर्म ही हमें उसकी लाठ़ी से बचातें हैं बस़ कर्म अच्छें होंने चाहीऐं…
राधे राधे

लष्मीकांत वर्षनाय

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एक आदमी एक दस साल के लड़के के साथ नाई की दुकान पर पहुंचा
और नाई से बोला कि उसे पास ही कहीं
जरुरी काम से जाना है….😊
.
.
इसलिये वो पहले उसकी कटिंग कर
दें,फिर उसके बाद लड़के की कटिंग कर दे..😁😁
.
.
नाई ने पहले उसकी कटिंग कर दी
तो उसने बालक को अपनी
ज़गह कुर्सी पर बिठाया,
उसके सिर पर प्यार से हाथ फ़ेरा और कहा…
“आराम से कटिंग कराना,
अंकल को
तंग न करना…”😀😊😊
.
.
.
.
इतना कहकर वो वहां से
चला गया😃
.
नाई ने लड़के की कटिंग की, उसे कुर्सी से उतारा और
कहा,…
.😊
“तू उधर बैठ जा, बेटा, तेरे
डैडी अभी आते होंगे…”😃
..
.
लड़का: अंकल वो मेरे डैडी
थोड़े ही थे…!😁
.
नाई: तो अंकल होंगे,
बेटा…???😁
.
लड़का: नहीं…!😃
.
..
नाई: अबे तो कौन थे वो….?😁😈
.
लड़के: मुझे क्या पता कौन
थे,
.😁
मैं तो गली में खेल रहा था कि
वो आकर बोले कि फ़्री में
कटिंग करायेगा ?😂
.
मैंने कहा, “कराऊंगा” और मैं
उसके
साथ यहां चला आया….😂😂
😜😝😂😂😂
जालिम दुनिया ने नाई को भी नहीं छोडा

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मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा :
देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए

सबसे सस्ती वस्तु क्या है ?

मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता !

तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा :
राजन,

सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है,

इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है । सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे ।
तब सम्राट ने उनसे पूछा :
आपका इस बारे में क्या मत है ?

चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा !

रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया ।

प्रधानमंत्री ने कहा :
शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय 💓 का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं । इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें ।

यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और

उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें ।

प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और

सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं ।

इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख दीं ।

सम्राट ने पूछा :
यह सब क्या है ? तब प्रधानमंत्री ने बताया कि दो तोला मांस खरिदने के लिए

इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला ।

राजन ! अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है ?

जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है। लेकिन वो अपना जान बचाने मे असमर्थ है।

और मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर आदि आदि ।

पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं ।

तो क्या बस इसी कारण उनस जीने का अधिकार छीन लिया जाय ।

शुद्ध आहार, शाकाहार !
मानव आहार, शाकाहार !

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,
एक रात, चार कॉलेज विद्यार्थी देर तक
मस्ती 👯 👯 करते रहे और
जब होश आया तो अगली सुबह होने
वाली परीक्षा का भूत 😱
उनके सामने आकर खड़ा हो गया।
,
परीक्षा से बचने के लिए उन्होंने एक
योजना 😎 बनाई।
,
👳 मैकेनिकों जैसे गंदे और फटे पुराने
कपड़े पहनकर
वे प्रिंसिपल 👮 के
सामने जा खड़े हुए और उन्हें
अपनी दुर्दशा की जानकारी दी।
,
उन्होंने 👷 प्रिंसिपल को बताया कि कल रात वे
चारों एक दोस्त
की शादी में गए हुए थे।
.
लौटते में गाड़ी 🚗
का टायर
पंक्चर
हो गया।
.
किसी तरह धक्का लगा-लगाकर
गाड़ी को यहां तक
लाए हैं। इतनी थकान है कि बैठना भी संभव
नहीं दिखता, पेपर
हल करना तो दूर की बात है।
,
यदि 👷 प्रिंसिपल साहब उन
चारों की परीक्षा आज के बजाय किसी
और दिन
ले लें
तो बड़ी मेहरबानी 😇 होगी।
,
👷 प्रिंसिपल साहब बड़ी आसानी से मान गए।
उन्होंने तीन दिन
बाद का समय दिया। विद्यार्थियों ने प्रिंसिपल
साहब
को धन्यवाद 🙏 दिया और जाकर
परीक्षा की तैयारी में लग गए।
,
तीन दिन बाद जब वे परीक्षा 📝 देने पहुंचे
तो 👷 प्रिंसिपल ने
बताया कि यह विशेष परीक्षा केवल उन चारों के
लिए
ही आयोजित की गई है। चारों को अलग-अलग
कमरों में
बैठना होगा।
.
चारों 💃 विद्यार्थी अपने-अपने नियत कमरों में
जाकर बैठ गए।
.
जो प्रश्नपत्र उन्हें दिया गया उसमें केवल
एक ही प्रश्न था
,
,
,
,
,
,
गाड़ी का कौनसा टायर पंक्चर हुआ था ?
( १०० अंक )
अ. अगला बायां 🙀
ब. अगला दायां 😿
स. पिछला बायां 😾
द. पिछला दाया 😼
😝
चारो फस गये साले 😃 😃
क्योंकि
चारों का उत्तर अलग अलग था।
,
आखिर गुरु गुरु ही होता है 😝 😝 😎😎
.
😝 😝 👌 👌 😇

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प्रेम

एक वैज्ञानिक ने एक अदभुत काम किया इधर। कैक्टस का एक पौधा, जिसमें कांटे ही कांटे होते हैं और जिसमें कभी बिना कांटे की कोई शाखा नहीं होती, एक अमरीकन वैज्ञानिक उस पौधे को बहुत प्रेम करता रहा। लोगों ने तो समझा कि पागल है, क्योंकि पौधे को प्रेम करना! अरे आदमी को ही प्रेम करने वाले को बाकी लोग पागल समझते हैं, तो पौधे को प्रेम करने वाले को तो कौन समझदार समझेगा! उसके घर के लोगों ने भी समझा कि दिमाग खराब हो गया है। वह सुबह से उठता तो वह पौधा ही पौधा था। उसी को प्रेम करता, उससे बातें भी करता। तब तो और पागलपन हो गया। वृक्ष से तो बातें हो कैसे सकती हैं?

उस वैज्ञानिक ने जब यह घोषणा की कि मैं एक वृक्ष से बातें शुरू किया हूं और मुझे आशा है कि मैं सफल हो जाऊंगा। तो सारे अमरीका में उसकी हंसी उड़ी, सारे अखबारों में उसकी फोटो छपी कि यह आदमी पागल हो गया। कहीं कोई वृक्ष से बातें किया है कभी? लेकिन वह अदभुत पागल आदमी था कि अपने काम में लगा रहा। इस कैक्टस के पौधे से, जिसमें कांटे ही कांटे होते हैं, वह रोज सुबह बैठ कर घंटे भर बातें करता, उससे प्रेम करता, उस पर पानी सींचता, जितने हृदय के भाव होते उसको बताता। वृक्ष तो चुप रहता, वृक्ष क्या बोलेगा, वृक्ष तो कभी बोला ही नहीं है, इसलिए एकतरफा ही बातें होतीं, वह वैज्ञानिक खुद ही उस पौधे से कुछ कहता रहता।

उसकी पत्नी भी परेशान हो गई, उसके बच्चे भी हैरान हुए। उन्होंने कहा, यह क्या पागलपन किया? बदनामी होगी। इससे कोई फल आने वाला है!

लेकिन उसने कहा कि मैं प्रतीक्षा करूंगा। और उस पौधे से उसने क्या कहा? उस पौधे से सारी बातें करता, जैसे कोई मित्रों से करता है। और अंत में एक बात रोज उससे कह देता। उससे कह देता कि मैं तो तुमसे कह रहा हूं, पता नहीं मेरी भाषा तुम समझते हो या नहीं समझते हो, पता नहीं तुम तक मेरी बातें पहुंचेंगी या नहीं पहुंचेंगी, लेकिन अगर मेरा प्रेम तुम तक पहुंच जाए तो तुम किसी इशारे से जाहिर तो कर ही सकते हो कि मेरा प्रेम तुम तक पहुंच गया। तो मैं तुम्हें बताता हूं, तुम यह इशारा कर देना तो मैं समझ जाऊंगा। और उसने क्या कहा? उसने यह कहा कि तुम्हारे इस पौधे में–कांटों वाला पौधा है कैक्टस का, उसमें कांटे ही कांटे हैं–अगर एक ऐसी शाखा निकल आए जिसमें कांटे न हों, तो मैं समझ जाऊंगा कि मेरी बातें तुम तक पहुंचीं।

उस पौधे में कभी बिना कांटे की कोई शाखा नहीं निकली, यह तो असंभव ही था। लेकिन सात साल तक वह यह कहता रहा। और तुम हैरान हो जाओगे, एक दिन ऐसा आया कि उस पौधे में एक शाखा निकली जिसमें कांटे नहीं थे। तब तो सारा अमरीका स्वीकार किया, सारी दुनिया ने स्वीकृति दी कि जरूर मनुष्य की प्रेम की वह आवाज उस पौधे के प्राणों तक भी पहुंची, अन्यथा वह शाखा कैसे निकलती जिसमें कांटे नहीं हैं? सारी शाखाएं कांटों वाली, एक शाखा बिना कांटे की भी निकल आई। पौधा भी, अगर सतत उसके साथ प्रेम किया गया, उत्तर दिया उसने।

तो अगर तुम जिंदगी से पूछो–पत्थरों से, पौधों से, आदमियों से, आकाश से, तारों से–तो सब तरफ से उत्तर मिलेंगे। लेकिन तुम पूछो ही नहीं, तो उत्तरों की वर्षा नहीं होती, ज्ञान कहीं बरसता नहीं किसी के ऊपर। उसे तो लाना पड़ता है, उसे तो खोजना पड़ता है। और खोजने के लिए सबसे बड़ी जो बात है वह हृदय के द्वार खुले हुए होने चाहिए। वे बंद नहीं होने चाहिए। दुनिया की तरफ से दरवाजे बंद नहीं होने चाहिए, बिलकुल खुला हुआ मन होना चाहिए। और जो भी आए चारों तरफ से, निरंतर सजग रूप से, होशपूर्वक उसे समझने, सोचने और विचारने की दृष्टि बनी रहनी चाहिए।

समाधि कमल

*🌹ओशो

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भगवान श्रीकृष्ण के साक्षात विग्रह गोविंद देव जी की कथा

जयपुर के आराध्य गोविन्द देवजी का विग्रह (प्रतिमा) भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरुप है। पौराणिक इतिहास, किवदंतियों और कथाओं की मानें तो यह कहा जाता है कि श्रीगोविन्द का विग्रह हूबहू भगवान श्रीकृष्ण के सुंदर और नयनाभिराम मुख मण्डल व नयनों से मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण के तीन विग्रह बनाए गए। तीनों विग्रह ही राजस्थान में है। दो विग्रह तो जयपुर में है और तीसरे विग्रह करौली में श्री मदन मोहन जी के नाम से ख्यात है। जयपुर में श्री गोविन्द देवजी के अलावा श्री गोपीनाथ जी का विग्रह है। यह विग्रह भी उतना ही पूजनीय और श्रद्धावान है, जितने गोविन्द देव जी और मदन मोहन जी का विग्रह है। तीनों ही विग्रह भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरुप माने जाते हैं। इतिहासविदें और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने ये तीनों विग्रह बनवाए थे। अर्जुन के पौत्र महाराज परीक्षित ने बज्रनाभ को मथुरा मण्डल का राजा बनाया था। बज्रनाभ की अपने पितामह श्रीकृष्ण के प्रति खासी श्रद्धा थी और उसने मथुरा मण्डल में श्रीकृष्ण जी की लीला स्थलियों का ना केवल उद्धार किया, बल्कि उनका साक्षात विग्रह बनाने का निश्चय किया। बज्रनाभ की दादी ने भगवान श्रीकृष्ण को देखा था। दादी के बताए अनुसार बज्रनाभ ने श्रेष्ठ कारीगरों से विग्रह तैयार करवाया। इस विग्रह को देखकर बज्रनाभ की दादी ने कहा, कि भगवान श्रीकृष्ण के पांव और चरण तो उनके जैसे ही हैं, पर अन्य बनावट भगवान श्री से नहीं मिलते हैं। बज्रनाभ ने इस विग्रह को मदन मोहन जी का नाम दिया। यह विग्रह करौली में विराजित है। बज्रनाभ ने दूसरा विग्रह बनवाया, जिसे देखकर दादी ने कहा कि इसके वक्षस्थल और बाहु भगवान स्वरुप ही है। शरीर के दूसरे अवयव भगवान श्रीकृष्ण से मेल नहीं खाते हैं। इस विग्रह को बज्रनाभ ने भगवान श्री गोपीनाथ जी का स्वरुप कहा। भगवान का यह स्वरुप पुरानी बस्ती में भव्य मंदिर में विराजित है। दादी के बताए हुलिये के आधार पर तीसरा विग्रह बनवाया गया तो उसे देखकर बज्रनाभ की दादी के नेत्रों से खुशी के आसूं छलक पड़े और उसे देखकर दादी कह उठी कि भगवान श्रीकृष्ण का अलौकिक, नयनाभिराम और अरविन्द नयनों वाला सुंदर मुखारबिन्द ठीक ऐसा ही था। भगवान का यह तीसरा विग्रह श्री गोविन्द देवजी का स्वरुप कहलाया, जो जयपुर के सिटी पैलेस के पीछे जयनिवास उद्यान में है। भगवान के इस अलौकिक विग्रह को देखकर को बज्रनाभ भी आनान्दित हो गए। फिर उन तीनों विग्रह को विधि-विधान से भव्य मंदिर बनाकर विराजित किए। भगवान श्रीकृष्ण के साक्षात स्वरुप के विग्रह होने के कारण भक्तों में इनके प्रति खासी श्रद्धा है और मान्यता भी है। तीनों विग्रहों के दर्शन के लिए रोजाना लाखों भक्त आते हैं और हर हिन्दू इनके दर्शन को लालायित रहता है। श्री गोविन्ददेवजी तो जयपुर के आराध्य है। आज भी हजारों नागरिक ऐसे हैं, जो मंगला आरती से पहले ही भगवान के दर्शन के लिए मंदिर पहुंच जाते हैं और इनके दर्शन के बाद ही कोई कार्य शुरु करते हैं। जयपुर राजपरिवार तो भगवान श्रीकृष्ण को राजा और खुद को उनका दीवान मानकर सेवा-पूजा करता रहा है। ठाकुरजी की झांकी अत्यधिक मनोहारी है। जयपुर घूमने आए हर पर्यटक (हिन्दू धर्मावलम्बी)श्रीगोविन्द देव जी के दर्शन करने जरुर आते हैं। ऐसा ही कुछ आकर्षण भगवान श्री गोपीनाथ जी और श्री मदन मोहन के विग्रह का है, जो भक्तों को अपने साथ बांधे रखता है। कहा जाता है कि इन तीनों विग्रहों के दर्शन एक दिन में ही करने को काफी शुभ माना जाता है।
जयपुर के राजाओं ने बचाया विग्रह
जिस तरह भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रह (श्री मदन मोहन जी, श्री गोपीनाथ जी और श्री गोविन्द देवजी) के निर्माण का इतिहास रोचक है, वैसे ही भगवान के विग्रहों को आततायी शासकों से सुरक्षित बचाए रखने और इन्हें पुर्न विराजित करने का इतिहास भी उतना ही प्रेरणादायी है।
श्री गोविन्द देवजी, श्री गोपीनाथ जी और श्री मदन मोहन जी का विग्रह करीब पांच हजार साल प्राचीन माना जाता है। बज्रनाभ शासन की समाप्ति के बाद मथुरा मण्डल व अन्य प्रांतों पर यक्ष जाति का शासन रहा। यक्ष जाति के भय व उत्पाद के चलते पुजारियों ने तीनों विग्रह को भूमि में छिपा दिया। गुप्त शासक नृपति परम जो वैष्णव अनुयायी थे। इन्होंने भूमि में सुलाए गए स्थलों को खोजकर भगवान के विग्रहों को फिर से भव्य मंदिर बनाकर विराजित करवाया। फिर दसवीं शताब्दी में मुस्लिम शासक महमूद गजनवी के आक्रमण बढ़े तो फिर से भगवान श्रीकृष्ण के इन विग्रहों को धरती में छिपाकर उस जगह पर संकेत चिन्ह अंकित कर दिए। कई सालों तक मुस्लिम शासन रहने के कारण पुजारी और भक्त इन विग्रह के बारे में भूल गए। सोलहवीं सदी में ठाकुरजी के परम भक्त चैतन्यू महाप्रभु ने अपने दो शिष्यों रुप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी को वृन्दावन को भेजकर भगवान श्रीकृष्ण के लीला स्थलों को खोजने को कहा। दोनों शिष्यों ने भगवान के लीला स्थलों को खोजा। इस दौरान ही भगवान श्रीगोविन्द देवजी ने रुप गोस्वामी को सपने में दर्शन दिए और उन्हें वृन्दावन के गोमा टीले पर उनके विग्रह को खोजने को कहा। सदियों से भूमि में छिपे भगवान के विग्रह को ढूंढकर रुप गोस्वामी ने एक कुटी में विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा की। मुगल शासक अकबर के सेनापति और आम्बेर के राजा मानसिंह ने इस मूर्ति की पूजा-अर्चना की। 1590 में वृन्दावन में लाल पत्थरों का एक सप्तखण्डी भव्य मंदिर बनाकर भगवान के विग्रह को यहां विराजित किया। मुगल साम्राज्य में इससे बड़ा देवालय नहीं बना। बाद में उड़ीसा से राधारानी का विग्रह श्री गोविन्द देवजी के साथ प्रतिष्ठित किया गया। मुगल शासक अकबर ने गौशाला के लिए भूमि दी, लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने गौशाला भूमि के पट्टे को रद्द कर ब्रजभूमि के सभी मंदिरों व मूर्तियों को तोडऩे का हुक्म दिया तो पुजारी शिवराम गोस्वामी व भक्तों ने श्री गोविन्द देवजी, राधारानी व अन्य विग्रहों को लेकर जंगल में जा छिपे। बाद में आम्बेर के मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह के संरक्षण में ये विग्रह भरतपुर के कामां में लाए गए। यहां राजा मानसिंह ने आमेर घाटी में गोविन्द देवजी के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की। जो आज कनक वृन्दावन कहलाता है और यह प्राचीन गोविन्द देव जी का मंदिर भी है। जयपुर बसने के बाद सवाई जयसिंह ने कनक वृंदावन से श्री राधा-गोविन्द के विग्रह को चन्द्रमहल के समीप जयनिवास उद्यान में बने सूर्य महल में प्रतिष्ठित करवाया। चैतन्य महाप्रभु की गौर-गोविन्द की लघु प्रतिमा को भी श्री गोविन्द देवजी के पास ही विराजित किया। श्री गोविन्ददेवजी की झांकी में दोनों तरफ दो सखियां खड़ी है। इनमें एक विशाखा सखी सवाई जयसिंह ने बनवाई थी। राधा-रानी की सेवा के लिए यह प्रतिमा बनवाई गई। दूसरी प्रतिमा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाई। यह ललिता सखी है, जो उस समय भगवान श्री गोविन्ददेवजी की पान सेवा किया करती थी। उस सेविका के ठाकुर के प्रति भक्ति भाव को देखते हुए ही सवाई प्रताप सिंह ने उनकी प्रतिमा बनाकर विग्रह के पास प्रतिस्थापित की। भले ही इतिहास में और वर्तमान में भी गाहे-बगाहे आम्बेर-जयपुर राजवंश के राजाओं का मुगल शासकों से वैवाहिक संबंध और उनके साम्राज्य को बढ़ाने में सहयोग करने को लेकर आलोचनाएं होती रही है, लेकिन यह भी उतना ही सत्य और प्रमाणिक है कि मुगल शासक औरंगजेब के समय भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रहों समेत अन्य हिन्दु देवी-देवताओं की सुरक्षा में जयपुर राजाओं की महती भूमिका रही। तब भगवान श्रीगोविन्ददेवजी, श्री गोपीनाथ जी, श्री मदन मोहन जी का विग्रह तो जयपुर शासकों की बदौलत ही सुरक्षित रहे और पूरे मान-सम्मान से प्रतिस्थापित भी किए गए।
सुप्रभात !

।।जय जय श्री राधे।।

हरीश शर्मा

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🔴संत रैदास

रैदास कबीर के गुरुभाई हैं। रैदास और कबीर दोनों एक ही संत के शिष्य है। रामानंद गंगोत्री हैं जिनसे कबीर और रैदास की धाराएं बही है…

भारत का आकाश संतों के सितारों से भरा है। अनंत-अनंत सितारे है, यद्यपि ज्योति सबकी एक है। संत रैदास उन सब सितारों में ध्रुवतारा हैं-इसलिए कि शूद्र के घर में पैदा होकर भी काशी के पंडितों को भी मजबूर कर दिया स्वीकार करने को। महावीर का उल्लेख नहीं किया ब्राह्मणों ने अपने शास्त्रों में। बुद्ध की जड़ें काट डाली। बुद्ध के विचार को उखाड़ फेंका। लेकिन रैदास में कुछ बात है कि रैदास को नहीं उखाड़ सके और रैदास को स्वीकार भी करना पड़ा।

ब्राह्मणों के द्वारा लिखी गई संतों की स्मृतियों में रैदास सदा स्मरण किए गए। चमार के घर में पैदा होकर भी ब्राह्मणों ने स्वीकार किया वह भी काशी के ब्राह्मणों ने! बात कुछ अनेरी है, अनूठी है।

रैदास में कुछ रस है, कुछ सुगंध है जो मदहोश कर दे। रैदास से बहती है कोई शराब, कि जिसने पी वही डोला। और रैदास अड्डा जमा कर बैठ गए थे काशी में, जहां कि सबसे कम संभावना है; जहां का पंडित पाषाण हो चुका है। सदियों का पांडित्य व्यक्तियों के दयों को मार डालता है, उनकी आत्मा को जड़ कर देता है। रैदास वहां खिले, फूले। रैदास ने वहां हजारों भक्तों को इकट्ठा कर लिया। और छोटे-मोटे भक्त नहीं, मीरा जैसी अनुभूति को उपलब्ध महिला ने भी रैदास को गुरु माना। मीरा ने कहा हैः गुरु मिल्या रैदास जी! कि मुझे गुरु मिल गए रैदास। भटकती फिरती थी; बहुतों में तलाशा था, लेकिन रैदास को देखा कि झुक गई। चमार के सामने राज रानी झुके तो बात कुछ रही होगी। वह कमल कुछ अनूठा रहा होगा! बिना झुके न रहा जा सका होगा। रैदास कबीर के गुरुभाई हैं। रैदास और कबीर दोनों एक ही संत के शिष्य है। रामानंद गंगोत्री हैं जिनसे कबीर और रैदास की धाराएं बही है। रैदास के गुरु हैं रामानंद जैसे अद्भुत व्यक्ति और रैदास की शिष्या है मीरा जैसी अद्भुत नारी। इन दोनों के बीच में रैदास की चमक अनूठी है।

रामानंद को लोग भूल ही गए होते अगर रैदास और कबीर न होते। रैदास और कबीर के कारण रामानंद याद किये जाते हैं।

जैसे फल से वृक्ष पहचाने जाते हैं वैसे शिष्यों से गुरु पहचाने जाते हैं। रैदास का अगर एक भी वचन न बचता और सिर्फ मीरा का यह कथन बचता, गुरु मिल्या रैदास जी, तो काफी था। क्योंकि जिसको मीरा गुरु कहे, वह कुछ ऐसे-वैसे को गुरु न कह देगी। जब तक परमात्मा बिलकुल साकार न हुआ हो तब तक मीरा किसी को गुरु न कहे देगी। कबीर को भी मीरा ने गुरु नहीं कहा है। रैदास को गुरु कहा।

इसलिए रैदास को मैं कहता हूं, वे भारत के संतों से भरे आकाश में ध्रुवतारा हैं।
-ओशो
पुस्तकः भारत एक सनातन यात्रा
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आयुर्वेद-शास्त्र के महान् ग्रन्थ ‘चरक’ को लिखनेवाले महर्षि पुनर्वसु अपने अद्वितीय ग्रन्थ को लिखने के पश्चात् एक जंगल में चले जा रहे थे। घने जंगल की पगडंडी पर आगे वे थे, पीछे उनका शिष्य अग्निवेश। एकाएक महर्षि पुनर्वसु खड़े हो गये। आगे की ओर देखा उन्होंने, चारां ओर देखा। एक लम्बी सांस लेकर बोले-‘‘महानाश आने वाला है।

’’
अग्निवेश ने पूछा-‘‘कैसा महानाश, गुरुदेव?’’
पुनर्वसु बोले-‘‘मैं देखता हूं कि जल बिगड़ रहा है, पृथिवी बिगड़ रही है, वायु, तारे, आकाश, सूर्य और चन्द्र बिगड़ रहे हैं। अरे, अनाज अपनी शक्ति छोड़ देगा। औषधियां अपना प्रभाव छोड़ देंगी। पृथिवी पर टूटते हुए तारे गिरेंगे। विनाश करने वाली आंधियां चलेंगी। विनाशकारी भूकम्प उठेंगे। बड़े-बड़े बम गिरेंगे। महानाश का महाताण्डव जाग उठेगा। मनुष्य बचेगा नहीं, बचेगा नहीं।’’
यह कथा ‘चरक’ के विमान-स्थान के तीसरे अध्याय में आती है। इसमें लिखा है कि अग्निवेश ने जब यह भयानक भविष्यवाणी सुनी तो हाथ जोड़कर कहा-‘‘गुरुदेव! आप यह भयभीत करने वाली भविष्य-गाथा क्यों कर रहे हैं? सब रोग का सामना कर सकें, ऐसा ग्रन्थ आपने लिख दिया। दुनिया के प्रत्येक रोग का इलाज लिख दिया। फिर भी यह विनाश आयेगा तो क्यों?
महर्षि पुनर्वसु ने कहा-‘‘इसलिये आयेगा कि लोग धर्म को छोड़कर अधर्म की ओर चल पड़ेंगे-सत्य को छोड़कर असत्यकी ओर। सत्य और धर्म में रुचि नहीं रहेगी।’’
अग्निवेश ने पूछा-‘‘धर्म और सत्य की ओर मनुष्य की रुचि न रहने का क्या कारण होगा, गुरुदेव?’’
गुरु बोले-‘‘ बुद्धि का बिगड़ जाना ही इस महानाश का कारण होगा। जब बुद्धि बिगड़ जाती है, जब वह सत्य का मार्ग छोड़कर असत्य की ओर बढ़ती है, तब धर्म में रुचि नहीं रहती।’’
बुद्धि का बिगड़ जाना ही सब रोगों का कारण है, परन्तु बुद्धि के बिगड़ जाने से केवल शारीरिक रोग पैदा नहीं होते, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और आत्मिक, सभी रोग पैदा होते हैं। इसीलिये कहते हैं कि जब नाश का समय निकट आता है, तब बुद्धि उलटे मार्ग पर चलने लगती है।भगवान् कृष्ण ने भी गीता में कहा है- बुद्धि नाशात्प्रणश्यति। बुद्धि का नाश होने से महानाश जाग उठता है।

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અત્યાર સુધી કૌભાંડ અને ભ્રષ્ટાચાર ગાંડો થતો હતો ત્યારે લોકો ચૂપ હતા,

અત્યાર સુધી માઈનોરિટી અપીઝમેન્ટ ચાલતું હતું ત્યારે લોકો ચૂપ હતા,

અત્યાર સુધી કોમવાદી રાજનીતિ ચાલતી હતી ત્યારે લોકો ચૂપ હતા,

અત્યાર સુધી પરિવારવાદ-ભાઈ-ભતીજાવાદ ચાલતું હતું ત્યારે લોકો ચૂપ હતા,

અત્યાર સુધી નિમ્નસ્તરની રાજનીતિ ચાલતી હતી ત્યારે લોકો ચૂપ હતા,

અત્યાર સુધી આતંકવાદ મુદ્દે ચુપકી સેવાતી હતી ત્યારે લોકો ચૂપ હતા,

અત્યાર સુધી દિશાવિહીન રીતે સરકારો ચાલતી હતી ત્યારે લોકો ચૂપ હતા,

અત્યાર સુધી વિશ્વ આખા માં જ્યારે ભારતની ફજેતી થતી હતી ત્યારે લોકો ચૂપ હતા,

અત્યાર સુધી વિકાસ માંદો હતો ત્યારે લોકો ચૂપ હતા,

પણ હવે જ્યારે વિકાસ તંદુરસ્ત થયો છે, જુવાન થયો છે તો એ ધમાલ તો કરશે જ….

વિકાસનો વેગ સહન ન થાય એને તો એ ગાંડો જ લાગવાનો….

હકીકત માં વિકાસ ગાંડો નથી થયો, પણ વિકાસ-વિરોધીઓ ગાંડા અને રઘવાયા થયા છે…

સાચી જ વાત છે, તમે આઘા જ રહેજો, તમને વિકાસ પચશે નહીં…

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रामायण कोई काल्पनिक घटना नहीं, सच साबित करते हैं ये 21 तथ्य ———

रामायण और भगवान राम से हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है, लेकिन अकसर ये सवाल उठते रहे हैं कि क्या सच में भगवान राम का इस धरती पर जन्म हुआ था? क्या रावण और हनुमान थे? हम उनको तो किसी के सामने नहीं ला सकते लेकिन उनके अस्तित्व के प्रमाण को आपके सामने ला सकते हैं. भारत और श्रीलंका में कुछ ऐसी जगहें हैं जो इस बात का प्रमाण देती हैं कि रामायण में लिखी हर बात सच है.

  1. Cobra Hood cave, Sri Lanka

कहा जाता है कि रावण जब सीता का अपहरण कर के श्रीलंका पहुंचा तो सबसे पहले सीता जी को इसी जगह रखा था. इस गुफ़ा पर हुई नक्काशी इस बात का प्रमाण देती है.

  1. Existence of Hanuman Garhi

यह वही जगह है जहां हनुमान जी ने भगवान राम का इंतज़ार किया था. रामायण में इस जगह के बारे में लिखा है, अयोध्या के पास इस जगह पर आज एक हनुमान मंदिर भी है.

  1. भगवान हनुमान के पद चिन्ह

जब हनुमान जी ने सीता जी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण किया था. इसीलिए जब वो श्रीलंका पहुंचे तो उनके पैर के निशान वहां बन गए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं.

  1. राम सेतु

रामायण और भगवान राम के होने का ये सबसे बड़ा सबूत है. समुद्र के ऊपर श्रीलंका तक बने इस सेतु के बारे में रामायण में लिखा है और इसकी खोज भी की जा चुकी है. ये सेतु पत्थरों से बना है और ये पत्थर पानी पर तैरते हैं.

  1. पुरातत्व विभाग ने भी माना

भगवान राम के होने की बात खुद पुरातत्व विभाग भी मानता है. पुरातत्व विभाग के अनुसार 1,750,000 साल पहले श्रीलंका में ही सबसे पहले इंसानों के घर होने की बात कही गई है और राम सेतु भी उसी काल का है.

  1. पानी में तैरने वाले पत्थर

राम सेतु एक ऐसा पुल था जिसके पत्थर पानी पर तैरते थे. सुनामी के बाद रामेश्वरम में उन पत्थरों में से कुछ अलग हो कर जमीन पर आ गए थे. शोधकर्ताओं नें जब उसे दोबारा पानी में फेंका तो वो तैर रहे थे, जबकि वहां के किसी और आम पत्थर को पानी में डालने से वो डूब जाते थे.

  1. द्रोणागिरी पर्वत

युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण को मेघनाथ ने मूर्छित कर दिया था और उनकी जान जा रही थी, तब हनुमान जी संजीवनी लेने द्रोणागिरी पर्वत गए थे. उन्हें संजीवनी की पहचान नहीं थी तो उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का निर्णय लिया. युद्ध के बाद उन्होंने द्रोणागिरी को यथास्थान पहुंचा दिया. उस पर्वत पर आज भी वो निशान मौजूद हैं जहां से हनुमान जी ने उसे तोड़ा था.

  1. श्रीलंका में हिमालय की जड़ी-बूटी

श्रीलंका के उस स्थान पर जहां लक्ष्मण को संजीवनी दी गई थी, वहां हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटियों के अंश मिले हैं. जबकि पूरे श्रीलंका में ऐसा नहीं होता और हिमालय की जड़ी-बूटियों का श्रीलंका में पाया जाना इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण है ।

  1. अशोक वाटिका

हरण के पश्चात सीता माता को अशोक वाटिका में रखा गया था, क्योंकि सीता जी ने रावण के महल में रहने से मना कर दिया था. आज उस जगह को Hakgala Botanical Garden कहते हैं और जहां सीता जी को रखा गया था उस स्थान को ‘सीता एल्या’ कहा जाता है.

  1. लेपाक्षी मंदिर

सीता हरण के बाद जब रावण उन्हें आकाश मार्ग से लंका ले जा रहा था तब उसे रोकने के लिए जटायू आए थे. रावण ने उनका वध कर दिया था. आकाश से जटायू इसी जगह गिरे थे. यहां आज एक मंदिर है जिसे लेपाक्षी मंदिर के नाम से जाना जाता है.

  1. टस्क हाथी

रामायण के एक अध्याय, सुंदर कांड में श्रीलंका की रखवाली के लिए विशालकाय हाथी का विवरण है, जिन्हें हनुमान जी ने धराशाही किया था. पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में ऐसे ही हाथियों के अवशेष मिले हैं जिनका आकार आम हाथियों से बहुत ज़्यादा है.

  1. कोंडा कट्टू गाला

हनुमान जी के लंका जलाने के बाद रावण भयभीत हो गया था कि हनुमान जी दोबारा हमला न कर दें, इसलिए रावण ने सीता जी को अशोक वाटिका से हटा कर कोंडा कट्टू गाला में रखा था. यहां पुरातत्व विभाग को कई गुफ़ाएं मिली हैं जो रावण के महल तक जाती हैं.

  1. रावण का महल

पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में एक महल मिला है जिसे रामायण काल का ही बताया जाता है. यहां से कई गुप्त रास्ते निकलते हैं जो उस शहर के मुख्य केंद्रो तक जाते हैं. ध्यान से देखने पर ये पता चलता है कि ये रास्ते इंसानों द्वारा बनाए गए हैं.

  1. कालानियां

रावण के मरने के बाद विभीषण को लंका का राजा बनाया गया था. विभीषण ने अपना महल कालानियां में बनाया था जो कैलानी नदी के किनारे था. पुरातत्व विभाग को इस नदी के किनारे उस महल के कुछ अवशेष भी मिले हैं.

  1. लंका जलने के अवशेष

रामायण के अनुसार हनुमान जी ने पूरे लंका को आग लगा दी थी, जिसके प्रमाण उस जगह से मिलते हैं. जलने के बाद उस जगह की मिट्टी काली हो गई है जबकि उसके आस-पास की मिट्टी का रंग आज भी वही है.

  1. दिवूरमपोला, श्रीलंका

रावण से सीता को बचाने के बाद भगवान राम ने उन्हें अपनी पवित्रता साबित करने को कहा था, जिसके लिए सीता जी ने अग्नि परीक्षा दी थी. आज भी उस जगह पर वो पेड़ मौजूद है जिसके नीचे सीता जी ने इस परीक्षा को दिया था. उस पेड़ के नीचे वहां के लोग आज भी अहम फ़ैसले लेते हैं.

  1. रामलिंगम

रावण को मारने के बाद भगवान राम को पश्चाताप करना था क्योंकि उनके हाथ से एक ब्राहमण का कत्ल हुआ था. इसके लिए उन्होंने शिव की आराधना की थी. भगवान शिव ने उन्हें चार शिवलिंग बनाने के लिए कहा. एक शिवलिंग सीता जी ने बनाया जो रेत का था. दो शिवलिंग हनुमान जी कैलाश से लेकर आए थे और एक शिवलिंग भगवान राम ने अपने हाथ से बनाया था, जो आज भी उस मंदिर में हैं और इसलिए ही इस जगह को रामलिंगम कहते हैं.

  1. जानकी मंदिर

नेपाल के जनकपुर शहर में जानकी मंदिर है. रामायण के अनुसार सीता माता के पिता का नाम जनक था और इस शहर का नाम उन्हीं के नाम पर जनकपुर रखा गया था. साथ ही सीता माता को जानकी के नाम से भी जाना जाता है और उसी नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा है जानकी मंदिर. यहां सीता माता के दर्शन के लिए हर रोज़ हज़ारो श्रद्धालु आते हैं

  1. पंचवटी

नासिक के पास आज भी पंचवटी तपोवन है, जहां अयोध्या से वनवास काटने के लिए निकले भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण रुके थे. यहीं लक्ष्मण ने सूपनखा की नाक काटी थी.

  1. कोणेश्वरम मंदिर

रावण भगवान शिव की अराधना करता था और उसने भगवान शिव के लिए इस मंदिर की भी स्थापना करवाई. यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां भगवान से ज्यादा उनके भक्त रावण की आकृति बनी हुई है. इस मंदिर में बनी एक आकृति में रावण के दस सिरों को दिखाया गया है. कहा जाता है कि रावण के दस सिर थे और उसके दस सिर पर रखे दस मुकुट उसके दस जगहों के अधिपत्य को दर्शाता है.

  1. गर्म पानी के कुएं

रावण ने कोणेश्वरम मंदिर के पास गर्म पानी के कुएं बनवाए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं।

पटेल रसिक