Posted in संस्कृत साहित्य

बकरीद- बकर


बकरीद- बकर = गौ, भगवान, या कोई चौपाया। तुर्की में बकर का अर्थ गाय है। अरब में साधारणतया भेड़ को बकर कहते हैं। भारत में बकरा या बकरी अर्थ समझते हैं। ईद = पूजा। कुछ लोग कुरबानी समझते हैं। पूजा में भी यही होता है। हम भगवान् को प्रतीक रूप में कुछ अर्पण करते हैं। बाद में कहते हैं कि सब कुछ तो भगवान् का ही है; उन्हींकी चीज उनको दे रहे हैं। वेद में भी अज के दोनों अर्थ हैं-भगवान्, या बकरा। अजा = बकरी। सांख्य दर्शन में पुरुष या चेतन कारण को अज कहा है। संसार बनाने की सामग्री अजा या प्रकृति है। भगवान् तथा चौपाया का एक नाम कैसे-पूरे संसार को या उसकी किसी वस्तु को हम 4 स्तर या चौपाया रूप में देखते हैं- क्षर पुरुष-बाहरी रूप जिसका हमेशा क्षरण होता है, अर्थात् धीरे-धीरे पुराना हो कर नष्ट हो जाता है। अक्षर पुरुष-हमेशा क्षरण होने पर भी जब तक उस व्यक्ति या वस्तु का जीवन है, उसका नाम, रूप, काम के रूप में परिचय वही रहता है। इसे अक्षर पुरुष कहते हैं। अव्यय पुरुष-पूरे संसार के अंश रूप में न कुछ घटता है, न बढ़ता है। कुल मिला कर उतना ही रहने के कारण यह अव्यय पुरुष है। परात्पर पुरुष-बहुत सूक्ष्म या बहुत बड़े स्तर पर किसी चीज का दूसरे से कोई अन्तर नहीं है। यह परात्पर है। जैसे हर वस्तु एक ही प्रकार के इलेक्ट्रान- प्रोटान आदि से बनी है। उनका भी मूल देखें तो एक ही प्रकार के कण होंगे। बहुत बड़े स्तर पर भी संसार हर दिशा, स्थान या समय में एक ही जैसा है। 4 स्तर का बलिदान- आधिभौतिक- चाणक्य नीति में है- त्यजेदेकं कुलस्यार्थे, ग्रामार्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्।। एक व्यक्ति को कुल के लिये, गांव के लिये कुल को, देश के लिए गांव को तथा आत्मा (परमात्मा) के लिये संसार छोड़ देना चाहिए। आध्यात्मिक-मन पर नियंत्रण नहीं होने से वह सांसारिक विषयों में उलझा रहता है। परमार्थ पाने के लिए भागवत पुराण में कहा गया है कि विषयों को मन में, मन को बुद्धि में, बुद्धि को आत्मा तथा आत्मा का परमात्मा में लय किया जाता है। आधिदैविक-सृष्टि निर्माण के 5 स्तर कहे हैं- स्वायम्भुव मण्डल से ब्रह्माण्ड, उससे सौर मण्डल, उससे चान्द्र मण्डल तथा अन्त में पृथिवी बनती है। उलटे क्रम में 4 स्तर का विनाश है। 4 स्तर के बलिदान के कारण इसे बकर या अज कहते हैं। महाभारत में भी कथा है कि राजा उपरिचर वसु (जरासंध के पूर्वज) से ऋषियों ने पूछा कि यज्ञ में अज बलि का क्या अर्थ है? उन्होंने मांसाहारियों को खुश करने के लिए कहा कि इसका अर्थ बकरे की बलि है। जान बूझ कर झूठ बोलने के कारण उनका रथ जमीन पर चलने लगा जो पहले आकाश में उड़ा करता था। यज्ञ का प्रतीक गौ है। यज्ञ का अर्थ है उपयोगी वस्तु का उत्पादन। सबसे उपयोगी भोजन है जिसके लिए हम गाय पर निर्भर हैं। जीवन भर उसका दूध पीने के अतिरिक्त कृषि भी बैल पर निर्भर है। मानव सभ्यता चलते रहने के लिए गौ की रक्षा जरूरी है। इसी लिये बकरीद के दोनों अर्थ हैं-गौ या भगवान् की पूजा।

अरुण उपाध्याय

Author:

Buy, sell, exchange old books

Leave a comment