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बकरीद- बकर


बकरीद- बकर = गौ, भगवान, या कोई चौपाया। तुर्की में बकर का अर्थ गाय है। अरब में साधारणतया भेड़ को बकर कहते हैं। भारत में बकरा या बकरी अर्थ समझते हैं। ईद = पूजा। कुछ लोग कुरबानी समझते हैं। पूजा में भी यही होता है। हम भगवान् को प्रतीक रूप में कुछ अर्पण करते हैं। बाद में कहते हैं कि सब कुछ तो भगवान् का ही है; उन्हींकी चीज उनको दे रहे हैं। वेद में भी अज के दोनों अर्थ हैं-भगवान्, या बकरा। अजा = बकरी। सांख्य दर्शन में पुरुष या चेतन कारण को अज कहा है। संसार बनाने की सामग्री अजा या प्रकृति है। भगवान् तथा चौपाया का एक नाम कैसे-पूरे संसार को या उसकी किसी वस्तु को हम 4 स्तर या चौपाया रूप में देखते हैं- क्षर पुरुष-बाहरी रूप जिसका हमेशा क्षरण होता है, अर्थात् धीरे-धीरे पुराना हो कर नष्ट हो जाता है। अक्षर पुरुष-हमेशा क्षरण होने पर भी जब तक उस व्यक्ति या वस्तु का जीवन है, उसका नाम, रूप, काम के रूप में परिचय वही रहता है। इसे अक्षर पुरुष कहते हैं। अव्यय पुरुष-पूरे संसार के अंश रूप में न कुछ घटता है, न बढ़ता है। कुल मिला कर उतना ही रहने के कारण यह अव्यय पुरुष है। परात्पर पुरुष-बहुत सूक्ष्म या बहुत बड़े स्तर पर किसी चीज का दूसरे से कोई अन्तर नहीं है। यह परात्पर है। जैसे हर वस्तु एक ही प्रकार के इलेक्ट्रान- प्रोटान आदि से बनी है। उनका भी मूल देखें तो एक ही प्रकार के कण होंगे। बहुत बड़े स्तर पर भी संसार हर दिशा, स्थान या समय में एक ही जैसा है। 4 स्तर का बलिदान- आधिभौतिक- चाणक्य नीति में है- त्यजेदेकं कुलस्यार्थे, ग्रामार्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्।। एक व्यक्ति को कुल के लिये, गांव के लिये कुल को, देश के लिए गांव को तथा आत्मा (परमात्मा) के लिये संसार छोड़ देना चाहिए। आध्यात्मिक-मन पर नियंत्रण नहीं होने से वह सांसारिक विषयों में उलझा रहता है। परमार्थ पाने के लिए भागवत पुराण में कहा गया है कि विषयों को मन में, मन को बुद्धि में, बुद्धि को आत्मा तथा आत्मा का परमात्मा में लय किया जाता है। आधिदैविक-सृष्टि निर्माण के 5 स्तर कहे हैं- स्वायम्भुव मण्डल से ब्रह्माण्ड, उससे सौर मण्डल, उससे चान्द्र मण्डल तथा अन्त में पृथिवी बनती है। उलटे क्रम में 4 स्तर का विनाश है। 4 स्तर के बलिदान के कारण इसे बकर या अज कहते हैं। महाभारत में भी कथा है कि राजा उपरिचर वसु (जरासंध के पूर्वज) से ऋषियों ने पूछा कि यज्ञ में अज बलि का क्या अर्थ है? उन्होंने मांसाहारियों को खुश करने के लिए कहा कि इसका अर्थ बकरे की बलि है। जान बूझ कर झूठ बोलने के कारण उनका रथ जमीन पर चलने लगा जो पहले आकाश में उड़ा करता था। यज्ञ का प्रतीक गौ है। यज्ञ का अर्थ है उपयोगी वस्तु का उत्पादन। सबसे उपयोगी भोजन है जिसके लिए हम गाय पर निर्भर हैं। जीवन भर उसका दूध पीने के अतिरिक्त कृषि भी बैल पर निर्भर है। मानव सभ्यता चलते रहने के लिए गौ की रक्षा जरूरी है। इसी लिये बकरीद के दोनों अर्थ हैं-गौ या भगवान् की पूजा।

अरुण उपाध्याय

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आप सभी रामायण के सीता माता के स्वयम्बर प्रसंग से अवश्य ही अवगत होंगे


आप सभी रामायण के सीता माता के स्वयम्बर प्रसंग से अवश्य ही अवगत होंगे, राजा जनक शिव जी के वंशज थे तथा शिव जी का धनुष उनके यहाँ रखा हुआ था. राजा जनक ने कहा था कि जो राजा उस धनुष की प्रत्यंचा को चढा देगा (संचालित कर देगा) उसे ही सीतामाता वरण करेगी. शिव जी का धनुष कोई साधारण धनुष नहीं था बल्कि उस काल का परमाण्विक मिसाइल(ब्रह्मास्त्र) छोड़ने का एक यंत्र था. रावण कि दृष्टि उस पर लगी थी और इसी कारण वह भी स्वयम्बर में आया था. उसका विश्वास था कि वह शिव का अनन्य भक्त है,वह सीता को वरण करने में सफल होगा. जनक राज को भय था कि अगर यह रावण के हाथ लग गया तो सृष्टि का विनाश हो जायेगा,अतः इसका नष्ट हो जाना ही श्रेयस्कर होगा. उस चमत्कारिक धनुष के सञ्चालन कि विधि कुछ लोगों को ही ज्ञात थी, स्वयं जनक राज,माता सीता,आचार्य श्री परशुराम,आचार्य श्री विश्वामित्र ही उसके सञ्चालन विधि को जानते थे. आचार्य श्री विश्वमित्र ने उसके सञ्चालन की विधि प्रभु श्री राम को बताई तथा कुछ अज्ञात तथ्य को माता सीता ने श्री राम को वाटिका गमन के समय बताया. वह धनुष बहुत ही पुरातन था और प्रत्यंचा चढाते(सञ्चालन करते) ही टूट गया, आचार्य श्री परशुराम कुपित हुए कि श्री राम को सञ्चालन विधि नहीं आती है, पुनः आचार्य विश्वामित्र एवं लक्ष्मण के समझाने के बाद कि वह एक पुरातन यन्त्र था,संचालित करते ही टूट गया,आचार्य श्री परशुराम का क्रोध शांत हो गया. ++++++++++++++++++++++++ #प्राचीनसमृद्धभारत;—– साधारण धनुष नहीं था वह शिवजी का धनुष, उस ज़माने का आधुनिक परिष्कृत नियुक्लियर वेपन था. हमारे ऋषि मुनियों को तब चिंता हुई जब उन्होंने देखा की शिवजी के धनुष पर रावण जैसे लोगों की कुद्रष्टि लग गई है. जब इसपर विचार हुआ की इसका क्या किया जाये ? अंत में निर्णय हुआ की आगे भी गलत हाथ में जाने के कारण इसका दुरूपयोग होने से भयंकर विनाश हो सकता है अतः इसको नष्ट करना ही सर्वथा उचित होगा. हमारे ऋषियों(तत्कालीन विज्ञानिक) ने खोजा तो पाया की कुछ पॉइंट्स ऐसे हैं जिनको विभिन्न एंगिल से अलग अलग दवाव देकर इसको नष्ट किया जा सकता है. और यह भी निर्णय हुआ की इसको सर्वसमाज के सन्मुख नष्ट किया जाये. अब इसके लिए आयोजन और नष्ट करने हेतू सही व्यक्ति चुनने का निर्णय देवर्षि विश्वामित्र को दिया गया, तब सीता स्वम्वर का आयोजन हुआ और प्रभु श्रीराम जी द्वारा वह नष्ट किया गया। बोलो महापुरुष श्रीरामचन्द्र महाराज की जय ……. भारतवर्ष की गौरवशाली गाथा संसार में अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिये शेयर करें। आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति ! आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति ! #साभार_संकलित:: जयति पुण्य सनातन संस्कृति,, जयति पुण्य भूमि भारत,,, सदा सर्वदा सुमंगल,, हर हर महादेव,, वंदेमातरम,,, जय भवानी, जय श्री राम,,,

विजय कृष्णा पांडेय

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लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा ।


लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा । एक अनजाने सत्य से परिचय— -हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है। लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी. लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है । अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया – भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा । अगस्त्य मुनि बोले- श्रीराम, बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥ उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥ ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥ और लक्ष्मण ने उसका वध किया इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥ श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे,फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥ अगस्त्य मुनि ने कहा- प्रभु, इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था कि जो 💥 चौदह वर्षों तक न सोया हो, 💥 जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और 💥 चौदह साल तक भोजन न किया हो ॥ श्रीराम बोले- परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा ॥ मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है ॥ अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए॥ प्रभु से कुछ छुपा है भला! दरअसल, सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे लेकिन प्रभु चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो ॥ अगस्त्य मुनि ने कहा – क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए ? लक्ष्मणजी आए, प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच सच कहिएगा॥ प्रभु ने पूछा- हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ? फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे ?और 14 साल तक सोए नहीं ? यह कैसे हुआ ? लक्ष्मणजी ने बताया- भैया, जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा ॥ आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं. चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए – आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे. मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था. निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था॥ निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी ॥ आपको याद होगा, राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था. अब मैं 14 साल तक अनाहारी कैसे रहा? मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे. एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो॥ आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे? मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया॥ सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे ॥ प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया॥ फलों की गिनती हुई, सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे॥ प्रभु ने कहा- इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था? लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया- उन सात दिनों में फल आए ही नहीं, 1. जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे॥ 2. जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता॥ 3. जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे, 4. जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे, 5. जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे, 6. जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी 7. और जिस दिन आपने रावण-वध किया ॥ इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी॥ विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था- बिना आहार किए जीने की विद्या. उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया ॥ भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया✍🏻🇮🇳🌿 🚩🚩 जय सियाराम

विकाज़ह खुराना

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रात के समय एक दुकानदार अपनी दुकान बन्द ही कर रहा था


रात के समय एक दुकानदार अपनी दुकान बन्द ही कर रहा था कि एक 🐕कुत्ता दुकान में आया .. , उसके मुॅंह में एक थैली थी, जिसमें सामान की लिस्ट और पैसे थे ..😛👇 , दुकानदार ने पैसे लेकर सामान उस थैली में भर दिया …😛 , 🐕कुत्ते ने थैली मुॅंह मे उठा ली और चला गया😍 , दुकानदार आश्चर्यचकित होके कुत्ते के पीछे पीछे गया ये देखने की इतने समझदार 🐕कुत्ते का मालिक कौन है …😛 , 🐕कुत्ता बस स्टाॅप पर खडा रहा, थोडी देर बाद एक बस आई जिसमें चढ गया ..😂😁 , कंडक्टर के पास आते ही अपनी गर्दन आगे कर दी, उस के गले के बेल्ट में पैसे और उसका पता भी था😛 , कंडक्टर ने पैसे लेकर टिकट 🐕कुत्ते के गले के बेल्ट मे रख दिया😍 , अपना स्टाॅप आते ही 🐕कुत्ता आगे के दरवाजे पे चला गया और पूॅंछ हिलाकर कंडक्टर को इशारा कर दिया और बस के रुकते ही उतरकर चल दिया ..😛😍 , दुकानदार भी पीछे पीछे चल रहा था … , कुत्ते ने घर का दरवाजा अपने पैरोंसे २-३ बार खटखटाया …😍😍 , अन्दर से उसका मालिक आया और लाठी से उसकी पिटाई कर दी ..😛😛 , दुकानदार ने मालिक से इसका कारण पूछा .. ??😛😛 , मालिक बोला .. “साले ने मेरी नींद खराब कर दी, ✒चाबी साथ लेके नहीं जा सकता था गधा”😛 , , जीवन की भी यही सच्चाई है .. 😛😍 , आपसे लोगों की अपेक्षाओं का कोई अन्त नहीं है ..😛 , जहाँ आप चूके वहीं पर लोग बुराई निकाल लेते हैं और पिछली सारी अच्छाईयों को भूल जाते हैं ..😛😍 , इसलिए अपने कर्म करते चलो, लोग आपसे कभी संतुष्ट नहीं होंगे।😍 , अगर दिल को छुआ हो तो शेयर जरूर कीजियेगा

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आज मैं एक ऐसे महावीर के बारे में बताने जा रहा हूँ जिन्होंने गजनी (अफगानिस्तान) में विगत 800 वर्षों से पददलित हो रहे


आज मैं एक ऐसे महावीर के बारे में बताने जा रहा हूँ जिन्होंने गजनी (अफगानिस्तान) में विगत 800 वर्षों से पददलित हो रहे भारत के महान हिन्दू-सम्राट् पृथ्वीराज चौहान की अस्थियों को भारत वापिस लाने के दुस्साहसिक कारनामे को अंजाम दिया. यह महावीर हैं : श्री शेर सिंह राणा, जिन्हें कुख्यात दस्यु-सुंदरी फूलन देवी (1963-2001) की 25 जुलाई, 2001 को हत्या के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद किया गयाI श्री शेरसिंह राणा अगस्त, 2014 से उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। भारत के अंतिम (अंतिम महान) हिन्दू-सम्राट् चौहानवंशीय पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में अजमेर में हुआ थाI उन्होंने 1179 से 1192 तक दिल्ली पर शासन किया थाI सन 1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध में वह अफ़ग़ान सेनापति मुहम्मद गोरी (1173-1192) के हाथों पराजित हुए और जंजीरों में जकड़कर गजनी (दक्षिणी-पूर्वी अफगानिस्तान) ले जाए गएI वहां क्रूरतापूर्वक उनकी आँखें निकल ली गईं और जेल में बंद कर दिया गयाI कुछ समय बाद पृथ्वीराज चौहान के मित्र और दरबारी कवि श्री चंदबरदाई ने अफगानिस्तान जाकर गोरी से भेंट की और उसे पृथ्वीराज चौहान की “शब्दभेदी बाण” चलाने की विशेषता के बारे में बताया. फलस्वरूप गोरी ने पृथ्वीराज की कला का तमाशा देखने का निश्चय कियाI 1192 में हुए इसी तमाशे में चंदबरदाई का संकेत पाकर पृथ्वीराज चौहान ने गोरी की आवाज सुनकर शब्दभेदी बाण से उसे मार डाला. गोरी के वध के तुरंत बाद पृथ्वीराज ने चंदबरदाई के साथ आत्मबलिदान करके मृत्यु का वरण कर लिया. गोरी को गजनी में दफनाने के बाद पृथ्वीराज चौहान और कवि चन्दबरदाई को गोरी के मकबरे से बाहर कुछ मीटर की दूरी पर दफ़न किया गया थाI पृथ्वीराज चौहान के मृत शरीर पर एक कच्ची कब्र बना दी गयी और कब्र पर फारसी में एक शिलालेख उत्कीर्ण किया गया : “यहां दिल्ली का काफ़िर राजा दफन है”. कब्र के समीप एक जोड़ी जूती रख दी गई ताकि गोरी की मजार देखने आए अफगानी पहले पृथ्वीराज चौहान की कब्र को जूती से मारकर अपमानित करें. आतंकियों द्वारा 1999 में इण्डियन एयरलाइंस का हवाईजहाज-814 अपहृतकर कंधार ले जाया गया। उसे वापिस लाने के लिए तत्कालीन विदेशमंत्री जसवंत सिंह वहाँ गये और लौटकर उन्होंने देशवासियों को बताया कि अफगानिस्तान में आज भी पृथ्वीराज चौहान और चंदवरदायी की समाधि है जिस पर वहाँ के मुसलमान जूते-चप्पल मारकर न सिर्फ उस वीर शिरोमणि का अपमान करते हैं बल्कि समूचे भारत व भारत के गौरवशाली इतिहास को बेइज्जत करते हैंI सुलतान गोरी की कब्र के बाहर पृथ्वीराज चौहान तथा चंदवरदायी की समाधि पर जूता रखा रहता हैI वहाँ के लोग पृथ्वीराज चौहान तथा चंदवरदायी की कब्र पर दो-दो जूते मारकर ही अंदर सुलतान गौरी की कब्र पर जियारत के लिए जाते हैंI इस सनसनीखेज समाचार से देश में हडकंप मच गया। उस समाधि (कब्र) को सम्मानपूर्वक भारत लाकर उनका विधिवत अंतिम संस्कार करने के लिए आंदोलन होने लगे। उस समय ‘विश्व क्षत्रिय महासभा’ द्वारा भी दिल्ली में संसद भवन के सामने जंतर-मंतर पर धरने तथा सरकार को ज्ञापन भी दिए गए और संसद भवन में कुछ सांसदों द्वारा प्रश्न भी पुछ्वाये गए। उस समय कुछ इतिहासकारों ने बयान दिया कि पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु भारत में ही हुई है, रणभूमि में या दिल्ली अथवा अजमेर की जेल में; गजनी में नहींI परन्तु यह रहस्य पहले भी एक भारतीय विद्वान श्री एस.सी. शर्मा ने 25 अप्रैल, 1998 को ‘दि इण्डियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अपने लेख ‘Ghazni’s best-kept secret’ में यह उद्घाटित किया था कि एक बार अफगानिस्तान में कार से कन्दहार से काबुल जाते समय रास्ते में उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की समाधि को देखा थाI एक अन्य लेखक श्री यज्ञनारायण चतुर्वेदी ने वाराणसी के अघोर पंथ के एक महात्मा औघड़ भगवान राम की जीवनी (“औघड़ भगवान राम”, प्रकाशक : श्री सरस्वती समूह, वाराणसी, 1973) में लिखा था कि गोरी के कब्र के बाहर सम्राट् पृथ्वीराज की समाधि पर वहाँ के लोग जूते मारते हैंI परन्तु इस वारदात के पक्ष-विपक्ष में लेखों का प्रकाशन काफी समय तक चलता रहा और देश भ्रमित हो गया। अत: इस विषय में निर्णय के लिए ‘विश्व क्षत्रिय महासभा’ द्वारा वाराणसी में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के इतिहास विभाग में संगोष्ठी करने के साथ ही अफगानिस्तान भी जाने के प्रयास किये गए। उस समय विश्व हिंदू परिषद के आचार्य गिरिराज किशोर, सांसद अमर सिंह तथा पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर आदि का दल भी इसके लिए अफगानिस्तान जाने के प्रयास में था। किन्तु तत्कालीन तालिबान सरकार के अनुमति न दिए जाने से बात नहीं बनी। यह खबर श्री शेरसिंह राणा ने पढ़ी जो फूलन देवी की हत्या के आरोप में तिहाड़ जेल में बन्द थे। खबर पढ़ते ही शेरसिंह राणा के दिल में राष्ट्र-सम्मान वापस लाने की बेचैनी बढ़ गयी। कई दिन तक वह इसी उधेड़बुन में रहे कि किस तरह पृथ्वीराज चौहान की अस्थियाँ वापस हिंदुस्तान लाई जा सकती हैं और जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने जेल से भागने का फैसला किया। सन् 2003 के अंतिम माह में श्री शेरसिंह राणा ने जेल से बाहर आने का खाका बनाना शुरू कर दिया और उसके बाद अपने भाई श्री विक्रम सिंह राणा को पूरी योजना समझाई। विक्रम ने पूरी दिल से अपने भाई की भावनाए समझीं और हर स्तर पर साथ देने का भरोसा दिया। योजनानुसार पुलिस वैन-जैसी एक बड़ी गाडी, एक हथकड़ी, कुछ पुलिस की वर्दी और भरोसेवाले कुछ लड़कों की जरूरत थी। विक्रम ने सबसे पहले इस योजना में रूडकी के श्री संदीप ठाकुर को जोड़ा। संदीप ठाकुर तिहाड़ में शेरसिंह राणा से मिला और पूरी योजना को समझा। शेरसिंह राणा से मिलने के लिए संदीप ठाकुर नकली वकील बने और उसी लिबास में अक्सर तिहाड़ जाता थे ताकि जेल का सिस्टम समझ सकें और आने-जाने का भय भी दूर हो सके। शेरसिंह संदीप को जेल की हर गतिविधि से अवगत करता ताकि संदीप अपनी योजना को फुलप्रूफ निभा सके। इस दोरान विक्रम ने तीन लड़के और योजना में जोड़ लिए और उनको उनका काम समझा दिया। 17 फरवरी, 2004 को शेरसिंह राणा जेल-नंबर 1 में ‘हाईरिस्क’ वार्ड में थे। सुबह 6 बजे हवालदार ने बताया कि आज तुम्हारी कोर्ट की तारीख है, साढ़े छः बजे तुमको जेल की ड्योढ़ी में आना है। योजनानुसार शेरसिंह राणा पहले से ही तैयार थे। उस दौरान शेरसिंह राणा ने अपने एक साथी शेखर सिंह, जो फूलन की हत्या के आरोप जेल मैं था, से कहा कि भाई आज यदि सायरन बजे तो समझ लेना कि शेरसिंह राणा तिहाड़ जेल से भाग गया, आगे हनुमान जी मेरी रक्षा करेंगेI ठीक 6:30 बजे शेरसिंह राणा जेल की ड्योडी में हवालदार के साथ पहुँचेI तभी संदीप ठाकुर पुलिस की वर्दी में अन्दर आ गया। संदीप ने नकली वारंट जेल-अधिकारियों को दिखाकर शेरसिंह राणा को हथकड़ी पहना दी और गेट पर ले आया। शेरसिंह राणा गेट पर खड़ी नकली पुलिस वैन में बैठ वहाँ से फरार हो गये। एक घंटे के बाद असली पुलिस के पहुचने पर पता चला कि शेरसिंह राणा जेल से निकल गया है। आनन-फानन में सायरन बजाया गयाI सारे जेल में तहलका मच गया, पर तब तक शेरसिंह राणा जेल की हद से बहुत दूर निकल गए थे। जेल से भागने के बाद शेरसिंह ने अपने भाई से संपर्क किया और कुछ रूपये मंगाए और रांची पहुँच गए। कुलदीप तोमर के अनुसार वहाँ उन्होंने ‘संजय गुप्ता’ के नाम से पासपोर्ट बनवाया और बंगलादेश निकल गये, क्योंकि भारत में पुलिस-प्रशासन द्वारा उन पर 50,000/- का इनाम घोषित हो गया था। बांग्लादेश पहुँचकर शेरसिंह राणा ने कुछ क्षत्रिय-नेताओं से संपर्क साधा और जेल से भागने के पीछे कारण पृथ्वीराज चौहान की समाधि वापस हिंदुस्तान लाना बताया। इस पर क्षत्रिय-नेताओं ने उन्हें पूरा साथ देने का भरोसा दिया। बांग्लादेश में उन्होंने अफगानिस्तान का वीसा लेने का प्रयास किया किन्तु सफल नहीं हुएI अन्ततः दिसम्बर, 2004 में उन्होंने मुंबई से अफगानिस्तान का वीसा प्राप्त कर लिया और जाने की तैयारियां की। उन दिनों अफगानिस्तान सिर्फ दिल्ली, पाकिस्तान और दुबई से ही जाया जा सकता था। चूँकि दिल्ली-पुलिस शेरसिंह राणा के पीछे थी, इसलिए उन्होंने पाकिस्तान से अफगानिस्तान जाने का प्रयास किया। परन्तु इसमें सफलता नहीं मिली। पुनः उन्होंने दुबई के रास्ते अफगानिस्तान जाने का रास्ता चुना। दुबई से काबुल, काबुल से कंधार और कंधार से हेरात पहुँचे। हेरात से वापस कंधार और कंधार से गजनी। इस तरह तालिबानियों के गढ़ में शेरसिंह राणा ने एक माह गुजारा और पृथ्वीराज चौहान की समाधि को खोजते रहे। पृथ्वीराज चौहान साहब की समाधि गजनी में गजनी शहर से करीब बीस किलोमीटर दूर देयक गाँव में है। शेरसिंह राणा ने देयक गाँव जाकर वहां पृथ्वीराज चौहान एवं चंदवरदायी की समाधि (कब्र) पर जाकर उनका अपमान अपनी आँखों से देखाI उन्होंने अपने कैमरे से इस दृश्य की वीडियो रिकॉर्डिंग की और और मिट्टी-पत्थर खोदने के औजार आदि लेकर वहाँ पहुँचकर कब्र की अस्थियोंयुक्त मिट्टी, जूती तथा शिलापट खोदकर निकाल लियाI इस प्रकार शेरसिंह राणा 3 महीने के कठिन परिश्रम तथा जीवन को संकटों में डालकर मार्च, 2005 में सफल होकर भारत वापस आयेI शेरसिंह राणा ने अपनी अफगानिस्तान-यात्रा का पूरा वर्णन अपनी पुस्तक ‘जेल-डायरी’ में किया हैI भारत आने पर पृथ्वीराज चौहान एवं चंदवरदायी की अस्थियों का जगह-जगह प्रदर्शन होने के बाद उनको पूरी श्रद्धा के साथ समाधिस्थ किया गयाI

गुंजन अग्रवाल

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सुखी रहने के नुस्खे-


सुखी रहने के नुस्खे———– पानी में गुड डालिए, बीत जाए जब रात! सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात!! धनिया की पत्ती मसल, बूंद नैन में डार! दुखती अँखियां ठीक हों, पल लागे दो-चार!! ऊर्जा मिलती है बहुत, पिएं गुनगुना नीर! कब्ज खतम हो पेट की, मिट जाए हर पीर!! प्रातः काल पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप! बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप!! ठंडा पानी पियो मत, करता क्रूर प्रहार! करे हाजमे का सदा, ये तो बंटाढार!! भोजन करें धरती पर, अल्थी पल्थी मार! चबा-चबा कर खाइए, वैद्य न झांकें द्वार!! प्रातः काल फल रस लो, दुपहर लस्सी-छांस! सदा रात में दूध पी, सभी रोग का नाश!! प्रातः- दोपहर लीजिये, जब नियमित आहार! तीस मिनट की नींद लो, रोग न आवें द्वार!! भोजन करके रात में, घूमें कदम हजार! डाक्टर, ओझा, वैद्य का , लुट जाए व्यापार !! घूट-घूट पानी पियो, रह तनाव से दूर! एसिडिटी, या मोटापा, होवें चकनाचूर!! अर्थराइज या हार्निया, अपेंडिक्स का त्रास! पानी पीजै बैठकर, कभी न आवें पास!! रक्तचाप बढने लगे, तब मत सोचो भाय! सौगंध राम की खाइ के, तुरत छोड दो चाय!! सुबह खाइये कुवंर-सा, दुपहर यथा नरेश! भोजन लीजै रात में, जैसे रंक सुरेश!! देर रात तक जागना, रोगों का जंजाल! अपच,आंख के रोग सँग, तन भी रहे निढाल^^ दर्द, घाव, फोडा, चुभन, सूजन, चोट पिराइ! बीस मिनट चुंबक धरौ, पिरवा जाइ हेराइ!! सत्तर रोगों कोे करे, चूना हमसे दूर! दूर करे ये बाझपन, सुस्ती अपच हुजूर!! भोजन करके जोहिए, केवल घंटा डेढ! पानी इसके बाद पी, ये औषधि का पेड!! अलसी, तिल, नारियल, घी सरसों का तेल! यही खाइए नहीं तो, हार्ट समझिए फेल! पहला स्थान सेंधा नमक, पहाड़ी नमक सु जान! श्वेत नमक है सागरी, ये है जहर समान!! अल्यूमिन के पात्र का, करता है जो उपयोग! आमंत्रित करता सदा, वह अडतालीस रोग!! फल या मीठा खाइके, तुरत न पीजै नीर! ये सब छोटी आंत में, बनते विषधर तीर!! चोकर खाने से सदा, बढती तन की शक्ति! गेहूँ मोटा पीसिए, दिल में बढे विरक्ति!! रोज मुलहठी चूसिए, कफ बाहर आ जाय! बने सुरीला कंठ भी, सबको लगत सुहाय!! भोजन करके खाइए, सौंफ, गुड, अजवान! पत्थर भी पच जायगा, जानै सकल जहान!! लौकी का रस पीजिए, चोकर युक्त पिसान! तुलसी, गुड, सेंधा नमक, हृदय रोग निदान! चैत्र माह में नीम की, पत्ती हर दिन खावे ! ज्वर, डेंगू या मलेरिया, बारह मील भगावे !! सौ वर्षों तक वह जिए, लेते नाक से सांस! अल्पकाल जीवें, करें, मुंह से श्वासोच्छ्वास!! सितम, गर्म जल से कभी, करिये मत स्नान! घट जाता है आत्मबल, नैनन को नुकसान!! हृदय रोग से आपको, बचना है श्रीमान! सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक, का मत करिए पान!! अगर नहावें गरम जल, तन-मन हो कमजोर! नयन ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुंओर!! तुलसी का पत्ता करें, यदि हरदम उपयोग! मिट जाते हर उम्र में,तन में सारे रोग। कृपया इस जानकारी को जरूर आगे बढ़ाएं

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ब्रज 84 कोस में ही मौजूद हैं


ब्रज 84 कोस में ही मौजूद हैं 4 धाम अधिक मास यानी मलमास या पुरुषोत्तम मास में ब्रज के मठ मंदिरों में यूं तो अनेक धार्मिक कार्यक्रम और अनुष्ठान होते हैं, लेकिन ब्रज के प्रमुख स्थलों मथुरा, वृंदावन और गोवर्धन की परिक्रमा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि इस समय में जो भी पूजा या धार्मिक कार्य किए जाते हैं उसका कई गुणा पुण्य मिलता है। इस माह में ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा का भी अपना अलग महत्व है। इस परिक्रमा में कृष्ण काल के तमाम लीला स्थल और देवालय शामिल हैं जो पूरे ब्रज में चौरासी कोस में फैले हुए हैं। मान्यता है कि अधिक मास में इनकी परिक्रमा करके श्रद्धालु पुण्य कमाते हैं। ब्रज चौरासी कोस की यह परिक्रमा हरियाणा और राजस्थान के गांवों से भी होकर गुजरती है। 1300 गावों से गुजरती हैं परिक्रमा करीब 268 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं जिनके दर्शन शायद ही पहले कभी किए हों। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है। सभी तीर्थों को ब्रज में बुलाया मान्यता है कि जब यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए। 84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। पर्वत पर नंदी स्वरूप में दिखने वाली विशालकाय शिला के नीचे शिव जी का छोटा सा मंदिर है। इसके अलावा बद्रीनाथ भी 84 कोस में ही विराजमान हैं। जिन्हें बूढ़े बद्री के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास ही अलकनंदा कुंड भी है। इसके अलावा गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं। शॉर्टकट पर अधूरी मानी जाती है परिक्रमा 84 कोस परिक्रमा के लिए स्थान, गांव और इसकी जद में आने वाले मंदिर और परिक्रमा मार्ग पहले से ही तय हैं और उसी रास्ते से होकर श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं। कीचड़, कंकड़-पत्थर के रास्तों पर ही चलकर श्रद्धालु परिक्रमा पूरी करते हैं। कोई भी श्रद्धालु दूरी कम करने के लिए शॉर्टकट या दूसरे रास्तों से होकर नहीं गुजरता और ऐसा करने पर उसकी परिक्रमा अधूरी मानी जाती है। प्रमुख सरोवर कृष्ण की लीलाओं की साक्षी और उनसे जुड़ी प्रमुख सरोवरों में जो प्रमुख सरोवरें है, उनमें सूरज सरोवर, कुसुम सरोवर, विमल सरोवर, चंद्र सरोवर, रूप सरोवर, पान सरोवर, मान सरोवर, प्रेम सरोवर, नारायण सरोवर, नयन सरोवर आदि हैं। परिक्रमाथी इन सरोवरों के दर्शन करने के साथ ही आचमन लेकर और इनमें स्नान कर स्वयं को धन्य मानते हैं। ब्रज में विद्यमान 16 देवियां कात्यायनी देवी, शीतला देवी, संकेत देवी, ददिहारी, सरस्वती देवी, वृंदादेवी, वनदेवी, विमला देवी, पोतरा देवी, नरी सैमरी देवी, सांचैली देवी, नौवारी देवी, चौवारी देवी, योगमाया देवी, मनसा देवी, बंदी की आनंदी देवी। ब्रज क्षेत्र के प्रमुख महादेव मंदिर भूतेश्वर महादेव, केदारनाथ, आशेश्वर महादेव, चकलेश्वर महादेव, रंगेश्वर महादेव, नंदीश्वर महादेव, पिपलेश्वर महादेव, रामेश्वर महादेव, गोकुलेश्वर महादेव, चिंतेश्वर महादेव, गोपेश्वर महादेव, चक्रेश्वर महादेव। ऐसे होती है परिक्रमा वाहनों से : आजकल लोगों के पास समय का अभाव है। उनके लिए तमाम आश्रमों और संस्थाओं की ओर से ब्रज चौरासी कोस की यात्रा वाहनों के जरिए करवाई जाती है। इसके लिए परिक्रमा कराने वाले संचालकों की तरफ से सुविधानुसार एक तय शुल्क प्रति श्रद्धालु लिया जाता है। इसमें वाहन का किराया, खाना-पीना, ठहरना शामिल होता है। वाहनों से कराई जाने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा में 3 से 5 दिन का समय लगता है। इसमें श्रद्धालुओं को प्रमुख स्थलों, वनों, मंदिरों के दर्शन कराए जाते हैं। पैदल परिक्रमा पैदल यात्रा का अपना अलग ही आनंद है। इसमें श्रद्धालु किसी मंदिर या आश्रम की ओर से कराई जाने वाली यात्रा में शामिल होकर अपने रुकने और ठहरने का शुल्क आश्रम या मंदिर संचालक को देता है, जो बहुत कम होता है। सारे इंतजाम आश्रम या मंदिर संचालक करते हैं। रुकने के लिए टेंट और खाने के लिए भोजन की व्यवस्था रहती है। इस परिक्रमा को पूरा करने में 30 दिन का समय लगता है। चलने वाले जत्थे के ऊपर तय होता है कि वह एक दिन में कितनी दूरी तय कर सकता है। देश के विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां इस परिक्रमा के लिए आते हैं। आचार्य विकाश शर्मा

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क्यों नहीं पढाया जाता की श्री गुरु अर्जन देव जी को जहाँगीर ने गर्म तवे पर बैठाया था?


क्यों नहीं पढाया जाता की श्री गुरु अर्जन देव जी को जहाँगीर ने गर्म तवे पर बैठाया था? संजय द्विवेदी : श्री गुरु अर्जन देव जी को मुग़ल शाशक जहाँगीर ने गर्म तवे पर बैठा दिया था और गरम तेल में पका कर हत्या कर दी थी , लेकिन आज के कुछ सिख भाई मुगलों की क्रूरता भूल गए हैं और आज भी गुरु अर्जन देव की आत्मा की शांति के लिए हम ठंडा शर्बत पिलाते हैं , लेकिन कुछ सिख भाई सच को नहीं जानते । श्री गुरु अर्जन देव सिक्खों के पाँचवें गुरु थे। ये 1581 ई. में गद्दी पर बैठे। श्री गुरु अर्जन देव का कई दृष्टियों से सिख गुरुओं में विशिष्ट स्थान है। ‘श्री गुरु ग्रंथ साहब’ आज जिस रूप में उपलब्ध है, उसका संपादन इन्होंने ही किया था। श्री गुरु अर्जन देव सिक्खों के परम पूज्य चौथे गुरु रामदास के पुत्र थे। श्री गुरु नानक से लेकर श्री गुरु रामदास तक के चार गुरुओं की वाणी के साथ-साथ उस समय के अन्य संत महात्माओं की वाणी को भी इन्होंने ‘श्री गुरु ग्रंथ साहब’ में स्थान दिया। श्री गुरु अर्जुन देव जी को शहीदों का सरताज कहा जाता है। सिख धर्म के पहले शहीद थे। जागो सिख भाइयो श्री गुरु अर्जुन देव जी को शहीदों का सरताज कहा जाता है। सिख धर्म के पहले शहीद थे। भारतीय दशगुरु परम्परा के पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई. को हुआ। प्रथम सितंबर, 1581 को अठारह वर्ष की आयु में वे गुरु गद्दी पर विराजित हुए। 30 मई, 1606 को उन्होंने धर्म व सत्य की रक्षा के लिए 43 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दे दी। श्री गुरु अर्जुनदेव जी की शहादत के समय दिल्ली में मध्य एशिया के मुगल वंश के का राज जहाँगीर था और उन्हें राजकीय कोप का ही शिकार होना पड़ा। 1605 में जहांगीर गद्दी पर बैठा जो बहुत ही कट्टïर इस्लामिक विचारों वाला था। अपनी आत्मकथा ‘तुजुके जहांगीरी’ में उसने स्पष्ट लिखा है कि वह श्री गुरु अर्जुन देव जी के बढ़ रहे प्रभाव से बहुत दुखी था। इसी दौरान जहांगीर का पुत्र खुसरो बगावत करके आगरा से पंजाब की ओर आ गया। जहांगीर को यह सूचना मिली थी कि गुरु अर्जुन देव जी ने खुसरो की मदद की है इसलिए उसने गुरु जी को गिरफ्तार करने के आदेश जारी कर दिए। बाबर ने तो श्री गुरु नानक गुरुजी को भी कारागार में रखा था। लेकिन श्री गुरु नानकदेव जी तो पूरे देश में घूम-घूम कर हताश हुई जाति में नई प्राण चेतना फूंक दी।जहांगीर के अनुसार उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर घरबार लूट लिया गया। इसके बाद गुरु जी ने शहीदी प्राप्त की। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया। जहांगीर ने श्री गुरु अर्जुनदेव जी को मरवाने से पहले उन्हें अमानवीय यातानाएं दी। मसलन चार दिन तक भूखा रखा गया। ज्येष्ठ मास की तपती दोपहरियां में उन्हें तपते रेत पर बिठाया गया। उसके बाद खौलते पानी में रखा गया। परन्तु श्री गुरु अर्जुनदेव जी ने एक बार भी उफ तक नहीं की और इसे परमात्मा का विधन मानकर स्वीकार किया। श्री गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 30 मई 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा’ के तहत लोहे की गर्म तवी पर बिठाकर शहीद कर दिया गया। यासा के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है। गुरु जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डाली गई। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो आप जी को ठंडे पानी वाले रावी दरिया में नहाने के लिए भेजा गया जहां गुरुजी का पावन शरीर रावी में आलोप हो गया। गुरु अर्जुनदेव जी ने लोगों को विनम्र रहने का संदेश दिया। आप विनम्रता के पुंज थे। कभी भी आपने किसी को दुर्वचन नहीं बोले। गुरबाणी में आप फर्माते हैं : ‘तेरा कीता जातो नाही मैनो जोग कीतोई॥ मै निरगुणिआरे को गुण नाही आपे तरस पयोई॥ तरस पइया मिहरामत होई सतगुर साजण मिलया॥ नानक नाम मिलै ता जीवां तनु मनु थीवै हरिया॥’ तपता तवा उनके शीतल स्वभाव के सामने सुखदाईबन गया। तपती रेत ने भी उनकी ज्ञाननिष्ठा भंग न कर पायी। गुरु जी ने प्रत्येक कष्ट हंसते-हंसते झेलकर यही अरदास की- तेरा कीआ मीठा लागे॥ हरि नामु पदारथ नानक मांगे॥ जहांगीर द्वारा श्री गुरु अर्जुनदेव जी को दिए गए अमानवीय अत्याचार और अन्त में उनकी मृत्यु जहांगीर की इसी योजना का हिस्सा था। श्री गुरु अर्जुनदेव जी जहांगीर की असली योजना के अनुसार ‘इस्लाम के अन्दर’ तो क्या आते, इसलिए उन्होंने विरोचित शहादत के मार्ग का चयन किया। इधर जहांगीर की आगे की तीसरी पीढ़ी या फिर मुगल वंश के बाबर की छठी पीढ़ी औरंगजेब तक पहुंची। उधर श्री गुरु नानक देव जी की दसवीं पीढ़ी थी। श्री गुरु गोविन्द सिंह तक पहुंची। यहां तक पहुंचते-पहुंचते ही श्री नानकदेव की दसवीं पीढ़ी ने मुगलवंश की नींव में डायनामाईट रख दिया और उसके नाश का इतिहास लिख दिया। संसार जानता है कि मुट्ठी भर मरजीवड़े सिंघ रूपी खालसा ने 700 साल पुराने विदेशी वंशजों को मुगल राज सहित सदा के लिए ठंडा कर दिया। 100 वर्ष बाद महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में भारत ने पुनः स्वतंत्राता की सांस ली। शेष तो कल का इतिहास है, लेकिन इस पूरे संघर्षकाल में पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी की शहादत सदा सर्वदा सूर्य के ताप की तरह प्रखर रहेगी। आज कुछ सिख भाई भूल गए हैं की गुरु अर्जन देव जी को मुसलमानों ने कितनी यातनाए देकर शहीद किया था। रोम रोम नतमस्तक परंतु हृदय में अत्यंत ही क्षोभ है कि ऐसे देवपुरुष का इतिहास ना तो हमें कभी पढाया गया और ना ही कभी बताया गया… लेकिन अब समय आ गया है कि हम मैकाले के षडयंत्र पूर्वक रचे गए झूठे और भ्रामक शिक्षा कुचक्र से बाहर निकले और अपनी स्वयं की, धर्माधारित शिक्षा व्यवस्था की स्थापना करें। जिसमें अपने धर्म का अपने पूर्वजों का एवं अपने इष्ट का सम्मान हो, उनकी शौर्य गाथा को भारत का बच्चा – बच्चा जाने और उनके आदर्शों को अपनायें। ( अगर किसी भी भाई को इस लेख में कुछ गलती लगे वह कृपा करके हमें मेल करे उस गलती को लेखक को बता कर ठीक कर दिया जायेगा theindiapost@gmail.com )

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Amazing facts of GANESHA


Amazing facts of GANESHA Did you know there are 250 temples of Ganesha in Japan. In Japan, Ganesha is known as ‘Kangiten’, the God of fortune and the harbinger of happiness, prosperity and good. An Oxford publication claims that Ganesha was worshipped in the early days in Central Asia and other parts of the globe. Ganesha statues have been found in Afghanistan, Iran, Myanmar, Sri Lanka, Nepal, Thailand, Laos, Cambodia, Vietnam, China, Mongolia, Japan, Indonesia, Brunei, Bulgaria, Mexico and other Latin American countries. It means the cult of Ganesha was prevelant all over the world in ancient times. Ganesha in Europe, Canada and the USA Ganesha’s idol and paintings are exhibited in all the important museums and art galleries of all the European countries especially in the UK, Germany, France and Switzerland. Ganesha idols and paintings(as goodluck charm) are also present in thousands of houses/offices of successful business/writers/artists in all the European countries and in Canada and the USA. Recently a figure of Ganesha was unearthed in a village near Sofia, Bulgaria. Like Indians, the Romans worshipped Ganesha before any work was begun. Irish believe in Ganesha luck. The embassy of Ireland at New Delhi became the first European embassy to invoke the blessings of Ganesha by installing a statue of Ganesha at the main entrance of the embassy. Silicon Valley in USA selects Ganesha as the presiding Deity of cyberspace technology * “Ganesha is the God of knowledge and Ganesha’s vehicle is the mouse and, as you know, for software engineers the mouse is the vehicle that they use to take their ideas and innovations from one place to the other.” Hence it was decided by the computer industry association to select Ganesha as the presiding Deity of Silicon Valley. *Ganesha on Greek coin. Early images of an elephant headed Deity, including those on an Indo-Greek coin and elsewhere, dating between the first and third centuries BC, represent Ganesha as the demi God Vinayaka. Indonesia Currency notes. One of the Indonesian currency notes carries the picture of Ganesha. Vedic origin of Ganesha. 10,000 year old secret of success. Devotees of Ganesha make reference to his Vedic origin which is around 10,000 years old to push his antecedents back in time. The Vedas have invoked him as ‘namo Ganebhyo Ganapati’ (Yajurveda, 16/25), or remover of obstacles, Ganapati, we salute you. The Mahabharata has elaborated on his personal appearance and Upanishads on his immense power. “Scholars say artifacts from excavations in Luristan and Harappa and an old Indo-Greek coin from Hermaeus, present images that remarkably resemble Ganesha”. (“Robert Brown in his Book “Ganesha: Studies of an Asian God”:State University of New York Albany). Happy ganesh chaturthi