ओशो….
मैंने सुना है, एक बार अकबर ने अपने दरबार में कहा, अपने नवरत्नों को बुला कर कि अब मैं बूढ़ा हुआ, इधर मैं बहुत प्रशंसा सुनता हूं इस देश में रामायण की, तो मैं कोई राम से छोटा राजा तो नहीं हूं, क्या मेरे जीवन पर रामायण नहीं लिखी जा सकती?
आठ रत्न तो चुप ही रहे। क्या कहें? यह भी कोई बात है? अकबर कितने ही बड़े सम्राट हों, मगर रामायण कैसे इनके ऊपर लिखी जा सकती है? एक रत्न बोले, बीरबल, वे रत्न कम थे, रतन ज्यादा थे। महारतन! उन्होंने कहा कि लिखी जा सकती है। क्यों नहीं लिखी जा सकती? आपमें क्या कमी है? अरे, राम का राज्य आपसे छोटा ही था।
आपका राज्य तो और भी बड़ा है, आप तो शहनशाहों के शहंशाह हैं। वे तो राजा राम थे केवल। लिख दूंगा, मैं लिख दूंगा। पर काम मेहनत का है, शास्त्र बड़ा है, एक लाख अशर्फी पेशगी और एक साल का समय। अकबर ने कहा, करो, कोई फिक्र नहीं, इसी समय एक लाख, जो पेशगी मांगते हो ले जाओ। साल भर की छुट्टी।
वे एक लाख अशर्फियां ले कर साल भर बीरबल गुलछरें उड़ाते रहे। न तो कोई किताब लिखी–लिखनी-विखनी थी ही नहीं, वह तो महारतन थे! अकबर बीच-बीच में खबर लेता रहा कि क्या हुआ? कहां कि लिखी जा रही है, बस अब लिखी जा रही है, जैसे ही साल पूरा हुआ कि हाजिर कर दूंगा।
साल पूरा हुआ, बीरबल आए, किताब वगैरह कुछ भी न लाए। अकबर ने पूछा, किताब कहां है?
बीरबल ने कहा कि और सब पूरा हो गया है, सिर्फ एक ब्यौरे की बात रह गयी है। जो आपके बिना कोई बता नहीं सकता; उसके बिना रामायण पूरी नहीं होगी। हमारे राम की सीता को रावण चुरा कर ले गया था। आपकी बेगम को कौन रावण चुरा कर ले गया? उसका पता दो; उसका नाम बताओ।
वह कौन हरामजादा है, कौन गुंडा है? अकबर तो गुस्से में आ गया, उसने तलवार खींच ली कि तुम पागल हो गये हो? मेरी बेगम पर कोई आंख तो उठाए। आंखें निकलवा लूं! कोई जबान तो खोले! जबान काटवा दूं! तुम कैसी बातें करते हो, जी?
बीरबल ने कहा, महाराज, फिर रामायण नहीं लिखी जा सकती। क्योंकि हमारे राम की सीता को रावण चुरा कर ले गया था। और तीन साल तक अशोकवाटिका में लंका में बंद रहीं सीता जी। फिर उनको छुड़ा कर लाया।
बिना इसके तो रामायण बनेगी नहीं, मजा ही नहीं आएगा। असली बात ही निकल गयी, जान ही निकल गयी!
अकबर ने कहा, अगर ये झंझट करनी है, तो हमें रामायण लिखवानी ही नहीं। भाड़ में जाए रामायण! बीरबल ने कहा, जैसी मर्जी, मगर मेहनत साल भर गयी मेरी फिजूल! तो फिर आप कहो तो महाभारत लिख दूं।
अकबर ने कहा कि महाभारत को भी नाम बहुत सुना है। यह तो और भी बड़ी किताब है। दो लाख अशर्फियां लगेंगी, पेशगी, बीरबल ने कहा।
अकबर ने कहा, तो वे मिल जाएंगी, मगर यह मैं पहले पूछ लूं कि इसमें रावण वगैरह तो नहीं आता? सीता तो नहीं होगी? कभी नहीं। रावण आता ही नहीं! सीता की चोरी भी नहीं होती, तुम फिक्र ही न करो! इसमें झंझट नहीं है। उसने कहा, तू पहले ही कहता। साल भर भी खराब गयी, एक लाख अशर्फियां भी गयीं। कोई बात नहीं, लेकिन जो हुआ हुआ। ये ले दो लाख अशर्फियां।
साल भर फिर उसने गुलछर्रे किये। अब दो लाख अशर्फियां, मजा ही मजा लूटा। बीच-बीच में खबर पहुंचाता रहा कि बस बन रही है, बन रही है, बन रही है, बन रही है। आखिरी दिन आ गया, आ गया खाली हाथ फिर। कहां, किताब कहां है? महाभारत कहां है?
उसने कहा कि महाराज, एक ब्योरे की बात आपके बिना कोई नहीं बता सकेगा, उसके बिना किताब अधूरी रह जाएगी, मजा ही नहीं आएगा। द्रौपदी के पांच पति थे, आपकी बेगम के आप तो एक पति हो, बाकी चार बदमाश कौन हैं? उनके नाम बताओ!
पहली बार तो अकबर ने सिर्फ म्यान पर हाथ ही रक्षा था, इस बार तो तलवार निकाल ली! कहा, तू ठहर, बीरबल का बच्चे! तूने समझा क्या है? तू मुझे समझता क्या है? मेरे रहते, मेरे जिंदा रहते…!
बीरबल ने कहा, महाराज, मैं क्या कर सकता हूं? आप तलवार अंदर रखो। आप ही कहते हो, लिखो किताब, लिखता हूं तो उसमें अड़चनें आती हैं। तो फिर कहो तो वेद ही लिख दूं! उसने कहा, हमें लिखवाना ही नहीं। एक बात समझ में आ गयी की कोई दूसरे की कहानी किसी दूसरे पर चस्पां नहीं की जा सकती।
उसने कहा कि आपको जल्दी समझ में आ गयी। कई तो ऐसे नासमझ हैं कि जनम-जनम समझ में नहीं आती।
किसी दूसरे की कहानी किसी और पर चस्पां नहीं की जा सकती। न तुम्हें कृष्ण होना है, न राम होना है, न क्राइस्ट होना है, तुम तो तुम ही हो जाओ, बस उतना काफी है।
तुम्हारा फूल खिले, तुम्हारी सुगंध उड़े, तुम्हारा दीया जले! जरूर तुम जब खिलोगे तो तुम्हारे भीतर भी वही महिमा होगी जो कृष्ण की है, और वही महिमा होगी जो बुद्ध की है, मगर कहानी वही नहीं होगी। रस वही होगा, रंग वही नहीं होगा। अनुभूति वही होगी, अभिव्यक्ति वही नहीं होगी। वाद्य वही होगा, लेकिन धुन तुम पर तुम्हारी बजेगी, गीत तुम पर तुम्हारा उठेगा।
और धन्यवाद करो प्रभु का कि उसने तुम्हें झूठे बनने का कोई अवसर ही नहीं छोड़ा है। तुम बन ही नहीं सकते, लाख कोशिश करो।
तुम सिर्फ वही बन सकते हो जो तुम हो, जो तुम वस्तुतः हो। जो तुम जन्म के साथ ही स्वभाव लेकिन आए हो, उसकी ही अभिव्यक्ति होनी है।
नकल में मत पड़ना। नकल में बहुत लोग भटक गये हैं।
आज इतना ही।
साहिब मिले साहिब भये-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-06