Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

दोस्तों क्या आपको पता है अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को ऑफर किया था कि यह जो सत्ता चल रही है


दोस्तों क्या आपको पता है अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को ऑफर किया था कि यह जो सत्ता चल रही है इसमें हमारे साथ शामिल हो जाओ, तुम भी लूटो, हम भी लूटें. सारे क्रांतिकारियों ने साफ मना किया था कि तुम्हारी इस लुट की व्यवस्था में हमें शामिल नहीं होना, हमें तो संपूर्ण आजादी चाहिए. संपूर्ण स्वराज्य चाहिए और जिस क्रांतिकारी ने यह बात सबसे पहले कही थी उन्हीं का नाम था नेताजी सुभाष चंद्र बोस. क्या आपको मालूम है उनके जीवन की विडंबना क्या थी उनको आईसीएस (ICS) की नौकरी में सेलेक्ट होना पड़ा. उनके पिताजी की इच्छा की पूर्ति के लिए, क्योकि पिता जी चाहते थे कि मेरा बेटा कलेक्टर बने और बेटे को बार-बार वह ताना मारते थे कि तू बन नहीं सकता. तू होशियार कम है, तेरे पास तैयारी नहीं है, इसलिए बहाना बनाता रहता है. तो बेटे ने अपनी पात्रता सिद्ध करने के लिए परीक्षा दी और उस जमाने में आई सी एस की परीक्षा देने के लिए चार-चार साल लोग पढ़ाई करते हैं. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिर्फ 7 महीने पढ़ाई की थी और उतनी पढ़ाई में उन्होंने आई सी एस के टॉपर की लिस्ट में चौथी पोजीशन पाई थी. उस जमाने में आईसीएस टॉप करना किसी भारतीय लड़के के लिए संभव ही नहीं था, क्योंकि इस परीक्षा में अंग्रेज टॉप किया करते थे. वह पहले भारतीय व्यक्ति थे जिनको टॉपर लिस्ट में चौथा स्थान मिला एक बहुत मजेदार घटना है वह लंदन गए थे, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर आईसीएस की परीक्षा में बैठे थे. जिस दिन रिजल्ट आया, उनके सहयोगी रिजल्ट देखने के लिए गए थे, लेकिन वह नहीं गए तो उनके सहयोगियों ने नाम देखा तो कहीं नहीं मिला तो उनको आकर कहा कि तुम तो पास ही नहीं हुए तो उन्होंने कहा ठीक है कोई बात नहीं पास नहीं हुआ तो. शाम को ब्रिटिश गवर्नमेंट के डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी आया और नेताजी को बोला कि तुम्हारा नाम पास होने वालों में नहीं है, ऊपर वाली लिस्ट में है और वह लिस्ट अभी तक लगी नहीं है. अब सुभाष चंद्र बोस को दुविधा हो गई कि मैं तो आईसीएस हो गया. अब मुझे कलेक्टर होना पड़ेगा. कलेक्टर होने का मतलब भारतियों को लूटना पढ़ेगा, लूट का कुछ हिस्सा अंग्रेजों को देना पड़ेगा. तो उनके मन में यह शुरू हुआ कि या तो मैं इस लूट में शामिल हो जाऊं या लूट की व्यवस्था के बाहर निकल कर देश के लिए काम करूं अंत में उनके दिल ने कहा कि तुमको तो लूट में शामिल नहीं होना है क्योंकि तुम्हारा जन्म इसके लिए नहीं हुआ है. उन्होंने नौकरी को रिजाइन कर दिया. जब उन्होंने इस्तीफा दिया था ब्रिटिश सिस्टम में हड़कंप मच गया था क्योंकि भारत के कई लड़के पहले आईसीएस बन चुके थे किसी में हिम्मत नहीं हुई थी इस्तीफा देने की. सुभाष चद्र बोस जी ने इस्तीफा दिया और इस्तीफे में उन्होंने लिखा कि मै इस तंत्र में शामिल इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि मेरी भारत माता की लूट के लिए यह तंत्र बना है और मैं मेरे देश को लुटू यह मेरा दिल मुझे गवाही नहीं देता. इसलिए मै छोड़ रहा हूं. नेताजी ने रिजाइन किया, बोरिया बिस्तर समेट के भारत आ गए, पिताजी के दिल पर वज्रपात हो गया कि बेटे ने आईसीएस को लात मार दी. तो बेटे ने पिता को समझाया कि मै हर बार इस नौकरी को तो लात ही मारूंगा. जब तक यह व्यवस्था भारत को लूटने की व्यवस्था है. मैं इसमें शामिल नहीं हो सकता. इसलिए नेता जी ने आईसीएस को छोड़ा और जैसे ही आईसीएस छोडी उन्होंने तो सारा देश उनके लिए खड़ा हो गया. जब वह लंदन से वापस आए थे उस समय पानी के जहाज चला करते थे. बंबई में उतरे थे जो हुजूम बंबई में निकला था. वो तो गजब के लोग थे उन्होंने उसी दिन कह दिया था कि अब तो भारत आजाद हो जाएगा क्योंकि जब मुझे समर्थन देने के लिए इतने लोग भारत में है तो मैं जब गांव गांव जाऊंगा तब कितने लोग खड़े हो जाएंगे. उसी कॉन्फिडेंस से उसी आश्वासन पर उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया था. और जब फौज बनाई थी तब माताओं ने अपने मंगलसूत्र उतार के उन को दान किए थे. एक मां उनके पास आई थी अपने अंधे बेटे को लेकर कि इसको फौज में ले लो तो उन्होंने कहा इसको तो दिखाई नहीं देता तो बेटे ने कहा कि दिखाई तो नहीं देता लेकिन आप की फौज में आ जाऊंगा तो दुश्मन की एक गोली तो कम कर ही दूंगा. दोस्तों बहुत ही दुःख की बात है कि ये लूट का तंत्र आज भी चल रहा है, जो कानून अंग्रेज बनाकर गए थे वो आज भी चल रहे है.

ओम वीर

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भगवान श्री राम कैसे इस लोक को छोड़कर वापस विष्णुलोक गए।


भगवान श्री राम कैसे इस लोक को छोड़कर वापस विष्णुलोक गए। भगवान श्री राम के मृत्यु वरण में सबसे बड़ी बाधा उनके प्रिय भक्त हनुमान थे। क्योंकि हनुमान के होते हुए यम की इतनी हिम्मत नहीं थी की वो राम के पास पहुँच चुके। पर स्वयं श्री राम से इसका हल निकाला। आइये जानते है कैसे श्री राम ने इस समस्या का हल निकाला। ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। यह कथा अघोरी बाबाओ के श्रीमुख से प्राप्त हुई एक दिन, राम जान गए कि उनकी मृत्यु का समय हो गया था। वह जानते थे कि जो जन्म लेता है उसे मरना पड़ता है। “यम को मुझ तक आने दो। मेरे लिए वैकुंठ, मेरे स्वर्गिक धाम जाने का समय आ गया है”, उन्होंने कहा। लेकिन मृत्यु के देवता यम अयोध्या में घुसने से डरते थे क्योंकि उनको राम के परम भक्त और उनके महल के मुख्य प्रहरी हनुमान से भय लगता था। यम के प्रवेश के लिए हनुमान को हटाना जरुरी था। इसलिए राम ने अपनी अंगूठी को महल के फर्श के एक छेद में से गिरा दिया और हनुमान से इसे खोजकर लाने के लिए कहा। हनुमान ने स्वंय का स्वरुप छोटा करते हुए बिलकुल भंवरे जैसा आकार बना लिया और केवल उस अंगूठी को ढूढंने के लिए छेद में प्रवेश कर गए, वह छेद केवल छेद नहीं था बल्कि एक सुरंग का रास्ता था जो सांपों के नगर नाग लोक तक जाता था। हनुमान नागों के राजा वासुकी से मिले और अपने आने का कारण बताया। वासुकी हनुमान को नाग लोक के मध्य में ले गए जहां अंगूठियों का पहाड़ जैसा ढेर लगा हुआ था! “यहां आपको राम की अंगूठी अवश्य ही मिल जाएगी” वासुकी ने कहा। हनुमान सोच में पड़ गए कि वो कैसे उसे ढूंढ पाएंगे क्योंकि ये तो भूसे में सुई ढूंढने जैसा था। लेकिन सौभाग्य से, जो पहली अंगूठी उन्होंने उठाई वो राम की अंगूठी थी। आश्चर्यजनक रुप से, दूसरी भी अंगूठी जो उन्होंने उठाई वो भी राम की ही अंगूठी थी। वास्तव में वो सारी अंगूठी जो उस ढेर में थीं, सब एक ही जैसी थी। “इसका क्या मतलब है?” वह सोच में पड़ गए। वासुकी मुस्कुराए और बाले, “जिस संसार में हम रहते है, वो सृष्टि व विनाश के चक्र से गुजरती है। इस संसार के प्रत्येक सृष्टि चक्र को एक कल्प कहा जाता है। हर कल्प के चार युग या चार भाग होते हैं। दूसरे भाग या त्रेता युग में, राम अयोध्या में जन्म लेते हैं। एक वानर इस अंगूठी का पीछा करता है और पृथ्वी पर राम मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इसलिए यह सैकड़ो हजारों कल्पों से चली आ रही अंगूठियों का ढेर है। सभी अंगूठियां वास्तविक हैं। अंगूठियां गिरती रहीं और इनका ढेर बड़ा होता रहा। भविष्य के रामों की अंगूठियों के लिए भी यहां काफी जगह है”। हनुमान जान गए कि उनका नाग लोक में प्रवेश और अंगूठियों के पर्वत से साक्षात, कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यह राम का उनको समझाने का मार्ग था कि मृत्यु को आने से रोका नहीं जा सकेगा। राम मृत्यु को प्राप्त होंगे। संसार समाप्त होगा। लेकिन हमेशा की तरह, संसार पुनः बनता है और राम भी पुनः जन्म लेंगे। लष्मीकांत

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खिचड़ी


खिचड़ी

एक पति-पत्नी में तकरार हो गयी —पति कह रहा था : “मैं नवाब हूँ इस शहर का लोग इसलिए मेरी इज्जत करते है और तुम्हारी इज्जत मेरी वजह से है।” पत्नी कह रही थी : “आपकी इज्जत मेरी वजह से है। मैं चाहूँ तो आपकी इज्जत एक मिनट में बिगाड़ भी सकती हूँ और बना भी सकती हूँ।” नवाब को तैश आ गया। नवाब बोला :” ठीक है दिखाओ मेरी इज्जत खराब करके।” बात आई गई हो गयी। नवाब के घर शाम को महफ़िल जमी थो दोस्तों की … हंसी मजाक हो रहा था कि अचानक नवाब को अपने बेटे के रोने की आवाज आई । वो जोर जोर से रो रहा था और नवाब की पत्नी बुरी तरह उसे डांट रही थी। नवाब ने जोर से आवाज देकर पूछा कि क्या हुआ बेगम क्यों डाँट रही हो? तो बेगम ने अंदर से कहा कि देखिये न—आपका बेटा खिचड़ी मांग रहा है और जब भर पेट खा चुका है। नवाब ने कहा कि दे दो थोड़ी सी और बेगम ने कहा घर में और भी तो लोग है सारी इसी को कैसे दे दूँ? पूरी महफ़िल शांत हो गयी । लोग कानाफूसी करने लगे कि कैसा नवाब है ? जरा सी खिचड़ी के लिए इसके घर में झगड़ा होता है। नवाब की पगड़ी उछल गई। सभी लोग चुपचाप उठ कर चले गए घर में अशांति हो रही है देख कर। नवाब उठ कर अपनी बेगम के पास आया और बोला कि मैं मान गया तुमने आज मेरी इज्जत तो उतार दी लोग भी कैसी-कैसी बातें कर रहे थे। अब तुम यही इज्जत वापस लाकर दिखाओ। बेगम बोली :”इसमे कौन सी बड़ी बात है आज जो लोग महफ़िल में थे उन्हें आप फिर किसी बहाने से निमंत्रण दीजिये।” ऐसे ही नवाब ने सबको बुलाया बैठक और मौज मस्ती के बहाने।सभी मित्रगण बैठे थे । हंसी मजाक चल रहा था कि फिर वही नवाब के बेटे की रोने की आवाज आई —नवाब ने आवाज देकर पूछा : बेगम क्या हुआ क्यों रो रहा है हमारा बेटा ?” बेगम ने कहा फिर वही खिचड़ी खाने की जिद्द कर रहा है ।” लोग फिर एक दूसरे का मुंह देखने लगे कि यार एक मामूली खिचड़ी के लिए इस नवाब के घर पर रोज झगड़ा होता है। नवाब मुस्कुराते हुए बोला “अच्छा बेगम तुम एक काम करो तुम खिचड़ी यहाँ लेकर आओ .. हम खुद अपने हाथों से अपने बेटे को देंगे । वो मान जाएगा और सभी मेहमानो को भी खिचड़ी खिलाओ। ” बेगम ने आवाज दी ” जी नवाब साहब” बेगम बैठक खाने में आ गई पीछे नौकर खाने का सामान सर पर रख आ रहा था। हंडिया नीचे रखी और मेहमानो को भी देना शुरू किया अपने बेटे के साथ। सारे नवाब के दोस्त हैरान -जो परोसा जा रहा था वो चावल की खिचड़ी तो कत्तई नहीं थी। उसमे खजूर-पिस्ता-काजू बादाम-किशमिश -गरी इत्यादि से मिला कर बनाया हुआ सुस्वादिष्ट व्यंजन था। अब लोग मन ही मन सोच रहे थे कि ये खिचड़ी है? नवाब के घर इसे खिचड़ी बोलते हैं तो -मावा-मिठाई किसे बोलते होंगे ? नवाब की इज्जत को चार-चाँद लग गए । लोग नवाब की रईसी की बातें करने लगे। नवाब ने बेगम के सामने हाथ जोड़े और कहा “मान गया मैं कि घर की औरत इज्जत बना भी सकती है बिगाड़ भी सकती है—और जिस व्यक्ति को घर में इज्जत हासिल नहीं उसे दुनियाँ मे कहीं इज्जत नहीं मिलती।” सृष्टि मे यह सिद्धांत हर जगह लागू हो जाएगा । अहंकार युक्त जीवन में सृष्टि जब चाहे हमारे अहंकार की इज्जत उतार सकती है और नम्रता युक्त जीवन मे इज्ज़त बना सकती है विक्रम प्रकाश राइसोनि

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ब्राह्मण


अब बताइये पण्डितजी – ज्योतिषी जी कहाँ ग़लत हैं |* सन् 2005 – यजमान- पंडितजी, बेटे ने 10 पास कर ली हैं बताए कौन सा क्षेत्र इसके लिए अच्छा रहेगा पंडित जी- इसकी पत्रिका मे सी ए बनने के योग हैं इसे सी ए बनाए | पंडित जी की दक्षिणा 200/ परंतु दक्षिणा केवल 51/रु दी गयी ! सन् 2010 – यजमान – पंडित जी , आपकी कृपा से बेटा सी ए बन गया हैं आपने बताया भी था । अब ज़रा नौकरी के विषय मे भी बता देते ! पंडितजी – इसे आगामी माह मे नौकरी मिल जानी चाहिए बस ये एक छोटा सा उपाय करवा दीजिएगा | पंडितजी की दक्षिणा -500/परंतु दक्षिणा 101 रु दी गयी ??? अगले माह 30,000 रु प्रति माह की नौकरी भी प्राप्त हो गयी सन् 2013 – यजमान- पंडितजी बेटा विवाह नहीं कर रहा हैं ? पंडितजी – इसकी पत्रिका मे प्रेमविवाह की संभावना हैं संभवत: इसी कारण विवाह करने मे आना कानी कर रहा हो , प्यार से बैठा कर पूछिये कोई लड़की पसंद होगी जिस कारण ऐसा हो रहा हैं | यजमान- पंडित जी लड़की पसंद बताता तो हैं क्या करे?? पंडित जी- उसी कन्या से उसका विवाह कर दीजिये सही रहेगा,हो सके तो उस कन्या की पत्रिका दिखा दीजिएगा पंडितजी की दक्षिणा 1001/ परंतु दक्षिणा 200 रु दी गयी | सन् 2015 – यजमान- पंडितजी आपकी दया से बेटा 70,000 रु प्रति माह कमा रहा हैं , शादी भी हो गयी हैं | एक बेटी भी हैं , बेटा कब होगा यह बताए ??? पंडितजी- इसकी पत्रिका मे गुरु ग्रह का श्राप हैं जिस कारण बेटे का होना मुश्किल जान पड़ता हैं | यजमान- हैं ऐसा कैसे पंडितजी हमने या हमारे किसी भी बुजुर्ग ने कभी भी किसी ब्राह्मण,विद्वान तथा गुरु का अपमान नहीं किया हैं गुरु ग्रह का श्राप कैसे लग सकता हैं “ पंडितजी – इसके पूर्वजो ने अपने पंडित को कभी भी पंडित के कार्य का दक्षिणा नहीं दिया जिस कारण ऐसा हैं नहि-नहीं पंडितजी,, आपसे देखने मे ग़लती हो रही हैं | पंडितजी –सही कह रहे हैं आप…. हमसे देखने मे ही ग़लती हो रही होगी यह बेटा जब 10वी मे था और अब 70,000 रुपये प्रति माह कमा रहा हैं शादी,बच्चा भी हो गया परंतु पंडित जी को अबतक आपने 352 रुपये ही दिये हैं शायद आपके पिता ने भी आपके लिए ऐसा ही किया होगा जिस कारण ऐसा हो रहा हैं | ये कटु सत्य है पिछले 20 साल में महंगाई कहाँ से कहाँ पहुँच गयी लेकिन नही बढ़ा तो पण्डित की दक्षिणा ……..? लोग आज भी बड़े बड़े पूजा अनुष्ठान के संकल्प और आरती में चढ़ाने के लिये एक रूपये का सिक्का ही ढूंढ कर लाते है। नोट- कुछ दिन ऐसा दिन आने वाला है की ब्राह्मण इस पूजा पाठ के कार्य को छोड़ देगा लोग की ऐसी मानसिकता रही तो कुछ दिन में कोई ब्राह्मण दान भी नही लेगा, और ये मानसिकता समाज छोड़ दे की ब्राह्नण कभी गरीब था भागवतपुराण में साफ लिखा है की पृथ्वी का एक मात्र देवता ब्राह्मण है , आज लोग इसलिये इतना कष्ट भोग रहे है की लोग ब्राह्मण को घटिया से घटिया सामग्री ,अनुपयोगी वस्त्रh दान और उचित दक्षिणा नहीं दे रहे है ,कुछ ही वर्षो में ब्राह्मण का दर्शन दुर्लभ हो जायेगा ऐसा बहुत जल्द होने वाला है और जो पूजा करवाऐंगे वो किसी भी तरह के लोग होंगे होंगे. । शादी में लोग 10-12 लाख रुपये सिर्फ शानौशौकत के लिए उड़ा देंगे। ढोली बैंडबाजे वाले को छः महिने पहले बुक करके21-31000 हजार रुपए एक डेढ घंटे के लिये दे देंगे । डीजे व शराब में बर्बाद करके अपनी ही बहन बेटियों को नचायेंगेऔर ये सारा मांगलिक मुहूर्त कार्यक्रम तय करने वाले ब्राह्मण पंडित को जो इसका रचनाकार और धूरी है उस विप्र श्रेष्ठ को 1100रुपए में ही निपटाने का भरसक प्रयास करेंगे। * तब कौन ब्राह्मण का पुत्र यह संस्कार अपनायेगा??? *ब्राह्मण को सम्मान देवे * -डॉक्टर वैद्य पंडित विनय कुमार उपाध्याय 🙏🙏

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श्री गुरूग्रन्थ साहिब गुरू की पदवी प्राप्त सिख धर्म का प्रमुख ग्रंथ


श्री गुरूग्रन्थ साहिब 📙गुरू की पदवी प्राप्त सिख धर्म का प्रमुख ग्रंथ, आदिग्रन्थ और सिख संप्रदाय का प्रमुख धर्मग्रन्थ है। इसे ‘गुरूग्रंथ साहिब’ भी कहते हैं। इसका संपादन सिख धर्म के पाँचवें गुरू श्रीगुरू अर्जुन देव जी ने किया था।गुरू ग्रन्थ साहिब जी का पहला प्रकाशन १६ अगस्त १६०४ को श्री हरिमंदिर साहिब अमृतसर में हुआ। १७०५ में दमदमा साहिब में दशमेश पिता गुरू गोविंद सिंह जी ने गुरू तेगबहादुर जी के ११६ शब्द जोड़कर इसको पूर्ण किया, इसमें कुल १४३० पृष्ठ है। ⛳गुरुग्रन्थ साहिब में मात्र सिख गुरूओं के ही उपदेश नहीं है, वरन् ३० अन्य हिन्दू संत और अलग धर्म के मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मिलित है। 👑इसमे जहाँ जयदेवजी और परमानंदजी जैसे ब्राह्मण भक्तों की वाणी है, वहीं जाति-पाति के आत्महंता भेदभाव से ग्रस्त तत्कालीन हिंदु समाज में हेय समझे जाने वाली जातियों के प्रतिनिधि दिव्य आत्माओं जैसे कबीर, रविदास, नामदेव, सैण जी, सघना जी, छीवाजी, धन्ना की वाणी भी सम्मिलित है। 🤗पाँचों वक्त नमाज पढ़ने में विश्वास रखने वाले शेख फरीद के श्लोक भी गुरू ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। अपनी भाषायी अभिव्यक्ति, दार्शनिकता, संदेश की दृष्टि से गुरू ग्रन्थ साहिब अद्वितीय है। इसकी भाषा की सरलता, सुबोधता, सटीकता जहां जनमानस को आकर्षित करती है। वहीं संगीत के सुरों व ३१ रागों के प्रयोग ने आत्मविषयक गूढ़ आध्यात्मिक उपदेशों को भी मधुर व सारग्राही बना दिया है। 🌹गुरू ग्रन्थ साहिब में उल्लेखित दार्शनिकता कर्मवाद को मान्यता देती है। गुरूवाणी के अनुसार व्यक्ति अपने कर्मो के अनुसार ही महत्व पाता है। समाज की मुख्य धारा से कटकर संन्यास में ईश्वर प्राप्ति का साधन ढूंढ रहे साधकों को गुरूग्रन्थ साहिब सबक देता है। हालाँकि गुरू ग्रन्थ साहिब में आत्मनिरीक्षण, ध्यान का महत्व स्वीकारा गया है, मगर साधना के नाम पर परित्याग, अकर्मण्यता, निश्चेष्टता का गुरूवाणी विरोध करती है। 🗣 गुरूवाणी के अनुसार ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व से विमुख होकर जंगलों में भटकने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर हमारे हृदय में ही है, उसे अपने आन्तरिक हृदय में ही खोजने व अनुभव करने की आवश्यकता है। गुरूवाणी ब्रह्मज्ञान से उपजी आत्मिक शक्ति को लोककल्याण के लिए प्रयोग करने की प्रेरणा देती है। मधुर व्यवहार और विनम्र शब्दों के प्रयोग द्वारा हर हृदय को जीतने की सीख दी गई है।

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स्त्री का गुण


DEEPAK DAWAR

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स्त्री का गुण

एक बार सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा मैं आप को कैसी लगती हूँ ? श्रीकृष्ण ने कहा तुम मुझे नमक जैसी लगती हो। सत्यभामा इस तुलना को सुन कर क्रुद्ध हो गयी, तुलना भी की तो किस से, आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला। श्रीकृष्ण ने उस वक़्त तो किसी तरह सत्यभामा को मना लिया और उनका गुस्सा शांत कर दिया। कुछ दिन पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया। छप्पन भोग की व्यवस्था हुई। सर्वप्रथम आठों पटरानियों को, जिनमें पाकशास्त्र में निपुण सत्यभामा भी थी, से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया श्रीकृष्ण ने। सत्यभामा ने पहला कौर मुँह में डाला मगर यह क्या.. सब्जी में नमक ही नहीं था। सत्यभामा ने उस कौर को मुँह से निकाल दिया। फिर दूसरा कौर मावा-मिश्री का मुँह में डाला और फिर उसे चबाते-चबाते बुरा सा मुँह बनाया और फिर पानी की सहायता से किसी तरह मुँह से उतारा। अब तीसरा कौर फिर कचौरी का मुँह में डाला और फिर.. आक्..थू ! तब तक सत्यभामा का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। जोर से चीखीं.. किसने बनाई है यह रसोइ ? सत्यभामा की आवाज सुन कर श्रीकृष्ण दौड़ते हुए सत्यभामा के पास आये और पूछा क्या हुआ देवी ? कुछ गड़बड़ हो गयी क्या ? इतनी क्रोधित क्यों हो ? तुम्हारा चेहरा इतना तमतमा क्यूँ रहा है ? क्या हो गया ? सत्यभामा ने कहा किसने कहा था आपको भोज का आयोजन करने को ? इस तरह बिना नमक की कोई रसोई बनती है ? किसी वस्तु में नमक नहीं है। मीठे में शक्कर नहीं है। एक कौर नहीं खाया गया। किसी तरह से पानी की सहायता से एक कौर मावा का गले से नीचे उतारा। श्रीकृष्ण ने बड़े भोलेपन से पूछा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था… तो क्या हुआ बिना नमक के ही खा लेती। सत्यभामा फिर चीख कर बोली लगता है दिमाग फिर गया है आपका ? बिना शक्कर के मिठाई तो फिर भी खायी जा सकती है मगर बिना नमक के कोई भी नमकीन वस्तु नहीं खायी जा सकती है। तब श्रीकृष्ण ने अपनी बालसुलभ मुस्कान के साथ कहा तब फिर उस दिन क्यों गुस्सा हो गयी थी जब मैंने तुम्हे यह कहा कि तुम मुझे नमक जितनी प्रिय हो। अब सत्यभामा को सारी बात समझ में आ गयी की यह सारा वाकया उसे सबक सिखाने के लिए था और उस की गर्दन झुक गयी जबकि अन्य रानियाँ मुस्कुराने लगी। कहने का तात्पर्य यह है कि स्त्री जल की तरह होती है, जिसके साथ मिलती है उसका ही गुण अपना लेती है। स्त्री नमक की तरह होती है, जो अपना अस्तित्व मिटा कर भी अपने प्रेम-प्यार तथा आदर-सत्कार से परिवार को ऐसा बना देती है। माला तो आप सबने देखी होगी। तरह-तरह के फूल पिरोये हुए… पर शायद ही कभी किसी ने अच्छी से अच्छी माला में “गुम” उस सूत को देखा होगा जिसने उन सुन्दर सुन्दर फूलों को एक साथ बाँध कर रखा है। लोग तारीफ़ तो उस माला की करते हैं जो दिखाई देती है मगर तब उन्हें उस सूत की याद नहीं आती जो अगर टूट जाये तो सारे फूल इधर-उधर बिखर जाते है। कहानी का तात्पर्य यह है कि स्त्री उस सूत की तरह होती है, जो बिना किसी चाह के, बिना किसी कामना के, बिना किसी पहचान के, अपना सर्वस्व खो कर भी किसी के जान-पहचान की मोहताज नहीं होती है… और शायद इसीलिए दुनिया राम के पहले सीता को और श्याम के पहले राधे को याद करती है। अपने को विलीन कर के पुरुषों को सम्पूर्ण करने की शक्ति भगवान् ने स्त्रियों को ही दी है। ।। जय जय श्री राधे ।।