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⭕ ऋषि ⭕
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🔷 लगता है ऋषि शब्द से अंग्रेजी के रिसर्च शब्द की उत्पत्ति हुई है । भारत के ऋषि रिसर्च किया करते थे, नयी-नयी खोजबीन किया करते थे । वे ऋषि बहुत अच्छे वैज्ञानिक (Scientist) थे और ज्यादातर ऋषि गृहस्थ ऋषि थे । आईये जानिये कि इन ऋषियों ने विश्व को क्या दिया ?

🔷 अंगिरा ऋषि : ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि अंगिरा ब्रह्मा जी के पुत्र हुए । ऋषि अंगिरा के पुत्र बृहस्पति देवताओं के गुरु हुए । ऋग्वेद के अनुसार ऋषि अंगिरा ने ही अग्नि को उत्पन्न किया ।

🔷 विश्वामित्र ऋषि : गायत्री मन्त्र का ज्ञान देने वाले विश्वामित्र वेद मन्त्रों के सर्वप्रथम द्रष्टा माने जाते हैं । आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत इनके ही पुत्र थे । विश्वामित्र की परम्परा पर चलने वाले ऋषियों ने उनके नाम को धारण किया । यह परम्परा अन्य ऋषियों के साथ भी चलती रही हैं ।

🔷 वशिष्ठ ऋषि : ऋग्वेद के मन्त्रद्रष्टा और गायत्री मन्त्र के महान साधक वशिष्ठ सप्तऋषियों में से एक हैं । उनकी पत्नी अरुंधती वैदिक कर्मों में उनकी सहभागी रही हैं ।

🔷 कश्यप ऋषि : मरीच ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि हुए । स्कन्द पुराण के केदार खण्ड के अनुसार इनसे देव, असुर और नागों की उत्पत्ति हुई ।

🔷 जमदग्नि ऋषि : भृगु पुत्र जमदग्नि ने गोवंश की रक्षा पर ऋग्वेद के 16 मन्त्रों की रचना की है । केदार खण्ड के अनुसार जमदग्नि ऋषि आयुर्वेद और चिकित्सा शास्त्र के भी विद्वान हुए ।

🔷 अत्री ऋषि : सप्तर्षियों में एक ऋषि अत्री ऋषि ऋग्वेद के पाँचवें मण्डल के अधिकांश सूत्रों के ऋषि हुए । ये चन्द्रवंश के प्रवर्तक हैं । महर्षि अत्री आयुर्वेद के आचार्य भी रहे ।

🔷 नर और नारायण ऋषि : नर और नारायण को भगवान का अवतार भी माना गया है । ऋग्वेद के मन्त्र द्रष्टा ये ऋषि धर्म और मूर्ति देवी के पुत्र हुए । नर और नारायण दोनों भागवत धर्म एवं सनातन धर्म के मूल प्रवर्तक हुए ।

🔷 पराशर ऋषि : ऋषि वशिष्ठ के पुत्र पराशर कहलाए । जो पिता के साथ हिमालय में वेद मन्त्रों के द्रष्टा बने । ये महर्षि वेदव्यास के पिता हुए ।

🔷 भरद्वाज ऋषि : देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र भरद्वाज ने “यन्त्र सर्वस्व” नामक ग्रन्थ की रचना की । जिसमें विमानों के निर्माण, प्रयोग एवं संचालन के सम्बन्ध में विस्तार पूर्वक वर्णन है । ऋषि भरद्वाज आयुर्वेद के ऋषि हुए । धन्वंतरी जी इनके शिष्य हुए । आकाश में सात तारों का एक मण्डल नजर आता है, उन्हें सप्तर्षियों का मण्डल कहा जाता है । उक्त मण्डल के तारों के नाम भारत के महान सात ऋषियों के आधार पर ही रखे गए हैं । वेदों में उक्त मण्डल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है । प्रत्येक मनवन्तर में सात-सात ऋषि हुए हैं । यहाँ “वैवस्तमनु” के काल में जन्मे सात महान ‍ऋषियों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है ।

🔷 वेदों के रचयिता ऋषि : ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं एवं लगभग दस हजार मन्त्र हैं । चारों वेदों में करीब बीस हजार मन्त्र हैं और इन मन्त्रों के रचयिता कवियों को हम ऋषि कहते हैं । बाकी तीन वेदों के मन्त्रों की तरह ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है । पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही है । ये कुल परम्परा ऋग्वेद के सूक्त दस मण्डलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मण्डल ऐसे हैं जिन्हें हम परम्परा से वंश मण्डल कहते हैं । क्योंकि इनमें छह ऋषिकुलों के ऋषियों के मन्त्र इकट्ठा कर दिए गए हैं ।

🔷 वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है – वे नाम क्रमश: इस प्रकार हैं : 1. वशिष्ठ, 2. विश्वामित्र, 3. कण्व, 4. भरद्वाज, 5. अत्री, 6. वामदेव और 7. शौनक ।

🔷 पुराणों में सप्तऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती हैं । विष्णु पुराण के अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार हैं —

वशिष्ठकाश्यपो
यात्रिर्जमदग्निस्सगौत ।
विश्वामित्रभारद्वजौ
सप्त सप्तर्षयोभवन् ।।

अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं – वशिष्ठ, कश्यप, अत्री, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भरद्वाज । इसके अलावा पुराणों की अन्य नामावली इस प्रकार है – ये क्रमशः क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्री, अंगिरा, वशिष्ट एवं मरीचि हैं ।

🔷 महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियाँ मिलती हैं । एक नामावली में कश्यप, अत्री, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि एवं वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली में पाँच नाम बदल जाते हैं । कश्यप और वशिष्ठ वहीं रहते हैं, पर बाकी के बदले मरीचि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु नाम आ जाते हैं । कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है तो कहीं कश्यप और कण्व को पर्यायवाची माना गया है । यहाँ प्रस्तुत है – वैदिक नामावली अनुसार सप्तऋषियों का परिचय —

🔷 1. वशिष्ठ : राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता ? ये दशरथ के चारों पुत्रों के भी गुरु थे । वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था । एक समय कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था । विश्वामित्र ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरुण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया ।

🔷 2. विश्वामित्र : ऋषि होने से पहले विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था । लेकिन वे हार गए थे । इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया । विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है । विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था । इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं ।

🔷 माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहाँ इस समय वैकुण्ठवासी पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा स्थापित गायत्री पीठ – शान्तिकुंज है, उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इन्द्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी । विश्वामित्र ने विश्व को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो मन्त्र विश्व भर के लोगों के हृदय में और जिह्वा पर हजारों, लाखों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है ।

🔷 3. कण्व : माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया था । कण्व वैदिक काल के ऋषि थे । इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन पोषण हुआ था ।

🔷 4. भरद्वाज : वैदिक ऋषियों में भरद्वाज ऋषि का उच्च स्थान है । भरद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थी । भरद्वाज ऋषि भगवान श्रीराम से बहुत पहले हुए हैं । एक उल्लेख अनुसार उनकी लम्बी आयु का पता चलता है जब वनवास के समय भगवान श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता एवं द्वापर युग का सन्धिकाल था ।

🔷 ऋषि भरद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हुए और इनकी एक पुत्री जिसका नाम ‘रात्रि’ हुआ, वह भी “रात्रि सूक्त” की मन्त्रदृष्टा मानी गई है । ऋग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भरद्वाज ऋषि हैं । इस मण्डल में भरद्वाज के 765 मन्त्र हैं । अथर्ववेद में भी भरद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं । “भरद्वाज स्मृति” एवं “भरद्वाज संहिता” के रचनाकार भी ऋषि भरद्वाज ही थे । ऋषि भरद्वाज ने “यन्त्र सर्वस्व” नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी । इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने “विमान शास्त्र” के नाम से प्रकाशित कराया है । इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है ।

🔷 5. अत्री : ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्री ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम ऋषि व माता देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति हुए । अत्री जब एक बार संध्या वन्दन के लिए बाहर गए थे तब त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने आए । इन्होंने अनुसूया से कहा कि “यदि आप अपने सम्पूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे ।” तब अनुसूया ने भी अपने सतीत्व के बल पर इन तीनों देवों को अबोध बालक बना दिया था और उन्हें भिक्षा प्रदान की । माता अनुसूया ने देवी सीता को भी पतिव्रत का उपदेश दिया था ।

🔷 अत्री ऋषि ने विश्व में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभदेव की तरह योगदान दिया था । अत्री ऋषि की सन्तान ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे । जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया । अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ । अत्री ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था । मान्यता है कि अत्री दम्पत्ति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरुप विष्णु के आशीर्वाद से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के आशीर्वाद से चन्द्रमा एवं शिव के आशीर्वाद से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्री एवं अनुसूया देवी के पुत्र रुप में जन्मे । ऋषि अत्री पर अश्विनी कुमारों की भी कृपा रही ।

🔷 6. वामदेव : वामदेव ने विश्व को सामगान (संगीत) दिया । वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मण्डल के सूत्तद्रष्टा माने जाते हैं ।

🔷 7. शौनक : शौनक ऋषि ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया ।

🔷 फिर से बताएं तो वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक – ये हैं वे सात ऋषि, जिन्होंने विश्व को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ विश्व ने इन्हें आकाश के तारा मण्डल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारा मण्डलों पर टिक जाती है ।

🔷 इसके अलावा मान्यता है कि अगस्त्य, कश्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम, भृगु, दुर्वासा आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है। -suresh kumar soni from mangol puri rohini delhi 9210485993 skpbureau@gmail.com🙏🙏

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जगज्जननी की कृपा से नारी का स्वरूप बोध –

हे माँ। आपका सान्निध्य पाकर हम जान सके कि नारी ब्रह्म विद्या है, श्रद्धा है, शक्ति है, पवित्रता है, कला है और वह सब कुछ है जो इस संसार में सर्वश्रेष्ठ के रूप में दृष्टिगोचर होता है। नारी कामधेनु है, अन्नपूर्णा है, सिद्धि है, रिद्धि है और वह सब कुछ है जो मानव प्राणी के समस्त अभावों, कष्टों एवं संकटों को निवारण करने में समर्थ है। यदि उसे श्रद्धासिक्त सद्भावना अर्पित की जाए तो वह विश्व के कण कण को स्वर्गीय परिस्थितियों से ओत प्रोत कर सकती है।

आपका वात्सल्य पाकर हमें बोध हुआ है कि नारी सनातन शक्ति है। वह आदिकाल से उन सामाजिक दायित्वों को अपने कन्धों पर उठाए आ रही है, जिन्हें केवल पुरुष के कन्धों पर डाल दिया गया होता , तो वह न जाने कब लड़खड़ा गया होता, किन्तु विशाल भवनों का असह्य भार वहन करने वाली गाँव के समान वह उतनी ही कर्तव्यनिष्ठा, उतने ही मनोयोग, संतोष और उतनी ही प्रसन्नता के साथ उसे आज भी ढोए चल रही है। वह मानवीय तपस्या की साकार प्रतिमा है।

भौतिक जीवन की लालसाओं की उसी की पवित्रता ने रोका और सीमाबद्ध करके उन्हें प्यार की दिशा दी। प्रेम नारी का जीवन है। अपनी इस निधि को वह अतीत काल से मानव पर न्यौछावर करती आयी है। कभी न रुकने वाले इस अमृत निर्झर ने संसार की शान्ति और शीतलता दी है।

हे जगज्जननी ! आपकी कृपा से हम अपने अन्तःकरण में इस ऋषि वाणी को अनुभव करते हैं:-

विद्या समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ता सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्ति॥

हे देवि ! समस्त संसार की सब विधाएं तुम्हीं से निकली हैं और सब सिद्धियाँ तुम्हारी स्वरूप हैं, समस्त विश्व एक तुम्हीं से पूरित है। अतः तुम्हारी स्तुति किस प्रकार की जाए ?

अन्तःकरण में इस भाव की घनीभूत अनुभूति से प्रेरित होकर हम सब आपकी सन्तानें, आपकी द्वितीय पुण्यतिथि के अवसर पर अखण्ड ज्योति के इस अंक को नारी अंक के रूप में आपको समर्पित करते हैं। भावों की इस पुष्पाँजलि को स्वीकार करो माँ ! और हम सब पर सदा की भाँति अपने आँचल की वरद् छाया बनाए रखना।

आचार्य विकाश शर्मा

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स्त्री की याचना –

एक प्रतापी राजा था | जो बहुत ही यश प्राप्त और परम शक्तिशाली था | उसका नाम नन्द था और उसके मंत्री का नाम वर रूचि था | वह सभी शास्त्रों का ज्ञाता और विचारक था | वह अपनी पत्नी को बहुत चाहता था एक बार उसका अपनी पत्नी के किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया | पत्नी नाराज हो गयी और अनशन करके प्राण देने पर तुल गयी | वर रूचि ने अपने पत्नी को बहुत मनाया पर वह नहीं मानी | अंत: में उसने कहा कि बताओ मैं तुम्हारे लिए ऐसा क्या करूँ कि तुम्हारी नाराजगी दूर हो | इस पर पत्नी ने कहा तुम अपना सर मुंडन करवाओ और उसके बाद मेरे चरणों में प्रणाम करो | वर रूचि ने ऐसा ही किया | उसकी पत्नी प्रसन्न हो गयी |

इसी प्रकार एक बार राजा नन्द की पत्नी भी राजा से क्रोधित होकर कलह मचाने लगी | राजा भी अपनी पटरानी को बहुत प्रेम करता था तो उसने उसे मनाने के सारे यत्न किये | तो फिर हार कर पुछा कि बताओ मैं तुम्हे प्रसन्न करने के लिए क्या करूँ | इस पर रानी ने कहा कि” तुम घोड़े की तरह अपने मुह में लगाम लगाओ फिर मैं तुम्हारी सवारी करुँगी और फिर तुम घोड़े की तरह हिनहिनाना |” राजा नन्द ने विवश होकर अपनी पत्नी को प्रसन्न करने के लिए ऐसा ही किया |

अगले दिन राजसभा में नन्द में महामंत्री के मुंडन को देखकर पुछा ” अरे महामंत्री तुमने किस पर्व पर यह मुंडन करवा लिया ?” मंत्री भी चतुर था उसने जवाब दिया ” महाराज स्त्री की याचना पर तो लोग घोड़े की तरह हिनहिनाने लगते है तो केश मुंडन तो कुछ भी नहीं है |” इस पर राजा लज्जित होकर चुप हो गया |

आचार्य विकाश शर्मा

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१८ पुराण के नाम और उनका महत्त्व महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में

पुराण अठारह हैं।
मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् ।
अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ॥
म-2, भ-2, ब्र-3, व-4 ।
अ-1,ना-1, प-1, लिं-1, ग-1, कू-1, स्क-1 ॥
विष्णु पुराण के अनुसार उनके नाम ये हैं—विष्णु, पद्म, ब्रह्म, वायु(शिव), भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड, ब्रह्मांड और भविष्य।
ब्रह्म पुराण
पद्म पुराण
विष्णु पुराण
वायु पुराण — (शिव पुराण)
भागवत पुराण — (देवीभागवत पुराण)
नारद पुराण
मार्कण्डेय पुराण
अग्नि पुराण
भविष्य पुराण
ब्रह्म वैवर्त पुराण
लिङ्ग पुराण
वाराह पुराण
स्कन्द पुराण
वामन पुराण
कूर्म पुराण
मत्स्य पुराण
गरुड़ पुराण
ब्रह्माण्ड पुराण
पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक पुराण में अठारहो पुराणों के नाम और उनकीश्लोकसंख्या है। नाम और श्लोकसंख्या प्रायः सबकी मिलती है, कहीं कहीं भेद है। जैसे कूर्म पुराण में अग्नि के स्थान में वायुपुराण; मार्कंडेय पुराण में लिंगपुराण के स्थान में नृसिंहपुराण; देवीभागवत में शिव पुराण के स्थान में नारद पुराण और मत्स्य में वायुपुराण है। भागवत के नाम से आजकल दो पुराण मिलते हैं—एक श्रीमद्भागवत, दूसरा देवीभागवत। कौन वास्तव में पुराण है इसपर झगड़ा रहा है। रामाश्रम स्वामी ने ‘दुर्जनमुखचपेटिका’ में सिद्ध किया है कि श्रीमद्भागवत ही पुराण है। इसपर काशीनाथ भट्ट ने ‘दुर्जनमुखमहाचपेटिका’ तथा एक और पंडित ने ‘दुर्जनमुखपद्यपादुका’ देवीभागवत के पक्ष में लिखी थी।

पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रँथ हैं। उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।
महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।

१) ब्रह्मपुराणः—इसे “आदिपुराण” भी का जाता है। प्राचीन माने गए सभी पुराणों में इसका उल्लेख है। इसमें श्लोकों की संख्या अलग- २ प्रमाणों से भिन्न-भिन्न है। १०,०००…१२.००० और १३,७८७ ये विभिन्न संख्याएँ मिलती है। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में लोमहर्षण ऋषि ने किया था। इसमें सृष्टि, मनु की उत्पत्ति, उनके वंश का वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है। इस पुराण में विभिन्न तीर्थों का विस्तार से वर्णन है। इसमें कुल २४५ अध्याय हैं। इसका एक परिशिष्ट सौर उपपुराण भी है, जिसमें उडिसा के कोणार्क मन्दिर का वर्णन है।
1.ब्रह्म पुराण (Brhma Purana)–

ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
(२) पद्मपुराणः—-इसमें कुल ६४१ अध्याय और ४८,००० श्लोक हैं। मत्स्यपुराण के अनुसार इसमें ५५,००० और ब्रह्मपुराण के अनुसार इसमें ५९,००० श्लोक थे। इसमें कुल खण़्ड हैं—(क) सृष्टिखण्डः—५ पर्व, (ख) भूमिखण्ड, (ग) स्वर्गखण्ड, (घ) पातालखण्ड और (ङ) उत्तरखण्ड।
इसका प्रवचन नैमिषारण्य में सूत उग्रश्रवा ने किया था। ये लोमहर्षण के पुत्र थे। इस पुराण में अनेक विषयों के साथ विष्णुभक्ति के अनेक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इसका विकास ५ वीं शताब्दी माना जाता है।
2.पद्म पुराण (Padma Purana)-

पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है। इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।

(३) विष्णुपुराणः—-पुराण के पाँचों लक्षण इसमें घटते हैं। इसमें विष्णु को परम देवता के रूप में निरूपित किया गया है। इसमें कुल छः खण्ड हैं, १२६ अध्याय, श्लोक २३,००० या २४,००० या ६,००० हैं। इस पुराण के प्रवक्ता पराशर ऋषि और श्रोता मैत्रेय हैं।

3.विष्णु पुराण (Vishnu Purana)-

विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था। इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैःउत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

(४) वायुपुराणः—इसमें विशेषकर शिव का वर्णन किया गया है, अतः इस कारण इसे “शिवपुराण” भी कहा जाता है। एक शिवपुराण पृथक् भी है। इसमें ११२ अध्याय, ११,००० श्लोक हैं। इस पुराण का प्रचलन मगध-क्षेत्र में बहुत था। इसमें गया-माहात्म्य है। इसमें कुल चार भाग हैः—(क) प्रक्रियापादः– (अध्याय—१-६), (ख) उपोद्घातः— (अध्याय-७ –६४ ), (ग) अनुषङ्गपादः–(अध्याय—६५–९९), (घ) उपसंहारपादः–(अध्याय—१००-११२)। इसमें सृष्टिक्रम, भूगो, खगोल, युगों, ऋषियों तथा तीर्थों का वर्णन एवं राजवंशों, ऋषिवंशों,, वेद की शाखाओं, संगीतशास्त्र और शिवभक्ति का विस्तृत निरूपण है। इसमें भी पुराण के पञ्चलक्षण मिलते हैं।
4.शिव पुराण (Shiva Purana)–

शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं

(५) भागवतपुराणः—यह सर्वाधिक प्रचलित पुराण है। इस पुराण का सप्ताह-वाचन-पारायण भी होता है। इसे सभी दर्शनों का सार “निगमकल्पतरोर्गलितम्” और विद्वानों का परीक्षास्थल “विद्यावतां भागवते परीक्षा” माना जाता है। इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति के बारे में बताया गया है।
इसमें कुल १२ स्कन्ध, ३३५ अध्याय और १८,००० श्लोक हैं। कुछ विद्वान् इसे “देवीभागवतपुराण” भी कहते हैं, क्योंकि इसमें देवी (शक्ति) का विस्तृत वर्णन हैं। इसका रचनाकाल ६ वी शताब्दी माना जाता है।

5.भागवत पुराण (Bhagwata Purana)–

भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।
(६) नारद (बृहन्नारदीय) पुराणः—इसे महापुराण भी कहा जाता है। इसमें पुराण के ५ लक्षण घटित नहीं होते हैं। इसमें वैष्णवों के उत्सवों और व्रतों का वर्णन है। इसमें २ खण्ड हैः—(क) पूर्व खणअ्ड में १२५ अध्याय और (ख) उत्तर-खण्ड में ८२ अध्याय हैं। इसमें १८,००० श्लोक हैं। इसके विषय मोक्ष, धर्म, नक्षत्र, एवं कल्प का निरूपण, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, गृहविचार, मन्त्रसिद्धि,, वर्णाश्रम-धर्म, श्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि का वर्णन है।

6.नारद पुराण (Narad Purana)-

नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।
(७) मार्कण्डयपुराणः—इसे प्राचीनतम पुराण माना जाता है। इसमें इन्द्र, अग्नि, सूर्य आदि वैदिक देवताओं का वर्णन किया गया है। इसके प्रवक्ता मार्कण्डय ऋषि और श्रोता क्रौष्टुकि शिष्य हैं। इसमें १३८ अध्याय और ७,००० श्लोक हैं। इसमें गृहस्थ-धर्म, श्राद्ध, दिनचर्या, नित्यकर्म, व्रत, उत्सव, अनुसूया की पतिव्रता-कथा, योग, दुर्गा-माहात्म्य आदि विषयों का वर्णन है।

7.मार्कण्डेय पुराण (Markandeya Purana)–

अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।
(८) अग्निपुराणः—इसके प्रवक्ता अग्नि और श्रोता वसिष्ठ हैं। इसी कारण इसे अग्निपुराण कहा जाता है। इसे भारतीय संस्कृति और विद्याओं का महाकोश माना जाता है। इसमें इस समय ३८३ अध्याय, ११,५०० श्लोक हैं। इसमें विष्णु के अवतारों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग, दुर्गा, गणेश, सूर्य, प्राणप्रतिष्ठा आदि के अतिरिक्त भूगोल, गणित, फलित-ज्योतिष, विवाह, मृत्यु, शकुनविद्या, वास्तुविद्या, दिनचर्या, नीतिशास्त्र, युद्धविद्या, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, काव्य, व्याकरण, कोशनिर्माण आदि नाना विषयों का वर्णन है।
8.अग्नि पुराण (Agni Purana)–

अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं। इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है
(९) भविष्यपुराणः—इसमें भविष्य की घटनाओं का वर्णन है। इसमें दो खण्ड हैः–(क) पूर्वार्धः–(अध्याय—४१) तथा (ख) उत्तरार्धः–(अध्याय़—१७१) । इसमें कुल १५,००० श्लोक हैं । इसमें कुल ५ पर्व हैः–(क) ब्राह्मपर्व, (ख) विष्णुपर्व, (ग) शिवपर्व, (घ) सूर्यपर्व तथा (ङ) प्रतिसर्गपर्व। इसमें मुख्यतः ब्राह्मण-धर्म, आचार, वर्णाश्रम-धर्म आदि विषयों का वर्णन है। इसका रचनाकाल ५०० ई. से १२०० ई. माना जाता है।
9.भविष्य पुराण (Bhavishya Purana)–

भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है। इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है। ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।
(१०) ब्रह्मवैवर्तपुराणः—यह वैष्णव पुराण है। इसमें श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन किया गया है। इसमें कुल १८,००० श्लोक है और चार खण्ड हैः—(क) ब्रह्म, (ख) प्रकृति, (ग) गणेश तथा (घ) श्रीकृष्ण-जन्म।
10.ब्रह्म वैवर्त पुराण (Brahma Vaivarta Purana)–

ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।
(११) लिङ्गपुराणः—-इसमें शिव की उपासना का वर्णन है। इसमें शिव के २८ अवतारों की कथाएँ दी गईं हैं। इसमें ११,००० श्लोक और १६३ अध्याय हैं। इसे पूर्व और उत्तर नाम से दो भागों में विभाजित किया गया है। इसका रचनाकाल आठवीं-नवीं शताब्दी माना जाता है। यह पुराण भी पुराण के लक्षणों पर खरा नहीं उतरता है।
11.लिंग पुराण (Linga Purana)–

लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।
(१२) वराहपुराणः—इसमें विष्णु के वराह-अवतार का वर्णन है। पाताललोक से पृथिवी का उद्धार करके वराह ने इस पुराण का प्रवचन किया था। इसमें २४,००० श्लोक सम्प्रति केवल ११,००० और २१७ अध्याय हैं।

12.वराह पुराण (Varaha Purana)–

वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।
(१३) स्कन्दपुराणः—यह पुराण शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय, सुब्रह्मण्य) के नाम पर है। यह सबसे बडा पुराण है। इसमें कुल ८१,००० श्लोक हैं। इसमें दो खण्ड हैं। इसमें छः संहिताएँ हैं—सनत्कुमार, सूत, शंकर, वैष्णव, ब्राह्म तथा सौर। सूतसंहिता पर माधवाचार्य ने “तात्पर्य-दीपिका” नामक विस्तृत टीका लिखी है। इस संहिता के अन्त में दो गीताएँ भी हैं—-ब्रह्मगीता (अध्याय—१२) और सूतगीताः–(अध्याय ८)।
इस पुराण में सात खण्ड हैं—(क) माहेश्वर, (ख) वैष्णव, (ग) ब्रह्म, (घ) काशी, (ङ) अवन्ती, (रेवा), (च) नागर (ताप्ती) तथा (छ) प्रभास-खण्ड। काशीखण्ड में “गंगासहस्रनाम” स्तोत्र भी है। इसका रचनाकाल ७ वीं शताब्दी है। इसमें भी पुराण के ५ लक्षण का निर्देश नहीं मिलता है।
13.स्कन्द पुराण (Skanda Purana)–

स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है
(१४) वामनपुराणः—इसमें विष्णु के वामन-अवतार का वर्णन है। इसमें ९५ अध्याय और १०,००० श्लोक हैं। इसमें चार संहिताएँ हैं—-(क) माहेश्वरी, (ख) भागवती, (ग) सौरी तथा (घ) गाणेश्वरी । इसका रचनाकाल ९ वीं से १० वीं शताब्दी माना जाता है।
14.वामन पुराण (Vamana Purana)-

वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।
(१५) कूर्मपुराणः—इसमें विष्णु के कूर्म-अवतार का वर्णन किया गया है। इसमें चार संहिताएँ हैं—(क) ब्राह्मी, (ख) भागवती, (ग) सौरा तथा (घ) वैष्णवी । सम्प्रति केवल ब्राह्मी-संहिता ही मिलती है। इसमें ६,००० श्लोक हैं। इसके दो भाग हैं, जिसमें ५१ और ४४ अध्याय हैं। इसमें पुराण के पाँचों लक्षण मिलते हैं। इस पुराण में ईश्वरगीता और व्यासगीता भी है। इसका रचनाकाल छठी शताब्दी माना गया है।
15.कुर्मा पुराण (Kurma Purana)–

कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा विस्तार पूर्वक लिखी गयी है। इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।
(१६) मत्स्यपुराणः—इसमें पुराण के पाँचों लक्षण घटित होते हैं। इसमें २९१ अध्याय और १४,००० श्लोक हैं। प्राचीन संस्करणों में १९,००० श्लोक मिलते हैं। इसमें जलप्रलय का वर्णन हैं। इसमें कलियुग के राजाओं की सूची दी गई है। इसका रचनाकाल तीसरी शताब्दी माना जाता है।
16.मतस्य पुराण(Matsya Purana)–

मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है
(१७) गरुडपुराणः—यह वैष्णवपुराण है। इसके प्रवक्ता विष्णु और श्रोता गरुड हैं, गरुड ने कश्यप को सुनाया था। इसमें विष्णुपूजा का वर्णन है। इसके दो खण्ड हैं, जिसमें पूर्वखण्ड में २२९ और उत्तरखण्ड में ३५ अध्याय और १८,००० श्लोक हैं। इसका पूर्वखण्ड विश्वकोशात्मक माना जाता है।

17.गरुड़ पुराण (Garuda Purana)–

गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है। समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।

(१८) ब्रह्माण्डपुराणः—इसमें १०९ अध्याय तथा १२,००० श्लोक है। इसमें चार पाद हैं—(क) प्रक्रिया, (ख) अनुषङ्ग, (ग) उपोद्घात तथा (घ) उपसंहार । इसकी रचना ४०० ई.- ६०० ई. मानी जाती है।
18.ब्रह्माण्ड पुराण (Brahmanda Purana)-

ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।

आचार्य विकाश शर्मा

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धर्म का पालन –

एक बार भयानक सूखा पड़ा। सारे फसल नष्ट हो गये और जमीन बंजर हो गई। किसानों ने हार मान ली और बीजों को ना बोने का फैसला लिया। फसल बुवाई का यह चौथा साल था जब बारिश नहीं हुई थी। किसान उदास होकर बैठ गये। वो ताश खेलकर या कोई और काम कर अपना समय बिताने लगे। हालांकि एक किसान था जिसने धैर्य के साथ बीजों को बोया और अपने जमीन की देखभाल भी करता रहा। दूसरे किसान रोजाना यह कहकर उसका मजाक उड़ाते थे कि वह निर्रथक ही अपनी फलरहित और बंजर जमीन की देखभाल कर रहा है। जब वो उनसे उसकी इस बेवकूफी भरी दृढ़ता का कारण पूछते तो वह कहता, “मैं एक किसान हूं और अपनी जमीन की देखभाल करना और उसमें बीज बोना मेरा धर्म है। बारिश हो या ना हो, इससे मेरा धर्म नहीं बदलता। मेरा धर्म मेरा धर्म है और मैं अवश्य ही इसका पालन करुंगा, भले ही इसका फल मुझे मिले या ना मिले।”

दूसरे किसान उसके इस बेकार के प्रयास पर हंसने लगे। फिर वो अपनी बंजर जमीन और बारिश रहित आसमान का विलाप कर अपने-अपने घर चले गये। हालांकि जब वह किसान विश्वास के साथ अपना जवाब दे रहा था, तभी एक बादल वहां से गुजर रहा था। बादल ने किसान के सुंदर शब्दों को सुना और महसूस किया, “वह सही है।” जमीन की देखभाल करना और बीजों को रोपणा उसका धर्म है और अपने में संग्रहित पानी को धरती पर बरसाना मेरा धर्म है।” उसी पल, किसान के संदेश से प्रेरित होकर बादल ने खुद में जमा सारे पानी को बारिश के रूप में किसान की भूमि के उपर छोड़ दिया। इस बादल ने धर्म का यह संदेश दूसरे बादलों तक पहुंचाना भी जारी रखा और जिस कारण वो भी बारिश कर अपना-अपना धर्म निभाने लगे। जल्द ही सारे बादल जमीन पर बारिश करने लगे और इससे किसान की खेती भरपूर रूप से हुई।

आचार्य विकाज़ह शर्मा

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રજકો ચરબીને જડમૂળથી ઓગાળી નાંખતુ અને સંધિવામાંથી કાયમી રાહત આપતું શ્રેષ્ઠતમ્ ઔષધ
રજકામાં રહેલા અગણિત ગુણો આજથી ૧૬૦૦ વર્ષ પહેલા આરબોએ પારખ્યા અને તેને નામ આપ્યું : અલ-ફલ-ફા (સર્વે ખોરાકનો પિતામહ): કાળક્રમે આ ઔષધ દુનિયાભરમાં આલ્ફાલ્ફા તરીકે સ્વીકૃતિ પામ્યું જેને ગુજરાતમાં ઢોરના આહાર તરીકે આપણે રજકાના નામથી ઓળખીએ છીએ.
થાઇરોઇડ જેવી જટિલ બિમારીમાં તે અદ્દભુત કામ આપે છે. થાઇરોઇડથી પીડાતા દર્દીઓને રોજબરોજના જીવનમાં અનેક મુશ્કેલીઓ નડતી હોય છે. આલ્ફાલ્ફાના નિયમિત સેવનથી તેમની તકલીફો ખાસ્સી હદે હળવી થાય છેઃ ગ્રીક અને ચાઇનીઝ વૈદકમાં આલ્ફાલ્ફાનો ઉપયોગ આર્થરાઇટીસ અથવા ‘વા’નો ઇલાજ કરવા માટે થતો આવ્યો છે વા માટે આલ્ફાલ્ફાથી વિશેષ કોઇ દેશી દવા નથી – તેમાં રહેલું વિટામિન-યુ એક વિરલ અને મુશ્કેલીથી પ્રાપ્ત થતું તત્વ છે. પેપ્ટિક અલ્સર સામે તે જબરું રક્ષણ આપે છે. આલ્ફાલ્ફામાં મોજુદ વિટામીન બી-૬ ત્વચાને સારી રાખે છે. પ્રોટિન અને ફેટના મેટાબોલિઝમને દુરસ્ત રાખે છે. લિવરનાં ફંકશન માટે ઉપયોગી વિટામીન કે પણ તેમાં છે. આ વિટામીન દિર્ઘાયુ માટે અને જનરલ હેલ્થ માટે બહુ ઉપયોગી છે
નામમાં શું બળ્યું છે? એવું મહાપુરૂષોએ પુછયુ છે અને લોકો પણ વારંવાર કહેતા હોય છે કે, નામનું કશું જ મહત્વ નથી. પણ આ વાત ‘આલ્ફાલ્ફા’ નો કિસ્સામાં સાચી નથી કારણ કે આલ્ફાલ્ફામાં તેના નામ પ્રમાણેના ગુણ છે. અરેબિકમાં આલ્ફાલ્ફાનો અર્થ થાય છે સઘળા ખાદ્યપદાર્થોનો પિતામહ હા ! આલ્ફાલ્ફા અકે અરેબિક શબ્દ છ. તેનું અસલ નામ છે. અલ-ફુલ-ફા (તમામ ખોરાકનો બાપ) કાળક્રમે આ શબ્દ અપભંગ થઇને અંગ્રેજીમાં આલ્ફાલ્ફા બની ગયો.
આલ્ફાલ્ફા એક અદ્દભુત વનસ્પતિ છે. ચમત્કારીક પૌષ્ટિક અને મુલ્યવાન વનસ્પતિ અગાઉ આપણે અનુભવ્યું છે તેમ આપણને આપણા વૈદક પર ઝાઝો ભરોસો નથી એટલે જ પશ્ચિમના વૈજ્ઞાનિકો જયારે આપણા દેશી વૈદક પર મહોર મારે છે ત્યારે જ આપણે તેને વધાવીએ છીએ હળદરથી લઇ આમળા અને હાથલા થોરથી શરૂ કરીને ઘઉંના જવારા સુધીની ઉદાહરણો આપણી નજર સમક્ષ છે. આજે આવી બધી વસ્તુનું આપણે મુલ્ય કરીએ છીએ કારણ કે પશ્ચિમજીએ તેનાં ગુણોનું સમર્થન કર્યુ છે.
આજે તમે ઇન્ટરનેટ આલ્ફાલ્ફા બેનીફિટસ એટલે ટાઇપ કરીને ગુગલમાં સર્ચ આપોતો ઇન્ટરનેટ તમારી સમક્ષ હજજારો પેજ ખોલી આપે છે.આખી દુનિયા આજે સ્વીકારતી થઇ છે ક, આલ્ફાલ્ફા એક એવી વનસ્પતિ છે જેમાં અગણિત પોષક દ્રવ્યો છ.ે એટલે જ માનવજાત છેલ્લા લગભગ ૧૬૦૦ વર્ષોથી એક સુપરકુડ તરીકે તેનો ઉપયોગ કરતી રહી છ.ે સદીઓ અગાઉ આરબોએ આ વનસ્પીતના ચમત્કારીક ગુણોને પારખ્યા હતા. તેમણે અનુભવ્યું કે, આ વનસ્પતિ ખાઇને અરબી અશ્વો ખડતલ રહે છ.ે સ્વસ્થ રહે છે. અને જાણે હવાથી વાતો કરતા હોય તેમ ભાગી શકે છે. પછી અરબસ્તાનમાં તેમાં અનેક પ્રયોગો થયા. માનવજાતની વિવિધ બિમારી પર તેનો કેવી રીતે ઉપયોગ થઇ શકે તે અંગે વિસ્તૃત અભ્યાસ કરાયો, પશ્ચિમના વૈજ્ઞાનિકોએ પણ એક પ્રયોગો હાથ ધર્યા અને છેવટે તેના અનેકાનેક ઉપયોગ સામે એક રોગપ્રતિકારક તરીકે અને સ્વાસ્થ્ય વર્ધક સુપરફુડ તરીકે તો થઇ જ શકે છે, સાથેસાથે અલગ અલગય બિમારીઓ પર એ અત્યંત અસરકારક પરિણામ આપે છે.રજકાના આવા જ કેટલાક ગુણો વિશે આપણે વાત કરીએ.
– ગ્રીક અને ચાઇનીઝ વૈદકમાં તેનો ઉપયોગ આર્થરાઇટીસ અથવા ‘વા’નો ઇલાજ કરવા માટે થતો આવ્યો છે વા માટે આલ્ફાલ્ફાથી વિશેષ કોઇ દેશી દવા નથી. વા અને ગાંઠિયો વા એક અત્યંત જટિલ બિમારી છે. એલોપથી પાસે તેનો કાયમી, અસરકારક ઇલાજ નથી. આયુર્વેદની મોટા ભાગની દવાઓ તેમાં કામ ચલાઉ રાહત આપે છે. બે-ચાર-છ મહિના સુધી આલ્ફાલ્ફાનું નિયમિત સેવન કરવાથી આ બિમારીથી કાયમી છુટકારો મેળવી શકાય છે.
રજકામાં અદભૂત પ્રકારના દર્દશામક તત્વો છે જે વાના દુખાવા અને કાયમી રાહત આપે છે વોશિંગ્ટન સ્ટેટ યુનિવર્સિટી દ્વારા થયેલા સંશોધનમાં પુરવાર થયું છે કે, વા માટે અને ગાંઠીયા વા ની બીમારીમાં રજકા કરતા વધુ અસરકારક દેશી ઔષધ બીજુ એકપણ નથી. આર્થરાઇટિસ અથવા તો વાના અનેક પ્રકારો છે, આ તમામ પ્રકારોમાં આલ્ફાલ્ફા જબરદસ્ત પરિણામ આપે છે. સંધીવાનો તે કાયમી અને શ્રેષ્ઠ ઇલાજ છે.
જેનામાં બેડ કોલેસ્ટોરલ દૂર કરવાનો અનોખો ગુણ છે. ખરાબ કોલેસ્ટોરસ દૂર કરવાની સાથેસાથે એ ગુડ કોલેસ્ટોરલની જાળવી રાખવાનું કાર્ય પણ કરે છે. હૃદયની નળીઓમાં બ્લોકેજ એ થવા દેતુ નથી અને કોઇને બ્લોકેજ હોય તો એ દૂર કરવામાં પણ મદદરૂપ થાય છે. હૃદયના અનપ્રવાહને નિયમિત કરવામાં પણ એ સહાય કરે છે.
– સ્ટેનફોર્ડ યુનિવર્સિટીએ હાથ ધરેલા સંશોધનમાં પુરવાર થયું છે કે રજકાના સેવનથી પેટનું અલ્સર મટાડી શકાય છે. બહુ વિરલ કરી શકાય તેવું વિટામીન -યુ તેમાં મોજુદ છે. તેમાં પ્રત્યે અલ્સર, કોલાઇટિસ અને ગેસ્ટ્રાઇટિસ જેવી સમસ્યાઓથી છૂટકારો મેળવી શકાય છે. સ્ટેનફોર્ડ યુનિવર્સિટીના સંશોધનોમાં જાણવા મળ્યું હતું કે, વિટામીન-યુની મદદી પેપ્ટિક અલ્સરના એંશી ટકા કેઇસમાં દર્દીઓની સફળ સારવાર કરી શકાઇ હતી.
– રોજબરોજના જીવનમાં આપણો આહાર એકદમ સમતોલ હોતો નથી. શાકાહારી વ્યકિતએ શરીરને તમામ પ્રકારનું પોષણ આપવા માટે પોતાની થાળીમાં રોટલી, લીલુ શાક, સલાડ, દાળ, કઠોળ અને દહીં-દૂધ જેવી અનેક વસ્તુઓ આવરી લેવી પડે છે. રોજ કમસે કમ એકાદ-બે ફળો લેવાના રહે છે. ડ્રાયફ્રુટસ લેવા પડે છે. સામાન્યતઃ આવું શકય બનતું ની. એટલે જ આપણું શરીર અનેક જરૂરી વિટામિન્સ, ખનિજ અને એમિનો એસિડસ વગેરેથી વંચિત રહી જાય છે. તેનામાં આવા પોષક તત્વો ચિક્કાર પ્રમાણમાં છે, તેમાં બહુ મોટી માત્રામાં વિટામિન-એ, બી, ઇ. અને અને વિટામિન કે મોજુદ છે. તેમાં કેલ્શીયમ, આયર્ન અને ફોસ્ફરસ જેવા ખનિજો પણ મળી રહે છે. પાચન માટેના રેસા તત્વો (ફાઇબર) પણ તેમાં છે અને લોહી બનવા માટે જરૂરી એવું કલોરોફિલ (હરિત દ્રવ્ય) પણ પુષ્કળ પ્રમાણં છે આમ, આપણી થાળીમાં જે ઉપર રહી જતી હોય છે એ કમી આલ્ફાલ્ફાના સેવન દ્વારા ભરપાઇ થઇ શકે છે.
રજકાના નિયમિત સેવની શરીરને પૂરતા પ્રમાણમાં વિટામિન-એ મળી રહે છે જે આંખોની દૃષ્ટિ માટે ઉપયોગી છે. કોઇપણ પ્રકારની ઇન્ફેકશન સામે લડવા માટે એ અતિ ઉપયોગી છે. તેમાં રહેલું વિટામિન ઇ આપણી ત્વચાને સૂર્યતાપના રેડિયેશનથી રક્ષણ આપે છે. હવાનાં પ્રદુષણ સામે મુકાબલો કરીને એ ત્વચાને નવજીવન બક્ષે છે. શરીરનાં મસલ્સને એ સ્વસ્થ રાખે છે. હૃદયને રક્ષણ આપે છે. હૃદયની નળીઓનું સ્વાસ્થ્ય જાળવી રાખવામાં મદદ કરે છે.
– તેમાં રહેલું વિટામિન-યુ એક વિરલ અને મુશ્કેલીથી પ્રાપ્ત થતું તત્વ છે. પેપ્ટિક અલ્સર સામે તે જબરું રક્ષણ આપે છે. આલ્ફાલ્ફામાં મોજુદ વિટામીન બી-૬ ત્વચાને સારી રાખે છે. પ્રોટિન અને ફેટના મેટાબોલિઝમને દુરસ્ત રાખે છે. લિવરનાં ફંકશન માટે ઉપયોગી વિટામીન કે પણ તેમાં છે. આ વિટામીન દિર્ઘાયુ માટે અને જનરલ હેલ્થ માટે બહુ ઉપયોગી છે. આલ્ફાલ્ફામાં એ પણ છે કે, ઇજા પછી રૂઝ લાવવામાં એ લોહી જામવાની પ્રક્રિયા ઝડપી બનાવે છે. એરિપેસન તેમાં રહેલું વિટામીન ડી હાલની મજબુતીમાં અને પેઢાને મજબુત બનાવવામાં મહત્વપૂર્ણ ભૂમિકા ભજવે છે.રજકામાં પ્રોટિનનું પ્રમાણ લગભગ ૧૯ ટકા છે. માંસમાં ને ૧૬.પ ટકા હોય છે, દૂધમાં ૩.૩ ટકા, ઇંડામાં ૧૩ ટકા આસપાસ આમ પ્રોટિનની બાબતમાં તે નોન-વેજ ખોરાક કરતાં પણ આગળ છે. તેમાં ભરપુર માત્રામાં કેલ્શિયમ છે, આર્યન, પણ છે જેનાંથી હાલની સ્વસ્થતા વધે છે, હેમોગ્લોબિન વધુ બને છે અને લોહીને ઓકિસજન પણ પુરતો મળી રહે છે. તેમાં રહેલું મેગેનિઝ લોહીમાંથી ખાંડનું પ્રમાણ ઘટાડે છે. ડાયાબીટીસ માટે લેવાની દવાઓને તે આપમેળે વધુ અસરકારક બનાવે છે.
– મેગેનિઝ ઉપરાંત પ્રચુર માત્રામાં પોષક દ્રવ્યો મોજુદ છે.જેવાકે પોટેશિયમ, ફોસ્ફરસ, કલોરિન, સોડીયમ અને સીલીકોન મેગ્નેશિયમ જેવાં તેના દ્રવ્યો શરીરને અનેક પ્રકારે મદદ કરે છે. આલ્ફાલ્ફાની વિશિષ્ટતા એ છે કે, તેમાં મૂળિયા જમીનથી છેક દસ-વીસ ફુટ સુધી પહોંચે છે. અને ત્યાંથી એ એવા ખનિજો તાણી લાવે છે જે સામાન્ય રીતે જમીનની સપાટી પર મળતા નથી. તેથી જ મિરલ્સ (ખનિજ) ની બાબતમાં તેનાં જેવું સમૃધ્ધ સુપરફુડ ભાગ્યે જ બીજું કોઇ હશે.
– રજકાનો એક અદ્દભુત ગુણ છેઃ ચરબી ઘટાડવાનો તેમાં એવા તત્વો ઠાંસી – ઠાંસીને ભર્યા છે જે ચરબી ઓગાળવામાં મદદ કરે છે. જો તમે ડાયેટિંગ કરતા હો તો આલ્ફાલ્ફા એ ડાયેટિંગની અસર ચારગણી વધારી દે છે તેનામાં ઓ ભરપુર પોષક દ્રવ્યો છે જેનાંથી પેટમાં વધુ પડતી ભૂખ નથી લાગતી. ડાયેટિંગમાં ખોરાક ઓછો લેવાથી ઘણી વખત નબળાઇ આવી જમી હોય છે, સુસ્તી જેવું લાગવા માંડે છે. જો ડાયેટિંગની સાથે સાથે આલ્ફાલ્ફા પણ લેવામાં આવે તો આવી ફરીયાદ રહેતી નથી.
– પશ્ચિમમાં થયેલા પરિક્ષણો પરથી સાબિત થયું છે કે, કિડની, મૃતાશય, પ્રોસ્ટેટના દર્દીઓ માટે અકસીર ઈલાજ છે. કિડનીમાં એ પથરી થવા દેતું નથી અને પથરી થઇ હોય તો તેને ઓગાળવાની ક્ષમતા પણ ધરાવે છે. વધતી ઉમર સાથે યુરિનનો પ્રવાહ ઘટી ગયો હોય તો તેને પણ નિયમિત કરવાની શકિત આલ્ફાલ્ફામાં છે.
– એલર્જીથી પીડાતા કે અસ્થમાથી પીડાતા દર્દીઓ માટે આલ્ફાલ્ફા આશીર્વાદરૂપ સાબિત થાય છે. આવી સ્થિતિમાં એ દર્દીને ખાસ્સી રાહત પહોંચાડે છે. રજકામાં રહેલું કલોરોફિલ આવી સ્થિતિમાં સાયનસાથે અને ફેફસાને રક્ષણ આપે છે. અને રિકવરીનો સમય, બહુ ઘટાડી નાખે છે.
– શરીરમાંથી બેડ કોલેસ્ટ્રોલનો નાથવા ઉપરાંત પણ આલ્ફાલ્ફા હૃદયને અનેક પ્રકારે સ્વસ્થ રાખે છે. હૃદયની આર્ટરીમાં એ પ્લાક જમા થવા દેતું નથી. રજકામાં એવા વિશિષ્ટ ગુણો છે. જેને લીધે હૃદય પોતાનું કાર્ય સરળતાથી કરતું રહે છે.
– આરબો અને ગ્રિક પ્રજાએ એક પૌરુષવર્ધક ઔષધ તરીકે માન્યતા આપી છે. ચાઇનીઝ ઔષધ શાષામાં તો આ બાબતે તેનાં ભરપુર ગુણગાન ગવાયા છે. માત્ર પુરૂષ નહિં,સ્ત્રીની પ્રજજનશકિતમાં પણ એ વધારો કરે છે
– થાઇરોઇડ જેવી જટિલ બિમારીમાં તે અદ્દભુત કામ આપે છ.ે થાઇરોઇડથી પીડાતા દર્દીઓને રોજબરોજના જીવનમાં અનેક મુશ્કેલીઓ નડતી હોય છે. આ રજકાના નિયમિત સેવનથી તેમની તકલીફો ખાસ્સી હદે હળવી થાય છે.
– લિવરને લગતી બિમારીના પણ રજકો ઉપયોગી છે. અકાળે ધોળા થતા વાળ કે ખરતા વાળની પણ એ અકસીર દવા છે.
રજકોએ ખરા અર્થમાં એક સુપરફુડ છે. એ પ્રોષકદ્રવ્યોથી ભરપુર છે અને તેનું સેવન બહુ સરળતાથી કરી શકાય છ.ે શરીરની ગમ્મે તેટલી જુની કબજીયાત દુર કરવાની તેમાના ક્ષમતા છે. શરીરના આખા પાચનતંત્રનો કાયાકલ્પ કરી ને એ મનુષ્યને એક સ્વથ્ય જીવન આપવા સમર્થ છે.

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—-प्राचीन उपाय—-
दिमाग से चिन्ता हटाने का टोटका—-
अधिकतर पारिवारिक कारणों से दिमाग बहुत ही
उत्तेजना में आजाता है,परिवार की किसी समस्या से
या लेन देन से,अथवा किसी रिस्तेनाते को लेकर
दिमाग एक दम उद्वेलित होने लगता है,ऐसा लगने
लगता है कि दिमाग फ़ट पडेगा,इसका एक अनुभूत
टोटका है कि जैसे ही टेंसन हो एक लोटे में या जग में
पानी लेकर उसके अन्दर चार लालमिर्च के बीज
डालकर अपने ऊपर सात बार उबारा (उसारा) करने के
बाद घर के बाहर सडक पर फ़ेंक दीजिये,फ़ौरन आराम
मिल जायेगा।
.
यदि आपके बच्चे को बार-बार नजर लग जाती है तो
आपको चाहिए कि आप उसके गले में रीठे का एक फल
काले धागे में उसके गले में पहना दें।
यदि आप नजर दोष से मुक्त होना चाहते हैं तो सूती
कोरे कपड़े को सात बार वारकर सीधी टांग के नीचे
से निकालकर आग में झोंक दें। यदि नजर होगी तो
कपड़ा जल जाएगा व जलने की बदबू भी नहीं आएगी।
यह प्रयोग बुधवार एवं शनिवार को ही कर सकते हैं।
. टोटका नौ-यदि कोई बच्चा नजर दोष से बीमार
रहता है और उसका समस्त विकास रुक गया है तो
फिटकरी एवं सरसों को बच्चे पर से सात बार वारकर
चूल्हे पर झोंक देने से नजर उतर जाती है। यदि यह सुबह,
दोपहर एवं सायं तीनों समय करें तो एक ही दिन में
नजर दोष दूर हो जाता है।
मानसिक परेशानी दूर करने के लिए :—
रोज़ हनुमान जी का पूजन करे व हनुमान चालीसा
का पाठ करें ! प्रत्येक शनिवार को शनि को तेल
चढायें ! अपनी पहनी हुई एक जोडी चप्पल किसी
गरीब को एक बार दान करें !
घर से पराशक्तियों को हटाने का टोटका
एक कांच के गिलास में पानी में नमक मिलाकर घर के
नैऋत्य के कोने में रख दीजिये,और उस बल्ब के पीछे लाल
रंग का एक बल्व लगा दीजिये,जब भी पानी सूख जाये
तो उस गिलास को फ़िर से साफ़ करने के बाद नमक
मिलाकर पानी भर दीजिये।
व्यक्तिगत बाधा निवारण के लिए—-
व्यक्तिगत बाधा के लिए एक मुट्ठी पिसा हुआ नमक
लेकर शाम को अपने सिर के ऊपर से तीन बार उतार लें
और उसे दरवाजे के बाहर फेंकें। ऐसा तीन दिन लगातार
करें। यदि आराम न मिले तो नमक को सिर के ऊपर
वार कर शौचालय में डालकर फ्लश चला दें। निश्चित
रूप से लाभ मिलेगा।
हमारी या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य की
ग्रह स्थिति थोड़ी सी भी अनुकूल होगी तो हमें
निश्चय ही इन उपायों से भरपूर लाभ मिलेगा।
बनता काम बिगडता हो, लाभ न हो रहा हो या
कोई भी परेशानी हो तो :—-
. हर मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में बदाना
(मीठी बूंदी) चढा कर उसी प्रशाद को मंदिर के बाहर
गरीबों में बांट दें !
व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में
बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका
करें- सरसों के तैल में सिके गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से
तैयार सात पूये, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे
से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से जलता
दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार
की रात्रि में किसी चौराहे पर रखें और कहें -“हे मेरे
दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा
पीछा ना करना। सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।
अगर आपको पोस्ट अच्छी लगे तो शेयर करें वरना छोड़
दे

विक्रम प्रकाश राइसोनि

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एक चीनी सन्त बहुत बूढ़े हो गए।
मरने का समय निकट आया तो उनके सभी शिष्य
उपदेश सुनने और अन्तिम प्रणाम करने एकत्रित हुए।
उपदेश न देकर उनने अपना मुँह खोला और शिष्यों से पूछ-
देखो इसमें दाँत है क्या? शिष्यों ने उत्तर दिया- एक
भी नहीं।
दूसरी बार उनने फिर मुँह खोला और पूछा –
देखो इसमें जीभ है क्या? सभी शिष्यों ने
एक स्वर में उत्तर दिया हाँ- है – है।
सन्त ने फिर पूछा – अच्छा एक बात बताओ। जीभ
जन्म से थी और मृत्यु तक रहेगी और
दाँत पीछे उपजे और पहले चले गए।
इसका क्या कारण है?
इस प्रश्न का उत्तर किसी से भी न बन
पड़ा।
सन्त ने कहा जीभ कोमल होती है
इसलिए टिकी रही। दाँत कठोर थे इसलिए
उखड़ गए।
मेरा एक ही उपदेश है- दांतों की तरह
कठोर मत होना – जीभ की तरह
मुलायम रहना। यह कह कर उनने अपनी आंखें
मूँद ली।

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किसी ने एक कहानी सुनाई थी..
वैसे कहानी किसी और संदर्भ में थी, पर मैं इसका संदर्भ कुछ बदल कर सुना रहा हूँ…

एक गाँव में एक बनिया और एक कुम्हार था. कुम्हार ने बनिये से कहा, मैं तो बर्तन बनाता हूँ, पर गरीब हूँ…तुम्हारी कौन सी रुपये बनाने की मशीन है जो तुम इतने अमीर हो?
बनिये ने कहा – तुम भी अपने चाक पर मिट्टी से रुपये बना सकते हो.
कुम्हार बोला – मिट्टी से मिट्टी के रुपये ही बनेंगे ना, सचमुच के तो नहीं बनेंगे.
बनिये ने कहा – तुम ऐसा करो, अपने चाक पर 1000 मिट्टी के रुपये बनाओ, बदले में मैं उसे सचमुच के रुपयों में बदल कर दिखाऊँगा.
कुम्हार ज्यादा बहस के मूड में नहीं था…बात टालने के लिए हाँ कह दी.
महीने भर बाद कुम्हार से बनिये ने फिर पूछा – क्या हुआ ? तुम पैसे देने वाले थे…
कुम्हार ने कहा – समय नहीं मिला…थोड़ा काम था, त्योहार बीत जाने दो…बनाउँगा…
फिर महीने भर बाद चार लोगों के बीच में बनिये ने कुम्हार को फिर टोका – क्या हुआ? तुमने हज़ार रुपये नहीं ही दिए…दो महीने हो गए…
कुम्हार फिर टाल गया – दे दूँगा, दे दूँगा… थोड़ी फुरसत मिलने दो.
अब कुम्हार जहाँ चार लोगों के बीच में मिले, बनिया उसे हज़ार रुपये याद दिलाए… कुम्हार हमेशा टाल जाए…
6 महीने बाद बनिये ने पंचायत बुलाई और कुम्हार पर हज़ार रुपये की देनदारी का दावा ठोक दिया. गाँव में दर्जनों लोग गवाह बन गए जिनके सामने बनिये ने हज़ार रुपये मांगे थे और कुम्हार ने देने को कहा था. कुम्हार की मिट्टी के रुपयों की कहानी सबको अजीब और बचकानी लगी और पंचायत ने कुम्हार से हज़ार रुपये वसूली का हुक्म सुना दिया…

अब पंचायत छंटने पर बनिये ने समझाया – देखा, मेरे पास बात बनाने की मशीन है…इस मशीन में मिट्टी के रुपये कैसे सचमुच के रुपये हो जाते हैं, समझ में आया?

इस कहानी में आप नैतिकता, न्याय और विश्वास के प्रपंचों में ना पड़ें…सिर्फ टेक्निक को देखें…बनिया जो कर रहा था, उसे कहते हैं narrative building…कथ्य निर्माण…सत्य और तथ्य का निर्माण नहीं हो, कथ्य का निर्माण हो ही सकता है. अगर आप अपने आसपास कथ्य निर्माण होते देखते हैं, पर उसकी महत्ता नहीं समझते, उसे चैलेंज नहीं करते तो एकदिन सत्य इसकी कीमत चुकाता है…

हमारे आस-पास ऐसे कितने ही नैरेटिव बन रहे हैं. दलित उत्पीड़न के, स्त्री-दासता और हिंसा के, बलात्कार की संस्कृति के, बाल-श्रम के, अल्पसंख्यक की लींचिंग के…ये सब दुनिया की पंचायत में हम पर जुर्माना लगाने की तैयारी है. हम कहते हैं, बोलने से क्या होता है? कल क्या होगा, यह इसपर निर्भर करता है कि आज क्या कहा जा रहा है. इतने सालों से कांग्रेस ने कोई मेरी जायदाद उठा कर मुसलमानों को नहीं दे दी थी…सिर्फ मुँह से ही सेक्युलर-सेक्युलर बोला था ना…नतीजा देख लीजिए, यही सेक्युलरिज्म आज तक योगी-मोदी के गले में भी अटका पड़ा है.

बोलने से क्या होता है? बोलने से कथ्य-निर्माण होता है…दुनिया में देशों का इतिहास बोलने से, नैरेटिव बिल्डिंग से बनता बिगड़ता रहा है. यही आर्य-द्रविड़ बोल बोल कर ईसाइयों ने श्रीलंका में गृह-युद्ध करा दिया…भारत में मूल-निवासी आंदोलन चला रहे हैं…हम नैरेटिव का रोल नहीं समझते…हम इतिहास दूसरे का लिखा पढ़ते हैं, हमारे धर्मग्रंथों के अनुवाद विदेशी आकर करते हैं. हमारी वर्ण-व्यवस्था अंग्रेजों के किये वर्गीकरण से एक कठोर और अपरिवर्तनीय जातिवादी व्यवस्था में बदल गई है…हमने अपने नैरेटिव नहीं बनाए हैं…दूसरों के बनाये हुए नैरेटिव को सब्सक्राइब किया है…

मोदीजी लालकिले से सेक्युलरिज्म की भाषा बोलते हैं…
हम सफाई देते हैं…
बोलने से क्या होता है, काम देखो, काम!

पर लालकिले से दिया गया प्रधानमंत्री का संबोधन एक भाषण नहीं है. एक ऐतिहासिक दस्तावेज है. ये वो औज़ार हैं, वो ईंटें हैं, जिनसे हमारे इतिहास-बोध की इमारत बननी है. मोदी काम करके चले जायेंगे…10, अधिक से अधिक 15 साल…उनके बाद जो आएगा वो उसी नैरेटिव से बँधा होगा जो मोदी छोड़ कर जाएंगे, जैसे मोदी आज कांग्रेस के सेक्युलर नैरेटिव से बँधे हैं…अगर हम अपना कथ्य निर्माण नहीं करेंगे, तो सत्य सिर्फ परेशान ही नहीं, पराजित भी हो जाएगा…सत्यमेव जयते को अभेद्य अजेय मत समझिए…

साभार भाई डॉ० राजीव मिश्र लन्दनवाले

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[08/09, 9:36 a.m.] harshad30.wordpress.com: //श्रीहरिः//
“भगवान् के लिये काम कैसे किया जाय ?”
(ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका)
पोस्ट संख्या – ३/३ (अन्तिम)

अपनी समझसे कोई अनुचित कार्य नहीं करना चाहिये । हमलोग किसीकी भलाईके लिये कोई कार्य कर रहे हैं और कदाचित् दैव-इच्छासे उसकी कोई हानि हो जाय तो उसमें चिन्ता या पश्चात्ताप नहीं करना चाहिये । हमको अपने कृत्यकी भूलके लिये ही पश्चात्ताप करना उचित है ।
हमको सूचना मिली कि यहाँ बहुत जल्दी बाढ़ आनेवाली है, हट जाना चाहिये । इस बातको जानकर भी हम नहीं हटे और हमारा सब कुछ बह गया तो हमें पश्चात्ताप करना चाहिये; क्योंकि भगवान् ने हमको सचेत कर दिया था और हमने उसको माननेमें अवहेलना की । परंतु यदि अचानक बाढ़ आ जाने से सब डूब जाय तो चिन्ता करनेकी आवश्यकता नहीं, क्योंकि वहाँ हमारी भूल नहीं हुई है ।
एक जगह बाढ़ आयी, बीज बह गये । हमलोगोंने बोनेके लिये किसानोंको बीज दिए, फिर बाढ़ आयी और वे बीज भी बह गये । इसपर हमलोगोंको न तो शोक करना चाहिये और न यह विचार करना चाहिये कि बीज तो बह ही रहे हैं, व्यर्थ देकर क्यों नष्ट करें । हमलोगोंको तो स्वामीकी यही आज्ञा है कि बीज जहाँतक बने, उन्हें देते रहो । अतः हमको तो प्रभुके आज्ञानुसार ही करना चाहिये । उसमें कोई कसर नहीं रखनी चाहिये । प्रभु अपने इच्छानुसार करें । सेवकको तो प्रभुका काम करके हर्षित होना चाहिये और सावधानीसे अपने कर्तव्य-पथपर डटे रहना चाहिये ।
रोगी कुपथ्य कर ही लिया करते हैं । इसमें अपना क्या वश है । कुपथ्य करनेपर सद्वैद्य रोगीको धमका तो देता है, परंतु नाराज नहीं होता । वह समझता है कि मेरी पाँच बातोंमेंसे तीन तो इसने मान लीं । दोके लिये फिर चेष्टा करेंगे । वैद्य बारम्बार चेष्टा करता है, जिससे वह कुपथ्य न करे । परंतु चेष्टा करनेपर भी उसका हित न हो तो वैद्यको उकतानेकी जरूरत नहीं, न क्रोध ही करनेकी आवश्यकता है । फलको भगवान् की इच्छापर छोड़देना चाहिये और बिना उकताये प्रभुकी लीलामें उनके इच्छानुसार लगे रहना चाहिये ।
(‘कल्याण’ पत्रिका; वर्ष – ८२, संख्या -४ : गीताप्रेस, गोरखपुर)
[08/09, 9:37 a.m.] harshad30.wordpress.com: तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥
.
भावार्थ:-हे तात! स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाए, तो भी वे सब मिलकर (दूसरे पलड़े पर रखे हुए) उस सुख के बराबर नहीं हो सकते, जो लव (क्षण) मात्र के सत्संग से होता है॥

सत्संग = स्वाध्याय