एक थे “सर्वनिंदक” महाराज!
काम धाम कुछ करने आता नहीं था पर निंदा गजब की करते थे! दूसरे के काम में ऐसा शानदार टाँग फँसाते थे कि नारदजी भी शर्मिंदा हो जाते थे!
अगर कोई व्यक्ति मेहनत करने के बाद सुस्ताने के लिए भी बैठता तो सर्वनिंदक महाराज कहते, ‘स्साला एक नम्बर का कामचोर है!’
अगर कोई व्यक्ति काम करते हुए मिलता तो कहते, ‘स्साला जिंदगी भर काम करते हुए मर जायेगा! आखिर करता क्या है?’
कोई पूजा पाठ में रुचि दिखाता तो कहते, ‘पूजा के नाम पर देह चुरा रहा है! ये पूजा के नाम पर मस्ती करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता है! ‘
अगर कोई व्यक्ति पूजा पाठ नहीं करता तो कहते, ‘स्साला नास्तिक है! भगवान से कोई मतलब ही नहीं है! मरने के बाद पक्का नर्क में जायेगा!’
माने निंदा के इतने पक्के खिलाड़ी बन गये कि नारदजी ने आखिरकार विष्णु जी के पास अपनी फरियाद पहुँचा दिया,’ महाराज पृथ्वी पर एक प्राणी के चलते मेरी गद्दी खतरे में पड़ गयी है! ‘
विष्णु जी ने कहा कि उन्हें विष्णु लोक में भोजन पर आमंत्रित कीजिए! नारद भगवान तुरंत भगवान का न्योता लेकर सर्वनिंदक महाराज के पास पहुँचे और बिना कोई जोखिम लिए हुए उन्हें अपने साथ ही विष्णु लोक लेकर पहुँच गये कि पता नहीं कब पलटी मार दे!
उधर लक्ष्मी जी ने नाना प्रकार के व्यंजन अपने हाथों से तैयार कर सर्वनिंदक जी को परोसा! सर्वनिंदक जी ने जमकर हाथ साफ किया और बड़े प्रसन्न दिख रहे थे! अब विष्णु जी को पूरा विश्वास हो गया कि सर्वनिंदक जी लक्ष्मी जी के बनाये भोजन की निंदा कर ही नहीं सकते!
फिर भी नारद जी को संतुष्ट करने के लिए पूछ लिया, ‘और महाराज भोजन कैसा लगा?’
सर्वनिंदक जी बोले, ‘महाराज भोजन का तो पूछिए मत, आत्मा तृप्त हो गयी लेकिन—– भोजन इतना भी अच्छा नहीं बनना चाहिए कि आदमी खाते खाते प्राण ही त्याग दे!’
विष्णु जी ने माथा पीट लिया और बोले, ‘हे वत्स आपके अपने निंदा के गुण के प्रति समर्पण देखकर मैं प्रसन्न हुआ! आपने तो लक्ष्मी जी को भी नहीं छोडा़! वर माँगो! ‘
सर्वनिंदक जी ने शर्माते हुए कहा कि,’ हे प्रभु मेरे वंश में वृध्दि होनी चाहिए! ‘
तभी से ऐसे निरर्थक सर्वनिंदक बहुतायत में पाये जाने लगे!
सूतजी ने कहा हमें इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि हम चाहे कुछ भी कर लें इन सर्वनिंदकों की प्रजाति को संतुष्ट नहीं कर सकते! अतः ऐसे लोगों की परवाह किये बिना अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर रहना चाहिए!’
इति श्री स्कंदपराणे सर्वनिंदक कथा समाप्त:
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