#श्राद्ध
#पितृ पक्ष के लिए विशेष
श्राद्ध करना आवश्यक है, चाहे अपनी सामर्थ्य के अनुसार थोडा या ज्यादा जो कर सके, परंतु करे अवश्य
यहां पर ये भी स्पष्ट है कि श्राद्ध केवल सुयोग्य, सुसंस्कृत, वेदों के ज्ञाता, ज्ञानी ब्राह्मण को घर बुलाकर 10 am से 1 pm के बीच मे ही करना चाहिए
श्राद्ध के नियम :-
- श्राद्ध पिता तथा माता की तरफ की तीन-तीन पीढ़ियों का किया जा सकता है, जैसे माता-पिता, दादा- दादी, परदादा-परदादा इसी प्रकार से नाना-नानी, परनाना-परनानी का भी श्राद्ध किया जा सकता है ।
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श्राद्ध करने के अधिकारी क्रमशः यदि कई पुत्र हो तो बडा बेटा, या सबसे छोटा बेटा, विशेष परिस्थितियों मे बड़े भाई की आज्ञा से छोटा भाई, यदि संयुक्त परिवार हो तो तो ज्येष्ठ पुत्र के द्वारा एक ही जगह सम्पन्न हो सकता है । यदि पुत्र अलग-अलग रहते हो तो उन्हें वार्षिक श्राद्ध अलग-अलग ही करना चाहिए।
यदि पुत्र न हो तो शास्त्रों मे श्राद्ध करने का क्रम इस प्रकार से निर्धारित है:- पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, दौहित्र, पत्नी, भाई, भतीजा, पिता, माता, पुत्रवधु, बहन, भांजा, सपिण्ड़ ( अपने से लेकर सात पीढी तक का परिवार ), सोदक ( आठवी से लेकर चौदह पीढी के परिवार) ।
3.श्राद्ध दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार सुयोग्य ब्राह्मण को घर बुलाकर कालेतिल, गंगाजल, सफेद फूलो से पूजा करवाकर नाम, गोत्र उच्चारण, संकल्प आदि करवाकर ही करे ।
इसके उपरांत ब्राह्मण को वस्त्र, जनेऊ, फल, मिठाई दक्षिणा सहित संतुष्ट करवाकर ही विदा करे, ब्राह्मण की संतुष्टि तथा प्रसन्नता से ही पितर संतुष्ट होते है, तथा वंशजो को आशीर्वाद देकर अपने लोक को विदा होते है ।
- श्राद्ध सदा मध्याह्न काल यानि (10:48 बजे से 1:12 बजे दोपहर ) को ही किया जाना चाहिये ।
प्रातःकाल, सायंकाल तथा रात्रि मे श्राद्ध न करे ।
श्राद्ध मे तुलसी, जौ, काले तिल, पुष्प, चावल, भृंगराज, तथा गंगाजल का प्रयोग अवश्य करे तथा पिण्डदान व तर्पण अवश्य करे ।
भोजन मे उडद की दाल के भल्ले, चटपटा भोजन,
गाय के दूध एवं उससे बनी हुई वस्तुएँ, लौंग डाली हुई खीर अवश्य रखे ये पदार्थ आत्माओं को प्रसन्न, प्रेरित तथा आकर्षित करते है ।
जौ, धान, तिल, गेहूं, मूंग, इन्द्रजौ,परवल, आंवला, खीर, नारियल,बेल, अनार, आम,अमड़ा, बिजौरा, फालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, चिरौंजी, बेर, इन्द्रजौ, मटर, कचनार, सरसों, सरसों का तेल, तिल्ली का तेल आदि का प्रयोग करना चाहिए ।
श्राद्ध कर्म मे गुड से बना अन्न, काले तिल तथा शहद का दान अवश्य करे ।
श्राद्ध केवल मृत्यु तिथि वाले दिन ही करे, यदि भूलवश तिथि निकल जाये तो अंतिम दिन यानि अमावस्या के दिन श्राद्ध करे ।
पूर्णिमा के दिन मृत्यु हुए दिवंगत का श्राद्ध पूर्णिमा तिथि को ही करे ।
परंतु चतुदर्शी के दिन मृत्यु हुई हो तो श्राद्ध अमावस्या पर करे ।
जिन व्यक्तियों की मृत्यु, हथियार से यानि हत्या से हुई हो, विष से, या जलकर मरने सेे, दुर्घटना से, या आत्महत्या द्वारा मृत्यु हुई हो तो उनके लिए श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को ही करे ।
जिनकी मृत्यु की तिथि न पता हो, या जो व्यक्ति घर छोड़कर चले गये हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि पर ही करे ।
जिनके पितर सन्यासी या वनवासी हो गये हो तो उनके लिए बाहरवां श्राद्ध करे ।
भीष्म पितामह के निमित तर्पण अवश्य करे, वह हम सबके पितामह माने जाते है ।
- श्राद्ध मे चार चीजे अत्यंत शुभ है – दोहिता यानि (लडकी का बेटा), कुशा, बारह बजे का समय तथा काले तिल ।
दिवंगत आत्मा के जीवित नाना, मामा, भानजा, गुरू, श्वसुर, दोहता, तथा भाई को श्राद्ध का भोजन अवश्य करवाना चाहिये ।
कुशा के साथ ही श्राद्ध करवाये, क्योंकि कुशा से निकली तेजमयी किरणो के प्रभाव से श्राद्ध कर्म मे “रज” तथा “तम” तरंगे कम हो जाती है, जिससे अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की संभावना कम हो जाती है और श्राद्ध सफलता से संपूर्ण होकर पितृरो को संतुष्ट करता है, जिससे उनकी आत्मा वंशजो को आशीर्वाद देकर आगे की यात्रा पर प्रस्थान कर जाती है ।
पितृपक्ष मे गुस्सा ( क्रोध ), काम ( मैथुन ), तथा भय को पास न आने दे, इन कामो के करने से अनिष्ट फलो की प्राप्ति होती है, और श्राद्ध स्वीकार नही होता ।
श्राद्ध सदा एकांत स्थान मे, अपने घर मे, जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ स्थान मे, या मंदिर मे ही करे । श्राद्ध कभी भी किसी दूसरे के घर या स्थान मे न करे, श्राद्ध तथा पिण्डदान पर किसी भी साधारण या नीच इंसान की दृष्टि न पडने दे ।
साधारण मनुष्य देवकार्य अर्थात कर्मकाण्ड मे ब्राह्मण की परीक्षा न करे, परंतु पितृकार्य मे ब्राह्मण ध्यान से ब्राह्मण की परीक्षा करे, पितृकार्य मे ब्राह्मण गुणी, कर्मकांडी, तथा विद्धान ही होना चाहिये ।
*जो मनुष्य बिना ब्राह्मण के श्राद्ध करता है, उसके घर पितर भोजन नही करते और श्राप देकर लौट जाते
है,ब्राह्मणहीन श्राद्ध करने से मनुष्य महापापी होता है।*
- देवकार्य मे दो, और पितृकार्य मे तीन अथवा दोनो मे एक-एक ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिये । अत्यधिक धनी होने पर भी श्राद्ध कर्म मे अघिक विस्तार यानि तीन से अधिक ब्राह्मण को भोजन नही करवाना चाहिये
सोने, चांदी, कांसा तथा तांबे के बर्तन पितरो के प्रिय होते हैं, अतः इन्हीं बर्तनो मे श्राद्ध भोजन करवाये । कांच, शीशे, स्टील तथा मिट्टी के बर्तन श्राद्ध मे बिलकुल इस्तेमाल न करे ।
ब्राह्मण जब श्राद्ध का भोजन ग्रहण करने के लिए आसन बैठ जाये तब ही भिखारियों, गरीबो, अंपगो या अन्य सामान्य व्यक्तियों को भोजन पर अामांत्रित किया जा सकता है ।
श्राद्धकाल मे आये हुए मेहमान को भी भोजन करवाये या उनका आतिथ्य सत्कार अवश्य करे, ऐसा न करने से श्राद्धकर्म का सम्पूर्ण फल ही नष्ट हो जाता है ।
ब्राह्मण को तथा श्राद्ध का भोजन करने वाले अन्य किसी भी व्यक्ति को भोजन तथा अन्य व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर ही भोजन करना चाहिए ।
- श्राद्धकाल मे गाय, कुत्ता, कौआ, चीटी तथा देवताओं के लिए पांच ग्रास जरूर निकाले, गाय के लिए निकाले ग्रास को गाय को ही , कुत्ते, कौअे तथा चीटी के निमित निकाले ग्रास को क्रमशः इन्हे ही दे, देवताओं के निमित्त निकाले ग्रास को गाय को ही खिलाये ।
गाय तथा देवता देवतत्व है, कौआ वायुतत्व,( गंध तथा स्पर्श ) कुत्ता अग्नि तत्व (गंध और श्रवण ) तथा चीटी पृथ्वी तत्व ( पुरुषार्थ का प्रतीक है ) ( अपने अगले किसी लेख मे इन चारो प्राणियों, पर इनके गुणों तथा इनका ग्रास निकालने पर विस्तार से लिखूंगा )
श्राद्ध कार्य या पितरो के निमित्त किसी भी कार्य मे चांदी और चांदी के बर्तनो का इस्तेमाल अत्यधिक शुभ है, चांदी शिव के तीसरे नेत्र से उत्पन्न हुई है, इसलिए श्राद्धकार्य मे ये उत्तम है, परंतु देवकार्य मे इसे इस्तेमाल न करे । चांदी मे सत्वगुण -50%, रजोगुण – 40% तथा तमोगुण-10% होता है तथा इसमे वायुतत्व भी उचित मात्रा मे होता है, इन्हीं गुणों के कारण चांदी के बर्तनों मे रखा भोजन, नैवेद्य तथा जल पितरो को आकर्षित करता है, और वह इसे शीघ्र तथा सहर्ष स्वीकार कर लेते है ।
पुराणोक्त पितृ -स्तोत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।
प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः I
#जय माता दी
पंडित पंकज शास्त्री जी की पोस्ट कोपी की है।
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