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लक्ष्मी का निवास
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बनारस में एक बड़े धनवान सेठ रहते थे। वह विष्णु भगवान् के परम भक्त थे और हमेशा सच बोला करते थे।
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एक बार जब भगवान् सेठ जी की प्रशंशा कर रहे थे तभी माँ लक्ष्मी ने कहा, स्वामी आप इस सेठ की इतनी प्रशंशा किया करते हैं , क्यों न आज उसकी परीक्षा ली जाए और जाना जाए कि क्या वह सचमुच इसके लायक है या नहीं ?
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भगवान् बोले , ” ठीक है ! अभी सेठ गहरी निद्रा में है आप उसके स्वप्न में जाएं और उसकी परीक्षा ले लें। ”
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अगले ही क्षण सेठ जी को एक स्वप्न आया। स्वप्न मेँ धन की देवी लक्ष्मी उनके सामनेँ आई और बोली ,” हे मनुष्य ! मैँ धन की दात्री लक्ष्मी हूँ।”
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सेठ जी को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और वो बोले , ” हे माता आपने साक्षात अपने दर्शन देकर मेरा जीवन धन्य कर दिया है , बताइये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?”
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”कुछ नहीं ! मैं तो बस इतना बताने आयी हूँ कि मेरा स्वाभाव चंचल है, और वर्षों से तुम्हारे भवन में निवास करते-करते मैं ऊब चुकी हूँ और यहाँ से जा रही हूँ।”
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सेठ जी बोले , ”मेरा आपसे निवेदन है कि आप यहीं रहे, किन्तु अगर आपको यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है तो मैं भला आपको कैसे रोक सकता हूँ, आप अपनी इच्छा अनुसार जहाँ चाहें जा सकती हैं।”
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और माँ लक्ष्मी उसके घर से चली गई।
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थोड़ी देर बाद माँ लक्ष्मी रूप बदल कर पुनः सेठ के स्वप्न मेँ यश के रूप में आयीं और बोलीं , ” सेठ मुझे पहचान रहे हो ?”
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सेठ- “नहीं महोदय आपको नहीँ पहचाना।
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यश – ” मैं यश हूँ , मैं ही तेरी कीर्ति और प्रसिध्दि का कारण हूँ।
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लेकिन अब मैँ तुम्हारे साथ नहीँ रहना चाहता क्योँकि माँ लक्ष्मी यहाँ से चली गयी हैं, अतः मेरा भी यहाँ कोई काम नहीं।”
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सेठ -” ठीक है , यदि आप भी जाना चाहते हैं तो वही सही।”
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सेठ जी अभी भी स्वप्न में ही थे और उन्होंने देखा कि वह दरिद्र हो गए है। और धीरे-धीरे उनके सारे रिश्तेदार व मित्र भी उनसे दूर हो गए हैं।
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यहाँ तक की जो लोग उनका गुणगान किया करते थे वो भी अब बुराई करने लगे हैं।
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कुछ और समय बीतने पर माँ लक्ष्मी धर्म का रूप धारण कर पुनः सेठ के स्वप्न में आयीं और बोलीं , ” मैँ धर्म हूँ।
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माँ लक्ष्मी और यश के जाने के बाद मैं भी इस दरिद्रता में तुम्हारा साथ नहीं दे सकता, मैं जा रहा हूँ।”
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”जैसी आपकी इच्छा।”सेठ ने उत्तर दिया। और धर्म भी वहाँ से चला गया।
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कुछ और समय बीत जाने पर माँ लक्ष्मी सत्य के रूप में स्वप्न में प्रकट हुईं और बोलीं , ”मैँ सत्य हूँ। लक्ष्मी , यश, और धर्म के जाने के बाद अब मैं भी यहाँ से जाना चाहता हूँ.“
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ऐसा सुन सेठ जी ने तुरंत सत्य के पाँव पकड़ लिए और बोले , ”हे महाराज, मैँ आपको नहीँ जानेँ दुँगा।
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भले ही सब मेरा साथ छोड़ दें, मुझे त्याग दें पर कृपया आप ऐसा मत करिये।
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सत्य के बिना मैँ एक क्षण नहीँ रह सकता यदि आप चले जायेंगे तो मैं तत्काल ही अपने प्राण त्याग दूंगा।“
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”लेकिन तुमने बाकी तीनो को बड़ी आसानी से जाने दिया , उन्हें क्यों नहीं रोका।” सत्य ने प्रश्न किया।
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सेठ जी बोले , ” मेरे लिए वे तीनो भी बहुत महत्त्व रखते हैं लेकिन उन तीनो के बिना भी मैं भगवान् के नाम का जाप करते-करते उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सकता हूँ ,
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परन्तु यदि आप चले गए तो मेरे जीवन में झूठ प्रवेश कर जाएगा और मेरी वाणी अशुद्ध हो जायेगी ,
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भला ऐसी वाणी से मैं अपने भगवान् की वंदना कैसे कर सकूंगा…???
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मैं तो किसी भी कीमत पर आपके बिना नहीं रह सकता।
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सेठ जी का उत्तर सुन सत्य प्रसन्न हो गया , और उसने कहा , “तुम्हारी अटूट भक्ति नेँ मुझे यहाँ रूकने पर विवश कर दिया और अब मैँ यहाँ से कभी नहीं जाऊँगा।”
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और ऐसा कहते हुए सत्य अंतर्ध्यान हो गया।
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सेठ जी अभी भी निद्रा में थे। थोड़ी देर बाद स्वप्न में धर्म वापस आया और बोला ,
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“ मैं अब तुम्हारे पास ही रहूँगा क्योंकि यहाँ सत्य का निवास है .”
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सेठ जी ने प्रसन्नतापूर्वक धर्म का स्वागत किया।
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उसके तुरंत बाद यश भी लौट आया और बोला , “ जहाँ सत्य और धर्म हैं, वहाँ यश स्वतः ही आ जाता है , इसलिए अब मैं भी तुम्हारे साथ ही रहूँगा।
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सेठ जी ने यश की भी आव -भगत की।
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और अंत में माँ लक्ष्मी आयीं।
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उन्हें देखते ही सेठ जी नतमस्तक होकर बोले , “ हे देवी ! क्या आप भी पुनः मुझ पर कृपा करेंगी?”
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“अवश्य , जहां , सत्य , धर्म और यश हों वहाँ मेरा वास निश्चित है।” माँ लक्ष्मी ने उत्तर दिया।
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यह सुनते ही सेठ जी की नींद खुल गयी। उन्हें यह सब स्वप्न लगा पर वास्तविकता में वह एक कड़ी परीक्षा से उत्तीर्ण हो कर निकले थे।
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मित्रों, हमें भी हमेशा याद रखना चाहिए कि जहाँ सत्य का निवास होता है वहाँ यश, धर्म और लक्ष्मी का निवास स्वतः ही हो जाता है।
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सत्य है तो सिध्दि, प्रसिध्दि और समृद्धि है।
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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देव कृष्णा

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!!! चश्मा एक लघुकथा !!!

जल्दी जल्दी घर के सारे काम निपटा, बेटे को स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस जाने का सोच, घर से निकल ही रही थी कि…
फिर पिताजी की आवाज़ आ गई, -“बहू, ज़रा मेरा चश्मा तो साफ़ कर दो।”
बहु झल्लाती हुई….सॉल्वेंट लेकर चश्मा साफ करने लगी। इसी चक्कर में आज फिर ऑफिस देर से पहुंची।
पति की सलाह पर अब वो सुबह उठते ही पिताजी का चश्मा साफ़ करके रख देती |
लेकिन फिर भी घर से निकलते समय पिताजी का बहु को बुलाना बन्द नही हुआ।
समय से खींचातानी के चलते अब बहु ने पिताजी की पुकार को अनसुना करना शुरू कर दिया।

आज ऑफिस की छुट्टी थी तो बहु ने सोचा –
“घर की साफ सफाई कर लूँ।
अचानक …
पिताजी की डायरी हाथ लग गई।
एक पन्ने पर लिखा था-

दिनांक 23/2/15
आज की इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में, घर से निकलते समय, बच्चे अक्सर बड़ों का आशीर्वाद लेना भूल जाते हैं।
बस इसीलिए, जब तुम चश्मा साफ कर मुझे देने के लिए झुकती तो मैं मन ही मन, अपना हाथ तुम्हारे सर पर रख देता……..
वैसे मेरा आशीष सदा तुम्हारे साथ है बेटा…।
आज पिताजी को गुजरे ठीक 2 साल बीत चुके हैं।

अब मैं रोज घर से बाहर निकलते समय पिताजी का चश्मा साफ़ कर, उनके टेबल पर रख दिया करती हूँ।
उनके अनदेखे हाथ से मिले आशीष की लालसा में……

रामचंद्र आर्य

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ॐ नवग्रह देवाय नमः

आप सभी का दिवस बरस मङ्गलमय हो,,,
समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हों,,,

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।

ब्रह्मा,विष्णु,शिव,सूर्य,चन्द्रमा,मंगल,बुध,गुरु,
शुक्र,शनि,राहु और केतु ये सभी मेरे प्रातः
काल को मङ्गलमय करें।

पृथ्वी सगंधा सरसास्तथाप:
स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेज:।
नभः सशब्दं महता सहैव
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।

गंधयुक्त पृथ्वी,रसयुक्त जल,स्पर्शयुक्त वायु,
प्रज्वलित तेज,शब्द सहित आकाश एवं मह
तत्त्व —
ये सभी मेरे प्रातः काल को मङ्गलमय
करें।

ग्रहों को अनुकूल बनाने की सुगम विधि ;-

  • सूर्य के प्रतिकूल होने पर: –
  1. भगवान सूर्य नारायण को ताँबे के लौटे से
    सूर्योदय काल में जल चढ़ावें व ॐ सूर्याय नमः
    का जाप करें।
  2. भगवान सूर्य के पुराणोक्त,वेदोक्त अथवा
    बीच मंत्र से किसी एक का 28000 बार जाप
    करें अथवा योग्य ब्राह्मण से करवायें।
  3. सूर्य यंत्र को अपने दाहिने हाथ बांधे।
  4. रविवार को भोजन में नमक का सेवन न करें।
  5. सूर्योदय पूर्व उठकर पवित्र हो सूर्य नमस्कार करें।
  • चन्द्र के प्रतिकूल होने पर: –
  1. भगवान शिव की अराधना सूर्योदय काल में करें।
  2. भगवान शिव के स्त्रोत पाठ करें।
  3. चन्द्र के पुराणोक्त, वेदाक्त अथवा बीज मंत्र में से किसी एक का 44000 बार जाप करें अथवा जाप करवायें।
  4. सोमवार का व्रत करें।
  5. मोती,दूध,चांवल अथवा सफेद वस्तु का दान करें।
  • मंगल ग्रह के प्रतिकूल होने पर: –
  1. मंगलवार का व्रत करें।
  2. भगवान हनुमान जी की अराधना करें।
  3. मंगल के पुराणोक्त, वेदोक्त, तंत्रोक्त अथवा
    बीज मंत्र का 40000 बार जाप करें।
  4. मसूर की दाल, लाल वस्त्र, मूंगा आदि का दान करें।
  5. हनुमान चालीसा अथवा सुन्दर काण्ड का पाठ प्रातः काल में करें।
  • बुध ग्रह के प्रतिकूल होने पर: –
  1. भगवान गणेश जी की अराधना करें।
  2. आप कोई भी बुध मंत्र 34000 बार जाप करें।
  3. बुध स्त्रोत का पाठ करें।
  4. मूंग की दाल, हरे वस्त्र, पन्ना आदि का दान करें।
  5. विद्वानों को प्रणाम करें व सम्मान करें।
  • शुक्र के प्रतिकूल होने पर: –
  1. शुक्र स्त्रोत का पाठ करें।
  2. नारीजाति का सम्मान करें।
  3. सफेद चमकीले वस्त्र एवं सुगन्धित तेल आदि वस्तुओं का दान करें।
  4. 3ाोम शुक्राय नमः या अन्य किसी शुक्र मंत्र
    का 64000 बार जाप करें।
  5. औदुम्बर वृक्ष की जड़ को दाहिने हाथ पर
    सफेद डोरे में बाँधे।
  • गुरू के प्रतिकूल होने पर: –
  1. सूर्योदय पूर्व पीपल की पूजा करें।
  2. भगवान नारायण (विष्णु) की आराधना करें
    व सन्तों का सम्मान करें।
  • राहू के प्रतिकूल होने पर: –
  1. भगवान शिव की अराधना करें।
  2. राहू के मंत्र का जाप करें।
  3. गरीब व निम्न वर्ग के लोगों की मदद करें।
  4. राहू स्त्रोत का पाठ करें।
  5. सर्प का पूजन करें।
  • शनि के प्रतिकूल होने पर: –
  1. शनि स्त्रोत का पाठ करें एवं किसी भी
    शनि मंत्र का 92000 बार जाप करें।
  2. जूते,चप्पल,लोहे, तेल आदि का दान करें।
  3. शनिवार का व्रत करें एवं रात्रि में भोजन करें।
  4. हनुमान चालीसा अथवा सुन्दर काण्ड का
    पाठ करें।
  5. नित्य हनुमान जी के दर्शन कर कार्य
    प्रारम्भ करें।
  • केतु के प्रतिकूल होने पर: –
  1. भगवान गणेश जी की अराधना करें।
  2. प्रतिदिन स्वास्तविक के दर्शन करें।
  3. केतु के मंत्र का जाप करें।
  4. गणेश चतुर्थी का व्रत करें।
  5. लहसुनियां का दान करें।

ग्रहों से होने वाली पीड़ा का निवारण करने के
लिए इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत लाभदायक है।
इसमें सूर्य से लेकर हर ग्रहों से क्रमश: एक-एक
श्लोक के द्वारा पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की गई है-

ग्रहाणामादिरात्यो लोकरक्षणकारक:। विषमस्थानसम्भूतां पीड़ां हरतु मे रवि: ।।1।।

रोहिणीश: सुधा‍मूर्ति: सुधागात्र: सुधाशन:। विषमस्थानसम्भूतां पीड़ां हरतु मे विधु: ।।2।।

भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा।
वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीड़ां हरतु में कुज: ।।3।।

उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:।
सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीड़ां हरतु मे बुध: ।।4।।

देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत:। अनेकशिष्यसम्पूर्ण:पीड़ां हरतु मे गुरु: ।।5।।

दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामति:।
प्रभु: ताराग्रहाणां च पीड़ां हरतु मे भृगु: ।।6।।

सूर्यपुत्रो दीर्घदेहा विशालाक्ष: शिवप्रिय:।
मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु मे शनि: ।।7।।

अनेकरूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक्।
उत्पातरूपो जगतां पीडां पीड़ां मे तम: ।।8।।

महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीड़ां हरतु मे शिखी: ।।9।।

भावार्थ –
ग्रहों में प्रथम परिगणित, अदिति के पुत्र तथा
विश्व की रक्षा करने वाले भगवान सूर्य विषम स्थानजनित मेरी पीड़ा का हरण करें ।।1।।

दक्षकन्या नक्षत्र रूपा देवी रोहिणी के स्वामी,
अमृतमय स्वरूप वाले,अमतरूपी शरीर वाले
तथा अमृत का पान कराने वाले चंद्रदेव विषम स्थानजनित मेरी पीड़ा को दूर करें ।।2।।

भूमि के पुत्र,महान् तेजस्वी,जगत् को भय प्रदान
करने वाले, वृष्टि करने वाले तथा वृष्टि का हरण
करने वाले मंगल (ग्रहजन्य) मेरी पीड़ा का
हरण करें ।।3।।

जगत् में उत्पात करने वाले,महान द्युति से संपन्न,
सूर्य का प्रिय करने वाले, विद्वान तथा चन्द्रमा के
पुत्र बुध मेरी पीड़ा का निवारण करें ।।4।।

सर्वदा लोक कल्याण में निरत रहने वाले, देवताओं
के मंत्री, विशाल नेत्रों वाले तथा अनेक शिष्यों से
युक्त बृहस्पति मेरी पीड़ा को दूर करें ।।5।।

दैत्यों के मंत्री और गुरु तथा उन्हें जीवनदान देने
वाले,तारा ग्रहों के स्वामी,महान् बुद्धिसंपन्न शुक्र
मेरी पीड़ा को दूर करें ।।6।।

सूर्य के पुत्र,दीर्घ देह वाले,विशाल नेत्रों वाले,मंद
गति से चलने वाले,भगवान् शिव के प्रिय तथा प्रसन्नात्मा शनि मेरी पीड़ा को दूर करें ।।7।।

विविध रूप तथा वर्ण वाले,सैकड़ों तथा हजारों
आंखों वाले,जगत के लिए उत्पातस्वरूप,तमोमय
राहु मेरी पीड़ा का हरण करें ।।8।।

महान शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले,
बड़े दांतों वाले,महान् बली,बिना शरीर वाले तथा
ऊपर की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु मेरी
पीड़ा का हरण करें।।9।।

नवग्रह देवाय नमः

ॐ जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् ।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।१ ।।

ॐ दधि-शंख-तुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।२ ।।

ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कांतिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ।।३ ।।

ॐ प्रियङ्गुलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ।।४ ।।

ॐ देवानां चा ऋषीणां च गुरूं काञ्चनसंन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।।५ ।।

ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूम् ।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ।।६ ।।

ॐ नीलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।७ ।।

ॐ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।।८ ।।

ॐ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ।।९ ।।

इति व्यासमुखोद्गीतं य: पठेत्सुसमाहित: ।।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिभविश्यति ।।१० ।।

नरनारीनृपाणां च भवेत् दु:स्वप्ननाशनम् ।।
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम् ।।११ ।।

ग्रहनक्षत्रजा: पीडातस्कराग्निसमुद्भवा: ।।
ता: सर्वाः प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रूते न संशय: ।।१२ ।।

इति श्रीव्यासविरचितं नवग्रहस्तोत्रं संपूर्णम् ।

#साभारसंकलित;;

नवग्रह समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल
विश्व का कल्याण करें !

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,
सदा सुमंगल,,,

ॐ नवग्रह देवाय नमः
जय भवानी,,,
जय श्री राम

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🔴राम कृष्‍ण अपनी पत्‍नी को मां बोलते थे। और यूं नहीं कि बाद में कहने लगे थे। रामकृष्‍ण जब चौदह साल के थे, तब उनको पहली समाधि हुई। आ रहे थे अपने खेत से वापस। झाल के पास से गांव में से गुजरते थे। सुंदर गांव की झील, सांझ का समय, सूरज का डूबना, बस डूबा-डूबा। सूरज की डूबती हुई किरणों ने, आकाश में फैली छोटी-छोटी बदलियों पर बड़े रंग फैला रखे है। वर्षा के दिन करीब आ रहे है। काली बदलियां भी छा गई है। घनघोर, जल्‍दी रामकृष्‍ण लोट रहे है। तभी बगुलों की एक पंक्‍ति झील से उड़ी और काली बदलियों को पार करती हुई निकल गई। काली बदलियों से सफेद बगुलों की पंक्‍ति का निकल जाना, जैसे बिजली कौंध गई। यह सौंदर्य का ऐसा क्षण था कि रामकृष्‍ण वहीं गर पड़े। घर उन्‍हें लोग बेहोशी में लाए। लोग समझे बेहोशी है, वह थी मस्‍ती। बामुशिकल से वे होश में लाए जा सके।
उनसे पूछा, क्‍या हुआ?
उन्‍होंने कहा, अद्भुत हुआ, बड़ा आनंद हुआ। बार-बार ऐसा ही होना चाहिए। अब मुझे होश में रहने की—जिसको तुम होश कहते हो—उसमें रहने की कोई इच्‍छा नहीं है।
गांव के लोगों ने, घर के लोगों ने सोचा कि लड़का बिगड़ा जा रहा है। यह तो मामला खराब है। यह ऐसे भी साधु-संग करता था। जाता था सुनने सत्‍संग। तब तक भी ठीक था; अब यह समाधि में भी जाने लगा। अब यह बेहोश हो-हो कर गिरने लगा। यह मामला बिगड़ा जा रहा है। यह हाथ से गया। गदाधर उनका नाम था। जो घर के लोगों का आम सोचने का ढंग होता है, उन्‍होंने कहा, जल्‍दी से इसके विवाह वगैरह का इंतजाम करो, हथकड़ी-बेड़ी डाल दो, तो यह रास्‍ते पर आ जाएगा। सो रामकृष्‍ण से पूछा कि बेटा, विवाह करोगे?
राम कृष्‍ण ने कहा,करेंगे।
घर के लोग थोड़े चौके, उन्‍होंने सोचा था यह इनकार करेगा।
उन्‍होंने कहा जरूर करेंगे, किससे करना है?
घर के लोगों ने कहा, अरे, हम तो सोचते थे तू सत्‍संगी हो गया है, समाधि लगने लगी है, और गांव में बड़ी चर्चा है कि तू ज्ञानी हो गया है। इस लिए तो हम तेरा विवाह कर रहे थे। और तू है कि कहता है करेंगे, किससे करना है? तू इतनी जल्‍दी में है।
पास में ही गांव में एक लड़की खोजी गई। रामकृष्‍ण को दिखाने ले गए। रामकृष्‍ण को जब लड़की मिठाई परोसने आई। बंगाल, तो वहां संदेश परोसा होगा। जब संदेश उसने रामकृष्‍ण की थाली में रखे, रामकृष्‍ण ने देखा। शारदा उसका नाम था। खीसे में जितने मां ने रूपये रख दिए थे। सब निकाल कर उसके पैरों पर चढ़ा दिए, और कहा कि तू तो मेरी मां है। शादी हो गई।
लोगों ने कहा, तू पागल है रे; पहले तो शादी करने की इतनी जल्‍दी कि और अब पत्‍नी को मां कह रहा है। कुछ अक्ल है तुझे, यो बौरा गया है। बेअक्‍ल हो गया है।
मगर उसने कहा कि यह तो मेरी मां है, शादी होगी, मगर यह मेरी मां ही रहेगी।
शादी भी हो गई। शादी से इंकार भी नहीं किया। इसको मैं खूबी कहता हूं। रामकृष्‍ण की। इसलिए रामकृष्‍ण से मुझे प्रेम है। एक लगाव है। यह आदमी अदभुत है। शादी करने में इनकार ही नहीं किया। नोट देख कर आंखे बंध करने वाले विनोबा जी नहीं है। अरे शादी से भी नहीं भागा। मगर शादी भी किस मस्‍ती से की। कहा कि मेरी मां है। और फिर जीवन भर मां ही माना। मां ही कहते थे वे शारदा को। और हर वर्ष जब बंगाल में काली की पूजा होती, तो वे काली की पूजा तो करते थे, मगर जब काली की पूजा का दिन आता है, उस दिन वे शारदा की पूजा करते थे। और यूं नहीं,तुम चोंकोगे, शारदा को नग्‍न बिठा लेते थे सिंहासन पर। नग्‍न शारदा
की पूजा करते थे। शारदा को नग्‍न बिठा लेते सिंहासन पर। और फिर चिल्‍लाते, रोते, नाचते, मां और मां की गुहार लगाते। शारदा पहले तो बहुत बेचैन होती थी कि किसी को पता न चल जाए, कि यह तुम क्‍या कर रहे हो। कोई क्‍या कहेगा; मगर धीरे-धीरे शारदा के जीवन में भी रामकृष्‍ण ने क्रांति ला दी।
रामकृष्‍ण उन सौ में से एक व्‍यक्‍तियों में से है। उन्‍होंने पत्‍नी को छोड़ा नहीं, हालांकि वह कहते यही है; कामिनी-कांचन से मुक्‍त हो जाओ। पुरानी भाषा, वे करें क्‍या–अतिक्रमण किया। नई भाषा का उन्‍हें पता नहीं था।
मैं कहूंगा: कामिनी-कांचन से मुक्‍त होने का सवाल नहीं है, कामिनी-कांचन को अतिक्रमण करना है। रामकृष्‍ण ने वही किया—अतिक्रमण किया। मगर उनको इस भाषा का साफ-साफ भेद नहीं था। वे बोलते रहे पुराना ढंग, पुरानी शैली।
मगर रामकृष्‍ण जैसे सभी लोग नहीं है। निन्यानवे ज्ञानी तो, सुलोचना, अज्ञानी है, महाअज्ञानी है। वि सिर्फ बकवास कर रहे है। वह अपने भय का सिर्फ निवेदन कर रहे है। वे दो चीजों से डरे है: क्‍योंकि स्‍त्री में सुख की आशा मालूम पड़ती है। और धन से डरे है। बस दोनों को गालियां दे रहे है। उनकी गालियां सबूत है कि उनके भीतर रस मोजूदा है।
पर रामकृष्‍ण इस के पास चले गये थे। इस पुराने ढंग के। अब वक्‍त आ गया है कि यह पुराना ढर्रा बंद होना चाहिए। इसलिए मैं धर्म को नई भाषा देने की कोशिश कर रहा हूं। स्‍वभावत: मुझे गालियां पड़ेगी। क्‍योंकि वे निन्यानवे लोग मेरी भाषा की बदलाहट से स्‍वभावत: नाराज होने वाले है। उनके तो हाथ से धंधा गया। उनकी तो मैं जमीन खींचे ले रहा हूं। हां, सौ में से वह जो एक व्‍यक्‍ति है, वह मेरे साथ राज़ी होगा। रामकृष्‍ण जैसा व्‍यक्‍ति मेरे साथ राज़ी होगा। रामकृष्‍ण मुझे मिल जाएं तो मैं उनकी भाषा बदल दूँ। वे मुझसे राज़ी हो जाएंगे। वे कहेंगे, अरे यही मैं कहना चाहता था। मगर मुझे कहने का पता नहीं था। मुझे जो पता था, वैसा मैंने कह दिया था। सच मैं तो यही कहना चाहता था,तुमने तो मेरे मुहँ की बात छिन ली। और वो प्रसन्‍न होंगे, और नाच उठेंगे।
जीसस मुझे मिल जाएं मुझसे राज़ी होंगे। बुद्ध मुझे मिल जाएं,मुझसे राज़ी होंगे। लेकिन जिन बुद्धूओं को तुम ज्ञानी समझ रही हो वे मुझसे राज़ी नहीं हो सकते।

–ओशो
आपुई गई हिराय,
ओशो कम्‍यून इंटरनेशनल,
पूना♣️

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

गौतम बुद्ध के पांच शिशय थे


गौतम बुद्ध के पांच शिशय थे, जब वे तपश्चर्या कर रहे थे। फिर बुद्ध को लगा कि इस तपश्चर्या में कुछ सार नहीं है, व्यर्थ मैं अपने शरीर को सुखा रहा हूं; यह तो निपट दुखवाद है; यह तो आत्महिंसा है। तो उन्होंने तपश्चर्या छोड़ दी। वे जो पांच शिशय थे वे तो परंपरागत रूप से इसीलिए उनके शिशय थे कि बुद्ध तपश्चर्या में बड़े कुशल थे, अपने को सताने में लाजवाब थे। ऐसे-ऐसे ढंग से अपने को सताते थे, ऐसी-ऐसी नई-नई ईजादें करते थे अपने को सताने की, इसीलिए वे पांच उनसे प्रभावित थे। उन्होंने देखा: यह तो भ्रशट हो गया, गौतम भ्रशट हो गया। अब इसने तपश्चर्या छोड़ दी। तो वे छोड़ कर चले गए।
और तब बुद्ध को परमज्ञान हुआ। जब परमज्ञान बुद्ध को हुआ तो उन्होंने कहा कि पहले मैं उन पांच को खोजूं जो मुझे छोड़ कर चले गए थे। कुछ भी हो, वे मेरे साथ वर्षों रहे। वे मुझे छोड़ कर चले गए हैं, मैंने उन्हें नहीं छोड़ दिया है। उनकी नासमझी के लिए इतना बड़ा दंड देना उचित नहीं है। तो वे उनकी तलाश में आए, इसीलिए सारनाथ तक आए, क्योंकि जैसे-जैसे उनकी खोज की, पता चला वे और आगे, और आगे, पता चला वे सारनाथ में रुके हुए हैं, तो वे सारनाथ आए। सुबह का वक्त है। ऐसी ही सुबह रही होगी। वे पांचों बैठे हैं एक वृक्ष के नीचे और उन्होंने देखा बुद्ध को आते हुए। उन पांचों ने कहा: यह भ्रशट गौतम आ रहा है। हम इसको उठ कर नमस्कार न करें। यह भ्रशट हो चुका है, इसको क्यों नमस्कार करना? हम इसकी तरफ पीठ ही रखें। आए और खुद ही बैठ जाए तो बैठ जाए। हम यह भी नहीं कहेंगे कि आइए, पधारिए, विराजिए। हम क्यों कहें? इससे तो हम ही बेहतर हैं, कम से कम अपने मार्ग पर तो डटे हुए हैं। यह तो मार्ग से च्युत हो गया।
उन्होंने पांचों ने तय कर लिया। मगर जैसे-जैसे बुद्ध करीब आए, वैसे-वैसे मुश्किल होने लगी। एक उठा और बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा। दूसरा उठा और वह भी गिरा। फिर तो पांचों उठे और बुद्ध के चरणों पर गिरे। बुद्ध ने कहा कि मेरे मित्रो, इतनी जल्दी अपना संकल्प नहीं छोड़ देना चाहिए। क्या तुमने तय नहीं किया था…क्योंकि तुम्हारे ढंग देख कर मुझे लग रहा था कि तुमने तय किया है…कि सम्मान नहीं दोगे। तुमने मेरी तरफ पीठ कर ली। फिर तुम मेरे चरणों में क्यों गिरे?
उन्होंने कहा: यह तो हमें भी पता नहीं। मगर तुम्हारे साथ एक हवा आई, तुम्हारे साथ गंध का एक प्रवाह आया! तुम क्या आए, एक ऊर्जा आई, एक वातावरण आया। तुम क्या आए जैसे वसंत आया और फूल अपने आप खिलने लगें। हम करें भी तो क्या करें?
इसको मैं श्रद्धा कहता हूं: फूल अपने आप खिलने लगे।
आदर, आनंद मैत्रेय, औपचारिक होता है–दो कौड़ी का, उसका कोई भी मूल्य नहीं। मूल्य है तो श्रद्धा का। भाषाकोश में तो दोनों का एक ही अर्थ है, लेकिन जीवन के कोष में दोनों बड़े विपरीत हैं। श्रद्धा में प्राण होते हैं; आदर लाश है। आदर होता है परंपरागत; श्रद्धा होती है व्यक्तिगत। आदर होता है सामूहिक; श्रद्धा होती है निजी, आत्मगत। श्रद्धा अपना निर्णय है; आदर दूसरों का निर्णय है। और जो दूसरों के निर्णय से चलता है, वह भी कोई आदमी है? भेड़ है! आदर में शर्त होती है, फिर शर्त चाहे कोई भी हो–आयु की शर्त हो, कि कोई उम्र में बड़ा है, तो उसको आदर देना चाहिए। अब उम्र में बड़े होने से क्या आदर का संबंध है? कोई संबंध नहीं है। कितने तो बूढ़े हैं दुनिया में, जो बचकानी प्रवृत्तियों से भरे हुए हैं। कोई बूढ़े होने से ही थोड़े प्रौढ़ होता है। काश प्रौढ़ता इतनी सस्ती बात होती, कि बूढ़े हो गए और प्रौढ़ हो गए! अधिकतर लोग तो बाल धूप में ही सफेद करते हैं। जीवन का अनुभव और बात है। उम्र का बढ़ते जाना और बात है। उम्र तो जानवरों की भी बढ़ेगी। उम्र तो बढ़ती चली जाएगी। वह तो घड़ी और कैलेंडर की बात है; आत्मा की नहीं। ऐसे भी पड़े रहे तो भी उम्र बढ़ती ही रहेगी; कुछ भी न किया तो भी उम्र बढ़ती रहेगी। सब तरह की मूढ़ताएं करते रहे तो भी उम्र बढ़ती रहेगी। उम्र का कोई संबंध बोध से नहीं है।

🌺🌺 रहिमन धागा प्रेम का # 10
🌺🌺🌺🌺 ओशो

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एक वृद्ध सन्यासी महात्मा हिमालय की कन्दराओं में कहीं रहते थे।


एक वृद्ध सन्यासी महात्मा हिमालय की कन्दराओं में कहीं रहते थे।
उनकी सहृदयता, ज्ञान,और बुद्धिमत्ता की ख्याति दूर -दूर तक फैली थी।
एक दिन एक महिला उनके पास पहुंची,दण्डवत प्रणाम कर रुआंसी होते हुए अपना दुखड़ा सन्यासी महात्माजी को बताया……
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“बाबा जी!, मेरे पति मुझसे बहुत प्रेम करते थे, लेकिन जबसे वह युद्ध से लौटें हैं ठीक से बात तक भी नहीं करते।”
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“युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है।” सन्यासी महात्मा जी ने जवाब दिया।
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“महात्मन!सुना है कि आपकी दी हुई औषधि इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है,कृपया मेरी मनोस्थिति को समझते हुए आपश्री मुझे वह औषध प्रदान करने एवम उसकी सेवन विधि बताने की अनुकम्पा करें।”
महिला ने कातर स्वर में विनती की l
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सन्यासी महात्मा ने कुछ देर मन ही मन विचार किया और बोले,…….
देवी! मैं तुम्हे वह औषधि ज़रूर दे देता किन्तु उसे बनाने के लिए ऐसी वस्तु की आवश्यकता है जो इस समय मेरे पास नहीं है,मेरे शिष्य भी सुदूर तीर्थ यात्रा पर गए हुए हैं एवम मेरे लिए उस वस्तु का इंतज़ाम करना फिलहाल तो दुष्कर है।”
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“मेरे लिए औषध निर्माण हेतु आपश्री को जिस भी वस्तु की आवश्यकता हो कृपया अवगत करवाएं।मैं हर हाल में उसे आपश्री के श्रीचरणों में समर्पित करूंगी।”
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करबद्ध होकर महिला ने विश्वाश पूर्वक कहा।
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“मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए।” सन्यासी महात्मा शान्त स्वर में बोले।
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अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी ,बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखाई दिया,बाघ उसे देखते ही दहाड़ उठा। महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी l
अगले कुछ दिनों तक यही हुआ, महिला हिम्मत कर उस बाघ के पास जाती और डर कर वापस चली जाती।
महीना बीतते-बीतते बाघ महिला की मौजूदगी का अभ्यस्त हो गया और अब वह उसे देख कर भी सामान्य ही रहता l
अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता।
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बाघ और महिला की दोस्ती बढ़ने लगी और तो और महिला तो बाघ को थपथपाने भी लगी और देखते देखते एक दिन वह भी आ गया जब उसने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया l
फिर क्या था,बिना कोई देरी किये महिला जा पँहुची सन्यासी महात्मा जी के पास।
खुश होते हुए बोली, “ले आई बाघ की मूँछ का बाल।”
लेकिन यह क्या….
“बहुत अच्छा” कहते हुए सन्यासी ने उस बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया l
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“अरे यह क्या बाबा जी, आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया ……अब मेरी औषधि कैसे बनेगी ?” महिला घबराते हुए बोली l
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“अब तुम्हे किसी औषधि की ज़रुरत ही नहीं रही” सन्यासी महात्मा मुस्कुराते हुए बोले,” जरा सोचो! तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया, जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्या एक इंसान को नहीं ? जाओ जिस तरह तुमने बाघ को अपना मित्र बना लिया उसी तरह अपने पति के अन्दर प्रेम भाव जागृत करो l”
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महिला महात्मा जी की बात समझ गयी,एक नए आत्मविश्वास के साथ लौट पड़ी अपने पति का वही पुराना प्रेम पाने को।
जीवन बहुत छोटा है।उसे सरल रूप से जिया जाय तभी बेहतर है,अन्यथा उलझकर तो हम अपनी परेशानियों को ही बढ़ाते है।
मनुष्य चाहे तो अपने आत्मविश्वास धैर्य और प्रेम से क्या नहीं कर सकता।

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चार आने का हिसाब


चार आने का हिसाब___________

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बहुत समय पहले की बात है चंदनपुर का राजा बड़ा प्रतापी था , दूर-दूर तक उसकी समृद्धि की चर्चाएं होती थी, उसके महल में हर एक सुख-सुविधा की वस्तु उपलब्ध थी पर फिर भी अंदर से उसका मन अशांत रहता था। उसने कई ज्योतिषियों और पंडितों से इसका कारण जानना चाहा, बहुत से विद्वानो से मिला, किसी ने कोई अंगूठी पहनाई तो किसी ने यज्ञ कराए , पर फिर भी राजा का दुःख दूर नहीं हुआ, उसे शांति नहीं मिली एक दिन भेष बदल कर राजा अपने राज्य की सैर पर निकला। घूमते- घूमते वह एक खेत के निकट से गुजरा , तभी उसकी नज़र एक किसान पर पड़ी , किसान ने फटे-पुराने वस्त्र धारण कर रखे थे और वह पेड़ की छाँव में बैठ कर भोजन कर रहा था किसान के वस्त्र देख राजा के मन में आया कि वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे ताकि उसके जीवन मे कुछ खुशियां आ पाये राजा किसान के सम्मुख जा कर बोला – ” मैं एक राहगीर हूँ , मुझे तुम्हारे खेत पर ये चार स्वर्ण मुद्राएँ गिरी मिलीं , चूँकि यह खेत तुम्हारा है इसलिए ये मुद्राएं तुम ही रख लो। किसान – ” ना – ना सेठ जी , ये मुद्राएं मेरी नहीं हैं , इसे आप ही रखें या किसी और को दान कर दें , मुझे इनकी कोई आवश्यकता नहीं। “
किसान की यह प्रतिक्रिया राजा को बड़ी अजीब लगी , वह बोला , ” धन की आवश्यकता किसे नहीं होती भला आप लक्ष्मी को ना कैसे कर सकते हैं ?”
“सेठ जी , मैं रोज चार आने कमा लेता हूँ , और उतने में ही प्रसन्न रहता हूँ… “, किसान बोला।
“क्या ? आप सिर्फ चार आने की कमाई करते हैं , और उतने में ही प्रसन्न रहते हैं , यह कैसे संभव है !” , राजा ने अचरज से पुछा।
” सेठ जी”, किसान बोला ,” प्रसन्नता इस बात पर निर्भर नहीं करती की आप कितना कमाते हैं या आपके पास कितना धन है …. प्रसन्नता उस धन के प्रयोग पर निर्भर करती है। “
” तो तुम इन चार आने का क्या-क्या कर लेते हो ?, राजा ने उपहास के लहजे में प्रश्न किया।
किसान भी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहता था उसने आगे बढ़ते हुए उत्तर दिया , ”
इन चार आनो में से एक मैं कुएं में डाल देता हूँ , दुसरे से कर्ज चुका देता हूँ , तीसरा उधार में दे देता हूँ और चौथा मिटटी में गाड़ देता हूँ ….”
राजा सोचने लगा , उसे यह उत्तर समझ नहीं आया। वह किसान से इसका अर्थ पूछना चाहता था , पर वो जा चुका था।
राजा ने अगले दिन ही सभा बुलाई और पूरे दरबार में कल की घटना कह सुनाई और सबसे किसान के उस कथन का अर्थ पूछने लगा।
दरबारियों ने अपने-अपने तर्क पेश किये पर कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर पाया , अंत में किसान को ही दरबार में बुलाने का निर्णय लिया गया।
बहुत खोज-बीन के बाद किसान मिला और उसे कल की सभा में प्रस्तुत होने का निर्देश दिया गया।
राजा ने किसान को उस दिन अपने भेष बदल कर भ्रमण करने के बारे में बताया और सम्मान पूर्वक दरबार में बैठाया।
” मैं तुम्हारे उत्तर से प्रभावित हूँ , और तुम्हारे चार आने का हिसाब जानना चाहता हूँ; बताओ, तुम अपने कमाए चार आने किस तरह खर्च करते हो जो तुम इतना प्रसन्न और संतुष्ट रह पाते हो ?” , राजा ने प्रश्न किया।
किसान बोला ,” हुजूर , जैसा की मैंने बताया था , मैं एक आना कुएं में डाल देता हूँ , यानि अपने परिवार के भरण-पोषण में लगा देता हूँ, दुसरे से मैं कर्ज चुकता हूँ , यानि इसे मैं अपने वृद्ध माँ-बाप की सेवा में लगा देता हूँ , तीसरा मैं उधार दे देता हूँ , यानि अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में लगा देता हूँ, और चौथा मैं मिटटी में गाड़ देता हूँ , यानि मैं एक पैसे की बचत कर लेता हूँ ताकि समय आने पर मुझे किसी से माँगना ना पड़े और मैं इसे धार्मिक ,सामाजिक या अन्य आवश्यक कार्यों में लगा सकूँ। “
राजा को अब किसान की बात समझ आ चुकी थी। राजा की समस्या का समाधान हो चुका था , वह जान चुका था की यदि उसे प्रसन्न एवं संतुष्ट रहना है तो उसे भी अपने अर्जित किये धन का सही-सही उपयोग करना होगा।
मित्रों, देखा जाए तो पहले की अपेक्षा लोगों की आमदनी बढ़ी है पर क्या उसी अनुपात में हमारी प्रसन्नता भी बढ़ी है ? पैसों के मामलों में हम कहीं न कहीं गलती कर रहे हैं , लाइफ को बैलेंस्ड बनाना ज़रूरी है और इसके लिए हमें अपनी आमदनी और उसके इस्तेमाल पर ज़रूर गौर करना चाहिए, नहीं तो भले हम लाखों रूपये कमा लें पर फिर भी प्रसन्न एवं संतुष्ट नहीं रह पाएंगे.

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चमत्कारी ताबीज़


चमत्कारी ताबीज़

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किसी गांव में राम नाम का एक नवयुवक रहता था। वह बहुत मेहनती थे, पर हमेशा अपने मन में एक शंका लिए रहता कि वो अपने कार्यक्षेत्र में सफल होगा या नहीं! कभी-कभी वो इसी चिंता के कारण आवेश में आ जाता और दूसरों पर क्रोधित भी हो उठता।
एक दिन उसके गांव में एक प्रसिद्ध महात्मा जी का आगमन हुआ।

खबर मिलते ही राम, महात्मा जी से मिलने पहुंचा और बोला, “ महात्मा जी मैं कड़ी मेहनत करता हूँ, सफलता पाने के लिए हर-एक प्रयत्न करता हूँ; पर फिर भी मुझे सफलता नहीं मिलती। कृपया आप ही कुछ उपाय बताएँ।”

महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा- बेटा, तुम्हारी समस्या का समाधान इस चमत्कारी ताबीज में है, मैंने इसके अन्दर कुछ मन्त्र लिखकर डालें हैं जो तुम्हारी हर बाधा दूर कर देंगे। लेकिन इसे सिद्ध करने के लिए तुम्हे एक रात शमशान में अकेले गुजारनी होगी।”

शमशान का नाम सुनते ही राम का चेहरा पीला पड़ गया, “ लल्ल..ल…लेकिन मैं रात भर अकेले कैसे रहूँगा…”, राम कांपते हुए बोला।

“घबराओ मत यह कोई मामूली ताबीज नहीं है, यह हर संकट से तुम्हे बचाएगा।”, महात्मा जी ने समझाया।

राम ने पूरी रात शमशान में बिताई और सुबह होती ही महात्मा जी के पास जा पहुंचा, “ हे महात्मन! आप महान हैं, सचमुच ये ताबीज दिव्य है, वर्ना मेरे जैसा डरपोक व्यक्ति रात बिताना तो दूर, शमशान के करीब भी नहीं जा सकता था। निश्चय ही अब मैं सफलता प्राप्त कर सकता हूँ।”

इस घटना के बाद राम बिलकुल बदल गया, अब वह जो भी करता उसे विश्वास होता कि ताबीज की शक्ति के कारण वह उसमें सफल होगा, और धीरे-धीरे यही हुआ भी…वह गाँव के सबसे सफल लोगों में गिना जाने लगा।

इस वाकये के करीब 1 साल बाद फिर वही महात्मा गाँव में पधारे।

राम तुरंत उनके दर्शन को गया और उनके दिए चमत्कारी ताबीज का गुणगान करने लगा।

तब महात्मा जी बोले,- बेटे! जरा अपनी ताबीज निकालकर देना। उन्होंने ताबीज हाथ में लिया, और उसे खोला।
उसे खोलते ही राम के होश उड़ गए जब उसने देखा कि ताबीज के अंदर कोई मन्त्र-वंत्र नहीं लिखा हुआ था…वह तो धातु का एक टुकड़ा मात्र था!

राम बोला, “ ये क्या महात्मा जी, ये तो एक मामूली ताबीज है, फिर इसने मुझे सफलता कैसे दिलाई?”

महात्मा जी ने समझाते हुए कहा- ” सही कहा तुमने, तुम्हें सफलता इस ताबीज ने नहीं बल्कि तुम्हारे विश्वास की शक्ति ने दिलाई है। पुत्र, हम इंसानों को भगवान ने एक विशेष शक्ति देकर यहाँ भेजा है। वो है, विश्वास की शक्ति। तुम अपने कार्यक्षेत्र में इसलिए सफल नहीं हो पा रहे थे क्योंकि तुम्हें खुद पर यकीन नहीं था…खुद पर विश्वास नहीं था। लेकिन जब इस ताबीज की वजह से तुम्हारे अन्दर वो विश्वास पैदा हो गया तो तुम सफल होते चले गए ! इसलिए जाओ किसी ताबीज पर यकीन करने की बजाय अपने कर्म पर, अपनी सोच पर और अपने लिए निर्णय पर विश्वास करना सीखो, इस बात को समझो कि जो हो रहा है वो अच्छे के लिए हो रहा है और निश्चय ही तुम सफलता के शीर्ष पर पहुँच जाओगे। “

राम महात्मा जी के बात को गंभीरता से सुन रहा था और उसे आज एक बहुत बड़ी सीख मिली थी कि यदि उसे किसी भी क्षेत्र में सफल होना है तो उसे अपने प्रयत्नों पर विश्वास करना होगा। यदि वह खुद पर विश्वास कर लेता है तो उसकी सफलता का प्रतिशत हमेशा बढ़ता चला जायेगा।

मित्रों, सफलता का सीधा सम्बन्ध आपके अंदर के विश्वास से होता है। यदि आप खुद पर यकीन रखते हैं तो आपको हाथों में अलग-अलग पत्थरों के अंगूठियाँ पहनने की जरूरत नहीं, माला या ताबीज के साथ की जरूरत नहीं है। बस मन में विश्वास का होना जरूरी है कि आप कर सकते हैं, सफल हो सकते हैं और आप सफल हो जायेंगे भी।

🏆विश्वास रखिये, आगे बढ़िए और सफलता पाइए।🏆

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सबसे प्राचीन जीवंत हिन्दू मंदिर मुंडेश्वरी मंदिर


सबसे प्राचीन जीवंत हिन्दू मंदिर मुंडेश्वरी मंदिर

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संसार में सबसे प्राचीन जीवंत हिन्दू मंदिर मुंडेश्वरी मंदिर माना जाता है साथ ही भारत में सबसे प्राचीन पूर्ण जीवंत हिन्दू मंदिर भी इसी मंदिर को मानते हैं.
आकिर्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने माना है कि इतिहास के मद्देनजर यह भारत देश का सबसे पुराना मंदिर है.

भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित इस मंदिर के पुरुत्थान के लिए योजनायें बन रही है.यूनेस्को की लिस्ट में भी शामिल करवाने के प्रयास जारी हैं.इस मंदिर के बारे में मैं यहाँ संक्षेप में जानकारी दे रही हूँ.

मुंडेश्वरी देवी का यह मंदिर बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है.
कैमूर जिले का नाम सुन कर आप को भी याद आ गया होगा जी हाँ ,यह वही कैमूर जिला है जहाँ हरशुब्रह्म धाम में हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रारंभ होते ही नवरात्र के अवसर पर कथित तौर पर भूतों की अदालत लगती है और कुछ लोग कथित भूतों, डायनों और चुडैलों से मुक्ति दिलाते हैं.अब इस में क्या सच्चाई है हम नहीं जानते
चलिए आप को इस देवी मंदिर के बारेमें बताते हैं .
स्थापना कब और किस ने करवाई -पुरातत्व विभाग को यहाँ ब्राह्मी लिपि में लिखित जो शिलालेख और श्रीलंका के महाराजा दुतगामनी की राजकीय मुद्रा मिली थीं. जिन पर किये ताज़ा पुरातात्विक शोधों के आधार पर इसे कुषाण युग में हुविश्क के शासनकाल में सन्‌ 108 ईस्वी में उत्कीर्ण माना जा रहा है.किस ने बनवाया यह ज्ञात नहीं है.
इस मंदिर के आस पास अवशेषों में कई अन्य भगवानो की मूर्तियाँ आदि भी मिली हैं.मुख्यत देवी मुंडेश्वरी की पूजा होती है.यहाँ शिव और पार्वती की पूजा होते रहने के भी प्रमाण मिले हैं.
कुछ और रोचक तथ्य –

१-यहाँ एक चतुर्मुखी शिवलिंग है ,कहते हैं इसका रंग सुबह, दोपहर और शाम में अलग अलग दिखता है.

२-यहाँ बकरे की बलि नहीं दी जाती बल्कि बकरे को देवी के सामने लाया जाता है.उसपर मन्त्र वाले चावल पुजारी छिडकता है जिस से वह बेहोश हो जाता है और फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है.

३-सालों बाद यहां तांडुलम भोग [चावल का भोग] और वितरण की परंपरा पुन: शुरू हो गई है.माना जाता है कि 108 ईस्वी में यहां यह परंपरा जारी थी.

४- यहां का अष्टाकार गर्भगृह तब से अब तक कायम है.

५- जानकार मानते हैं कि उत्तर प्रदेश के कुशीनगर और नेपाल के कपिलवस्तु का रूट मुंडेश्वरी मंदिर से जुड़ा था.

६ -वैष्णो देवी की तर्ज पर इस मंदिर का विकास किये जाने की योजनायें राज्य सरकार ने बनाई हैं.

७-इस मंदिर का संरक्षक एक मुस्लिम है.

मुंडेश्वरी मंदिर की प्राचीनता का महत्व इस दृष्टि से और अधिक है कि यहां पर पूजा की परंपरा १९०० सालों से अविच्छिन्न रही है और आज भी यह मंदिर पूरी तरह जीवंत है

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कामेश्वर धाम कारो – बलिया – यहाँ भगवान शिव ने कामदेव को किया था भस्म


कामेश्वर धाम कारो – बलिया – यहाँ भगवान शिव ने कामदेव को किया था भस्म
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में है कामेश्वर धाम। इस धाम के बारे में मान्यता है कि यह, शिव पुराण मे वर्णित वही जगह है जहा भगवान शिव ने देवताओं के सेनापति कामदेव को जला कर भस्म कर दिया था। यहाँ पर आज भी वह आधा जला हुआ, हरा भरा आम का वृक्ष (पेड़) है जिसके पीछे छिपकर कामदेव ने समाधी मे लीन भोले नाथ को समाधि से जगाने के लिए पुष्प बाण चलाया था।

कामेश्वर धाम कारो
आखिर क्यों महादेव शिव ने कामदेव को भस्म किया ? :
भगवान शिव द्वारा कामदेव को भस्म करने कि कथा (कहानी) शिव पुराण मे इस प्रकार है। भगवान शिव कि पत्नी सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ मे अपने पति भोलेनाथ का अपमान सहन नही कर पाती है और यज्ञ वेदी मे कूदकर आत्मदाह कर लेती है। जब यह बात शिवजी को पता चलती है तो वो अपने तांडव से पूरी सृष्टि मे हाहाकार मचा देते है। इससे व्याकुल सारे देवता भगवान शंकर को समझाने पहुंचते है। महादेव उनके समझाने से शान्त होकर, परम शान्ति के लिए, गंगा तमसा के इस पवित्र संगम पर आकर समाधि मे लिन हो जाते है।

कामेश्वर धाम कारो
इसी बीच महाबली राक्षस तारकासुर अपने तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके ऐसा वरदान प्राप्त कर लेता है जिससे की उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र द्वारा ही हो सकती थी। यह एक तरह से अमरता का वरदान था क्योकि सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव समाधि मे लीन हो चुके थे।
इसी कारण तारकासुर का उत्पात दिनो दिन बढ़ता जाता है और वो स्वर्ग पर अधिकार करने कि चेष्टा करने लगता है। यह बात जब देवताओं को पता चलती है तो वो सब चिंतित हो जाते है और भगवान शिव को समाधि से जगाने का निश्चय करते है। इसके लिए वो कामदेव को सेनापति बनाकर यह काम कामदेव को सोपते है। कामदेव, महादेव के समाधि स्थल पहुंचकर अनेकों प्रयत्नो के द्वारा महादेव को जगाने का प्रयास करते है, जिसमे अप्सराओ के नृत्य इत्यादि शामिल होते है, पर सब प्रयास बेकार जाते है।
अंत में कामदेव स्वयं भोले नाथ को जगाने लिए खुद को आम के पेड़ के पत्तो के पीछे छुपाकर शिवजी पर पुष्प बाण चलाते है। पुष्प बाण सीधे भगवान शिव के हृदय मे लगता है, और उनकी समाधि टूट जाति है। अपनी समाधि टूट जाने से भगवान शिव बहुत क्रोधित होते है और आम के पेड़ के पत्तो के पिछे खडे कामदेव को अपने त्रिनेत्र से जला कर भस्म कर देते है।

आम का पेड़ , कामेश्वर धाम कारो
कई संतो कि तपोभूमि रहा है कामेश्वर धाम :
त्रेतायुग में इस स्थान पर महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान श्रीराम लक्ष्मण आये थे जिसका उल्लेख बाल्मीकीय रामायण में भी है। अघोर पंथ के प्रतिष्ठापक श्री कीनाराम बाबा की प्रथम दीक्षा यहीं पर हुर्इ थी। यहां पर दुर्वासा ऋषि ने भी तप किया था।
बताते हैं कि इस स्थान का नाम पूर्व में कामकारू कामशिला था। यही कामकारू पहले अपभ्रंश में काम शब्द खोकर कारूं फिर कारून और अब कारों के नाम से जाना जाता है।

रानी पोखरा – कामेश्वर धाम कारो Image Credit
कामेश्वर धाम कारो मे तीन प्राचीन शिवलिंग व शिवालय स्थापीत है।

श्री कामेश्वर नाथ शिवालय :
यह शिवालय रानी पोखरा के पूर्व तट पर विशाल आम के वृक्ष (पेड़) के नीचे स्थित है। इसमें स्थापित शिवलिंग खुदाई में मिला था जो कि ऊपर से थोड़ा सा खंडित है।

सूर्य प्रतिमा कामेश्वर धाम कारो
श्री कवलेश्वर नाथ शिवालय :
इस शिवालय कि स्थापना अयोध्या के राजा कमलेश्वर ने कि थी। कहते है की यहां आकर उनका कुष्ट का रोग सही हो गया था इस शिवालय के पास मे हि उन्होने विशाल तालाब बनवाया जिसे रानी पोखरा कहते है।

नंदी कामेश्वर धाम कारो
श्री बालेश्वर नाथ शिवालय :
बालेश्वर नाथ शिवलिंग के बारे मे कहा जाता है कि यह एक चमत्कारिक शिवलिंग है। किवदंती है की जब 1728 में अवध के नवाब मुहम्मद शाह ने कामेश्वर धाम पर हमला किया था तब बालेश्वर नाथ शिवलिंग से निकले काले भौरो ने जवाबी हमला कर उन्हे भागने पर मजबूर कर दिया था।

http://ajabgajob.blogspot.com/2014/06/blog-post_13.html

 


कामेश्वर धाम, कारो, बलिया

कामदहन भूमि कामाश्रम

यह तीर्थ स्थान बलिया वाराणसी रेलमार्ग पर चितबड़ागांव एवं ताजपुर डेहमा रेलवे स्टेशनों के बीच में सिथत है। मान्यता है कि कामेश्वर धाम वह स्थान है, जहां भगवान शिव ने देव सेनापति कामदेव को जला कर भस्म कर दिया था। यहां आज भी वह प्राचीन आम का वृृक्ष जला हुआ हरा-भरा खड़ा है। जिसके पत्तों में छिपकर कामदेव जी ने समाधिस्थ शिव पर वाण चलाया था।

त्रेतायुग में इस स्थान पर महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान श्रीराम लक्ष्मण भी आये थे जिसका उल्लेख बाल्मीकीय रामायण में भी है। अघोर पंथ के प्रतिष्ठापक श्री कीनाराम बाबा की प्रथम दीक्षा यहीं पर हुर्इ थी। यहां दुर्वासा ऋषि ने भी तप किया था। यहां पहुंच कर स्वत: ही इसकी दिव्यता महसूस हो जाती है । मान्यता है कि इस तीर्थ पर त्रयोदशी युक्त शनिवार को दर्शन करने वालों की सारी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं

शिवपुराण के अनुसार महाबली तारकासुर ने तप करके ब्रह्राा जी से ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया जिसके तहत उसकी मृत्यु केवल शिवपुत्र के हाथों हो सकती थी। यह लगभग अमरता का वरदान था क्यों कि उस समय भगवान शिव की भार्या सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पतिदेव भगवान भोलेनाथ के अपमान से रूष्ट होकर यज्ञ भूमि में आत्मदाह कर चुकी थीं । इस घटना से क्रोधित भगवान शिव तांडव नृत्य कर देवगणों के प्रयास से शान्त होकर परम शानित के निमित्त विमुकित भूमि गंगा तमसा के पवित्र संगम पर आकर समाधिस्थ हो चुके थे।

तारकासुर के दिनों – दिन बढ़ते उत्पात के चलते देवताओं ने भगवान शिव को समाधि से जगाने का निर्णय किया। इसके निमित्त भगवान कामदेव को सेनापति बनाया गया। कामदेव ने महादेव के समाधि स्थान पर पहुंच कर विभिन्न प्रकार के आयोजन किये जिसमें कि मनमोहनी अप्सराओं का नृत्य इत्यादि शामिल था लेकिन सारे प्रयास असफल रहे।

महादेव की समाधि पर कोर्इ प्रभाव नहीं पड़ा। विफल होने पर कामदेव ने आम के पेड़ के पत्तों में खुद को छुपाकर महादेव भगवान शिव पर पुष्प धनुष से प्रहार किया। शिव के हृदय में पुष्प मोहिनी बाण लगते ही उनकी समाधि भंग हो गयी।

इस प्रकार संक्रोधित भगवान शिव ने कामदेव को जला कर भस्म कर दिया। इस दिव्य घटना का साक्षी यह पवित्र धाम सभी के लिए पूजनीय है । बताते हैं कि इस स्थान का नाम पूर्व में कामकारू कामशिला था। यही कामकारू पहले अपभ्रंश में काम शब्द खोकर कारूं फिर कारून और अब कारों के नाम से जाना जाता है।

कारों के दक्षिण गंगिया के छाडन मोहन आदि स्थल एवं उत्तर में प्रवाहित तमसा छोटी सरयू और दक्षिण में प्रवाहित गंगा नदी की भू परिसिथतियां इंगित करती हैं कि काफी समय तक कारों में ही इन नदियों का संगम स्थल रहा है । बाल्मीकीय रामयण के बाल खण्ड में भी कामदहन भूमि की प्रमाणिकता मिलती है।

कामेश्वर धाम पहुंचने का मार्ग

बलिया जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दक्षिण पशिचम दिशा में बलिया वाराणसी मार्ग पर सिथत है । बलिया से आटो रिक्शा चलते हैं, जो बहेरी पुल बलिया से चितबड़ागांव होकर जाते हैं।

सड़क मार्ग से फेफना चितबड़ागांव होकर धर्मापुर पहुंचने पर कामेश्वर धाम के दिव्य स्वागत द्वार के दर्शन हो जाते हैं रेल मार्ग से यहां आने हेतु ताजपुर स्टेशन उतरना होगा। यहां से कामेश्वर धाम 3 किलोमीटर दक्षिण पूर्व दिशा में सिथत है। चितबड़ागांव रेलवे स्टेशन उतरना भी उपयुक्त होगा। यहां से कामेश्वर धाम जाने के लिए आटो रिक्शा आसानी से मिल जाते हैं।

कामेश्वर धाम दर्शन

श्री कामेष्वरनाथ षिवालय एवं प्राचीन आम वृक्ष

कामाश्रम का यह प्रसिद्ध शिवलिंग रानी पोखरा के पूर्व तट पर पांच फीट गडडे में विशाल आम वृक्ष की जड़ में अवसिथत है। यह शिवलिंग खुदार्इ में मिला था। यह उपर से खंडित है । इस शिवलिंग एक पवित्र आम के पेड़ के विषय में कारों के बुजुर्ग नागरिकों का कहना हे कि बचपन में भी हमने इस आम के पेड़ एवं शिव लिंग को ज्यों का त्यों देखा है । काफी हद तक जला किन्तु हरा भरा यह आम वृक्ष एक दिव्य स्थान है काबिले गौर हे कि इस प्राचीन आम वृक्ष पर अब भी आम लगते हैं ।

श्री कामेश्वर धाम झील एवं कवलेश्वर ताल

मंदिर क्षेत्र के प्रवेश द्वार के पास ही इस सुरम्य झील के दर्शन होते हैं । गंगा तमसा सरयू द्वारा खराद कर बनी यह झील प्रकृति के मनोहर दृश्यों से सजिजत है । लाल कमल फूलों के लिए झील काफी प्रसिद्ध है ।

श्री कवलेश्वर नाथ शिवालय

प्राचीन शिवलिंग के ठीक सामने सिथत इस देवालय की स्थापना अध्योध्या के राजा कवलेश्वर ने कराया था। बताते हैं कि यहां आकर उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया था। उन्होंने शिवालय के पास ही विशाल तालाब बनवाया जिसे रानी पोखरा कहा जाता है।

जिसका वर्तमान में सुन्दर तरिके से जीर्णोद्धार 2001 र्इ. से शुरु कराया गया। जो आज भी जारी है।

श्री बालेश्वर नाथ शिवालय

कामेश्वर धाम कारों में सिथत बालेश्वर नाथ शिवलिंग एक चमत्कारी देवालय है। इस मनिदर के सभी प्रतिमायें लाल पत्थर की बनी हैं।

बताते हैं कि सन 1728 में मुहम्मदशाह नामक एक शासक अवध का नबाब बना। उसने एक बार कामेश्वर धाम पर हमला बोल दिया तब श्री बालेश्वर महादेव शिवलिंग से लोगों की संख्या में निकले काले भौंरो ने नबाब की सेना पर हमला बोल दिया। सेना को मुंह छुपा कर भागना पड़ा

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भगवान शिव की साधना स्थली कारो कामेश्वर धाम,पुराणों में वर्णित यह वही स्थान है जहां भगवान भोले नाथ ने कामदेव को भष्म किया था ………………..और भी बहुत कुछ है धर्म की इस महा गाथा में , ज़रूर पढ़ें !!

भगवान शिव की साधना स्थली कारो कामेश्वर धाम,पुराणों में वर्णित यह वही स्थान है जहां भगवान भोले नाथ ने कामदेव को भष्म किया था।पुराणों में, वेदों में और शास्त्रों में भगवान शिव-महाकाल के महात्म्य को प्रतिपादित किया गया है। भगवान शिव हिन्दू संस्कृति के प्रणेता आदिदेव महादेव हैं। हमारी सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार 33 करोड़ देवताओं में ‘शिरोमणि’ देव शिव ही हैं। सृष्टि के तीनों लोकों में भगवान शिव एक अलग, अलौकिक शक्ति वाले देव हैं।
भगवान शिव पृथ्वी पर अपने निराकार-साकार रूप में निवास कर रहे हैं। भगवान शिव सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान हैं। महाशिवरात्रि पर्व भगवान शिवशंकर के प्रदोष तांडव नृत्य का महापर्व है। शिव प्रलय के पालनहार हैं और प्रलय के गर्भ में ही प्राणी का अंतिम कल्याण सन्निहित है। शिव शब्द का अर्थ है ‘कल्याण’ और ‘रा’ दानार्थक धातु से रात्रि शब्द बना है, तात्पर्य यह कि जो सुख प्रदान करती है, वह रात्रि है।
शिवस्य प्रिया रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतं शिवरात्र्‌याख्याम्‌।’
इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जो आनंद प्रदायिनी है और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है। शिवरात्रि, जो फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को है, उसमें शिव पूजा, उपवास और रात्रि जागरण का प्रावधान है। इस महारात्रि को शिव की पूजा करना सचमुच एक महाव्रत है।
ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति महाशिवरात्रि के व्रत पर भगवान शिव की भक्ति, दर्शन, पूजा, उपवास एवं व्रत नहीं रखता, वह सांसारिक माया, मोह एवं आवागमन के बँधन से हजारों वर्षों तक उलझा रहता है। यह भी कहा गया है कि जो शिवरात्रि पर जागरण करता है, उपवास रखता है और कहीं भी किसी भी शिवजी के मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग के दर्शन करता है, वह जन्म-मरण पुनर्जन्म के बँधन से मुक्ति पा जाता है। शिवरात्रि के व्रत के बारे में पुराणों में कहा गया है कि इसका फल कभी किसी हालत में भी निरर्थक नहीं जाता है।
शिवरात्रि व्रत धर्म का उत्तम साधन :
शिवरात्रि का व्रत सबसे अधिक बलवान है। भोग और मोक्ष का फलदाता शिवरात्रि का व्रत है। इस व्रत को छोड़कर दूसरा मनुष्यों के लिए हितकारक व्रत नहीं है। यह व्रत सबके लिए धर्म का उत्तम साधन है। निष्काम अथवा सकाम भाव रखने वाले सांसारिक सभी मनुष्य, वर्णों, आश्रमों, स्त्रियों, पुरुषों, बालक-बालिकाओं तथा देवता आदि सभी देहधारियों के लिए शिवरात्रि का यह श्रेष्ठ व्रत हितकारक है।
शिवरात्रि के दिन प्रातः उठकर स्नानादि कर शिव मंदिर जाकर शिवलिंग का विधिवत पूजन कर नमन करें। रात्रि जागरण महाशिवरात्रि व्रत में विशेष फलदायी है।
गीता में इसे स्पष्ट किया गया है-
या निशा सर्वभूतानां तस्या जागर्ति संयमी।
यस्यां जागृति भूतानि सा निशा पश्चतो सुनेः
तात्पर्य यह कि विषयासक्त सांसारिक लोगों की जो रात्रि है, उसमें संयमी लोग ही जागृत अवस्था में रहते हैं और जहाँ शिवपूजा का अर्थ पुष्प, चंदन एवं बिल्वपत्र, धतूरा, भाँग आदि अर्पित कर भगवान शिव का जप व ध्यान करना और चित्त वृत्ति का निरोध कर जीवात्मा का परमात्मा शिव के साथ एकाकार होना ही वास्तविक पूजा है। शिवरात्रि में चार प्रहरों में चार बार अलग-अलग विधि से पूजा का प्रावधान है।
महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में भगवान शिव की ईशान मूर्ति को दुग्ध द्वारा स्नान कराएँ, दूसरे प्रहर में उनकी अघोर मूर्ति को दही से स्नान करवाएँ और तीसरे प्रहर में घी से स्नान कराएँ व चौथे प्रहर में उनकी सद्योजात मूर्ति को मधु द्वारा स्नान करवाएँ। इससे भगवान आशुतोष अतिप्रसन्न होते हैं। प्रातःकाल विसर्जन और व्रत की महिमा का श्रवण कर अमावस्या को निम्न प्रार्थना कर पारण करें –
संसार क्लेश दग्धस्य व्रतेनानेन शंकर।
प्रसीद समुखोनाथ, ज्ञान दृष्टि प्रदोभव
तात्पर्य यह कि भगवान शंकर! मैं हर रोज संसार की यातना से, दुःखों से दग्ध हो रहा हूँ। इस व्रत से आप मुझ पर प्रसन्न हों और प्रभु संतुष्ट होकर मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान करें।
ॐ नमः शिवाय’ कहिए और देवाधिदेव प्रसन्न होकर सब मनोरथ पूर्ण करेंगे। शिवरात्रि के दिन शिव को ताम्रफमल (बादाम), कमल पुष्प, अफीम बीज और धतूरे का पुष्प चढ़ाना चाहिए एवं अभिषेक कर बिल्व पत्र चढ़ाना चाहिए।जनगण के देवाधिदेव शिव ने यहीं भस्म किया था कामदेव को॥ जन गण मन के आराध्य भगवान शिव एवं शिवरात्रि सहज उपलब्धता और समाज के आखरी छोर पर खडे ब्यक्ति के लिए भी सिर्फ कल्याण की कामना यही शिव है, किरात भील जैसे आदिवासी एवं जनजाति से लेकर कुलीन एवम अभिजात्य वर्ग तक अनपढ़ गंवार से लेकर ज्ञानी अज्ञानी तक सांसारिक मोहमाया में फंसे लोगो से लेकर तपस्वियों, योगियों, निर्धन, फक्कडों, साधन सम्पन्न सभी तबके के आराध्य देव है भगवान शिव, भारत वर्ष में अन्य देवी देवताओं के मन्दिरों की तुलना में शिव मन्दिर सर्वाधिक है।
हर गली मुहल्ले गांव देहात घाट अखाडे बगीचे पर्वत नदी जलाशय के किनारे यहां तक की बियाबान जंगलों मे भी शिवलिंग के दर्शन हो जाते है। यह इस बात का साक्ष्य है कि हमारे श्रृजनता का भगवान शिव में अगाध प्रेम भरा है। वस्तुत: इनका आशुतोष होना अवघडदानी होना केवल वेलपत्र या जल चढानें मात्र से ही प्रशन्न होना आदि कुछ ऐसी विशेषताए हैं जो इनको जन गण मन का देव अर्थात् महादेव बनाती है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना गया है। शिव को अनादि अनन्त अजन्मां माना गया है। यानि उनका न आरम्भ है न अन्त ।न उनका जन्म हुआ है न वे मृत्यु को प्राप्त होते है। इस तरह से भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर है। शिव की साकार यानि मुर्ति रूप एवम निराकार यानि अमूर्त रूप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याण कारी माना गया है।
धार्मिक आस्था से इन शिव नामों का ध्यान मात्र ही शुभ फल देता है। शिव के इन सभी रूप और नामों का स्मरण मात्र ही हर भक्त के सभी दु:ख और कष्टों को दूर कर उसकी हर इच्छा और सुख की पूर्ति करने वाला माना गया है।इसी का एक रूप गाजीपुर जनपद के आखिरी छोर पर स्थित कामेश्वर नाथ धाम कारो (जनपद बलिया) का है।रामायण काल से पूर्व में इस स्थान पर गंगा सरजू का संगम था और इसी स्थान पर भगवान शिव समाधिस्थ हो तपस्यारत थे। उस समय तारकासुर नामक दैत्य राज के आतंक से पूरा ब्रम्हांड व्यथित था। उसके आतंक से मुक्ति का बस एक ही उपाय था कि किसी तरह से समाधिस्थ शिव में काम भावना का संचार हो और शिव पुत्र कार्तिकेय का जन्म हो जिनके हाथो तारकासुर का बध होना निश्चित था। देवताओं के आग्रह पर देव सेनापति कामदेव समाधिस्थ शिव की साधना भूमिं कारो की धरती पर पधारे।
सर्वप्रथम कामदेव ने अप्सराओं ,गंधर्वों के नृत्य गान से भगवान शिव को जगाने का भरपूर प्रयास किया ।विफल होने पर कामदेव ने आम्र बृक्ष के पत्तों मे छिपकर अपने पुष्प धनुष से पंच बाण हर्षण प्रहस्टचेता सम्मोहन प्राहिणों एवम मोहिनी का शिव ह्रदय में प्रहार कर शिव की समाधि को भंग कर दिया। इस पंच बाण के प्रहार से क्रोधित भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। तभी से वह जला पेंड युगो युगो से आज भी प्रमाण के रूप में अपनी जगह पर खडा है।आज भी उस आम के पेंड की उम्र के बारे में किसी को जानकारी नहीं है। पिढी दर पिढी इस आम के पेंड के मौजूद रहने की सभी को जानकारी है।इस कामेश्वर नाथ का वर्णन बाल्मीकि रामायण के बाल सर्ग के 23 के दस पन्द्रह में मिलता है। जिसमे अयोध्या से बक्सर जाते समय महर्षि विश्वामित्र भगवान राम को बताते है की देखो रघुनंदन यही वह स्थान है जहां तपस्या रत भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था।
कन्दर्पो मूर्ति मानसित्त काम इत्युच्यते बुधै: तपस्यामि: स्थाणु: नियमेन समाहितम्।इस स्थान पर हर काल हर खण्ड में ऋषि मुनी प्रत्यक्ष एवम अप्रत्यक्ष रूप से साधना रत रहते है। इस स्थान पर भगवान राम अनुज लक्ष्मण एवम महर्षि विश्वामित्र के साथ रात्रि विश्राम करने के पश्चात बक्सर गये थे।स्कन्द पुराण के अनुसार महर्षि दुर्वासा ने भी इसी आम के बृक्ष के नीचे तपस्या किया था।महात्मां बुद्ध बोध गया से सारनाथ जाते समय यहां पर रूके थे। ह्वेन सांग एवम फाह्यान ने अपने यात्रा बृतांत में यहां का वर्णन किया है। शिव पुराण देवीपुराण स्कंद पुराण पद्मपुराण बाल्मीकि रामायण समेत ढेर सारे ग्रन्थों में कामेश्वर धाम का वर्णन मिलता है।
महर्षि वाल्मीकि गर्ग पराशर अरण्य गालव भृगु वशिष्ठ अत्रि गौतम आरूणी आदि ब्रह्म वेत्ता ऋषि मुनियों से सेवित इस पावन तीर्थ का दर्शन स्पर्श करने वाले नर नारी स्वयं नारायण हो जाते है। मन्दिर के ब्यवस्थापक रमाशंकर दास के देख रेख में करोणो रूपये खर्च कर धाम का सुन्दरीकरण किया गया है। शिव रात्रि के अवसर पर और सावन में लाखो लोग यहा आकर बाबा कामेश्वर नाथ का दर्शन पूजन करते है।शिवरात्रि के दिन यहां पर बिशाल मेले का आयोजन किया जाता है।